एकमेव पुरस्कृत्य दश जीवन्ति मानावाः |
विना तेन न शोभन्ते यथा संख्याङ्कबिन्दवः || = महासुभषितसंग्रह
भावार्थ - यदि किसी एक व्यक्ति को पुरस्कृत किया जाता है तो
उसके परिणाम स्वरूप दस और लोग (जो उसके ऊपर आश्रित होते
हैं ) भी अच्छा जीवन जीते हैं और विना पुरस्कृत व्यक्ति की संगति
के उसी प्रकार शोभित नहीं होते हैं जिस प्रकार कि अनेक शून्य अंकों
का कोई महत्त्व नहीं होता है |
(गणित मे शून्य संख्या का तब तक कोई मूल्य नहीं होता है जब् तक कि
उसकेआगे १ से ९ तक की संख्याएं न लगी हो | ऐसा करने से उस संख्या
के मूल्य मे दसगुनी वृद्धि हो जाती है | इसे तथ्य को एक उपमा के रूप मे
इस सुभाषित में प्रयुक्त किया गया है कि पुरस्कृत व्यक्ति के अतिरिक्त
उसके आश्रित व्यक्ति भी पुरस्कार में सहभागी होते हैं |)
Ekameva puraskrutya dash jeevanti maanaavaah .
Vina tena na shobhante yathaa smkhyaankabindavah.
Ekameva = ekam + eva. Ekam = one. Eva = really,
Puraskrutya on being rewarded. Dash = ten. Jeevanti=
live. Naanavaah = persons. Vina = without. Tena = that
Na = not. Shobhante= beautified. Yathaa = for instance.
Smkhyaankabindavah= cyphers (zeroes).
i.e. Whenever a person is rewarded, besides him ten more
persons ( who may be dependent on him ) live a comfortable
life. Without the person who is rewarded they are just like
cyphers without any value.
(In Mathematics thr value of zero is nil until a digit from 1 to
9 is placed before it, which increases the value of the latter digit
ten times. This fact has been used in this Subhashita as a simile
to emphasise that besides the person who is rewarded many
other persons share the honour and benefit received by him.)
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