Sunday, 30 September 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita .


नाहारं  चिन्तयेत्प्राज्ञं  धर्ममेक  हि  चिन्तयेत्  |
आहारो  हि  मनुष्याणां जन्मना  सह  जायते    ||
                                 - चाणक्य नीति (१२/२० )

भावार्थ -      बुद्धिमान व्यक्तियों को अपने आहार (भोजन) की चिन्ता
नहीं  करनी  चाहिये  और केवल धर्म के अनुसार आचरण करने की ही
चिन्ता करनी चाहिये, क्यों कि आहार की व्यवस्था तो समस्त  प्राणियों 
के लिये उनके जन्म होने के साथ साथ ही प्रकृति  द्वारा कर दी जाती है |

Naahaaram  chintayetpraagyam  dharmameka hi  chintayet.
Aahaaro  hi  manushyaram  janmanaa saha  jaayate.

Na+ aahaaram.    Na = not.    Aahaaram = diet, taking food.
Chintayet+ praagyam.    Chintayet = think about, bother.
Praagyam= wise men .    Dharmaam + ekam.    Dharmam=
Religious austerity.     Ekam = one, singly         Hi = surely..
Aahaaro=  food.    Manushyaanaam = among human beings.
Janmanaa= from birth.    Saha = with.   Jaayate = happens.

i.e.    Wise men should not bother about their food and should
think about  maintaining Religious austerity,  because Nature
provides food for all living beings right from the time they are
born.

Saturday, 29 September 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अहो बत  विचित्राणि  चरितानि  महात्मनाम्   |
लक्ष्मीं  तृणाय मन्यन्ते  तद्भारेण नमन्ति च    ||
                                   - चाणक्य नीति (१३/ ५ )

भावार्थ -   अहो !  सरल  स्वभाव के महान व्यक्तियों के क्रियाकलाप
भी कितने विचित्र  होते हैं |  वे  धन संपत्ति को यद्यपि एक तिनके के
समान तुच्छ समझते हैं, पर यदि वह  उन्हें उपलब्ध भी हो जाय तो उस
को भार स्वरूप ही समझते हुए निर्लिप्त और  विनम्र ही बने रहते हैं  |

Aho vat  vichitraani  charitaani  mahaatmanaam.
Lakshameem  trunaaya  manyante  tadbhaarena namanti cha.

Aho =  Oh !    Vat =alas  !     Vichitraani = strange, surprising.
Charitaani =  actions, deeds.        Mahaatmanaam = great and
noble persons.     Lakshmim = wealth.    Trunaaya = like a
blade of   rass.    Manyante = treat as a.    Tat + bhaarena
Tat = that, its.    Bhaarena =  weight .    Namanti = bow down.
Cha = and.

i.e.     Oh !   how strange and surprising are the actions of great
and noble persons !  They consider the wealth  insignificant like
a blade of grass, and if they possess it they treat their wealth as a
burden and remain unattached to it and continue to remain noble
persons. 

Friday, 28 September 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhaashita.


गते  शोको  न  कर्तव्यो  भविष्यं  नैव   चिन्तयेत्  |
वर्तमानेन  कालेन  वर्तयन्ति  विचक्षणाः               ||
                                      - चाणक्य नीति  (१३/२/)

भावार्थ  -     जो समय बीत गया है उसके बारे में शोक नहीं करना
चाहिये और न हीं भविष्य में  क्या होगा इस बात की चिन्ता करनी
चाहिये |  बुद्धिमान और अनुभवी व्यक्ति  केवल वर्तमान परिस्थिति
के अनुसार ही जीवनयापन  करते हैं  |

Gatey  shoko  na  kartavyo  bhavishyam  naiva  chintayet.
Vartmaanena kaalena  vartayanti  vichakshnaah.

Gatey =  past.    Shoko = sorrow.   Na = not.    Kartavyo =
that should be done.    Bhavishyam = future.   Naiva= not
Chintayet = should worry about.    Vartmaanena = present.
Kaalenan = time.    Vartayanti = live on.   Vichakshanaah =
wise and  experienced  persons.

i.e.    We should neither  feel  sorry about what has already
happened in the past  nor unnecessarily worry about  what
will happen in future,  Wise and  experienced persons  live
life as per the demands of  present prevailing conditions.


Thursday, 27 September 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


जलबिन्दुनिपातेन   क्रमशः पूर्यते  घटः  |
स  हेतुः  सर्वविद्यानां  धर्मस्य च धनस्य च  ||
                               - चाणक्य नीति (१२/२२)

भावार्थ  -   जिस प्रकार जल की  बूंदें  टपक  टपक कर  क्रमशः
(धीरे धीरे ) एक घडे  को भर देती हैं, उसी प्रकार सभी विद्यायें .
धार्मिकता  तथा धन  संपत्ति भी क्रमशः अर्जित की जाती हैं  |

Jalabindunipaatena  kramashah  pooryate  ghatah.
Sa  hetuh  sarvavidyaanaam  dharm asya cha dhanasya cha.

Jalabindu = drops of water.   Nipaatena = by falling of.
Kramashah = gradually.    Pooryate = gets filled.    Ghatah =
an earthen pitcher for storing water.    Sa = it.,  that.
Hetu = cause,  manner.    Sarva = all .   Vidyaanaam =various
disciplines of learning.    Dharmasya = Religious austerity.
Dhanasya = of the wealth.

i.e.        Just as small drops of water falling inside an earthen
pitcher  gradually fill it up to the brim,    in the same manner
various disciplines of learning, Religious austerity and wealth
are also acquired gradually.


Wednesday, 26 September 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


विनयं  राजपुत्रेभ्यः  पण्डितेभ्यः  सुभाषितम्   |
अनृतं  द्यूतकारेभ्यः  स्त्रीभ्यः शिक्षेत  कैतवं  ||
                                  - चाणक्य नीति (१२/१८ )

भावार्थ -    राजपुत्रों को इस प्रकार शिक्षित करना चाहिये  कि  वे
जनता से  नम्रता पूर्वक  व्यवहार करें  |  विद्वान व्यक्तियों की
वाणीं शिक्षाप्रद और  मधुर  होनी चाहिये |  द्यूतकारों (जुआ खेलने
वाले) का स्वभाव झूठ बोल कर एक दूसरे को ठगने का होता है
तथा स्त्रियों को भी (केवल आमोद प्रमोदके लिये)  द्यूतक्रीडा सीखनी
चाहिये |

(वर्तमान संदर्भ में हम देखते हैं कि राजनेताओं की संताने अपने
को सर्वसमर्थ और न्याय व्यवस्था के आधीन न मान कर  जनता
से दुर्व्यवहार करते हैं जिस का बहुत ही बुरा परिणाम हो रहा है |)

 Vinayam  raajaputrebhyah  panditebhyeh  subhaashitam.
Anrtam  dyootakaarebhyah  streebhyah shikshet  kaitavam.

Vinayam = humility.   Raajaputrebhyah= priences.  king's
sons/         Panditebhyah = wise and scholarly persons.
Subhashitam = witty and eloquent speech.       Anrutam =
cheating, lying.                  Dyootakaarebhyah = gamblers.
Streebhyah = for women,    Shikshet= educated, trained in
Kaitavam =  gambling .

i.e.    The sons of Kings should be educated and trained in such
a way that they behave with their  subjects with humility.  Wise
and Scholarly  persons' speech should always be  eloquent and
educative.  By nature the gamblers' attitude is lying and cheating
others.  Women should get themselves trained in gambling (but
for entertainment and fun) .

(In the present context it is observed that the sons and relatives of
politicians consider themselves above the law and behave very rudely
with the general public  and at times create  serious law and order
problems.)

Tuesday, 25 September 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


विद्या मित्रं प्रवासे च  भार्या मित्रं  गृहेषु  च |
व्याधितस्यौषधं  मित्रं  धर्मो मित्रं मृतस्य च  ||
                              - चाणक्य नीति ( १२/१७)

भावार्थ -   विदेश में निवास करते समय किसी व्यक्ति की विद्वत्ता
ही कठिन समय में उसके एक मित्र के समान सहायक होती है , तथा
गृहस्थ जीवन में किसी व्यक्ति की पत्नी उसके मित्र के समान होती
है |   किसी व्याधि  (बीमारी) से ग्रस्त होने की स्थिति में औषधि एक
मित्र के समान सहायक होती है , तथा मनुष्य की मृत्यु होने पर उसका
धार्मिक आचरण ही एक मित्र के समान परलोक उसका साथ देता है | 

Vidya mitram praveshe cha bhaaryaa mitram gruheshu cha.
Vyaadhitasyaushadham mitram  dharmo mitram mrutasya cha.

Vidya = wisdom, scholarship.    Mitram = friend.   Pravaase =
while living in a foreign country.   Cha = and.    Bhaaryaa =
wife.    Gruhshu = in the household.        Vyaadhih+ tasya +
aushadham.   Vyaadhi = illness, ailment.   Tasya =   its.
Aushadham = a medicine.    Dharmo = religious austerity.
Mrutasya = a dead person's.

i e.    While living in a foreign country, the wisdom and scholarship
a person posses, acts like a friend  for him in a difficult situation.
A  devoted wife is also like a friend for running the household, and
for a dead person the religious austerity he observed during his life
time acts as a friend in his afterlife.

Monday, 24 September 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita .


पत्रं नैव यदा करीलविटपे  दोषो वसन्तस्य किं
नोलूकोप्यवलोकते  यदि दिवा सूर्यस्य किं दूषणम्  |
वर्षा नैव पतन्ति चातकमुखे  मेघस्य किं दूषणं 
यत्पूर्वं  विधिना ललाट लिखितं तन्मार्जितुं कः क्षमः  ||
                                             - चाणक्य नीति (१२/६ )

भावार्थ -   यदि (कांटों से भरे हुए )करील के वृक्ष में पत्तियों नहीं होती है
तो उस में वसन्त ऋतु का क्या दोष है ?  और यदि उल्लू पक्षी को दिन के
प्रकाश में कुछ भी दिखाई  नहीं देता है तो इसमें सूर्य की  क्या गलती है ?
यदि वर्षा  का जल चातक के मुख में नहीं गिरता है तो इसमें मेघ (बादलों)
की  क्या त्रुटि (गलती) है  ?  विधाता द्वारा किसी के भाग्य में जो कुछ भी
पहले लिख दिया हो उसे मिटाने  की  क्षमता भला किस व्यक्ति में है ?
(अर्थात् कोई भी सक्षम नहीं है ) |

(संस्कृत साहित्य में यह  मान्यता है कि चातक पक्षी केवल तभी अपनी प्यास
बुझाता  है जब  आकाश में  'स्वाति ' नक्षत्र का उदय हुआ हो और वृष्टि हो रही हो
तथा वर्षा का जल सीधे उस के मुंह में पडे | अन्यथा वह प्यासा ही रह जाता है | इस
विचार के संदर्भ में अनेक 'अन्योक्तियां ' कवियों ने रची हैं जिन्हें 'चातकान्योक्ति '
कहा जाता है |)

Patram naiva yadaa kareelavitape  dosho vasantasya kim.
Nolookopyavalokate yadi divaa sooryasya kim dooshanam.
Varshaa naiva patanti chaatakamukhe meghasya kim dooshanam.
Yatpoorvam vidhinaa lalaata likhitam tanmaarjitum kah  kshamah.

Patram = leaves     Naiva =  not.   Yadaa = whenever.    Kareela=
the name of thorny tree.   Vitape = tree.    Dosho =  blame, defect.
Vasantasya = of the Spring Season.   Na + ulooko + api+ avalokate.
Na = not.   Ulooko = the Owl.    Api = even.    Avalokate =sees.
yadi = if.    Divaa = day time.    Sooryasya = of the Sun.   Kim = what.
Dooshanam = fault.    Varshaa = rain.     Patanti = falls.   Chaataka=
a bird about whom there is a legend that it drinks  rain water falling
on its throat during a specific time frame known as 'Svaati Nakshatra'
in Astronomy .  Mukhe = mouth.   Meghasya = of the cloud.   Yat =
that.      Poorvam = earlier.    Vidhinaa = by the destiny.       Lalaata=
forehead.    Likhitam = written.   tam +maarjitum.   Tam = to it.
Maarjitum = remove,  wipe.    Kah = who.    Kshamah = power,capacity.

i.e.    If no leaves grow in a 'kareel' tree ( which is full of thorns) , why
we should blame the Spring Season for it ?    If the Owl is not able to see
any thing during day time, why we should blame the Sun for it ?   If the
rain water does not enter in the mouth of the 'Chaatak' bird (and it remains
thirsty, why should the clouds be  at fault for this ?   Whatever Destiny has
written as one's fate over  his forehead , who is capable of  wiping it ?
 (That is no body is capable to do so and whatever is destined will happen )

Sunday, 23 September 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


साधूनां  दर्शनं  पुण्यं  तीर्थभूता  हि  साधवः  |
कालेन  फलते  तीर्थं  सद्यः साधुसमागमः   ||
                              - चाणक्य नीति ( १२/८ )

भावार्थ -   सन्त  महात्माओं के  दर्शन मात्र से ही पुण्य की प्राप्ति हो जाती
है  क्यों कि वे तीर्थों के समान पवित्र होते हैं |  तीर्थवास करने का सुपरिणाम
तो कुछ समय के पश्चात ही प्राप्त होता है , परन्तु  सन्तों की सत्सङ्गति
का सुपरिणाम तो तुरन्त ही प्राप्त  हो जाता है |
 
Saadhoonaam  darshanam punyam  teerthabhootaa hi saadhavah.
Kaalena phalate  teertham  sadyah  saadhusamaagamah.

Saadhoonaam = of saintly and virtuous persons.   Darshanam =
visiting, observing.    Punyam = auspicious, meritorious act.
Teerthabhoota = sanctified,    Hi = surely.   Saadhavah = saintly and
virtuous persons.   Kaalena = in the course of time.   Phalate =  be
fruitful, gives good results.     Teertham = a place of pilgrimage.
Sadyah = instantly.    Saadhusamaagama = association with saintly
persons.

i.e.    By visiting and associating with saintly and virtuous persons
people acquire 'punya' (religious merit), because saints are sanctified
like a place of pilgrimage.   While the good results of a pilgrimage
are visible in the course of time,  association with saintly persons gives
good results instantly.

Saturday, 22 September 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita,


सत्यं  माता  पिता ज्ञानं धर्मो  भ्राता  दया  सखा  |
शान्तिः पत्नी  क्षमा  पुत्रः  षडेते  मम  बान्धवाः  ||
                                    - चाणक्य नीति (१२/११)

भावार्थ  - सत्यवादिता (सच बोलना) मेरी माता के  समान है  और
ज्ञान मेरें पिता के समान है |  धार्मिक आचरण मेरे भाई के समान है
तथा  दया  की भावना  मेरे मित्र के समान है |  मानसिक शान्ति मेरी
पत्नी के तुल्य है तथा क्षमा की भावना मेरे पुत्र के समान है|  ये छहों
मेरे बन्धु बान्धव हैं |

Satyam maata pitaa gyaanam  dharmo bhraataa daya sakhaa.
Shantih  patnee  kshamaa  putrah shadete mama baandhavaah.

Satyam = truth.    Maataa = mother,    Pita  = father.  gyaanam=
knowledge.    Dharmo = religious austerity.   Bhraataa =brother.
Daya= compassion, mercy.      Sakhaa = friend.       Shaantih =
peace of mind.    Patnee =  wife.     Kshamaa = forgiveness
Putrah =  son.     Shadete = shad+ ete.     Shad =  six.     Ete =
 these.    Mama = my.    Baandhavaah = relatives, friends.

i.e.    Truthfulness is like my mother and  higher Knowledge is
like my father.  Religious austerity is like my brother and mercy
and compassion is like my friend.   Peace of mind is like my
wife and forgiveness is like my son.  All these six persons are
my close relatives and friends.

Friday, 14 September 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita..



अनालोक्य  व्ययं  कर्ता  अनाथः  कलहप्रियः |
आतुरः  सर्वक्षेत्रेषु  नरः  शीघ्रं  विनश्यति       ||
                             -  चाणक्य नीति (१२/१९ )
भावार्थ -  अत्यधिक तथा अनावश्यक व्यय करने वाला ,अनाथ
(जिस के माता पिता न हों )  झगडालू स्वभाव वाला , बीमार  तथा
जीवन के सभी क्षेत्रों मे समस्याओं से त्रस्त व्यक्ति का शीघ्र नाश
हो जाता है |

Anaalokya  vyayam  kartaa  anaathah  kalahapriyah.
Aaturah  sarva-kshetreshu  narah  sheeghram  vinashyati.

Anaalokya =  very unusual or unallowed.    Vyayam=
expenditure.    Kartaa = doer.    Anaathah = an orphan.
Kalahapriya = quarrelsome.      Aaturah = diseased or
sick, troubled.   Sarva = all.   Kshetreshu = departments.
Narah = a person.   Sheeghram = quickly.   Vinashyati =
perishes, destroyed.

i.e.    A person who is in the habit of incurring very high
and unnecessary expenditure, or is an orphan, or quarrelsome
by nature, suffers from a disease, or is troubled in all other
areas of life, perishes quickly.







Thursday, 13 September 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


मातृवत्परदारेषु  परदृव्येषु  लोष्ट्रवत्   |
आत्मवत्सर्वभूतेषु  यः  पश्यति  स  पण्डितः  ||
                              - चाणक्य नीति (१२/१४ )

भावार्थ  - जो व्यक्ति अन्य व्यक्तियों की पत्नियों को अपनी
माता के समान देखता (आदर करता) हो, उनकी  धन सम्पत्ति
को एक मिट्टी के ढेले के समान तुच्छ समझता हो , और  इस
संसार के समस्त जीवित प्राणियों के प्रति आत्मीयता (दया  की
भावना)रखता हो वही व्यक्ति वास्तव में  पण्डित ( विद्वान्  और
सज्जन ) कहलाने योग्य है |

Maatruvat-para-daareshu  para-druvyeshu  loshtravat.
Aatmavat-sarvabhooteshu  Yah  pashyati sa  Panditah.

Maatruvat = like a mother.    Para = others.   Daareshu=
wives.      Druvyeshu = money, wealth.       Loshtrvat  =
like a lump of mud.    Aatmavat = like one's own  soul.
Sarvabhooteshu = all living beings,   Yah = whosoever.
Pashyati = views, considers.      Sa = he.      Panditah =
a learned and virtuous person.

i.e.    A person who views the  wives of other persons
like his mother,  the wealth of others like a lump of clay,
and treats all the livings on this Earth  with compassion
like himself, is in real sense a learned and virtuous person.

Wednesday, 12 September 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


निमन्त्रणोत्सवा  विप्राः गावो  नवतृणोत्सवाः |
पत्युत्साहयुता  भार्या  अहं  कृष्णचरणोत्सवः  ||
                                - चाणक्य नीति (१२/१३ )

भावार्थ -   गृहस्थों  के घरों में कर्मकाण्ड करने वाले ब्राह्मणों को
जब भी कोई निमन्त्रण प्राप्त होता है तो वह उनके लिये एक उत्सव
के समान होता है , तथा गायों को जब खाने के लिये हरी घास मिल
जाती है तो वही उनके लिये  एक उत्सव के समान है |  एक पति के
 लिये परिवार में उत्सव का वातावरण तब होता है जब उसकी पत्नी
प्रसन्नचित्त और उत्साह से परिपूर्ण हो | परन्तु मेरे लिये तो भगवान
श्रीकृष्ण के चरणकमलों की सेवा करना ही एक उत्सव में सम्मिलित
होने के  समान है |

Nimantranotsavaa  vipraah  gaavo  navatrunotsavaahs.
Patyutsaahayutaa   bhaaryaa  aham  krushnacharanotsavah.

Nimantranotsava = nimantrana + utsava.       Nimantrana=
invitation.   Utsavaa = festival, merriment.    Vipraah=
domestic priests performing various religious cermonies.
Gaavo =  cows.   Nava +truna+utsavaah.     Nava =  new.
Truna = grass.    Pati +utsaaha+ yutaa.    Pati = husband.
Utsaaha= energy, cheerfulness     Yutaa = endowed with. 
Bhaaryaa=wife.  Aham = I am.   Krishna+ charana+ utsava. 
Krishnacharana= at the feet of Lord Krishna.

i.e.    Whenever domestic priests get any invitation for performing
any religious ritual , it is an occasion for merriment for them, and
whenever cows get fresh green grass as their fodder, it is also like
a festival for them. For a husband there is always an environment of
festivity in the household if his wife is endowed with cheerfulness
and energy.  But in my case  being at the feet of Lord Krishna and
serving him is like a festival for me.



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Tuesday, 11 September 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अनित्यानि  शरीराणि  विभवो  नैव  शाश्वतः    |
नित्यं  संनिहितो  मृत्युः  कर्तव्यो  धर्मसङ्ग्रहः ||
                                 - चाणक्य नीति (१२/१२ )

भावार्थ -   इस संसार में समस्त  प्राणियों  का जीवन क्षणिक
होता है तथा धन संपत्ति और समृद्धि भी शाश्वत (सदा बनी
रहने वाली ) नहीं होती है |  मृत्यु भी हर समय उनके प्राणहरण
के लिये उद्यत रहती है | ऐसी स्थिति में मनुष्यों  का कर्तव्य है
कि वह धर्म के सिद्धान्तों को अपना कर उनका पालन करे |

(धर्म के दस  सिद्धान्तों का  वर्णन इस सुभाषित में किया गया है -
        धृतिः क्षमा दमोSस्तेयं  शौचमिन्द्रियनिग्रहः |
        धीर्विद्या सत्यमक्रोधो  दशकं  धर्म लक्षणम् ||
अर्थात धैर्य , क्षमा, दम, चोरी न करना , स्वच्छता , इन्द्रिय निग्रह ,
 बुद्धिमत्ता , विद्या , सत्यवादिता , क्रोध न करना , ये दस धर्म
के लक्षण हैं |)

Anityaani shareeraani  vibhavo  naiva  shaashvatah.
Nityam smnihito  mrutyuh  kartavyo  dharmasangrahh.

Anityaani = temporary, transient.   Shareeraani = bodies
of all living beings.    Vibhavo = Wealth, status, power.
Naiva = no,  not.    Shaashvatah = eternal, permanent.
Nityam = daily.   Smnihito = present, prepared.  Mrutyuh=
death .     Kartavyo = duty.   Dharma =propriety of conduct,
religious austerity .   Sangraha = acquisition .

i.e.     All living beings in this World are perishable , and
their wealth, status and power is also not eternal.  Death is
always present there to take away their life .  So, it is the
duty of every one to observe religious austerity.

(What is religious austerity has been defined in another
Subhashita,which says that there are 10  attributes of Religion
namely (i) patience (ii) forgiveness (iii) punishing some one for
his wrongdoings ,(iv) not indulging in theft (v) keeping the body
clean (vi) control over sensory organs (vii) intelligence   (viii)
knowledge (ix) truthfulness and (x) not being angry.)

Monday, 10 September 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


धनधान्यप्रयोगेषु   विद्यासङ्ग्रहणे  तथा  ||
आहारे  व्यवहारे  च  त्यक्तलज्जः  सुखी भवेत्  ||
                                   - चाणक्य नीति (१२/२१)

भावार्थ - धन संपत्ति अर्जित करते समय तथा उसके संरक्षण मे ,
कृषि से  सम्बन्धित विभिन्न कार्यों को करते समय ,विद्या अर्जित
करते समय  तथा अपने आहार (भोजन ) तथा  अन्य  व्यक्तियों के
साथ व्यवहार करते समय लज्जा का त्याग कर सुखपूर्वक जीवन
यापन करना चाहिये |
(उपर्युक्त कार्यो और विषयों में किसी कारण से  असहमत होते हुए भी
यदि लज्जा वश सहमति दे दी जाय तो उसके दुष्परिणाम भुगतने पडते
हैं |  उदाहरणार्थ  किसी शाकाहारी व्यक्ति को यदि मांस परोस दिया जाय
तो उसे स्पष्ट शब्दों में उस भोजन को खाने से इनकार कर देना चाहिये |
एक विद्यार्थी को यदि शिक्षक द्वारा बताये गये विषय पर कोई शङ्का
हो  तो उसे लज्जा का त्याग कर शिक्षक से पुनः समझाने का अनुरोध करना
चाहिये | )

Dhana-dhaaanya-prayogeshu  vidyaa-sangrahane tathaa.
Aahaare  vyavahaare  cha  tyakta-lajjah  sukhee  bhavet.

Dhana = wealth.   Dhaanya = foodgrains.   Prayogeshu =
applicationss, experiments.    Vidyaa = knowledge.
Sangrahne = acquisition.    tathaa = so also.   Aahaare =
diet.    Vyavahaare = conduct, dealing with others.  Cha =
and.    Tyakt = by abandoning.    Lajjah = shyness.  Sukhee=
happy.    Bhavet = become. 

i.e.       One should never be shy in the matters of  acquisition
of wealth, adoption of procedures of agricultural production, 
while acquiring knowledge from a teacher,  eating food,  and
dealing with other persons, and live a happy life.

(If  a person while disagreeing with the situation relating to the
matters in the above Subhashita, does not express his disagreement
due to shyness, the results are  against his interests.  For instance
if a vegetarian person is served  non-vegetarian food, without being
shy he should refuse to eat that food.  Similarly if a student has not
understood the subject taught to him by his teacher,he should tell
his teacher accordingly and request him to explain the matter again )

Sunday, 9 September 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


न वेत्ति यो  यस्य गुणप्रकर्षं
              स  तं  सदा निन्दति नात्र चित्रम् |
यथा किरातीकरिकुम्भलब्धां
               मुक्तां परित्यज्य विभर्ति गुञ्जाम्  ||
                                 - चाणक्य नीति (११/८ )

भावार्थ -   यदि किसी व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति के विशेष
गुणों का ज्ञान नहीं होता है तो यदि वह उस व्यक्ति की निन्दा
करता हो  तो इस में कोई आश्चर्य की बात नहीं है | उदाहरण स्वरूप
वनों में निवास करने वाली एक भील स्त्री को यदि गजमौक्तिक
(हाथी के कपाल में पाया जाने वाला मूल्यवान मोती ) पडा हुआ
मिलता है तो वह उसे त्याग  कर वन में उगे हुए  गुञ्जा वृक्ष के 
चमकीले बीजों का  चयन  (अपने  गले की माला बनाने के लिये)
करती है |

Na  vetti yo yasya  gunaprakarsham
Sa tam sadaa nindati naatra chitram.
Yathaa kiraatee  karikumbhalabdhaam.
Mauktaam parityjya  vibharti gunjaam.

Na = not.   Vetti = experiences.   Yo = whosoever.  Yasya =
whose.   Guna= virtue, quality.   Prakarsha = excellence,
greatness.    Sa = he.   Tam = those.   Sadaa = always.
Nindati = condemns, ridicules.   Naatra = na + atra.   Atra=
here.   pea  Chitram = surprising.     Yathaa = for instance.
Kiratee = a tribal woman.   Kari + kumbha+labdhvaam.
Kari = an elephant.    Kumbha = upper part of the forehead
of an elephant (legend is that objects like pearls are found
there which are called 'gajamauktika' )  Labdhaam = found,
received.    Mauktikam = a pearl.  Parityajya = discarding.
Vibharti = shining brightly.   Gunjaam = berry of Rosary pea.

i.e.    If  a person  unaware of the special qualities of an another
person condemns or ridicules him, it is not at all surprising.  For
instance a tribal woman residing in a forest on finding a precious
'Gajamauktik' (a pearl out of the forehead of an Elephant )discards
it and rather prefers the ordinary colourful berries of Rosary Pea
Tree (for making an ornament out of them) .

Saturday, 8 September 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अन्तर्गतमलो  दुष्टस्तीर्थस्नानशतैरापि  |
न शुध्यति  यथा भाण्डं  सुराया दाहितं च सत्  ||
                                 - चाणक्य नीति ( ११/७ )

भावार्थ -   एक दुष्ट व्यक्ति के  मन में जो दुर्भावना रूपी मैल छुपा
रहता है वह किसी तीर्थस्थान में सैकडों  बार  स्नान करने से भी उसी
प्रकार नहीं धुळ पाता है , जिस प्रकार किसी बर्तन में रखी हुई शराब को
आग में तपा कर उसे शुद्ध कर  गुणकारी नहीं बनाया जा सकता है |

(अनेक वस्तुओं और पदार्थों पर लगे हुए मैल या अशुद्धि को जल से धो
कर या आग में  तपा कर शुद्ध कर लिया जाता है | इस सुभाषित में भी
एक दुष्ट व्यक्ति की मनोवृत्ति तथा सुरा (शराब) की तुलना द्वारा यही
प्रतिपादित किया गया है कि दोनों के दोषों को उपर्युक्त साधनों से दूर
नहीं किया जा सकता है |  )

 Antargata-malo  dushtasteerthasnaanashatairapi.
Na  shudhyati  yathaa bhaandam  suraayaa daahitam cha sat,

Antargata = internal,hidden   Malo = impurity, filth. 
Dushtah + teertha +snaan+shataih+api.    Dushtah = a wicked
person.   Teertha = a place for a pilgrimage     Snaana =taking
a bath.    Shataaih  + one hundred times.   Api = even.   Na =not.
Shudhyati = becomes pure.   Yathaa = for instance.   Bhaandam=
box, container.   Suraayaa = liquor    Daahitam = heated.
Cha =  and.     Sat = virtuous,  pure.

i.e.    Even if a wicked person bathes hundreds of times in the holy
waters of a pilgrimage centre. the evil thoughts in his mind can not 
be washed out (removed) from his mind just like a pot containing   
liquor can not become pure by heating it on fire.

(Washing with water or heating an impure object are the well known
methods of removing the impurities from various objects. Using the
simile of liquor for the evil thoughts of a wicked person, the author has
propagated that  it is not possible to remove the shortcomings in both
the above cases.)




Friday, 7 September 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.



कामक्रोधौ  तथा  लोभं  स्वादुश्रङ्गारकौतुके  |
अतिनिद्रातिसेवे  च  विद्यार्थी ह्यष्ट  वर्जयेत्   |
                                 - चाणक्य नीति (११/१० )

भावार्थ -   एक  आदर्श विद्यार्थी को कामवासना, क्रोध,  लोभ, 
चटोरापन ,श्रङ्गार  (सौन्दर्य प्रसाधनों ,सुन्दर वस्त्रों आभूषणों 
के द्वारा शरीर को सजाना)आमोद प्रमोद के कार्यक्रमों में लिप्त 
रहना , अति निद्रा , और  किसी भी प्रकार के व्यसन , इन आठ 
दुर्गुणों  से सदैव दूर रहना चाहिये |

kaamakrodho  tathaa  lobham  svaadu-shrangaar-kautuke.
Atinidraatiseve  cha  vidyaarthee hyashta  varjayet.

Kaama = erotic love.   Krodho = anger.   Tathaa = so also.
Lobham = greed.    Svaadu =fondness for exotic food.
Shrangaar = beautifying oneself  with cosmetics ,ornaments
and fine clothes.   Kautuke = shows, festivals.    Atinidraa=
excessive sleep.   Atiseve = excessive use or addiction for
any thing.    Cha = and.    Vidyaarthee = a student .Hyashta=
hi +ashta.   Hi = surely.    Ashta = eight .   Varjayet = should
be given up.

i.e.    An ideal student should give up these eight bad habits, 
namely (i) erotic love (ii)  anger (iii)  greed  (iv) fondness for
exotic food (v) beautifying himself by using various cosmetics, 
ornaments and beautiful clothes  (vi)  participating in shows 
and festivals  (vii) excessive sleep, and (viii)  addiction of any
kind.

Thursday, 6 September 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.



न  दुर्जनः साधुदशामुपैति  बहुप्रकारैरपि  शिक्ष्यमाणः   |
आमूलसिक्तः पयसा घृतेन न निम्बवृक्षो मधुरत्वमेति ||
                                               - चाणक्य नीति (११/६ )

भावार्थ -       जिस प्रकार नीम  के वृक्ष को उसकी जड में  दूध और घी से
सींचने पर भी उसमें मधुरत्व (मिठास ) नहीं उत्पन्न होता  है , उसी प्रकार 
दुष्ट व्यक्तियों को भी सज्जन नहीं बनाया जा सकता है चाहे उन्हें  अनेक 
प्रकार से  शिक्षित करने का कितना ही प्रयत्न क्यों  न किया जाय  | 

(इस सुभाषित में दुष्ट व्यक्तियों की तुलना एक नीम  के वृक्ष से कर यह 
तथ्य प्रतिपादित किया गया है कि उनके दुष्ट स्वभाव को अनेक प्रयत्नों से 
भी परिवर्तित नहीं किया जा सकता है | ) 

Na durjanah  saadhudashaamupaiti bahuprairapi shikshyamaanah,.
Aamoolasiktah payasaa ghrutena  na nimbavruksho madhuratvameti.

Na= not.   Durjanah = a wicked person.    Saadhu +dashaam+upaiti.
Saadhu dasham = nobleness.    Upaiti = acquires.   Bahuprakaaraih +
api.    Bahuprakaareaih = by many various means.         Api = even.
Shikshyamaanah = taught.   Aamoola = right from the root.   Siktah=
watered.   Payasaa = with milk .   Ghrutena = with ghee.   Nimba  -
Neem.   Vruksho = tree.     Madhuratvam + eti.       Madhuratvam =
sweeetness.    Eti = acquires.

i.e.     Just like a Neem tree , which ,even if it is watered at its root with 
milk and ghee does not acquire sweetness , in the same manner a wicked 
person also can not be transformed into a noble person , no matter how 
much different methods are adopted to educate him.

(In this Subhashita a wicked person is compared with a Neem tree to
emphasize the fact that inherent qualities and shortcomings in any thing
can not be changed even by adopting various means.)


Wednesday, 5 September 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita .

गृहासक्तस्य नो  विद्या  नो दया मांसभोजिनः  |
द्रव्यलुब्धस्य  नो  सत्यं  स्त्रैणस्य  न  पवित्रता  ||
                                  -  चाणक्य  नीति (११/५ )

भावार्थ -      अपने परिवार  में अत्यधिक आसक्त व्यक्ति विद्वान
नहीं होते हैं  तथा मांसाहारी मनुष्यों और प्राणियों में दया  की भावना
नहीं होती है |   धन के लोभी व्यक्ति सत्यवादी नहीं होते है तथा  निम्न
स्तर की स्त्रियों के संपर्क में रहने वाले और उन्हीं के समान हाव भाव
रखने वाले पुरुषों के विचारों और व्यवहार में पवित्रता नहीं होती  है  |

Ghruhaasaktasya  no vidyaa  no dayaa  maamsabhojinah.
dravyalubdhasya  no  satyam  strainasya  na  pavitrataa.

ghruhaasaktasya = Gruha + aasaktsya.    Gruha =home,
family    Aasaktasya =a person very fond of .   No = not.     
Vidyaa = knowledge, learning.    Dayaa  = compassion,
mercy.      Maamsabhojinah = carnivorous, flash eaters. 
Dravya =money   Lubdhasya = greedy person's.  Satyam =
truth.    Strainasya = a person having excessive fondness
for woman.   Na = not.    Pavitrataa =cleanliness, purity.

i.e.     Persons who  are very fond of  their home and family
are never learned persons, and persons and animals who are
carnivorous (flash eaters) are merciless and  cruel.  Persons
who are greedy for money never speaks  the  truth, and those
who have excessive fondness for women.do not maintain the
cleanliness of the body and purity of thoughts.






Tuesday, 4 September 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


शोकेन  रोगाः  वर्धन्ते  पयसा  वर्धते  तनुः  |
घृतेन  वर्धते  वीर्यं  मांसान्मांसं  प्रवर्धते      ||
                            - चाणक्य नीति (१०/२० )

भावार्थ  -  शोक (दुःख ) होने की स्थिति में शरीर में अनेक प्रकार के रोगों
की उत्पत्ति और वृद्धि हो जाती है |  दूध का सेवन करने से शरीर हृष्ट पुष्ट 
होता है तथा घृत (घी) का सेवन करने से शारीरिक बल और वीर्य  (संतान 
उत्पन्न करने की शक्ति )में वृद्धि हो जाती  है  तथा मांस का सेवन करने से 
तो शरीर में मांस की ही तेजी से वृद्धि होती है |  
(प्रस्तुत सुभाषित में विभिन्न खाद्य पदार्थों के सेवन द्वारा शरीर में होने 
वाले प्रभावों का वर्णन किया गया है |)

 Shokena  rogaah  vardhante  payasaa  vardhate  tanuh.
Ghrutena  vardhate  veeryam   maamsaanmaamsm  pravardhate.

Shokena = by grief.    Rogaah = diseases.   Vardhante = grow.
Payasaa = by consuming milk.    Tanuh = body.   Ghrutena =
by consuming Ghee (cream).    Veeryam = energy, virility.
Maamsaan + maamsam .    Maamsaan = by consuming meat.
Maamsam = flesh.   Pravardhate =  pra + vardhate    Pra =  a
prefix to a word denoting more or best .   Pravardhate = increase
in body mass and muscles.

i.e.   A grieving person is afflicted by many diseases. By consuming
milk the human body grows uniformly and by consuming ghee the
virility and the strength of a person increases.  By consuming meat
the body mass and muscles of a person grow faster.

(In this Subhashita the effect of  grief and consumption of various food
items on the human body have been discussed .)

Monday, 3 September 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अन्नाद्द्शगुणं  पिष्टं  पिष्टाद्दशगुणं  पयः   |
पयसोSष्टगुणं    मांसो  मांसाद्दशगुणं  घृतं  ||
                            - चाणक्य नीति (१०/१९ )

भावार्थ -  पकाये हुए भोजन  (चावल) की तुलना में पिष्ट (गुंधे  हुए
आटे) से बने हुए भोज्य पदार्थ  दस गुणा अधिक पौष्टिक होते  हैं ,
तथा पिष्ट की तुलना में दूध दस गुणा अधिक पौष्टिक होता है | दूध
की तुलना मे मांस आठ गुणा अधिक पौष्टिक होता है तथा मांस की
तुलना में घृत (घी) दश गुणा  अधिक पौष्टिक होता है |

(प्रस्तुत सुभाषित में विभिन्न भोज्य पदार्थों  की  पौष्टिकता की तुलना
की गयी है | )

Annaaddashagunam  pishtam  pishtaaddashagunam payah.
Payasoshtagunam  maaamso  maamsaaddashgunam ghrutam.

Annaat + dashgunam.    Annat = cooked and ready to eat rice.
Dashgunam = ten times.    Pishtam = flour.    Pishtaat + dasha-
gunam,       Pishtaat = compared to flour.        Payah = miilk,
Payaso =  compared to milk.     Ashtagunam =  eight  times.
Mamso =  meat, flesh.   Maamsaat +dashagunam,   Maamsaat=
compared to meat,    Ghrutam = Ghee, Cream.

i.e.    Compared to cooked rice food items made out of kneaded
flour are ten times more nutritious, and compared to food items
of flour milk is ten times more nutritious.   Meat is  eight times
more nutritious than milk,  but Ghee (milk cream ) is ten times
more nutritious than meat.

(In this Subhashita nutritious value of various food items as been
compared with each other.  )

Sunday, 2 September 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


एकवृक्षसमारूढा  नानावर्णा  विहङ्गमाः  |
प्रभाते दिक्षु दशसु  यान्ति का तत्र वेदना  ||
                         - चाणक्य नीति (१०/१५)

भावार्थ -   विभिन्न  वर्णो  (रंगों और प्रजातियों ) के पक्षी एक
बडे वृक्ष में  रात्रि में विश्राम कर सूर्योदय होने पर दशों दिशाओं
के लिये प्रस्थान कर जाते हैं तो भला इसमें किसी को कष्ट हुआ
होगा  ?

(प्रस्तुत सुभाषित में  विभिन्न प्रजातियों के पक्षियों की आपस में
मिलजुल कर रहने की प्रवृत्ति का उदाहरण दे कर उसके विपरीत
मनुष्यों में  एकाधिकार और असहयोग की भावना के ऊपर कटाक्ष
किया गया है  | )

Eka-vruksha-samaaroodhaa  nanaa-varnaa vihangamaah,
Prabhaate dikshu  dashasu  yaanti  kaa tatra  vdanaa,

Eka = one.   Vruksha = tree.    Samaaroodhaa = ascended.
Naanaa = different.       Varna = colours and species.
Vihangamaah = flying birds.     Prabhaaate = day break,
dawn.    Dikshu =directions.    Dashashu =  ten.   Yaanti =
Go.   Kaa = what ?   Tatra =  there.  Vedanaa =pain, agony.

i.e.     Birds of different species and colours  ascend on a big
tree as their  shelter during the night and  next day at the day
break they again proceed in different directions.  So, do they
face any pain or agony during their stay there  ?

(In this Subhashita by giving the example of  birds of different
species spending their nights peacefully on a tree , indirectly
leers at the tendency among people wanting exclusive facilities
for them and not sharing them with others .)



Saturday, 1 September 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


माता  च  कमला  देवी  पिता  देवो  जनार्दनः   |
बान्धवा  विष्णुभक्ताश्च  स्वदेशो  भुवनत्रयं   |
                                - चाणक्य नीति (१०/१४)

भावार्थ -   मेरे लिये तो मेरी माता देवी महालक्ष्मी के समान है
और मेरे पिता  जी  भगवान  विष्णु के समान हैं | इसी  क्रम में
मेरे निकट सम्बन्धी भी मेरे लिये विष्णु भगवान के भक्तों के
समान हैं तथा मेरा देश मेरे लिये त्रिभुवन  (पृथ्वी, पितृलोक,
और देवलोक ) के समान है |

(इस सुभाषित के द्वारा यह शिक्षा दी गई है कि हमें  अपने माता
पिता, निकट सम्बन्धियों   तथा जिस देश में हम रहते हैं इन सब
के प्रति कैसा व्यवहार करना चाहिये  | )

Maataa  cha  Kamala Devi  pita  devo  Janardanah.
Baandhavaa  Vishnubhaktaascha svadesho bhuvanatrayam.

Maataa- mother.   Cha = and.   Kamalaa Devi = goddess
Lakshmi.    Pitaa - father.   Devo =  God.   Janaardanah = a
name of the God Vishnu .     Baandhavaa = close relatives.
Vishnubhaktaashcha = Vishnou+ bhaktaah +  cha.   Bhaktaah=
worshippers. devotees.   Svadesho = one's  own country.
Bhuvanatraya = The three Worlds i.e. the physical world in
which we live,  the world of our ancestors, and the light filled
world of the Gods.

i,e,   To me my mother is like the Goddess Mahalakshmi and my
father is like God Vishnu (the consort of Goddess Mahalakshmi),
my close relatives are like the devotees of  God Vishnu, and the
country where I live is like  the three Worlds ( the Earth, the World
of our ancestors and the World of Gods).

(This Subhashita teaches us that we should treat with respect our
parents ,close  relatives and the World we live in.)