Thursday, 25 May 2017

सदस्यों को सूचना /For the information of members..


      आज मोतियाबिन्द् का  आपरेशन कराने के कारण आगामी कुछ दिनों
तक मैं कोई नया सुभाषित पोस्ट नहीं कर सकूंगा | असुविधा के लिये क्षमा प्रार्थी हूं
       As I am undergoing an operation for removal of cataract in my eyes,
it will not be possible for me to post new Subhashita for a few days. I regret
for the inconvenience to all members .
       

Wednesday, 24 May 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.

ये  कार्यिकेभ्योSर्थमेव गृह्णीयुः पापचेतसः  |
तेषां  सर्वस्वमादाय  राजा  कुर्यात्प्रवासनम्  || - मनुस्मृति ७/१२

भावार्थ -   यदि कोई भृष्ट पदाधिकारी किसी प्रजा से उत्कोच
(घूस) के रूप में कोई वस्तु या  धन  ग्रहण करे तो उसका सर्वस्व
हरण कर उसे अपने देश से सदैव के लिये निर्वासित कर देना राजा
का परम कर्तव्य है  |

(वर्तमान संदर्भ में राजा या शासकों में इस भावना का सर्वथा अभाव
है इस के विपरीत वे ही यः शास्त्र निषिद्ध कर्म करते हुए रंगे हाथ
पकडे जा रहे हैं , जिस के कारण सर्वत्र अराजकता व्याप्त है |)

Ye kaaryikebhyorthameva grihneeyuh paapachetasah .
Teshaam sarvasva maadaaya Raajaa kuryaatpravaasanam

Ye = those.   kaaryikebhyo = officials, e\mployees.  Artham =.\
wealth, money ,   Eva = really. Gruhneeyuh = receive,accept
Paapachetasah =. evil -minded . Tesham = to them.  Sarvasva-
-maadaaya.= sarvasvam + aadaaya.   Sarvasvam =all wealth,
Adaaaya = seizing , confiscating.      Raajaa = the King.
Kuryaatvavaasanam = Kuryaat +  praavasaanam.   Kuryaat =
should  do.   Tu = and.    Pravaasanam = excile, banishment.

i.e.   If any corrupt and evil minded official takes a bribe in
the shape of money or gifts, the King must confiscate all his
wealth and possessions and banish him from the Kingdom
for ever.

(In the present context the above commandment is not being
followed and there is widespread corruption in all the depart-
ments of the Government, as  a result of which there is anarchy
everywhere,)




Tuesday, 23 May 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.

राजा के विभिन्न कर्तव्यों का वर्णन करते हुए मनुस्मृति में कहा
गया है कि राजा को चाहिये कि वह अपने कर्मचारियों का वेतन
उनके कार्यों के अनुसार निर्धारित करे जिस से उन्हें अपने जीवन
यापन में कोई कथिनाई न हो और उन्हें उसके लिये कोई कुकर्म
(चोरी आदि) न करना पडे | यहां तक कि कर्मचारियों के अधिकतम
और न्यूनतम वेतन की सीमा भी निर्धारित की गयी है  और उनके
हित में  अनाज और वर्दी देने की भी व्यवस्था थी जैसा कि निम्नलिखित
श्लोक में व्यक्त है :-

पणो  देयोSवकृष्ठस्य  षडुत्कृष्टस्य  केवलम्   |
षान्मासिकस्तथाच्छादो धान्य द्रोणस्तु मासिकः || श्लोक ७/१२६

भावार्थ -  निम्न श्रेणी के कार्य करने  वालों को एक पण , उच्च
श्रेणी के कर्मचारियों को ६ पण (वेतन) प्रतिदिन राजा देवे  | इसी
तरह प्रत्येक महीने  में एक द्रोण परिमाण अनाज और प्रत्येक
छमाही में उनके योग्य  वस्त्र भी राजा दिया करे |

(इस श्लोक में दृष्टव्य बात यह है कि अधिकतम और न्यूनतम वेतन
के बीच का अन्तर भी निर्धारित किया गया है तथा कर्मचारियों  को
अनाज और और वर्दी देने की भी व्यवस्था की गयी है | )

Pano deyovakrushtasya shadutkrushtasy vetanam.
shaanmaasikastathaacchaado dhaanya deonastu maasikah.

I.e.   The king  should give a salary of  one  'Pana' (a unit of
money) to the  servants doing menial duties and 6 'Panas' per
day to the servants doing duties of higher level. He should also
give one 'Drona'  (measure of foodgrains) foodgrains to them
every month and every half-year give them suitable uniforms,

       (What is noteworthy in the above 'shloka; is that  besides  
prescribing reasonable salary to the employees so that they are
able to meet their needs and do not resort to unfair means to earn
more,  the gap between the maximum and minimum salary has
and other measures like  monthly food aid and suitable uniforms
to be provided every half-year have been prescribed.)


Monday, 22 May 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.

यदि  ते  तु  न तिष्ठेयुरुपायैः प्रथमैस्त्रिभिः  |
दण्डेनैव  प्रसहयै  तांश्छनकैर्वशमानयेत्     || - मनुस्मृति ७/१०८

भावार्थ -   यदि पहले बताये गये तीन उपायों ( साम , दाम और
दण्ड ) से भी शत्रु वशीभूत न हो तब् उस पर बलपूर्वक आक्रमण
कर के अपने दण्डबल  द्वारा वश में करने  का सतत प्रयत्न राजा
को करना चाहिये |
 ( उपर्युक्त श्लोक में युद्ध को अन्तिम उपाय कहा गया है और यह
निर्देश दिया गया है कि युद्ध तभी  करना चाहिये जब् अन्य उपाय
सफल न हों | )

Yadi tey  tu  na  tishtheyurupaayaih prathamaistribhih.
Dandenaiva prasahyai   taamsh  chanakairvashamaanayet..

Yadi = if    Tey = they (reference to the enemies of the King.
Tishtheyurupaayaih = tishtheyuh + upayeh.    Tishtheyuh =
kept quiet, controlled.   Upaayaih = remedies.  Prathamaistribhih
= prathamaih = earlier, prior.   Tribhih = three.    Dandenaiva  =
dandena + eva.    Dandena = by use of force,     Eva = really
Prasahyai =  to be conquered or resisted.   Vasham = submissive.
 under control. Anayet = bring.

i.e.      If the three measures mentioned earlier (negotiations,
use of money power and coercive methods) are not successful
in making the enemy submissive, then the King should attack
the enemy with full force  to conquer him.

(In the above Shloka waging a war has been advised as a last
resort when all other three methods are not fruitful.)

Sunday, 21 May 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


यदा  प्रकृष्टा  मन्येत सर्वास्तु  प्रकृतीर्भृशम्  |
अत्युच्छ्रितं  तथात्मानं तदा कुर्वीत  विग्रहम् || - मनुस्मृति ७/१७०

भावार्थ -    राजा के  लिये यही उचित है कि अपने शत्रु से वह तभी
युद्ध छेडे  जब् वह् अपनी प्रजा को अपने से पूर्ण प्रसन्न जाने तथा
अपने को सब प्रकार से शत्रु से प्रबल समझे  |

( वर्तमान संदर्भ में पाकिस्तान से हमारे संबन्ध शत्रुवत्  ही कहे
जायेंगे | ऐसी स्थिति में  उपर्युक्त श्लोक में दी गयी सीख का बडा
महत्त्व है |  हमारे वर्तमान प्रधान मन्त्री  के ऊपर इस समय सभी
ओर से निर्णायक कदम उठाने (युद्ध करने ) का दबाव है, परन्तु  एक
सर्जिकल स्ट्राइक  मात्र करने पर विपक्ष ने जिस प्रकार हो हल्ला  किया
उस से तो यही प्रतीत होता है कि पूर्ण युद्ध करना उचित नहीं है , और
हमारे प्रधान मन्त्री राजनीति सम्मत सही निर्णय ले रहे हैं |)

Yadaa prakrushtaa manyeta sarvaastu prukriteerbhrusham.
Atyucchritam tathaatmaanam tadaa kurveeta vigraham.

Yadaa = when.   Prakrushtaa =  superior.    Manyeta = think.
Sarvaastu = sarvaah + tu     Sarvaah = all.   Tu = but, and.
Prakrateerbhrusham  = prakruteeh + bhrusham    Prakruteeh +
Bhrusham .    Prakruteeh = various options to be considered
in case of a war.    Bhrusham = powerful,   Atyucchritam =
ati = ucchritam.    Ati =  very.   Ucchritam = powerful , mighty.
Tathaatmaanam = tathaa + aatmaanam.    Tathaa = so, such.
Atmaanam = self.     Tadaa= then.     Kurveeta =  do,  wage.
Vigraham = war

 i.e.     It is  appropriate for the King that he should wage a war
against his enemies only when he  considers that the citizens
are happy with his governance  and he is more powerful than
his enemy in all respects.

(If we view this Subhashita  in the light of the  prevailing very
strained relations with our neighboring country Pakistan, vis-a-
vis extreme pressure on  our Prime Minster for taking a decisive
action to end the conflict, his present strategy in not waging a
war is correct, when we see that even a surgical strike by the
Army was doubted and severely criticized by the opposition. )

Saturday, 20 May 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita..


शुचिना सत्यसंधेन  यथाशास्त्रानुसारिणा  |
प्रणेतुं  शक्यते  दण्डः सुसहायेन  धीमता   || - मनुस्मृति ७/३१

भावार्थ -      जो राजा शुद्ध अन्तःकरण वाला, सत्य प्रिय,
शास्त्र की आज्ञा के अनुकूल चलने वाला होता   हैt , तथा
जिस के पास विचारवान और बुद्धिमान मन्त्री आदि होते हैं ,
वही इस राज-दण्ड को भली प्रकार चलाने में समर्थ होता है |

(उपर्युक्त श्लोक में एक योग्य  राजा या शासक में जो गुण
अवश्य होने चाहिये उन का वर्णन किया गया है |)

Shuchinaa satyasandhena yathaashaastraanusaarinaa.
Pranetu shakyate dandah susahaayena dheemataa.

Shuhinaa = one who is pure at heart.  Satyasandha =
one who keeps his promise.  Yathaa = for instance.
Shaastraanusaarinaa = follower of the scriptures.
Pranetu =  establish     Shakyate = is able to.   Dandah=
The Rule of Law and punishment.    Susahaayena =
very good assistance from.    Dheemataa =  learned.

i.e.    Only such a King (or a Ruler) who is kind and keeps
his promise,  follows the teachings of scriptures, and has
the support  of  learned and competent counsellors , can
establish the rule of Law and punishment in his Kingdom.

(Through this Subhashita the basic qualities that a successful
King must possess for establishing the rule of Law in his
Kingdom have been described.)





Friday, 19 May 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita..

सोSसहायेन   मूढेन  लुब्धेनाकृतबुद्धिना  |
न  शक्यो न्यायतो नेतुं सक्तेव विषयेषु च ||  - -मनुस्मृति ७/३०

भावार्थ -   जो राजा (शासक) योग्य सहायकों  (मन्त्री, सेनापति,
कोषाधिकारी न्यायाधीश आदि) से रहित हो,  मूर्ख, लोभी, शास्त्रों
के ज्ञान से रहित हो  परन्तु  विषय वासना में लिप्त हो तो  वह इस
दण्डव्यस्था का न्यायपूर्ण  चालन कदापि नहीं कर सकता है |

(जिस प्रकार की अराजक  स्थिति और उसका कारण उपर्युक्त
श्लोक में वर्णित है  उसके उदाहरण आज सर्वत्र दिखाई दे रहे
हैं और शासन व्यवस्था में कुटिल, अक्षम् तथा नीच प्रकृति  के
व्यक्तियों का ही बोलबाला है और राजदण्ड अब प्रभावी नहीं है | )

Sosahaayena moodhena lubdhenaakrutabuddhinaa.
Na shakyo nyayato netum  sakteshu vishayeshu cha.

Sosahaayena = so + asahaayena.    So = reference to the
King (Ruler).   Asahaayena =  without any assistance
(from his ministers and subordinate officials)   Moodhena=
ignorant,   Lubdhenaakrutabuddhinaa = lubdhena = akrut+
buddhinaa.    Lubdhena= greedy.    Akruta = incomplete.
inexperienced.     Buddhinaa = intelligence.  akrutabuddhi=
a person having  incomplete  knowledge and experience.
Na = not.   Shakyo = is able,   Nyaayato = judicially.
Netum = correctly, properly.   Sakteshu = fond of
Vishayeshu = various sensuous pleasures.    Cha = and.

i.e.     A king (or a Ruler) who does not have  the support of
able ministers, army commanders, treasurers , judges etc,,
and is ignorant, greedy, inexperienced and having incomplete
knowledge, but on the other hand is fond of sensuous pleasures,
can never  handle the law and order situation of his Kingdom

(\We can now a days see numerous examples of  Rulers around
us as described in the above  Subhashita  resulting in anarchy
and chaos everywhere.  The rule of law, which instills fear in
the wrong doers is missing due to most incompetent and wicked
persons occupying the seats of power and misusing it.)





Thursday, 18 May 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita .


यदि न  प्रणयेद्राजा दण्डं  दण्ड्येष्वतन्द्रितः |
शूले  मत्स्यानिवाभ्यक्ष्यन्दुर्बलान्बलवत्तराः || मनुस्मृति  ७/२०

भावार्थ -    यदि राजा बिना  आलस्य  किये  हुए (शीघ्र) अपराधी
को यथोचित दण्ड (सजा) नहीं देता है तो बलवान मनुष्य निर्बल
प्राणियों को भाले की नोक  में फंसी मछली की तरह पकड कर खा
जाते हैं (नष्ट कर देते हैं)क्यों कि निर्भय व्यक्ति को कुछ भी  कर
गुजरने में क्या विलम्ब लगता है |

(उपर्युक्त सुभाषित विभिन्न राज्यों में व्याप्त अराजकता के मूल
कारण न्याय प्रदान करने  में देरी को रेखांकित करता है जिस के
कारण शासन (दण्ड) का भय न होने के कारण दुष्ट व्यक्ति निरंकुश
हो गये हैं और सामान्य जनता त्रस्त है | )

Yadi na pranayaedraajaa  dandam dandeshvatandritah.
shooole matsyaanivaabhaksyandurbalaanbalavattaraah.

Yadi =if    Na = not.  Pranayet=  establish.   Dandam = rule
of law and punishment.     Dandyeshu= punishment.
Atandratah = alert, free from lassitude..    Shoole = a spear.
Matsyaani  = fish.   iva = like.     bhakshyam = devour, eat.
Durbalaan = weak people.   Balavattaraa = more powerful.

i.e.     If the King does not establish the rule of Law and
fails in giving suitable punishment to the guilty by not being
alert , then powerful and wicked people kill /harm other weak
citizens like a fish pierced by a spear, because such wicked
persons can harm others in no time .

(The delay in imparting justice and giving punishment to the
guilty is the root cause of lawlessness prevailing in many States,
and this has been highlighted  nicely in the above Subhashita.)

Wesnewaday,17th May, 2017 आज का सुभाषित / Today' s Subhashita


तं राजा प्रणयन्सम्यक् त्रिवर्गेणाभिवर्धते |
कामात्मा विषमः क्षुद्रो दण्डेनैव निहन्यते || मनुस्मृति ७/२७
भावार्थ - वह राजा (या शासक) जो शास्त्रसम्मत नीति से
दण्ड देता है (शासन करता है )उसके राज्य में धर्म , अर्थ (धन)
तथा समाज में सौहार्द्र की सतत वृद्धि होती है | परन्तु जो राजा
कामुक , कुटिल, क्रोधी तथा क्षुद्र विचारों वाला होता है , वह उसी
दण्ड व्यवस्था ( दुःखी जनता के विद्रोह ) द्वारा स्वयं नाश को
प्राप्त हो जाता है |
Tam Raaja pranayansamyak trivargenaabhivardhate.
Kaamaatmaa vishamah kshudro dandenaiva nihanyate.e citiens
Tam = that ( reference to the King) Pranayansamyak =
Pranayat + samyak. Pranayat = promotes,promulgates.
Samyak = properly. Trivargenaabhivardhate = trivargena +
abhivardhate. Trivarga = three things namely wealth,
religion and welfare of the citizens, Abhivardhate =
grows more and more. Kaamaatmaa = sensual, licentious.
Vishamah = wicked, dishonest. Kshudro = cruel , mean.
Dandenaiva = dandena + eva . Dandena = by the same
system of punishment. Eva = really, alrready. Nihanyate=
gets punished or destroyed.
i;e; In the regime of a king who governs a country according
to the tenets of religion and law, the wealth, religiosity and
the welfare among the citizens grows more and more , But
if the King is licentious, wicked , dishonest, cruel and mean,
then he himself gets punished and destroyed by this system of
governance (in the shape of rebellion by the citizens).

Tuesday, 16 May 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


पिछले सुभाषित में यह व्यक्त किया गया था कि दण्ड व्यवस्था
राजा द्वारा प्रजा के ऊपर शासन करने का प्रमुख साधन है | आज
निम्नलिखित श्लोक के माध्यम से उस व्यवस्था का किस प्रकार
उपयोग किया जाय यह कहा गया है :-

समीक्ष्य स धृतः सम्यक्सर्वा रञ्जयति प्रजाः | मनुस्मृति
असमीक्ष्य प्रणीतस्तु विनाशयति सर्वतः | श्लोक १९

भावार्थ - यही दण्ड (सजा) यदि भली भांति विचार कर न्याय
पूर्वक दिया जाता है तो इस से प्रजा संतुष्ट और प्रसन्न होती है|
और यदि दण्ड बिना विचार किये हुए अन्याय पूर्वक दिया जाता है
तो वह राजा (शसक) का ही संपूर्ण विनाश कर देता है |

Sameekshya sa dhrutah samyaksarvaa ranjayati prajaah.
Asameekshya praneetastu vinaashayati sarvatah,

Sameekshya = after proper deliberations, judiciously.
Sa = he ( reference to the king or the ruler)      Dhrutah =
supported by.     Samyak = exactly.    Sarvaa = all.
Ranjayati = gratifies,  pleases    Prajaaah = citizens.
Asameekshya = without proper deliberations . Praneetaastu =
Praneeta = awarded.    Tu = but.    Vinaashayati =destroys.
Sarvatah = from all sides, completely.

       In yesterday's Subhashita it was stated that the power
to punish the guilty is the main means of good governance
for a King or a Ruler.  The following Subhashita further
states as to how this power is to be utilized and what are the
consequences of its misuse :-

 i.e.    If the power of giving punishment to the guilty is used
judiciously and after proper deliberations, it pleases and
gratifies the citizens , but if it is used indiscriminately and
injudiciously , it results in complete annihilation of the King
(or the Ruler).

Monday, 15 May 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.

राज्य और उसके राजा (शासक) की अवधारणा का विस्तृत  विवेचन
'मनुस्मृति'  के  ७वें  अध्याय में वर्णित है | उन्हीं में से कुछ चुने हुए और
सामयिक श्लोकों को आगामी कुछ दिनों तक मैं प्रस्तुत करता रहूंगा |
प्रस्तुत है आज का सुभाषित :-

दण्डःशास्ति प्रजाः सर्वा दण्ड एवाभिरक्षति |
दण्डः सुप्तेषु  जागतिं  दण्डं  धर्मं  विदुर्बुधाः || -श्लोक संख्या १८

भावार्थ  -    यह  दण्ड  (सजा देने की ) व्यवस्था  ही सारी प्रजा  पर
शासन करती है और वही उनकी सब प्रकार से रक्षा भी करती  है |
इसी प्रकार यह दण्ड व्यवस्था समस्त शासकों के सो जाने पर भी
(अनुपस्थिति  में )  जागृत रहती  है और सब की रक्षा करती है | इसी
लिये ऋषियों ने इस दण्ड देने की  व्यवस्था को साक्षात धर्म -स्वरूप
कहा है |
(इस दण्ड व्यवस्था में ह्रास के कारण वर्तमान स्थिति में अनेक  देशों
में अराजकता व्याप्त है और वहां  की प्रजा घोर कष्ट भोग रही है |)

Dandah  shasti prajaah sarvaa   danda  evaabhirakshati,
dandah  supteshu jaagatim dandam dharmam vidurbudhaah.

Dandah = the process of punishment for any wrong doing.
Shaasti = commands.   Prajaah = the citizens of a country.
Sarvaa = all.   Evaabhirakshati =  eva + abhirakshati.
Eva = really, already.   Rakshati = protects.    Supteshu =
reference to the Rulers even when asleep.       Jaagatim =
remains awake or alert.    Dharmam = Religious austerity.
Vidurbudhaah = viduh + budhaah.    Viduh = declared, said.
Budhaah =  wise and enlightened sages.

i.e.    This system of giving punishment to the guilty is the real
governance and protects all the citizens, and remains active
even when the Rulers are asleep (during their temporary
absence).  Only due to this reason our sages have proclaimed
this system of punishment as a part and parcel of Religious
austerity.

(Complete failure of this system in many countries at present
is the main cause of anarchy and hardships being faced by the
citizens of those countries. )



Sunday, 14 May 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.

तस्यार्थे  सर्वभूतानां गोप्तारं धर्ममात्मानं  |     मनुस्मृति
ब्रह्मतेजोमयं दन्डमसृजत्पूर्वमीश्वरः        ||   - श्लोक  ७/१४
तस्य  सर्वाणि भूतानि स्थावराणि चराणि  च |
भयाद्भोगाय कल्पन्ते स्वधर्मान्न चलन्ति च || - श्लोक ७/१५

भावार्थ -      राजा  (वर्तमान संदर्भ में एक शासक)  को  शासन  में
सहायता प्रदान करने के लिये परमात्मा ने समस्त जीवों की रक्षा
करने वाला, ब्रह्मतेज से युक्त ,धर्मपुत्र रूपी दण्ड (सजा) का पहले
सृजन  किया  है |
         इसी कारण से संसार के समस्त चर  और  अचर जीव दण्ड के
डर से ही अपने स्वधर्म से कभी चलायमान नहीं होते है और सुखी
जीवन यापन करते हैं |
(मनुस्मृति के सातवें अध्याय में राजा के उद्भव, उसकी शक्तियों और
कर्तव्यों का विशद वर्णन किया गया है जो अब भी प्रासंगिक है , यद्यपि
उनमें से अनेक नियमों की कटु आलोचना आजकल होती है |  अराजकता
शासक द्वारा न्याय और धर्म के अनुकूल दण्ड (सजा) न देने या देरी करने
के कारण ही उत्पन्न होती है |  कहा भी गया गया है कि भय बिन होय न प्रीत |


Tasyaarthe sarvabhootaanaam goptaaram dharmamaatmajam.
Brahmateomayam dandamasrujatpoorvameeshvaram.

Tasya sarvaani bhootaani sthaavaraani charaani cha.
Bhaayaadbhogaaya kalpante svadharmaanna chalanti cha.

Tasya = his (here it is a reference to the King or a ruler.
Arthe = for the sake of .  Sarvabhootaanaam = all living
beings.    Goptaaram   = for the protection.  Dharma =
religion    Atmajam =  son.   Brahmatejomayam = endowed
with supreme power.   Dandamasrujatpoorvameeshvaram =
Dandam + srujat +poorvam+eeshvaram.   Dandam =punishment .
Srujat = created.    Poorvam = before.   Eshvaram = the God.

Sarvaani = all.    Bhootaani = living beings.    Sthaavarani =
stable.    Charaani = movable.    Cha = and.    Bhayaadbhogaaya.
Bhayaat + bhogaaya.    Bhayaat = due to fear.    Bhogaaya =
the bounties of Earth.   Kalpante = enjoy.    Svadharmaanna =
svadharmaat + na.     Svadharmaat =  according to one's duty.
Ba = not.    Chalanti = move, behave.

 i.e.       God created punishment process of punishment to assist
the King (a ruler in the present context) to help him in protecting
all the living beings under his rule
              Only due to this fear of punishment by the King, all the
movable and immovable living beings  do not deviate from their
assigned duties and thereby live together happily.

(In the seventh chapter of Manusmriti all the qualities which a King
must possess and his duties are described in great detail.  Although
because of classifying the society in four categories, the sage Manu
is criticized now-a-days, his other teachings are  very relevant even
at present, as is apparent from the above two shlokas.)

Saturday, 13 May 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अनुमन्ता विशसिता निहन्ता क्रयविक्रयी  |
संस्कर्ता चोपहर्ता च खादकश्चेति घातकाः || - मनुस्मृति ee

भावार्थ -   पशु वध करने की आज्ञा प्रदान करने वाला , उसके
खण्ड खण्ड करने वाला,  वध करने वाला ,क्रय-विक्रय करने
वाला, मांस को पकाने वाला, परोसने तथा उसे भक्षण करने
वाला , इन  सभी  व्यक्तियों  को  वध करने का  पाप समान
रूप से लगता है |

Anumanta vishasitaa nihantaa krayvikrayee.
Sanskartaa chopahartaa cha khaadakashcheti ghaatakaah

Anumantaa = the person who gives the permission,
Vishasitaa = one who cuts into small pieces.   Nihantaa =
the killer.   Krayavikrayee = the purchaser and the seller.
Smskartaa = one who cooks or prepares.    Chopahartaa=
cha +upahartaa.    Cha = and.    Upahartaa = one who serves.
Khaadakashcheti = khaadakah =cha + iti.   Khaadakah =
one who eats.  Iti = thus.   Ghaatakaah = killers.

i.e.       The person who gives the permission for killing the
animals, the person who kills the animals, the person  cutting
them  into pieces, the purchaser and seller of the meat, the
person who cooks the meat, the person who serves the meat,
and the person who eats the meat , all these persons share
equally the sin of killing the animals.

Friday, 12 May 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


नाकृत्वा  प्राणिनां  हिंसा मांसमुत्पद्यते  क्वचित्  |
न च  प्राणिवधः  स्वर्ग्यस्तस्मान्मांसं  विवर्जयेत्  || - मनुस्मृति ५/४८

भावार्थ -   जीवित प्राणियों का वध किये बिना मांस का उत्पादन नहीं
हो  सकता है  और न ही  मृत्यु के बाद स्वर्ग  प्राप्ति की कामना हेतु
जीवित प्राणियों का वध करना ही उचित है |  अतः मांस भक्षण का
पूर्ण परित्याग करना ही श्रेयस्कर है |

(मनुस्मृति के पांचवें  अध्याय में खाद्य और अखाद्य वस्तुओं का विस्तार\
 पूर्वक वर्णन किया गया है और मांसभक्षण की भी  निन्दा की गयी है | पशुवध
की आज्ञा और वध किए हुए पशु का मांस केवल प्रसाद स्वरूप भक्षण करने
के लिये दी गयी है | उपर्युक्त  श्लोक इसी  भावना को व्यक्त करता है |)

Naakrutva praaninaam himsaa maamsamutpadyate kvachit .
Na cha praanivadhah svargyastasmaanmaamsam vivarjayet.

Naakrutvaa = without doing.    Praninaam = living creatures.
Himsaa = killing    Maamsamutpadyate.   Maamsam + utpadyate.
Maamsam =  meat, flesh.    Utpadyate = be produced.    Kvachit =
anywhere.   Na = not .   Cha = and.    Praani-vadhah =  killing of
living creatures.    Svargyastasmaanmaamsam= svargyah + tasmaat+
maamsam.    Svargyh= living in Heaven.    Tasmaat = therefore.
Vivarjayet = should abandon.

i.e.      Meat can not be produced without  killing living beings on
 this Earth, and nor it is advisable to kill animals as a means of
fulfilling the desire of living in the Heaven after one's death. Hence,
it is advisable that eating meat should be abandoned altogether.

(In  the 5th chapter of his treatise 'Manusmriti' , the author has dealt
with various types of foods which should be consumed or avoided.
He is generally against meat eating and killing of animals for that
purpose except in the case of an animal sacrificed to please the Gods,
and has allowed eating the meat of the sacrificed animal. Otherwise,
he is against killing of living beings , and the above shloka deals with
this issue nicely.)

Thursday, 11 May 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अधर्मैणैधते  तावत्ततो भद्राणि  पश्यति   |
ततः सपत्नाञ्जयति समूलस्तु विनश्यति || - मनुस्मृति ४/१७४

भावार्थ -   कभी कभी पापकर्म (बुरे और निषिद्ध  कार्य )करने से
थोडे समय के लिये तो उन्नति और समृद्धि प्राप्त हो जाती है तथा
शत्रु भी पराजित हो जाते हैं |  परन्तु  अन्ततः उस पापकर्म करने वाले
का  समूल (सम्पूर्ण) नाश हो जाता है |

(इस सुभाषित की सत्यता को प्रमाणित करने के लिये  विश्व का
इतिहास उदाहरणों से  भरा पडा है | )

Adharmanaidhate taavattato bhadraani pashyati.
Tatah  sapatnaanjayati  samooolastu vinashyati.

Adharmanaidhate = adharmena + edhate.    Adharmena=
by resorting to immoral and wicked deeds.        Edhate =
prosper, go strong.     Taavattato = taavat +tato.   Taavat=
so long.    Tato = therefore.   Bhadraani = prosperity,  good
results.    Pashyati = sees.   Tatah = therefore.    Saptnaam=
enemies.   Jayati = conquers, wins.  Samoolastu = samoolah
+ tu.     Samoolah = entirely.   Tu = and.    Vinashyati =
annihilated, destroyed.

i.e.     Some times by resorting to immoral and wicked action
one is able tho become prosperous and even conquer his enemies.
But ultimate such a person  gets completely destroyed.

(The history of the world is replete with examples proving the
statement made in the above Subhashita.)

Wednesday, 10 May 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.

दुराचारो हि पुरुषो लोके  भवति  निन्दितः  |
दुःखभागी च सततं  व्याधितोSल्पायुरेव च || - मनुस्मृति ४/१५७

भावार्थ -   दुराचारी  मनुष्य निश्चय ही समाज में निन्दित और
सदैव दुःखी रहता  है  तथा  अनेक रोगों से पीडित होने के कारण
अल्पायु भी होता है  |

(लाक्षणिक रूप से इस सुभाषित द्वारा  मनुष्य को सच्चरित्र और
सदाचारी होने के लिये प्रेरित किया गया है |)

Duraachaaaro  hi purusho loke bhavati  ninditah.
Duhkhabhaagee cha satatam vyaadhitolpaayureva cha.

Duraachaara = bad and immoral conduct.   Hi =  surely.
Purusho =  a person.    Loke = in the society.   Bhavato =
becomes.    Ninditah = despicable, looked down upon.
Duhkhabhaagee = unhappy.    Cha =and.   Satatam  =
constantly, always.   Vyaadhitolpaayureva = vyaadhito +
alpaayuh +  eva .   Vyaadhito = sick, diseased.   Alpaayuh=
short-lived.     Eva =  really,  already.

i.e.     A person with bad and immoral conduct is  surely
looked down upon in the society and always remains
unhappy  and is also short-lived  due to  his suffering from
various diseases.

(Through this Subhashita the author has indirectly exhorted
people to lead a pious lifestyle.)

Tuesday, 9 May 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita..


आचाराल्लभते आयुराचारादीप्तिताः प्रजाः  |
आचाराद्धनमक्षय्यमाचारो  हन्त्यलक्षणम्   || - मनुस्मृति ४/१५६

भावार्थ -    सदाचार में तत्पर रहने  से दीर्घ जीवन प्राप्त होता है
तथा देश की प्रजा भी सुशोभित होती है | सदाचार से ही अक्षय
(कभी समाप्त न होने वाली ) संपत्ति भी प्राप्त होती है और  बुरे
लक्षणों से होने वाले अरिष्ट को भी सदाचार नष्ट कर देता है |

Achaaraallabhate aayuraachaaraadeepsitaah prajaah.
Achaaddhanamakshayyamaachaaro hantyalakshanam.

Achaaraallabhate = aachaaraat + labhate.    Achaaraat=
by proper conduct.   Labhate = get.  Ayu = long lifespan.
Deeptitaah = brightens, beautified.   Prajaah = people.
Achaataat+ dhanam+ akshayam +aacharo.    Dhanam  =
wealth                    Akshayam = inexhaustible, eternal.
Hantyalakshanam= hanti +alakshanam.   Hanti = destroys.
Alakshanam = inauspicious symptoms.

i.e.      Adherence to good moral conduct  results in a healthy
and long lifespan  and also raises the status of the citizens of
a Country.   Good moral conduct  confers eternal prosperity
and  also destroys inauspicious  situations occurring in one's
lifetime.




Monday, 8 May 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.

काकचेष्टा   बकोध्यानं  श्वाननिद्रा  तथैव   च  |
अल्पाहारी  गृहत्यागी विद्यार्थी पञ्चलक्षणम्   ||

भावार्थ -   एक कव्वे के समान सतर्क और गतिशील,  एक बगुले के
समान  एकाग्र रहने की क्षमता, एक कुत्ते के समान कम नींद लेने
वाला , अल्पाहारी (कम और सादे भोजन से संतुष्ट रहने वाला ) तथा
पारिवारिक जीवन से वञ्चित रहने की सामर्थ्य  ,  ये पांच लक्षण उस
व्यक्ति में अवश्य होने चाहिये जो विद्या प्राप्त करने का इच्छुक हो |

(इस सुभाषित में उन मूलभूत गुणों का वर्णन किया गया है जो एक
विद्यार्थी में अवश्य होने चाहिये | )

 Kaakacheshthaa bahatyk odhyaanam  shvaannidraa tathaiva cha
alpahaaree gruhatyaagee  vidyaarthee panchalakshnam,

Kaakcheshtaa =  activity like a crow.   Bakodhyaanam =
attention like a crane bird.    Shvaaananidraa = light slumber like
a dog .    Tathaiva = similarly.    Cha  = a nd.    Alpaaharee =
frugal eater.     Gruhatyaagee = one who has sacrificed family
life.     Vidyaarthee = a seeker of knowledge, a student.
Panchalakshmanam =  five symptoms.

i.e.      Being always active like a crow,   having the capacity to
concentrate like a crane ,  a light slumber like a dog, a frugal eater
and  ability to sacrifice family life,  are the five attributes which
a seeker of knowledge (a student) must have in him.

(This Subhashita describes the  basic qualities which a student  must
have if he wants to acquire knowledge and learning.)

Wednesday, 3 May 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


भद्रं  भद्रमिति ब्रूयाद्भद्रमित्येव  वा  वदेत्  |
शुष्क वैरं  विवादे च न कुर्यात्केनचित्सह  || - मनुस्मृति ४/१३९

भावार्थ  -   मनुष्य को  यही उचित है कि  वह  सदैव  शुभ बातें
ही बोले और अशुभ तथा कटु बातें कदापि नहीं बोले | और यदि
किसी कारणवश अशुभ कहना भी पडे तो भी शिष्ट शब्दों  का ही 
प्रयोग करे तथा किसी भी व्यक्ति से बिना किसी कारण के विवाद
न करें |

(इस सुभाषित द्वारा वाणी के संयम की सीख दी  गयी है जिसका
आजकल सर्वत्र  और विशेषतः राजनीति के क्षेत्र में  अभाव  दिखाई
देता है और उसका   दुष्परिणाम  सबके सामने है | )

Bhadram bhadramiti brooyaadbhadramityeva  vaa vadet.
Shushkavairam  Vivede cha na kuryaatkenac itsaha.

Bhadram = pleasant., friendly    Bhadramiti = bhadram + iti.
Iti = that.   Brooyadbhadramityeva= brooyaat + bhadram +
iti+ eva,    Brooyaat =  say, speak.   eva = really.    Vaa =  is.
Vadet =  should say .    Shushkavairam =  enmity without any
ground.      Vivede = dispute.     Cha = and.      Na = not .
Kuryaatkenachitsaha = kuryaat + kenachit + saha.
Kuryaat = do.    Kenachit = somebody.   Saha = with.

i,e,    One should always speak pleasantly and in a friendly
manner and never use harsh and foul language.  If per chance
he has to say some thing unpleasant, he should use  cultured
and polite language,  and should  never  have enmity and
disputes without any ground with others.

(The advice given in the above Subhashita is not  being
followed now a days , particularly by the politicians , and its
adverse  effect is visible every where in the society.)

Tuesday, 2 May 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


न  प्रहृष्यति  सम्माने  नापमाने  च  कुप्यति  |
न  क्रुद्धः परुषं ब्रूयात्  स  वै  साधूत्तमः स्मृतः || - मनुस्मृति

भावार्थ -   जो व्यक्ति सम्मानित किये जाने पर प्रसन्नता  व्यक्त नहीं
करता है  और न  ही अपमानित किये जाने   या अपशब्द कहे जाने पर
क्रोधित  होता  है , वही साधु  संतों  में श्रेष्ठतम  माना जाता है  |

Na prahrusyati sammaane naapamaane cha kupyati.
Na kruddhah parusham brooyaat  sa vai saadhoottamah smrutah.

Na = not.       Prahrushyati = rejoices, becomes cheerful.
Sammaane = on being honoured.    Naapamaane = na+apamaane.
Apamaane =  on being insulted or  treated with disrespect .
Kupyati = becomes angry,     Kruddhah = angry.      Parusham =
harsh words.    Brooyaat =on being spoken.    Sa = he.       Vai =
an adverb placed after a word  for laying  emphasis on it.  
Saadhootamah =  best among noble persons.    Smrutah = declared
or remembered as.

i.e.    A person who does no become overjoyed on being honoured,
and does not become angry  on being treated with disrespect  and
addressed with harsh words, is  considered  as the best among the
noble  and saintly persons. 

Monday, 1 May 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.

अर्थानाम्  अर्जने  दुःखं  अर्जितानां  च  रक्षणे |
आये दुःखं  व्यये दुःखं  धिग्अर्थाः कष्टसंश्रयाः |||

भावार्थ  -   पहले तो संपत्ति को अर्जित करने में दुःख उठाना  पडता
है और फिर उस की रक्षा करने  में  भी दुःख उठाना पडता है |  धिक्कार
है ऐसी धन संपत्ति को , जिस के  आने पर और व्यय होने पर  भी  दुःख
होता है और जो विभिन्न प्रकार के कष्टों की शरणस्थली  है |

Arthaanaam arjane duhkham arjitaanaam cha rakshane.
Aaye duhkham vyaye duhkham dhig arthaah kashtasanshrayaah.

Arthaanaam = various types of wealth.    Arjane = acqquiring.
Duhkham = difficulties, grief.    Arjitaanaam = after acquiring.
Cha = and.    Rakshane = protecting.   Aye = income.    Vyaye =
expenditure, spending.    Dhigarthaah=  Dhik +arthaah.
Dhik = shame upon.   Arthaah = wealth.   Kashta  = troubles.
Smshrayaah = home, refuge.

i.e.      .We have to face many difficulties while  acquiring wealth
and then again face them while protecting it.  Shame upon such wealth
which causes sorrow while  acquiring  it and also while spending it
and is a refuge of various troubles