एकमपि सतां सुकृतं विकसति तैलं यथा जले न्यस्तं |
असतामुपकारशतं संकुचति सुशीतले जले घृतवत् || - महासुभषितसंग्रह
भावार्थ - सहृदय और सज्जन व्यक्तियों के प्रति किये हुए एक अकेले
ही शुभ कार्य का समाज में ऐसा व्यापक शुभ प्रभाव होता है जैसे कि जल
में तेल डालने से वह उसकी पूरी सतह में फैल जाता है | परन्तु यदि दुष्ट
और दुर्जन व्यक्तियों के प्रति चाहे एक सौ उपकार भी क्यों न कर दिये जायें
वे उनका आदर नहीं करते है तथा उसका प्रभाव अत्यन्त शीतल जल में घी
डालने के समान होता है, अर्थात जिस प्रकार घी जम कर ठोस हो कर एक ही
स्थान पर एकत्रित जाता है और उनके प्रति उपकार करना व्यर्थ है |
(इस सुभाषित में तैल और घृत के जल में डाले जाने की प्रक्रिया के परिणाम
की तुलना सज्जन और दुर्जन व्यक्तियों के प्रति किये उपकार पर उनकी
प्रतिक्रिया से की गयी है | )
Ekamapi sataam sukrutam vikasati tailam yathaa jale nyastam.
Asataamupakaarashatam smkuchati susheetale jale ghrutavat.
Ekamapi = eka + api. Eka = one. Api = even. Sataam = noble
and righteous persons. Sukrutam = good and righteous deed.
Vikasati = blossoms, expands. Tailam = oil. Yatha =for instance.
Jale = on the water. Nyastam = stretched out. Asataam +upakaar
+shatam. Asataam = mean and wicked persons. Upakaar =favour.
Shatam = one hundred. Sankuchai = shrinks. Susheetale = very
cold. Ghrutavat = like Ghee (milk-cream)
i.e. The effect of even a single righteous deed done to noble and
righteous persons is widespread in society just like oil poured in water
spreads over its surface. On the contrary even one hundred
good deeds done to mean and wicked persons are of no use just like
ghee poured in very cold water, which just solidifies at one place.
( In this Subhashita the comparison between noble and wicked persons
has been highlighted nicely by the use of the similes of oil and ghee.)
असतामुपकारशतं संकुचति सुशीतले जले घृतवत् || - महासुभषितसंग्रह
भावार्थ - सहृदय और सज्जन व्यक्तियों के प्रति किये हुए एक अकेले
ही शुभ कार्य का समाज में ऐसा व्यापक शुभ प्रभाव होता है जैसे कि जल
में तेल डालने से वह उसकी पूरी सतह में फैल जाता है | परन्तु यदि दुष्ट
और दुर्जन व्यक्तियों के प्रति चाहे एक सौ उपकार भी क्यों न कर दिये जायें
वे उनका आदर नहीं करते है तथा उसका प्रभाव अत्यन्त शीतल जल में घी
डालने के समान होता है, अर्थात जिस प्रकार घी जम कर ठोस हो कर एक ही
स्थान पर एकत्रित जाता है और उनके प्रति उपकार करना व्यर्थ है |
(इस सुभाषित में तैल और घृत के जल में डाले जाने की प्रक्रिया के परिणाम
की तुलना सज्जन और दुर्जन व्यक्तियों के प्रति किये उपकार पर उनकी
प्रतिक्रिया से की गयी है | )
Ekamapi sataam sukrutam vikasati tailam yathaa jale nyastam.
Asataamupakaarashatam smkuchati susheetale jale ghrutavat.
Ekamapi = eka + api. Eka = one. Api = even. Sataam = noble
and righteous persons. Sukrutam = good and righteous deed.
Vikasati = blossoms, expands. Tailam = oil. Yatha =for instance.
Jale = on the water. Nyastam = stretched out. Asataam +upakaar
+shatam. Asataam = mean and wicked persons. Upakaar =favour.
Shatam = one hundred. Sankuchai = shrinks. Susheetale = very
cold. Ghrutavat = like Ghee (milk-cream)
i.e. The effect of even a single righteous deed done to noble and
righteous persons is widespread in society just like oil poured in water
spreads over its surface. On the contrary even one hundred
good deeds done to mean and wicked persons are of no use just like
ghee poured in very cold water, which just solidifies at one place.
( In this Subhashita the comparison between noble and wicked persons
has been highlighted nicely by the use of the similes of oil and ghee.)
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