Friday, 9 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


दानेन  पाणिर्न  तु  कङ्कणेन
                        स्नानेन शुद्धिर्न  तु  चन्दनेन  |
मानेन  तुष्तिर्न  तु  भोजनेन
                        ज्ञानेन  मुक्तिर्न  तु  मुण्डनेन  ||
                               -   चाणक्य  नीति (१७/१२ )

भावार्थ -   हाथों की शोभा दान देने से होती है न कि कङ्कण
पहनने  से होती है |  शरीर स्नान करने  से शुद्ध होता है न कि
चन्दन का लेप करने से |   लोग  यथोचित आदर और सम्मान
किये जाने से संतुष्ट होते हैं न कि  केवल भोजन कराने से | तथा
मृत्यु  और पुनर्जन्म  के  चक्र से मुक्ति  तत्वज्ञान प्राप्त करने से
होती है  न कि  सिर के केशों का मुण्डन करने से |

Daanena  paanirna  tu  kankanena.
Snaanena shuddhirna  tu  chandanena.
Maanena tushtirna  tu  bhojanena,
Gyaanena muktirna tu  mundanena.

Daanena = by giving donations.   Paanih + na.
Paanih = hand.    Na = not.   Tu = and   Kankanena =
A bracelet.  Snaanena = by taking a bath,  Shuddhi =
cleanliness.   Chandanena = by smearing the body
with a paste of sandalwood.    Maanena = by giving
due respect.   Truptih = satisfaction, contentment.
Bhojanena = serving a sumptuous meal.  Gyaanena =
by higher spiritual knowledge.   Muktih = salvation. 
Mundanena = by tonsuring the head.

i.e.   Hands are embellished  by giving donations and not
by wearing bracelets.   The body is cleansed by taking a
bath and not by  smearing the paste of sandalwood over
the body.   A person feels contented by being given due
respect and not by simply being provided a meal. A person
can achieve salvation by acquiring higher spiritual knowledge
and not by merely tonsuring his head.

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