अतिकुपिता अपि सुजना योगेन मृदुभवन्ति न तु नीचा |
हेम्नः कठिनस्यापि द्रवणोपायोSस्ति न तृणानां ||
अर्थ - अत्यन्त कुपित होने पर भी सज्जन व्यक्ति यदि विशेष प्रयत्न किया जाय तो पुनः मृदुल स्वभाव ग्रहण कर लेते हैं | परन्तु नीच व्यक्ति ऐसा नहीं कर सकते हैं | उदाहरणार्थ स्वर्ण यद्यपि कठोर होता है पर विशेष उपाय से (आग में गरम करने से ) वह् द्रव में परिणित हो जाता है परन्तु घास के तिनके ऐसा नहीं कर सकते हैं (और जल जाते हैं ) |
(इस सुभाषित में क्रोध को आग की उपमा दी गयी है और सज्जन तथा नीच व्यक्तियों की तुलना क्रमशः स्वर्ण तथा घास से करते हुए उन पर क्रोध प्रभाव की भी तुलना की गयी है | क्रोधाग्नि से स्वर्ण पिघल कर द्रव रूप में परिनित हो जाता है और ठण्डा होने पर पुनः अपने पूर्व स्वरूप में आ जाता है जब कि घास जल कर भस्म हो जाती है | )
Atikupitaa api sunanaa yogena mrudubhavanti na tu neechaa .
Hemnah kathinasyaapi dravanopaayosti na trunaanaam.
Ati = extremely Kupitaa = angry. Api = even. Sujanaa = noble persons.
Yogena = intense action or efforts. Mrudu = soft, gentle. Na = not. Tu = but, and.
Neechaa = lowly and wicked persons. Hemnah = Gold. Kathinasyaai = kathinasya + api. Kathinasya = hardness. Dravanoopaayosti = dravana +upaayo + asti. dravana =melting, becoming liquid. Upaayo =effort, means. Asti =. becomes. Na - not . Trunaanaam = grass.
i.e. Even on being extremely angry noble persons still remain gentle and kind hearted, whereas lowly and wicked persons are not able to do so. For example gold on being heated only becomes soft or gets liquified and retains its old shape after becoming cool, whereas the grass gets completely burnt.
(In this subhashita noble persons are compared to Gold and wicked persons to ordinary grass and
anger has been compared to a burning fire. While the anger in noble persons can be subdued by making special efforts and they retain their kindness after their anger is subdued in the case of wicked persons anger at times results in their total destruction.).
हेम्नः कठिनस्यापि द्रवणोपायोSस्ति न तृणानां ||
अर्थ - अत्यन्त कुपित होने पर भी सज्जन व्यक्ति यदि विशेष प्रयत्न किया जाय तो पुनः मृदुल स्वभाव ग्रहण कर लेते हैं | परन्तु नीच व्यक्ति ऐसा नहीं कर सकते हैं | उदाहरणार्थ स्वर्ण यद्यपि कठोर होता है पर विशेष उपाय से (आग में गरम करने से ) वह् द्रव में परिणित हो जाता है परन्तु घास के तिनके ऐसा नहीं कर सकते हैं (और जल जाते हैं ) |
(इस सुभाषित में क्रोध को आग की उपमा दी गयी है और सज्जन तथा नीच व्यक्तियों की तुलना क्रमशः स्वर्ण तथा घास से करते हुए उन पर क्रोध प्रभाव की भी तुलना की गयी है | क्रोधाग्नि से स्वर्ण पिघल कर द्रव रूप में परिनित हो जाता है और ठण्डा होने पर पुनः अपने पूर्व स्वरूप में आ जाता है जब कि घास जल कर भस्म हो जाती है | )
Atikupitaa api sunanaa yogena mrudubhavanti na tu neechaa .
Hemnah kathinasyaapi dravanopaayosti na trunaanaam.
Ati = extremely Kupitaa = angry. Api = even. Sujanaa = noble persons.
Yogena = intense action or efforts. Mrudu = soft, gentle. Na = not. Tu = but, and.
Neechaa = lowly and wicked persons. Hemnah = Gold. Kathinasyaai = kathinasya + api. Kathinasya = hardness. Dravanoopaayosti = dravana +upaayo + asti. dravana =melting, becoming liquid. Upaayo =effort, means. Asti =. becomes. Na - not . Trunaanaam = grass.
i.e. Even on being extremely angry noble persons still remain gentle and kind hearted, whereas lowly and wicked persons are not able to do so. For example gold on being heated only becomes soft or gets liquified and retains its old shape after becoming cool, whereas the grass gets completely burnt.
(In this subhashita noble persons are compared to Gold and wicked persons to ordinary grass and
anger has been compared to a burning fire. While the anger in noble persons can be subdued by making special efforts and they retain their kindness after their anger is subdued in the case of wicked persons anger at times results in their total destruction.).
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