अतियत्न ग्रहीतोSपि खलः खलखलायते |
शिरसा धार्यमाणोSपि तोयस्यार्धघटो यथा ||
अर्थ - अत्यन्त प्रयत्न करने तथा सम्मानित करने के बाद भी खल (दुष्ट व्यक्ति )अपनी खलता को नहीं त्यागते हैं और उसी प्रकार खल ही बने रहते हैं जैसे कि एक जल से आधा भरा हुआ घडा सिर में धारण करने पर भी छलकता रहता है |
( कहावत् है कि - 'अधजल् गगरी छलकत जाये ' चाहे उसे सिर पर ही क्यों न उठा लिया जाय | सिर पर उठाना एक सम्मान सूचक मुहावरा है और जो 'छल छल ' ध्वनि ऐसा घडा करता है उस प्रभाव को 'खलखलायते' शब्द द्वारा सुभाषितकार ने एक खल के लिये प्रयुक्त किया है | खलों को एक घडे की तरह 'सिर पर बिठाने' पर भी वे अपनी 'खलता' नहीं त्यागते हैं , यही तथ्य इस उपमा द्वारा बडी सुन्दरता से व्यक्त किया गया है | )
Atiyatna graheetopi khalah khalakhalaayate.
Shirasaa dhaaryamaanopi toyasyaardhaghato yathaa.
Ati = extreme. Yatna = effort. Graheetopi = graheto + api. Graheeto = made.
Api = even, Khalah = a mean and wicked person. Khalakhalaayate = continue behaving
like a wicked person. Shirasaa = over the foread. Dhaaryamaanopi = dhaaryamaan + api.
Dhaaryamaan = placed over. Toyasyaaardhaghato = toyasya +ardha +ghato.
Toyasya = water's Ardha = half filled. Ghato = a picher. Yathaa = for instance.
i.e. Inspite of making special effort and giving them due respect, wicked and mean persons do not shed their wickedness and continue behaving like wicked persons, just like a pitcher half-filled with water makes rumbling sound and sheds water even if it is carried over the head.
(In this subhashita the wicked persons have been compared with a half filled pitcher of water, which, even by carrying it over the head (a show of respect) continues to make rumbling sound and the water spills through its mouth. )
शिरसा धार्यमाणोSपि तोयस्यार्धघटो यथा ||
अर्थ - अत्यन्त प्रयत्न करने तथा सम्मानित करने के बाद भी खल (दुष्ट व्यक्ति )अपनी खलता को नहीं त्यागते हैं और उसी प्रकार खल ही बने रहते हैं जैसे कि एक जल से आधा भरा हुआ घडा सिर में धारण करने पर भी छलकता रहता है |
( कहावत् है कि - 'अधजल् गगरी छलकत जाये ' चाहे उसे सिर पर ही क्यों न उठा लिया जाय | सिर पर उठाना एक सम्मान सूचक मुहावरा है और जो 'छल छल ' ध्वनि ऐसा घडा करता है उस प्रभाव को 'खलखलायते' शब्द द्वारा सुभाषितकार ने एक खल के लिये प्रयुक्त किया है | खलों को एक घडे की तरह 'सिर पर बिठाने' पर भी वे अपनी 'खलता' नहीं त्यागते हैं , यही तथ्य इस उपमा द्वारा बडी सुन्दरता से व्यक्त किया गया है | )
Atiyatna graheetopi khalah khalakhalaayate.
Shirasaa dhaaryamaanopi toyasyaardhaghato yathaa.
Ati = extreme. Yatna = effort. Graheetopi = graheto + api. Graheeto = made.
Api = even, Khalah = a mean and wicked person. Khalakhalaayate = continue behaving
like a wicked person. Shirasaa = over the foread. Dhaaryamaanopi = dhaaryamaan + api.
Dhaaryamaan = placed over. Toyasyaaardhaghato = toyasya +ardha +ghato.
Toyasya = water's Ardha = half filled. Ghato = a picher. Yathaa = for instance.
i.e. Inspite of making special effort and giving them due respect, wicked and mean persons do not shed their wickedness and continue behaving like wicked persons, just like a pitcher half-filled with water makes rumbling sound and sheds water even if it is carried over the head.
(In this subhashita the wicked persons have been compared with a half filled pitcher of water, which, even by carrying it over the head (a show of respect) continues to make rumbling sound and the water spills through its mouth. )
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