Tuesday, 30 October 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


तद्भोजनं  यद्विजभुक्त  शेषं
          तत्सौहृदं  यत्क्रियते  परस्मिन्  |
सा  प्राज्ञता  या  न  करोति  पापं
          दम्भं  विना  यः  क्रियते  स  धर्मः  ||
                         -  चाणक्य नीति (१५/८ )

भावार्थ -       वही भोजन श्रेष्ठ है जो ब्राह्मणों को पहले
भोजन कराने के बाद शेष रहता है |  वही  सच्ची मित्रता
है जिसमे  एक दूसरे के प्रति समान हो |  वही  विद्वत्ता
श्रेष्ठ होती है जिस के कारण व्यक्ति बुरे और निषिद्ध कार्य
करने की ओर प्रवृत्त नहीं होता है |  विना दम्भ (दिखावा
तथा गर्व ) के जो सेवा कार्य किया जाय वही सच्चा धर्म है |

Tadbhojanam yadvijabhukta  shesham.
Tatsauhrudam yatkriyate  parasmin.
Saa praagyataa  yaa  na  karoti  paapam.
Dambham  vinaa yah  kriyate  sa dharmah.

Tat+bhojanam.    Tat = that.    Bhojanam = food.
Yat + dvija=bhukta.   Yat = that.   Dvija= a brahmin.
Bhukta = eaten by.     Shesham =  remaining.
Sauhrudam = friendship for and with.    Kriyate=
 creates.  Parasmin = mutual, from both sides.
Saa = that.   Praagyataa = being learned.   Yaa =
that.   Na = not.    Karoti =does.   Paapam= evil
deeds.   Dambham = hypocrisy.    Vinaa = without. 
Yah= whosoever.     Kriyate = is done.    Sa = that.
Dharmah = religious austerity .

i.e.     Only that cooked food is good which remains
after feeding the Brahmans .   A friendship is real
when it is mutual, and  that scholarship is real, which
deters  a  person from  indulging  in  sinful  deeds. 
A charitable  deed done without hypocrisy (pomp and
pride) is the real religious austerity.

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