Thursday, 31 May 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


उद्योगे नास्ति दारिद्र्यं जपतो नास्ति पातकं  |
मौनेन  कलहो नास्ति  नास्ति  जागरिते  भयं   ||
                                     - चाणक्य नीति (३/११)

भावार्थ -  जहां अनेक प्रकार  के  उद्योग स्थापित होते हैं
वहां  दरिद्रता ( गरीबी)  नहीं होती है ,  परमेश्वर  का नाम
स्मरण करने से पाप नष्ट हो जाते हैं,  मौन धारण करने
से कलह नहीं होता है तथा जो व्यक्ति सदा सतर्क और
जागरूक रहते हैं उन्हें किसी  प्रकार का भय नहीं होता है  |

Udyoge  naasti daaridryam  japato  nasti  paatakam.
Maunena kalaho aasti naasti jaagarite  bhayam,

Udyoge =  industriousness, entrepreneurship ,  Naasti =
non existent.  Daaridryam = poverty.   Japato = reciting
the name of God Almity.    Paatakam = sins.   Maunena=
by maintaining silence.   Kalaho =quarrels.    Jaagarite =
by remaining alert and watchful.   Bhayam =fear.

i.e.    There is no poverty where there are many industries ,
there are no sins where the name of God Almighty is always
recited,  where people maintain silence there is no quarrel,
and where people are alert and watchful there is no fear.
   

Wednesday, 30 May 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashiita.


को  हि  भारः समर्थानां  किं  दूरं  व्यवसायिनाम्  |
को  विदेशः सुविद्यानां  कः  परः  प्रियवादिनाम्  ||
                                       - चाणक्य नीति (३/१३ )

भावार्थ -   शक्तिशाली और समर्थ व्यक्तियों के लिये  कैसा भी
बडा  भार हो उसे उठाने में , चतुर व्यवसायियों को दूरस्थ स्थानों
में व्यवसाय हेतु जाने में ,तथा  प्रकाण्ड विद्वानों को  विदेश में
प्रवास करने में भला क्या असुविधा  होगी ?  इसी प्रकार एक मृदु
भाषी व्यक्ति के लिये क्या कोई  भी व्यक्ति पराये के समान होगा ?

(इस सुभाषित का तात्पर्य यह है कि शक्तिशाली, चतुर , विद्वान
तथा मृदुभाषी व्यक्ति अपने इन गुणों से अपने सभी कार्यों को
सरलता  पूर्वक सम्पन्न कर लेते हैं |)             

Ko hi bhaarah  samarthaanaanam  kim dooram vyavasaayinaam.
Ko videshah suvidyaanaam  kah  parah  priyavaadinaam.

Ko=who .  Hi= surely.   Bhaarah=load, burden.  Samarthaanaam=
powerful.and competent persons.    Kim =what.      Dooram =
distance.    Vyavasaayinaam = businessmen  .   Videshah = foreign
Country.    Suvidyaanaam = learned persons.  Kah = who.   Parah=
a stranger.   Priyavaadinaam= persons who speak in a friendly way.

i.e.    Carrying a heavy burden in the case of a powerful persons,
doing business in far away places in the case of businessmen, and
living in a foreign country in the case of a highly learned person ,
can there be any problem in doing so ?   Likewise, can a person
remain as a stranger to a soft-spoken and courteous person ?

(The idea behind this Subhashita that persons possessing power,
business acumen,  knowledge and courteous behaviour , use these
traits to their best advantage in their day to day life.) 

     

Tuesday, 29 May 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


मूर्खस्तु  प्रहर्तव्यः  प्रत्यक्षो  द्विपदः  पशुः      |
भिद्यते  वाक्य-शल्येन  अदृशं  कण्टकं  यथा  ||
                                      - चाणक्य नीति (३/९
भावार्थ -   एक  मूर्ख व्यक्ति साक्षात् एक दो  पावों वाले एक पशु
के समान होता है और वह  बलप्रयोग के द्वारा  ही  वश में किया
जा सकता है और उसकी तीर के समान  अनर्गल बातों उसी  प्रकार
चुभती हैं जिस प्रकार  पांव में चुभा हुआ पर न दिखाई देना वाला
एक कांटा |

Moorkhastu  prahartavyah  pratyakso dvipadah  Pashuh,
Bhidyate  vaakya-shalyena  adruasham  kantakam yathaa.

Moorkhh+ tu.    Moorkhah = an idiot.   Tu = and, but
Prahartavya = controlled by using force.  Pratyaksho =
evidently, explicitly.    Dvipadah = having two  feet
Pashuh = beast , an animal.   Bhidyate=pierces.   Vaakya-
Shalyena =by the arrow like words.  Adrusham=  invisible.
Kantakam = thorn .   Yathaa = for instance, just like a

i.e.  An idiot is evidently like a two legged beast who can be
controlled only by using force.  His irrelevant talk is piercing
like arrows and painful just like an invisible thorn embedded
in the foot.

Monday, 28 May 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


एतदर्थे  कुलीनानां  नृपाः  कुर्वन्ति  सङ्ग्रहम्  |
आदिमध्यावसानेषु  न  ते  गच्छन्ति विक्रियाम्  ||
                                       -  चाणक्य नीति (३/५ )

भावार्थ -    प्रसिद्ध  और उच्च कुल में उत्पन्न व्यक्ति तथा
विभिन्न देशों के राजा (शासक)  इस लिये धन  का सङ्ग्रह
करते हैं  कि उनके द्वारा  किसी  भी कार्य संपन्न करने  के
प्रारम्भ में, बीच में तथा समाप्ति से पहले यदि  किसी  भी
अनपेक्षित कारण से उस कार्य में बाधा पहुंचती हो  या उसके
असफल होने की आशङ्का हो तो  उसे अतिरिक्त धन व्यय
कर दूर किया जा सके |

(वर्तमान प्रबन्धन प्रणाली में किसी आकस्मिक व्यय के  लिये
जिस प्रकार अलग से प्रावधान किया जाता है ताकि कोई योजना
धन के अभाव में असफल न हो ,उसी का वर्णन इस सुभाषित में
भी लाक्षणिक रूप से किया गया है |  )

Etadarthe  kuleenaanaam  nrupaah  kurvanti sangraham.
Aadimadhyaavasaaneshu  na  tey  gacchanti vikriyaam.

Etadarthe = for this purpose.   Kuleenaanaam = persons
born in a noble and illustrious family.    Nrupaah = kings.
Kurvanti =  do.    Sanghram = collection.   Aadi+ madhya+
avasaneh+ tu.     Adi = beginning.    Madhya = the middle.
Avasaaneh = the end.   Tu =and, but.   Na =not .   Tey =
they.     Gacchanti = undergo.   Vikriyaam = undesirable
and unexpected deterioration, failure.

i.e.     Persons born in noble and illustrious families and Kings
collect and store wealth only for the purpose of meeting any
contingency faced during the initial ,middle or concluding stage
of a project due to some unforeseen and undesirable circumstances
that may otherwise result in the failure of the project.

(The above Subhashita  deals in its own way  the modern concept
of Management for making provision for a  Contingency Fund
while implementing any project.)

Sunday, 27 May 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita


दुर्जनस्य  च  सर्पस्य  वरं  सर्पो  न  दुर्जनः  |
सर्पो  दंशति  काले  तु  दुर्जनस्तु  पदे  पदे   ||
                               - चाणक्य नीति (३/४ )

भावार्थ -   एक दुष्ट  व्यक्ति  और एक  सर्प (सांप)  की
संगति के बीच में यदि चुनाव करना हो तो एक  सांप को
चुनना अच्छा है न कि एक दुष्ट व्यक्ति को, क्यों कि सांप
तो आवश्यकता पडने पर केवल अपने बचाव के लिये ही
डसता है जब कि एक दुष्ट व्यक्ति  तो  अकारण ही कदम
कदम पर हानि पहुंचाता है |

Durjanasya  cha  sarpasya  varam  sarpo na durjanh.
Sarpo  damshati  kaale  tu  durjanasya  pade  pade .

Durjanasya =a wicked person's.       cha = and.
Sarpasya = a snake's    Varam = preferable.  Sarpo =
a snake.     Na =not.   Durjanah = a wicked person.
Dmshati =  bites.    Kale = when needed.    Tu=  but.
Pade pade = at every step.

i.e.    If one has to choose between  a wicked person and
a snake as a companion, it is preferable to choose a snake
rather than a wicked person, because  while the snake will
bite only in case of need  to protect itself , a wicked person
has the tendency of causing harm without any reason  at
every step.

Saturday, 26 May 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


सुकुले योजयेत्कन्यां  पुत्रं  विद्यासु  योजयेत्  |
व्यसने  योजयेच्छत्रुं    मित्रं  धर्मेण   योजयेत्   ||
                                      - चाणक्य नीति (३/३)

भावार्थ -       एक बुद्धिमान व्यक्ति  को अपनी कन्या का
विवाह सम्बन्ध एक प्रतिष्ठित कुल में करने के लिये तथा
अपने पुत्र को विद्वान बनाने के लिये योजना पूर्वक प्रयत्न
करना चाहिये |  इसी प्रकार का प्रयत्न उसे अपने शत्रुओं मैं
बुरी आदते डालने  तथा अपने मित्रों को धर्मात्मा बनाने के
लिये भी करना चाहिये |

,Sukule  yojayetkanyaam  putram  vidyaasu  yojayet.
Vyasane yojayetcchatrum  mitram  dharmena  yeojayet.

Sukule = in a noble family.    Yojayet = should plan to
marry.    Kanyaam = daughter.    Putram = the son.
Vidyaasu = towards knowledge and learning.   Vyasane =
bad habits.    Yojayet+ shatrum,    Shatrum = the enemy.
itram = friend.     Dharmena = towards religious austerity.

i.e.    A wise person should plan properly for marrying his
daughter in a noble family and  make arrangements for
proper education for his son.  Likewise he should also plan
to make his enemies addicted to bad habits and motivate
his friends towards religious austerity.

Friday, 25 May 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


कस्य दोषः कुले नास्ति व्याधिना को न पीडितः  |
व्यसनं  केन  न प्राप्तं  कस्य सौख्यं  निरन्तरम्  ||
                                         - चाणक्य नीति (३/१)

भावार्थ -    इस संसार में ऐसा कोई भी  व्यक्ति नहीं है जिस के
कुल में कोई  भी दोष नहीं हो , जो  विभिन्न रोगों से पीडित नहीं
हुआ हो ,  उसे विपत्तियों  का कभी भी सामना न करना पडा हो 
तथा निरन्तर  सुखी जीवन व्यतीत कर रहा  हो |

(इस सुभाषित का तात्पर्य यह है कि मानव जीवन मे सुख, दुख,और
विपत्तियों का आना जाना लगा रहता है तथा हर परिवार में कोई न
कोई दोष अवश्य होता है | )

Kasya doshah kule naasti  vyaadhinaa ko na peeditah.
Vyasanam kena na praaptam kasya saukhyam nirantaram.

Kasya = whose.   Doshah = defect.   Kule = in the family.
Naasti =non existence.    Vyaadhinaa = from diseases.
Ko = who.       Na = not.        Peeditah = suffering from.
Vyasanam = calamity, disaster.   Kena = how?   Praaptam=
met with, faced.      Saukhyam =   comfort, happiness.
Nirantaram = uninterrupted, continuously.

i.e.     In this world there is no such person whose family
lineage is unblemished . has never suffered from  any disease
or faced any calamity, and enjoys uninterrupted comforts
and happiness.

Thursday, 24 May 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


गृहीत्वा  दक्षिणां  विप्रास्त्यजन्ति  यजमानकम्  |
प्राप्तविद्या  गुरुं  शिष्या दग्धारण्यं मृगास्तथा  ||
                                       - चाणक्य नीति (२/१८ )

भावार्थ -    यजमान (धार्मिक अनुष्ठान करवाने वाला व्यक्ति ) से
दक्षिणा प्राप्त हो जाने  के बाद  ब्राह्मण चले जाते हैं, गुरु से विद्या
प्राप्त हो जाने  पर उसके शिष्य भी गुरु   को  छोड कर चले जाते  हैं
और उसी प्रकार  आग लगने से नष्ट हुए एक वन को उसके अन्दर
निवास  करने  वाले पशु भी त्याग देते हैं |

(इस सुभाषित का तात्पर्य यह  है कि  अपनी आवश्यकता के अनुरूप
 अन्य लोगों से जो सम्बन्ध बनाया जाता है , वह आवश्यकता पूर्ण हो
जाने पर या पूर्ण न होने की स्थिति में समाप्त हो जाता है |)

Gruheetvaa  dakshinaam vipraastyajanti yajamaanakam.
Praaptavidyaa  gurum  shishyaah dagdhaaranyam mrugaastatha.

Graheetvaa = having taken.   Dakshinaam = donation, gift.
Vipraah + tyajanti.    Vipraah = brahmins.    Tyajanti= quit.
leave.    Yajamaanakam = the host, one who performs the
religious ceremony or sacrifice.     Praapt +vidya.     Praapta =
after getting.    Vidyaa = knowledge.   Gurum = from the teacher.
Shishya = pupils, students.    Dagdhaa+aranyam,    Dagdha=
burnt by fire.   Aranyam = forest.    Mrugaah +tathaa.    Mrugaah=
wild animals.   Tathaa = in the same manner.

i.e.      After getting the  donations from the host  (person performing
the religious ceremony)  the  Brahmins depart immediately, and in
the same manner  pupils  quit their Teacher after completion of their
studies, and the beasts of a forest destroyed by fire also leave the forest.

(The idea behind this Subhashita is that  a relationship ,which is based
on the give and take  policy , ends immediately after completion of the
task in hand or there being no possibility of being completed in future.)

Wednesday, 23 May 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


समाने  शोभते  प्रीतिः  राज्ञि सेवा  च  शोभते  |
वाणिज्यं  व्यवहारेषु  दिव्या  स्त्री शोभते गृहे  ||
                                - चाणक्य नीति  (२/२० )

भावार्थ -     मित्रता और प्रेम  करना  (सामाजिक और आर्थिक रूप
से ) अपने  ही समान व्यक्ति से  ही शोभा देता है   महारानी की सेवा
में नियुक्त व्यक्ति भी शोभित होता है |  व्यापार करने मे व्यवहार
कुशलता   ही शोभा देती  है  तथा  दैवीय  गुणों से युक्त  सुन्दर स्त्री
से उसका घर सुशोभित होता है  |
(इसी भावना को गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने रामायण महाकाव्य
में इस प्रकार  व्यक्त किया है :-
                   प्रीति विरोध समान सन करिय  नीति असि आहि |
                    जों मृगपति बध मेडुकन्हि भल कि कह्इ कोउ ताहि   ||
                                                                  -लङ्का काण्ड  २३(ग )
Samaane shobhate preetih raagyi sevaa cha shobhate.
Vaanijyam vyavahaareshu  divyaa stree  shobhate gruhe.

Samaane = equal.    Shobhate = look beautiful, adorned.
Preetih = love, friendly disposition.    Raagyi = queen's
Seva = service.   Cha = and.    Vaanijyam = commerce,
trade.   Vyavahareshu = the way of dealing with the clients.
Divyaa = divine. virtuous  Stree=woman. Gruhe=at home. 

i.e.    Love and friendship is adorned only between persons
equal in (social and financial) status. A person in the service
of the Queen is also adorned.     Any trade or business is
adorned by the ethical way of dealing with the customers, and
a home is adorned by a virtuous woman with divine qualities.

  

Tuesday, 22 May 2018

आज का सुभाषित / Today 's Subhashita.


पुत्राश्च  विविधैः  शीलैर्नियोज्या  सततं  बुधैः |
नीतिज्ञा शीलसम्पन्ना  भवन्ति कुलपूजिताः  ||
                                  - चाणक्य नीति (२/१० )

भावार्थ -   विद्वान  व्यक्ति अपनी संतान को विद्या की  विभिन्न
विधाओं  में विशेषज्ञ   बनाने मे सतत प्रयत्नशील   रहते हैं ताकि वे
भविष्य में चरित्रवान  तथा कुशल राजनीतिज्ञ बन कर अपने  कुल को
समाज में प्रतिष्ठा  दिला  सकें |

Putraashcha vividhaih sheelairniyojyaa  satatam budhaih.
Neetigyaa sheelasampannaa  bhavanti  kulapoojitaa.

Putraah = children.   Cha = and    Vividhaih = several.
Sheelaih +niyojyaa.    Sheelaih = virtues, disciplines of
learning,   Niyojyaa = endowed or furnished with.   Satatam=
continuously.    Budhaih = learned persons.   Netigyaa=
a politician, statesman.    Sheelasampannna = virtuous.
Bhavanti = become.    Kulapoojitaa  = family is honoured
by the citizens,

i.e.      Learned and virtuous persons take special care to train their
children in various disciplines of  knowledge, so that in future
they become virtuous and  expert statesmen and their family is
honoured by the citizens.

Monday, 21 May 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


नदी  तीरे  च  ये  वृक्षाः  परगेहेषु  कामिनी  |
मन्त्रहीनाश्च  राजानः  शीघ्रं  नश्यन्त्यसंशयम्  ||
                                    - चाणक्यनीति  (२/१५ )

भावार्थ -   इस बात में कोई संशय नहीं है कि किसी नदी के तट पर
उगे हुए वृक्ष , किसी अनजान व्यक्ति के घर मे निवास करने  वाली
कोई महिला,  तथा  सही मन्त्रणा  देने वाले योग्य मन्त्रियों की सेवा
से रहित राजा (शासक) शीघ्र ही नष्ट हो  जाते हैं |

Nadee teere  cha  ye  vrukshaaah  parageshu  kaaminee,
Mantraheenaashcha raajaanah  sheeghram  nashyantyasmshayam.

Nadee = a river.   Teere = on the bank of river.   Cha = and.
Ye = those.   Vrukshaah = trees.    Para= other's    Geheshu= house.
Kaaminee =  a woman.      Mantra+ heenaah + cha .   Mantra =
proper guidance and counsel.   Heenaah = deprived of or not having.
Raajanahh = kings or rulers of a country.   Sheeghram = quickly.
Nashyanti + asanshayam.    Nashyanti = perish, get destroyed,
Asamshayam =  undoubtedly.

i.e.     There is no doubt about the correctness of the statement that
trees growing on the banks of rivers,   a woman living in the house
of an unknown person, and Kings (Rulers of Countries) not having
the services of  Ministers capable of giving proper counsel and
guidance without any fear,  all these three perish quickly.

Sunday, 20 May 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


लालनाद्बहवो  दोषास्ताडने बहवो  गुणाः |
तस्मात्पुत्रं  च शिष्यं  च ताडयन्न  तु लालयेत्  ||
                                   - चाणक्य नीति (२/१५ )

भावार्थ -   लालन ( प्रत्येक इच्छा पूरी कर देना) में अनेक  दोष
होते हैं तथा ताडन ( अनुशासन में रखने के लिये दण्ड देना ) में
अनेक गुण होते हैं |  अतः  एक पिता को अपनी संतान का  तथा
एक गुरु द्वारा  अपने शिष्यों को अनुशासित रखने के लिये ताडन
विधि अपनानी चाहिये न कि लालन विधि |

(एक अन्य सुभाषित में भी इस भावना को इस प्रकार व्यक्त किया
गया है -  ' लालयेत्पञ्चवर्षाणि  दश वर्षाणि ताडयेत्  |
                 प्राप्ये तु षोडशे  वर्षे पुत्रं मित्रवदाचरेत  ||   अर्थात एक
बालक का लालन पांच वर्ष की आयु तक करना चाहिये तथा अगले १०
वर्षों तक ताडन करना चाहिये |  तथा बालक की आयु के १६वे वर्ष से
उसके साथ मित्रवत्  व्यवहार करना चाहिये  |  )

Laalanaadbahavo doshaastaadane  bahavo gunaah.
Tsmaatputram cha shishyam  cha  taadayanna tu laalayet.

Laalanaat + bahavo.   Laalanaat = in indulgence (yielding to
the wishes, pampering,   Bahavo= many.  Doshaah + taadane. 
Doshaah = defects.   Taadane =chastising, imposing discipline. 
Gunaah = merits, advantages   Tasmaat = therefore.   Putram =
children,  Shishyam = pupil, disciple.  Cha = and.  Taadayet =
chastise.    Na = not.   Tu =but.    Laalayet = indulge, pamper.

i.e.   There are many defects in indulgence and so also many
advantages and merits in chastising and imposing discipline.
Therefore , a father should up bring his children and a Teacher
his pupils by  chastising them and not by pampering them.

(In another Subhashita it is said that a father should pamper his
children upto  the age of 5 years and thereafter for next 10 years
he should enforce strict discipline. But from the 16th year onwards
he should treat his children like a friend.)




Saturday, 19 May 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


मनसा  चिन्तितं  कार्यं  वाचा  नैव प्रकाशयेत्  |
मन्त्रेण रक्षयेद्गूढं  कार्ये  चापि  नियोजयेत्    ||   
                                  -  चाणक्य नीति ( 2/7 )

भावार्थ -    यदि अपने मन में किसी कार्य को सम्पन्न  करने का
विचार कर रहे हो तो उसे अपने वचनों के द्वारा किसी को नहीं
बताना चाहिये तथा  उस विचार को गुप्त रख कर उसे निष्ठा पूर्वक
सम्पन्न करना चाहिये |

Manasaa chintitam kaaryam vaachaa naiva prakaashayet.
Maantrena rakshayedgoodham kaarye  chaapi  niyojayet.

Manasaa = in the mind.   Chintitam = thought of or imagined.
Kaaryam = action, business.    Vaachaa = verbally.    Naiva=
never.    Prakaashayet = annoounce.    Mantrena = by resolve.
Rakshyet = protect.    Goodham = secret.  Cha= and.    Api=
even.      Niyojayet  = accomplish.

i.e.    If you are thinking of accomplishing a task or doing some
business,  do  not tell about your plan  to anybody , keep it as  a
secret and  accomplish it resolutely.

Friday, 18 May 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


न  विश्वसेत्कुमित्रे  च  मित्रे  चापि  न  विश्वसेत्  |
कदाचित्कुपितं  मित्रं  सर्वं  गुह्यं  प्रकाशयेत्        || 
                                      - चाणाक्य नीति  ( २/६)

भावार्थ -    एक बुरे मित्र के ऊपर कभी भी विश्वास नहीं करना
चाहिये तथा एक अच्छे मित्र के ऊपर  भी विश्वास नहीं करना
चाहिये क्यों कि यदि वह किसी कारण वश क्रोधित हो  जाय तो
वह तुम्हारी सारी गोपनीय बातों को सार्वजनिक  कर सकता है | 

Na vishvasetkumitre  cha  mitre  chaapi  na  vishvaset,
Kadaachitkupitam  mitram  sarvam  guhyam  prakaashayet.

Na =not.   Vishvaset = rely or depend upon.    Kumitram =
a bad friend.    Cha = and.    Mitre = a friend.      cha+api.
Api = even.    Kadaachit = sometimes    Kupitam = angry.
Sarvam  =  all.    Guhyam = secrets .   Prakaashayet = may
make visible, may reveal.

i.e.    You should never rely upon your bad friend but should
also not rely upon a good friend as well, because if per chance
he becomes angry at you , he may reveal all your secrets to the
outsiders.




   

Thursday, 17 May 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.

 ते  पुत्रा  ये  पितुर्भक्ताः  स  पिता  यस्तु  पोषकः  |
तन्मित्रं  यत्र  विश्वाशः  सा  भार्या  यत्र  निर्वृतिः :  ||
                                          - चाणक्य नीति (२/४ )

भावार्थ -   वही  संतान श्रेष्ठ होती है जो अपने पिता की आज्ञाकारी
और उनका आदर करने  वाली होती है  और वही पिता श्रेष्ठ होता है
जो अपनी संतान का भरण पोषण भली प्रकार करता है |   मित्र वही
श्रेष्ठ  होता है जिस पर विश्वास किया जा सकता  है , और पत्नी वही
श्रेष्ठ होती है  जो वैवाहिक जीवन में सुख प्रदान करती है |

Tey putraa ye  piturbhaktaah sa pitaa yastu poshakah,
Tanmitram yatra vishvaashah  saa  bhaaryaa yatra nirvrutih

Tey = they.  Putraa = children.   Ye = who.    Pituh + bhaktaah.
Pituh = father's .   Bhaktaah = fathful, devoted to.   Sa =that.
Pitaa = father.     Yah = who.    Tu =is    Poshakah= nourisher,
supporter.     Tam + mitram .   Tam = that person.   Mitram =
a friend.     Yatra = where.    Vishvaasah = trust, reliance.
Saa = that.   Bhaaryaa = wife.   Nirvrutih = happiness, bliss.

i.e.     Those children are blessed who are faithful and devoted
to their father, and a father is the best father if he supports and
nourishes his family properly.   That friend is a best friend who
can be relied upon in case of a need and that wife is the best ,
who provides marital bliss to her husband and the family.

Wednesday, 16 May 2018

आज का सुभाषित / Today 's Subhashita.


यो   ध्रुवाणि  परित्यज्य  अध्रुवं   परिषेवते  |
ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ति  चाध्रुवं  नष्टमेव हि ||
                               - चाणक्य नीति (१/१३ )

भावार्थ -   जो व्यक्ति अपने  स्थायी  उद्देश्यों (हितों ) को  त्याग
कर  अस्थायी उद्देश्यों  की प्राप्ति के लिये ही  प्रयत्नशील रहता है ,
ऐसा करने से (सही देखरेख के अभाव में) उस के स्थायी उद्देश्य तो
नष्ट होते  ही  हैं , अस्थायी उद्देश्य भी निश्चय  ही नष्ट हो जाते  हैं  |

Yo dhruvaani paritajya adhruvam  parishevate.
Dhruvaani  tasya nashyanti  chaadhruvam nashtameva hi.

Yo = whosoever.   Dhruvaani = permanent  objectives.
Parityajya = abandoning, discarding.       Adhruvam  =
temporary.    Parishevate = pursues.    Tasya = his.
Nashyanti = destroyed.   Cha + adhruvam.    Cha = and.
Nashtmeva = nashtam + eva,    Nashtam =perish, get
destroyed.    Eva = thus, really.   Hi = surely.

i.e.     A person who abandons his permanent objectives
and  pursues temporary objectives, while  his permanent
objectives are destroyed  (for lack of supervision),  his
temporary objectives too are also destroyed.

Tuesday, 15 May 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


यस्य पुत्रो  वशीभूतो  भार्या छन्दानुगामिनी |
विभवे  यश्च सन्तुष्टस्तस्य  स्वर्ग इहैव हि  ||
                               - चाणक्य नीति (२/०३ )

भावार्थ -    जिस  व्यक्ति की सन्तान  आज्ञाकारी हो , पत्नी
उसकी इच्छाओं के अनुसार ही सभी कार्य करने वाली हो ,तथा
वह अपने पास उपलब्ध  धन संपत्ति से पूर्णतः संतुष्ट हो , तो
निश्चय ही उसके लिये  यह पृथ्वी ही स्वर्ग के समान है |

Yasya putro vasheebhooto  bhaaryaa  chandaanugaaminee.
Vibhave  yashcha  santushtastasya  Svarga Ihaiva  hi.

Yasya = whose    Putro = son, children.   Vasheebhooto =
obedient, under control.    Bhaaarya = wife.   Chanda  +
anugaaminee.     Chanda = desires, wishes.  Anugaminee=
follower.    Vibhavae = riches, wealth.   Yasya =  whose.
Santushtih + tasya.    Santushtih = contentment, complete
satisfaction.    Tasya = his.    Svarga = heaven.  Iha + eva.
Iha = in this world.      Eva = really, thus.   Hi = surely.

i.e.    A person whose children are obedient, his wife fulfils
all his desires, and  is contented with whatever wealth he
possesses, this World itself is like the Heaven for him.

Monday, 14 May 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


लोकयात्रा  भयं  लज्जा  दाक्षिण्यं  त्यागशीलता    |
पञ्च  यत्र  न  विद्यन्ते  न कुर्यात्तत्र  संस्थितिम् || 
                                      -  चाणक्य नीति (१/१० )

भावार्थ - जिस प्रदेश में जीवनयापन  के साधन ,जनता में निषिद्ध 
कार्यों को करने  पर  राज्य द्वारा दण्डित होने का भय , शालीनता ,
दयालुता  तथा त्याग की भावनायें, ये पांच परिस्थितियां  नहीं होती
हैं   वहां कभी भी निवास नहीं करना चाहिये  |

(जब हम  वर्तमान समय में सीरिया, लीबिया, अफगानिस्तान  आदि
देशों की परिस्थिति को देखते है तो  उपर्युक्त सुभाषित की सत्यता
प्रमाणित हो जाती है | )

Lokayaatraa  bhayam  lajja  daakshinyam  tyaagasheelataa.
Panch  yatra   na  vidyante  na  kuryaattatra  smsthitim.

Lokayaatraa = support of life      Bhayam = fear.     lajjaa =
modesty.    Daakshinyam =  kindness .  Tyaagasheelataa =
liberality.    Pancha = five.    Yatra = where.   Na =  not.
Vidyante =  are  there.   Kuryaat  + tatra,   Kuryaat = do.
Tatra = there.   Smsthiti =   live , stay.

i.e.   In a Country where there is absence of these five virtues.
namely(i) no proper means of livelihood, (ii)  the citizens having
no fear of being punished for their wrong doings , absence  of 
(iii)modesty, (iv) kindness and (v) liberality,  one should never
stay or live in such a Country.

(The conditions prevailing in Syria, Libia, Afgaanistan etc now a
days proves the correctness of the above Subhashita.)






Sunday, 13 May 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


जानीयात्प्रेषणे  भृत्यान्बान्धवान्   व्यसनागमे  |
मित्रं चापत्तिकालेषु  भार्यां   च  विभवक्षये         ||
                                   -  चाणक्य नीति ( १/११ )

भावार्थ -   विपत्ति आने  पर ही  सेवकों तथा बन्धु बान्धवों  तथा
मित्रों के द्वारा सेवा और सहायता करने के प्रति वे  कितने प्रतिबद्ध
हैं  यह ज्ञात हो जाता है | और धन संपत्ति नष्ट हो जाने पर अपनी
पत्नी की  प्रतिबद्धता भी ज्ञात हो जाती है |

(इसी भावना को गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी इस प्रकार व्यक्त
किया है :- 
       ' धीरज धर्म मित्र अरु नारी  | आपतकाल परखिये चारी || '

Jaaneeyatpreshane  bhrutyaanbaandhavaan  vyasanaagame.
Mitram chaapattikaaleshu  bhaaryaam  cha vibhavakshaye.

Jaaneeyat +preshane.    Jaaneeyaat =  is known.   Preshane =
rendering a service,  commitment     Bhrutyaan = servants.
Baandhavaan=close relatives.    Vyasanaagame = approach of
a calamity.      Aapattikaaleshu =  emergency, hard times. 
Bhaaryaam = wife's       Vibhavakshaye = loss of wealth ,

i.e.  Only during the time of facing a calamity,the  commitment
of  a servant, close relatives and a friend for rendering service and
help can be tested and that of one's wife when all wealth is lost.


Saturday, 12 May 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


आपदर्थे  धनं रक्षेद्दारान्  रक्षेद्धनैरपि |
आत्मानं  सततं रक्षेद्दारैरपि  धनैरपि  ||
                        - चाणक्य नीति  (१/६)

भावार्थ -     किसी प्रकार की आपदा से सुरक्षा  के लिये धन
बचा कर रखना चाहिये , और धन  की तुलना में अपनी स्त्री
की रक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिये |  स्वयं अपनी रक्षा तो
अपनी स्त्री और धन की रक्षा से भी अधिक निरन्तर करनी
चाहिये |

Aapadarthe dhanam raksheddaaraan  raksheddhanairapi.
Aatmaanam satatam raksheddaarairapi  dhanairapi.

Aapat + arthe.    Apaat = misfortune,  emergency..   Arthe =
for the sake of.     Dhanam = money.    Rakshet + daaraan,
Rakshet = should save.   Daaraan =  to the wife..  Rakshet+
dhanaih + api.    Rakshet = protect.   Api = even more than
(to express emphasis).    Aatmaanam = self.      Satatam =
always , continuously.    Rakshet +daaraih + api.   Dhanaih
+api.    Dhanaih = money, wealth. 

i.e.     One should save money for the sake of getting protection
in case of an emergency, or a calamity, but at the same time give 
priority to protecting his wife rather than his wealth.   He should
continuously take care of himself  even more than his wife and
his wealth.

Friday, 11 May 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


वरयेत्कुलजां  प्राज्ञो विरूपामपि कन्यकाम्  |
रूपशीलां  न  नीचस्य  विवाहः सदृशे  कुले   ||
                              - चाणक्य नीति (१/१४ )

भावार्थ -    बुद्धिमान  व्यक्तियों को  विवाह  हेतु कन्या  का चयन
एक  प्रतिष्ठित और अच्छे कुल से करना चाहिये  चाहे वह कन्या
कुरूप ही  क्यों न हो |  किसी नीच कुल की कन्या का चयन केवल
उसके सुन्दर होने के कारण ही नहीं करना चाहिये | इसके अतिरिक्त
विवाह  सम्बन्ध  ऐसे ही कुल में करना चाहिये जो आर्थिक और
सामाजिक स्तर में अपने कुल के समान ही  हो |

Varayetkulajaam  praagyo  viroopaamapi  kanyakaam.
Roopasheelaaam  na  neechasya  vivaahh  sadrushe kule.

Varayet = choose.   Kulajaam =born in a noble family.
Praagyo = wise  men.    Viroopaam + api.    Api = even.
Viroopaam = ugly looking.   Kanyakaam = a girl,
Roopasheelaam = beautiful.   Na = not.    Neechasya =
of a low and insignificant family background.   Na = not.
Vivaahah = marriage.     Sadrushe = similar.        Kule =
family dynasty (background ).

i.e.    Wise men should select a girl for marriage from a
noble and illustrious family, even if the girl may not be
beautiful , but should not select a girl from a lowly family
simply on the basis of her being beautiful.   Besides, such
relationship should be established in a family matching in
financial and social status with one's own family.

Thursday, 10 May 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


त  एव  पदविन्यासास्ता  एवाSर्थविभूतयः  |
तथाSपि  नव्यं  भवति काव्यं  ग्रथनकौशलात् ||
                              - सुभाषित रत्नाकर (स्फुट)

भावार्थ -   सभी कवियों के काव्यों  में शब्दों ,पदों (छन्दों) तथा
उनके द्वारा व्यक्त अर्थ (उच्च विचारों ) का समन्वय होता है,
परन्तु यदि कोई कवि  इस सभी तत्वों को समन्वित करने में
अधिक कुशल होता है तो उसका काव्य अधिक प्रशंसित  और
प्रसिद्ध  हो जाता है |

Ta eva  padavinyaasaastaa  evaarthavibhootayah.
Tathaapi  navyam  bhavati  kaavyam  grathana-kaushalaat.

Ta =that      Eva = really    Pada + vinyaasaah + taa.    Pada =
word.  Vinyaasah=arrangements.    Taa= that.     Eva+artha +
Vibhootayah.   Artha = meaning.   Vibhootayah = greatness,
glory.    Tathaapi  = even then    Navyam = praiseworthy.
Bhavati = becomes.    Kaavyam = poetry.       Grathana =
binding together.    Kaushalaat = due to the skill of.

i.e.    The poetry written  by poets is always an expression of
glorious thoughts with the help of  choicest  words and the
style of writing to express those thoughts . Even then, if a poet
possesses better expertise in combining all these elements of
poetry, his poetry is more praiseworthy.

Wednesday, 9 May 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


सरसाSपि   कवेर्वाणी  हरिनामाङ्किता  यदि  |
साSSदरं  गृह्यते तज्ज्ञै: शुक्तिर्मुक्ताSन्विता  यथा ||
                    - सुभाषित रत्नाकर (प्रसंग रत्नावली )

भावार्थ -  यदि कवियों की काव्य  रचनायें सरस होने के  साथ
साथ भगवान विष्णु के नाम से भी अङ्कित होती है (उनमें ईश्वर
 का नामस्मरण भी होता है ) तो ज्ञानी और सज्जन व्यक्ति उन्हें
आदर पूर्वक उसी प्रकार स्वीकार करते हैं जिस प्रकार  मोती युक्त
सीपी को लोग स्वीकार कर लेते हैं |
(इसी भावना को गोस्वामी तुलसीदास जी ने  भी अपने प्रसिद्ध
ग्रन्थ रामायण में इस प्रकार व्यक्त किया है :-
        भनिति मोरी सब गुण रहित विश्व विदित गुन एक  |
        सो विचारी सुनिहहिं  सुमति जिन्ह के विमल विवेक ||
एहि  महं  रघुपति नाम उदारा | अति पावन पुरान श्रुति सारा || )

Sarasaapi kavervaanee Harinaamaankitaa yadi.
Saadaram gruhyate tajJeyah  shuktirmuktaanvitaa.

Sarasa + api.    Sarasa =gracious, beautiful, tasty
Api = evem.   Kavaih + vaanee    Kavaih = poets'
Vaanee = literary compositions (works) .    Hari +
naama+ankitaa.      Hari = God Vishnu.   Naama =
name.     Ankitaa = marked., containing.    Yadi- if .
Saadaram = with devotion .       Gruhyate= accept,
receive.      TajJeya = tat + gyayh.       Tat = that.
Gyaih = noble and knowledgeable persons.
Shuktih + muktaa+ anvitaa.      Shukti = oyster
shell.     Muktaa= pearl.       Anvita= possessing.   
Yathaa =  for instance.

i.e.      If the literary works of poets are , in addition to
having beautiful verse are also interspersed with the name
of  God Vishnu, then such literary works are received with
devotion by noble and virtuous persons, in the same manner
as oyster shells containing pearls inside them are treated  by
the people.

(The contents of a book is the deciding factor of its value. A book
may not have literary merit but if it is associated with God then it
no longer remains an ordinary book but becomes valuable ,  just
like  an oyster shell containing a pearl inside it ,)

Tuesday, 8 May 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


गुणवत्तरपात्रेण  छाद्यन्ते  गुणिनां गुणाः  |
रात्रौ दीपशिखाकान्तिर्न  भानावुदिते सति  ||

भावार्थ -     गुणवान व्यक्तियों  के गुण उनसे भी अधिक गुणवान
व्यक्तियों की उपस्थिति में उसी प्रकार  नहीं दिखाई देते  है जैसे कि
एक दीपक की लौ से उत्पन्न  हुआ प्रकाश रात्रि में ही दिखाई देता है
और सूर्य के उदय होने पर प्रभावी नहीं रहता है |

Gunavattarapaatrena cchaayante  guninaam gunaah.
Raatrau deepashikhaakaantirna bhaanaavudite sati.

Gunavattar = more excellent.   Paatrena = any body
worthy of or  abounding in a virtue, a capable person's.
Chaadyante = conceals, masks   Guninaam =virtuous
persons.   Gunaah = virtues.   Raatrau during the night.
Deepshikhaa + kaantih +na     Deepashikaa =  the flame
of a lamp.     Kaantih = brightness.       Na = not.
Bhaanaavudite = bhaanau + udite.    Bhaanau = the Sun.
Udite = rising of the Sun. 

i.e.      The virtues of noble persons remain concealed in
the presence of  persons having more excellent virtues,
e.g. the flame of a lamp shines only in the night and loses
its sheen when the Sun rises in the morning.


Monday, 7 May 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.



सहजान्धदृशः  स्वदुर्नये  परदोषेक्षणदिव्यचक्षुषः |
स्वगुणोच्चगिरो  मुनिवत्ताः  परवर्णग्रहणेष्वसाधवः  ||

भावार्थ  -    दुष्ट व्यक्ति स्वयं अपने दोषों के प्रति तो एक अन्धे व्यक्ति
के समान आचरण करते है , परन्तु अन्य व्यक्तियों के दोषों को इस प्रकार
देखते हैं कि मानो उनके पास दिव्य दृष्टि हो | इसी प्रकार अपने गुणों का तो
वे बडे जोर शोर से प्रचार करते हैं , परन्तु जब् अन्य व्यक्तियों की प्रशंसा
करनी  हो तो वे एक मुनि के समान मौन धारण कर लेते हैं | 

Sahajaandhadrushah  svadurnaye  paradoshekshanadivya
chakshushah.
Svagunocchagiro  munivattah paravarnagrahaneshvaasaadhavah.

Sahaja+andha+ drushah.    Sahaja =natural.   Andha = blind.
Drushah = appearance, look.    Sva= of self.   Durnaye =  bad
conduct.   Para +dosha +eekshana +divyachakshushah.   Para =others.
Dosh = defects,shortcomings. _Ekshan = viewing.   Divyachakshu =
extremely good eyesight.   Svaguno +ucchagiro.   Svaguno - his own
virtues.   Ucchagiro =  loud mouthed....Munivat = like a sage.
Para +varna +grahaneshu + asaadhavah.   Para = others.   Varna =
appearance.qualities.   Grahaneshu = appreciating, receiving.
Asaadhavah = mean and wicked persons.

i.e.    Mean and wicked persons behave like a blind person in respect
of their own shortcomings, but exhibit extremely good eyesight while
observing the shortcomings of others. Likewise ,they are loud mouthed
while extolling their own virtues, but maintain complete silence like a
sage ,when there is need to appreciate the qualities of others.

Sunday, 6 May 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


दक्षिणाशाप्रवृत्तस्य  प्रसारितकरस्य  च  |
तेजस्तेजस्विनोSर्कस्य  ह्रियतेSन्यस्य का कथा ||
                 - सुभाषित रत्नाकर (प्रसंग रत्नावली )

भावार्थ -  जब एक याचक दान प्राप्त होने की आशा से दानदाता
के सामने अपने दोनों हाथ फैलाता है,  या  सूर्य जब दक्षिण दिशा
की ओर प्रस्थान करते समय  अपनी किरणों को विस्तारित करता
है तो महान तेजस्वी सूर्य के तेज में भी कमी  हो जाती  है , तो अन्य
साधारण व्यक्तियों के बारे में क्या कहना |
 (प्रस्तुत सुभाषित भी  'याचकनिन्दा' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित
है | इस में 'द्क्षिणाशा' तथा 'कर' शब्दों को द्विअर्थक शब्दों के रूप में
प्रस्तुत किया है | दक्षिणाशा =(१) दान प्राप्ति की आशा (२)   दक्षिण -
पश्चिम दिशा की ओर प्रवृत्त, तथा कर =(१)  हाथ  (२) सूर्य की किरणे |
कहने  का तात्पर्य यह  है कि याचक अपनी गरिमा और आत्मसम्मान
खो देते हैं | )

Dakshinaahaa-pravruttasya  prasaarita-karasya  cha
Tejas-tejasvinorkasya hriyatenasya kaa katha.

Dakshinaa +aashaa+ pravruttasya.    Dakshniaa=donation,
gift.   Aashaa = hope.   Pravruttasya =  a person motivated
by.  Dakshinaasha =moving towards south-west. 
Prasaarati = spreads.   Karasy = hands, rays of the Sun.   
Cha = and.    Tejah +tejasvino+arkasya.  Tejah=brightness. 
Teejasvino=  splendid and noble.     Arkasya =  of the Sun.   
Hriyate= decreases.   Anyasya =  about others.  Kaa = what ?
 kathaa = to say about.

i.e.    When a beggar spreads his hands before a donar with
the hope of getting alms, or the bright and majestic Sun also
moves towards south-west  and spreads its rays, even the
majesty and brightness of the Sun gets reduced, what to say
about ordinary persons.

(This Subhashita is also classified as 'condemning the beggar' .
Here the words 'dakshinaasha' and 'karasya' have two meanings.
as given above.  The Sun moving towards south-west and losing
its brightness while setting has been used as a simile, to denote
that begging results in loss of self respect and virtues of a beggar.)


Saturday, 5 May 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


रिपुः पौलस्त्याख्यश्चरणचरितव्यो  जलनिधि-
र्विजेतव्या लङ्का  रणभुवि  सहायाश्च  कपयः  |
तथाSप्येको  रामः  सकलमवधीद्राक्षसकुलं
क्रियासिद्धिः  सत्वे  भवति  महतां  नोपकरणे    ||
                              - सुभाषित रत्नाकर (स्फुट )

भावार्थ  -  ऋषि पुलस्त्य के कुल में जन्मा दुर्दान्त लंका पति रावण
श्री राम चन्द्र का शत्रु था | उस पर आक्रमण करने के लिये उन्हें समुद्र
पार कर  लंका को जीतने के लिये उसे ही रणभूमि बनाना था और वानर
ही उनके सहायक थे |  फिर भी उन्होंने  सारे राक्षस कुल का नाश कर
दिया | सचमुच अपना कार्य सिद्ध करने के लिये महान और शक्तिशाली
व्यक्ति अपने शौर्य पर निर्भर होते हैं न कि अन्य वाह्य उपकरणों पर |

Ripuh Paulastayaakhyash-charana-charitavyo  Jalanidhi-
rvijetavyaa  Lanka  ranabhuvi  sahaayaash-cha kapayah.
Tathaapyeko  Raamah  sakalam-avadhee-draakshasha-kulam.
Kriyaasiddhih satve bhavati  mahataam  nopakarane..

Ripuh = enemy.   Paulastya = descended from Pulastya Rishi
Akhya = infamous.  (A reference to infamous Ravana,  the
King of Lanka.    Charana = managing.   Charitavyo = to be
crossed.  Jalanidhih = the Ocean.  Vijetavyaa = to be overcome
or conquered.   Lanka =the kingdom of Ravana,   Ranabhuvi=
battlefield.  Sahayah = helpers, followers.   Kapayah =monkeys
Tathaapi = even then.   Eko = only one.   Raamah = Lord Raam.
Sakalam = all.   Avadheet= killed.  Rakshashkulam = the dynasty
of Raakshashaas.   Kriyasiddhih = accomplishment of an objective.
Satve = powerful.    Bhavati = happens,   Mahataam =great and
mighty persons.   Nopakarane = na+ upakarane.    Na =not.
Upakarane = equipments,  tools.

i.e.     The infamous king Ravana, the descendant of Sage Pulastya
was the enemy of Lord Ram. To conquer Ravana he had to attack
Lanka by crossing the Ocean and make it into a battle field. The only
assistance he got to accomplish this task was from the monkeys. Even
then  Lord Ram managed to kill  the entire clan of the Rakshashaas.
It is truly said that great and powerful persons achieve success in
their endeavor due to their valor and not through various equipments. 



Friday, 4 May 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


देहीति  वचनं श्रुत्वा हृदिस्थाः  पञ्च देवताः  |
मुखान्निर्गत्य  गच्छन्ति  श्रीह्रीधीधृतिकीर्तयः ||
                      - सुभाषित रत्नाकर ( शार्ङ्गधर )

भावार्थ -   "कृपया मुझे  यह वस्तु  प्रदान करें " -एक याचक द्वारा
उसके मुंह से निकले  हुए इन शब्दों के  सुनते ही उस व्यक्ति के हृदय
स्थित श्री (वैभव), लज्जा, बुद्धि , धैर्य तथा कीर्ति ये पांच दैवीय  गुण
तुरन्त पलायन कर जाते  हैं |

(प्रस्तुत सुभाषित भी 'याचकनिन्दा' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है |
एक याचक को अपने आत्मसम्मान से तो वञ्चित होना ही पडता है,
कालान्तर में उसके अन्य गुण और संपत्ति भी नष्ट हो जाते हैं | यही
इस सुभाषित का संदेश है | )

Deheeti vachanam shrutvaa hrudisthaah pancha  devataah.
Mukhaannirgatya gacchanti shree-hree-dhee-dhruti-keertayah.

Deeheeti = dehi + iti.    Dehi = give me.   Iti = so, thus.
Vachanam = utterance.    Shrutvaa = listening.   Hrudisthaah=
being in the heart.    Panch = five.   Devataah = Gods, divinity.
Mukhaannirgatya =  Mukhaat + nirgatya.    Mukhaat = from
the mouth    Nirgatya = coming out of.    Gacchanti = go, quit.
Shree = wealth.    Hree =shame.   Dhee - intellect.   Dhruti=
courage.     Keertayah =glory, reputation.

i.e.    'Please grant me this favour'  - no sooner a person utters
these words from his mouth, listening to them the five virtues
namely wealth, shame, intellect, courage and glory enshrined
in his heart also depart immediately.

(The idea behind this Subhashita is that not only a beggar loses
his self-respect but also other virtues in the longer run.)




Thursday, 3 May 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


पुरतः  प्रेरयेत्याशा  लज्जापृष्ठाSवलम्बिनी  |
ततो लज्जाSSशयोर्मध्ये  दोलायत्यार्थिनां मनः  |
                        - सुभाषित रत्नाकर (सभातरंग )

भावार्थ -       एक याचक सर्वप्रथम कुछ प्राप्ति की  आशा से
प्रेरित हो कर ही याचना करता है और फिर लज्जित भी होता
है |  इसके बाद इच्छापूर्ति होने या न होने तक उसका मन आशा
और निराशा  के मध्य डोलता रहता है |

(इस सुभाषित में एक याचक की लज्जा की भावना तथा  आशा
और निराशा के बीच डोलती हुई उसकी मनोदशा का सुन्दर वर्णन
किया गया है |  )

Puratah  prerayetyaashaa  lajjaprushthaavalambinee,
Tato lajjaashayormadhye dolaayatyarthinaam manah,

Purrutah = in front, initially.           Prerayati + aashaa.
Prerayati = stimulates, incites.    Aashaa = hope.
Lajjaa = embarrassment,    Prushtha + avalambinee.
Prushtha = followed by.   Avalambinee = dependent upon.
Tato = afterwards.   Lajjaa + aashayoh + madhye.
Aashayoh + hope.    Madhye - between, in the middle.
Dolaayati + arthinaam.    Dolaayati = swings to and fro.
Arthinaam = beggars.    Manah = mind.

i.e.     Initially a beggar  is  motivated to beg with the hope
of getting something, followed by the feeling of embarrass-
ment for doing so. Thereafter, his  mind swings between hope
and embarrassment until such time his request is granted
or rejected .


Wednesday, 2 May 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


तीक्ष्णधारेण  खड्गेन  वरं जिह्वा  द्विधा  कृता  |
नतु  मानं  परित्यज्य  देहिदेहीति  भाषितम्       ||
                 -सुभाषित रत्नाकर ( प्रसंगरत्नावली )

भावार्थ -   एक याचक दारा याचना करने से अच्छा तो यही
होगा कि वह किसी तेज धार वाली छुरी से अपनी जीभ के दो
टुकडे कर दे , अन्यथा उसे अपना  आत्म-सम्मान त्याग कर
बार बार यही कहना होगा कि 'कृपया मुझे अमुक वस्तु प्रदान
करें '|

(प्रस्तुत सुभाषित भी 'याचकनिन्दा' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित
है | एक याचक को कितना अपमान सहन करना पडता है उसका
परोक्ष रूप में चित्रण इस सुभाषित में किया गया है | )

Teekshnadhaarena  khadgena varam jihvaa dvidhaa krutaa.
Natu  maanam  parityajya dehideheeti bhaashitam.

Teekshna = very sharp.   Dhaarena = edge of.   Khadgna=
of a sword or big knife,    Varam = preferably.    Jihavaa=
the tongue.   Dvidhaa = two pieces.   Krutaa = done.   Na =
not.       Tu = but, and.        Maanam = pride, self-respect.
Parityajya = by sacrificing.   Dehideheeti = dehi + dehi +
iti.    Dehi = give .   Iti = thus, so.    Bhaashitaam = should
address as.

i.e.    For a beggar it is preferable to cut his tongue  into two
pieces with a sharp knife rather than losing his self-respect
by uttering again and again - 'please give this to me' .

(This Subhashit is also classified under the caption 'Yaachak
ninda' i.e. condemning the begging.  It indirectly deals with
the ignominy a beggar has to face while begging.)

Tuesday, 1 May 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


याचना  हि  पुरुषस्य  महत्त्वं  नाशयत्यखिलमेव  तथा  हि |
सद्य   एव  भगवानपि विष्णुर्वामनो  भवति  याचितुमिच्छन्  ||
                                              - सुभाषित रत्नाकर (कल्पतरु )

भावार्थ -   किसी भी व्यक्ति का संपूर्ण महत्त्व और आत्मसम्मान
 उसके द्वारा किसी प्रकार की याचना करने  पर निश्चय ही तुरन्त
नष्ट हो जाता है |  देखो न  !  भगवान विष्णु भी जब याचना करने के
लिये महाराजा बलि   के पास गये तो वे तुरन्त एक  बौने व्यक्ति हो
गये थे |

(इस सुभाषित में पुराणों में वर्णित 'वामनावतार ' के प्रसंग को एक
रूपक के रूप में  प्रयुक्त किया है | पूर्ण विवरण के लिये कृपया निम्न
लिखित लिंक का उपयोग करें :- https://hi.wikipedia.org/wiki/वामनावतार )

Yaachanaa hi purushasya mahattvam naashayatyakhilameva
tathaa hi.aachanaa kara
Sadya eva bhagavaanapi Vishnurvaamano bhavati Yaachitu-
micchan.

Yaachanaa = begging.   Hi = surely.    Purushasya = a person's .
Mahattvam = importance.    Naashayati + akhilam + eva.
Naashayati = destroys.    Akhillam =entirely.   Eva = really.
Tathaa = so.   sadya = instantly.   Bhagwaan+ api.   Bhagvaan=
God.     Api = even.     Vishnuh + vaamano.   Vishnuh = the God
Vishnu.   Vaamano = a dwarf.    Bhavati =becomes.   Yaachitum=
begging.   Icchati = desires to.

i.e.     No sooner a person begs some thing from another person, his
importance and self-respect is lost entirely  and instantly.   Just see,
even the God Vishnu became a dwarf when he went  to the King Bali
for thee purpose of begging..

(In this Subhashita the episode of "Vaamanaavataar"  from the Hindu
Mythology has been used as a simile.  For details please use this link
on the Internet -  https://hi.wikipedia.org/wiki/वामनावतार