Wednesday, 28 February 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


खलः   सज्जनकार्पासधक्षणैकहुताशनः  |
परदुःखाग्निधमनमारुतः केन वर्ण्यताम्  ||
     -                        सुभाषित रत्नाकर (प्रसंगरत्नावली )

भावार्थ -    कपास के समान शुभ्र  और कोमल स्वभाव के सज्जन
व्यक्तियों को जलाने (हानि पहुंचाने )में दुष्ट व्यक्ति  अग्नि के
समान होते है  |  अन्य व्यक्तियों की दुःखाग्नि को और भडकाने
में तीव्र वायु के समान कार्य करने वाले  इन दुष्ट लोगो के स्वभाव
का और क्या  वर्णन किया जाय ?

(यह सुभाषित भी "दुर्जननिन्दा" शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है |
इस में दो उपमाओं के  माध्यम से दुष्ट व्यक्तियों के स्वभाव का
वर्णन किया गया है | )

Khalah sajjana-kaarpaas,dhakshanaika-hutaashanah.
Paraduhkhaagni-dhamana-maarutah kena  varnyataam.

Khalah = a wicked person.    Sajjana = noble person.
Kaarpaasa = cotton.  Dhakshana = burning.  Eka = one,
single,   Hutaashanah = fire.    Paraduhkhaagni = para +
duhkha=agni.   Para = of others'    Duhkha = misery.
Agni=  fire.    Dhaman = burning.   Maarutah = wind.
Kena = Why ?   how ?    Varnyataam= described.

i.e.     Noble and righteous persons are like the soft cotton.
and wicked persons are like a fire which instantly burns the
cotton.  In what other manner can we describe the wicked
persons,who stoke the fire of miseries of other persons like
a blowing wind ?

(Through these two similes the author has described the true
 nature of wicked persons, of  causing harm to others without
any reason.)



  

Tuesday, 27 February 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


त्यजति च गुणान्  सुदूरं तनुमपि दोषं निरीक्ष्य गृह्णाति |
मुक्ताSलंकृतकेशान्  यूकामिव  वानरः पिशुनः  ||
                                            -सुभाषित रत्नाकर (स्फुट )

भावार्थ -    एक दुष्ट व्यक्ति मानवोचित गुणों को त्याग कर उनसे दूर ही
रहता है , परन्तु अन्य व्यक्तियों के बहुत ही सूक्ष्म (छोटे) दोषों को  देख कर
उन्हें तुरन्त अपना लेता है | सचमुच एक दुष्ट व्यक्ति एक मोतियों की माला
से अलंकृत परन्तु  जूंओं से भरे केशों वाले वानर के समान होता है |

(प्रस्तुत सुभाषित 'दुर्जन निन्दा 'शीर्षक से संकलित है | इसमें एक दुष्ट व्यक्ति
की तुलना जुओं से संक्रमित परन्तु मोतियों की माला पहने हुए एक वानर से की
गयी है क्यों कि  वाह्य रूप से  यद्यपि  वह सुसज्जित  रहता है उसकी दुष्टता
उस के केशों में छुपी हुई जुओं  के समान होती है | )


Tyajati cha gunaan sudooram tanumapi dosham nireekshya gruhnaati.
Muktaaalankruta-keshaan yookaamiva vaanarah  Pishunah.

Tyajati = gives up    Cha = and.   Gunaan = virtues.      Sudooram =
very far away.     Tanumapi = tanum +api.   Tanum = minute.    Api =
even.    Dosham =  defect, shortcoming.    Nireekshya = by observing.
Gruhnaati = grapples.   Muktaalamkrutakeshaan = muktaa +alankruta+
keshaan.    Muktaa = pearls.   Alankruta = decorated.    Keshaan = hairs.
Yookaamiva  - Yookaam + iva.    Yookaam =louse (a parasitic insect)
Iva = like a (comparison)   Vanarah = a monkey.    Pishunah = a wicked
person.

i.e.     A wicked person gives up all virtues and stays away from them, but
is able to observe even minutest defects in other persons and quickly adopts
them .  He is just like a monkey decorated with a pearl necklace , but having
his hairs  infested by lice.

(This Subhashita  is classified as ' condemning the wicked persons' . Through
a simile of a lice infested monkey wearing a pearl necklace, the author has
highlighted that although outwardly a wicked person may appear to be normal
his wickedness is hidden just like the lice in the hairs of the monkey.)


Monday, 26 February 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


दह्यमानाः सुतीक्ष्णेन  नीचाः परयशोSग्निना  |
अशक्तास्तत्पदं  गन्तुं  ततो  निन्दां  प्रकुर्वते   ||
                         - सुभाषित रत्नाकर (कल्प

भावार्थ -   नीच और दुष्ट व्यक्ति अन्य व्यक्तियों के यश रूपी
अग्नि में बुरी तरह झुलस जाते हैं (उन्हें दूसरों की प्रगति देख कर
जलन होती है ) |   यदि उनमें वैसा ही पद या प्रसिद्धि प्राप्त करने
की सामर्थ्य और शक्ति नहीं होती है तो फिर वे उन व्यक्तियों की
निन्दा करने लगते हैं |

Dahyamaaanaah suteekshnena  neechaah parayashogninaa.
Ashaktaaastatpadam gantum tato nindaamn prakurvate.

Dahyamaanaah = in flames.   Suteekshenena = painfully.
Neechaah = lowly and mean persons.  Parayashogninaa=
para + yasho + agninaa.    Para = others.   Yasho =fame.
Agnina =  by the fire of.    Ashaktaastatpadam = ashaktaah +
tat + padam.    Ashaktaah = incapable of .   Tat =  that.
Padam=post.   Gantum= go, reach.   Tato=then.  Nindaam=
defame, abuse.   Prakurvate =  do.

i.e.    Lowly and mean persons  get scorched in the fire of fame
achieved by other virtuous persons (are envious of the progress
of those persons). However, if they are incapable of  achieving
the  same status  or  post, then  they start abusing and defaming
those virtuous persons.




Sunday, 25 February 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


क्षुद्राः  सन्ति  सहस्रशः स्वभरणव्यापारमात्रोद्यताः
स्वार्थो  यस्य  परार्थ एव स पुमानेकः सतामग्रणी:   |
दुष्पूरोदर पूरणाय  पिवति स्रोतःपति  वाडवो
जीमूतस्तु  निदाघसंभृतजगत्सन्तापविच्छित्तये   ||
                            -  सुभाषित रत्नाकर (सभा तरंग )

भावार्थ  - ऐसे व्यक्ति तो हजारों की संख्या में होते हैं जो अपना भरणपोषण
करने के लिये व्यापार आदि कार्यों में लिप्त रहते हैं | लेकिन जिस व्यक्ति का
स्वार्थ (मुख्य उद्देश्य) वास्तव में अन्य लोगों का हित साधन  (सहायता) करना
होता है ऐसा व्यक्ति सज्जन और दयालु  व्यक्तियों में सदैव अग्रणी होता है |
उदाहरणार्थ सभी नदियों का जल पी पी कर भी समुद्र का पेट कभी नहीं भरता है
और उसके अन्दर सदैव वाडवाग्नि जलती रहती है | परन्तु वहीं बादल उसी समुद्र
से जल प्राप्त कर ग्रीष्म ऋतु में गर्मी से तप्त और पीडित पृथ्वी के सन्ताप को
जलवृष्टि के द्वारा दूर कर देते हैं |

Kshudraah  santi sahasrashah svabharana-vyaapaara-maatro-ddyataah.
Svaartho yasya paraartha eva sa pumaa-nekah  sataam-agranee.
Dushpoorodara pooranaaya  pivati srotahpati  vaadavo.
Jeemootastu nidaagha-smbhruta-jagat-santaapa-vicchittaye.

Kshudraah =small,  petty.   Santi  =are     Sahasrashah = by thousands .
Svabharana = self sustenance.  Vyaapaara = business.   Maatra = only.
Udyataa =engaged in.    Svaartho = one's own aim or objective.   Yasya=
whose.    Paraartha = intent upon others' welfare.   Eva = really.   Sa =
that.   Pumaanekah =pumaan + ekah.    Pomaan = man.   Ekah = one.
Sataamagranee =sataam+agranee.  Sataam=noble and virtuous persons.
Agranee = in the forefront.  Dushpoora =difficult to be filled or satisfied.
Udarapooranaaya =for supporting oneself.  Pivati =drinks.   Srotahpati =
the Ocean.   Vaadavo = submarine fire.    Jeemootah =  Cloud.   Tu =and,
but.     Nidaagha =Summer season.    Sambhruta = caused by,       Jagat=
the World.   Santaapa = grief, heat.    Vicchattaye = cessation, prevention.

i.e.  Ordinary people who are engaged in business and other profession for
their self-sustenance ,  are available in thousands, but such a person whose
aim in life is to dedicate himself for the welfare of poor and needy persons,
is foremost among all noble and virtuous persons. For instance,although the
Ocean gets water from all sources, but still its belly is never full and a fire
burns inside it. On the other hand the clouds which get the water from the
Ocean, they distribute it by their rain over the earth and save it from  the
scorching heat of the summer season.
  

Saturday, 24 February 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.



अनुकुरुतः खलसुजनामग्रिमपाश्चात्यभागयोः  सूच्याः |
विदधातिरन्ध्रमेको गुणवानन्यस्तु  पिदधाति              ||
                                  - सुभाषित रत्नाकर  (शार्ङ्गधर )

भावार्थ -   दुष्ट व्यक्तियों  के आगे तथा पीछे रह कर सज्जन
व्यक्ति अपने गुणों (सुशीलता, दयालुता आदि ) के द्वारा दुष्ट
व्यक्तियों के द्वारा किये गये बुरे कर्मों के प्रभाव को उसी प्रकार
दूर कर देते हैं जैसा कि सुई में पिरोये जाने के बाद  तागा सुई के
द्वारा बनाये गये छिद्रों में बार बार प्रविष्ट हो कर किसी वस्त्र
के फटे हुए भाग का जीर्णोद्धार (मरम्मत) कर देता है |

(प्रस्तुत सुभाषित में दुष्ट और सज्जन व्यक्तियों की स्वभावगत
विशेषताओं  को तागे और सुई  की उपमा के द्वारा व्यक्त किया
गया है |)

Anukurutah  khalasujanaamagrimapaashchaatyabhaagayoh
soochyaah.
Vidadhaatirandhrameko gunavaananyastu  pidadhaati.

Anukurutah = imitating.    Khala = a wicked person.   Sujanaam=
noble person   Agrim=front.   Pashchaatya = back.   Bhaagayoh =
parts,   Soochyaah = of a needle.   Vidadhaati = renders. produces.
Randhram = a hole, a slit.   Eko = one.     Gunavaan = virtuous,
with the thread.    Anyastu = anyah + tu.     Anyah = to the other
i.e. the hole or a slit.    Tu = but, and.     Pidadhaati = shuts.

i.e.    By remaining in front and the back of wicked persons, noble
persons nullify the effect of the misdeeds of wicked persons just like
the thread tucked to a needle repairs the hole or a slit in a garment.

(By the use of a simile of the thread and a needle, the author of this
Subhashita has outlined the nature of noble and wicked persons.)

Friday, 23 February 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


नहि  भवति  वियोगः स्नेहविच्छेद  हेतु -
र्जगति  गुणनिधीनां सज्जनानां  कदाचित्  |
घनतिमिरनिबद्धो  दूरसंस्थोSपि  चन्द्रः
किमु कुमुदवनानां प्रेमभङ्गं  करोति          ||
                         -सुभाषित रत्नाकर (स्फुट )

भावार्थ  -    इस संसार में गुणी तथा सज्जन व्यक्तियों के
बीच में  यदि किसी कारण वश एक दूसरे से संपर्क  टूट भी
जाता है  है तो भी इस से उनका आपस में प्रेम सम्बन्ध कभी
भी उसी प्रकार समाप्त  नहीं होता है जैसा  कि  दूर आकाश में
स्थित घने काले बादलों से ढके हुए चन्द्रमा का प्रेम सम्बन्ध
कुमुद पुष्पों के समूह से कभी भी समाप्त  नहीं होता है |

(रात्रि में चन्द्रमा के प्रकाश में खिलने वाले कमल पुष्पों को
कुमुद कहा जाता है | अनेक विघ्न बाधायें आने पर भी कुमुद और
चन्द्रमा का आपसी  सम्बन्ध  बना रहता है | इसी को सज्जन
व्यक्तियों की आपस में मित्रता के लिये एक उपमा के रूप में
इस सुभाषित में प्रयुक्त किया गया है | )

Nahi  bhavati  viyogah snehavicchedahetu-
rjagati  gunanidheenaam sajjanaanaam  kadaachit,
Ghanatimir  nibaddho  doorasmsthopi  Chandrah.
Kimu kumudavanaanaam  premabhangam  karoti.

Nahi = not at all.      Bhavati = happens.      Viyogah =
separation.   Sneha = affection.    Viccheda =cessation.
Hetuh = reason.     Jagati =  Earth.   Gunanidheenaam=
virtuous persons.   Sajjanaanaam = respectable persons.
Kadaachit = sometimes. Ghanatimira =darkness caused
in the night by dark clouds.   Nibaddho = covered by.
Doorasmstho = staying .far away.    Chandrah= Moon.
Kimu = can it ?.        Kumuda= a variety of lotus which
blooms in the night,  Vanaanaam = a cluster.   Prema-
bhangam = breaking of relationship of love.    Karoti=
does.

i.e.    In this World  the  separation between the respectable
and virtuous persons due to some reason does not  result at
all in cessation of their friendship, just like the relationship
between a cluster of  Lotus flowers and the Moon remains
unbroken, although the Moon stays far away in the sky and
at times is covered by dark clouds.


Thursday, 22 February 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


माता  यस्य  गृहे नास्ति भार्या  चाप्रियवादिनी  |
अरण्यं  तेन गन्तव्यं  यथाSरण्यं  तथा गृहम्    ||
                                              - चाणक्य नीति 
भावार्थ -  जिस व्यक्ति को अपने  घर में  अपनी  माता का 
संरक्षण प्राप्त न  हो तथा उसकी पत्नी कटु वचन कहने वाली 
हो, तो ऐसे व्यक्ति के लिये यही उचित है कि वह् वनवासी हो 
जाय क्यों कि उसके लिये जैसा वन कष्टकर है  वैसा ही अपने 
घर में रहना |

(किसी परिवार में वरिष्ट व्याक्ति न होने तथा पत्नी कर्कशा 
होने से गृहस्थ जीवन  कष्ट पूर्ण और दुःखमय हो जाता है | 
इसी भावना को इस सुभाषित में व्यक्त किया गया है |)

Maata  yasya  gruhe  naasti  bhaaryaa chapriyavaadinee.
Aranyam tena gantavyam yathaaranyam tatha gruham.

Maata = mother.    Yasya = whose.   Gruhe = home. 
Naasti = non-existent.    Bhaaryaa = wife.   Cha =  and.
Apriyavaadinee =speaking harshly.    Aranyam = a forest.
Tena = he.   Gantavyam = go.   Yathaa = for instance.
Tatha = so, thus.

i.e.    A person who has no mother to look after him and his 
wife is very rude and foul-mouthed , he should better reside 
in a forest, because his home is also just like a forest 
full of hardships.

Wednesday, 21 February 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अहह चन्डसमीरण दारुणं किमिदमाचरितं  चरितं  त्वया  |
यदिह चातकचञ्चुपुटोदरे  पतति  वारि  तदेव निवारितम्  ||
                                              - सुभाषित रत्नाकर (स्फुट)

भावार्थ  -  आह !   ओ अत्यन्त तेजी से बह्ने वाली वायु , तू चातक 
पक्षी से इस प्रकार का क्रूर आचरण क्यों कर रही है  ? जब भी चातक
अपनी चोंच को खोल कर उसके अन्दर वर्षा के जल को ग्रहण कर
अपनी प्यास बुझाने का प्रयत्न करता है तू उन जल की बूंदों को
उसकी चोंच के अन्दर प्रवेश  ही नहीं करने देती है |

(प्रस्तुत सुभाषित एक  'वाय्वन्योक्ति'  है |  इस में वायु  तथा चातक
पक्षी के माध्यम से यह प्रतिपादित किया गया है कि दुष्ट व्यक्तियों
की प्रवृत्ति अन्य लोगों के द्वारा किये जा रहे कार्यों में अकारण विघ्न
बाधा उत्पन्न करने की होती है |  हमने पिछले कई सुभाषितों में चातक
पक्षी के स्वभाव के बारे में कहा था कि वह केवल 'स्वाति' नक्षत्र में हुई
वृष्टि का ही जल पीता है और यदि उस समय भी तेज बहती हुई वायु
उसे ऐसा न करने दे तो यह क्रूरता की पराकाष्ठा कही जा सकती है |
इसी कारण वायु की भर्त्सना इस सुभाषित में की  गयी है | )

Ahaha chandasameerana  daarunam kimidam-aacharitam
charitam tvayaa.
Yadiha chaataka-chanchu-putodare patati vaari tadeva
nivaaritam.

Ahaha =Aha ! (an interjection). Chanda=cruel.  Sameerana=
wind.   Daarunam =violent, severe.   Kim =why ?   Acharitam=
behaving.    Charitam = deeds.    Tvayaa =  you.      Yadiha=
whenever.   Chaatak = the Chaatak bird.    Chanchuputodare =
in the cavity of the beak.     Patati = falls.       Vaari = water. 
Tadeva= that.    Nivaaritam = hindered, prevented.

i.e.   Aha !   O extremely fast blowing Wind ,  why are you
behaving so cruelly with the Chaatak bird ?  Whenever it tries
to trap the drops of rain in the cavity of its beak, you are not
allowing it to do so by blowing away the drops of rain.

(The above Subhashita is a 'Vaayvanyokti' (allegory using the
wind as a medium) directed towards wicked persons, whose
tendency is to unnecessarily put hindrances in other persons'
work.  We have already said that the Chatak quenches its thirst
only by the rain occurring during a particular celestial position
in the sky. So, preventing it from drinking water at that time is
extremity of cruelty, which has been condemned in this verse.)




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Tuesday, 20 February 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अन्ये ते जलदायिनो जलधरास्तृष्णां  विनिघ्नन्ति ये
भ्रातश्चाताक  किं वृथा विरुदितैः खिन्नोSसि विश्राम्यताम्  |
मेघः शारदा एव काशधवलः  पानीयरिक्तोदरो
गर्जत्येव  हि  केवलं भृशतरं  नो  बिन्दुमप्युज्झति  ||
                                        - सुभाषित रत्नाकर ( शार्ङ्गधर)

भावार्थ -   ओ भाई चातक  !   तुम व्यर्थ में रो रो  कर क्यो इतने दुःखी
और थके हुए हो ?   जल प्रदान करने  वाले तथा  अपनी जलधाराओं  से
प्यास बुझाने वाले बादल दूसरे ही होते है |  कांस के सुन्दर तथा श्वेत पुष्पों
के समान शरद ऋतु के ये बादल जल रहित होते हैं और केवल जोर जोर से
गर्जते हैं और जल की एक भी बूंद नहीं बरसाते हैं |

(प्रस्तुत सुभाषित भी एक 'चातकान्योक्ति  है |  इस श्लोक में  सहायता के
आकांक्षी व्यक्ति का प्रतीक चातक पक्षी है तथा जिस से सहायता अपेक्षित
है उसका प्रतीक बादल है |  अधिकांश  व्यक्ति मात्र आश्वासन ही देते रहते है
और बहुत थोडे ही  व्यक्ति होते हैं जो सचमुच सहायता करते हैं |  अतः हर
किसी से याचना करने  से कोई लाभ नहीं होता है |  एक कहावत भी है कि - 
"जो गरजते  हैं वे बरसते नहीं हैं |" )

Anye tey  jaladaayino jaladharaastrushnaam vinighnanti ye.
Bhraatashchaatak kim vruthaa viruditaih khinnosi vishraamyataam.
Meghah shaarada eva kaashadhavalah paaneeyariktodaro.
Garjatyeva  hi kevalam bhrushataram no bindumapyujjhati.

Anye = others.   Tey = they.    Jaladaayino = providing water (rain)
Jaladharaah = clouds.   Trushnaam = thirst.   Vinighnanti = kill,
(quench).    Ye = those.     Bhraatah = brother.    Chaataka = name of
a bird.   Kim = why.   Vruthaa = in vain.   Viruditaih =  wails.
Khinnosi = distressed, sad.   Vishraamyataam=  quiet.   Meghahah=
clouds.      Shaarada = autumn season.    Eva =thus,       Kaash =
a type of grass which produces white flowers.   Dhavalah =beautiful.
Paaneeyariktodaro = paaneeya + rikta + udaro.   Paaneeya = water.
Rikta = empty.   Udaro = abdomen, stomach.   Garjatyeva = make a
rumbling sound.   Hi = surely.  Kevalam = only.    Bhrushataram =
very loud   No = not.   Bindumapyujjhati= bindum + api + ujjhati,
Bindum = drop of water.    Ujjhati = discharges.

i.e.   O brother Chatak !  why are you wailing in vain and are so sad
and depressed ?  Those clouds which provide rain and quench your
thirst  are quite different.   These white clouds of autumn season, like
the beautiful white flowers of 'Kaash' ,  are empty and do not provide
even a single drop of water but simply produce loud rumbling sound.

(This Subhashita is also a 'Chataakaanyyokti' (allegory) .The underlying
idea is that there are very few people who come forward to provide help
and mostly people simply give an assurance which is never fulfilled by
them. So, it is of no use to ask every body for help. )


Monday, 19 February 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.



एक  एव खगो  मानी  चिरं जीवतु चातकः  |
म्रियते वा  पिपासायां याचते वा पुरन्दरम्  ||
                  - सुभाषित रत्नाकर (शार्ङ्गधर )

भावार्थ -   ओ  चातक पक्षी !  हमारी इच्छा है कि तुम चिरकाल
तक जीवित रहो |  अकेले तुम ही एक ऐसे पक्षी हो जो इतने हठी
विचार वाले हो कि प्यास लगने पर या तो इन्द्र देव से जलवृष्टि
की याचना करते हो या प्यासे ही मर जाते हो |

(उपर्युक्त सुभाषित भी एक 'अन्योक्ति ' है  |संस्कृत साहित्य में यह
मान्यता है कि चातक पक्षी केवल स्वाति नक्षत्र में हुई जलवृष्टि के
समय ही अपनी प्यास बुझाता है और अन्य किसी समय पर हुई
वृष्टि से नहीं चाहे वह प्यास से मर ही क्यों न जाय  | लाक्षणिक रूप से
इस 'अन्योक्ति' का तात्पर्य  यह है  कि महान व्यक्ति अपने विचारों
और कर्तव्य पर दृढ रहते हैं चाहे उन्हें इसके लिये अपने प्राण भी क्यों
न त्यागने पडें |)

 Eka  eva  khago  maanee  chiram jeevatu  chaatakah.
Mriyate  vaa pipaasaayaam  yaachite  vaa  purandaram.

Eka = 0ne.    Eva = really.   Khago = a bird.   Maanee =
proud, high minded.     Chiram =  long time.   Jeevatu =
live.    Chaatakah = name of a bird (There is a folk lore
that this bird quenches its thirst only from the rain falling
on the earth during a particular celestial position called
'Svaati  Nakshatra')       Mriyate = die.    Vaa = or , and.
Pipaasaayaam =   due to thirst.    Yaachite= imploring.
Purandaram = Indra, the God of rain.
at yo
i.e.        O 'Chatak' bird !   we wish that you enjoy a long
lifespan.  You are the only specie  among all birds who is
so proud and high minded that you implore Indra,the Rain
God, to provide you with water for quenching your thirst
and in absence thereof would rather prefer to die.

(This Subhashita is an 'Anyokti'  (allegory) The underlying
idea behind it is that great and noble men remain firm on
their duty and high ideals and do not hesitate even to die
to achieve their objective.


Sunday, 18 February 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


चातकः  स्वाSनुमानेन  जलं  प्रार्थयतेSम्बुदात्  |
स  स्वोदारतया  सर्वां  प्लावयत्यम्बुना  महीम्  ||
                         - सुभाषित रत्नाकर (शार्ङ्गधर )

भावार्थ -      चातक पक्षी तो अपनी आवश्यकता के अनुमान के
अनुसार  बादलों से जल प्रदान करने  की प्रार्थना करता है , परन्तु
बादल अपनी उदारता के कारण संपूर्ण  पृथ्वी को ही जलप्लावित
कर देते हैं  |

(प्रस्तुत सुभाषित भी एक 'मेघान्योक्ति ' है |  लाक्षणिक रूप से इसका
तात्पर्य यह है कि किसी भी वस्तु का आवश्यकता से अधिक होना भी
विपत्तिकर  होता है जैसे कि अतिवृष्टि से पृथ्वी में बाढ की विपत्तिकर
स्थिति  उत्पन्न हो जाती है |   ऐसी  मान्यता है कि चातक पक्षी स्वाति
नक्षत्र में हुई वर्षा का ही जल पीता है  अर्थात उसकी जल की आवश्यकता
सीमित  है | अतिवृष्टि के कारण बाढ की स्थिति न केवल चातक के लिये
हानिकारक  है  परन्तु कृषि के लिये भी है |

Chaatakah svaanumaanna jalam praarthayatembudaat.
Sa  svodaaratayaa sarvaam plaavayatymbunaa  maheem.

Chaatakah =name of a bird . (There is a folk lore that this bird
quenches its thirst only from the rain  falling on the Earth only
during a particular lunar position called 'Svaati nakshatra'.)
Svaanumaanena = sva + anumaanena.   Sva = one's own.
Anumaanena =guess, deduction.   Jalam =water.   Praarthayate=
makes a request.   Ambudaat = from the clouds.   Sa = he. (cloud)
Svodaaratayaa = sva + udaaratayaa.   Udaaratayaa = liberally.
Sarvaam =  entire.    Plaayatyambunaa = plaavayati+ambunaa. 
Plaavayati = inundates. Ambunaa = with water. Maheem = Earth.

i.e.    The 'Chatak' bird requests the clouds to provide him very
little amount of water according to his meagre requirement, but
the clouds by being very liberal inundate the entire Earth with
water.

(This Subhashita is also an allegory called "Meghaanyokti" i.e.
using clouds as a metaphor.  The requirement of water varies
from person to person. If there is too much rain floods are created,
which are harmful not only for the Chatak but also for agriculture.
So, the underlying idea is that too much of rain is  also disastrous.)

Saturday, 17 February 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


त्वयि वर्षति पर्जन्ये सर्वे पल्लविता द्रुमाः  |
अस्याकमर्कवृक्षाणां  पूर्वपत्रेषु  संशयः      ||
                      - सुभाषित रत्नाकर ( स्फुट )

भावार्थ -   ओ वर्षा के बादल !  जब तुम इस पृथ्वी पर कृपापूर्वक
जल वृष्टि करते हो तो सभी वृक्षों में नये पत्ते पल्लवित हो जाते हैं ,
परन्तु हमारे यहां अर्क (आक) के  वृक्ष भी है जिसमें नये पत्ते पल्लवित
होना तो दूर की बात पुराने पत्तों के बने रहने में भी संशय है |

(प्रस्तुत सुभाषित 'मेघान्योक्ति ' का एक सुन्दर उदाहरण है | आक
के वृक्ष की यह  विशेषता है कि वर्षा ऋतु में जब अन्य सभी वृक्ष
पल्लवित होते हैं तो आक का वृक्ष पत्तों से रहित हो जाता है | लाक्षणिक
रूप से इसका तात्पर्य यह है कि अच्छी शासन व्यवस्था होने पर दुष्ट
व्यक्तियों की अवनति हो जाती है या उनका नाश हो जाता है |  इसी
भावना को तुलसीदास जी ने रामायण में वर्षा ऋतु के वर्णन में इस
प्रकार व्यक्त किया है  -  "अर्क जवास पात बिन भयऊ |  जस सुराज्
खल उद्यम गयऊ " )

Tvayi  vaharshati  parjanye  sarve  pallavitaa  drumaah.
Asyaakamarkavrukshaanaam  poorvapatreshu  smshayh.

Tvayi =  you.    Varshati = rains.   Parjanye = O cloud !
Sarve = all .    Pallivitaa = full of new sprouts and leaves.
Drumaah = trees .   Asyaakamarkavrukshaanaam = Asyaakam+
arka + vrukshaanaam.    Asyaakam = our,    Arka -the name of
a plant botanical named calotropis gigantia found in South-east
Asia and in other parts of the world.   During rainy season it
sheds its leaves in contrast to other trees which grow during
rainy season.   Vrukshanaam = trees.   Poorva = previous,
Patreshu = leaves.   Smshayah = there is doubt about.

i.e.     O rain bearing cloud !  when you bestow the nature with rain
all trees are full of new sprouts and leaves, but we also  have 'Arka'
trees which do not do so. On the other hand it is doubtful whether
their existing leaves will remain intact.

(This Subhashita is an "Anyokti" (allegory) using the cloud and rainy
season as a metaphor.  The underlying idea is that under the rule of
a  benevolent  ruler all citizens thrive  except the  mean and wicked
persons and even their existence is also doubtful.   This fact has been
used by a Hindi poet very nicely in a couplet, which says that the 'Ark'
tree has shed all its leaves, just like in the rule of a powerful and virtuous
ruler all thieves and wicked   persons become jobless.)

Friday, 16 February 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


मूर्ख  शिष्योपदेशेन  दुष्टा  स्त्रीभरणेन  च  |
दुःखितैः सम्प्रयोगेन  पण्डितोSप्यवसीदति || - चाणक्य नीति

भावार्थ - एक मूर्ख शिष्य को शिक्षा देने , एक दुश्चरित्र स्त्री के
साथ जीवनयापन करने तथा सदा दुःखी लोगों के सम्पर्क में
रहने से विद्वान व्यक्ति भी स्वयं दुःखी और निरुत्साहित हो
जाते हैं |

Moorkha shishyopadeshena dushtaa streebharanena  cha.
Duhkhitaih samproyegena panditopyavaseedati.

Moorkha = a foolish person.    Shishyopadeshena = shishya =
upadeshena.      Shishya = student, pupil.   Upadeshena = by
teaching.    Dushtaaa = unchaste and wicked woman.   Stree=
woman.    Bharanena = by supporting or maintaining.   Cha=
and.    Duhkhitaih = grieved, distressed.   Samprayogena  =
coming in contact with.    Panditopyavaseedati = pandito + api.
+ avaseedati.     Pandito = learned persons.       Api = even.
Avaseedati = disheartened.

i.e.    While teaching a foolish student,  living with a wicked
and unchaste woman, or remaining in continuous contact with
grieving and distressed people, even learned persons also become
grieved and disheartened.


Thursday, 15 February 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


यस्मिन् देशे न सम्मानो  न वृत्तिर्न  च बान्धवाः  |
न च विद्यागमोSप्यस्त्ति  वासस्तत्र न कारयेत्  ||
                                                  - चाणक्य नीति

भावार्थ -   जिस देश में रहने पर वहां  सम्मान प्राप्त न हो ,
न् कोई आजीविका (नौकरी व्यापार आदि ) की सुविधा हो ,
जहां अपने कोई भाई बन्धु नहीं रहते हों, और जहां  विद्या
प्राप्त करने  की भी कोई सुविधा न हो , ऐसे स्थानों में कभी
भी  निवास नहीं करना चाहिये |

Yasmin  deshe na sammaano  na  vruttirna  cha
baandhavaahah.
Na cha vidyaagamopyasti vaasastatra na kaarayet.

Yasmin =in whatever.   Deshe =  Country.   Na = not. 
Sammaano = respect, honour.    Vruttirna = vruttih+na   
Vruttih = job, profession.  Cha = and.   Baandhavaah=
relatives, friends.  Vidyaagamopyasti = vidyaagamo +
api+ asti.    Api = even    Asti = exists.    Vidyaagamo =
facilities for acquiring knowledge.   Vaasastatra= vaasah+
tatra.    Vaasah = staying, living.   Tatra = there.  Na = not.
Kaarayet = do, establish.

i.e.     One  should never stay in a Country or a place where
no respect is given to him, there are no means of livelihood
like a job, profession etc,  no relatives and friends live there
and no facilities for studying and acquiring knowledge are
available.

Wednesday, 14 February 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


स्थिरा  शैली  गुणवतां  खलबुध्या  न  बाधते     |
रत्नदीपस्य हि शिखा  वात्ययाSपि  न  नाश्यते ||
                  - सुभाषित रत्नाकर (कुवलयानन्द)

भावार्थ -       गुणी और बुद्धिमान व्यक्तियों की कार्यशैली चिरस्थायी
होती है तथा उस पर नीच और दुष्ट व्यक्तियों के द्वारा jजानबूझ कर
हस्तक्षेप करने  पर भी कोई बाधा उसी प्रकार उत्पन्न  नहीं होती है जैसे
कि एक रत्नदीप (वर्तमान संदर्भ में विद्युत बल्ब) की  ज्योति (प्रकाश)
तेज हवा के झोंकों से भी नहीं नष्ट होती  है |

(यह सुभाषित  'विद्वत्प्रसंशा' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है | इसका
तात्पर्य यह  है विद्वान व्यक्ति दुष्ट व्यक्तियों द्वारा उनके कार्यों में
विघ्न उत्पन्न करने पर भी अपने कार्यों को कुशलता पूर्वक संपन्न कर
लेते हैं | )

Shhiraa shailee gunavataam khalabudhyaa na baadhate.
Ratnadeepasya hi shikha vaatyayaapi na naashyate.

Sthiraa = steady, long lasting.   Shailee = technique, way of
doing a task.    Gunavataam = virtuous persons.    Khala =
mean and wicked person.   Budhyaa = purposely;   Na =not.
Baadhate = disturbs, prevents.    Ratnadeepasya =of a lamp
in which jewels give out the light.   Hi =surely.     Shikhaa=
flame.    Vaatyayaa = by a strong gust of wind.   Api = even.
Na = not.    Naashyate = extinguished, destroyed.

i.e.     The way of doing a task by wise and virtuous persons is
very steady and long lasting and remains undisturbed by the
impediments purposely created by mean and wicked persons,
just like a lamp in which  jewels give out light   ( in modern
parlance an electric bulb) can not get extinguished even in a
strong gust of wind.

(This Subhashita is classified under the category 'In the praise
of learned men' .  )

Tuesday, 13 February 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


गुणिनां गुणेषु सत्स्वपि  पिशुनजनो दोषमात्रमादत्ते  |
पुष्पे  फले  विरागी  क्रमेलकः  कन्टकौघमिव             ||
                                 - सुभाषित रत्नाकर (शार्ङ्गधर )

भावार्थ -   गुणवान व्यक्तियों में अनेक गुण और विद्वत्ता होने पर भी
दुष्ट और नीच व्यक्तियों को उनके केवल दोष ही उसी प्रकार दिखाई
देते हैं जिस प्रकार एक ऊंट किसी स्थान पर चरते हुए  वहां उगे हुए पुष्पों
और फलों के प्रति उदासीनता दिखा कर केवल कांटेदार झाडियों के झुन्ड
को चर कर ही अपना पेट भरता है |

Guninaam guneshu satsvapi  pishunajano  doshamaatramaadatte.
Pushpe phale viraagee  kramelakah  kantakaughamiva.

Guninaam = virtuous and talented persons.   Guneshu = merits,
virtues     Satsvapi = Satsu + api.      Sat =wise.      Api = even.
Pishuna= malicious, wicked.    Jano = persons.   Dosha+maatram +
aadatte.    Dosha = defects.    Maatram = only.    Adatte = accept,
take as food.     Pushpe = flowers.     Phale = fruits.      Viraagee =
indifferent towards.    Kramelakah= a camel.   Kantakaughamiva =
kantaka+augh+iva.   Kantaka=thorns,   Augh = heap.  Iva = like a

i.e.     Although noble and righteous persons have many virtues and
qualities,  malicious and wicked persons view only their defects,
just like a camel while grazing in a field remains indifferent towards
flowers and fruits grown there and eats only thorny bushes.

Monday, 12 February 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita .


निष्णातोSपि  च  वेदान्ते साधुत्वं  नैति  दुर्जनः  |
चिरमग्नो  जलनिधौ  मैनाक इव  मार्दवम्         ||
               - सुभाषित रत्नाकर (भामिनीविलासः )

भावार्थ -   वेद तथा उपनिषद आदि में पारङ्गत होने पर भी
दुर्जनों के स्वभाव में दया की भावना उसी प्रकार नहीं होती है
जिस तरह  समुद्र में चिरकाल से डूबे हुए  होने पर भी मैनाक
पर्वत में कभी मृदुता नहीं होती है (वह कठोर ही बना रहता है )|

(यह  सुभाषित भी "दुर्जन निन्दा" शीर्षक से प्रकाशित है | इस
में एक उपमा के माध्यम से यह प्रतिपादित किया गया  है कि
अच्छी संगति होने पर भी दुष्ट व्यक्तियों  के स्वभाव में कोई
अच्छा परिवर्तन नहीं होता है | )

Nishnaatopi  cha  vedaante  saadhutvam  naiti durjanah.
Chiramagno  jalanidhau  mainaaka  iva  maardavam.

Nishnaatopi = nishnaato + api.    Nishnaato = well versed.
learned.   Api = even.         Vedaante =vedaas and other
scriptures like Upanishadas etc.   Saadhutvam = kindness
and good nature.   Naiti =na + aiti.    na = not.   aiti = go
towards, become.  Durjanah = a wicked person. scoundrel.
Chira =for  a long time.   Magno = immersed.   Jalanidhau=
the Ocean.   Mainaak= the name of a mountain,   Iva =like.
Maardavam = softness, pliancy.

i.e.    Wicked persons, even if they may be well versed and
in Vedas and other scriptures are devoid of kindness, just
like the Mainaak mountain, which, although immersed  in
the Ocean since ages, is still not pliant (i,e, hard and rigid).

(This Subhashita is also classified as 'censuring the wicked
persons' . Through a simile the author has emphasised that
in spite of good company and education, there is no change
for betterment  in the nature of wicked persons. )

Sunday, 11 February 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


यशः सौरभ्यलशुनः शान्तिशैत्यहुताशनः  |
कारुण्यकुसुमाSSकाशः  खलः सज्जनदुःखदः ||
             - सुभाषित रत्नाकर (भामिनिविलासः)

भावार्थ -    दुष्ट और नीच व्यक्तियों  का यश उसी प्रकार नष्ट
हो जाता है जिस प्रकार लहसुन की दुर्गन्ध से सुगन्ध नष्ट हो 
जाती है तथा  उनकी  मानसिक शान्ति भी वैसे ही नष्ट हो जाती है 
जिस प्रकार शीतलता  को अग्नि नष्ट  कर देती है | दुष्ट व्यक्तियों
मे करुणा की भावना का होना वैसा ही  है जैसा शून्याकाश में फूलों
का विकसित होना , अर्थात असंभव है | अपने दुर्व्यवहार के कारण
वे सज्जन व्यक्तियों को बहुत दुःख देते हैं  |
 (उपर्युक्त सुभाषित 'दुर्जन निन्दा' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है )

Yashah saurabhy-lashunah shaanti-shaitya-hutaashanah.
Kaarunya-kusumaakaashah khalah sajjanaduhkhadah.

Yashah = fame.    Saurabhya = sweet smell.   Lashunah=
garlic.      Shaanti = peace of mind.    Shaitya = coolness. 
Hutashanah= fire.    Kaarunya = compassion, kindness.
Kusumaakaashah = kusuma + Akaashah.     Kusuma =
flowers.    Aakasahah = sky. (Akaash kusum = flowers
grown in the sky i.e. any thing that is impossible ).
Khalah = wicked person.   Sajjana =  a noble person.
Duhkhadah = causing distress and pain.

i.e.    The fame of wicked persons gets destroyed just like the
foul smell of garlic destroying  a sweet fragrance and their
peace of mind  gets destroyed  like cold being destroyed by
a fire .They are devoid of any compassion just like no flowers
growing in the void of the sky and cause much distress and pain
to noble persons.

(This Subhashita is classified under the caption "censuring the
wicked persons".)

Saturday, 10 February 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अन्तःसारविहीनस्य  सहायः किं करिष्यति  |
मलयेSपि  स्थितो वेणुर्वेणुरेव  न  चन्दनः   ||   
         - सुभाषित रत्नाकर (प्रसंग रत्नावली )

भावार्थ -    अपने आन्तरिक बल से विहीन प्राणियों  को यदि
यदि बाहर से भी सहायता दी जाय तो भी उस का  क्या लाभ ?
देखो न  !  मलय प्रदेश में चन्दन के वृक्षों के साथ स्थित बांस
के पेड बांस के ही रहते हैं, चन्दन नहीं बन जाते हैं |

(प्रस्तुत सुभाषित 'मूर्खवर्णनम्' शीर्षक से संकलित है | इस का
तात्पर्य यह  है कि यदि कोई मूर्ख व्यक्ति आन्तरिक बल और
बुद्धि से रहित  हो उसे बाहर से अतिरिक्त सहायता देने और
विद्वानो के संसर्ग में रखने से भी वह मूर्ख ही रहेगा | इसी भावना
को  चन्दन के वन में उगे हुए बांस के पेडों की सुन्दर उपमा  के
द्वारा व्यक्त किया गया है | )

Antahsaaraviheenasya  sahaayah kim karishyati.
Malayepi sthito venurvenureva  na chandanah.

Antahsaaraviheenasya =  Antah + saara +viheenasya.
Antah = inner.      Saara = strength.      Viheenasya =
bereft of, without.    Sahaayah = help.   Kim =what
Karishyati = does.            Malayepi = malaye + api.
Malaye = a mountaneous region in South India famous
for its Sandawood forests.   Sthito = existing.
Venurvenureva = venuh +venu + iva.  Venuh = bamboo
plant. Iva =like the.   Na=not.   Chandanah=sandalwood.

i.e.      Of what use is the outward help to those persons
who are bereft of any inner strength and intellect ?
Just see !  bamboo plants growing in Malaya region in a
forest of Sandalwood trees remain bamboo plants and do
not become sandalwood.

(This Subhashita is classified as 'description of foolish persons'
By the use of a simile of bamboo plants growing along with the
Sandalwood, the author has emphasised that in spite of being
in the company of learned persons fools can not become learned
persons due to lack of inner strength and intellect in them.)

Friday, 9 February 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


तस्येवाSभ्युदयो  भूयाद्भानोर्यस्योदये सति  |
विकासभाजो जायन्ते गुणिनः कमलाकराः  ||
                  - सुभाषित  रत्नाकर (शार्ङ्गधर )

भावार्थ -   सूर्य के उदय होने के पश्चात जैसे जैसे उसके तेज
की वृद्धि होती है  कमल पुष्प विकसित हो जाते हैं और गुणवान
व्यक्तियों  के ऐश्वर्य की भी वृद्धि होती है |

(प्रस्तुत सुभाषित  'सूर्यान्योक्तयः' शीर्षक के  अन्तर्गत संकलित
है || लाक्षणिक रूप से इसका तात्पर्य यह है कि एक महान शासक
के राज्य में गुणवान व्यक्तियों का समुचित विकास उसी तरह होता
है जैसे सूर्य उदय होने पर कमल विकसित हो जाते हैं | यहां सूर्य राजा
का प्रतीक है | )

Tasyevaabhyudayo  bhooyaadbhaanoryasyodaye sati.
Vikaasabhaajo  jaayante  guninah  kamalaakaraah.

Tasyevaabhyudayo = tasya+ eva+ abhyudayo,   Tasya =
his.   Eva = really, thus.   Abhyudayo = elevation, rise.
Bhooyaadbhaanoryasyodayo = bhooyaat + bhaanoh +
ysya +udaye.  Bhooyaat = happen.   Bhaanoh = the Sun.
Yasya = whose.   Udaye = rising.  Sati = truly.  Vikaasa =
advancement.   Bhaajo = eligible, entitled for .  Jaayante =
become.      Guninah =  noble and virtuous persons.
Kamalaakaraah  =lotus flowers.

i.e.     The sun's brightness and intensity gradually increases
after its rising in the morning causing the lotus flowers to
bloom and advancement in the status of noble and virtuous
persons.

(The above Subhashita is an "Anyokti" (allegory) The Sun
symbolises a virtuous ruler, under whose rule noble and
virtuous persons prosper like lotus flowers under the bright
Sun.)

Thursday, 8 February 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


कलावते नमस्तस्मै यत्पादैः शारदागमः   |
स्फुटीभवति लोकानां सर्वेषामपि निर्मलैः  ||  -सुभाषित रत्नाकर

भावार्थ -  हे महान कलाकारो !  हम आपको सादर प्रणाम  करते हैं
क्यों कि आपका  हमारे यहां पधारना  विद्या की अधिष्ठात्री देवी
शारदा (सरस्वती) के आगमन का प्रतीक है  जिसके फलस्वरूप हमारे
समाज के सभी  लोगों में निर्मल बुद्धि विकसित होगी |

(जिस देश और समाज में कलाकारों और विद्वानों का उचित सम्मान
नहीं होता है वह् देश और समाज प्रगति नहीं कर सकता है |  उपर्युक्त
सुभाषित इसी भावना को परोक्ष रूप में व्यक्त करता है |)

Kalaavate  namastasmai yatpaadaih shaaradaagamah.
Sphuteebhavati lokaanaam sarveshaampi nirrmalaih.

Kalaaavate = artists.   Namastasmaih = namah +tasmai.
Namah = salutations.   Tasmai = toyou.   Yat = since,
Padaih = footsteps .  Sharadaagame  = Shaaradaa +
aagamah.     Shaaradaa = Goddess Sarasvati.   Agamah=
arrival.    Sphuteebhavati = becomes evident.  Lokaanaam=
among the people.    Sarveshaamapi = sarveshaam + api.
Sarveshaam = all.    Api =even.  Nirmalaih = pure and
resplendent.

O honourable artists  !   we welcome and salute you, because
your arrival  here is symbolic of the arrival of  Sharada, the
Goddess of all knowledge and arts, as a result of which all
our citizens will acquire pure and resplendent intellect.

(A Country where scholars and artists do not get proper respect
and recognition can never progress. This is the indirect message
of the above Subhishata.)

Comment by Poornima Mohan :-

Poornima Mohan This verse also refers to the full moon. कलावान् is the moon complete with all his Kalas or digits. The most splendorous full moon is the one that marks the Sharat season in October. So this verse says "Salutations to that moon, the clearness of whose digits makes known to everyone the imminent Splendors of the Sharat season" .

Mohan Chandra JoshiGroup Admin Many thanks for the real hidden meanings of this Subhashita , which , I failed to fathom due to my limited understanding of Sanskrit. I construed the meaning of 'Shaaradaagama ' as arrival of Sarasvati and not of the sharad season..

Poornima Mohan 🙏Sir, the meaning you have given is certainly the intended one.





Wednesday, 7 February 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


सर्वगुणैरूपपन्नः  पुत्रः कस्यापि  कुत्रचिद्भवति  |
सोल्पायू रुग्णो वा  ह्य्नपत्यो वा तथापि खेदाय ||
                                         -  सुभाषित रत्नाकर

भावार्थ -    सर्वगुण संपन्न सन्तान यदि किसी की  भी और  कहीं भी
होती है तो वह या तो अल्पायु या बीमार या संतानहीन होती है और फिर
भी अपने माता पिता के लिये  दुःखदायी ही होती है |

(प्रायः यह देखा गया है कि समाज में प्रकान्ड विद्वान ,समाज सुधारक,
वैज्ञानिक आदि अल्पायु,बीमार,अविवाहित या  संतानहीन होते हैं , जैसे
महान गणितज्ञ रामानुजम , जगद्गुरु शंकराचार्य ,स्वामी विवेकानन्द,
विख्यात वैज्ञानिक स्टीफ़ेन्  हौकिन्ग , भूतपूर्व राष्ट्रपति  एपीजे अब्दुल
कलाम आदि |  इसी तथ्य को इस सुभाषित में व्यक्त किया गया है |  )
]
Sarva-gunai-roopapannah  putrah kasyaapi  kutrachidbhavati.
solpaayuh  rugno va  hyanapatyo  vaa  tathaapi  khedaaya.

Sarvagunairupapannah= sarva + gunaih  + upapannah.   Sarva =
all.    Gunaih = qualities, virtues.   Upapannah = possessed of.
Putrah + a child or a son.    Kasyaapi = kasya + api .    Kasya =
whose.    Api =too, even (to emphasise)   Kutrachidbhavati =
Kutrachit +bhavati.    Kutrachit =anywhere.   Bhavati = happens.
Solpaayuh =  sah + alpaayuh.   Sah = he.    Alpaayh = shortlived.
Rugno = sick.   Vaa = or.    Hyanapatyo=  hi + anapatyo,     Hi =
surely.    Anapatyo = childless.    Tathaapi = even then,  yet.
Khedaaya =dejection, sadness.

i.e.    If anybody anywhere begets a child who is very intelligent,
virtuous and  possessed of all the qualities ,such a child is either
short lived, sick or childless and is a cause of sadness or dejection
to his parents.

(It is generally observed that great artists ,scientists, social reformers
etc,.are either short lived, sick or childless, e.g. the mathematician
Ramaanujam, Shankarachaary, Swami Vivekaanand, scientist Stephan
Hawking, former President A.P.J.Abdul Kalam  etc.  This Subhashita
outlines this phenomenon nicely.)



Tuesday, 6 February 2018

आज का सुभाषित / Todaay's Subhashita.


नाना  शरीरकष्टैर्धनव्ययैः   साध्यते यदा  पुत्रः  |
उत्पन्नमात्रपुत्रे  जीवितशङ्का  गरीयसी  तत्र    ||
                 -  सुभाषित रत्नाकर (प्रबोध सुधाकर )

भावार्थ -     अपने शरीर को अनेक प्रकार कष्ट दे कर और धन व्यय
करने के बाद लोग संतान उत्पन्न करने में सफलता प्राप्त कर पाते
हैं |  परन्तु संतान उत्पन्न हो जाने पर यह जानना  अति आवश्यक है
कि फिर भी उनके जीवित रहने पर बहुत बडी शङ्का बनी रहती  है |

(प्रस्तुत सुभाषित  "विषयनिन्दान्तर्गतपुत्रनिन्दा" शीर्षक के अन्तर्गत
संकलित है |  इस का तात्पर्य यही है कि मात्र संतान उत्पन्न हो जाने
के बाद भी उनका  उचित लालन पालन अति आवश्यक है ताकि वे जीवित
रहें |)

Naanaa shareera-kashtairdhanavyayeh  saadhyate  yada putrah.
Utpannamaatra putre jeevitshankaa gareeyasi  tatra.

Naanaa = various. many.   Shareera = body.  Kashtaih =troubles,
difficulties     Dhanavyayaih = spnding of money.   Saadhyate=
becomes successful.   Yadaa = whenever.   Putrah =  a child.
Utpanna = by being born.   Maatra = merely.    Jeevita = alive.
Shankaa = uncertainty, doubt.   Gareeyasi =  extremely important.
Tatra = there.

i.e.     People are able to beget children after facing many difficulties
and spending money.  But after their birth it is extremely important
to know that there is always the uncertainty that they will remain alive
afterwards.

(This Subhashita lays emphasis on the fact that children need special
care for their upbringing so that they remain alive and grow properly.)

Monday, 5 February 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


किं  मृष्टं  सुतवचनं  पुनरपि मृष्टं  तदेव  सुतवचनम्  |
मृष्टान्मृष्टतरं  किं  श्रुतिपरिपक्वं  तदेव  सुतवचनम्  ||
                                   -सुभाषित रत्नाकर (कल्पतरु )

भावार्थ -  एक छोटे बालक द्वारा कहे हुए  तोतले बोल  क्यों अच्छे और
सुन्दर लगते हैं और वे ही बोल उसके द्वारा बार बार  कहने पर भी क्यों
अच्छे लगते हैं ?  और जब बालक उन्हीं बोलों  का स्पष्ट उच्चारण करने
लगता है तो तब भी वे ही बोल और भी अधिक सुन्दर क्यों लगते है  ?

(बाल्यावस्था में जब बालक  सर्वप्रथम बोलना सीखते हैं तो उनकी तोतली
बोली पर उनके माता पिता को जिस आनन्द की अनुभूति होती है  उसी का
वर्णन इस सुभाषित में एक प्रश्न के रूप में किया गया है |)

Kim mrushtam sutavachanam punarapi mrushtaam tadeva
sutavachanam.
Mrushtaanmrushtataram  kim shrutiparipaakam tadeva
sutavachanam.

Kim = why ?   Mrushtam = lovely, charming.   Sutavachanam=
the words spoken by a child (offspring)    Punarapi = punah +
api.   Punah = again.   Api = even.  Tadeva = that.   Mrushtaat-
mrushtataram = lovelier.  Shruti =listening.  Paripaakvam= perfect. 

i.e.    Why the parents love the babble and prattle of their small children
even when the same is repeated ?   And why is it that when the children
are able to speak perfectly the parents love and appreciate it more ?

(When small children learn to speak, their babbling and prattling is a
source of joy to their parents.   The same has been highlighted in the
above Subhasita by way of asking questions.)

Sunday, 4 February 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


गृहे  जानुचरः  केल्यां  मुग्धस्मितमुखाSम्बुजः |
पुत्रः  पुण्यमतामेव  पात्री  भवति  नेत्रयोः           ||
                          - सुभाषित रत्नाकर (कल्पतरु)

भावार्थ -    कमल के समान सुन्दर, मुस्कान युक्त और घुटनों के बल पर
चलने वाले अपनी सन्तान  की  बाललीला को अपने ही घर में स्वयं अपने
नेत्रों से देखने का सुख सज्जन और पुण्यवान व्यक्तियों को ही प्राप्त होता है |

(संस्कृत भाषा में 'पुत्र ' शब्द का अर्थ एक या दो वर्ष की आयु के बालक या
बालिका दोनों के लिये प्रयुक्त किया जाता है , यद्यपि सामान्यतः बालक के 
लिये ही प्रयुक्त होता है |)

 Gruhe jaanucharah kelyaam mugdha-smita-mukhaambujah.
Putrah Punyamataameva  paatree bhavati  netrayoh.

Gruhe = home.    Jaanucharah =  a child crawling on the knees.
Kelyaam =playing.    Mugdha =lovely, simple minded.   Smit=
smiling.    Mukhaambujah = mukha + ambujah.    Mukha =face.
Ambujah = (like a) lotus flower.  Putrah= a child  (both Son or
a daughter )                  Punyamataameva = punyamataam +eva. 
Punyamataam =virtuous and noble men.   Eva =really.  Paatree = 
recipient. Bhavati = become.     Netrayoh = eyes.

i.e.  The joy of observing a playful. smiling and beautiful child
like a blooming lotus  flower and crawling  on his knees, is enjoyed
only by the blessed and virtuous persons.

(In Sanskrit the word "Putra'  also denotes both a boy or a girl aged
upto 1 or 2 years' age, whereas in general usage it means a male
child.)



Saturday, 3 February 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


वरं  बाल्ये मृत्युर्न  पुनरधनं  यौवनमिदं
वरं  भार्या  वेश्या  न  पुनरविनीता  कुलवधूः  |
वरं  देशत्यागो  न  पुनरविवेकिप्रभुपुरं
वरं  देहत्यागो  न  पुनरधमाSगारमटनम्      ||
                          - सुभाषित रत्नाकर ( स्फुट)

भावार्थ -    यौवनावस्था में निर्धन जीवनयापन करने  से तो  बचपन में
ही मृत्यु हो जाना श्रेयस्कर है |  एक दुर्व्यवहार करने  वाली स्त्री की तुलना
में तो एक वेश्या को पत्नी बनाना श्रेयस्कर है |  एक  विवेकहीन व्यक्ति
की नौकरी करने  से अच्छा तो उसके नगर को  त्याग कर परदेश में निवास
करना श्रेयस्कर् है तथा अधम और नीच व्यक्तियों  के संसर्ग में रहने से तो
मृत्यु हो जाना ही श्रेयसकर  है |

(इस सुभाषित में दुखमय जीवन जीने की तुलना मे मृत्यु हो जाने को श्रेयस्कर
कहा गया है |  तुलसीदास जी ने भी कहा है कि -  "बरु भल वास नरक कर ताता
दुष्ट संग जनि देइ विधाता " | )

Varam baalye mrutyurna punaradhanam yauvanamida.
Varam bhaaryaa veshyaa na punaravineetaa kulavadhooh.
Varam deshatyaago na punaravivekiprabhupuram.
Varam dehatyaago  na punaradhamaagaaramatanam.

Varam = it is preferable.    Baalye = during childhood.  Mrutyrna =
Mrutyuh + na.     Mrutyuh = death.   Na = not.   Punaradhanam =
punah + adhanam.    Punah = again.   Adhanam = without wealth.
Yauvanamidam = yauvanam +idam.   Yauvana = youth.   idam =this.
Bhaaryaa = wife.   Veshyaa = a prostitute.   Punaravineetaa = punah +
avineetaa.     Avineetaa =ill-mannered and rude.  .  Kulavadhoo= a
virtuous wife.   Deshtyaago = leave one's own Country.   Punaraviveki-
-prabhupuram = Punah + aviveki +prabhu + puram.     Aviveki = not
judicious and prudent.    Prabhu = master, employer.   Puram = a city.
Dehatyaago  = death.   Punah +adhamam +aagaar + atanam.   Adhamam=
vile and wicked persons.    Aagaara = house, dwelling place.      Atanam =
roaming about or wandering.

i.e.     It is preferable to die in early childhood rather than to be a pauper
during one's  youth.   Instead of having a rude and ill-mannered wife, it is
better to have a prostitute as a wife.  Instead of being a servant of a person
who is not prudent and judicious , one should better leave that town and
settle in a foreign country.  It is also preferable to die rather than  living in
the company of vile and wicked persons .




Friday, 2 February 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhshita.


धूलिधूसर  सर्वाङ्गो  विकसद्दन्तकेसरः  |
आस्ते कस्याSपि  धन्यस्य द्वारि दन्ती गृहेSर्भकः  ||
                                 - सुभाषित रत्नाकर (कल्पतरु )

भावार्थ -   वह व्यक्ति कितना सौभाग्यशाली है जिस के घर के
दरवाजे पर एक छोटे छोटे दांतों और घुंघराले बालों वाला और
धूल से सना हुआ एक सुन्दर बालक खेल रहा हो |

(इसी भावना को गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने एक पद में
इस प्रकार व्यक्त किया है -  "ठुमकि चलत रामचन्द्र बाजत
पैंजनिया |   किलकि  किलकि  उठत धाय  गिरत भूमि लटपटाय |
धाय मातु गोद लेत दशरथ की रनियां  |  अञ्चल रज अङ्ग झाडि
विविध  भांति सो दुलारि | तन मन धन वारि वारि कहत मृदु
वचनियां - (आदि ). सचमुच वह  व्यक्ति   धन्य है जिसे  इस प्रकार
की 'बालालीला ' को देखने का सौभाग्य प्राप्त होता है | )

Dhoolidhoosar sarvaango vikasaddantakesarah,
Aaste kasyaapi dhanyasya dvaari dantee gruherbhakah.

Dhoolisara = covered with dust.    Sarvaango - the entire body.
Vikasaddantkesarah = vikasat + dant +kesarah.        Vikasat =
expanding.   Danta = teeth.    Kesarah =hairs, mane.    Aaste=
makes one's abode., celebrates.    Kasyaapi = kasya + api.
Kasyaa= whose.     Api =  even.       Dhanyasya = a virtuous
person's    Dvaare = in front  of the door.    Dantee = tooth.
Gruherbhakah = Gruhe + arbhakah.    Gruhe= at the residence.
Arbhakah = a child.

i.e.      Blessed is the person at whose door steps a small child
having few little teeth , curled hairs and covered with dust
is playing.

(The above Subhashita describes the joy of the parents of a small
child playing at the courtyard of their residence , and says that how
blessed they are.   This joy has been described in detail by the poet
Tulasidas in a poem titled "Thumaki chalat Ramchandra  baajat
paijaniyaa."  in praise of Lord Ramchandra.)



Thursday, 1 February 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अन्तःकटुरपि  लघुरपि  सद्वृत्तं  यः पुमान्न संत्यजति |
स  भवति  सद्यो वन्द्यः  सर्षप  इव  सर्वलोकस्य  ||
                                                      -सुभाषित रत्नाकर

भावार्थ -      एक व्यक्ति जो विपरीत परिस्थिति में भी  अपना
सद्व्यवहार  नहीं त्यागता है वह तुरन्त  समाज में  उसी प्रकार
वन्दनीय  हो जाता है जिस प्रकार सरसों के छोटे और गोलमटोल
दाने यद्यपि अन्दर से स्वाद में कडुवे  होते हैं फिर भी अपने गुणों
के कारण  ही सर्वत्र वन्दनीय होता है |
(सरसों का भारतीय जीवन पद्धति में बडा ही महत्त्वपूर्ण स्थान है|
यद्यपि स्वाद में वह कदुवा है पर उससे जो तैल निकाला जाता है
वह औषधीय गुणों से युक्त है और पूजा पद्धति में भी उसका प्रमुख
स्थान है |  इस सुभाषित का निहितार्थ यही  है कि एक साधारण व्यक्ति
भी समाज  में अपने गुणों के  कारण ही सम्मानित होता है न कि बाहरी
रूप से | )

Antahkaturapi  laghurapi sadvruttam yah pumaana smtyajati.
Sa bhavati sadyo vandyah sarshapa iva  sarvalokasya.

Antaahkaturapi = Antah+ katuh + api.       Antah = inside
katu = bitter in taste.   Api = even.   Laghurapi = laghuh +api.
Laghu = very small.  Sadvruttam = good conduct, well rounded.
Yah = who.    Pumaana = pumaaan + na.   Pumaan = a person. 
Na = not. Tyajati =quits.   Sa =he.   Bhavati =becomes.  Sadyo =
instatly.    Vandyah = praiseworthy.    Sarshapa = mustard seed.     
Iva =like the (comparison).     Sarvalokasya = of every body.

i.e.        A person who does not quit his virtuous and righteous
behaviour even on the face of adverse circumstances, is revered
by the people just like the mustard seed, although it is very small
in size and bitter in taste.

(Mustard seed has a prominent place in the lifestyle of people in
India due to its nutritional and medicinal qualities. It has also a
prominent place in religious rituals in the society. By using it as
a simile for noble and righteous persons the author has stresses
that a person is revered in society by his inherent qualities and
not his outer appearance. )