Wednesday, 17 October 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


दूरस्थोSपि  न  दूरस्थो  यो  यस्य  मनसि  स्थितः  |
यो  यस्य  हृदये  नास्ति  समीपस्थोSपि  दूरतः       ||
                                          - चाणक्य नीति (१४/९ )

भावार्थ -   यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के मन पर
छाया हुआ हो तो वह उस से दूर होते हुए भी मानसिक रूप से
उसके निकट ही रहता है |  परन्तु यदि वह उसके हृदय में कोई
स्थान  नहीं रखता है  तो वह उसके निकट होते हुए भी  उस से
दूरी बनाये रखता है |

Doorasthopi  na  doorastho  yo  yasya  manasi  sthitah.
Yo   yasya  hrudaye  naasti  sameepasthopi  dooratah.

Doorastho + api.   Doorastho= staying far away.   Api =
even.    Na = not.     Yo =whosoever.     Yasya =whose.
Manasi = in the mind.   Sthitah = existing.    Hrudaye =
in the heart.   Naasti = not.  Sameepasthopi =  Sameepastho
+ api,     Sameepastho = nearby.   Dooratah = far away.

i.e.    If a person is mentally attached to some one, in spite
of his being physically away from him, he does not feel to
be distanced from him.  However, if someone is not closer
to one's heart, mentally he is always far away from him in
spite of the physical proximity with him.

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