कपटेन पुनर्नैव व्यापारो यदि वा कृतः |
पुनर्न परिपाकोर्हा हन्डिका काष्टनिर्मिता || -महासुभषित अं ग्रह(८६०४)
भावार्थ - यदि कपट पूर्वक (धोखा दे कर ) किसी व्यक्ति से कोई व्यापार
करने के बाद वही व्यापार उस से पुनः किया जाता है तो हाय ! वह् उसी
प्रकार संपन्न नहीं हो सकता है जिस प्रकार लकडी से बनी हुई हांडी चूल्हे
में दूसरी बार नहीं चढ सकती है |
प्रकार संपन्न नहीं हो सकता है जिस प्रकार लकडी से बनी हुई हांडी चूल्हे
में दूसरी बार नहीं चढ सकती है |
(इसी भावना को कवि रहीम ने भी इस प्रकार व्यक्त किया है - रहिमान हांडी
काठ की चढे न दूजी बार | )
Kapatena punarnaiva vyaaproo yadi va krutah.
Punarna paripaakorhaa handikaa kaashtanirmitaa.
Kapatena =by deceit or trickery. Punarnaiva = again afresh.
Vyaaparo = trade, business. Yadi = if. Vaa = and. Krutah =
done. Punarna = Punah + na. Punah = again. Na = not.
Paripaakorhaa - paripaako + haa. Paripaako = materializes,
gives good reults. Haa = alas ! (particle expressing grief )
Handikaa = a boiling pot. Kaashta = wood. Nirmitaa =
made out of. Kaashtanirmitaa = made out of wood.
i.e. If any business is done with someone with deceit or
trickery, and if the same business is again done with him, alas !
it does not materialise next time, just like a boiling pot made out
of wood which can not be used again for the second time .
it does not materialise next time, just like a boiling pot made out
of wood which can not be used again for the second time .
No comments:
Post a Comment