Wednesday, 31 January 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


ज्ञानमन्त्रसदाचारैर्गौरवं    भजते  गुरुः |
तस्माच्छिष्य:  क्षमीभूत्वा  गुरुवाक्यं न लङ्घयेत्  ||
                                               - सुभाषित रत्नाकर

भावार्थ-    एक शिष्य का यह परम् कर्तव्य है कि वह अपने गुरु का
आदर अपने  अच्छे आचरण द्वारा  सम्मान प्रकट करते हुए करे |
इसी लिये उसे धैर्यपूर्वक कभी भी अपने गुरु द्वारा दी गयी आज्ञा
का उल्लंघन नहीं करना चाहिये |

Gyaaanmantrsadaacharairgauraavam  bhajate Guruh,
Tasmacchishyah kshameebhootvaa Guruvaakyam na
langhayet.

Gyaana + mantra+ sadaachaaraih +gauravam.    Gyaana= Knowledge
Mantra = consultation.   Sadaachaaraiha = good manners.   Gauravam=
dignity, admiration.    Bhajate = revere, give respect.   Gurum = teacher.
Tasmaacchishyah=tasmaat +shishyah.   Tasmaat =therefore.   Shishyah=
a student.    Kshmeebhootvaa =kshmee +bhootvaa.    Kshami= patience,
endurance.   Bhootvaa = by becoming.   Guruvaakyam = commands or
instructions of the Teacher.    Na = not.    Langhayet = go beyond or
against.

i.e.       It is the duty of a student that he should revere his Guru (teacher) 
intelligently with good manners and admiration. Therefore, he should be
very patient and never go beyond or against the instructions given by his
Guru.



Tuesday, 30 January 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


शक्तिं  करोति संचारे  शीतोष्णे  मर्षयत्यपि |
दीपयत्युदरे  वह्निं  दारिद्र्यं परमौषधम्       ||
                                      - सुभाषित रत्नाकर

भावार्थ -   दरिद्रता यद्यपि अत्यन्त कष्टकर होती है फिर भी वह् दरिद्र
व्यक्ति के शरीर में शीत तथा गरमी को सहने की शक्ति प्रदान करती है
और उसके उदर (पेट) में भूख रूपी अग्नि जाग्रत कर उसे स्वस्थ रखती है |
सचमुच दरिद्रता एक सर्वोत्तमऔषधि है |

(प्रस्तुत सुभाषित व्याज स्तुति (प्रशंसा की आड में आलोचना करने का)
एक सुन्दर उदाहरण है |     संपन्न व्यक्तियों में  अत्यधिक सुविधायें
उपलब्ध रहने के कारण शीत और गरमी सहने की शक्ति नहीं होती है और
वे अजीर्ण आदि अनेक पेट से संबन्धित  रोगों से पीडित रहते हैं , जिस के
लिये आयुर्वेद में कम और संतुलित भोजन  करने को सर्वोत्तम औषधि
कहा गया है | परिस्थितिवश एक दरिद्र व्यक्ति को यह भोगना ही पडता है |)

Shaktim karoti smchaare sheetoshne marshayatyapi .
Deepayatyudare vahnim  daaridryam  paramaushadham,

shaktim = strength, energy.    Karoti = does,   Smchaare =
transmits,communicates.    Sheetoshne = cold and hot.
Marshayatyapi = marshayati + api.   Marshayati = suffers.
Api = even.             Deepayatyudare = deepayati + udare.
Deepayati = ignites, sets on fire.   Udare = in the stomach.
Daaridryam = poverty.       Paramaushadham  = param +
aushadham.    Param = absolute, highest.   Aushadham  =
mdiicine.

i.e.     Although poverty causes much hardships, it gives to
poor people the strength and energy to bear cold and heat
equally, and  the fire of hunger in their belly keeps them fit.
Really,  poverty is  a supreme medicine.

(The above Subhashita is a fine example of censuring in the
guise of praising.  Affluent and rich persons lack in the
capacity of bearing cold and hot climate and due to their food
habits also suffer from various diseases related to stomach  and
digestion.  Fasting is termed as best medicine for such diseases,
which the poor people are doomed to face throughout their life. )






Monday, 29 January 2018

आज का सुभाषितToday's Subhashita.


न  पश्यामो  मुखे  दंष्ट्रां  न पाशं  वा  कराञ्चले  |
उत्तमर्णमवेक्षैव  तथाSप्युद्विजते   जनः         ||
               -  सुभाषित रत्नाकर (कलिविडम्बनम्)

भावार्थ -    एक ऋणदाता  के  मुंह में  न तो डरावने दांत होते हैं और
न  ही  हाथ में कोई पाश ( बांध कर  ले जाने के लिये रस्सी या जंजीर)
होती है , फिर भी उसे देख  कर  वे लोग जिन्होंने  उस से ऋण लिया
हुआ हो  अत्यन्त भयभीत हो जाते हैं |

(इस सुभाषित में एक ऋण लेने वाले की अपने ऋण दाता को देखने के
बाद की मनोदशा का सुन्दर वर्णन किया गया है | )

Na pashyamo mukhe dmshtraam  na paasham  vaa  karanchale.
Uttamarnamavekshaiva tathaapyudvijate janah.

Na = not.  Pashyaamo =by seeing.   Mukhe = face.   Dmshtraam=
large teeth.      Paasham =  a noose       Vaa= or        Karaanchale=
on the hand.    Uttamarnamavekhsiava = Uttamarnam +avekshya+
eva.    Uttamarna = a creditor (a person who has lent money to
someone.)        Aveekshya =visited by.         Aiva = thus , really.
Tathaapyudvijate = taathaapi + ud vijate.     Tathaapi = even then.
Udvijate = tremble, become agitated,    Janah = people.

i.e.     A creditor  has neither fierce teeth on his mouth nor a noose
or a chain held by him on his hand,  even then people (the debtors)
tremble and get agitated on seeing him.

(In this Subhashita the mentality of a debtor towards his creditor on
being confronted by the creditor has been nicely described.)






Sunday, 28 January 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अनुसरति करिकपोलं भ्रमरः श्रवणेन ताड्यमानोSपि  |
गणयति  न  तिरस्कारं  दानन्धविलोचनो  नीचः        ||
                                                  - सुभाषित रत्नाकर

भावार्थ -     जिस प्रकार एक  हाथी के कपोलों के ऊपर मंडराता हुआ एक
भ्रमर  हाथी द्वारा अपने बडे बडे कानों से उसके ऊपर बारंबार प्रहार करने
पर भी उसका पीछा नहीं छोडता है , वैसे ही एक दान पाने की उत्कट इच्छा
से  अन्धे व्यक्ति के समान आचरण करने  वाला नीच व्यक्ति  भी उसको
तिरस्कृत किये  जाने पर कोई ध्यान  नहीं देता है और दान दाता का पीछा
नहीं  छोडता है |

(हाथी के कपोलों से एक प्रकार का द्रव निकलता है जिस मद कहते हैं | उस
की  गन्ध से आकर्षित होकर भंवरे उसे पीने के लिये हाथी के सिर पर मंडराते
रहते हैं और उसका पीछा नहीं छोडते है |  इसी  व्यवहार को एक उपमा के रूप
में भिखारियों का एक दान दाता का पीछा करने  की प्रवृत्ति को उजागर करने
के लिये किया गया है |)

Anusarati karikapolam bhramarah shravanena taadyamaanopi.
Ganayati na tiraskaaram daanaandhavilochano neechah.

Anusarati = goes after.    Kari = an elephant.   Kapolam = cheek.
Bhramarah = a kind of bumble bee.     Shravanena = by the ears.
Taadyamaanopi = Taadyamaano + api.    Taadyamaano = on being
struck.    Api = even.     Ganayati =  takes  notice of.    Na= not.
Tiraskaaram = contempt.    Daanaandhavilochano = daan+ andha +
vilochano.    Daana = donation, giving away as charity.   Andha =
blind.    Vilochano = eyes.    Neeechah = a wicked and mean person.
             

i.e.     A bumble bee  hovering over the cheeks of an elephant (in rut)
goes after the elephant in spite of the elephant hitting it  repeatedly
with its large ears.    In  the same manner mean and wicked  persons
blinded by their desire  to get alms from the rich persons also do not
take any notice of the contempt shown towards them by the rich donor.

(When an elephant is in rut a fluid flows from its cheeks, which attracts
swarms of bumble bees. This phenomenon has been used as a simile for
the behaviour of beggars towards their donors. )

Saturday, 27 January 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


संगीतमपि साहित्यं सरस्वत्याः  स्तनद्वयम्  |
एकमापातमधुरमन्यदालोचनामृतम्               ||
                        =सुभाषित रत्नाकर (कल्पतरु)

भावार्थ -    संगीत और साहित्य की विधायें  विद्या की अधिष्ठात्री
देवी सरस्वती के दो स्तनों के समान हैं |  एक स्तन से तो मधुर संगीत
की रसधारा निकलती  है और दूसरे स्तन से अमृत के समान मधुर
और कालजयी साहित्य प्रवाहित होता है |

Sangeetamapi  saahityam  Sarasvatyaah stanadvyam.
Ekamaapaatamadhuramanyadaalochanaamrutam.

Sangeetamapi = Sangeetam + api;    Sangeetam = Music.
Api = even.    Saahityam = literature.    Sarasvatyaah =
of the Goddess Sarasvati.    Stanadvyam = two breasts.
Ekam + aapaatam+madhuram + anyat +aalochana+
amrutam.    Ekam = one.    Apaat = flowing down.
Madhuram = melodious (music)   Anyad= the other .
Alochana =  literary observations and  deliberations. 
Amrutam + the nectar of Gods.

i.e.     Music and literature  are like the two breasts of  the
Goddess Sarasvati, the presiding deity of all fine arts, music
and literature.  From one breast flows the sweet Music and
from the other breast flows the beautiful and eternal literature
like the nectar of Gods.

Friday, 26 January 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अन्तकोSपि  हि  जन्तूनामन्तकालमुपेक्षते  |
न कालनियमः  कश्चिदुत्तमर्णस्य  विद्यते  ||
          - सुभाषित रत्नाकर (कलिविडम्बनम् )

भावार्थ -          मृत्यु का देवता काल ही केवल सभी जीवित
प्राणियों की मृत्यु के समय की उपेक्षा कर सकता है , परन्तु
उसके नियमों में किसी प्राणी को अतिरिक्त आयु को ऋण के
रूप  में देने का कोई नियम नहीं है  |

(इस सुभाषित का तात्पर्य  यही है कि प्रत्येक प्राणी का जीवन
काल निश्चित होता है और उसमें किसी प्रकार से वृद्धि नहीं हो 
सकती  है | )

Antakopi  hi  jantoonaamantakaalamupekshate.
Na  kaalaniyamah  kashchiduttamaranasya  vidyate.

Antakopi = antako + api.      Antako = the God of Death.
Api = even.     Hi = surely.   Jantoonaam +antakaalam +
upekshate.   Jantoonaam = all living beings.   Antakaalam=
time of death.     Upekshate = disregards, overlooks.   Na =
not.   Kaalanimayah =the rules of  Death.    Kashchit = any.
Uttamarnasya= a creditor's (a person who has given a loan
to somebody).  Vidyate = there exists.

i.e.     Only the God of Death can can disregard or overlook
the time of death of a living being, because there is no rule
prescribed by Him  to add more years to the life of a living
being by way of a loan.

(The idea behind this Subhashit is that the longevity of  all
living beings is pre-determined by the God Almighty.)


Thursday, 25 January 2018

आज का सुभाषित /oday's Subhashita.


एकस्य कर्म संवीक्ष्य करोत्यन्योSपि गर्हितम् |
गतानुगतिको लोको  न लोकः पारमार्थिकः     ||
                                       - सुभाषित रत्नाकर 

भावार्थ -       किसी व्यक्ति द्वारा किये जा रहे कोई निषिद्ध  
कार्य को देख कर अन्य व्यक्ति भी वैसे ही कार्य करने लगते 
हैं क्यों कि सामान्यतः लोगों में एक दूसरे का अनुकरण करने 
की प्रवृत्ति होती है   परन्तु धर्म और समाजसेवा  की सेवा के  
कार्यों में उनकी प्रवृत्ति ऐसी  नहीं होती है |

Ekasya karma samveekshya karotyanyopi garhitam.
Gataanugatiko loko na lokah paaramaarthikah .

Ekasya  = of one person's .    Karma = action. any activity.
Samveekshya = by looking at or observing.   Karoti +
anyo + api.    Karoti = do.    Anyo = others.   Api = even.
Garhitam =  something wrong or forbidden ,  going the
wrong way.    Gataanugatiko = imitative, following what 
precedes.    Loko = people.   Na = not.   Lokah =human
race.    Paaramaarthikah = one who cares for spiritual  truth.

i.e.   By observing a person doing some wrong and forbidden 
action, other people also do similar acts, because there is a
tendency among people imitate others or  following what 
precedes them.  But such inclination is not seen in the matters
relating to spirituality and philanthropy.


Wednesday, 24 January 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


ऊर्ज्जितं सज्जनं दृष्ट्वा द्वेष्टि नीचः पुनःपुनः  |
कवलीकुरुते  स्वस्थं  विधुं  दिवि  विधुंतुदः         ||
                - सुभाषित रत्नाकर (इन्दिशेसमुखे )

भावार्थ -   किसी  शक्तिशाली और महान व्यक्ति को देख कर  नीच
और दुष्ट व्यक्ति उस से बार बार वैसे ही द्वेष करने  लगते हैं जैसे
कि आकाश में स्वस्थ (पूर्णचन्द्रमा) को  देख कर राहु उसे ग्रस लेता है |

(इस सुभाषित में चन्द्रग्रहण की खगोलीय घटना को उपमा के रूप में
प्रयुक्त कर सज्जनों के प्रति  दुर्जनों की द्वेष भावना को व्यक्त किया
है |  चन्द्रग्रहण पौर्णमासी के दिन ही होता है जब् चन्द्रमा अपने सर्वोत्तम
रूप में होता है | चन्द्रमा सज्जन व्यक्तियों का प्रतीक है और राहु नीच
व्यक्तियों का प्रतीक है | इसी भावना को तुलसीदास जी ने भी इस प्रकार 
व्यक्त किया है -  "रिपु तेजसी अकेल अपि लघु करि गनिय न ताहु  |
अजहुं देत  दुख रवि ससिहि  सिर अवशेषित  राहु || " )

Oorjitam sajjananam drushtvaa dveshti neechah punahpunah.
Kavaleekurute svastham vidhum divi vidhumtudah.

Oorjitam = powerful, excellent.    Sajjanaanaam = noble and
virtuous persons,    Drushtvaa =on seeing.   Dveshti = hatred.
Neechah = a wicked and mean person.    Punahpunah = again
and again.   Kavalee =swallowing, devouring.   Kurute = does.
Svastham = comfortable, healthy.   Vidhum = the Moon.
Divi = sky.   Vidhuntudah= Rahu , an imaginary planet( called
Dragon's head in Astronmy,which causes the eclipse of the Moon
when it is in full bloom).

i.e.      On seeing a powerful,noble and virtuous person , mean and
wicked persons develop hatred towards  him and try to harm him
again and again just like the Dragon's head, which devours the Moon
when it is at his brightest best.

(By using the metaphor of a Lunar eclipse the author of the Subhashita
has expressed the tendency of hatred and envy among wicked and mean
persons towards noble and virtuous persons. Gosvami Tulasi Das, a poet
of Hindi has used this simile in a different way by saying that one should
no take lightly his enemy, however insignificant he may be, because  a
beheaded demon Rahu still torments both the Sun and Moon by devouring
them (reference to Solar and Lunar eclipses) .




Tuesday, 23 January 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


यस्य  वाण्यास्ति  मधुरा  तस्येव  सफलं  तपः |
नोचेज्जीवन्ति  पशवोप्पनिशं  पुष्टिशालिनः  ||
                    - सुभाषित रत्नाकर (अच्युत राय )

भावार्थ -    जो  व्यक्ति  मधुर वचन बोलता है उसको अपनी  तपस्या
 (किये गये विभिन्न कार्यों ) में अवश्य सफलता प्राप्त होती है, अन्यथा
पशु भी तो सदैव अपनी जीवित रहने की इच्छाशक्ति के बल पर जीवन
यापन करते हैं |

(प्रस्तुत सुभाषित 'वाग्वर्णनम्' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है | मनुष्य
और पशुओं में प्रमुख  अन्तर मनुष्य में अपने विचारों को व्यक्त करने की
क्षमता है जिस के कारण वह सभी प्राणियों में श्रेष्ठ माना जाता है | यदि
विचारों को व्यक्त करने में कटु और अभद्र भाषा का उपयोग किया जाता है
तो अधिकतर बनते हुए कार्य भी बिगड जाते हैं |  इस सुभाषित में परोक्ष रूप
से इसी भावना को व्यक्त किया गया है |)

Yasya vaanyaasti  madhraa tasyeva saphalam taamavoppanishpah.
Nochejjeevanti pashvoppanisham pushtishaalinah

Yasya = whose.  Vaanyaasti = vaanyaa +asti.   Vaanyaa=
way of speaking, eloquence.    Asti = is.      Madhuraa =
charming.   Tasyeva = tasya +eva.   Tasya = his.   Eva=
really,thus.    Saphalam = successful ,  having good results.
Tapah = religious austerity, penance.   Nochejjeevanti =
No chet+ jeevanti.    Nochet = otherwise.   Jeevanti =
live.    Pashavoppanisham =  pashavopi + anisham.  Pashavopi=
even animals.   Anisham = constantly.     Pushtishaalinah= 
Pushti = thriving     Shalin = endowed with, possessing.

i.e.    A person who speaks with eloquence in a pleasing manner,
all the penance he undergoes while doing his duties, always
brings fruitful results to him. Otherwise  animals too thrive by
their instinct to remain alive.

(This Subhashita deals with eloquence of speech, which faculty
differentiates a man from an animal and makes him superior among
all living beings.  If a person uses harsh and foul language while
speaking to others, it results in failure in even those tasks which
would have otherwise been accomplished. This is the hidden
message in this Subhashita.)


Monday, 22 January 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


विबुधानां सभायां तु  कलावानेव  राजते  |
हरस्तानखिलांस्त्यक्ता  तमेव शिरसा दधौ  ||
              - सुभाषित रत्नाकर (अनर्घ्य राघव)

भावार्थ -    विद्वान और बुद्धिमान व्यक्तियों की सभा में विभिन्न
कलाओं में कुशल व्यक्ति ही शोभा देते हैं | इसी लिये तो भगवान
शिव ने अन्य सभी अलंकरणों को त्याग कर चन्द्रमा की कलाओं को
ही अपने मस्तक पर धारण किया हुआ है  |

(प्रस्तुत सुभाषित 'कलावत्प्रशंसा' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है |
चन्द्रमा विभिन्न कलाओं और सौन्दर्य का प्रतीक माना जाता है और
इसी लिये संस्कृत में  उसे कलानिधि भी कहा जाता है और उसकी एक
कला भगवान शिव के मस्तक पर भी  सुशोभित होती है | इसी तथ्य
को एक उपमा के रूप में इस सुभाषित में प्रयुक्त किया गया है |)

Vibudhaanaam sabhaayaam tu  kalaavaaneva raajate.
Harastaanakhilaanstyaktkaa  tameva shirasaa dadhau.

Vibudhaanaam = very wise and learned men.   Sabhaayaam=
in the assembly of.        Tu = and, but.            Kalaavaaneva =
kalaavaana+eva.    kalaavaana =a person conversant with arts.
Eva =thus, really.   Raajate= shines.   Harah+taam +akhilaam+
tyaktkaa.    Harah = a  name of Lord Shiva.  Taam= them.
Akhilaam= entire.   Tyaktaa = ab of andoned.    Tameva = tam +
eva. Tam =to it.   Shirasaa= on the forehead.  Dhaaryate =wears.

i.e.     In an assembly of wise and learned persons only those
persons shine, who are experts in various arts.  Only for this
reason Lord Shiva has adorned his forehead with a segment of
the Moon. abandoning other embellishments.

(This Subhashita is in praise of persons well versed in various arts.
The Moon symbolises  various arts and beauty in Sanskrit and is
also called 'Kalanidhi'  i.e. a treasure house of  beauty and arts, and
one segment of the Moon also adorns the forehead of Lord Shiva.
This has been used as a metaphor in this Subhashita.)

Sunday, 21 January 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


गुरोरधीताSखिलवैद्यविद्यः  पीयूषपाणिः कुशलः क्रियासु  |
गतस्प्रहो धैर्यधरः कृपालुः शुद्धोSधिकारी भिषगीदृशः स्यात्  ||

भावार्थ -   जिसने अपने गुरुओं से संपूर्ण चिकित्सा विज्ञान सीखा हो
शल्यक्रिया करने में  इतना कुशल हो कि मानो उसके हाथों में मृतक
को भी जीवित करने वाला अमृत हो , ईर्ष्या से रहित,धैर्यवान, दयालु और
सरल स्वभाव वाला हो , वही वैद्य वास्तव में एक आदर्श वैद्य होता है |

(प्रस्तुत सुभाषित 'वैद्यप्रशंसा' शीर्षक से संकलित है | इस में एक आदर्श
चिकित्सक के गुणों का वर्णन किया गया है |  'कुवैद्योपहास ' शीर्षक के 
अन्तर्गत उसे यमराज का सहोदर तक कह दिया गया है कि - "वैद्यराज
नमस्तुभ्यं यमराजसहोदर  | यमस्तु हरति प्राणान्वैद्यः प्राणान्धनानि च ' | )

Guroradheetaakhilavaidyavidyah  peeyushapaanih kushalah kriya
Gataspraho dhairyadharah krupaaluh shuddhodhikaaree
bhishageedrushah syaat.

Guroh +adheeta+akhila+vaidyavidyah.      Guroh = teachers
.Adheeta = well read.   Akhila= entire.   Vaidyavidyah = the
science of medicine.   Peeyusha = Amruta, the divine nectar.
Panih = hands.   Kushalah = expert.    Kriyaasu =  techniques
of performing various operations.   Gataspraha = not envious.
Dhairyadharah = possessing firmness or constancy.   Krupaluh=
kind , merciful.     Shuddho+adhikaari   Shuddho = clean. 
Adhikaari = an authority.  Bhishagee = a physician.    Drushh=
in appearance.    Syaat = perhaps.

i.e.     A Vaidya (physician)  who has learnt the entire science of
Indian Medicine from his teacher, is so much expert in conducting
various critical operations as if he has in his hands 'Amruta' , the
nectar of Gods capable to bring to life a dead person, is not envious,
possesses firmness, is merciful and clean, is perhaps an ideal Vaidya.

(The above Subhashita praises a competent 'Vaidya' by describing
the essential qualities he must have. In another Subhashita criticizing
an incompetent and greedy Vaidya he has been described as a cousin
brother of Yama, the God of Death.)

Saturday, 20 January 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


स्वमस्तकसमारूढं  मृत्युं  पश्येज्जनो  यदि  |
आहारोSपि  न रोचेत किमुताSन्या  विभूतयः ||
                      -  सुभाषित रत्नाकर (कल्पतरु)

भावार्थ -    जब कोई व्यक्ति अपने सिर पर मौत  को नाचते हुए
देखता है  तो उसे भोजन करना भी रुचिकर नहीं लगता है , अन्य
धन संपत्ति आदि तो दूर की बात है |

Svamastak-samaaroodham  mrutyum pashyejjano yadi.
Aahaaropi  na  rochet  kimutaanyaa  vibhootayah.

Svamastak = one's own hear.    Samaaroodham = fallen upon,
Mrutyum = death.   Pashejjano = pashyet + jano.   Pashyet =
sees.    Jano = a person.    yadi = if.  Aaharopi  = aahaaro+ api.   
Aahaaro = food.    Api = even.   Na = not.   Rochet =  liked.
Kimutaany aa =  kimuta+ anyaa.    = Kimutaanyaa= kim + uta
+.Anyaa.    Kim =  what.     Uta = or, else.     Anya = other.
Vibhootayah = wealth and other possessions.

i.e.     When a person sees death hovering over his head , he
does not like even to take food , what to say of his wealth and
other worldly possessions.



Friday, 19 January 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अभ्यासिनामेव  लभ्या  अपि  विद्याश्चतुर्दश  |
अप्यर्कमण्डलं  भित्वाSभ्यासिनैवेह  गम्यते    || - सुभाषित रत्नाकर

भावार्थ -  निरन्तर अभ्यास के बल पर ही लोग चौदह प्रकार की विद्यायें
प्राप्त कर  लेते हैं |   देखो न  !  अभ्यास के बल पर ही सूर्य सौर मण्डल को
भेद कर उसमें सतत भ्रमण करता रहता है |

(इस सुभाषित में अभ्यास करने के महत्त्व को प्रतिपादित किया गया है |
किसी भी विद्या के ऊपर पूर्ण अधिकार रखने तथा उसे समीचीन रखने  के
लिये उसका  निरन्तर अभ्यास करना अत्यावश्यक है, जैसा कि एक अन्य
सुभाषित में कहा गया है  कि - 'अनभ्यासे  विषं शास्त्रं ', अर्थात् किसी सीखी
हुई विद्या का यदि अभ्यास न किया जाय तो वह विष स्वरूप हो जाती  है |)

Abhyaasinaameva labhyaa  api  vidyaashchaaturdasha.
Apyarkamandalam  bhitvaabhyaasinaiveha   gamyate.

Abhyaasinaameva = abhisaaniaam + eva.    Abhyaasinaam =
regular practitioner.    Eva = really, thus.    Labhyaa =acquirable.
Api = even.  Vidyaashchaturdashaa. = Vidyaah +chaturdashaa.
Vidyaah = various disciplines of learning,   Chaturdashaa =
fourteen (in number).    Apyarkmandalam = api +arkmandalam.
Arkamandalam =Solar system.   Bhitva-abhyaasinaiveha =
Bhitvaa = breaking.    Abhyaasinaivaih. = regular practitioners.
Gamyate = travels, goes.

i.e.      People are able to learn even fourteen disciplines of Learning
simply by regular practice.  See ! the Sun also traverses the Solar System
continuously only because of regular practice.

(The above Subhashita highlights the importance of regular practice
to have command over any discipline of Learning.  Another Subhashita
goes to the extent of saying that if no regular practice is done to revise
and update the knowledge,it becomes outdated and is just like a poison.)

Thursday, 18 January 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita .


अचोद्यमानानि  यथा पुष्पाणि  च फलानि  च |
स्वं  कालं  नाSतिवर्तन्ते  तथा कर्म पुराकृतम्  ||
               -सुभषित रत्नाकर (प्रसंग रत्नावली )

भावार्थ  -  बिना किसी आदेश या  प्रेरणा के जिस प्रकार पुष्प
और फल अपने  निर्धारित समय पर वृक्षों में उत्पन्न हो जाते
हैं , उसी प्रकार मनुष्य द्वारा बहुत समय पूर्व किये हुए सत्कर्मों
या दुष्कर्मों का फल भी उसे किसी अन्य प्रकार से नहीं परन्तु इसी
प्रकार से समय आने पर स्वयं प्राप्त हो जाता है  |

Achodyamaanaani yathaa pshpaani cha phalaani cha.
Svam kaalam naativartante tathaa karma puraakrutam.

.Achodyamaanaani = without any inspiration  or inducement.
Yathaa = for instance.   Pushpaani = flowers.  Cha = and.
Phalaani = fruits.      Svam = .self  .       Kaalam = at the
appropriate time.   Naativartante = na+ ati +vartante.
Na = not.   Ati = too much.    Vartante = behave.    Tathaa=
similarly.   Karma = deeds, actions.   Puraakrutaa =actions
done long ago.

i.e.         Just as the flowers and fruits grow on trees at the
appropriate time without any inspiration or inducement, in
the same manner the consequences of good or bad deeds
done by people long ago have to be faced by them in due
course.




Wednesday, 17 January 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


तास्तु वाचः सभायोग्या याश्चित्ताSSकर्षणक्षमा  |
स्वेषां परेषां  विदुषां  द्विशामविदुषामपि ||
                         -  सुभाषित रत्नाकर (सभातरंग )

भावार्थ -   वे ही व्यक्ति किसी सभा में सहभागिता  करने  के योग्य
होते हैं  जो न  केवल अपने सहयोगियों  और अन्य विद्वानों को वरन
विरोधियों और तटस्थ व्यक्तियों के चित्त को अपनी  वाक्तृत्वशक्ति
से आकर्षित करने की क्षमता रखते हैं |

(प्रस्तुत सुभाषित 'वाग्वर्णनम्' शीर्षक अन्तर्गत संकलित है | इसमें एक
सफल वक्ता के लिये अत्यावश्यक गुण अर्थात अपने विरोधियों को भी
 आकर्षित करने की क्षमता को रेखांकित किया गया है |)

Taastu vaachah sbhaa-yogyaa yaashchittakarshanakshamaa.
Sveshaam pareshaam  vidushaam dvishaamavidushaamapi.

Taastu = taah + tu.   Taah = they.   Tu =and. = Vaachaa = speech,
felicity of expression.   Sabhaa = an assembly of learned persons.
Yogyaa = suitable.      Yaah + cha +chittaakarashana + kshamaa. 
Yaah = whose     Chittaakarshana= captivating the heart.  Kshamaa =
capable of.       Sveshaam= to himself.        Pareshaam= to others. 
Vidushaam= to learned men.  Dvishaamavidushaamapi = Dvishaam +
avidushaam + api.    Dvishaam = hostile persons,   Advishaam=
neutral  people.    Api = even.

i.e.           Only those persons are competent to participate in an
assembly of people, who, by their oratory, are capable of captivating
the hearts of not only the learned persons and their associates, but
also the people who are hostile towards them, as also neutral persons.

(In the above Subhashita the main pre-requisite of a successful orator
has been highlighted  i.e. ability to win the hearts of not only his
associates and neutral persons, but also of his enemies.)

Tuesday, 16 January 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


यो न ददाति न भुङ्क्ते सति विभवे नैव तस्य तद्द्रव्यम्   |
तृणमयकृत्रिमपुरुषो रक्षति सस्यं परस्यार्थे  ||
                                        -सुभाषित रत्नाकर (शार्ङ्गधर )

भावार्थ -    जो व्यक्ति न तो अपनी संपत्ति को दान करता है और
न स्वयं ही उसका उपभोग करता है , वास्तव में वह संपत्ति उस की
नहीं होती है | वह व्यक्ति तो एक घास से बनाये हुए एक  मानव पुतले
के समान है जिसे  कृषि उपज की वन्य पशुओं और  पक्षियों से  रक्षा
करने के लिये किसी  खेत में  खडा कर दिया जाता है |

(प्रस्तुत सुभाषित ;कृपणनिन्दा'  शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है | इसमें
एक कृपण व्यक्ति की तुलना  खेत में खडे किये हुए एक मानव पुतले से
की गयी है जो सटीक है |)

Yo na dadaati na bhunkte sati vibhave naiva tasya taddruvyam,
Trunamaya-krutrima-purusho rakshati sasyam parasyaarthe.

Yo =whosoever.   Na = not.   dadati = gives.   Bhunkte = consumes.
sati =  truly.    Vibhave = wealth.    Naiva=  no.     Tasya = his.
Taddruvyam = tat +druvyam.    tat = that.   Druvyam = money.
Trunamaya = made of graass.  Krutrrim = artificial.   Purusho =
a person.   Rakshati = protects.   Sasyam = crop.  Parasyaarthe=
parasya + arthe.    Parasya = others.   Arthe =for the sake of.

i.e.    A person who neither donates his wealth nor consumes it for
his own benefit ,  that wealth is truly speaking not his wealth. He is
just like a scare-crow made out of grass  erected on a field to ward
off animals and birds for protecting the crop .

(In the above Subhashita a miser as been most aptly compared to a
scare-crow erected in a field  to protect the crop.)

Monday, 15 January 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


साधूनां  चरणाम्भोजपरागं  भगवानपि  |
वाञ्छतीति  त एवेह वन्द्याः पद्माकरा इव ||
                       -सुभाषित रत्नाकर (स्फुट)

भावार्थ -  साधु (सज्जन और परोपकारी ) व्यक्तियों के कमल पुष्प
के समान सुन्दर और कोमल चरणों की धूलि पाने की इच्छा स्वयं
भगवान भी करते हैं | इसी कारण से संत जन  इस संसार में  कमल
पुष्पों के समान ही वन्दनीय हैं |

(एक अतिशयोक्ति के द्वारा , कि संतों की चरणधूलि पाने की कामना
स्वयं भगवान भी करते हैं, इस सुभाषित में संतों की प्रसंशा की गयी है |)

Saadhoonaam charanaambhojaparaagam Bhagavaanapi.
Vaanchateeti ta eveha vandyaah padmaakaraa iva.

Saadhoonaam = noble persons.   Charanaambhojaparaaga=
Charana+ambhoja +paraaga.    Charana = feet.   Ambhoja =
Lotus flower.  Paraaga = pollen of flowers (here reference
is to the dust on the feet of noble persons)   Bhagavaanapi=
Bhagavaan+ api.    Bhagavaan = the God Almighty.    Api=
even.   Vaanchateeti = vaanchati + iti.    Vaanchati = desires.
Iti = it.   Ta= that.   Eveha = eva+ iha.    Eva = really. thus.
Iha = in this World   Vandyaah = venerable.   Padmaakaraa =
lotus flowers.   Iva = like ( comparison).
e
i.e.     Even the God Almighty himself  desires to have the
dust on the lotus like feet of noble and righteous persons.
For this very reason noble persons are venerated like the
beautiful lotus flower in this World.

(Through the use of a hyperbole that even God himself desires
to have the dust of the feet of noble persons ,the  author of this
Subhashita. has praised the contribution of noble persons in the
Society.)

Sunday, 14 January 2018

आज का सुभाषित /Today's Subhashita


मज्जन्तोSपि  विपत्पयोधिगहने  निःशङ्कधैर्याSSवृता
कुर्वन्त्येव परोपकारमनिशं  सन्तो यथाशक्ति वै     |
राहोरुग्रकरालवक्रकुहरग्रासाधिभूतोSप्यलं
चन्द्रः किं  न जनं  करोति सुखिनं  ग्रासाSवशेषैः करैः ||
             -  सुभाषित रत्नाकर ( महाजनप्रशंसा -स्फुट )                         -

भावार्थ -   महान विपत्तियों के गहन  समुद्र में  निमग्न (फंसे हुए)
होने पर भी संत पुरुष  बिना किसी शङ्का के धैर्य पूर्वक और यथा
शक्ति अपने परोपकार के कार्यों को उसी प्रकार लगातार जारी रखते
है जिस प्रकार चन्द्र ग्रहण के समय अत्यन्त उग्र,कराल तथा वक्र  राहु
के द्वारा अपने कुहर में ग्रस लिये जाने से उसके वश में  होने पर भी
चन्द्रमा अपनी बची हुई किरणों से इस संसार के लोगों को सुखी करने
के लिये क्या कुछ  नहीं करता है ?  (अर्थात हर संभव प्रयत्न करता है )

Majjantopi vipat-payodhi-gahanam nihshanka-dhairyaavrutaa.
Kurvantyeva paropakaaram-anisham santo yathaashakti vai.
Raahorugrakaraalavakrakuharagraasaadhibhootopyalam.
Chandrah ki m na janam karoti sukhinam graasaavasheshaih karaih.

Majjanto + api.     Majjanto = sinking. plunging.      Api = even.
Vipata+payodhi +gahane.    Vipat= calamity.   Payodhi = ocean.
Gahane =impassable, very deep.   Nihshanka = without any doubt.
Dhairy +aavrutaa.   Dhairya  = patience.    Aavrutaa= filled with
Kruvanti + iva.    Kurvanti = do .  Iva = really.  Paropakaaram =
helping the needy.  Anisham = constantly.   Santo = noble persons
Yathaashakti = to the utmost of one's ability or power.   Raaho =
imaginary planet called Dragon's head in English)   Ugra=fierce.
Karaala= terrible.   Vakra= crooked.   kuhara= cavity.   Graasa=bite,
swallowing.  Abhibhooto = .subdued.  api+ alam.   Alam =enough.
Chandra = the Moon.   Kim= what    Na= not.   janam = people.
Karoti = does. sukhinam = happy. Graasa .+ avasheshe  =remnant.
karaih = rays  (of the Moon).

i.e.         In spite of being plunged in the impassable and deep ocean of
calamities,  noble and righteous persons, assisted by their patience  still
continue to help the needy persons to the best of their ability and power,
just like the Moon, who, even eclipsed and subdued by the fierce,terrible
and crooked Rahu (Dragon;s head) , what not efforts he does to make the
people on the Earth happy by the remnants of its rays ?  (i.e. he does every
possible effort .)

Saturday, 13 January 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


नहि भवति वियोगः स्नेहविच्छेदहेतु -
र्जगति गुणनिधीनां  सज्जनानां कदाचित्  |
घनतिमिरनिबद्धो  दूरसंस्थोSपि  चन्द्रः 
किमु  कुमुदवनानां  प्रेमभङ्गं  करोति  || -सुभाषित रत्नाकर (स्फुट)

भावार्थ -  इस संसार में सज्जन और गुणवान व्यक्तियों  का आपस में
किसी कारण वश वियोग  होने  के फलस्वरूप उनके बीच में प्रेम  की
भावना कभी भी समाप्त  नहीं  होती  है , उदाहरणार्थ  अत्यन्त दूरी पर
स्थित और घोर अन्धकार में घिरा हुआ होने पर भी चन्द्रमा और रात्रि में ही
विकसित होनेवाले कुमुद पुष्पों के वनों का आपसी  प्रेम क्या समाप्त हो
जाता है  ?   नहीं,  कभी नहीं  |

(चन्द्रमा के प्रकाश में रात्रि में ही खिलने वाले कुमुद पुष्पों  की उपमा के
द्वारा इस सुभाषित में यही प्रतिपादित किया गया है कि सज्जन और
गुणवान व्यक्तियों की  मित्रता चिरस्थायी होती है और किसी कारण वश
आपस में वियोग होने मात्र से समाप्त नहीं होती है |)

Nahi  bhavati viyogah snehavicchedahetur-
-jagati gunanidheenaam  sajjanaanaam kadachit.
Ghana-timira-nibaddho doorasmsthopi Chandrah.
kimu kumudavanaanaam premabhangam karoti.

Nahi = not at all.    Bhavati = happens.   Viyogah = separation.
Sneha = affection.   Viccheda = cessation, end.   Hetuh =reason.
Jagati = the World.    Gunanidheenaam =excellent and virtuous
men.    Sajjanaanaam = noble persons.   Kadaachit = some times.
Ghana = dense.   Timira = darkness.   Nibaddho =confined to.
Doorasmsthopi = doorasansstho + api.   Doorasanstho = situated
far off.     Api =even.   Chandraah =the Moon.   Kimu =of what ?
kumuda=a variety of  lotus flowers blooming  in the night,
Vanaanaam = a cluster of.  Prem = love .    Bhangam = breach of . 
karoti = causes to.

i.e.        In this World friendship among noble and virtuous persons
does not end due to their separation for any reason, e.g.  if the Moon
staying far  away  in  the sky is confined into pitch darkness,   can it
result in cessation of friendship between a cluster of lotus flowers
blooming only during the night ?   Not at all.

(A variety of lotus flowers blooms only in the night.  Through the
simile of Lotus flowers and the Moon, the author of the above
Subhashita has emphasised that the friendship among noble and
virtuous persons is not affected by any temporary separation among
them )

Friday, 12 January 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अहो महत्त्वं महतामपूर्वं विपत्तिकालेSपि  परोपकारः             |
यथाSSस्यमध्ये पतितोSपि राहोः कलानिधिः पुण्यचयं  ददाति ||
                                               -सुभाषित रत्नाकर (सभातरंग )

भावार्थ -   अहो ! सज्जन और  महान व्यक्ति भी कितने अद्वितीय होते हैं  कि
उन के ऊपर विपत्ति आने पर भी वे परोपकार करना उसी प्रकार नहीं छोडते हैं
जैसे कि राहु द्वारा चन्द्रमा को ग्रसित ( आच्छादित) कर देने पर भी चन्द्रमा अपनी
पवित्रता और परोपकार की भावना का त्याग नहीं करता है और समस्त संसार को
पुनः प्रकाशित करता रहता है |

(प्रस्तुत सुभाषित में सज्जन और परोपकारी व्यक्तियों की तुलना चन्द्रमा से की
गयी है जो कि चन्द्रग्रहण होने पर भी  पुनः अपनी किरणों से समस्त संसार को
प्रकाशित करता रहता है | )

Aho mahattvam mahataamapoorvam vipattikalepi paropakaarah.
Yathaasyamadhye patitopi raahoh kalaanidhih punyachayam dadaati.

Aho =  Oh !    Mahattvam = moral greatness.   Mahatamapoorvam=
Mahataam + apoorvam.    Mahataam =  noble and righteous persons.
Apoorvam = unique.   Vipattikaalepi= vipatti + kaale + api.   Vipatti=
calamity.       Kale = at the time of.      Api = even.      Paropakaarah=
benevolent deeds.           Yathaasyamadhye = yathaa +asya+madhye
Yathaa =for instance.   Asya = this, its.   Madhye = in the middle of.
Patitopi = patito + api.    Patito = fallen.    Raaho = Dragon's head
(An astrological phenomenon causing eclips of the Moon.)  Kalaanidhi=
the Moon.   Punyachayam = virtuousity and righteousness.   Dadaati=
gives, grants.

i.e.    Oh !  how unique and great are the noble and righteous persons,
who, even while facing a calamity do not hesitate to do benevolent
deeds  just like the Moon who  even being eclipsed by Rahu (Dragon's
head) continues to brighten the Universe .

(In this Subhashita noble and righteous persons have been praised by using
the simile of the Moon and its eclipse for noble persons facing a calamity,
who, still continue to do benevolent deeds.)




Thursday, 11 January 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita .


मान्या एव हि मान्यानां मानं कुर्वन्ति नेतरे  |
शंभुर्विभार्ति  मूयत ए udन्दुं  स्वर्भानुस्तं  जिघृक्षति  ||
                       -सुभाषित रत्नाकर (शार्ङ्गधर )

भावार्थ -   माननीय व्यक्ति ही अन्य माननीय  व्यक्तियों का यथोचित
सम्मान करते हैं तथा अन्य व्यक्ति निश्चय ही उनका सम्मान नहीं करते
हैं |  देखो तो भगवान शिव ने तो चन्द्रमा को अपने मस्तक पर धारण कर
उसे सुशोभित किया , परन्तु  उसी चन्द्रमा को ग्रसने के लिये राहु सदैव तत्पर
रहता है |

(प्रस्तुत सुभाषित में राहु द्वारा चन्द्रमा को ग्रसने की खगोलीय घटना (चन्द्र
ग्रहण)तथा भगवान शिव द्वारा उसी चन्द्रमा को अपने ललाट पर धारण करने
को उपमा के रूप में प्रयुक्त कर यह  प्रतिपादित किया है कि सज्जन व्यक्ति ही
अन्य सज्जनों का उचित आदर सत्कार करते है अन्य साधारण व्यक्ति नहीं |)

Maanyaa eva hi maanyaanaam maanam kurvanti netare.
Shambhrvibhaarti  moordhnendum svarbhaanustam jighrakshati.

Maanyaa = honourable persons.   Eva= really.   Hi = surely.
Maanyaanaam = honourable persons.   Maanam = respect 
kurvanti = do.    Netare =na + itare.    Na=not.   Itare = others.
Shambhurvibhaarti = shambhuh + vibhaarti.    Shambhuh =
God Shiva.   Vibhaarti = excel by .  Moordhnendum = moordhni +
indum.   Moordhni = over the forehead .   Indu = the Moon.
Svarbhaanustam = svarbhaanuh + tam.  Svarbhaanuh = Rahu or
the imaginary planet called Dragon's head in English.   Tam =
to him (the Moon).    Jighrukshati = seizes (lunar eclipse) 

i.e.   Only honourable persons give due respect to other honourable
persons and surely not so by other ordinary persons.  Just see, how
Lord Shiva adorns the vibrant moon by placing it over his forehead,
whereas Rahu (Dragon's head)  seizes the Moon during the Lunar
Eclipse.

(In this Subhashita the phenomenon of Lunar eclipse has been used as
a simile to emphasise the fact that only honourable persons give due
respect to other honourable persons. )

Wednesday, 10 January 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


धवलयति समग्रं चन्द्रमा जीवलोके
किमिति निजकलङ्कं नात्मसंस्थं  प्रमार्ष्टि  |
भवति विदितमेतत्प्रायशः सज्जनानां
परहितनिरतानामादरो  नाSSत्मकार्ये   || -सुभाषित रत्नाकर (शार्ङ्गधर)

भावार्थ -   चन्द्रमा समग्र विश्व को अपनी ज्योति  से प्रकाशित कर देता है
परन्तु फिर अपने कलङ्क को स्वयं ही क्यों मिटाता है  ?  इसी प्रकार प्रायः
यह  देखा गया  है कि परोपकार् करने मे व्यस्त  सज्जन व्यक्तियों को  भी
उनके द्वारा किये गये कार्यों के  लिये समुचित आदर प्राप्त नहीं होता है |
(यह अलग बात है कि सज्जन व्यक्ति आदर और सम्मान प्राप्त करने की
भावना से सेवा कार्य  नहीं करते हैं )

(चन्द्रमा को देखने पर उसके ऊपर काले धब्बे दिखाई देते हैं , जिन्हें कवियों
ने 'कलङ्क' का उपनाम दिया है | पूर्ण चन्द्र की तुलना स्त्रियों के सुन्दर्  मुख
से भी की जाती है | इस सुभाषित में चन्द्रमा की तुलना परोपकारी और सज्जन
व्यक्तियों से की गयी है | जिस प्रकार चन्द्रमा को सारे विश्व को प्रकाशित करने
पर भी अपने धब्बों के कारण आदर प्राप्त नहीं  होता है उसी प्रकार सज्जन व्यक्ति 
भी परहित के कार्य समाज से आदर प्राप्त करने की भावना /अपेक्षा से नहीं करते हैं |  )
 
Dhavalayati samagram chandramaa jeevaloke.
Kimiti nijakalankam naatmasmstham pramaarshti.
Bhavati viditmetatpraayashah sajjanaanaam.
Parahita nirataanaamaadaro naatmakaarye.

Dhavalayati = illuminates.   Samagram = whole, entire.   Chandrama=
the Moon.   Jeevaloke = this World.   Kimiti = why ?   Nija = his own.
Kalankam = stain, blot.    Naatmasmsthyam = Na + aatma +smsthyam.
Na = not.   Aatma =  self.    Sanstham = presence.  Pramaarshti = wipe .
Bhavati =happens.  Viditmetatpraayashah = viditam + etat + praayasho.
Viditam = known.   Etat = this.   Praayashah = mostly, as a general rule.
Sajjanaanaam = noble  persons.   Parahitanirataanaamaadaro =paraahita
=nirataanaam +aadaro.   Parahita = for the welfare of others.   Aadaro =
regard, respect.    Nirataanaam = persons engaged in.    Naatmakaarye =
na + aatmakaarye. = one's own duty.

i.e.    The Moon  illuminates the whole World by its radiance, but why it
is destined to wipe its dark spots himself ?    Similarly, it is observed  that
noble and righteous persons who are engaged in the welfare of society are
not given due respect for the work done by them, (It is another matter that
they do such work without expecting any reward or respect.)

(In Sanskrit literature the dark spots on the Moon's surface and its brightness
are frequently used as a metaphor for the face of beautiful women and their
blemishes. In this Subhashita noble and righteous persons have been compared
with the Moon.  Noble persons also do not get full credit of their philanthropic
work just like the Moon. )




Tuesday, 9 January 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


कशायैरुपवासैश्च  कृतामुल्लोपतां  नृणाम्| 
निजौषधकृतां  वैद्यो  निवेद्य  हरते धनम्  ||
                                     -सुभाषित रत्नाकर (विश्व गुणादर्श:)

भावार्थ - विभिन्न वनस्पतियों का कषाय (रस  या काढा) पीने से
तथा उपवास करने से लोग रोगमुक्त हो जाते है , पर उसी उद्देश्य
से  अपनी ही बनायी हुई औषधियां  दे कर एक वैद्य लोगों से धन
हरण करता  है |
 (प्रस्तुत सुभाषित "कुवैद्योपहासः " शीर्षक के अन्तर्गत संकलित
है | अनेक साधारण रोग दैनन्दिन उपयोग में आने वाली वस्तुओं
जैसे, लहसुन, अदरख , जीरा अजवाइन तुलसी आदि के सेवन से .
(जिसे हम  घरेलू उपचार कहते हैं) दूर हो जाते हैं | उसी हेतु जब कोई
वैद्य या डाक्टर  बहुत मंहगी दवा देता है तो वह वास्तव में धन हरना
ही कहा जा सकता है |  वर्तमान समय में यह  अब एक बडी समस्या
और कुप्रथा बन गयी है, विशेषतः विदेशी उपचार पद्धति में  | इसी
प्रवृत्ति का इस सुभाषित  में उपहास किया गया है |)

Kashaayairupavaasaishcha  krutamullopataam nrunaam.
/Nijaushadhakrutaaam vaidyo  nivedya harate dhanam.

Kaashaayairupavaasaishcha = kashayaih + upavasaih +cha.
Kashayaih = aromatic astringents,   Upavaasah = fasting.
Cha = and.  krutaamullopataam = krutaam +ullopataam.
Krutaaam = by doing.   Ullopataam = taking out, get cured.
Nrunaam = people.   Nijaushadhakrutaam =  nija + ausshadha
+ krutaam.    Nija = his own.   Aushadha = medicine.  Vidyo=
a  physician practicing Ayurveda,the Indian system of treating
diseases.     Nivedya = by offering or prescribing.      Harate =
takes away,    Dhanam = money, wealth.

 i.e.   People get cured  from common ailments by using aromatic
astringents easily available in our day-to-day life , but if for their
 treatment a Vaidya prescribes his own costly medicines, he robs
people of their wealth.

(This Subhashita is classified under the caption 'criticism of a
Vaidya' .  There are many diseases which can be cured by the use
of commonly used herbs and vegetation used in our day to day life.
But if a doctor prescribes his own or patented costly medicines for
curing these ailments, he definitely robs the people of their wealth.
This tendency of prescribing very costly medicines is now-a-days
very rampant , particularly in western system of medical treatment.)

Monday, 8 January 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


सपदि  विलयमेतु राज्यलक्ष्मी -
रुपरिपतन्त्वथ  वा  कृपाणधाराः |
अपहरतुतरां  शिरः कृतान्तो
मम  तु  मतिर्न  मनागपैति  धर्मात्  ||-  सुभाषित रत्नाकर

भावार्थ -    चाहे मेरा  वैभव और समृद्धि तुरन्त नष्ट हो जाये , और
मेरे ऊपर ऐसी विपत्तियां आयें जिन से सामना करना तलवार की
धार  पर चलने के समान हो , दैव (भाग्य ) मेरे जीवन का शीघ्र  ही
अंत  क्यों न कर दे, मेरी मति मुझे अपने  धर्म का पालन करने  से
कभी दूर नहीं होने देगी  |

Sapadi vilayametu raajyalakshmi-
ruparipatntvatha vaa krupaanadhaaraa.
Apaharatutaraam shirah krutaanto
Mama tu mirnamanaagapaiti dharmaat.

Sapadi =at once.   Vilayametu= disappears.   Raajyalakshmi =
good fortune or the glory of a kingdom/ a person.  Upari.= over.
Patantvatha = falls.   Vaa - or.   Krupaana = sword.   Dhaaraa=
edge.    Apaharatu  = abducts, takes away.   Taraam = added to
verbs and adverbs to intensify their meanings.   Shirah = head.
Kruntaanto= destiny, bringing to an end.       Mama = me, my. 
Tu = but, and.   Matirna = matih + na.    Mati = intellect.
Na = not.    Manaagapaiti  = manaak + apaiti.   Manaak =shortly.
Apaiti = vainishes, go away.    Dharmaat = by religious austerity.

i.e.    Even if  all my good fortune and prosperity disappears, or
I may have to face hardships like walking on the blade of a sword,
or the destiny may bring my life to an end, it is my resolve  that my
intellect  will not allow me to deviate from the path of religious
austerity.

Sunday, 7 January 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita ..


अन्यानि शास्त्राणि विनोदमात्रं  प्राप्तेषु कालेषु न तैश्च किंचित |
चिकित्सितज्योतिष मन्त्रवादाः पदेपदे प्रत्ययमा वहन्ति   ||
                                                - सुभाषित रत्नाकर (कल्पतरु )

भावार्थ -         अन्य शास्त्र  तो केवल मनोविनोद के लिये और विशिष्ट
अवसरों पर थोडे ही  समय के लिये ही प्रयुक्त होते हैं |  परन्तु चिकित्सा
शास्त्र तथा खगोलशास्त्र , ज्योतिष तथा मंत्र-तंत्र की आवश्यकता कदंम
कदम  पर पडती है |

Anyaani shaastraani vinodamaatram praapteshu kaaleshu
na taishcha kinchit.
Chikitsita-jyotisha-mantravaadaah padepade pratyayamaa
vahanti.

Anyaani = others.    Shaastraani = disciplines of learning. 
Vinod= entertainment.    Maatram = merely, amounting to. 
Praaptakaala =suitable for a particular occasion.    Na = not. 
Taishcha= taaih  +Cha.    Taih = they.   Cha = and.  Kinchit =
a little bit.   Chikitsita = medical  science   Jyotisha=Astrology
/Astronomy.   Mantravaadah = sacred texts and magical arts. 
Padepade =  at every step.      Praatyayama = fame, need.   
Vahanti = conveys, exhibits.

i.e.    Other disciplines of learning are used only for the purpose
of entertainment on specific occasions and for a short period only.
But the medical science , Astronomy/Astrology , sacred texts and
magical arts are such disciplines that their need is felt at every step.


































































































































































अन्यानि शास्त्राणि विनोदमात्रं प्राप्तेषु कालं न च तैश्च किंचित |
चिक्त्सतज्योतिषमन्त्रवादाः  पदेपदे  प्रत्ययमा वहन्ति ||
                                                - सुभाषित रत्नाकर (कल्पतरु )
भावार्थ -



Anyaani shaastraani vinodamaatram praapteshu kaalam na cha
taishcha kinchit.
Chikitsajyotishamantravaadaah padepade pratyayamaa vahanti.

Anyaani = other.    Shaastraani = disciplines of learning.  Vinoda=
entertainment.   Maatram = being nothing but, sheer.   Praapteshu=












     

Saturday, 6 January 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


उपभोक्तुं  न  जानाति श्रियं  प्राप्याSपि  मानवः |
आकण्ठजलमग्नोSपि  श्वा  लिहत्येव  जिह्वया  ||
                                  - सुभाषित रत्नाकर (स्फुट)

भावार्थ -      जिस प्रकार  अपने कंठ (गले) तक जल में डूबा हुआ
एक कुत्ता जल को अपनी जिह्वा (जीभ) से चाट कर पीता है वैसे
ही कुछ लोग बहुत धनवान होते हुए भी अपनी प्रचुर संपत्ति का
उपभोग करना नहीं जानते  हैं |

(उपर्युक्त सुभषित में एक कृपण (कंजूस) व्यक्ति की निन्दा उसकी
तुलना एक कुत्ते से कर की गयी है जो अपनी आदत से लाचार जल को
चाट कर पीता है | )

Upabhoktum na jaanaati shriyam praapyaapi maanavah.
Aakantha  jalamagnopi shvaa lihatyeva  Jihvayaa .

Upabhoktum = consuming, enjoying.   Na = not.   Jaanaati=
knows,  learnt.        Shriyam = prosperity.         Praapyaapi =
praapya = available, accessible.   Api - even.     Maanavah =
a person.   Aakantha = up to the throat.  Jalamagnopi =jala +
magno + api.  Jala = water.   Magno = immersed in.   Shvaa =
a dog.   Lihatyeva = lihati +eva.    Lihati = licks.   Eva=really.
Jihvayaa = by the tongue.

i.e.   Just as a dog immersed in water up to his neck still drinks
water by licking it, in the same manner some very rich persons
do not know  how consume and enjoy their immense wealth.

(In the above Subhashita miserly persons have been criticized by
comparing them to a dog , whose habit is  to drink water by licking
it (symbolising miserly behaviour) .





Friday, 5 January 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अन्धं दरिद्रिणमपि  प्रियया विहीनं
वीक्ष्येश्वरे वदति याच  वरं त्वमेकम्   |
नेत्रे  न्  नाSपि  वसुनो वनितां  स  वव्रे
छत्राSभिरामसुतदर्शनमित्युवाच        || - सुभाषित रत्नाकर (स्फुट)

भावार्थ -    एक अन्धे भिखारी को जो पत्नी विहीन भी  था , देखकर
दयावश परमेश्वर (भगवान)  ने उससे कहा कि तुम मुझसे एक वर
मांग सकते हो (मैं तुम्हारी एक इच्छा पूरी कर दूंगा ) |उस भिखारी ने
जो नेत्रहीन था और उसकी पत्नी भी नहीं थी बडी चतुरतापूर्वक कहा
कि भगवन् आप  मुझे   वर दीजिये कि मैं स्वयं अपने नेत्रों से अपने
पुत्र  को एक छत्रपति (उच्चपदस्थ अधिकारी या राजा ) के रूप में'
देख  सकूं |

(प्रस्तुत सुभाषित में एक भिखारी का चातुर्य परिलक्षित होता है कि
उसने ऐसा वर मांग लिया  जिस से उसका अन्धत्व तथा अविवाहित
होना भी दूर हो जाय |  यह एक स्मित-हास्य का सुन्दर उदाहरण है | )

Andham  daridrinamapi  priyayaa viheenam.
vekshyeshvare  vadati  yaacha  varam tvamekam.
Netrae na naapi vasuno  vanitaam  sa vavre,
chatraabhiraamasutadarshanamityuvaacha.

Andham = a blind person.  Daridrinamapi = daridrinim + api.
Daridrinim = a  beggar..   Api = even.    Priyayaa = wife,
female friend.   Vheenam = without.    Veekshyeshvare =
veekshya + ishvaare.    Veekshya = on seeing.   Ishvare = the God.
Vadati = says.    Yaacha=  solicit,     Varam = boon.   Tvamekam-
Tvam+ekam.    Tvam = you.   Ekam = one.    Netre = eyes.    Na =
not.    Naapi  = na + api.   Vasuno =investments, clothes.  Vanitaam=
wife.   Sa = he ( the beggar)    Vavre = cunningly asked for a boon.
Chatra+ abhiraama + suta + darshanam + it+ uvaacha.       Chatra =
Umbrlla.    Abhiraam = beautiful.  (reference to a high status in the
society, where a person  moves around ceremoniously under the shade
of a beautiful umbrella carried by his attendants.)    Suta = son.
Darshanam = view,see.   Iti = this.    Uvaacha = said.

i.e.     God Almighty by seeing a beggar who was blind and without
a wife, by way of compassion told the beggar to ask only one boon to
be fulfilled.   The beggar cunningly asked the God to bless him with a
son entitled to use a ceremonial umbrella (a high dignitary or a ruler)
whom he should see through his own eyes.

(This Subhashita is an example of light humour,  He cunningly asked for
such a boon which could be fulfilled only when he gets married and his
blindness is also removed . and it was actually a 'three in one' boon. )


Thursday, 4 January 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


आसन्नमेव  नृपतिर्भजते मनुष्यं |
विद्याविहीनमकुलीनम सङ्गतं  वा  |
प्रायेण भूमिपतयः प्रमदालताश्च 
यः पार्श्वतो वसति  तं परिवेष्टयन्ति. ||
                                         -    सुभाषित रत्नाकर (स्फुट)

भावार्थ -    विद्या से विहीन , अकुलीन (नीच) तथा असभ्य  राजा (शासक) 
या भूमिपति (जमींदार )  विलासी और मद्विह्वलित  तन्वङ्गी स्त्रियों से 
से घिरे रहते है |  अतः जो व्यक्ति ऐसे राजाओं के सेवक होते हैं उन्हें इन सब 
के  साथ रह कर ही उनकी सेवा करनी पडती है |

(इस सुभाषित में अयोग्य , विलासी और अकुशल शासकों की  मनोवृत्ति तथा 
उनकी सेवा में कार्यरत सेवकों की व्यथा का वर्णन किया गया है |)

Aasaaanameva nrupatirbhajate manushyam.
Vidyaaviheenamakuleenamasangatam  va.
Praayena bhoomipatayah pramadaalataashcha.
yah paarshvato vasati  tam pariveshtayanti,

Aasannam + eva.    Aasannam =proximate.   Eva = a little.
Nrupatirbhajate = nrupatih + bhajate.    Nrupatih = king.
Bhajate = serve, rever, honour.   Manushyam = people.
Vidya + viheenam+ akuleenam+ asangatam.    Vidya=
knowledge, learning.   Viheen = without.    Akuleenam =
not belonging to an illustrious family.   asangatam = rude,
unbecoming..   Vaa = or.   Praayena = generally. probably.
Bhoomipatayah = kings, land lords.   pramadaalataashcha=
Pramadaa+ lataah +cha.    Pramadaa = a wanton woman;
Lata = a slim woman.   Cha = and.   Yah= Whosoever.
Paarshvato = besides.    Vasati = lives    Tm =them.
Parivesayanti = serve, wait on.
s
i.e.    Illiterate, incompetent and rude Kings ( also rulers and 
land lords) not born in an illustrious family  generally remain
in the company of  young ,drunken and wanton women. There
-fore, their  attendants too have to serve them by remaining
besides them.

(The above Subhashita besides criticizing the incompetent
Kings and rulers, also hints at the problems faced by their
attendants.)

Wednesday, 3 January 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


नीतिर्भूमिभुजां  नतिर्गुणवतां  ह्रीरङ्गनानां  रति-
दंपत्योः शिशवो  गृहस्थ  कविता बुद्धे: प्रसादो गिराम् |
लावण्यं वपुषः श्रुतं  सुमनस: शान्तिर्द्विजस्य  क्षमा
शक्तस्य द्रविणं गृहाSSश्रमवतां शीलं सतां मण्डनं ||
                           - सुभाषित रत्नाकर (सभा तरंग )

भावार्थ -     एक राजा  (वर्तमान संदर्भ मे देश के शासक) की शोभा उसकी
प्रजा के हित की  नीतियों के पालन से, गुणवान व्यक्तियों की शोभा उन की 
विनम्रता से, सुन्दर स्त्रियों की शोभा उनकी शालीनता से , विवाहित स्त्री-
पुरुष  की शोभा उनके आपस में प्रेम से, गृहस्थी की शोभा शिशुओं से,विद्वान
व्यक्तियों की शोभा उनकी काव्य प्रतिभा से, वाणी (बातचीत ) की शोभा सरल
और शालीन भाषा का व्यवहार करने से , शरीर की शोभा सुन्दरता से, सज्जन
व्यक्तियों  की शोभा उनके शास्त्र -पुराणों के ज्ञान से , ब्राह्मण की शोभा उसके
शान्त स्वभाव से ,शक्तिशाली व्यक्तियों की शोभा उनकी क्षमा करने की भावना
से, गृहस्थ व्यक्तियों की शोभा धनवान होने से तथा संतों की शोभा उनके  सच्चरित्र
होने से होती है |

Neetir-bhoomibhujaam natir-gunavataam hreeranganaam reti-
Dampatyoh  shishavo gurhastha kavita budhaih prasaado giraam
Laavanyam vapushah shrutam sumanasah shaantirdvijasya kshmaa,
Shaktasya dravinam gruhaashramavataam sheelam sataam mandanam.

Neeti = political ethics.  Bhoom ibhujaam = Kings, rulers.      Nati =
humility.    Gunavataam =virtuous persons.  Ranganaanaam =beautiful
women.     Hree = modesty.   Rati =  love, affection.   Dampatyoh =
husband and wife.   Shishavo= children.   Grahastha = householder.
Kavita = poetry.   Budhaih = learned persons.    Prasaado =kindness,
clearness in expression.    Giraa = speech.   Laavanya = charm, grace.
Vapushah = human body.    Shrutam =  well versed in sacred knowledge.
Sumanasah =wise and noble men. Shaanti = peace of mind.    Dvijasya =
of a brahmin.     Kshmaa = forgiveness.    Shaktasya = a powerful person. 
Dravinam = wealth.    Gruhaashramvataam = persons living a family life. 
Sheelam=character.   Sataam = saintly persons.   Mandanam =adornment .

i.e.     A king (now a days the ruler of a country) is adorned by following
ethical policies for the benefit of the citizens, virtuous persons are adorned
by their humility, beautiful women are adorned by their modesty, a married
couple by the love and affection among them,  a household is adorned by the
presence of children , learned persons are adorned by their command over
poetry, way of speaking is adorned by clarity of expression and use of polite
language, human body is adorned by grace and beauty, wise men are adorned
by their knowledge of  scriptures, a brahmin  is adorned by his peace of mind ,
a powerful person is adorned by his forgiveness,  a family is adorned by its
wealth, and saintly persons are adorned by their good moral character.


Tuesday, 2 January 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


ये  वर्धिता कनकपङ्कजरेनुमध्ये
मन्दाकिनीविमलनीरतरङ्गभङ्गैः  |
ते  सांप्रतं  विधिवशात्खुलु  राजहंसाः
शैवालजालजटिलं जलमाश्र्यन्ति   || 
                                    -सुभाषित रत्नाकर (भामिनी विलास )

भावार्थ -   जो पहले स्वर्णकमलों के पराग कणों का सेवन कर तथा
मन्दाकिनी नदी के निर्मल जल की तरङ्गों में विहार कर बडे हुए थे,
वे अब दुर्भाग्यवश शैवाल (काई) के जाल से भरे हुए और दूषित जल
में आश्रय लिये हुए हैं |  क्या  ये राजहंस  तो नहीं हैं  ?|

(प्रस्तुत सुभाषित भी  'ह्सान्योक्ति' का उदाहरण है |   लाक्षणिक रूप
से इसका तात्पर्य उन् लोगों की दुर्दशा का वर्णन करना है जो पहले तो
समृद्ध और सुखी थे , परन्तु भाग्य वश अब उन्हें दरिद्र और दुःखी जीवन
व्यतीत करना पड रहा है |)

Ye vardhitaa kanakarenumadhye.
Mandaakinee-vimal-neera-tarang-bhangaih.
Te saampratam Vidhivashat-khalu Raajahmsaah.
Shaivaala-jaala-jatilam  Jalamaashrayanti.

Ye = those.    Vardhitaa = grown up  Kanak= golden.
Pankaj = lotus.   Renu = pollen.    Madhye = in the middle.
Mandaakinww = sacred  river Ganges.  Vimal = clean and
pure.   neera=water. Taaranga=waves.   Bhangaih =broken.
Te = they.   Sa =ampratam = now.   Vidhivashaat = by the
quirk of fate.   Khalu = aren't they   Raajhamsah =  Swan.
Shaivaal = moss.   Jaala = web.   Jatilam =
jalamaashryanti = jalam + aashryanti.   Jalam =  water.
Aashryanti = take shelter.

i.e.    Those who earlier were brought up by eating the pollen
of golden lotuses and frolicked in the waves of pure water of
the river Mandaakini, are now by a quirk of fate have taken
shelter in the muddy and moss infested water.  Aren't  they
King  Swans ?

(This subhashita is also an  allegory.  Using the metaphor of a
King Swan the author has has highlighted the travails of rich
persons , who by a quirk of fate are now facing poverty and
hard times.) 



Monday, 1 January 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


रे  राजहंस  किमिति त्वमिहाSSगतोऽसि  
योSसौ  बकः स  इह  हंस इति प्रतीतः     |
तद्गम्यतामनुपदेन पुनः स्वभूमौ 
यावद्वदन्ति  च  बकं खलु मूढ लोकाः    || 
              - सुभाषित रत्नाकर (शार्ङ्गधर )

भावार्थ -    अरे  राजहंस  !  तुम यहां क्यों आये हो  ?  यहां तो जो बगुले
होते हैं  वे ही  हंस कहलाते हैं |  इस लिये तुम  जब तक यहां  के मूर्ख
लोग  तुम्हें भी बगुला समझें  तुम उलटे पांव यहां से अपने मूल निवास
स्थान को वापस चले जाओ |

प्रस्तुत सुभाषित एक 'हंसान्योक्ति ' के रूप से संकलित है | संस्कृत साहित्य
में राजहंस का बहुत  महत्त्वपूर्ण स्थान है | विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती
का वह वाहन है तथा यह भी मान्यता है कि उसमे नीर-क्षीर विवेक (दूध मिले हुए
जल में  दूध और जल को अलग करना ) की शक्ति होती है और वे मानसरोवर के
जल में विहार  करते हैं | ऐसा हंस यदि किसी ऐसे स्थान में जहां बगुलों का बाहुल्य
हो जाय तो उस का सम्मान नहीं हो सकता है |  लाक्षणिक रूप से इसका तात्पार्य
यह है कि जिस सभा या स्थान में मूर्खों का बाहुल्य  और आधिपत्य हो उस स्थान
में विद्वान और योग्य व्यक्ति का सम्मान नहीं होता है और वहां न रहने में ही भलाई है | )

Re  raajhamsa kimiti tvamihaagatosi
Yosau bakah sa  iha hansa iti prateeetah.
Tadgamyataamanupadena punh svabhoomah.
Yaavadvadanti na bakam khalu moodha lokaah.

Re -  O !    Raajahamsa = Swan, King goose.    kimiti = why ?
Tvamihaagatosi = tvam + iha + aagatosi.  Tvam =  you.  Iha=
here    Agatosi = have come.    Yosau = that is.   Bakah = stork,
crane.  Iti =is.  Prateetah =known as,  Tadgamyataamanupadena=
Tat + gamyataam + anupadena.   Tat = that.   Gamyataam =go.
Anupadena=  immediately go back.  Punah = again.  Svabhoomah=
your own place of stay.   Yaavabadanti = yaavat + vadanti.
Yavat = until.   Vadanti = they say.   Na = not.   Bakam = crane,
Khalu = certainly.    Moodha = stupid    Lokaah = people.

i.e.    O beautiful Swan !  why have you come to this place  ?   Here cranes
are known as swans.   Therefore, so long as you are certainly treated as a
crane by the foolish inhabitants of this place, it is better for you to go back
immediately to your original place  of living.

(This Subhashita is also an allegory using a swan as a metaphor for noble
and learned person.  In Sanskrit literature a Swan is a revered bird, associated
with Saraswati ,the Goddess of Learning, as her vehicle and its abode is the
famous lake Manasarovar , and is also said to possess the power of separating
milk from a mixture of milk and water, called 'Neera-ksheera Vivek'.   The
underlying idea is that learned persons do not get recognition in the company
of foolish and proud persons and it is advisable not to associate with them .)