Sunday, 29 January 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


कण्ठस्था या भवेद्विद्या सा प्रकाश्यः सदा बुधै |
या  गुरौ  पुस्तके  विद्या  तथा  मूढः  प्रतार्यते   ||  - महासुभषितसंग्रह(८३९५)

भावार्थ -   बुद्धिमान व्यक्ति सदैव अपने उसी ज्ञान को प्रदर्शित  करते हैं जो
उन्हें कण्ठस्थ होता है अर्थात्  जिस को वे अपनी स्मरणशक्ति के बल पर उसे
मौखिक रूप से व्यक्त कर सकते हों |  परन्तु मूर्ख व्यक्ति जो विद्या गुरुओं
के पास और पुस्तकों में लिखित रूप में होती है उसे वे भली प्रकार न जानते
हुए  भी उसका दुरुपयोग कर लोगों को भ्रमित करते हैं |

(इस सुभाषित द्वारा वास्तविक बुद्धिमान और साधारण ज्ञान वाले व्यक्तियों के
बौद्धिक स्तर के अन्तर को व्यक्त किया गया है |    वर्तमान  समय में प्राथमिक
शिक्षा के क्षेत्र में ऐसे ही शिक्षकों का  बोलबाला है जो अपने अधूरे ज्ञान के कारण
विद्यार्थियों को भ्रमित और पथभृष्ट ही कर रहे  हैं |)

Kanthasthaa yaa bhavedvidyaa saa prakaashyah sadaa budhai.
Yaa gurau pustake vidyaa tathaa moodahh prataaryate,

Kanthasthaa = being in the mouth ready to be repeated by rote.
Yaa = which.   Bhavedvidyaa= Bhavet + vidyaa.   Bhavet =  becomes.
Vidyaa = knowledge, learning.    Saa = that     Prakaashyah = brought
to light.   Sadaa= always.   Budhaih =  wise men.    Gurau = teachers.
Pustake = books.     Tathaa= so, thus.   Moodhaah = foolish persons.
Prataaryat= mislead.

i.e.         Wise and knowledgeable persons throw light only on those
aspects of  knowledge in which they are  thoroughly conversant  and
can repeat by rote out of their memory.  Only foolish persons misuse
their incomplete knowledge gained from their teachers and books, and
mislead every one.

(The above Subhashita explains the difference between a real scholar and
a  not properly educated foolish person . Now a days in the field of primary
education there is dearth of well educated persons and incompetent teachers
are rather misleading the students instead of guiding them .)


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