Tuesday, 26 August 2014

Today's Subhashita.

वहेदमित्रं   स्कन्धेन  यावत्कालविपर्ययः |
अद्दैवमागते  काले  भिन्द्याद् घटमिवाSश्मनी  ||

अर्थ -     जब् तक तुम्हारा  मित्र विपत्तिग्रस्त हो तब तक उसे अपने कन्धे पर  ऐसे  उठाओ  (सहारा दो) जैसे जल से भरे घडे को उठाते हैं परन्तु जब उसका अच्छा समय आ जाये तो उसे उसके हाल पर छोड देना चाहिये जैसे कि घडे को पत्थर से तोड् दिया गया हो |

Vahedmitram skandena bhinddyaad yaavatkaalaviparyayah.
Addyevamaagate kaale bhindyaad ghatmivaashmanee.

Vahedmitrm = vahet +mitram.    Vahat = bear or  carry on with.     Mitram = a friend.
Skandhena = on your shoulder.    Yaavatkaalaviparyayah = yaavad + Kaala+viparyayah.
Yaavad = as  long as, while .   Kaaka = time, period,    Viparyayah = calamity, misfortune.
Addyevamaagate = addyevam    +aagate.     Addyevam .= right now.    Aagate = arrived, comes.  Bhinddyaad =  break.    Ghatamivaashmanee = Ghatam+iva +ashmani.Ghatam = an earthern pitcher.
 Iva = as ,  like.    Ashmani = a rock., stone.

i.e.       As long as  your friend is facing misfortune or any calamity , lend him  your shoulder (support him) as one carries carefully a pitcher of water, but as soon as his troubles are over leave him with his own lot and withdraw your  support like breaking the pitcher with a stone.



1 comment:

  1. इसका अर्थ इसप्रकार बताया गया है।

    अर्थ - "-जब तक समय अनुकूल न हो, तब तक शत्रु को अपने कन्धे पर ढोना चाहिए, उसका आदर सत्कार करना चाहिए, परन्तु जब समय अपने अनुकूल आ जाए, तब उसे उसी प्रकार नष्ट कर दे, जैसे घडे को पत्थर पर पटक कर फोड डालते हैं ।"

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