Thursday, 30 November 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


यद्ददासि विशिष्टेभ्यो  यच्चाSश्नासि  दिनेदिने  |
तत्ते  वित्तमहं  मन्ये शेषं  कस्याSपि  रक्षसि     ||
                                - सुभाषित रत्नाकर (स्फुट )

भावार्थ -     मुझे उतने ही धन की आवश्यकता होती है जिस से कि
मैं विशिष्ट व्यक्तियों को (दीन दुखियों को तथा समाज के हितार्थ )
 दान कर सकूं तथा अपनी प्रतिदिन की आवश्यकताओं की पूर्ति कर
कर सकूं | अतः मेरी यह मान्यता है कि मैं व्यर्थ में शेष बचे हुए धन
का रक्षक मात्र क्यों बना रहूं ?

(प्रस्तुत सुभाषित 'उदार प्रसंशा'  शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है |  इस
सुभाषित के माध्यम  से यह उपदेश दिया गया है कि अपनी आवश्यकता
से अधिक धन होने पर उसे सत्पात्रों को दान दे कर तथा समाज सेवा के
कार्यों में व्यय कर देना चाहिये |)

Yaddadaasi vishishtebhyo  yacchashnaasi dinedine.
Tattey vittamaham  manye shesham kasyaapi rakshasi.

Yaddadaasi =  yat + dadaasi.    Yat = that.   Dadaasi =
gives.    Vishishtebhyo = particular, specific persons.
Yacchaashnaasi =  yat + cha +ashnaasi.    Cha = and
Ashnaasi = enjoys.   Dinedine = every day.    Tatte=
tat + tey   Tat = that.   Tey = that    Vittamaham =
vittam +aham.    Vittam = wealth, money.   Aham =
I .   Manye = I think.    Shesham = the remaining.
Kasyaapi = kasya+ api.    Kasya = whose.   Api= also,
even.    Rakshasi = guards, saves.

i.e.    I need only that much of wealth which is sufficient
to meet my day to day requirements and my specific needs
(giving donations to the needy and philanthropic work).
I, therefore, think as to why I should simply be a guard of
my remain wealth ?

(The above Subhashita is in praise of generous persons. The
idea behind this Subhashita is that people should not hoard
their surplus wealth and donate it for  philanthropic work.)



Wednesday, 29 November 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


एकचक्रो  रथो  यन्ता  विकलो  विषमा  हयाः |
आक्रमत्येव तेजस्वी तथाप्यर्को  नभस्थलम्  ||
                      - सुभाषित रत्नाकर (कल्पतरु )

भावार्थ -   सूर्य के  रथ  में यद्दपि एक ही पहिया है , सारथी
अरुण भी विकलांग है , और रथ को खींचने वाले घोडों की 
संख्या भी विषम (सात) है , फिर भी सूर्य आकाश में सतत
भ्रमण कर अपने तेज से समस्त विश्व को जीवनदायी प्रकाश
प्रदान करता है |
(प्रस्तुत सुभाषित 'तेजस्विप्रशंसा '  शीर्षक  से संकलित है |
पुराणों में वर्णित उपर्युक्त मिथक को एक रूपक  के रूप में
प्रयुक्त कर यह प्रतिपादित किया गया है कि तेजस्वी व्यक्ति
अनेक विघ्न बाधाओं के होते हुए भी अपने कर्तव्य पर अडिग
रहते हैं |)

Eka-chakro ratho yantaa  vikalo  vishamaa  hayaah .
aakramatyeva tejasvee tathaapyarko  nabhasthalam.

Eka = one.   Chakro = a wheel.   Ratho = a chariot.
Yantaa = driver of the chariot.   Vikalo =  imperfect,
crippled.    Vishamaa = odd in numbers.    Hayaah =
horses.    Aakramatyeva = aakramati+aiva.
Akramati = approaches.   Aiva = really.   Tejasvee =
powerful, vibrant.   Tathaapyarko = tathaapi + arko.
Tathaapi=even then.   Arko=the Sun.   Nabhasthalam=
the sky, firmament.

i.e.          Although the Sun has only one wheel on his
chariot, the driver of the chariot is also  crippled and the
horses pulling the chariot are also odd in number (7), still
the  powerful and brilliant Sun constantly moves around
the sky to provide life sustaining energy to the World.

(This Subhashita is in praise of powerful and brilliant
persons, who shape the lives of  citizens by their deeds,
using the movement of the Sun in the firmament as a
Simile. Such persons are not deterred by the problems
and difficulties faced by them in doing their duty. )

इस सुभाषित पर श्री गोविन्द प्रसाद बहुगुणा की विद्वत्ता पूर्ण
टिप्पणी एक अन्य सुभाषित द्वारा इस प्रकार है :-
Govind Prasad Bahuguna रथस्यैकं चक्रं भुजगयमिताः सप्ततुरगाः 
निरालंबो मार्गश्चरणविकलो सारथिरपि। रविर्यात्यंतं प्रतिदिनमपारस्य नभसः क्रियासिद्धिः सत्त्वे भवति महतां नोपकरणे॥-प्रति दिन सूरज अनंत आकाश में सिर्फ एक पहिये के सहारे अपने रथ को लेकर इधर से उधर यात्रा करता है, उसके 
रथ पर सात घोड़े बिना किसी रस्सी के जुते हैं , उसके रथ का सारथी भी विकलांग है और मार्ग ऐसा है जिसका कोई आधार ही नहीं है -आकाश मार्ग पर यात्रा करता है I ठीक ही कहा है कि महापुरुषों की पुरुषार्थी गतिविधियां केवल साधनों पर आधारित नहीं होती, साधनों की बात तो साधारण लोग ही करते हैं |


Tuesday, 28 November 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


लाङ्गूलचालनमधश्चरणाSवपातं
भूमौ  निपत्य  वदनोदरदर्शनं  च   |
श्वा  पिण्डदस्य  कुरुते गजपुङ्गवस्तु
धीरं विलोकयति चाटुशतैश्च  भुङ्क्ते  || - सुभाषित रत्नाकर
                                                                 (भर्तृहरि)

भावार्थ -  जिस प्रकार एक कुत्ते को अपना पेट  भरने के लिये
अपने स्वामीं के सामने अपने पैरों को झुका कर ,  पूंछ को बार
बार हिला कर , भूमि  पर लोट पोट कर अपने शरीर और पेट को
दिखाना पडता है उसी प्रकार एक विशाल हाथी को भी  धैर्य और
आदर पूर्वक ऐसे ही  सैकडों करतब दिखाने पडते हैं |

(प्रस्तुत सुभाषित 'उदरपूरणदूषणम्' शीर्षक से संकलित है | एक कुत्ते
तथा एक हाथी के व्यवहार के माध्यम से यह व्यक्त किया गया है कि
अपने भोजन की व्यवस्था करने के लिये सभी प्राणियों को भी कभी
निम्नतम  श्रेणी के कार्यों को करने के लिये भी बाध्य होना पडता है | )

Laangoola-chaalanam-adhash-charanaavapaatam
Bhoomau nipatya vadanodar-darshanam cha.
Shvaa pindasya kurute gajapungavastu
Dheeram vilokayati chaatushatiaishcha bhunkte.

Laangoola = tail.     Chaalanam = wagging.     Adhah =
down, below.   Charanaavapatam =charana+avapaatam.
Charana = feet.   Avapaatam = falling down.   Bhoomau=
on the ground.   Nipatya = rolling .   Vadana =  body.
Udar =belly.  Darshanam=exposing, showing up.  Cha=
and.   Shvaa =a dog.   Pinddasya = the master's   Kurute =
does.  Gajapungavastu=gajapungavah+tu.   Gajapungavah =
a large elephant.   Tu = and, but.   Dheeram = gently,
patiently.      Vilokayati = sees.       Chatushataihscha =
Chaatushataih + cha.   Chatushataih =hundred entreaties.
Cha = and.    Bhunkte =  eats.

i.e.     To get some  food and satiate  his hunger , a dog has to
bow before his master ,  wag his tail , roll on the ground by
exposing his belly, and look reverentially and patiently towards
his master. In the same manner even a big elephant too has to do
hundreds of entreaties.

(This Subhashita is classified as 'Problems faced while supporting
oneself'.  Through the examples of a dog and an elephant , the
author has highlighted the fact that at times one has to perform
lowest types of work to support himself.)

Monday, 27 November 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


विश्वाSभिरामगुणगौरवगुम्फितानां
रोषोSपि  निर्मलधियां रमणीय  एव    |
लोकप्रियैः  परिमलैः परिपूरितस्य
काश्मीरजस्य कटुतापि नितान्तरम्या ||
            - सुभाषित रत्नाकर (शार्ङ्गधर)

भावार्थ -  सारे विश्व में अपने गुणों और गौरव के कारण
प्रसिद्ध महान और निर्मल हृदय व्यक्तियों का क्रोध भी  उसी
प्रकार   निर्मल और प्रिय होता है जैसा कि  काश्मीर प्रदेश में
उत्पन्न होने वाले  सुगन्धित केसर के स्वाद में कुछ कडुवापान 
होने पर भी वह अत्यन्त  लोकप्रिय है |

('महाजन प्रसंशा' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित इस सुभाषित में
सरलहृदय और महान व्यक्तियों के स्वभाव की तुलना काश्मीर में
उत्पन्न विश्वप्रसिद्ध मूल्यवान केसर से की गयी है और उनके क्रोध
की तुलना केसर की कडुवाहट से की गयी है | जिस प्रकार केसर की
कडुवाहट उसकी सुगन्ध  और अन्य गुणों के कारण ग्राह्य हो जाती
है वैसे ही महान व्यक्तियों का क्रोध भी दूसरों के हित की भावना से
से ही किया जाता है | )
 
Vishva-abhiraaama-guna-gaurava-gumphitaanaam.
Roshopi  nirmala-dhiyaam ramaneeya eva.
Lokapriyaih parimalaih paripooritasya.
kashmeerjasya katutaapi nitaant ramyaa,

Vishva = the World.      Abhiraama =pleasant, beautiful.
Guna = virtue, attribute.         Gaurava = saffron , pride.
Gumphitaanaam = strung together. tied.        Roshopi =
rosho + api.    rosho = anger.  Api = even.   Nirmal=pure,
unsullied.   Dhiyaam = mentality, mind.     Ramaneeya=
beautiful, pleasant.   Eva = really.   Lokapriyaih = liked
every where.   Parimalaih = fragrances.   Paripooritasya=
filled with.  Kashmeerajasya =grown in Kashmeera.
Katutaapi = even the bitter taste.   Nitaantya =extremely
Ramyaa = enjoyable, pleasant.

i.e.    The anger of great and virtuous persons famous in this
world is also pure and unsullied and is just like the bitterness
of the saffron grown in Kashmir famous for its fragrance and
other qualities and is extremely enjoyable and pleasant in spite
of this shortcoming.

(In this subhashita noble and virtuous persons have been
compared with Saffron, which is famous for its fragrance and
other qualities in spite of some bitterness in its taste,and is very
popular throughout the world.  As the anger of virtuous persons
is also aimed at betterment of the society it is tolerated just like
the bitterness of the saffron.)




Tuesday, 21 November 2017

आज् का सुभाषित / Today's Subhashita


केतकीकुसुमं  भृङ्गः  खण्ड्यमानोSपि सेवते  |
दोषाः किं  नाम  कुर्वन्ति  गुणाSपहृतचेतसः  || - सुभषित रत्नाकर

भावार्थ -   एक काला भंवरा  केतकी के पुष्पों की सुगन्ध से आकर्षित
हो कर अपनी सुधबुध भुला कर टुकडे -टुकडे होने तक उसी के वृक्ष पर 
मंडराता रहता है |   देखो तो !  केवल गुणों को ही देख कर  और अपने
विवेक को खो देने और अवगुणों की अवज्ञा करने का कैसा बुरा परिणाम
होता है |

( प्रस्तुत सुभाषित भी एक 'अन्योक्ति है |केतकी के वृक्ष में सुगन्धित पुष्पों
के अतिरिक्त कांटे भी बहुत होते हैं | केवल सुगन्ध से आकर्षित हो कर और
कांटों की अवज्ञा करने के कारण  भंवरा उनमें फंस कर खण्ड- खण्ड हो जाता है |
लाक्षणिक रूप से इस सुभाषित का तात्पर्य यह है कि केवल वाह्य आकर्षण से
प्रभावित हो कर और दोषों की अवज्ञा कर किसी से संबन्ध बनाने का परिणाम
बहुत बुरा होता है | अतः सोच समझ कर ही किसी से संबन्ध बनाना चाहिये |)

Ketakee-kusumam bhrungah khandyamaanopi  sevate.
Doshaah kim naama kurvanti gunaaapahrutachetasah.

Ketakee = name of a flower having very powerful fragrance. 
Kusumam = a flower.    Bhrungah = a large black bee.
Khandyamaanopi = khandyamaano + api.    Api = even.
Khandyamaano =  broken into pieces.   Sevate = serves, stays
near.   Doshaah = shortcomings, defects.   Kim =  what ?
Naam =what.     kurvanti = do.   Gunaapahrutatejasaah =
Gunaa + aphruta + chetasah.    Gunaa virtues.   Apahruta=
taken away.    Chetasah = mind.

i.e.     Attracted by the powerful fragrance of Ketakee flowers,
and losing its discretion a large black bee hovers over the flowers
util such time it gets reduced to pieces . See, what are the fatal
consequences of having a relationship by being attracted only by
the virtues and  ignoring the shortcomings .

(This Subhashita is also an 'allegory' . The Ketakee tree is also
full of a very large number of thorns, which, if ignored by the bee
results in its destruction.   So, the underlying idea behind  this
Subhashita is that one should  not enter into a relationship by simply
being attracted by a quality and ignoring  other shortcomings.)

Monday, 20 November 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


भूर्जः  परोपकृतये  निजकवचविकर्तनं  सहते |
परबन्धनाय  तु  शणः  प्रेक्षध्वमिहाSन्तरं  कीदृक्  ||
                            - सुभाषित रत्नाकर (शार्ङ्गधर )

भावार्थ -   भूर्ज (भोज) का वृक्ष परोपकार के लिये अपनी छाल के
उतारने का कष्ट भी सहन करता है | परन्तु सन (जूट) का पौधा
लोगों को बांध कर बन्दी बनाने के लिये अपनी छाल उतारवा देता
है | देखो तो !  इन दोनों में कितना अन्तर है  ?

(प्रस्तुत सुभाषित एंक  'अन्योक्ति' है  जो कि  'षणान्योक्ति ' के
अन्तर्गत वर्गीकृत है |  लाक्षणिक रूप से इसका तात्पर्य यह है कि
सज्जन और महान व्यक्ति परोपकार के लिये बडे से बडा त्याग
करने में संकोच नहीं करते हैं , परन्तु दुष्ट व्यक्ति दूसरों को हानि
पहुंचाने के लिये ही ऐसा करते हैं |    प्राचीन काल में भोजपत्र का
उपयोग पुस्तक आदि लिखने मे वर्तमान समय के कागज के स्थान
पर प्रयुक्त होता था | )

Bhoorjah paropkrutaye  nija-kavacha-vikartanam sahate.
Para- bandhanaaya tu shanah preksadhvamihaantaram keedruk.

Bhoorjah = A Birch tree.( in olden times, when paper had not
been invented, its bark was used for writing books on it.)
Paropakrutaye = as a benevolent deed, assisting others.  Nija =
one's own.    Kavacha = outer bark, armour.    Vikartanam =
cutting, peeling.   Sahate =tolerates.  Para =others.   Bandhanaaya=
for arresting or tying.   Tu = and ,but.   Shasnah =  hemp plant.
Prekshadvamihaantaram = prekshadhvam + ihaam +antaram.
Prekshadhvaam = behold.    Ihaaam = here    Antaram =difference
Keedruk = what a .

i.e.    A Birch tree allows its bark to be peeled off as a benevolent
deed , whereas a hemp (jute) plant does the same for tying up or
arresting people.   Oh !  what a difference in the approach of the
Birch tree and hemp plant ?

( The above Subhashita is also an 'Anyokti '  (allegory).  The idea
behind it is that noble persons do not hesitate to make any sacrifice
to help others, whereas mean and wicked persons are motivated to
do so to harm  others.)

Sunday, 19 November 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


आपद्गतः खलु  महाशयचक्रवर्ती
विस्तारयत्यकृत पूर्व मुदारभावम् |
कालागुरुर्दहनमध्यगतः  समन्ता-
ल्लोकोत्तरं  परिमलं प्रकटीकरोति ||अना
              -सुभाषित रत्नाकर (सभा तरंग )

भावार्थ -   उदारमना  और उच्चपदस्थ सज्जन व्यक्ति अपनी
उदारता की भावना का त्याग महान विपत्ति आने पर भी नहीं
करते है और अपने द्वारा किये जा रहे  अधूरे कार्यों  को वैसे ही
पूर्ण करते हैं  जैसा  कि अगुर अग्नि के बीच में जलने  पर भी
अपनी अत्यन्त मोहक सुगन्ध सर्वत्र फैला देता है |

Aapadgatah khalu mahaashaya-chakravartee.
Vistaarayatyakrutapoorvamudaarabhaavam.
Kaaalaagururdahanamadhyagatah-samantaa-
llokottaram parimalam prakateekaroti.

Aapadgatah = fallen into misfortune.      Khalu= truly.
Mahashaya = noble person.   Chakravartee =  holding
highest rank.   Vistaarayatyakrutapoorvamudaarabhaavam=
vistaarayati +akruta+poorvam+ udaarabhaavam.
Vistaarayati = spreads.   Akruta=not made, incomplete.
Poorvam=  earlier.   Udaarabhaavam = generosity.
kaaalaagururdahanamadhyagatah = kaala+aguruh +dahana+
madhyagatah.      Kaala= black.     Agurah = aromatic resin
embedded in  Aloe wood tree.  Dahana = burning.  Madhya-
gatah =during the course of.   Samantaat = all around.
Lokottaram = extraordinary.   Parimalam = fragrance.
Prakateekaroti =  reveals.

i.e.     Noble and righteous persons holding high position in
the society, do not abandon their generosity even while they
fall into misfortune  and complete the generous work in hand,
just like the black  'agur'  resin, which ,on being put on the fire
spreads its extraordinary sweet fragrance everywhere.

     

Saturday, 18 November 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


शिरसि  विधृतोSपि  नित्यं  यत्नादपि सेवितो बहुस्नेहैः   |
तरुणीकच  इव  नीचः कौटिल्यं  नैव  विजहाति               ||
                             -सुभाषित रत्नाकर (प्रसंग रत्नावली )

भावार्थ -   एक युवती यद्यपि नित्य  अपने सिर के केशों को बडे
 यत्न और प्रेम पूर्वक तैल लगा कर संवारती है  फिर भी उसके केश
आपस में उलझना नहीं छोडते हैं | वैसे ही नीच व्यक्ति भी उनके
साथ चाहे  कितना ही प्रेमपूर्वक व्यवहार क्यों न किया जाये  वे
अपनी  स्वभावगत कुटिलता को नहीं  छोडते हैं  |

(प्रस्तुत सुभाषित  'दुर्जन निन्दा ' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है |
एक सुन्दर उपमा के द्वारा उनके स्वभाव का वर्णन किया गया है |)

Shirasi vidhrutopi nityam yatnaadapi sevito bahusnahaih.
Taruneekacha iva neechah kautilyam naiva vijahati.

Shirasi = from the head.   Vidhrutopi = vidhruto+api,
Vidhruto = preserved.    Nityam = daily.   Yattnaadapi =
yatnaat + api.    Yatnaat = with efforts.   Api = even.
Sevito =  served, pampered.   Bahu = much.   Snehai =
(i)affection  (ii) oil.    Tarunee = a young  lady.   Kacha=
hairs of the head.    Iva = like the...   Neechah = a wicked
and mean person.     Kautilyam =  crookedness, curvature.
Naiva = no, not.    Vijahaati = give up.

i.e.   A young woman daily grooms her hair with much care
and devotion by applying hair oil to them , but still the hairs
continue to get entangled with each other.  Likewise, wicked
and mean persons also do not give up their crookedness, no
matter how nicely we may treat them.

(The above Subhashita has been classified under  the head
'condemnation of wicked persons' . Their crooked nature has
been  highlighted through a  befitting simile. )




Friday, 17 November 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


आसीत्पूर्वं विमलजलधौ मण्डनं भूपतीनां
नारीणां च प्रबलमुकुटे काञ्चनेन प्रसङ्गात्  |
तन्त्रीबद्धः कथमिदमहोकाचखण्डेन  सार्धं
भिल्लीकण्ठे मरकतमणे कामवस्थां गतोSसि ||
              - सुभाषित रत्नाकर (प्रसंग रत्नावली )

यह सुभाषित "स्थान माहात्म्य " शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है |
कवि एक मकरतमणि को लक्ष्य करते हुए कहता है कि -
ओ मकरतमणि  !   पहले तुम महान समुद्र में रहती थी और फिर
तुमने  स्वर्ण के साथ मिल कर राजाओं के और महिलाओं के  मुकुटों 
की शोभा बढाई |  अहो ! बताओ तो अब तुम्हारी यह कैसी  दुर्दशा हो
गयी है  कि अब तुम अब एक भीलनी के गले में कांच के टुकडों  की
एक माला में गुंथे हुए हो ?   (कहने का तात्पर्य यह है कि सुसंगति
से लोग सम्मानित होते हैं और  कुसंगति में  उनकी अवनति हो जाती
है |)
   
Aaseet-poorvam  vimala-jaladhau mandanam bhoopatenaam.
Naareenaam cha prabala-mukute kaaaaanchanena prasangaat.
Tantreebaddhah katha-midamaho-kaachakhandena saardham.
Bhillee-kanthe marakat-maane  kaamavasthaam  gatosi.

Aaseet = it was.   Poorvam = earlier.    Vimal =pure , clean.
Jaladhau = the Ocean.    Mandanam = as a decoration.
Bhoopateenaam = Kings.  Naareenaam = women's    Prabala=
dominating.  Mukute = tiara.   Kanchanena =gold's.   Prasangaat=
in association with.    Tantreebaddha =  threaded like a garland.
kathamidamahokaachakhandena = katham + idam+ aho+ kaacha
khandena,   Katham = how ?   in what manner ?   Idam = this.
Aho = oh !   Kaachakhandena = chips or beads of ordinary glass.
Saardham = with.    Bhillee = a tribal(Bheel) woman.   Kanthe=
neck.     Marakatmane = emerald gem.   Kaamavasthaam = kaam+
avasthaam .    Kaam = what,     Avasthaam = situation,  Gatosi=
have gone into.
i.e.     O emerald gem !   initially you were inside the mighty Ocean,
and afterwards by your association with Gold you adorned the crowns
of kings and the tiaras of beautiful ladies.   Ah!  tell me as to how you
are now in such a bad situation that you are now stringed in a garland
along with ordinary glass beads and pieces and  being worn on the
neck by a tribal Bheel woman  ?

(The idea behind this Subhashita is that people get recognition and
respect  and recognition in the company of noble and virtuous men,
whereas if they are in the company of ordinary persons they do not
get any recognition and respect.)






Thursday, 16 November 2017

आ'ज का सुभाषित / Today's Subhashita.



यावद्गुरुपदाम्भोजेSनुरागो  याति  नोदयम्  |
क्व  नाम तावत्सद्विद्यापद्मिनी  प्रैति फुल्लताम्  ||
                      - सुभाषित रत्नाकर (अच्युतरायजी)
भावार्थ  -    जब  तक किसी विद्यार्थी  का अपने गुरु के चरणकमलों
के प्रति अनुराग नहीं होता है तब तक सद्विद्या रूपी कमलिनी कैसे
पूर्ण रूप से खिल सकती है ?

(प्रस्तुत सुभाषित में अलङ्कारिक रूप से एक विद्यार्थी द्वारा अपने गुरु
के प्रति पूर्ण समर्पण और श्रद्धा की  आवश्यकता पर बल दिया गया है |
तभी  एक  शिष्य अपने गुरु से संपूर्ण ज्ञान प्राप्त कर सकता है | )

Yaavad-gurupadaambhojenuraago  yaati  nodayam .
kva naama taavat-sadvidyaa-padminee  praiti  phullataam.

Yaavadgurupadaambhojenuraago = Yaavat + gu+pada+ambhojae +
anuraago.    Yaavat = until.    Guru = a teacher.      Pada = feet.
Ambhoja = lotus flower.   Anuraago = affection,   Yaati = becomes.
Nodayam = na+ udayam.    Na = not.   Udayam = created, arises.
Kva = where ? ,   whither ?    Naam = namely, what ?    Taavat =
 until such time.   Sadvidyaa =  true knowledge.  Padminee = lotus.
Praiti  = arrives, becomes.    Phullataam = full bloom.


i.e.  Until  such time a student does not develop  complete devotion and
obedience at the lotus like feet of his Guru, how can  he can acquire real
knowledge  like a lotus flower in full bloom .

(In the above Subhashita the importance of devotion and obedience by
a student towards his teacher has been emphasised in a figurative manner.)

Wednesday, 15 November 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


किं तेन जातु जातेन मातृयौवनहारिणा |
आरोहति न यः स्वस्य  वंशस्याग्रे ध्वजो यथा ||
                      =  सुभाषित रत्नाकर (कल्पतरु)

भावार्थ -      केवल अपनी माता के यौवन और सौन्दर्य को
नष्ट करने वाली ऐसी  संतान  के जन्म लेने  का क्या लाभ
जो अपने कुल (वंश ) की शोभा(परम्परा) को उसी  प्रकार नहीं
बढाता है जैसा कि एक ध्वजा (झण्डा) एक लम्बे बांस  के सिरे
पर फहरा कर सुशोभित होती  है  ?

(इस सुभाषित में  'वंश' शब्द  दो विभिन्न अर्थों में  (१)  किसी
परिवार की परम्परा  तथा (२) एक बांस  के  लम्बे डण्डे के रूप मे
लिया गया है | एक गुणी संतान अपने वंश की शोभा उसी प्रकार
बढाती  है जैसा कि एक झण्डा बांस के सिरे पर फहरा कर सुशोभित
होता है | इस तथ्य को एक सुन्दर उपमा के रूप में प्रयुक्त किया
गया है |)

Kim tenu jaata jaatena maatruyauvanahaarinaa.
Aarohati na yah svasya vmshaasyaagre dhvajo yathaa.

Kim = what ?     Tena = his    Jaatena = being born.
Maatru = mother.      Yauvan = youth .    Haarinaa =
destroyer.    Aarohati =rises up, ascends. Na = not.
Yah =   who.    Svasya = one's own.    Vmshasyaagre=
Vmshasya+ agre.     Vmshasya = of the family dynasty .
a bamboo pole's   Agre = top end., foremost.   Dhvajo =
a flag.     Yathaa = for instance, like a.

i.e.     What purpose is served by the birth of  a child as a
destroyer of the youth and beauty of his/her mother, if
he/she does not increase  the name and fame of his/her
dynasty, just like a flag hoisted  and fluttering atop a long
bamboo pole  ?

(In this Subhashita the word 'Vmsha' has two meanings ,
namely (1) a family dynasty, and (2) a long bamboo pole,
which has been used as a simile for the family dynasty.)

Tuesday, 14 November 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


स्वगर्भशुक्तिनिर्भिन्नं सुवृत्तं सुतमौक्तिकम् |
वंशश्रीतिलकीभूतं  मन्दभाग्यस्य  दुर्लभम्      ||
                       - सुभाषित रत्नाकर ( कल्पतरु )

भावार्थ -   किसी व्यक्ति का अपनी ही पत्नी के गर्भ रूपी सीपी
से उत्पन्न एक मोती के समान सुन्दर और  गुणवान  पुत्र अपने
वंश  की शोभा में एक आभूषण के समान वृद्धि करता है  परन्तु   
एक अभागे व्यक्ति के लिये यह सुख दुर्लभ है |

Svagarbha-shukti-nirbhannam  suvruttam sutamauktiam.
Vmshashree-tilakeebhootam  mandbhaagyasya durlabham.

Svagarbha = one's own womb.   Shukti =oyster shell.
Nirbhinnam = separated.   Suvruttam = virtuous  and well
behaved.  Suta = son.   Mauktikam = a pearl..   Vamshashree =
illustrious family dynasty.   Tilakeebhootam = like an ornament.
Mandabhaagyasya =  for an unlucky or unfortunate person.
Durlabham = difficult to attain.

i.e.     A beautiful and illustrious son of a person born out of his
own wife's womb akin to a pearl separated from an oyster, adorns
his family dynasty like an ornament.  However, such good fortune
is difficult to achieve for an unlucky persons .

Monday, 13 November 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


राजानं  प्रथमं  विन्देत्ततो  भार्या  ततो  धनम्  |
राजन्यसति  लोकेSस्मिन्कुतो भार्या कुतो धनम्  ||
                                   -सुभाषित रत्नाकर (स्फुट)
भावार्थ -   एक नागरिक को सर्व प्रथम राजा (शासक) का सम्मान
करते हुए उसकी आज्ञा का पालन  करना चाहिये | तत्पश्चात अपनी
पत्नी (परिवार )का  पोषण  करते हुए धनार्जन करना चाहिये |  यदि
राज्य में एक आदर्श राजा (शासक) न हो तो फिर न  तो पत्नी (परिवार)
रहेगी और न  धनार्जन ही  सम्भव  होगा  |

(संस्कृत में एक उक्ति है कि -'राजा कालस्य कारणम्' , अर्थात किसी
देश या समाज में अच्छी और बुरी घटनाओं का राजा एक प्रमुख कारक
होता है |  द्वितीय विश्व युद्ध और वर्तमान मे ईराक और  सीरिया का
गृहयुद्ध इसके ज्वलन्त उदाहरण हैं |    इसी तथ्य को इस सुभाषित में
व्यक्त किया गया है  | )

Raajaanam prathamam vindettato bhaaryaa tato dhanam.
Rajanyasati lokesminkuto bhaaryaa kuto dhanam.

Raajaanam =   Kings. (now a days the Rulers of a country)
Prathamam =   initially, at the outset.   Vindettato = vindet +
tato.    Vindet = should attend to.     Tato = thereafter.
Bhaaryaa = wife (representing the family.)  Dhanam = wealth.
Rajanyasati= Raaja +  nyasati.     Raaja =  King, chief.
Nyasati = resigns.   Lokesminkuto = loke + asmin+ kuto.
Loke = in social life,    Asmin = in this.   Kuto = from
where.    Dhanam = wealth.

i.e.     At the outset a citizen should respect and obey his King
(or the Ruler  of the country ) and only thereafter take care of
his wife( family) and thereafter  strive to acquire wealth.  If
there is no competent and virtuous King ( or Ruler) in the
Kingdom, neither there will be a family life nor any acquisition
of wealth.

(In Sanskrit it is a saying that a King  is the main cause of the
prosperity or otherwise of a Country . This is apparent if we
consider the background of the second World War and the present
happenings in Iraq and Syria.  This very fact has been highlighted
in the above Subhashita.)

Sunday, 12 November 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


सत्याSनृता  च  परुषा  प्रियवादिनी  च   
हिन्स्रा  दयालुरपि  चाSर्थपरा वदान्या  |
नित्यव्यया  प्रचुरनित्यधना SSगमा  च 
वेश्याङ्गनेव  नृपनीतिरनेकरूपा            ||
             - सुभाषित रत्नाकर (हितोपदेश)

भावार्थ -   एक वेश्या का व्यवहार बडा ही चपल होता है | कभी तो वह सच
बोलती है और  कभी झूठ , कभी कटु वचन तो कभी मधुर वचन बोलती है,
कभी हिंसक तो कभी दयालु हो जाती है,कभी एक लोभी के समान तो कभी
एक उदार और दानशील व्यक्ति की तरह व्यवहार करती है | यदि कभी मुक्त
हस्त से  व्यय करती है  तो कभी नित्य प्रचुर मात्रा में धन कमाने में भी जुट
जाती है | एक वेश्या द्वारा  इस प्रकार के व्यवहार के समान ही एक राजा की
राजनीति के भी अनेक परिस्थितिजन्य और समयानुकूल  परिवर्तनशील रूप
होते हैं  |  

Satyaanrutaa  cha  parushaa  priyavaadinee cha.
Hinsraa  dayaalurapi  chaarthaparaa  vadaanyaa.
Nityavyayaa  prachura-nitya-dhanaagamaa cha.
Veshyaanganeva nrupaneetiranekaroopaa.

Satytaanrut aa  = satya + anrutaa.   Satya = truth.  Anrutaa= untrue,
false.    Cha = and.      Parushaa =harsh (words)    .Priyavaadinee =
speaking kindly.   Hinsraa = cruel.       Dayaalurapi = dayaalu +api.
Dayaalu=kind, merciful.   Api= even.  Chaarthapara=cha + arthapara.
Arthgapara= greedy.   Vadaanyaa= liberal,  munificent giver.
Nityavyayaa = always expending.   Prachura = plenty. Nitya  = daily.
Dhanaagamaa =   accession of wealth.  gain.         Veshyaanganeva=
veshyaanganaa + iva.  Iva =like a.       Veshyaanganaa = a prostitute. +
Nrupaneetiranekaroopaa= Nrupaneetih  + anekaroopaa.  Nrupaneeti =
diplomacy by the King (or a ruler of a Country )      Anekaroopaa =
fickle, of various kinds.

i.e.  The behaviour of a prostitute is very erratic.  At times she speaks
the truth but also tells lies. Sometimes she speaks harshly but  speaks
very pleasantly and courteously at other times.  She is both cruel and
very kind , greedy as also a munificent giver, always expending freely
but also amassing wealth at the same time.  Just like the aforesaid
traits in a prostitute, a King's diplomacy has many facets of diplomacy
depending upon the time and the prevailing circumstances.





Saturday, 11 November 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


पर्जन्य  इव  भूतानामाधारः पृथिवीपतिः  |
विकलेSपि  हि पर्जन्ये जीव्यते न तु भूपतौ ||
                                    -सुभाषित रत्नाकर

भावार्थ -    जल बरसाने वाले बादलों के समान ही एक  राजा
या शासक इस पृथिवी  में समस्त प्राणिमात्र के जीवित रहने
का आधार है |   यदि बादल ही रीते (जल रहित )  हो जायें तो
निश्चय ही  इस पृथिवी में  न तो प्राणी बचेंगे  और न राजा ही 
बचेगा |

(प्रस्तुत सुभाषित में मानव जीवन के लिये जल का इस पृथिवी
में होना तथा अच्छी शासन व्यवस्था की अनिवार्यता को व्यक्त
किया गया  है |   कहा भी गया है कि जल ही जीवन है और समस्त
पृथिवी में जल वितरण बादलों के माध्यम  से ही होता है |  )

Parjanya  iva bhootaanaamaadhaarah pruthiveepatih.
Vikalepi hi parjanye  jeevyate na tu bhoopatau.

Parjanya = a rain bearing cloud.   Bhotaanaam = all
living beings.   Aadhaar = supporter.  Pruthiveepatih =
a king or a ruler of a country.   Vikale = exhausted,
crippled. unwell.   Api = even.   Hi = surely   Jeevyate=
remain alive.   Na = not.    Tu = and, but.    Bhoopatau=
a king or a ruler.

i.e.     Like the rain bearing clouds a King (or a ruler) is
also essential as a supporter of all livings on this Earth.
If the clouds do not  distribute the rain on the Earth, then
definitely neither the  living beings  or the King will exist
on this Earth.

(The importance of  Water as also good governance has
been emphasised in the above Subhashita.)

Friday, 10 November 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


मृतस्य लिप्सा कृपणस्य  दिप्सा विमार्गगायाश्च रुचिःस्वकान्ते  |
सर्पस्य  शान्तिः कुटिलस्य  मैत्री  विधातृ सृष्टौ  नहि दृष्टपूर्वा   ||
                                     - सुभाषित रत्नाकर (भामिनी विलास )

भावार्थ -    एक मृत व्यक्ति की इच्छा, एक कंजूस व्यक्ति में अपनी 
संपत्ति का उपभोग करने की इच्छा के  अभाव का कारण, गलत कार्यों
में लिप्त किसी व्यक्ति का अपनी प्रेमिका के प्रति रुचि (लगाव),एक सर्प
की निष्क्रियताका कारण, एक कुटिल व्यक्ति के साथ मित्रता तथा विधाता
(सृष्टिकर्ता) की सृष्टि के बारे में कोई पूर्वानुमान नहीं किया जा सकता है |

Mrutasya lipsaa krupanasya dipsaa vimaargagaayaashcha 
ruchih svakaante.
Sarpasya shaantih kutilasy  maitree vidhaatru shrushtau
nahi drushtapoorvaa.

Mrutasya = a dead person's.   Lipsaa = longing for,  desire.
Krupanasya = a miser's .    Dipsaa = absence of desire.
Vimaargaayaashcha = a person going on the wrong path.
Ruchih = desire, interest.  Svakaante = one's own beloved.
Sarpasya = a snake's.    Shaantih =tranquility.    Kutilasya =
a crooked. person's .   Maitree = friendship.     Vidhaatru =
Destiny , Creator.    Srushtau = creation of the World.
Nahi = not at all.    Drushtapoorvaa = envisaged earlier.

i.e.    Nothing can be envisaged about a dead person's desires, 
the cause of absence of any desire to use his wealth in a miser, 
the interest of a person involved  in  wrong doings towards his
beloved, tranquility in a snake, friendship with a crooked person,
and the creation of this World by the Destiny.

Thursday, 9 November 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अज्ञतया  प्रेम्णा  वा चूडामणिमाकलय्य  काचमणिम्   |
नृपतिर्वहेत  शिरसा  तेनाSसौ   नह्यनर्घ्यमणिः           ||
                                    - सुभाषित रत्नाकर (कल्पतरु )

भावार्थ -    अज्ञान वश या प्रेम भावना के कारण  यदि  कोई राजा एक
साधारण कांच की नकली मणि को चूडामणि समझ कर अपने सिर पर
धारण कर लेता है तो फिर भी लोग उसे  अमूल्य  मणि ही समझते हैं |

(यह  सुभाषित भी  एक अन्योक्ति है |  इस का  तात्पर्य यह  है कि महान
व्यक्तियों के संसर्ग मे  साधारण व्यक्ति भी सम्मान प्राप्त कर लेते हैं  | )

Agyatayaa premnaa vaa choodaamanimaakalyya kaachamanim.
Nrupatirvahate shirasaa  tenaasau  nahyyanavyarmanih.

Agyatayaa = without knowing, being unaware.      Premnaa =
out of love or affection.   Vaa = or.   Choodaamaanimaakalyya=
choodaamanim + aakalyya.    Choodaamanim = a jewel worn by
men and women on the top of the head.   Aakalyya = supposing.
Kachamanim = an artificial jewel made of ordinary glass.
Nrutatirvahate = nrupatih + vahate.    Nrupati = a king.    Vahate =
carries, wears.   Shirasaa = on the head.  Tenaasau = therefore .
Nahyanavyarmanih =   nahyan = put on , tie.   Arghyamanih = as a
precious jewel.

i.e.     Being totally unaware or out of love or affection if a king ties
an artificial jewel of ordinary glass on his head, thinking it to be a
'Choodaamani', people still consider it as a precious jewel..

(The above Subhashita is an allegory.  The underlying idea is that
in the company of  great and noble persons,  even ordinary persons
enjoy respect and attention. )



 

Wednesday, 8 November 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अयाचितः  सुखं  दत्ते  याचितश्च  न  यच्छति  |
सर्वस्वं  चाSपि  हरते विधिरुच्छृङ्खलो   नृणाम्  ||
                                           - सुभाषित रत्नाकर

भावार्थ -   अहो !  विधि (भाग्य ) भी कैसा उच्छृङ्खल (मन मौजी ) है
कि लोगों को मांगे बिना तो सब प्रकार के सुख प्रदान कर देता है परन्तु
मांगने पर देने की बात तो दूर उलटे उनकी सारी धनसंपत्ति का भी हरण
कर लेता है |

Ayaachitah sukham  datte  yaachitashcha  na yacchati.
Sarvasvam chaapi harate  Vidhirucchrunkhalo  nrunaam.

Ayaachitah = when not asked for.   Sukham = happiness.
Datte = gives.    Yachitashcha = yaachitah + cha.   Cha =
and.   Yachitahh =on being begged or reuested.  Na = not.
Yacchati = gives.    Sarvasvam = all  wealth.     Chaapi =
cha + api,    Api = even.    Harate = withdraws, takes away
Vidhirucchrunkhalo = vidhih + ucchrunkhalo .    Vidhi =
destiny.   Ucchrunkhalo = unrestrained,  perverse, irreegular.
Nrunaam = people, men.

i.e.      Oh !   how unrestrained and perverse are the ways of
Destiny , which bestows all types of riches and happiness to 
people without  being asked for by them , whereas on being
requested to do so it takes away even their entire existing wealth.

Tuesday, 7 November 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


उपकारमेव  तनुते विपद्गतः सद्गुणो  महताम्  |
मूर्छां  गतो  मृतो  वा  निदर्शनं  पारदोत्र  रसः    || -(स्फुट )
                                                     - सुभाषित रत्नाकर

भावार्थ -    गुणवान और महान व्यक्ति  आपदाग्रस्त लोगों के 
सहायक  उसी प्रकार होते है जिस प्रकार पारद  के शोधन द्वारा
प्राप्त रस (औषधि) मूर्छित  या मृतप्राय  व्यक्तियों के प्राणों की
रक्षा में सहायक होता है |

(आयुर्वेद में पारद (पारा) का शोधन कर अनेक औषधियां निर्मित
होती हैं जिनमे 'सिद्ध मकरध्वज ' नामक एक चमत्कारिक  औषधि
भी है जो  मूर्छित या मृतप्राय व्यक्ति में भी जान फूंक देती है | उस
औषधि की तुलना उन सज्जन और महान व्यक्तियों  से की गयी है
जो निस्स्वार्थ सेवा कार्य करते हैं ) 

Upakaarmeva tanute vipadgatah sadgano mahataam.
Moorchaa gato mruto vaa  nidarshanam paradotra rasah.

Upakaara = help, benefits.    Eva = thus, really.   Tanute=
accomplishes.    Vipadgatah = fallen into misfortune.
Sadguno = virtuous.    Mahataam = great persons.
Moorchaagato =  fainted.    Mruto = dead.   Vaa = or.
Nidarshanam = indications.   Paradotra = parado +atra.
Parado = mercury.    Atra = here.    Rasah =  a compound
obtained from mercury by a chemical process in Ayurveda
(the medical science of Hindus)

i.e.     Great and virtuous  persons come to the help of people
fallen into misfortune  just like a compound of mercury is
used to save the life of a fainted or a dying person.
.

(In Ayurveda (Indian system of medicines) a compound derived
from Mercury known as 'Siddha Makaradhvaja' is famous for its
use to revive a fainted or a dying person. In this Subhashita great
and virtuous persons have been compared  to  this compound  of
mercury.)









Monday, 6 November 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita .


बन्धनस्योSपि  मातङ्गः सहस्रभरणक्षमः  |
अपि स्वच्छन्द्चारी  श्वा  स्वोदरेणाSपि  दुःखितः ||
                                               -सुभाषित रत्नाकर

भावार्थ-     एक पालतू  हाथी बंधा हुआ होने पर भी  एक हजार
लोगों का परोक्ष रूप से भरणपोषण करने में सक्षम होता है ,
परन्तु एक उन्मुक्त विचरण करने वाला कुत्ता  स्वयं  अपना
ही पेट न भर सकने के कारण दुःखी रहता है |

(प्रस्तुत सुभाषित 'संकीर्णान्योक्तयः '  शीर्षक के अन्तर्गत
संकलित है |  लाक्षणिक रूप से इस का अर्थ यह है कि एक महान
व्यक्ति  चाहे वह परतन्त्रता का जीवन व्यतीत कर रहा हो परोक्ष 
रूप से अनेक और व्यक्तियों (उसके सेवकों, रक्षकों आदि) का भी
भरण पोषण करता है |इस के विपरीत एक साधारण व्यक्ति  चाहे
वह  स्वतन्त्र  जीवन व्यतीत कर रहा हो अपना ही भरण पोषण
नहीं कर सकता है | एक कहावत भी है कि - मरा हुआ हाथी भी सवा
लाख रुपये का होता है |

 Bandhanasyopi maatangah sahasra-bharana-kshamah.
Api svacchandachaaree  shvaa svodarenaapi duhkhitah.

Bandhanasyopi = bandhansyao + api.    Bandhanasyo =
under bondage.     Api = even.    Matangah = an elephant.
Sahasra = one thousand.    Bharana = sustenance, support
Kshamah = capability, power.           Svacchandcaaree =
independent.   Shva = a dog.   Svodarenaapi= svodarena +
api.    Svodarena =  one's own stomach (for filling of)
Duhkhitah = miserable , unhappy.

i.e.     An elephant even under bondage  provides indirectly
sustenance to thousands of people, whereas an independent
stray dog  leads a miserable life by not being able even to
sustain himself properly.

(This Subhashita is also an 'Anyokti' (allegory) . The idea
behind  it is that great men even under bondage  indirectly
provide  livelihood to numerous other persons involved in
their service and protection, whereas ordinary persons even 
if they are independent can not feed themselves properly and
lead a miserable life.) 




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Sunday, 5 November 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


दूरीकरोति कुमतिं विमलीकरोति 
चेतश्चिरन्तनमघं  चुलकीकरोति  |
भूतेषु किं च करुणां बहुलीकरोति  
संगः सतां किमु  न मङ्गलमातनोति - शार्ङ्गधर 
                                          (सुभाषित रत्नाकर )
 =
भावार्थ -         सज्जन और विद्वान व्यक्तियों की संगति से 
लोगों के मन की बुरी भावनायें  दूर हो कर उनकी बुद्धि निर्मल 
हो जाती है  तथा जो पाप कर्म उन्होंने पहले किये हुए होते है उन 
का दुष्प्रभाव भी नष्ट हो जाता है |  प्राणिमात्र के प्रति उनके मन 
में करुणा (दया) की भावना में भी वृद्धि हो जाती है | भला क्यों 
न संतों के साहचर्य से  संपन्नता और  कल्याण की वृद्धि होगी ?

Dooreekaroti kumatim vimaleekaroti.
Chetashchirantanamagham chulikeekaroti.
Bhooteshu kim cha karunaam bahuleekaroti.
Sangah sataam kimu na mangalmaatanoti.

Dooreekaroti = removes.   Kumatim = evil thoughts.
Vimaleekaroti = purifies.   Chetashchirantanamagham =
chetah + chirantanm + agham.    Chetah =  mind.
Chirantan = old.    Agham = sins.    Chulakeekaroti =
causes to disappear.      Bhooteshu = creatures,   Kim=
why ,    Cha = and.   karunaam = compassion, empathy.
Bahuleekaroti =  increases.  Sangah = association with.
Sataam = noble and righteous persons.  Kimu = why ?
cha = and.      Mangaalam  = prosperity, auspiciousness.
Aatanoti = expands.

i.e.     Association with noble and righteous persons results
in removal of evil thoughts in the minds of people and 
makes their minds pure. The ill- effect of the sins committed
by them also disappears, and the feelings of compassion
and empathy towards all the living beings also increases.
Then why not the prosperity and auspiciousness will also 
increase in the company of  noble persons ?

Saturday, 4 November 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


लक्ष्मि  क्षमस्व  वचनीयमिदं  दुरुक्तमन्धीभवति पुरुषास्त्वदुपासनेन |
नोचेत्कथं  कमलपत्रविशालनेत्रो  नारायणः स्वपिति पन्नगभोगतल्पे  ||
                                                    - सुभाषित रत्नाकर (सभा तरङ्ग )

भावार्थ -       ओ कमलपत्र के समान विशाल नेत्रों वाली माता लक्ष्मी  !
मुझे  आपके प्रति  इन कटु वचन कहने  के लिये क्षमा करें  कि  जो भी
व्यक्ति आपकी उपासना करते हैं वे अन्धे (मदान्ध )हो जाते है |  यदि
ऐसा सही नहीं है तो क्यों आपके पति भगवान नारायण शेषनाग की
कुण्डली को एक  पलंग की तरह प्रयुक्त कर उसके ऊपर शयन करते हैं ?

(प्रस्तुत सुभाषित 'लक्ष्मीस्वभाव ' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है |
प्रायः  यह देखा गया है कि अत्यन्त धनवान व्यक्तियों का व्यवहार
अन्य व्यक्तियों के प्रति  असंयत और रूखा हो जाता है अर्थात वे
धन  के मद में एक अन्धे व्यक्ति के समान व्यवहार करने लगते हैं  |
इसी तथ्य को एक हास्य रस प्रधान उपमा ( श्री नारायण का शेषशय्या
पर शयन करना ) के द्वारा व्यक्त किया गया है |  जब श्री नारायण ही
स्वयं लक्ष्मी के पति होने के कारण ऐसा व्यवहार करते है तो फिर
साधारण मनुष्यों का क्या कहना ? )

Lakshmi kshamasva vachaneeeyam-idam duruktm-andheebhavati
purushaastvadupaasanena.
Nochet-katham kamalapatra-vishaalnetro Naarayanah svapiti pannaga-
bhogatalpe.

Lakshmi = the Goddess of Riches.   Kshamasva = forgive me.
Vachaneeyam + idam.   Vachaneeyam = blame, criticism.     Idam =
this.    Duruktam = harsshly addressed.    Andhee = blind.   Bhavnti =
become.   Purushaah = people.  Tvad = your.   Upaasanenena =  by
worshipping .   No = not.  Chet = if.   Katham = how ? In what manner ?
Kamalapatra = leaf of a lotus flower.  Vishaal = large.   Netro = eyes.
Naraayanah = God Vishnu, the consort of Lakshmi.   Svapiti = sleeps.
Pannaga = a snake. (here a reference to 'Shesh Naag'  in Indian mytho-
logy )     Bhog = coiled body.   Talpe = a  cot,  couch.
.
i.e.    O Goddess Lakshmi having large eyes like lotus petals !  Please
forgive me for uttering these harsh words about you.  Every body who
worships you and becomes rich behaves like a blind person . Otherwise,
how is it that  even your husband  God Narayana sleeps over the coil
of the serpent  Shesh Naag  using it as his bed  ?

(This Subhashita is classified under the head "Lakshmi Svabhaava' .
It is common knowledge that  by becoming very rich people behave
like blind persons. This fact has been highlighted by using a simile
of Lord Vishnu, the consort of  Goddess Lakshmi, using the coil of
the serpent Shesh Naag as his bed.  When even God behaves like this
then the fate of ordinary mortals is easy to imagine.)

Friday, 3 November 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


सृजति तावदशेषगुणाSSकरं  पुरुषरत्नमलंकरणं  भुवः |
तदपि  तत्क्षणभङ्गि करोति चेदहह कष्टमपण्डितता विधेः ||
                                          -   सुभाषित रत्नाकर (भर्तृहरि )

भावार्थ -      अहो ! इस संसार में  दैव (नियति ) भी कैसी सृष्टि करता है  ?
एक ओर तो सभी गुणों की खान और एक आभूषण में रत्न के समान सुशोभित
होने वाले महान व्यक्तियों का सृजन करता है तो यह कैसी विडम्बना है कि उसी
क्षण  अत्यन्त कष्टकर मूर्खतापूर्ण व्यक्तियों का सृजन भी करता है |

(यह सुभाषित  'दैवम् ' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है | इसका तात्पर्य यह
है कि विद्वत्ता और मूर्खता  मनुष्य को उसके जन्मजात  गुण या अवगुण
उसके भाग्य के अनुसार ही प्राप्त होते हैं | )

Srujati taavadasheshagunaakaram purusha ratnamalamkaranam bhuvah.
Tadapi tatkshanabhangi karoti  chedahaha kashtamapanditataa vidheh,

Srujati = bestows,  creates.  Taavadasheshagunaakaram = taavat +ashesh
+ gunaakaram.    Taavat = so long.   Ashesh = all.    Gunaakaram = Guna +
Akaram.   Guna = virtues.    Akaram = a mine.   Purusharatnam = like a
gem among men.     Alankaranam = ornament, decoration.       Bhuvah =
World.   Tadapi =even then.  Tatkshana =at the same time.  Bhangi karoti =
what an irony.   Chedahaha = chdet + ahh.     Chet = if.    Ahh =   oh !.
Kashtamapanditataa=  kashtam +  apanditataa.    Kashtam = miserable.
Apanditataa = foolishness.     Vidheh = destiny.

i.e.   Oh !  what an irony . While the Destiny has created in this World great
persons like a mine of all the known virtues and adorned like a gem studded
in an ornament, at the same time has also created miserable and foolish persons .

(The above Subhashita is classified under the head 'destiny' . The idea behind
it is that  wisdom and foolishness are the inborn qualities and impediments
a person gets according to his fate .)

Thursday, 2 November 2017

आज का सुभाषित / Today;s Subhashita.


अनुकूले  विधौ  देयं  यतः  पूरयिता   हरिः   |
प्रतिकूले  विधौ  देयं  यतः  सर्वं  हरिष्यति   || - (स्फुट )
                                                -   सुभाषित रत्नाकर

भावार्थ -     भाग्य अनुकूल  होने पर जो कुछ भी कोई  व्यक्ति
पाता है उसमें विष्णु भगवान  भी वृद्धि कर उसे परिपूर्ण कर देते
हैं |   परन्तु यदि भाग्य प्रतिकूल हो तो जो कुछ भी उसके पास
पहले से होता है उसे भी  छीन लेता है |

Anukoole  Vidhau deyam  yatah pooraytaa Harih.
Pratikoole Vidhau deyam  yatah sarvam harishyati.

Anukoole = favourable., well disposed.   Vidhau =
destiny, fate.      Deyam = due ,payable.    Yatah =
that.     Poorayitaa =further fulfils.   Harih = another
name of God Vishnu.    Pratikoole = against.. adverse.
Sarvam = every  thing.   Harishyati = snatched away.

i.e.  If the destiny of a person is favourable towards him,
whatever he gets is further suplmented and fulfilled by the
God Vishnu.  On the contrary if the destiny is against him.
whatever he possesses is snatched away by the destiny.

Wednesday, 1 November 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita ..


यशो  यस्माद्भस्मीभवति  वनवन्हेरिव  वनं  |
निदानं दुःखानां यदवनिरुहाणामिव  जलम्   ||
न यत्रस्याच्छायाSSतप इव  तपःसंयमकथा
कथं  चित्तान्मिथ्यावचनमभिधत्ते न मतिमान ||

भावार्थ -    सज्जन और विद्वान व्यक्ति किसी भी  कारण से कभी भी
असत्य वचन नहीं कहते हैं  क्यों कि ऐसा करने  से उनकी तपस्या और
संयम  भी नष्ट हो जाते है जो कि  तेज धूप में  छाया के समान  उनकी
रक्षा करते हैं  |  असत्यवादी व्यक्ति का यश उसी प्रकार भस्म   (नष्ट )
हो  जाता है  जिस प्रकार दावाग्नि (वन में लगी भयंकर आग) से संपूर्ण
वन  नष्ट हो जाता है | यह विपरीत परिस्थिति  ही उसके दुःखों का उसी
प्रकार मुख्य कारण होता है जिस प्रकार  वन के वृक्ष जल के अभाव  के 
कारण सूखने लगते हैं |

Yasho yasmaadbhasmeebhavati vanavanheriva vanam.
Nidaanam duhkhaanaam yadvaniruhaanaamiva jalam.
Na yatra syaaccchaayaatapa iva tapah-smyam-kathaa;
Katham chittanmithyaavachanamabhishate naa matimaan.

Yasho = fame.  Yasmadbhasmeebhavati = Yasmaat +
bhasmee+ bhavati.    Yasmaat = as, like     Bhasmee =
ashes.    Bhavati = becomes     Vanavanheriva = vana-
vanheh + iva.    Vanavanheh= a raging fire in a forest.
Iva = like a.    Nidaanam = primary cause  of. 
Duhkhaanaam = sorrows and miseries.   Yadvaniruhaa-
naamiva  = yat + vaniruhaanaam + iva.   Yat = that.
Vaniruhanaaam = trees in a forest.   Iva = than(comparison)
Jalam =  water.   Na = not.   Yatre = where.   Syaat+chaaya+
aatapa.    Syaat= perhaps.  Chaaayaa = shadee.   Aatapa=
Sunlight.  Iva = like.  Tapah = religious austerity.  Smyama=
self-control.   Katha = how ?   Katham = in what way, how?
Chittaam + mithyaa+ vachanam + abhidhatte.   Chittam =
mind.   Mithaa = false.   Vachanam = promise.  Abhidhatte=
speak.   Na = not.   Matimaan = intelligent persons.

i.e.    Noble and intelligent persons perhaps never say anything
which is not true, because it results in loss of their religious
austerity and self-control, which protects them like a shade from
the scorching Sun.   The fame of  an untruthful persons gets
destroyed  just like a raging fire in a forest which  burns the forest 
into ashes. This adverse situation is the root cause of his miseries,
just like the trees in a forest withering for want of water.