Friday, 30 June 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


यद्यपि  खदिराSरण्ये गुप्तो  वस्ते  हि चम्पको वृक्षः  |
तदपि  च परिमलमतुलं  दिशिदिशि  कथयेत्समीरणस्तस्य ||
                                         सुभषित रत्नाकर (शार्ङ्गधर )

भावार्थ -    यद्यपि  किसी कांटेदार 'खदिर' (बबूल) के वृक्षों के वन (जंगल)
में  कोई 'चम्पक'  का वृक्ष  छुपा हुआ रह सकता है  फिर भी  बहती हुई  वायु
उसके फूलों की अतुलनीय सुगन्ध को चारों दिशाओ में फैला कर उसकी
उपस्थिति को  बता ही देती है |

(यह सुभाषित भी 'चम्पकान्योक्ति' शीर्षक  से संकलित है | लाक्षणिक रूप से
इस का तात्पर्य यह  है कि  कोई गुणवान और सज्जन व्यक्ति साधारण लोगों
के बीच में देर तक उपेक्षित नहीं रह सकता है | उसके गुण उसकी उपस्थिति को
अन्ततः प्रकट कर ही देते हैं | )

Yadyapi khadiraaranye gupto vasate hi champako vrukshah
Tadaapi cha parimalamatulam dishidishi kathayetsameeranastasya.

Yadyapi = although.   Khadiraaranye = khadir + aranye.    Khadir =
name of a thorny tree  (botanical name acacia)    Aranye = a forest.  
Gupto = hidden    Vaste = exists.    Champako = name of a tree
which produces very fragrant flowers.   Vrukshah = a tree.   Tadapi =
even then.   Parimalamatulam = parimal + atulam.   Parimalam = 
fragrance.    Atulam =matchless, incomparable.       Dishi-dishi =
in all directions.  kathayetsameeranastasya = kathayati + sameeranah + ,
tasya.   Kathayati = tells, announces.    Sameeranah = blowing wind.
Tasya = its.

i.e.    Although a 'Champak'  tree grown in a forest of  thorny 'Khadir'
trees, may otherwise remain hidden , even then the blowing wind ,
carrying the incomparable fragrance of its flowers in all directions
tells about its existence in the forest,

(This Subhashita is also an 'Anyokti' (allegory) , the idea behind it
is that a knowledgeable and virtuous person living among ordinary
persons, can not remain hidden for a long time and ultimately people
know about him due to his virtues.)


Thursday, 29 June 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


मूलं  भुजङ्ग:  शिखरं विहङ्गैः शाखाः प्लवङ्गैः कुसुमानि भृङ्गैः |
नाSस्त्येव   तच्चन्दनपादपस्य  यन्ना SSश्रितं सत्त्वभरैः समन्तात् ||
                                            सुभाषित रत्नाकर -२४५ /३ (शार्ङ्गधर )

भावार्थ -  सचमुच चन्दन वृक्ष के समान अन्य कोई सहृदय शरण दाता
नहीं है जिस के आश्रय में उसकी जडों में सर्प , शिखर मे पक्षीगण ,शाखाओं
में वानर , और पुष्पों में भ्रमर निवास करते हैं |

(उपर्युक्त सुभाषित भी एक 'अन्योक्ति ' है जिसे 'चन्दनान्योक्ति ' शीर्षक
से संकलित किया गया है | तात्पर्य यह है कि दयालु और सज्जन व्यक्ति
बिना किसी भेद भाव के सभी की  सहायता करते हैं |  कहा भी गया है कि -
'उदार चरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकं '  अर्थात उदार- हृदय महापुरुषों के लिये
सारा विश्व ही उनके लिये अपने कुटुम्ब के समान है | )

Moolam bhungahh shikharam vihangaih
Shaakhaah plavangaih kusumaani bhrungaih.
Naastveva   tat-chandana-paadapasya .
Yannaashritam satvabharaih samantaat

Moolam = roots of a tree.   Bhungahh = snakes,    Shikharam=
on the top.   Vihangaih = birds.   Shaakhaa = branches of a tree.
Plavangaih = monkeys.   Kusumaani = flowers.    Bhrungaih =
large black bees.    Naastyeva = Naasti + eva.     Naasti -does
not exist.   Aiva = really.  Tat = that.   Chandan= sandaalwood.
Padapasya - tree's    Yannaashritam = yat + aashritam.    Yat =
that, whose.    Aashritam =   shelter    Satvabharaih =satva +
bharahi   Sattva = goodness.   Bharaih = bearing,    Samantaat =
all around.

i.e.    Really, there does not exist any other living being so kind and
generous  like  a sandalwood  tree.  which  provides all  around
shelter to the snakes in its roots, to the birds on its top, to the monkeys
on its branches, and to the large black bees on its flowers.

(The above Subhashita is also an "Anyokti' using a sandalwood tree
as an allegory.  The idea behind the Subhashita is that noble and
virtuous persons  help all and sundry without any discrimination i.e.
they consider the entire world as their own family.)


Wednesday, 28 June 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


वातोल्लासितकल्लोल   धिक्  ते  सागरगर्जनम्  |
यस्य तीरे  तृषाक्रान्तः पान्थः पृच्छति वापिकाम्  || - शार्ङ्गधर

भावार्थ -   तेज वायु के चलने के कारण  ऊंची ऊंची लहरों से
परिपूर्ण और गरजते हुए  ओ समुद्र  !  तुझे धिक्कार है कि तेरे
तट पर प्यास से व्याकुल एक पथिक को पूछना पडता है कि क्या
निकट ही कहीं कोई पीने योग्य जल का तालाब है  |

(उपर्युक्त सुभाषित भी एक ' अन्योक्ति' है , जिसे 'सागरान्योक्ति ' के
रूप में वर्गीकृत किया गया है |   किसी धनवान व्यक्ति का धन यदि उस
की कृपणता के कारण किसी अभावग्रस्त व्यक्ति की सहायता के लिये
उपलब्ध नहीं हो परन्तु  उसे किसी साधारण व्यक्ति से सहायता मिल जाय
तो इसी भावना को इस अन्योक्ति द्वारा व्यक्त किया गया है | )

Vaatollaasita-kallola    dhik  tey  Saagara-garjanam.
Yasya teere  trushaakaantah paanthah prucchati vaapikaam.

Vaatollaasita = vaata+ullasit.   Vaata = wind.   Ullaasita =
caused to be agitated.  kallola= billowing waves,    Dhik =
shame on you.     Yasya = whose.   Teere = at the shore.
Trushaakaantah =  very thirsty.   Paanthah = a traveller.
Prucchati = enquires.    Vaapikaam = a pond of potable water.
ou
i.e .     O mighty Ocean !  Shame upon you.   While you are
roaring and producing big waves on being agitated by the
blowing wind,   a very thirsty traveller on your shore is making
enquiries about  a pond where he can quench his thirst .

(The above Subhashita is also an 'Anyokti' using the Ocean as
an allegory.  The idea behind this Subhashita is that of what use
are the riches of a miser if he can not use it to help a needy
person.  An ordinary person who helps under such circumstances
is more useful.)

Tuesday, 27 June 2017

आज का सुभाषित / Today' Subhashita.

सगुणैः सेवितोपान्तो विनतैः प्राप्तदर्शनः  |
नीचोSपि कूपः सत्पात्रैर्जीवनार्थं समाश्रितः || शार्ङ्गधर

भावार्थ -  यद्यपि  एक कुवां  बहुत गहरा होता है और झुक कर ही
उसके  जल के दर्शन होते हैं , लेकिन फिर भी वह गुणवान और योग्य
 व्यक्ति के जीवन की रक्षा करने के हेतु पानी पिलाने के लिये  सदैव
तत्पर रहता है |

(यह  सुभाषित भी 'कूपान्योक्ति ' शीर्षक से संकलित है क्यों  कि इस
में  एक कूप (कुंवां ) को प्रतिमान बनाया गया है | इस में 'सगुणैः'शब्द दो
अर्थों  में प्रयुक्त हुआ है  | पहला जिस व्यक्ति के पास रस्सी हो और दूसरा
अर्थ एक गुणवान व्यक्ति |  प्राचीन काल में पैदल यात्रा करने वाले व्यक्ति
'लोटा और डोर्री ' अपने साथ रखते थे ताकि प्यास लगने पर किसी कुंवे से
उनकी सहायता से पानी निकाल कर अपनी प्यास बुझा  सकें | अर्थात कुंवे से
पानी निकालने के लिये बुद्धिमानी नम्रता और साधन सभी आवश्यक होते हैं | )

Sagunaih sevito-paanto vinataih  praapt-darshanah.
Neechopi koopah satpaatrairjeevanaartham  samaashritah.

Sagunaih  = having a long cord., having virtues.   Sevito = serves.
Paanto =a drink.   Vinataih = by bending down.   Prapta = get.
Darshanah  = view.   Neechopi = neecho + api.    Neecho - deep,
inferior.  api = even.  Koopah =  a well.  Satpaatraih = worthy
recipients      Jeevanaartham = for the sake of protecting the life.
Samaashritah = endowed or provided with.

i.e.    Although a well is very deep and one can see it only by bending
down, it is still always committed to provide water to virtuous persons
and save their life.

(This Subhashita is also an 'anyokti' by using a Well as an allegory.  In
olden times travellers used to keep with them a long cord and a cup,
so that they could draw water from a Well to quench their thirst.  The
word 'sagunaih' in this shloka has two meanings namely (i) virtuous and
(ii)  having a long cord (and a cup), without the help of which they could
not draw water from a Well.  The underlying idea is that for taking out
water from a Well both intelligence and proper equipment are required.)

Monday, 26 June 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.

किंशुके शुक मा तिष्ठ चिरं भाविफलेच्छया  |
वाह्य रङ्ग प्रसङ्गेन  केके  नाSनेव वञ्चिता  || - शार्ङ्गधर

भावार्थ -    अरे तोते  !  भविष्य में ढेर सारे फलों को पाने की
आशा में इस किंशुक बृक्ष में निवास न कर | भला केवल बाहरी
रूप और रंग से प्रभावित हो कर किस ने  धोखा नहीं खाया है ?

( यह सुभाषित भी 'शुकान्योक्ति '  शीर्षक के अन्तर्गत संकलित
किया गया है |  किंशुक वृक्ष अपने सुन्दर लाल रंग के फूलों के लिये
प्रसिद्ध है परन्तु उसमें फल नहीं लगते हैं | अतः एक शुक के माध्यम
से यह प्रतिपादित किया गया है  कि केवल बाहरी तडक भडक  से
प्रभावित नहीं होना चाहिये और निकट सम्बन्ध स्थापित करने से पूर्व
भली प्रकार जांच कर लेनी चाहिये ताकि   भविष्य में धोखा न हो |)

Kinshuke shuka maa tishtha chiram bhaavi-phaleccha
Vaahya ranga-prasangena  keke  naaneva vanchitaa.

Kinshuke = name of a tree having very bright red flowers,
also called  'flame  of the forest' ..   Shuka = a parrot.
Maa = do not.   Tishta - stay, live.  Chiram = for a long
time.  Bhaavi = future.   Phalecchayaa = in the hope of
getting fruits.   Vaahya = outer.   Ranga = colour.  Prasangna=
incidentally.   Keke = who.    Naanena = Na + anena.
Na = not.    Anena = by this.    Vanchitaa = deceived, tricked.

i.e.     O parrot !    Do not stay in this Kinshuk tree for a long
time with the hope of getting a good supply of fruits in future.
Incidentally, who has not been deceived if he has relied only
on the outward appearance and colour ?

(The above Subhashita has also been classified as 'Shukaanyokti'.
as it uses the allegory of a parrot .  The 'kinshuka' tree . also
know as 'the flame of the forest' due to its very bright red flowers ,
incidentally does not bear any fruits. So, through this Subhashita
the author warns us that while dealing with others we should not
be influenced only by their outward appearance and colour , which
may result in our being deceived or cheated. )


  

Sunday, 25 June 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.

नालेनेव  स्थित्वा  पादेनैकेव  कुञ्चितग्रीवम्
जनयति  कुमुदभ्रान्ति  वृद्धबको  बालमत्स्यानाम् || - शार्ङ्धर

भावार्थ -     जल में एक ही पांव पर बिल्कुल स्थिर खडे हो कर
तथा अपनी गर्दन मोड कर एक  चालाक बगुला पक्षी छोटी छोटी
मछलियों में यह भ्रम  उत्पन्न कर देता है कि वह कमल पुष्प कीआ
नाल है (और बगुला उन्हें आसानी से अपना  शिकार बना लेता है ) |

(कपट पूर्वक अच्छा वेष धारण कर जब कोई व्यक्ति किसी अन्य
व्यक्ति को  मूर्ख बना कर छलता है तो ऐसे व्यक्ति को बगुला भगत
कहा जाता है |  अतः इस अन्योक्ति के द्वारा एक चेतावनी दी गयी
है |  तुलसीदास जी ने भी कहा है कि -  'तुलसी देखि सुवेषु भूलहिं मूढ
न चतुर नर  |  सुन्दर केकिहि पंख वचन सुधा सम असन अहि ||


Naaleneva sthitvaa paadenaikena kunchitgreevam.
Janayati   Kumuda-bhraanti  vruddha-bako baala-matsyaanaam.

Naaleneva = naalen + iva.    Naalena = a hollow stock (stem)
of a lotus flower.   Iva = like a   Paadenaikena = paadena +
ekena.    Paadena = leg.    Ekena = one only.  Kunchitagreevam=
curved neck,   Janayati = creates.   Kumuda = a lotus flower.
Bhraaanti = false impression of . Vruddha = an aged   Bako =
a Crane bird.   Baala  matsyaanaam = small and young fish.

i.e.   By silently standing in water one one leg only with a curved
neck, a crane bird creates a false impression in the minds of small
fish that it is the stem of a lotus flower (and ultimately are caught
and devoured by the crane) .

( Whenever a person with a view to cheating other persons puts
an attire of a virtuous person, such a person is alluded to a crane .
So, this 'anyokti' is a warning against such a person.)





Saturday, 24 June 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.

          आज   'मयूरान्योक्ति ' का उदाहारण प्रस्तुत हैं  जिस में एक मयूर
(मोर पक्षी) को एक उपमान के रूप में प्रस्तुत किया गया है :-
           यत्नादपि कः पश्यति शिखिनामाहार निर्गमस्थानम्  |
           यदि जलदनिनदमुदितास्त   एव  मूढा  न  नृत्येयुः    || - शार्ङ्गधर

भावार्थ -     अनेक प्रयत्न करने पर भी कोई एक मयूर (मोर) पक्षी के मल
निष्काषन स्थान (गुदा द्वार) को  तब तक नहीं देख सकता है जब तक कि
आकाश में बादलों के गरजने से प्रमुदित हो कर वह् मूर्ख पक्षी स्वयं नृत्य नहीं
करने लगता है |

(मोरों का यह स्वभाव है कि आकाश में जब मेघ गरजने लगते है और तेज
वृष्टि होने लगती  है तो वे प्रसन्न हो कर अपने पंख फैला कर नृत्य करने लगते
हैं और इस प्रक्रिया में उनके गुप्तांग भी दिखाई देते है जो साधारण स्थिति में
छुपे रहते है |   कहने का तात्पर्य यह है कि जब् भी कोई व्यक्ति अत्यन्त आनन्द
की स्थिति में होता है (नशा करने के या किसी अन्य कारण से) उस समय  वह
अपने ऐसे गुप्त भेद भी अनचाहे में प्रकट कर देता है जो उसे गुप्त रखने चाहिये | )

    Here is another example of an 'Anyooraokti'  termed as 'Mayoraanyokati ' ,
because  a 'Mayoora'  (peacock) has been used as an analogy.

            Yatnaadapi kah pashyanti shikhinaam-aahaara nirgama-sthaanam.
             Yadi jalada-ninada-muditaasta eva moodaa  na  nrutyeyuh.

Yaatnaadapi = even after making special efforts.    Kah = who   Pashyanti =
are able to see.   Shikhinaam = peacocks.     Aahaara = food.    Nirgam =
exit.    Sthaanam = place.    Aahar nirgam sthaan =  anus (a private part of
the body from where digested food exits from the body as feces,)   Yadi =if.
Jalada = a cloud.   Ninaad = rumbling noise made by the clouds.  Muditasta=
delighted by.   Eva = really.   Moodhaa =  stupid, and ignorant     Na = not.  
Nrutyeyuh = would have danced.

i.e.      Even after making special efforts  one can not see the anus (private part)
of a peacock until such time when the stupid and ignorant bird starts dancing with
joy on hearing the rumbling sound of rain clouds in the sky.

( It is the  inherent nature of peacocks that whenever there is a cloud burst and  a
heavy downpour of rain, they start dancing with joy by spreading their colorful
wings and in that process their private parts are visible , which generally always
remain concealed. What the author wants to emphasize here is that whenever a
person is in a very happy state of mind (due to intoxication or any other reason)
he unknowingly discloses his secrets, which he would otherwise never do .)











       



 

         

         

         

Friday, 23 June 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita

        आज  अन्योक्ति  का एक और उदाहरण  'सिंहान्योक्ति' प्रस्तुत है जिस में
सिंह  को तेजस्विता  के  एक उपमान   के रूप में प्रस्तुत  किया गया है :-
         सिंहः शिशुरपि निपतति मदमलिनकपोलभित्तिषु  गजेषु  |
         प्रकृतिरियं  सत्ववतां  न  खलु वयस्तेजसो  हेतुः                  ||    -भर्तृहरि

भावार्थ -    एक  सिंह शावक भी  बिना किसी भय और झिझक के  एक मद मस्त
हाथी के दीवार के समान बडे और गन्दे कपोलों पर कूद कर आक्रमण कर देता है
क्यों  कि  यह शक्तिशाली और पराक्रमी जीवों का  स्वभाव होता  है  न कि उनकी
आयु और शक्ति पर निर्भर करता है |

(एक  सिंह शावक को उपमान  बना कर इस अन्योक्ति द्वारा यह प्रतिपादित किया
गया है कि वीरता और पराक्रम स्वभावगत होते हैं और उन का किसी व्यक्ति की
आयु और शक्ति से कोई सम्बन्ध नहीं होता है |)

           Simhah sishurapi nipatati mada-malina-kapol-bhittishu gajeshu.
           Prakruiriyam satvavataam na khalu vayastejaso  hetuh.

Simhah = a lion.    Shishurapi = shishuh+ api.    Shishuh = a cub (child)
Api = even.   Nipatati = attacks.   Mada = rut (periodical sexual excitement
of animals)   Malin = dirtied.    Kapol = cheek.  Bhittishu = like a wall.  
Prukritiriyam = prukriti + iyam.      Prukriti = nature, temperament.
Iyam = this.  Satvavataam = powerful  and courageous persons.  Na  khalu
 = not at all,     Vayastejaso =Vayah + tejaso.    Vayah = age.     Tejaso =
power.   Hetuh =  reason.

i.e.   Even a cub of a Lion fearlessly  and unhesitatingly attacks the wall like
dirtied cheeks of a sexually aroused  Elephant .  This is due to the inherent
nature of powerful and courageous living beings and not at all due to  their
age and strength.

(In this Subhashita the bravery and courage of a lion's cub has been used as an
analogy to emphasize the fact that bravery and power are inherent in certain
species and not in their age and strength.)




Thursday, 22 June 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.

     आज  'मेघान्योक्ति'  का एक उदाहरण प्रस्तुत है जिस में दिनांक १९ जून २०१७ को
प्रस्तुत  'चातकान्योक्ति' का भी संदर्भ लें :-

             मुञ्चमुञ्च  सलिलं दयानिधे नास्तिनास्ति  समयो विलम्बने  |
             अद्य  चातककुले  मृते  पुनर्वारि  वारिधर  किं  करिष्यसि        || - (स्फुट )

भावार्थ -   हे दयानिधान मेघ (बादल) !  अपना जल तुरन्त बरसाओ क्योंकि
यह  समय  विलम्ब (देरी) करने का नहीं है |  आज यदि चातक पक्षियों का
समुदाय प्यास के कारण मृत हो जायेगा तो बाद में तुम्हारे द्वारा जल बरसाने
से क्या लाभ होगा ?/

(जैसा 'चातकान्योक्ति ' में कहा गया था कि चातक पक्षी एक विशेष नक्षत्र में
हुई वृष्टि का ही जल पीता है अन्यथा प्यासा ही रह जाता है , इस सुभाषित में उसी
भावना का अवलम्बन ले कर  मेघ से वृष्टि करने का अनुरोध किया गया है |  कहा
भी गया है कि - 'का वर्षा जब कृषी सुखानी |समय चुके पुनि का पछतानी  ' - अर्थात
यदि समय पर वर्षा न हो और खेती सूख जाय तो बाद में ऐसी वर्षा से क्या लाभ ?
इसी भावना को इस 'मेघान्योक्ति 'के माध्यम  से व्यक्त किया गया है | )

Muncha-muncha  salilam  dayanidhe  naasti-naasti samayo vilambane.
Adya chaatak-kule  mrute punarvaari  vaaridhar kim karishyasi.

Muncha = release, let go.   Salilam = water.   Dayanidhe = a treasury of
mercy, a very kind person , treasury of mercy.    Naasti = it is not.
Samayo = time, occasion.   Vilambane =   delay.   Adya =  today.
Chaatak-kule = the community of 'chaatak' birds.    Mrute = dead.
Punarvaaari =punah + vaari.    Punah = again .    Vaari = water.
Vaaridhara = a cloud.     Kim = what ?          Karishyasi = will do .

i.e.    O very kind cloud  !  bestow us with your rain immediately, as
this is not the time for delaying it.   If today the community of 'Chaatak'
birds die for want of  water, of what use will be the rain poured by you
afterwards.

(On the 19th June 2012 a Subhashita classified as 'Chaatakaanyokti' was
posted by me.  This Subhashita is in furtherance of the same idea and says
that of what use will be the rain afterwards if the 'chatakas' die due to
thirst  ?    When applied to agriculture, the truth behind this Subhashita is
more apparent , because untimely rain is of no use.) 

Wednesday, 21 June 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


            आज 'काकान्योक्ति' का एक उदाहरण प्रस्तुत है :-
             
            तुल्यवर्णच्छदः  कृष्णः कोकिलैः सह संगतः   |
            केन  विज्ञायते  काकः  स्वयं  यदि  न  भाषते  || - शार्ङ्गधर

भावार्थ -   एक कव्वे और कोयल के शरीर की बनावट और   पंखों का
रंग एक समान  काला ही होता है और वे एक  साथ ही  रहते हैं  |  यदि
कव्वा  स्वयं नहीं बोले तो  कोयल  और कव्वे में भेद कौन कर सकता  है  ?

(कव्वा अपनी कर्कश ध्वनि  और कोयल अपनी मधुर ध्वनि के लिये
प्रसिद्ध हैं |   बाहरी रूप रंग दोनों का एक समान होने के कारण  उनमें
भेद् करना कठिन होता है  |  परन्तु कव्वे की कर्कश ध्वनि और कोयल  
की मधुर ध्वनि से  उन्हें पहचानना सरल हो जाता है |  यदि किसी मूर्ख
व्यक्ति को एक  विद्वान व्यक्ति के परिधानों से अलंकृत कर दिया जाय
तो लोग उसे तभी तक विद्वान समझेंगे जब् तक वह कुछ बोलेगा नहीं |
जैसा कि एक अन्य सुभाषित में कहा है कि -'तावच्च शोभते मूर्खः यावत्
किञ्चिन्न भाषते ' |  अर्थात  एक मूर्ख  व्यक्ति तभी तक सुशोभित होता
है जब तक वह कुछ बोलता नहीं है | तात्पर्य यह है बाहरी चमक धमक की
तुलना में गुणों की ही मान्यता अन्ततः होती है |)

              Tulya-varnacchadah krushnah kokilaih saha smgatah.
               Kena vigyaayate kaakh svayam  yadi  na  bhaashate,

Tulya = similar,  equal to.      Varnacchada = colour of feathers and
outward appearance.    Krushnah = black.    Kokilaih = cuckoo bird.
Saha = with.     Sangatah = association, friendship    Kena = how ?
in what way ?     Vigyaayate = distinguish.     Kaakah =  a crow.
Svayam = himself.    Yadhi = if.    Na = not.    Bhaashate = speaks.

i.e.    The outward appearance of a Crow and a Cuckoo bird and the
colour of their feathers is the same and they also live together.  So ,
who can  distinguish between them unless the crow himself does
not speak ?

(A crow is known for its very harsh voice and the cuckoo bird for
its very sweet voice. They can be distinguished only by their voice.
If a foolish person is presented in the attire of a scholar, people may
treat him as a scholar. But as soon as he utters some thing foolishly
his true worth is exposed.   The underlying idea is that in contrast to
outwardly appearance the inherent virtues in a person are important.)

Tuesday, 20 June 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.

      कल हमने  'चातकान्योक्ति ' का एक उदाहरण प्रस्तुत किया था |  आज एक
और उदाहरण 'शुकान्योक्ति' प्रस्तुत  है , जिस में एक तोते  को  माध्यम के रूप  में
प्रयुक्त किया गया है :-

            शुक तव पठनं व्यसनं  न गुणः किं तु स गुणाSSभासः  |
            समजनि  येनोSSमरणं  ते  पञ्जरे  वासः  ||      -   शार्ङ्गधर

भावार्थ -  हे तोते !  तुम्हारी  मानव की भाषा को बोलने की क्षमता वास्तव में तुम्हारा
एक दोष है न कि एक गुण है परन्तु  एक गुण का आभास  देता है | इस के फलस्वरूप
तुझे स्वच्छन्द हो कर  वनों में निवास करने के स्थान पर   मृत्यु पर्यन्त एक पिंजरे में
रहना पडता है |
(जीवन में कभी कभी ऐसी परिस्थितियां भी उत्पन्न हो जाती हैं  कि किसी व्यक्ति के
गुण ही उसके लिये मुसीबत बन जाते हैं |  इस वास्तविकता को यह सुभाषित एक
अन्योक्ति के रूप में बडी सुन्दरता से व्यक्त   करता है | )

          Shauka tava  pathanam  vyasanam na gunah kintu sa gunaabhaasah.
           Samajani yeshaamaranam sharanam tey panjare vaasah.

Shuka = a parrot.    Tava = your     Pathanam  = reading,   Vyasanam =
defect, addiction.   Na = not.   Gunah = virtue.   Kim = but.   Sa = it
Gunaabhaasah = gives  the impression of a virtue.    Samajani = forests.
Yeshaamaranam = until the time of death.   Sharanam =  protection.
Tey = they.   Panjare = a cage.     Vasah =  dwelling, abode.

i.e.     O parrot !   your special ability to speak the language of humans
is  in fact a big defect and not  your virtue but just gives an impression
of a virtue. As a result of this instead of roaming freely in forests you
are doomed to live under the protection of a cage until your death.

(Yesterday an 'anyoakti'  based on a Chaatak bird was posted. Today,
another 'anyokti' based on a Parrot has been posted . In life there are at
times such situations wherein  a virtue puts a person in a very tricky
and disadvantageous situation, This fact has been indirectly highlighted
by the above Subhashita. )

     
 
        

Monday, 19 June 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita..

संस्कृत साहित्य में एक विधा 'अन्योक्ति ' कहलाती है जिस के अन्तर्गत किसी
तथ्य को एक अन्य माध्यम से व्यक्त किया जाता है |   अंग्रेजी भाषा मे इसे
'allegory' कहते हैं |   मेघाSन्योक्ति , चातकान्योक्ति , शुकान्योक्ति , काकान्योक्ति
आदि अनेक प्रकार की अन्योक्तियां हैं|  उदाहरण स्वरूप भतृहरि के नीतिशतक की
यह अन्योक्ति जो चातकान्योक्ति  का सुन्दर उदाहरण है :-

          रे रे चातक सावधानमनसा मित्रं  क्षणं  श्रूयता -
          म्म्भोदा  बहवो वसन्ति गगने सर्वेSपि  नैतादृशा |
          केचिद्वृष्टिभिरार्द्रयन्ति   धरणीं गर्जन्ति केचिद्वृथा
          यंयं  पश्यसि तस्यतस्य पुरतो  मा ब्रूहि दीनं वचः ||


भावार्थ -   ओ मेरे मित्र चातक पक्षी !  मेरी यह बात ध्यानपूर्वक सुनो  | इस आकाश में
अनेक प्रकार के मेघ (बादल) विचरण करते हैं पर वे एक ही स्वभाव के नहीं होते हैं
उनमें से  कुछ ही इस पृथ्वी को अपने अमूल्य जल से परिपूर्ण करते हैं  जब् कि अन्य
केवल व्यर्थ ही गर्जते हुए  इधर उधर विचरण करते हैं |  इस लिये तुम जिस  किसी भी मेघ
को देखते हो उस से अपनी प्यास बुझाने के लिये याचना  मत करो |

( ऐसी मान्यता है कि चातक पक्षी स्वाति नक्षत्र में हुई वृष्टि का ही जल पीता है और अन्यथा
प्यासा ही रह जाता है | इस श्लोक मे  सहायता के आकांक्षी व्यक्ति की तुलना एक चातक पक्षी
से की गयी है और जिन से सहायता अपेक्षित है उनकी तुलना बादलों से की गई है |  कुछ व्यक्ति
मात्र आश्वासन ही देते रहते हैं और बहुत थोडे व्यक्ति ही होते हैं जो वास्तव में सहायता करते है |
अतः  हर किसी से याचना करने से कोई लाभ नहीं होता है |  कहावत भी है कि - 'जो गरजते हैं 'वे
बरसते नहीं हैं  | )

Re re chaatak saavadhaana-manasaa mitram kshanam shrooytaa-
mambhda   bahavo vasanti  gagane sarvopi naitaadrushaa.
kechid-vrushtibhi-raardrayanti dharanee garjanti kechit-vruthaa.
yam yam pashyasi tasya tasya purato  maa broohi deenam vachh.

Re = Oh !   Chaataka = an Indian bird.   Saavadhaana = attentively.   Manasaa = mind.
Mitram = friend.   Kshanam = for a moment.   Shrooyataam =  listen.    Ambodaa=
clouds.    Bahavo = many    Vasanti = live, roam.   Gagane = in the Sky.   Sarvopi=
Sarvo = all.   Api = even.   Naaitaadrushaa =  Na + etaadrushaa.    Na =  not.
Etaadrusha = similar to others.     Kechit = some among them.  Vrushtibhih +
by causing rain.  Aardrayanti = moisten, drench.   Dharanee = the Earth.   Garjanti +
roar, make rumbling sound.   Vruthaa = in vain, unnecessarily.   Yam = whosoever.
Pashyasi = sees.   Tasya = his .   Purfato = in front of .   Maa = do not.  Bhrrohi =
speak, say.   Deenam = sad.    Vachah = words, speech.


i.e.    O my friend  Chatak bird !  listen  carefully what I say to you.  Many types of
clouds roam in the sky but their characteristics are different.  Only a few among them
drench the Earth with the precious water they carry, whereas the remaining ones roam
here and there and simply make rumbling sound.  Therefore, you should not beg for
water from every cloud you see on the sky.

(In Sanskrit literature there is a style of writing called 'Anyokti' , which in English;
language is called  'allegory'  i.e. description of one thing under image of another.
The above shloka is a fine example of this genre.   There is a folk lore that the Chatak
bird quenches its thirst only from the rain falling on earth during a particular  lunar
position in the sky.  Here the bird has been alluded for a person seeking assistance  and
the persons who can help him has been alluded for the clouds.  Only very few people are
of helping nature and the rest simply give assurances and never give any help .)



   
     



Sunday, 18 June 2017

आज का सुभाषित /Today's Subhashita


          'मनुस्मृति'   के पिछले कुछ श्लोकों में कर (टैक्स) लगाने के सिद्धान्तों का
उल्लेख था | निम्नलिखित श्लोक में विभिन्न वस्तुओं पर कर की मात्रा निर्धारित
करने का विवरण दिया गया है | आजकल जिस 'वस्तु एवं सेवा कर'  की चर्चा जोर
शोर से हो रही है वही निम्नलिखित श्लोक तथा अन्य श्लोकों में वर्णित है , यद्यपि
इसे एक अभूतपूर्व कार्य के रूप में प्रचारित किया जा रहा है

          पञ्चाशद्भाग्  आदेयो  राज्ञा  पशु  हिरण्ययोः |
           धान्यानामष्टमो भागः षष्टो द्वादश एव वा  ||    7/130

भावार्थ  -   राजा को  चाहिये कि वह पशुओं  (गाय बैल आदि) , स्वर्ण (सोना आदि ) के लाभ
पर पचासवां हिस्सा (2 प्रतिशत ) कर व्यापारियों से वसूल करे , और धान्य आदि  (कृषि
उपज ) पदार्थों पर  छठवां , आठवां या बारहवां  हिस्सा (उनकी अच्छी या बुरी फसल को
देख कर ) कर के रूप में लगावे |

Panchashadbhaaga aadeyo Raagyaa pashu hiranyayoh .
Dhaanaanaamashtamo bhaagah shashto dvaadasha eva vaa.

Panchaashadbhaaaga = panchaashat + bhaag.   Panchaashat = 50th .   Bhaag =
division, unit.     Adeyo = to be received.    Raagyaa = by the King.    Pashu =
animals (cows, bullocks etc)     Hiranyayoh = Gold and other precious metals.
 Dhaanyaanaamashtamo = dhaanyaanaam + ashtamo.    Dhaanyaanaam =
various agricultural crops.    Ashtamo = 1/8th     Shashto = 1/6th.   Dvaadasha=
1/12    Eva =  already.    Vaa = or.

i.e.    The king should impose a tax of 2% on the income of traders from the
trade of animals (cows, bullocks etc) , gold and other precious metals.  He should
also impose a tax on the trade of  food grains and other agricultural products
at the rates of  1/8th, 1/6th or 1/12th of income ( depending upon the excellent, good
or bad produce).

(We have  in previous posts discussed various cannons of Taxation enshrined in
'Manusmriti'.  The above shloka also deals with minimum and maximum rates of
taxation which is now being touted as a revolutionary concept of  taxation termed
as 'Goods and Service Tax, )

         
           

Thursday, 8 June 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.

यथाल्पाल्पमदन्त्याद्यं  वार्योकोवत्सषड्पदाः  |
तथाल्पाल्पो  ग्रहीतव्यो  राष्ट्राद्राज्ञाब्दिकः करः || - मनुस्मृति ७/१२९

भावार्थ -    जिस प्रकार एक छोटी  सी जोंक , बछडा तथा मधुमक्खी अपने
भोजन (क्रमशः जीवित प्राणियों का रक्त, दूध् और फूलों के  पराग ओर रस
का थोडा थोडा अंश ही  ग्रहण करते हैं उसी प्रकार एक राजा (शासक)  भी
अपनी प्रजा से  थोडा थोडा ही  कर प्राप्त  करे , अर्थात प्रजा की समस्त
कमाई कर के रूप में वसूल न करे क्यों कि जब् मूल धन ही नहीं
रह जायेगा तो फिर व्याज कहां से आयेगा  |
(स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद सन १९९१ तक भारत में विभिन्न करों के रूप
में जनता की 97% आय करों के  रूप में ली जाती थी जिस के फलस्वरूप
कर-चोरी  की प्रवृत्ति को बढावा मिला और एक समानान्तर अर्थव्यवस्था
का जन्म हुआ जिस के दुष्परिणाम अभी तक भोगने  पड रहे हैं | अतः इस
श्लोक में व्यक्त सिद्धान्त सार्वभौमिक हैं | )

Yatha-alpaalpa-madantyaadyam vaaryoko-vatsa-shadpadaah.
Tatha-alpaalyo  graheetavyo raashtraadraajaabdikah karah .

Yathaa = for instance.    Alpa = small.     Alpalpopam = very little.
Adanti = a leech   Adyam = in the beginning. Vaaryoko = leech.
Vatsa = calf of a cow,    Shatpadaah = bees.  Tathaa = in the same manner.
Graheetavup = to be taken up.  Raashtraadraajaabdikah = Raashtraat
+  raagya + abdikah.   Raashtrat = kingdom's.    Raagyaa, = King  
Aabdikah = yearly   Karah = tax, toll.  

i,e,     For instance  a leech and a honey bee, a calf of a cow, all  suck up
their food in very small quantities (from the blood of humans, milk from
cow and nectar of flowers respectively) in the same manner the King (or
a Ruler) should obtain tax from the citizens  in very small quantities.
Because if he takes away all their earnings as taxes and there is no capital
left with them from where will they earn any interest ?

(In India after getting independence from British Rule, the tax regime was
so harsh that its cumulative effect was 97% of the total income of a person.
As a result there was widespread evasion of taxes and a parallel economy
termed as Black Money grew up and had devastating effect on the Country's
economy.  After 1991 some reforms were made in the Tax structure but still
tax evasion is rampant. as the advice enshrined in the above shloka was
willfully ignored by our rulers.)

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Wednesday, 7 June 2017

आज का सुभाषित /Today's Subhashita.

     "मनुस्मृति" में राजा द्वारा किस प्रकार जनता से आयकर तथा
अन्य प्रकार के कर वसूल करने चाहिये और कितनी मात्रा में करना
चाहिये इस का भी विशद वर्णन है | उदाहरणार्थ निम्नलिखित श्लोक
दृष्टव्य है :-
      नोच्छिन्यादात्मनो मूलं परेषां  चातितृष्णया  |
      उच्छिन्द्यादात्मनो मूलमात्मानं  तांश्च पीडयन् || -मनुस्मृति ७/१३९

भावार्थ -    राजा को उचित है कि वह लालची हो कर  अत्यधिक कर ले
कर प्रजा को पीडित न करे  तथा बिल्कुल ही कर न ले कर अपना भी विनाश
नही करे  | क्योंकि अपने  मूल (आधार) के नाश से राजा अपनी तथा प्रजा की
भी हानि कर देता है |

Nocchinyaddyadaatmano moolam pareshaam chaatitrushnayaaan = .
Ucchindyaadaatmano  moolamaatmaanam taamshcha peedayan.

Na = not.    Ucchindya = dewstrou.    Aatmano = self.    Moolam =
base, source.    Pareshqaam = others (the citizens)    Cha = and
Ati= too much.    Trushnayaa = greed.   Peedayan = oppression

i.e.    It is proper for the King not to oppress the citizens by imposing
excessive tax on them driven by his greed , He should also not invite
trouble for himself , by not imposing any tax, because by doing so he
not only destroys the very foundation of his kingdom but also causes
harm to the citizens,

(The author of the "Manusmriti" has discussed in great detail  various
principles of taxation and even the  quantum  of tax to be imposed.
The above shloka gives just a glimpse of  his wisdom.)

Tuesday, 6 June 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.

      पिछले कुछ दिनों से मनुस्मृति'  में  व्यक्त  एक राजा के लिये आवश्यक
गुणों तथा उसके कर्तव्यों  की विवेचना संबन्धित  कुछ श्लोक उधृत किये गये थे | 
उसी क्रम में निम्नलिखित श्लोक आज की परिस्थिति में भी उतना ही महत्त्व 
पूर्ण है जैसा वह हजारों साल पहले था , यद्दपि आजकल 'मनुस्मृति' को हेय दृष्टि 
देखने का कुप्रचार ही अधिक है |

        तेषामर्थे नियुञ्जीत शूरान्दक्षान्कुलोद्गतान्  |
        शुचीनाकरकर्मान्ते   भीरुनन्तर्निवेशने          || - मनुस्मृति ७/६२
भावार्थ -    एक राजा को आर्थिक लाभ से संबन्धित विभागों (मूल्यवान खनिजो की 
खानों तथा आयात -निर्यात आदि ) में  केवल  उन्हीं मन्त्रियों की नियुक्ति करनी चाहिये 
जो वीर , चतुर,उत्तम वंश में उत्पन्न हुए, सच्चरित्र  तथा व्यवहारकुशल् हों |  तथा जो
मन्त्री डरपोक हों उन्हें किसी साधारण कार्य के लिये  नियुक्त  करें  |

(इस श्लोक को विगत वर्षों में हुए कोयला और दूर संचार  मन्र्त्रालयों में हुए भृष्टाचार  
के परिपेक्ष्य में  यदि देखा जाय तो इसकी  सनातन सत्यता प्रकट हो जाती है | आज कल 
ऐसे विभाग 'मलाईदार' कहलाते है और 'भृष्ट' व्यक्तियों द्वारा ही शोभित होते हैं |)

Teshaamarthe niyunjeeta shooraandakshaankulodgataan.
Shucheenaakarakarmaante bheerunantarrniveshane.

Teshaam = to thiose.    Arthe = departments relating to commerce and industry)
Niyunjeeta =  should be appointed.    Shooraan = brave.  Dakshaan = experts.
kulodgataan = belonging to illustrious families.    Shucheenaa =  honest, unsullied
persons.  Karakarmaant = expert in management.   Bheerum =  timid persons .
Antarniveshane = appointed  elsewhere.

(For the last two weeks I have been posting 'shlokas' from 'Manusmriti' dealing
with the qualities that a Ruler must have and how he should administer his kingdom.
Although it has become fashionable to criticize this treatise, the wisdom dispensed
therein is still very much valid as can be seen by the  recent scandals in the Ministries
of coal and telecommunications and other departments,termed as 'lucrative postings'.

i.e.   The King (or the Ruler) should appoint Ministers in the Departments dealing
with sources of income  like mines , export -import etc) only such persons who
are brave,  born in an illustrious family, honest and well versed in their dealing with
others, and those who are timid may be posted  in other less important Departments.