Sunday, 9 September 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


न वेत्ति यो  यस्य गुणप्रकर्षं
              स  तं  सदा निन्दति नात्र चित्रम् |
यथा किरातीकरिकुम्भलब्धां
               मुक्तां परित्यज्य विभर्ति गुञ्जाम्  ||
                                 - चाणक्य नीति (११/८ )

भावार्थ -   यदि किसी व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति के विशेष
गुणों का ज्ञान नहीं होता है तो यदि वह उस व्यक्ति की निन्दा
करता हो  तो इस में कोई आश्चर्य की बात नहीं है | उदाहरण स्वरूप
वनों में निवास करने वाली एक भील स्त्री को यदि गजमौक्तिक
(हाथी के कपाल में पाया जाने वाला मूल्यवान मोती ) पडा हुआ
मिलता है तो वह उसे त्याग  कर वन में उगे हुए  गुञ्जा वृक्ष के 
चमकीले बीजों का  चयन  (अपने  गले की माला बनाने के लिये)
करती है |

Na  vetti yo yasya  gunaprakarsham
Sa tam sadaa nindati naatra chitram.
Yathaa kiraatee  karikumbhalabdhaam.
Mauktaam parityjya  vibharti gunjaam.

Na = not.   Vetti = experiences.   Yo = whosoever.  Yasya =
whose.   Guna= virtue, quality.   Prakarsha = excellence,
greatness.    Sa = he.   Tam = those.   Sadaa = always.
Nindati = condemns, ridicules.   Naatra = na + atra.   Atra=
here.   pea  Chitram = surprising.     Yathaa = for instance.
Kiratee = a tribal woman.   Kari + kumbha+labdhvaam.
Kari = an elephant.    Kumbha = upper part of the forehead
of an elephant (legend is that objects like pearls are found
there which are called 'gajamauktika' )  Labdhaam = found,
received.    Mauktikam = a pearl.  Parityajya = discarding.
Vibharti = shining brightly.   Gunjaam = berry of Rosary pea.

i.e.    If  a person  unaware of the special qualities of an another
person condemns or ridicules him, it is not at all surprising.  For
instance a tribal woman residing in a forest on finding a precious
'Gajamauktik' (a pearl out of the forehead of an Elephant )discards
it and rather prefers the ordinary colourful berries of Rosary Pea
Tree (for making an ornament out of them) .

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