Monday, 26 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


पञ्चाग्नयो  मनुष्येण  परिचर्याः  प्रयत्नतः  |
पितामाताग्निरात्मा  च  गुरुश्च  भरतर्षभः   ||
                                                  -विदुरनीति

भावार्थ -     हे राजाओं में श्रेष्ठ धृतराष्ट्र  !   पिता, माता, अग्नि ,
आत्मा तथा गुरु, ये पांचो मिल कर पञ्चाग्नि कहे जाते हैं  और
मनुष्य का यह परम कर्तव्य है कि वह विशेष यत्नपूर्वक इन की
सेवा करे  |

Panchaagnayo  manushyena  paricharyo   prayatnatah.
Pitaamaataagniraatmaa  cha  gurushcha  bharatarshabhah.

Pancha + agnayo.    Pancha = five.    Agnayo = fires.
Manushyena = by a man.     Paricharyo = render service.
Pratnayatah = with special care.   Pita +Maata+Agnih +
Aatmaa,   cha = and.   Pita = father.     Maata =  mother.
Agnih   = fire.      Aatmaa = self.    Guruh+ cha.   Guruh=
the Teacher.   Bharatarshabhah = the best prince of  Bhaarat
i.e. India  (here reference is to king Dhrutaraashtra.) 

i,e,   O King Dhrutaraashtra !   Father, Mother, Fire, one's  own
Self and a Guru (teacher)  these five are called 'Panchaagni', and
it is the foremost duty of a person to render service to them with
special care.

Sunday, 25 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashit


चत्वारि  ते  तात  गृहे  वसन्तु
श्रियाभिजुष्टस्य  गृहस्थधर्मे  |
वृद्धो ज्ञातिरवसन्नः  कुलीनः
सखा दरिद्रो  भगिनी चानपत्या  ||- विदुर नीति

भावार्थ -    हे तात !   धन धान्य से भरपूर एक समृद्ध गृहस्थ का
यह कर्तव्य है कि वह इन चार प्रकार के व्यक्तियों को अवश्य शरण
दे  - (१) एक वृद्ध बान्धव (रिश्तेदार)  (२) एक कुलीन दुःखी व्यक्ति
(३) एक दरिद्र मित्र  तथा (४) सन्तानहीन बहिन  |

Chatvaari te taat gruhe vasantu
Shriyaabhijushasya  gruhasthadharme.
Vruddho  gyaatiravasannah  kuleenah
Sakhaa daridro  bhagini chaanapatyaa.

Chatvaari = four.   Te = these.   Taata = a term of affection
for addressing a senior or junior person, father.   Gruhe=
in the household.    Vasantu = should reside.    Shriya +
abhijushtasya.    Shriya = prosperity.    Abhijushtasya =
possessed of.     Grusthadharme = householder's  duty.
Vruddho = aged person.   Gyaatih + avasannah.   Gyaatih=
a relative.     avasannah = distresssed.    Kuleena= noble
Sakhaa = a friend.    Daridro = poor.    Bhaginee = sister.
Cha+ anapatyaa.    Anapatyaa= childless.

i.e.    It is the duty of a prosperous housholder that he should
support these four types of persons , namely (i)  an aged close
relative  (ii)  a noble distressed person  (iii) a poor friend and
(iv)  his childless sister.

Saturday, 24 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अर्थागमो  नित्यमरोगिता  च                     
प्रिया  च  भार्या  प्रियवादिनी  च  |
वश्यस्य  पुत्रो Sर्थकरी  च  विद्या
षड्  जीवलोकस्य  सुखानि राजन्  || = विदुर नीति

भावार्थ -    हे राजन्  !    इस पृथ्वी में  छः प्रकार के सुख कहे 
गये  हैं :-   (१) नियमित रूप से धन की प्राप्ति  (२)   निरोग
शरीर  (३)   प्रेम करने  वाली पत्नी   (४) मृदुभाषी पत्नी   (५)
आज्ञाकारी पुत्र  तथा  (६ )  ऐसी विद्या में निपुणता जो धन
संपत्ति प्राप्त करने में सहायक हो |


Arthaagamo  nityamarogitaa  cha.
Priyaa  Cha  Bhaaryaa  Priyavaadinee  cha.
Vashyasya  putrorthakaree  cha  visyaa.
Shad  jeevalokasya  sukhaani  raajan.

Artha+ aagamo.    Artha =wealth.   Aagamo = arrival.
Nityam +arogitaa.    Nityam = always.   Arogitaa =
healthiness.   Priyaa =beloved.   Bhaaryaa = wife.
Priyavaadinee = speaking  kindly.    Cha = and.
Vashyasya = obedient.   Putro + arthakaree,    Put 
the Son.     Arthakaree = profitable.      Vidyaa =
Knowledge.  Shad = six.  Jeevalokasya = the Earrh's
Sukhaani = happiness .    Raajan - O king.

i.e.    O King !   There are six means of enjoying a happy
lifestyle  in this World , namely (i)  regular source of income,
(ii) always having good health  (iii) a loving wife   (iv) a soft
speaking wife  (v)  an obedient son, and  (vi)  and knowledge
or expertise in a profession which yields regular income.




                                   

Thursday, 22 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita..

त्रिविधं  नरकस्येदं  द्वारं  नाशनमात्मनः  |
कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्  त्रयं त्यजेत् ||
                                                     - विदुर नीति

भावार्थ -   कामवासना , क्रोध्, तथा लोभ ये  दुर्गुण नरक के तीन
द्वारों के समान  हैं और मनुष्य की आत्मा का नाश कर देते हैं |
अतः इन तीनों दुर्गुणों को  त्याग देना चाहिये |

(इन तीनों  दुष्प्रवृत्तियों के कारण मनुष्य का जीवन नारकीय
हो जाता है | अतः इस सुभाषित के माध्यम  से इन दुर्गुणों को
त्याग देने का परामर्श दिया गया  है | )

Trividham  narakasyedam  dvaaram  naashanamaatmanah.
Kaamah  krodhastathaa  lobhastasmaadetat  trayam tyajet.

Trividham = threefold.   Narakasya + idam    Narakasya =
of the Hell.          Idam =these.          Dvaaram = doors.
 Naashanam+ aatmanah.        Naashanam = destruction.
Aatmanah= self, soul.   Kaamah = Desire, sexual urge.
Krodhah = anger.   Lobhah + tasmaat + etat.    Lobhah=
Greed.   Tasmaat = therefore.   Etat = these.   Trayam =
these three.   Tyajet =shun,  avoid.

i.e.     Uncontrolled sexual urge, anger and  greed,  these
vices are like three doors of the Hell and destroy the soul
of a person indulging in these vices.  Therefore, people
should shun these three vices.

(If a person indulges in these three vices his life becomes
like living in the Hell.  Through this Subhashita the author
has warned not to do so.)

Wednesday, 21 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


सोSस्य  दोषो  न  मन्तव्यः  क्षमा हि  परमं  बलं  |
क्षमा  गुणो  अशक्तानां  शक्तानां  भूषणं  क्षमा  ||
                                                    -  विदुर नीति 

भावार्थ -  हमें किसी व्यक्ति में क्षमा करने  की भावना को उसका दोष
नहीं मानना चाहिये क्यों कि क्षमा करना परम् शक्ति का प्रतीक है |
जो व्यक्ति अशक्त (शक्तिहीन ) होते हैं तो यह उनका एक गुण है  तथा
शक्तिशाली व्यक्तियों के लिये उनकी शोभा बढाने के लिये एक आभूषण
के समान है |
(एक अशक्त व्यक्ति यदि क्षमाशील न  हो तो उसे सदैव अन्य व्यक्तियों
से व्यवहार करने में कठिनाई होती है और उसे विनम्र और क्षमाशील हो कर
ही अपना कार्य सिद्ध करना पडता है |  इसके विपरीत एक शक्तिशाली व्यक्ति
यदि किसी त्रुटि को क्षमा करता है तो यह उसकी महानता कहलाती  है )

Sosya dosho  na mantavyah  kshamaa hi  paramam balam.
Kshamaa guno  ashaktaanaam  shaktaanaam bhooshanam kshmaa,

Sosya = sah +asya.   Sah = its.   Asya = this.    Dosho= shortcoming.
defcct.   Na =not,    Mantavyo  = to be considered as.     Kshmaa=
forgiveness.     Hi = surely.    Paramam = supreme.   Balam = power.
Guno = virtue.    Ashaktaanaam = those who are not powerful.
Shaktaanaam = those who are powerful.   Bhooshaam = adornment,
embellishment.

i.e.    We should not treat the forgiving nature of a person as his defect
or a shortcoming , because forgiveness is the supreme power.  It is a
virtue among the persons who are not powerful and is an adornment
or embellishment in the personality of a powerful person.

(If the powerless persons  are not of forgiving nature, they have to face
many hardships while dealing with others. On the other hand if a powerful
person pardons a person it is treated as his magnanimity. )


Tuesday, 20 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


ईर्ष्यी   घृणि  न  संतुष्टः  क्रोधिनो  नित्यशङ्कितः  |
परभाग्योपजीवी  च  षडेते  नित्य  दुःखिता            ||
                                                        -  विदुर नीति

भावार्थ -   अन्य व्यक्तियों से घृणा करने वाला , ईर्ष्या करने  वाला,
सदा असन्तुष्ट   रहने वाला ,  क्रोधी,  सदैव शङ्का करने  वाला ,
दूसरों पर आश्रित रहने वाला, ऐसे छः प्रकार के व्यक्ति  नित्य (सदैव)
दुःखी  रहते हैं  |

Eershyee  ghruni  na  santushtah  krodhino  nityashankitah.
Parbhaagyopajeevee   cha   shadete   nitya   duhkhitaa.

Eershyee = an envious person.    Ghrunee = angry, abusive.
Na = not.    Santusshtah =  contented  .  Krodhino = angry.
Nitya= daily , always.    Shankitah = distrustful, uncertain
Parabhaagyopajeevee = parabhaagya + upajeevee.
Parabhaagya = another's wealth and prosperity,  upajeevee =
living on or dependent upon.   Cha = and.    Shadete = these
six types of persons.    Nitya = daily, always.  Duhkhitaa =
unhappy.

i.e.    An envious person, an abusive person,  a discontented
person, an  angry person,  a distrustful or uncertain person,
and  a person living or dependent upon another's wealth and
property, these six types of persons always remain unhappy
in their life.

Monday, 19 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.



अनाहूतः  प्रविशति  अपृष्टो  बहु  भाषते  |
अविश्वस्ते  विश्वसति मूढचेता  नराधमः ||
                                           -  विदुर नीति 

भावार्थ -         जो व्यक्ति बिना  बुलाये  आ धमके और
कुछ कहने की आज्ञा  न दिये जाने पर भी बहुत  अनर्गल
बातें करता हो , और अविश्वसनीय व्यक्तियों के ऊपर पर
विश्वास करता हो. ऐसा व्यक्ति  मूर्ख और दुष्ट प्रकृति का
व्यक्ति कहलाता है |

Anaahootah  pravishati  aprushto  bahu  bhashate.
Avishvaste  vishvasati  nmoodhacheta  naraadhamah.

Anaahootah = without being invited.    Pravishati =
enters.    Aprushto = not being asked.   Bahu  =
too much.    Bhaashate = speak.       Avishvaste =
A person not to be trusted.     Vishvasati =  trusts
Moodhachetaa = A silly and foolish person.   
Naradham =  A  wretched  and vile person.

i.e.    A  person ,who without being invited forces his
entry,  without being permitted indulges in loose talk ,
and has the tendency of trusting untrustworthy persons.
is surely a foolish and wretched person.

Sunday, 18 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अमित्रं कुरुते मित्रं मित्रं द्वेष्टि हिनस्ति  च |
कर्म चारभते  दुष्टं  तमाहुर्मूढचेतसम्        ||
                                              -  विदुर नीति

भावार्थ  -   जो व्यक्ति  मित्र बनाने के लिये अयोग्य व्यक्ति
को अपना मित्र बनाता है तथा मित्र बनाने के के योग्य व्यक्तियों
से  द्वेष करता है  और ऐसे कर्म करता है जिस से उन  की  हानि
हो या उन का नाश हो जाय,  ऐसे व्यक्ति को मूर्ख कहा  जाता है |

Amitram  kurute mitram  mitram dveshti hinasti cha.
karma chaarabhate  dushtam tamaahurmoodhachetasam.

Amitram = not a friend.    Kurute =makes    Mitram =
a friend.   Dveshti = hates.    Hinasti = kills , harms.
Cha = and. =    Karma = deeds.       Cha + aarabhate .
Cha = and,    Arabhate = begins.    Dshtam=  wicked,
inimical.  Tam + aahuh +moodhachetasam.       Tam =
to them.   Aahuh =call    Moodhchetasam= foolish, Silly.

i.e.   A person who makes friendship with persons who are
not suitable for friendship and hates  those persons  who
are  most suitable for friendship, and  indulges in such
inimical activities against them which may harm or kill
them,  is called a foolish and silly persons.



Friday, 16 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


क्षिप्रं  विजानाति  चिरं  शृणोति
         विज्ञाय  चार्थं भजते न कामात |
ना  संपृष्टो  व्युपयुङ्क्ते   परार्थे
         तत्  प्रज्ञानं  प्रथमं  पण्डितस्य  ||  -विदुर नीति

भावार्थ =  जो व्यक्ति उस से कही हुई  किसी बात को 
यद्यपि शीघ्र समझ लेता हो परन्तु उसे  देर तक सुनने
का धैर्य भी उसमे हो , तथा उस व्यक्ति का मन्तव्य जान
कर  बिना किसी कामना के उसका आदर करता हो , और
न  ही जान बूझ कर उसकी संपत्ति को  अपने अधिकार में
लेने  के उद्देश्य से उस से  बातचीत करता हो,  ये सभी प्रमुख
लक्षण एक विद्वान व्यक्ति के होते हैं

Kshipram  vijaanaati  chiram  shrunoti,
Vigyaaya  chaartham  bhajate  na  kaamaat.
Naa  smprushto  vyupayunkte  paraarthe.
Tat pragyaanam  prathamam  panditasya.

Kshipram = speedily.    Vijaanaati = understands.
Chiram = lasting a long time.   Shrunoti = listens.,
hears.    Vigyaaya = after understanding.   Cha +
artham.     Cha = and.   Artham = true sense.
Bhajate = revers, shows respect.      Na = not .
Kaamaat = intentionally.  Naa =not.  Smprushto=
enquire about.    vi+ upayunkte .   Vi = prefix.
Upayunkte = appropriates, takes possession.
Paraarthe =  wealth  of others.              Tat= that.
Praagyaanam =  distinctive mark.   Prathamam=
first., foremost.   Panditasya = of a learned person.

i.e.       A person who quickly understands the purport
of the  subject of another person's talk to him , but has
also the patience of listening to him for a long time,and
gives due respect to him without an ulterior motive, and
does not talk with him to appropriate his wealth, all these
are the foremost distinctive marks of a learned person.


Thursday, 15 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


यस्य  कृत्यं  न  जानन्ति  मन्त्रं  वा  मन्त्रितं  परे  |
कृतमेवास्य  जानन्ति  स  वै  पण्डित  उच्यते       ||
                                    - महाभारत (विदुर नीति )

भावार्थ -  जिस व्यक्ति द्वारा भविष्य में किये जाने वाले कार्यों  के
बारे में मन्त्रणा (विचार) करने, निश्चय करने तथा उसके पश्चात
क्रियान्वयन होने तक अन्य व्यक्ति कुछ भी नहीं  जानते हैं , वही
एक पण्डित कहलाता है  |

(प्रस्तुत सुभाषित में किसी भी योजना को क्रियान्वित करणे से  पूर्व
विचार विमर्श तथा निर्णय को तब  तक गोपनीय रखने का परामर्श 
दिया गया है जब तक वह कार्य प्रारम्भ न कर दिया जाय |  ऐसा नहीं
करने से योजना में अनेक विघ्न बाधायें उत्पन्न हो जाती हैं | )

Yasya krutyam  na  jaananti  mantram  vaa mantritam  pare.
Krutamevasya  jaananti  sa  vai  pandit  uchyate,

Yasya =  whose.   Krutyam =  deeds.    Na = not.    Jaananti =
Know.   Mantram =  consultation.    Vaa = or.    Mantritam =
already consulted.   Pare =  later, afterwards.   Krutam+eva +
asya.    Krutam=done.   Eva =really.    Asya = this.  JaananIi=
know..  Sa =  that person.   Vai = only.   Pandira = a learned
person.    Uchyate = is called.

i.e.     A person , whose actions about a project undertaken by
him are not know to others  during  the stages of  consultations, 
finalisation, and implementation , and  they know about it when
it is completed,  is truly called a learned person.

(This Subhashita advises maintenance of proper secrecy while
planning and implementing any  project .If this is not done, many
problems and obstacles arise during implementation of the project.)


Wednesday, 14 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


व्यालाश्रयापि  विकलापि  सकण्टकापि
वक्रापि  पङ्किलभवापि  दुरासदापि         |
गन्धेन  बन्धुरसि  केतकि  सर्वजन्ता-
रेको  गुणः खलु  निहन्ति  समस्त दोषान्  ||
                          - चाणक्य नीति (१७/२१ )

भावार्थ -     यह सर्वविदित  है कि केतकी के वृक्षक (झाड)
में सांप  निवास करते हैं , वह अपूर्ण भी होता है , उसमें
कांटे भी होते हैं,  वह कीचड  में उगता है, उसका आकार 
टेढा  होता है और उस तक पहुंचना  (उसके फूल चुनना )
कठिन और हानिकर भी होता है |  परन्तु फिर भी उसकी
सुगन्ध  से मित्रता है (उसके पुष्प अत्यन्त सुगन्धित होते
हैं) और उसका यही एक गुण उसके समस्त दोषों को नष्ट
कर देता  है |
(उपर्युक्त सुभाषित का तात्पर्य यह है कि यदि किसी वस्तु
या व्यक्ति में कोई महान गुण हो तो उसके अन्य दोषों को
लोग स्वीकार कर लेते हैं |  एक कहावत भी है कि - 'दुधारू
गाय की लात भी भली '  | )

Vyaalaashrayaapi   vikalaapi sakantakaapi.
Vakraapi pankilaabhavaapi  duraasadaapi.
Gandhena  bandhurapi  ketaki sarvajantaa-
reko gunah  khalu  nihanti  samasta  doshaan.

Vyaala+ashrya + api.    Vyaala = a snake.   Aashrya=
shelter.    Api = even.    Vikalaapi = vikala +api,
Vikala = imperfect.    Sakantaka+ api.   Sakantaka=
with thorns.   Vakra + api.    Vakra = bent, curved.
Pankila + bhava+ api.    Pankila= slushy.  Bhava=
grows, prospers.    Durasada+ api,     Duraasada =
difficult or dangerous to be approached. Gandhena=
with sweet smell.     Bandhuh + api.       Bandhuh =
friend.    Ketaki = name of a thorny shrub producing 
fragrant flowers.  Sarvajantaa = well-known.   Eko =
only one.  Gunah = virtue.  Khalu = verily. Nihanti =
kills, destroys.    Samast = all.    Doshaam = defects.

 i.e.    It is very well known that the shrub of  'Ketaki'
is a shelter of snakes,  is imperfect , is full of thorns,
its shape is curved, grows in slush and it is dangerous
and difficult to approach (for its flowers).  But still its
only one virtue of  friendship with fragrance ( having
fragrant  and beautiful flowers ) destroys all its defects.

(The idea behind this subhashita is that if a thing or a
person has even one very important virtue people do
not mind the defects in them.   There is also a saying
that  people tolerate  even the kicks by a cow while
milking it.)
.
                           

Tuesday, 13 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


राजा  वेश्या  यमश्चाग्निस्तकरो  बालयाचकौ  |
परदुःखं  न  जानन्ति  अष्टमो  ग्रामकण्टकः    ||
                                 - चाणक्य नीति (१७/१९ )

भावार्थ  -     राजा,  वेश्या , यमराज (मृत्यु का देवता) , अग्नि ,
लुटेरा , बालक , याचक (भिखारी) , तथा आठवां गांव में रहने
वाला एक अशिष्ठ व्यक्ति, ये सभी अन्य व्यक्तियों को उनके
व्यवहार के कारण  होने वाले दुःख को नहीं जानते (अनुभव नहीं
करते ) हैं |

Raajaa  veshyaa  yamashchaagnistaskaro  baala-yaachakau.
Paraduhkham  na  jaananti  ashtamo  graamakantakau.

Raajaa = King, a Ruler.   Yamah + cha + agnih +taskaro.
Yamah = the God of Death.    Cha = and.    Taskaro =
thief, robber.    Baala = a child.     Yaachakau = beggars.
Paraduhkham = another;s pain or sorrow.   Na =not.   Jaananti=
know.    Ashtamo = the eighth.   Gramakantakah = ill mannered
villager.

i.e.    A King, a prostitute, Yama the God of Death,  fire, thieves,
children and beggars (these seven ) and the eighth one an ill-
mannered villager,  all these do not know (feel) the suffering and
pain they cause to others by their behaviour.
they cause to other

Monday, 12 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita


आहारनिद्राभय  मैथुनानि
              समानि  चैतानि  नृणां  पशूनाम्  |
ज्ञानं  नराणामधिको  विशेषो
               ज्ञानेन  हीनाः  पशुभिः समाना    ||
                            -  चाणक्य नीति (१७/१७)

भावार्थ  - जीवित रहने के लिये आहार  की आवश्यकता ,
निद्रा , भय की भावना तथा  कामवासना, ये  प्रवृत्तियां
मनुष्यों और पशुओं में एक समान ही  होती हैं |   परन्तु
मनुष्यों  में ज्ञान (अनेक विषयों की जानकारी) होना एक
अतिरिक्त विशेषता है | अतः जो व्यक्ति ज्ञान हीन होते हैं
वे पशुओं के समान  ही  जीवन व्यतीत  करते हैं }

Aahaara nidraa  bhaya  maithunani.
Samaani  chaitaani   nrunaam  pashoonaam.
Gyaanam  naraanaamadhiko  visheshah.
Gyaanena  heenaa  pashubhih  samaanaa.

Aahaara  = taking food.   Nidra = sleep.   Bhaya=
fear.    Maithunani = sexual urge   Samaani=
similar.   Chaitaani = cha +etaani.   Cha = and.
Aitaani = these.  Nrunaam = humans. Pashoonaam =
animals.   Gyaanam = knowledge about any thing
essential for  living properly.      Naraanaam =men.
Adhiko = more  .Visheshah = special.   Gyaanena =
of knowledge.   Heena = devoid of.      Pashubhih =
animals.   Samaanaa = similar to.

i.e.   The need of food for remaining alive, sleep.
fear and sexual urge, these emotions are similar  in
human beings and animals.  But the special quality
of having knowledge about any thing is additional in
human beings. Therefore, those persons who are
devoid of any knowledge are just  like  animals.

Sunday, 11 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita..


परोपकरणं  येषां  जागर्ति  हृद्ये  सताम्     |
नश्यन्ति  विपदस्तेषां  संपदः  स्यु  पदे पदे ||
                           - चाणक्य नीति (१७/१५ )

भावार्थ -   जिन  सज्जन व्यक्तियों के हृदय  में परोपकार
की भावना जागृत होती है और वे अपना जीवन निर्बल लोगों
की सहायता के लिये समर्पित कर देते हैं , उनके ऊपर आई
हुई सभी विपदायें नष्ट हो  जाती  हैं  तथा उन्हें कदम कदम 
पर प्रसन्नता और संपत्ति की प्राप्ति  होती है |

Paropakaranam  yeshaam  jaagarti  hrudaye  sataam.
Nashyanti  vipadasteshaam  samadah  syu  pade  pade.

Paripakaranam = making one's self an instrument of others
for helping them.    Yeshaam = whose.   Jaagarti = awaken.
Hrudaye = heart.     Sataam = noble and righteous persons.
Nashyanti = disappear.    Vipadaah + teshaam.   Vipadaah =
calamities, misfortune,   Teaam=their.   Sampadah =wealth,.
prosperity   Syu = delight.    pade pade = at every step.

i.e.    Those noble and righteous persons who have committed
themselves to serve the meek and needy persons, the misfortune
and calamities befalling upon them disappear and they enjoy
prosperity and happiness at every step.





Saturday, 10 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


तक्षकस्य  विषं  दन्ते  मक्षिकायास्तु  मस्तके  |
वृश्चिकस्य  विषं  पुच्छे  सर्वाङ्गे  दुर्जने  विषम  ||
                                     - चाणक्य नीति (१७/८ )

भावार्थ -   एक  विषेले  सर्प  का विष उस के  दांतों  में होता है और
मधुमक्खियों  का विष  उन के सिर में  होता है |     बिच्छू  का विष
उसकी पूंछ की नोक पर होता है.  परन्तु एक नीच और दुष्ट व्यक्ति
का तो संपूर्ण शरीर ही विषमय  होता है |

Takshakasya  visham  dante  makshikaayaastu  mastake,
Vrushchikasya  visham  pucche  sarvaange  durjane visham.

Takshakasya=   a very poisonous snake personified after the
name of  a snake named 'Takshak' mentioned in Hindu mytho-
logy.   Visham = poison.    Dante = teeth.    Makshikaayaastu =
Makshikaayaah + tu.    Makshikaayaah = bees.   Tu = and.
Mastake =the head.  Vrushchikasya= of the  Scorpion.   Pucche=
tail.    Sarvange = over the whole body    Durjane = a mean and
wicked person. 

i.e.     A  snake's poison is in its teeth and  a  bee's  poison is on
its  head.   The poison of a Scorpion is in its tail,  but the  entire
body of a mean and wicked person is poisonous.
   

Friday, 9 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


दानेन  पाणिर्न  तु  कङ्कणेन
                        स्नानेन शुद्धिर्न  तु  चन्दनेन  |
मानेन  तुष्तिर्न  तु  भोजनेन
                        ज्ञानेन  मुक्तिर्न  तु  मुण्डनेन  ||
                               -   चाणक्य  नीति (१७/१२ )

भावार्थ -   हाथों की शोभा दान देने से होती है न कि कङ्कण
पहनने  से होती है |  शरीर स्नान करने  से शुद्ध होता है न कि
चन्दन का लेप करने से |   लोग  यथोचित आदर और सम्मान
किये जाने से संतुष्ट होते हैं न कि  केवल भोजन कराने से | तथा
मृत्यु  और पुनर्जन्म  के  चक्र से मुक्ति  तत्वज्ञान प्राप्त करने से
होती है  न कि  सिर के केशों का मुण्डन करने से |

Daanena  paanirna  tu  kankanena.
Snaanena shuddhirna  tu  chandanena.
Maanena tushtirna  tu  bhojanena,
Gyaanena muktirna tu  mundanena.

Daanena = by giving donations.   Paanih + na.
Paanih = hand.    Na = not.   Tu = and   Kankanena =
A bracelet.  Snaanena = by taking a bath,  Shuddhi =
cleanliness.   Chandanena = by smearing the body
with a paste of sandalwood.    Maanena = by giving
due respect.   Truptih = satisfaction, contentment.
Bhojanena = serving a sumptuous meal.  Gyaanena =
by higher spiritual knowledge.   Muktih = salvation. 
Mundanena = by tonsuring the head.

i.e.   Hands are embellished  by giving donations and not
by wearing bracelets.   The body is cleansed by taking a
bath and not by  smearing the paste of sandalwood over
the body.   A person feels contented by being given due
respect and not by simply being provided a meal. A person
can achieve salvation by acquiring higher spiritual knowledge
and not by merely tonsuring his head.

Thursday, 8 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अशक्तस्तु   भवेत्साधुर्ब्रह्मचारी  वा  निर्धनः   |
व्याधितो  देवभक्तश्च  वृद्धा  नारी  पतिव्रता     ||
                                   - चाणक्य नीति (१७/६ )
भावार्थ -   अशक्त व्यक्ति या तो साधु या ब्रह्मचारी बन जाते हैं
या निर्धन हो कर जीवन यापन करते  हैं | इसी प्रकार किसी घातक
 रोग से ग्रस्त  व्यक्ति  देवभक्त  बन जाते हैं और वृद्धावस्था में
चञ्चला  नारियां पतिव्रता बन जाती  हैं |
(इस सुभाषित में मानव के स्वभाव  पर कटाक्ष किया  गया है  कि
अधिकतर विपरीत परिस्थितियों में ही वे धार्मिक आचारण करते
हैं |   तुलसीदास जी ने भी कहा है कि - 'नारि मुई  गृह संपति नासी |
मूड मुडाइ  होहिं  सन्यासी ' |)

Ashaktastu  bhavetsaadhurbrahmachaaree  vaa  nirdhanah.
Vyaadhito  devabhaktashcha  vruddha  naaree  pativrataa.

Ashaktah +tu.       Ashaktah =  incapable.      Tu = and, but.
Bhavet + saadhuh + brahmachaaree.    Bhavet = should  be.
Saadhuh=a  sage  Brahmachaaree= a person who is a celibate. 
Vaa =or.   Nirdhanah = a poor person.     Vyaadhito = a person 
suffering from a serious disease.  Devabhaktah =worshiper of
God.     Cha = and.     Vruddhaa =aged.    Naaree =   a woman.   
Pativrataa=virtuous woman faithful and devoted to her husband.

i.e.    Incapable persons either become  a sage , a  celibate  or a
poor beggar .  A person suffering from a fatal disease becomes
an ardent devotee of God and an aged wanton woman becomes
a very devoted and virtuous wife.

(The above Subhashita criticizes the tendency among people to
become virtuous when they are incapable or in grave danger.
An Indian poet  Tulasi Das has also remarked that people become 
a sage only when their wife dies and all their wealth is lost,)

Wednesday, 7 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


पुस्तकस्था तु  या  विद्या  परहस्त  गतं  धनं  |
कार्यकाले समुत्पन्ने  न सा विद्या न तद्धनम्  ||
                                - चाणक्य नीति (१६/२० )

भावार्थ =  पुस्तकों में  वर्णित  विद्या  तथा  अन्य  व्यक्तियों
के पास रखा हुआ अपना ही धन  आवश्यकता पडने पर न तो
वह विद्या काम आती है और न ही  वह धन उपलब्ध होता है |
इसी  से मिलती जुलती भावना को एक अन्य सुभाषित में इस
प्रकार व्यक्त किया गया है :-
            "लेखनी पुस्तकाः  रामा  परहस्त गता गता |
             आगता दैवयोगेन  हृष्टा भ्रष्टा च  मर्दिता  ||
अर्थात   लेखनी (कलम ) , पुस्तकें  तथा स्त्री यदि किसी अन्य
व्यक्ति को दी जाय तो उसे गया हुआ ही समझें |  यदि भाग्यवश
यदि वापस भी आ जायें तो लेखनी  टूटी हुई , पुस्तक फटी हुई ,
और स्त्री मर्दित हो कर आती है | )

Pustakasthaa  tu  yaa  idyaa  parahasta  gatam  dhanam.
kaaryakaale samutpanne  na  saa vidyaa na taddhanam.

Pustakaah + tu.    Pustakaah = books.  Tu = and   Yaa =
that.   Vidyaa = knowledge, learning.   Para = others.
Hasta = hands.   Gatam = gone.    Dhanam = wealth.
Kaaryakaale = at the time of need arising.    Samutpanne=
happening, occuring.  Na = not.   Saa = that. Tat+dhanam
Tat = that.

i.e.   Knowledge enshrined only in books and wealth under
under control of others,  whenever need arises for them then
neither  the said knowledge nor the wealth is available.

(There is another Subhashita on this theme, which says that
if pens, books and a woman is let out to some one, the chances
are that they will never be returned.  If per chance they are
returned, the pens will be broken,  books will be torn and the
woman will be trodden down.)



Monday, 5 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


वरं  प्राणपरित्यागो   मानभङ्गेन   जीवनात्   |
प्राणत्यागे  क्षणं दुःखं   मानभङ्गे  दिने  दिने  ||
                                - चाणक्य नीति (१६/१५ )

भावार्थ -    मानभङ्ग्  (अपमानित ) होने पर भी जीवित रहने  से तो
प्राण त्याग देना ही श्रेयस्कर है,  क्यों कि प्राण त्यागने में तो क्षण भर 
के लिये दुःख  होता  है परन्तु अपमानित होने पर दिन प्रति दिन दुःख 
भोगना  पडता है |

Varaam  praaanaparityaago  maanabhangena jeevanaat.
Praanatyaage  kshanam  Duhkham  maanabhange dine dine.

Varam = iti is preferable.    Praana = breathe of life
Parityaaga = cession.   Maanabhangena= by being insulted
or dishonoured.    Jeevanaat = living.   Praaanatyaage =
by cession of life.   Kshanam= momentary.   Duhkham =
suffering.    Dine dine = every day.

i.e.    It is preferable to die rather than remaining alive on being
insulted .  While in dying there is momentary suffering,on being
insulted one has to  suffer every day.

Sunday, 4 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


परैरुक्तगुणो  यस्तु  निर्गुणोSपि  गुणी  भवेत्  |
इन्द्रोSपि  लघुतां  याति  स्वयं  प्रख्यापितैर्गुणै: ||
                                    - चाणक्य नीति (१६/८)

भावार्थ -  यदि  अन्य लोग किसी  व्यक्ति  को गुणवान
कहते  हैं तो  वह व्यक्ति गुणहीन होते  हुए भी गुणवान
समझा जाता है | परन्तु  यदि कोई व्यक्ति स्वयं ही अपने
गुणों  का वर्णन करता  है तो चाहे  वह स्वयं  देवताओं का 
राजा  इन्द्र ही  क्यों हों वह अपनी गरिमा खो देता है  |

Parairuktaguno  yastu  nirgunopi  gunee  bhavet.
Indropi  laghutaa  yaati   svyam  prakhyaapitairgunaih.


Parairuktaguno =  Paraih +ukta+ guno.   Paraih = others.
Ukta = speak, say.    Guno = virtues.   Yastu = to whom,   
Nirgunopi=nirguno +api,   Nirguno = without any virtues.   
Api = even,    Gunee = virtuous.   Bhavet = becomes. 
Indropi = Indro +api.  Indro = name of the king of Gods.
Laghuta =want of dignity.      Yaati =acquires, achieves.
Svyam = himself.  Prakhyaapitairgunaih = prakhyapitaih +
gunaih.   Prakhyaapitaih = by naming himself.     Gunaih  =
virtues.

i.e.     If people treat someone as virtuous, in spite of his being
without any virtuous, he is treated as a virtuous person.  But
if someone declares himself as a virtuous person,  he loses his
dignity, even if he may be Indra , the king of Gods.


Saturday, 3 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


प्रियवाक्यप्रदानेन  सर्वे  तुष्यन्ति  जन्तवः  |
तस्मात्तदेव  वक्तव्यं  वचने  का  दरिद्रता   ||
                             - चाणक्य नीति (१६/१३ )

भावार्थ -       यदि अन्य व्यक्तियों से  प्रिय लगने वाली
भाषा में बातचीत की जाये तो सभी को सन्तोष  प्राप्त होता
है | इस लिये सदैव मधुर भाषा का व्यवहार करना चाहिये
और ऐसा करने  में अपनी दरिद्रता क्यों प्रदर्शित की जाय ?

 Priyavaakyapradaanena  sarve  tushyanti  jantaavah.
Tasmaattava  vaktavyam  vachane  kaa  daridrata.

Priya = liked, pleasing..  Vaakya = saying.   Pradaanena=
delivering.    Sarve = all.    Tushyanti = are satisfied.
Jantavah = persons.    Tasmaat =  therefore.     Tadeva=
accordingly.   Vaktavyam = statement.     Vachane =
speaking.   Kaa =  what.    Daridrataa = state of being
deprived,  penury.

i.e.    If people are addressed in a polite and pleasing way,
they all are satisfied at it.  Therefore . we should always
speak pleasingly and politely, and why should  we show
our penury in the matter of our speaking to others ? 

Friday, 2 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अलिरयं  नलिनीदलमध्यगः
              कमलिनीमकरन्दमदालसः  |
विधिवशात्परदेशमुपागतः   
               कुजटपुष्परसं  बहुमन्यते     || - चाणक्यनीति
                                               
भावार्थ -  मधुमक्खियों  का एक झुन्ड जो कमलिनी पुष्पों  का
मकरन्द (मधु) पी कर उन्मत्त रहता था दुर्भाग्य से एक ऐसे बुरे
देश का प्रवासी हो गया जहां उन्हें कमलिनी पुष्पों का मधु  नहीं
उपलब्ध था | ऐसी विषम  परिस्थिति में उन्हें कुजट के पुष्पों का
रस ही अच्छा समझ कर संतोष करना पडा |
(इस सुभाषित  का तात्पर्य यह है कि जब कोई सम्पन्न व्यक्ति यदि
दुर्भाग्य से परदेश में किसी विषम परिस्थिति में पड जाता है तो उसे
अपने जीवनस्तर के अनुकूल सुविधायें नहीं भी मिलती हैं तो उसे जो
कुछ थोडा बहुत मिलता है उसी पर सन्तोष करना पडता है  जिसे  कि
मधुमक्खियों की उपमा द्वारा व्यक्त  किया गया है | )

Alirayam  nalineedala-madhyago.
Kamalinee-makarand-madaalasah.
Vidhivashaatparadeshamupaagatah.
Kujata-pushpa-raasam  bahu-manyate.

Alirayam = fast moving bees.    Nalineedal = among
lotus leaves.  Madhyago=in the middle of.   Kamalanee=
lotus flowers.    . Makaranda rasa = honey of flowers.
Madaalasah = lazy from drunkenness.    Vidhivashaat=
by th quirk of fate.   Paradeshamupaagatah =paradsham+
upaagatah.    Paradesham = in a foreign hostile ccountry.
Upaagata= entered into.   Kujata= name of a  plant having
inferior flower in comparison to a Lotus flower.  Pushpa =
flower.    Rasam = honey.    Bahu = plentiful, abundant.
Manyate =Think.

i.e.         A swarm of honey bees who were accustomed of
moving  among  the leaves and flowers  of lotus and lived
lazily drinking the  honey produced by Lotus flowers, by a
quirk of fate went to a hostile country where lotus flowers
were not available.  There they had to subsist on the inferior
flowers of  'Kujata' , thinking them as plentiful.

(The idea behind this Subhashita is that if a prosperous person
by a quirk of fate has to live in a hostile country, where he can
not maintain his lifestyle.he has to remain satisfied on whatever
he gets .  This has been done by the use of a simile about bees.) 

Thursday, 1 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Aubhashita.


 गुणैः  सर्वज्ञतुल्योSपि  सीदत्येको  निराश्रयः  |
अनर्घ्यमपि   माणिक्यं  हेमाश्रयमपेक्षते         ||
                                  /चाणक्य नीति (१६ /१०)

भावार्थ  -      एक सर्वगुणसंपन्न  व्यक्ति  के समान गुणवान
होते हुए भी कई लोग बिना किसी आश्रय के दुःखी और एकाकी 
जीवन व्यतीत करने को बाध्य होते हैं | उदाहरणार्थ  एक अमूल्य
माणिक्य भी तब तक सुशोभित नहीं होता है जब तक कि वह स्वर्ण
के आश्रय में नहीं रहता है |(किसी स्वर्ण के आभूषण में जडित नहीं
हो जाता है |)

(महान गायक, चित्रकार,कवि और अन्य गुणवान व्यक्ति तभी
सुशोभित होते हैं जब् उन्हें राजाश्रय प्राप्त होता है ,अन्यथा वे गरीबी
और गुमनामी मे जीवन यापन करने  के लिये बाध्य होते हैं | इसी
तथ्य को एक माणिक्य की शोभा एक स्वर्णाभूषण मे जडित होने की
उपमा के द्वारा  व्यक्त किया गया है | )

Gunaih  svagyatulyopi  seedatyeko  niraashrayah.
Anarghyamapi  maanikyam  hemaashrayamapekshate.

Gunaih = virtues.   Sarvagya+tulyo + api.    Sarvagya=
all -knowing.  Tulya = similar.   Api =  even.   Seedati+
eko.      Seedati = is distressed.        Eko = singly.
Nirashrayah = without any shelter or support.  Anarghyam+
api.    Anarghyam =priceless.    Maanikyam =  a ruby.
Hema + aashrayam + apekshate.   Hema = gold.   Aashrayam=
shelter.    Apekshate = requires.

i.e.      Generally most virtuous and all-knowing  persons have
have to languish and lead a  lonely difficult life for want of
patronage and support from the rich and mighty persons, just
like a precious gem, which  gets recognition an appreciation by
being studded in a gold ornament.

(Generally musicians, artists, poets etc  come into prominence
when they get support and  recognition from the State and rich
people. Otherwise , they languish in oblivion. This fact has been
illustrated by the use of a simile of a gem stone being studded in
a gold ornament.)