Wednesday, 7 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


पुस्तकस्था तु  या  विद्या  परहस्त  गतं  धनं  |
कार्यकाले समुत्पन्ने  न सा विद्या न तद्धनम्  ||
                                - चाणक्य नीति (१६/२० )

भावार्थ =  पुस्तकों में  वर्णित  विद्या  तथा  अन्य  व्यक्तियों
के पास रखा हुआ अपना ही धन  आवश्यकता पडने पर न तो
वह विद्या काम आती है और न ही  वह धन उपलब्ध होता है |
इसी  से मिलती जुलती भावना को एक अन्य सुभाषित में इस
प्रकार व्यक्त किया गया है :-
            "लेखनी पुस्तकाः  रामा  परहस्त गता गता |
             आगता दैवयोगेन  हृष्टा भ्रष्टा च  मर्दिता  ||
अर्थात   लेखनी (कलम ) , पुस्तकें  तथा स्त्री यदि किसी अन्य
व्यक्ति को दी जाय तो उसे गया हुआ ही समझें |  यदि भाग्यवश
यदि वापस भी आ जायें तो लेखनी  टूटी हुई , पुस्तक फटी हुई ,
और स्त्री मर्दित हो कर आती है | )

Pustakasthaa  tu  yaa  idyaa  parahasta  gatam  dhanam.
kaaryakaale samutpanne  na  saa vidyaa na taddhanam.

Pustakaah + tu.    Pustakaah = books.  Tu = and   Yaa =
that.   Vidyaa = knowledge, learning.   Para = others.
Hasta = hands.   Gatam = gone.    Dhanam = wealth.
Kaaryakaale = at the time of need arising.    Samutpanne=
happening, occuring.  Na = not.   Saa = that. Tat+dhanam
Tat = that.

i.e.   Knowledge enshrined only in books and wealth under
under control of others,  whenever need arises for them then
neither  the said knowledge nor the wealth is available.

(There is another Subhashita on this theme, which says that
if pens, books and a woman is let out to some one, the chances
are that they will never be returned.  If per chance they are
returned, the pens will be broken,  books will be torn and the
woman will be trodden down.)



1 comment:

  1. Euphonious!! Beautiful. Both these sibhashitas are super..

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