Thursday, 1 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Aubhashita.


 गुणैः  सर्वज्ञतुल्योSपि  सीदत्येको  निराश्रयः  |
अनर्घ्यमपि   माणिक्यं  हेमाश्रयमपेक्षते         ||
                                  /चाणक्य नीति (१६ /१०)

भावार्थ  -      एक सर्वगुणसंपन्न  व्यक्ति  के समान गुणवान
होते हुए भी कई लोग बिना किसी आश्रय के दुःखी और एकाकी 
जीवन व्यतीत करने को बाध्य होते हैं | उदाहरणार्थ  एक अमूल्य
माणिक्य भी तब तक सुशोभित नहीं होता है जब तक कि वह स्वर्ण
के आश्रय में नहीं रहता है |(किसी स्वर्ण के आभूषण में जडित नहीं
हो जाता है |)

(महान गायक, चित्रकार,कवि और अन्य गुणवान व्यक्ति तभी
सुशोभित होते हैं जब् उन्हें राजाश्रय प्राप्त होता है ,अन्यथा वे गरीबी
और गुमनामी मे जीवन यापन करने  के लिये बाध्य होते हैं | इसी
तथ्य को एक माणिक्य की शोभा एक स्वर्णाभूषण मे जडित होने की
उपमा के द्वारा  व्यक्त किया गया है | )

Gunaih  svagyatulyopi  seedatyeko  niraashrayah.
Anarghyamapi  maanikyam  hemaashrayamapekshate.

Gunaih = virtues.   Sarvagya+tulyo + api.    Sarvagya=
all -knowing.  Tulya = similar.   Api =  even.   Seedati+
eko.      Seedati = is distressed.        Eko = singly.
Nirashrayah = without any shelter or support.  Anarghyam+
api.    Anarghyam =priceless.    Maanikyam =  a ruby.
Hema + aashrayam + apekshate.   Hema = gold.   Aashrayam=
shelter.    Apekshate = requires.

i.e.      Generally most virtuous and all-knowing  persons have
have to languish and lead a  lonely difficult life for want of
patronage and support from the rich and mighty persons, just
like a precious gem, which  gets recognition an appreciation by
being studded in a gold ornament.

(Generally musicians, artists, poets etc  come into prominence
when they get support and  recognition from the State and rich
people. Otherwise , they languish in oblivion. This fact has been
illustrated by the use of a simile of a gem stone being studded in
a gold ornament.)





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