Sunday, 31 July 2016

Today's Subhashita.


अविश्रान्तंम्  वहेद्भारम् शीतोष्णं च  न  विन्दति  |
स सन्तोषस्तथा  नित्यंम् त्रीणि शिक्षेत् गर्धभात् || - संस्कृत सुभाषितानि

भावार्थ -   बिना किसी प्रतिरोध के  बडे  बडे  भारों को ढोना, सर्दी  और
गर्मी की भी परवाह न करना, तथा सदैव जो कुछ भी उसे  प्राप्त हो उसी
पर संतुष्ट रहना ,  ये तीन विशेषतायें (गुण) हमें एक  गधे से  सीखनी
चाहिये |

(संस्कृत साहित्य में ऐसे अनेक सुभाषित है  जिन में निम्न बौद्धिक स्तर
के  प्राणियों के सामान्य व्यवहार  से भी  मनुष्यों को सीख लेने की प्रेरणा
दी गयी है |   यह सुभाषित भी उसी श्रेणी  के अन्तर्गत है | )

Avishraantam vahedbhaaram  sheetoshna  cha  na bindati.
Sa santoshastathaa nityam treeni shiksht gardhabhaat.

Avishraantam = unwearied, incessantly.    Vahedbhaaram
Vahet + bhaaram.     Vahet = carries away      Bhaaram =
burden, heavy weight.         Sheetoshnam = cold and heat..  
Cha = and.    Na = not.      Vindati = experiences,  feels.
Sa =  he, it.    Santoshastathaa =  santoshah +  tathaa.
Santoshah = contentedness,    Tathaa = as such,    Nityam =
daily.     Treeni = (these) three (characteristics).   Shikshet =
should learn.      Gardhabhaat = from a donkey.

i.e.   Bearing very heavy weights incessantly without showing
weariness or protest,  unconcerned with cold and hot weather
conditions,  and being always contented at whatever he is fed.
are  the three  characteristics  of  a donkey, which  we  should
learn from a donkey.

(In Sanskrit literature there are many Subhashitas ,which exhort
people to emulate some special characteristics of  members of the
animal world.  This  Subhashita is one among such subhashitas.)





Saturday, 30 July 2016

Subhashita of 29th July, 2016.

Friday, 29 July 2016
Today's Subhashita.
आर्तो देवान् नमस्यन्ति तपः कुर्वन्ति रोगिणः |
निर्धनाः दानमिच्छन्ति वृद्धा नारी पतिव्रता || - संस्कृत सुभाषितानि
भावार्थ - कष्टों मे घिरे हुए व्यक्ति ही देवताओं की पूजा करते हैं तथा
रोगी व्यक्ति ही एक तपस्वी के समान अपने शरीर को कष्ट देते हैं | निर्धन
व्यक्ति ही सदैव दान पाने के इच्छुक रहते हैं और वृद्धावस्था में हर नारी
पतिव्रता हो जाती है |
(इस सुभाषित में उन व्याक्तियों पर व्यङ्ग्य किया गया है जो विपत्ति
के समय मे ही परमेश्वर को याद करते है, बीमार होने पर ही सात्विक
आचरण करते है | इसी प्रकार निर्धन होने पर ही लोग दान के महत्त्व
को स्वीकार करते है तथा वृद्धावस्था मे तो हर स्त्री पतिव्रता हो जाती है |)
Aarto devaan namasyanti tapah kurvanti roginah.
Nirdhanaah daanamicchanti vruddhaa naaree pativrutaa.
Aarto = distressed. Devaan = Gods. Namasyanti = worship.
Tapah = penance, act of self punishment. Kurvanti = do.
Roginah = sick persons. Nirdhanaah = poor people.
Daanamicchanti = daanam + icchanti. Daanam = donation.
Icchanti = wish. Vriddhaa = aged. Naree a woman.
Pativrataa = devoted and virtuous.
i.e. Only distressed persons worship the Gods and sick persons
observe penance like an ascetic. Poor people always crave for
donation and an aged woman becomes a devoted and virtuous wife.
(The above Subhashita is a satire criticizing people who worship
the Gods only when they are distressed, appreciate penance only
when they are sick , appreciate charity when they are poor, and
women become virtuous and devoted to their husbands when
they become aged.)

Today's Subhashita.

शोको नाशयते  धैर्यं शोको  नाशयते श्रुतंम्  |
शोको नाशयते सर्वं नास्ति शोकसमो रिपुः  ||- संस्कृत सुभाषितानि

भावार्थ =    शोक ( अत्यन्त दुःखी) होने की स्थिति में मनुष्य का धैर्य
नष्ट हो जाता है  तथा उसका विवेक और ज्ञान भी नष्ट हो जाता है |
इसके फलस्वरूप  उसका सब कुछ नष्ट हो जाता है |  अतः  शोक के
समान अन्य कोई  शत्रु  नहीं  होता है  |

Shoko naashayate dhairyam shoko naashayate shrutam.
Shoko naashayate sarvam  naasti shokasamo ripuh.

Shoko = grief, sorrow.   Nashayate = destroys.    Dhairyam =
patienc, firmness.     Shrutam = learning , sacred knowledge.
Sarvam =  completely.    Naasti = na +asti.    Na =  not.
Asti = exists.     Shokasamo = shoka +_samo.    Samo  =
equal to, like.     Ripuh = enemy.

i.e.     Grief (intense sorrow)  destroys  patience in men, as also
their wisdom and knowledge.  As a result thereof  there is complete
destruction. Therefore, there is no enemy equal to or like grief..

Thursday, 28 July 2016

Today's Subhashita.

यथा हि पथिकः कश्चित्  छायामाश्रित्य तिष्ठति  |
विश्रम्य  च पुनर्गच्छेत्   तद्वत्   भूतसमागमः    || - संस्कृत सुभाषितानि

भावार्थ -   जिस प्रकार एक थका हुआ यात्री किसी स्थान पर छाया का
आश्रय पा कर कुछ समय तक विश्राम कर पुनः अपनी यात्रा पर निकल
पडता है, वैसे ही इस नश्वर संसार में लोगों का भी एक दूसरे के साथ
 समागम  (मिलना और फिर बिछुड जाना ) होता रहता है |

Yathaa hi pathikah kashchit chaayaamaashritya tishthati.
Vishramya cha punargacchet  tadvat  bhootasamaagamah.

Yathaa = for instance, just like.   Hi = surely.   Pathikah =
a traveller.     Kashchit = any.    Chaayaamaashritya = chaayaaam
+ aashritya.    Chaayaam = shade.     Aashritya = having obtained
a shelter.   Tishthati =  stays.     Vishramya = after taking a rest.
Cha = and.    Punargacchet = punah +gacchet.    Punah = again.
Gacchet = goes.   Tadvat = like that.     Bhootasamaagamah =
meeting of mortals.

i,e,       Just as a weary traveller on finding a cool shade somewhere
rests there for some time and afterwards again proceeds on his
journey, in the same manner is the association of all  mortals with
each other.is also for a short period ..


Wednesday, 27 July 2016

Today's Subhashita.

जीवने यावदादानं स्यात् प्रदानं यत्  ततोSधिकम्  |
इत्येषा  प्रार्थनास्माकं  भगवन्परिपूर्यताम्          ||  - संस्कृत सुभाषितानि

भावार्थ -   हे परमेश्वर !    में चाहता हूं कि आजीवन मुझे जो कुछ भी
 (धन संपत्ति ) प्राप्त हो  उस से भी अधिक  में दूसरों  को (दरिद्र और
सहायता के पात्र व्यक्तियों ) देता  रहूं |  अतः आपसे प्रार्थना है कि  मेरी
यह इच्छा आप  पूर्ण कर दें |

(इस सुभाषित के माध्यम से धन का संचय मात्र  न कर उसे समाज सेवा
के कार्यों मे लगाने को प्रेरित किया गया है | )

Jeevane yaavadaadaanam syaat pradaanam yat tatodhikam.
Ityeshaa praarthanaasmaakam bhagavanparipooryataam.

Jeevane = (in my) life.   Yaavadaadaanam = Yaavat +aadanam.
Yaavat = until,upto.    Aadaanam = receiving.   Syaat = be there.
Pradaanam = giving.   Yat = that.  Tatodhikam = Tato +adhikam.
Tato = therefore.    Adhikam = more.   Ityeshaa = iti +eshaa.
Iti =  thus,    Eshaa = this.   Praarthanaasmaakam =  prarthanaa +
asmaakam.         Praarthanaa = request, prayer.       Asmaakam =my,
Bhagvanparipooryataam = Bhagvan + paripooryataam.
Bhagvan = O God Almighty !    Paripooryataam =  be fulfilled.

i.e.      O God Almighty!  it is my humble desire that whatever I
earn during my life time, I should give  (in charity)  more than that.
I, therefore pray to you to fulfil my this humble desire.

(Through this Subhashita the author has entreated people not to
hoard wealth and use it for philanthropic purposes .)

Tuesday, 26 July 2016

Today's Subhashita.

अधीत्य चतुरो वेदान् सर्वशास्त्रान्यनेकशः |
ब्रह्मत्वं  न  जानाति  दर्वी पाकरसं  यथा  ||१ ||
यथाखरचन्दनभारवाही भारस्यवेता न तु चन्दनस्य |
तथैव विप्रा: षट्शास्त्रयुक्ता  सद्ज्ञानहीनाः  खरवद् वहन्ति  ||२||

भावार्थ -  "चारों वेदों एवं अनेक शास्त्रों को पढ लेने के बाद भी यदि 
ब्रह्मज्ञान नहीं  हुआ तो वह वैसा ही है जैसे कलछुली अनेक व्यञ्जनों
में घूमते हुए भी उनके स्वाद से अनभिज्ञ रह जाती है |  जैसे एक गधा
चन्दन का भार ढोता है परन्तु उसकी सुगन्धा को नहीं जानता है ,वैसा
ही वः विद्वान् है जो शास्त्रों का ज्ञाता हो कर भी सद् ज्ञान से हीन है |
वह गधे के बोझ के समान छहों  शास्त्रों का ज्ञाता होते हुए भी विद्या
मद का बोझ ढो रहा है |
(सनातन धर्म ने तो सबको बराबर का मनुष्य बनाया था, पर कुछ मूढ-
मगजों और संविधान के अनुच्छेद ३४१ ने जन्मना शूद्र बना दिया ) "

उपर्युक्त श्लोक और उनका अनुवाद मैने सुश्री पायल अग्रवाल की दिनांक
 22 जुलाई 2016 की एक पोस्ट से  उधृत किया है , जिसे मैने 23 जुलाई
को  साझा भी किया था |  अपनी पोस्ट में सुश्री पायल अग्रवाल ने  भारत
के तथाकथित 'सेक्युलर'  बुद्धिजीवियों  की आलोचना इस  लिये की थी  कि
उनके लिये  हमारा अतीत गौरवपूर्ण होते हुए भी महत्त्वहीन है और  वे
पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो कर सनातन धर्म को ही ,हमारी वर्ण व्यवस्था  के लिये
दोषी मानते है और अन्य धर्मों को श्रेष्ठ समझते हैं जो कि सर्वथा असत्य है |
उपर्युक्त दोनों श्लोक उनकी  इसी मानसिकता  के द्योतक हैं |
      मेरा सबसे पुनः अनुरोध है कि सुश्री पायल अग्रवाल् का अत्यन्त सारगर्भित
लेख एक बार पुनः पढ कर  उसका मनन  करें तथा 'शेयर' कर इन 'सेक्युलरों'
द्वारा समाज में फैलाई जा  रही भ्रान्ति को दूर करने में सहायता करें |   किसी
कवि ने कहा भी  है कि - "जिस को न निज भाषा तथा निज धर्म पर अभिमान है |
वह  नर नहीं, नरपशु  निरा है, और मृतक समान है | '     धन्यवाद  |


Monday, 25 July 2016

Today's Subhashita.

उपाध्यायात्  दश आचार्यः आचार्याणां शतं पिता  |
सहस्रं  तु  पित्रन्  माता  गौरवेण अतिरिच्यते   || - संस्कृत सुभाषितानि

भावार्थ -       शिक्षा और ज्ञान प्रदान करने में  दस सामान्य शिक्षकों से  एकi
आचार्य दस गुणा श्रेष्ठ  होता है और एक सौ  आचार्यों से भी  श्रेष्ठ एक पिता
होता है |  परन्तु  एक माता  श्रेष्ठता  और सम्मान  मे पिता से भी एक हजार 
गुणा श्रेष्ठ होती  है  |

(इस सुभाषित के माध्यम से  समस्त प्राणिमात्र में जन्मदात्री  माता  द्वारा
अपनी संतान को शिक्षित करने और पालने पोसने मे किये गये  योगदान को
अन्य व्यक्तियों के योगदान से हजारों गुणा बता कर उसके महत्त्व को बहुत
ही प्रभावी रूप  से वर्णित  किया है क्यों कि  मानव के अतिरिक्त अन्य प्राणियों
में माता ही मुख्य रूप से संतान को पालती  और  शिक्षित  करती  है  )

Upaadhyaat dash aachaaryah aachaaryaanaam  shatam pita.
Sahasram tu pitrun maataa gauravena  atirichyate.

Upaadhyaayaat = teachers.    Dasha = 10     Aacharyah = preceptor,
a teacher of highest order ( like a Professor),   Shatam = one hundred/
Pitaa= father.    Sahasram = One thousand.    Pitrun = father.
Maataa = mother.    Gauravena = with respectability , dignity.
Atirichyate = excels, predominates.

i.e.       In respect of training and providing education a professor' is
ten times superior than a primary level teacher, and the father is one
hundred times superior than the Professor, But the mother one thousand
times more superior and respectable than the father.

(Through this Subhashita the important role of a mother in upbringing
the child and in educating him, has been highlighted by terming it
thousand times better than other means.  This is true particularly in
the case of other living beings, where the mother is mainly responsible
for upbringing and training the offspring ).


Sunday, 24 July 2016

Today's Subhashita.


सत्यं  माता पिता ज्ञानं धर्मो भ्राता दया सखा  |
शान्तिः पत्नी  क्षमा पुत्रः षडेते  मम  बान्धवाः ||
                                -   (संस्कृत सुभाषितानि )

भावार्थ -   सत्यवादिता मेरीं माता के  समान है , ज्ञान मेरे  पिता
के समान  है , धर्म मेरे  भाई के समान  है , दया मेरे मित्र के समान
है , तथा शान्ति मेरे पत्नी के समान है , क्षमाशीलता मेरे पुत्र  के
समान है |  इस प्रकार ये  ६ गुण (लोग ) ही मेरे निकट संबन्धी हैं |

(इस सुभाषित में धर्म के सभी  आधारभूत अंगों की उपमायें एक आदर्श
परिवार के  विभिन्न सदस्यों को दे कर उनके महत्त्व  को प्रतिपादित
किया गया  है | )

Satyam  maataa pita gyaanam dharmo bhraataa daya sakha.
Shantih patnee kshamaa putrah shadete mama baandhavaah.

Satyam =  truth.    Maata = mother.    Pita = father.  Gyaanam =
knowledge.   Dharmo = religion    Bhraataa = brother.    Daya =
mercy,  compassion.      Sakha= friend.       Shanti = peace.
Patnee = wife,    Kshamaa = forgiveness., pardon.    Putrah =
son.     Shadete = these six.     Mama = mine.   Baandhavaah \
close relatives.

i.e.       Truthfulness is like my mother and knowledge is like my
father.   Religion is  like  my brother and compassion  is like  my
friend.  Peace is  like  my wife  and forgiveness  is  like  my son.
Thus, all these six virtues are like  my close relatives.

Saturday, 23 July 2016

Today's Subhashita.

आचारः प्रथमो  धर्मः इत्येतद्विदुषां  वचः  |
तस्माद्र्रक्षेत् सदाचारं प्राणेभ्योSपि विशेषतः ||
                              - ( संस्कृत सुभाषितानि )
भावार्थ -    दूसरों के प्रति अच्छा आचरण करना हमारा सर्व प्रथम
धर्म (कर्तव्य) है, ऐसा विद्वज्ज्नों  का कहना है |   इस लिये हमें
सदाचार  की रक्षा (अनुपालन) हमें अपने प्राणों से भी अधिक करनी
चाहिये |

Aprathamo dharmah ityetadvidushaam vachh.
Tasmadrakshet sadaachaaram  praanebhyopi visheshatah.

Aachaarah = well established rules of good conduct.
Prathamo = foremost, first.   Dharmah = religious austerity.
Ityetadvidushaam = iti +etat + vidushaam.         Iti = it is.
Etat = this.       Vidushaam = noble and learned persons.
Vachah = said.    Tasmadrakshet = tasmaat +rakshethet.  
Tasmat = therefore.     Rakshet = should protect or guard.  
Sadaachaaram = good conduct.    Praanebhyopi = praanebhyo +
api.    Api = even..   Praanebhyo = breath of life.   Visheshatah =
especially.

i.e.      Noble and learned persons have proclaimed that good
conduct towards others is our first and foremost  religious duty.
Therefore, we should  protect (adhere to ) our good conduct even
more than our life.

Friday, 22 July 2016

Today's Subhashita.

दूरस्थाः पर्वताः रम्याः वेश्याः च मुखमण्डने  |
युद्धस्य तु  कथा रम्या त्रीणि रम्याणि दूरतः  || - संस्कृत सुभाषितानि 

भावार्थ -   ऊंचे  और दुर्गम  पर्वत तथा  अपने मुख को विभिन्न सौन्दर्य 
प्रसाधनों से सुसज्जित  की हुई   (मेकअप किये हुए  ) एक वेश्या  दूर से ही 
देखने में सुन्दर लगते हैं |   इसी प्रकार  युद्ध का वर्णन भी सुनने में ही 
अच्छा लगता है |  इन  तीनों को जितनी दूर से  देखा या सुना जाय उतना ही  
श्रेयस्कर  है | 

 Doorasthaah parvataah ramyaah veshyaah cha mukhamandane.
Yuddhasya tu kathaa ramyaa treeni ramyaani dooratah.

Doorasthaah = staying far away., remote.   Parvataah = mountains.
Ramyaa = pleasing, beautiful.    Vershyaa = a prostitute.    Cha =
and.   Mukhamandane = with makeup.    Yuddhyasya = a battle's
Tu = and.    Kathaa = story.    Treeni = these three.    Ramyaani =
appear beautiful.   Dooratah = from far  away.

i.e.       Mountains appear to be beautiful if viewed from far away and 
so also a prostitute with a heavy makeup.   Description  of  a battle is
interesting only while listening to it..  So,  all these three are pleasing  
and beautiful only when seen and listened  to from far away.

Thursday, 21 July 2016

Today's Subhashita.

मनस्येकं  वचस्येकं  कर्मण्येकं  महात्मानाम् |
मनस्यन्यत्  वचस्यन्यत्  कर्मण्यन्यत्  दुरात्मनाम् ||
                                            -(  संस्कृत सुभाषितानि )

भावार्थ -        महान  और सज्जन व्यक्ति जैसा मन में सोचते हैं  
वैसा  ही कहते भी हैं और करते भी हैं | परन्तु जो व्यक्ति नीच और
बुरे स्वभाव वाले होते हैं वे सोचते कुछ और  हैं, कहते और करते भी  
कुछ और ही हैं |

(इस सुभाषित में सज्जन और दुर्जन व्यक्तियों के स्वभाव तथा
व्यवहार के अन्तर को बडी सुन्दरता से व्यक्त किया गया है |  )

Manasyekam vachasyekam karmanyekam mahaatmanaam.
Manasyanyat vachhasyanyat  karmanyanyat duraatmanaam.

Manasyekam = manasi + ekam.   Manasi = thought,viewpoint.
Ekam =  single,  one.     Vachasyekam = vachasi + ekam.
Vachasi = words, speech.   Karmanyekam = karman +ekam.
Karman = action.    Mahaatmanaam =  noble and greatpersons.
Manasyanyat = manasi + anyat.     Anyat =  differently..
Vachasyanyat = vachasi + anyat.    Karmanyanyat =karamni +
anyatyt.    Karmani = actions, deeds.   Duratmaanaam =  mean
and wicked persons.

i.e.      Whatever thoughts noble and great persons have in their
mind they speak out the same and also act accordingly. On the
other hand mean and wicked persons think  something , speak
something else and also act .differently.

(The above Subhashita beautifully highlights the difference in the
 mentality and behaviour of noble and mean persons.)

Wednesday, 20 July 2016

Today's Subhashita.

दारिद्र्यान्मरणाद्वा मरणं संरोचते न दारिद्र्यम्  |
अल्पक्लेशं  मरणं  दारिद्र्यमनन्तकं  दुःखम्       || - सुभाषित रत्नाकर

भावार्थ  -   दारिद्र्य (गरीबी) और मृत्यु  इन दोनों में से मृत्यु  ही
अच्छी  है  न कि दारिद्र्य , क्योंकि मृत्यु के समय तो थोडा  ही कष्ट
होता है  जब  कि दरिद्रता  अनन्त काल  के लिये दुःख दायी होती है  |

Daaridryaanmaranaadvaa maranam smrochate na daaridryam.
Alpaklesham maranam daaridryamanantakam duhkham,

Daaridraanmaranaadvaa =  daaridryaat +maranaat + vaa.
Daaridraat =  between poverty.   Maranaat =  death . Vaa = and
Maranam = death.   Samrochate = liked.   Na = not,   Daaridryam =
poverty.    Alpa - very little.  Klesham = suffering, pain .
Daaridryamanantakam = daaridryam + anantakam.   Anantakam=
endless, eternal.    Duhkham = distress, suffering.

i.e.       Between poverty and death,  death is always preferable and
not the poverty, because death causes less suffering  whereas poverty
causes endless suffering.

Tuesday, 19 July 2016

Today's Subhashita.

अन्यक्षेत्रे कृतं पापं पुण्यक्षेत्रे विनश्यति |
पुण्यक्षेत्रे कृतं पापं  वज्रलेपो भविष्यति || -संस्कृत सुभाषितानि

भावार्थ -  अन्य स्थानों  में किये गये  पापकर्मों  (धर्म द्वारा
निषिद्ध कार्यों ) का दुष्प्रभाव  तीर्थ स्थानों में किये गये पुण्यकार्यों
के प्रभाव से नष्ट हो जाता है |   परन्तु  तीर्थ स्थानों मे किये गये
पापकर्मों का दुष्प्रभाव  वज्रलेप (वर्तमान संदर्भ में जमा  हुआ सीमेंट )
के समान चिरस्थायी होता है (और ऐसे पापों का फल भोगना ही पडता
है ) |
(इस  सुभाषित के  माध्यम  से लोगों को सदाचरण करने के  लिये
प्रेरित किया गया है |  तुलसीदास जी ने भीराम-रावण युद्ध के  प्रसंग में
एक उपमा के माध्यम से इसी विषय को बडी सुन्दरता पूर्वक इस तरह
व्यक्त किया है :- "तब् रघुपति रावण के सीस भुजा सर चाप |
                            काटे बहुत बढे पुनि जिमि तीरथ  कर  पाप | ")

Anyakshetre  krutam paapam punyakshetre vinashyati.
Punyakshtre krutam paapam vajralepo bhavishyati.

Anyakshetre = at other  places.  Krutam = done.  Paapam =
sinful deeds.   Punyakshetre = at a holy place.   Vinsasyati =
gets destroyed.    Vajralepo = hard mortar like Cement now
a dats,   Bhavishati =  becomes.

i.e.    One can get himself absolved from sins committed by him
at other places by doing the pilgrimage of holy places.  But if
he commits sins at a holy places its ill -effect is permanent like
the hardened cement ( and such sins can never be absolved).



Wednesday, 13 July 2016

Today's Subhashita..

तत्  कर्म यत् न बन्धाय सा  विद्या या विमुक्तये |
आयासाय अपरं कर्म विद्या अन्या शिल्पनैपुणम्  ||
                      संस्कृत सुभाषितानि (विष्णु पुराण )

भावार्थ -   वही कर्म अच्छे कर्म हैं जिन से मनुष्य इस संसार के
बन्धनों  में लिप्त नहीं होता है तथा वही विद्या सच्ची विद्या है
जिस  से  मनुष्य जन्म -मृत्यु  के बन्धनों  से मुक्त हो कर मोक्ष
प्राप्त कर सके | इसके अतिरिक्त  विद्या के अन्य प्रकार विभिन्न
शिल्प कर्मों में निपुणता है जिनके करने मे अधिकतर चिन्ता  और
कष्ट  ही प्राप्त होते हैं |

( सनातन धर्म के अनुसार  मानव जीवन का मुख्य उद्देश्य मोक्ष की
प्राप्ति  है तथा इस हेतु भगवद्गीता में 'निष्काम कर्मयोग ' का
अनुपालन करने को कहा गया है  जिस के अनुसार बिना किसी
कामना के सत्कर्म करने से ही 'मोक्ष प्राप्त होता है | इस सुभाषित
में इसी भावना को व्यक्त किया गया है  | )

Tat karma yat na babdhaaya saa vidyaa yaa vimuktaye.
Aayaasaaya aparam karma vidyaa anyaa shilpanaipunam.

Tat = that     Karma = deeds, work.   Yat = that       Na = not.
Bandhaaya = causes to bound or capture.    Saa = that.
Vidyaa = knowledge.    Yaa = that.   Vimuktaye =  sets
a person free     Ayaasaaya = give pain and worries.
Aparam = other.   Anyaa = inexhaustible, another.
Shilpanaipunam = shilpa + naipunam.   Shilpa =handicrafts.
Naipounam = expertise in.

i.e.     Only those deeds are the real deeds , which do not bound
people  into  day-to-day worldly affairs and that knowledge is
the  real  knowledge  which  helps them in  attaining  'Moksha'
( release from the cycle or birth and death).  Besides this there
are other forms of knowledge based on various handicrafts, but
while practising them one often gets pain and sorrow.

(According to Sanatan Dharm ( religion of Hindus) the main aim
should be to attain 'Moksha; i.e. release from the cycle of birth and
death, and all human activities should be based on achieving it.
In Bhagvad Geetaa to achieve this 'Nishkaam Karma Yoga'  i.e.
doing all activities without any attachment, has been prescribed.
This Subhashita deals with this aspect of Life.)

Tuesday, 12 July 2016

Today's Subhashita.

दीपो नाशयते ध्वान्तं धनारोग्ये  प्रयच्छति  |
कल्याणाय भवत्येव  दीपज्योतिर्नमोSस्तुते ||- संस्कृत सुभाषितानि

भावार्थ -   दीप प्रज्ज्वलित  करने से अंधकार  का नाश होता है ,
धन और आरोग्य की प्राप्ति  होती  है  तथा सुख और समृद्धि भी
प्राप्त होती है | हे दीपक ! हम  तुम्हारे उज्ज्वल प्रकाश को नमन
करते हैं |

(भारतीय संस्कृति में दीपक का बहुत महत्त्व है | कोई भी धार्मिक या
सामाजिक अनुष्ठान प्रारम्भ करने से पूर्व एक दीपक प्रज्ज्वलित
करना अनिवार्य है |  इस हेतु अनेक मन्त्र भी निश्चित हैं जिनमें से
एक प्रसिद्ध मन्त्र है - "आज्यं सद्वर्ति संयुक्तं वह्निना योजितं मया |
 दीपं ग्रहाण देवेश त्रैलोक्य तिमिरापह || "   इस  सुभाषित में इसी
तथ्य को प्रतिपादित किया गया है | )

Deepo naashayate dhvaantam dhanaarogye prayacchati.
kalyaanaaya bhavati eva deepajyotirnamostute.

Deepo = an oil lamp.    Naashayate = destroys, removes,
Dhvaantam = darkness.    Dhanaarogye = dhana +aarogye.
Dhana = wealth.   Arogye = good health.   Prayacchati =
gives.   Kalyaanaya = welfare.    Bhavatyeva = bhavati+eva.
Bhavatti = happens   Eva =really.     Deepajyotirnamostute =
deep + jyotih + namo + astu + te.            Jyotih = brightness.
 Namo = salute, bow ,    Tu = and.   Tey = to thee.

i.e.     A lighted lamp destroys darkness and gives wealth and
good health as also happiness and  welfare.  O lamp ! we all
therefore , bow reverentially before your bright flame.

( In the rituals of the Religion of Hindus, lighting of a lamp
before commencement of all religious and social event, lighting
of a lamp is most important .  The above Subhashita also deals
with the importance of the  lamp.)

Monday, 11 July 2016

Today's Subhashita;

लुब्धमनर्थे  गृहीयात्   क्रुद्धमञ्जलिकर्मणा  |
मूर्खं छन्दानुवृत्या च तत्त्वार्थेन  च पण्डितम्  || - संस्कृत सुभाषितानि

भावार्थ -   किसी लालची व्यक्ति को धन दे कर संतुष्ट (वश मे ) करना
चाहिये तथा एक क्रोधी व्यक्ति को हाथ जोड कर उसका सम्मान कर के
शान्त करना चाहिये |  एक मूर्ख व्यक्ति को  यह विश्वास  दिला कर  कि
उसकी इच्छा पूरी कर दी जायेगी,  तथा एक पण्डित (विद्वान् व्यक्ति )
को सच  बोल कर ही संतुष्ट करना चाहिये |

Lubdhamanartham gruheeyaat kruddhamanjalikarmanaa.
Moorkham chandaanuvrutyaa cha tatvaarthena cha panditam.

Liubdhamanartham = lubdham +artham.   Dubdhaam = a greedy
person.     Artham = money, wealth.    Gruheeyaat = convinced,
won over   Kruddhamanjalikarmanaa = kruddhamm + anjalikarma.
Kruddham = an angry person.    Anjalikarmanaa = showing respect
by saluting him.  Moorkham = a foolish person. Chandaanuvrutya=
by complying with any one's wish.   Cha = and.   Tatvaarthena =
by telling the truth.   Panditam = a learned person.

i.e.      A greedy person can be convinced by offering him money,
and an angry person can be subdued by courteously saluting him
with folded hands.         A foolish person should be convinced by
making him feel that his wish will  be fulfilled, and a learned person
can be convinced only by telling the truth.

Sunday, 10 July 2016

Today's Subhashita.

निष्णातोSपि च वेदान्ते वैराग्यं नैति दुर्जनः  |
चिरं जलनिधौ मग्नो मैनाक इव मार्दवम्    || - सुभाषित रत्नाकर

भावार्थ -    दुष्ट व्यक्ति चाहे वेदों के ज्ञान में पारंगत भी हों , फिर
भी वह  वैराग्य (सांसारिक बन्धनों से दूर होना)  की भावना से  उसी
प्रकार दूर (अछूते) रह  जाता  है  जिस प्रकार चिरकाल  से समुद्र से
घिरा हुआ मैनाक पर्वत समुद्र  के जल से  सदैव अप्रभावित ही रहता
है |

(इस सुभाषित में वेद शास्त्रों को समुद्र की उपमा तथा दुष्ट व्यक्ति को
एक पर्वत की उपमा दे कर यह प्रतिपादित किया गया है कि वेदों के
ज्ञान का एक  दुष्ट व्यक्ति के लिये कोई महत्व नहीं है और वे उस ज्ञान
का लाभ उठाने के लिये अपने  व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं करते हैं | )

Nishnaatopi cha vedaante vairaagyam naiti durjanah
Chiram jalanidhau magno mainaak iva maardavam.

Nishnatpi  = nishnaato + api.     Nishnato = expert , well versed.
Api = even    Cha = and    Vedaante = complete knowledge of
Vedas, the most revered and oldest scriptures of Hindu religion.
Vairagya = indifference to worldly objects and to life.   Naiti =
Na + aiti.      Na = not.    Eti =  approach, go near.    Durjanh  =
a wicked person.             Chiram = existing from ancient times,
Jalanidhau = the Ocean.     Magno = immersed in, submerged.
Mainaaka = the name of a mountain which is submerged in the
ocean.    Iva = like (for comparison).   Maardavam = leniency.

i.e.      Even if a wicked person may be well versed in the Vedas,
he still remains aloof from 'Vairaagya' (renouncing  the desire
for worldly objects and worshipping the  God in the latter part of
life), just like the Mount Mainaak, which, although exists amid
the Ocean since long ago, but remains unaffected by the Ocean.

( By the use of the simile of the Ocean for Vedas and of the Meru
mountain for a wicked person, the Subhashita emphasizes that
for wicked persons the higher learning is of no use and the do not
change their way of living. )

Saturday, 9 July 2016

Today's Subhashita.

संसारकटुवृक्षस्य  द्वे  फले  ह्यमृतोपमे  |
सुभाषित  रसास्वादः सङ्गतिः सुजने जने  || - सुभाषित रत्नाकर

भावार्थ -  इस संसार रूपी कडुवे  वृक्ष में निश्चय ही दो फल ऐसे लगते
हैं जो अमृत के समान रसीले और गुणकारी  है, और वे हैं विद्वान तथा
सज्जन व्यक्तियों द्वारा कहे गये प्रेरणादायक सुन्दर वचनों  का रसास्वादन
तथा ऐसे ही व्यक्तियों की संगति ( मित्रता और साथ) |

Sansaar katuvrukshasya dve phale hyamrutopame.
Subhashita rasasvaadah  sangatih sujanae jane..

Sansaar = this World.   Katuvrukshasyaadve = katuvrukshasyaat+
dve.     Katuvrukshasyaat =  tree producing bitter fruits   Dve = two.  
Phale = fruits.   Hyamrutopame = hi + amrutopame.      Hi = surely.
Amrutopame = sweet like  "Amruta", the nectar of Gods.
Subhashita = witty and eloquent discourses.    Rasasvaadam =
sipping of juices or perception of pleasure.    Smgatih = company of
Sujanaih = noble and virtuous persons.   jane = persons.

i.e.       This world full of miseries akin to  a tree producing bitter fruits,
still produces two fruits which are sweet and juicy like 'Amruta' , the
nectar of Gods.  These are enjoying the witty, eloquent and  inspiring quotes
composed by noble and virtuous persons,  and the company of such noble
persons. 

Friday, 8 July 2016

Today's Subhashita.

स अर्थो  यो हस्ते तत् मित्रं यत् निरन्तरं व्यसने  |
तत्  रूपं  यत्  गुणाः तत्  विज्ञानं  यत्  धर्मः      || - हल सप्तशती

भावार्थ -   वही  सच्चा  धन है जो अपने हाथ  (अधिकार) में हो
और वही सच्चा  मित्र है  जो हमेशा विपत्ति में  भी साथ दे  |
रूपवान होना तभी शोभा देता है जब कि   व्यक्ति गुणवान
भी हो,  तथा वही विज्ञान  सही है  जो  धर्म के सिद्धान्तों  के    
 अनुसार  (समाज के  हित के लिये )  हो  |

Sa artho yo haste tat mitram yat nirantaram vyasane.
Tat roopam yat  gunaah tat vigyaanam yat  dharmah.

Sa = that.   Artho = wealth, money.    Yo =  which.   Haste =
in hand.    Tat = that.     Mitram = friend.     Yat = that.    
Niraantaram = constant.   Vyasane = adversity.  Roopam +
beauty.   Gunaah = virtues.  Vigyaanam = science, knowledge.
Dharmah = righteousness,  religious austerity.

 i.e.     Only that wealth  is the real wealth which is in your own
hands (under control) and only that person is a real friend  who
constantly supports  you even  in adversity.   Beauty of a person
is real only when he is also virtuous and  a science or a discipline
of learning is  real only when it. propagates religious austerity and
righteousness. 

Thursday, 7 July 2016

Today's Subhashita.

विद्या ददाति विनयं विनयाद्द्याति पात्रताम्  |
पात्रत्वाद्धनमाप्नोति   धनाद्धर्मं   ततः  सुखम्     ||

भावार्थ -   विद्या प्राप्त करने  से व्यक्ति विनम्र  हो जाता है ,
और विनम्रता से योग्यता (विभिन्न कार्यों को करने की क्षमता )
प्राप्त होती है |   योग्यता से धन की प्राप्ति होती है तथा धन का
सदुपयोग धार्मिक कार्यों में करने से अन्ततः सुख प्राप्त  होता है | 
 
(इस सुभाषित के माध्यम से विद्या प्राप्ति के महत्व को प्रतिपादित
किया गया है | )

Vidyaa dadaati vinayam  vinayaadyati paatrataam.
Paatratvaaddhanamaapnoti dhanaaddharmam tatah sukham.

Vidya = knowledge, learning.   Dadaati = gives.   Vinayam =
modesty, propriety of conduct.        Vinayaadyaat +  yaati.
Vinayaat = through humility.    Yaati = achieves.    Paatrataam =
worthiness,     Patratvaaddhanamaapnoti =Paatratvaat +dhanam +
aapnoti.    Paatratvaat + through worthiness.   Dhana = wealth.
Apnoti = obtains.     Dhanaaddharm =  dhanaat + dharmam.
Dhanaat = through wealth.     Dharmam = religious austerity.
Tatah = as a result, therefrom.    Sukham = happiness.

i,e,       Knowledge and learning makes a person modest,  and
with modesty  he is able to achieves worthiness (expertise in
various types of skills).  With the help of his skills he is able to
acquire wealth.  If wealth is utilized with religious austerity it
ultimately results in all round happiness.





















Wednesday, 6 July 2016

Today's Subhashita.

असद्भिः शपथेनोक्तं  जले   लिखितमक्षरम्  |
सद्भिस्तु लीलया प्रोक्तं शिलालिखितमक्षरम् || - संस्कृत सुभाषितानि

भावार्थ -  असभ्य ( दुष्ट स्वभाव के) व्यक्तियों द्वारा किसी कार्य को
को  करने  के लिये ली गई शपथ  जल  में लिखे गये अक्षरों के समान
(अस्थायी) होती है ,अर्थात वे उसका अनुपालन नहीं  करते है |   इस के
विपरीत सभ्य (सज्जन और सत्यवादी ) व्यक्तियों के द्वारा हंसी मजाक
में  भी  कही  हुई कोई बात  एक शिला लेख के समान  (स्थायी)  होती है ,
अर्थात वे जो कहते है  उसे अवश्य पूरा कर के दिखाते  हैं |

Asadbhih shapathenoktam jale likhitamaksharam.
sadbhistu leelayaa proktam shilaalikhitamaksharam.

Asadbhih = people of evil temperament,     Shapathenoktam =
shapathena + uktam.    Shapathena = by swearing, under an oath,  
Uktam = said.    Jale = on water.   Likhitamaksharam =   likhitam +
aksharam.   Likhitam = written   Aksharam +  words.    Sadbhistu=
Sadbhih + tu.    Sadbhih = upright and truthful persons.   Tu = but.
Leelayaa = casually, playfully.     Proktam = spoken,  declared.
Shilaalikhitmaksharam=  shila + likhitam + aksharam.      Shilaa =
a slab of stone.      Likhitam = written.   Aksharam = words.

i.e.      The commitments made by persons of evil temperament even
under oath are just like words written on the surface of water ( which
disappear immediately) and are not honoured by them.    On the other
hand commitments made by upright and truthful persons even casually
are like the words engraved on a slab of stone (permanent) and are duly
honoured by them.




Today's Subhashita.

असद्भिः शपथेनोक्तं  जले   लिखितमक्षरम्  |
सद्भिस्तु लीलया प्रोक्तं शिलालिखितमक्षरम् || - संस्कृत सुभाषितानि

भावार्थ -  असभ्य ( दुष्ट स्वभाव के) व्यक्तियों द्वारा किसी कार्य को
को  करने  के लिये ली गई शपथ  जल  में लिखे गये अक्षरों के समान
(अस्थायी) होती है ,अर्थात वे उसका अनुपालन नहीं  करते है |   इस के
विपरीत सभ्य (सज्जन और सत्यवादी ) व्यक्तियों के द्वारा हंसी मजाक
में  भी  कही  हुई कोई बात  एक शिला लेख के समान  (स्थायी)  होती है ,
अर्थात वे जो कहते है  उसे अवश्य पूरा कर के दिखाते  हैं |

Asadbhih shapathenoktam jale likhitamaksharam.
sadbhistu leelayaa proktam shilaalikhitamaksharam.

Asadbhih = people of evil temperament,     Shapathenoktam =
shapathena + uktam.    Shapathena = by swearing, under an oath,  
Uktam = said.    Jale = on water.   Likhitamaksharam =   likhitam +
aksharam.   Likhitam = written   Aksharam +  words.    Sadbhistu=
Sadbhih + tu.    Sadbhih = upright and truthful persons.   Tu = but.
Leelayaa = casually, playfully.     Proktam = spoken,  declared.
Shilaalikhitmaksharam=  shila + likhitam + aksharam.      Shilaa =
a slab of stone.      Likhitam = written.   Aksharam = words.

i.e.      The commitments made by persons of evil temperament even
under oath are just like words written on the surface of water ( which
disappear immediately) and are not honoured by them.    On the other
hand commitments made by upright and truthful persons even casually
are like the words engraved on a slab of stone (permanent) and are duly
honoured by them.




Tuesday, 5 July 2016

Today's Subhash.

अधर्मेणैथते  पूर्वं  ततो भद्राणि पश्यति  |
ततः सपत्रान् जयति समूलस्तु विनिष्यति | -संस्कृत सुभाषितानि

भावार्थ -    यदि कोई व्यक्ति धर्म के अनुसार आचरण नहीं  करता
है तो प्रारम्भ में तो एक पेड के समान खूब् फलता फूलता है और
और विजयी हो कर धन संपत्ति भी अर्जित कर लेता है , परन्तु
बाद में जिस प्रकार एक पेड जड सहित सूख जाता है वैसे  ही गलत
साधनों से अर्जित संपत्ति भी प्रारम्भिक पूंजी (मूल धन) सहित
नष्ट  हो जाती  है |
('समूलस्तु'  शब्द का एक अर्थ यह्  भी हो सकता है कि जो मूलधन
(प्रारम्भिक पूंजी ) उस व्यक्ति के  पास रही होगी वह् भी अनुचित
साधनों से कमाई गयी संपत्ति के साथ नष्ट हो जाती है, यानी कि
सर्वनाश हो जाता है |  समाज में ऐसे अनेक उदाहरण मिलते है कि
अनुचित साधनों से लोग  रातों रात  अमीर बन जाते हैं , लेकिन
उसी तरह शीघ्र पुनः गरीब्  भी हो  जाते हैं | यह सुभाषित इसी तथ्य
को प्रतिपादित करता है )

Adharmenaithate  poorvam tato bhadraani pashyati
Tatah sapatraan jayati  samoolastu vinashyati.

Adharmenaithate = adharmena + ethate.       Adharmena =
by leading an immoral lifestyle.    Ethate = becomes dry
wood.   Poorvam =  before, initially.   Tato = afterwards.
Bhadraani = prosperity.    Pashyati = sees,  enjoys.   Tatah =
due to that.    Sapatraan = along with leaves.    Jayati = be
victorious or successful.    Samoolastu = samoolah + tu.
Samoolah =  along with the roots, original capital . Tu = but,  .
Vinashyati = annihilated, gets destroyed.

i.e.    By adopting unethical and unfair means,  initially a
person quickly becomes prosperous and happy just like a
growing  tree full of leaves and fruits.  But later on, just as
a tree dries up and gets destroyed along with its roots,in the
same manner not only the ill -gotten wealth  gets destroyed
even the original capital of that person also gets destroyed.

(There are numerous examples of people becoming very rich
and victorious by adopting unfair means. But their downfall is
also very quick and they lose even their original capital . This
fact has been highlighted beautifully in this Subhashita.

Monday, 4 July 2016

Today's Subhashita.

न   प्रहृष्यति  सम्माने नापमाने  च  कुप्यति  |
न  क्रुद्धः परुषं ब्रूयात्  स  वै साधूतमः स्मृतः  ||  -संस्कृत सुभाषितानि

भावार्थ -    जो व्यक्ति सम्मानित किये जाने पर बहुत प्रसन्न नहीं
 होता है और न अपमानित किये जाने पर कुपित होता है, तथा यदि
कभी क्रोधित हो भी जाये तो अपशब्द नहीं बोलता है ,वही साधु जनों
मे सर्वोत्तम कहा जाता है |

(गुरु नानक जी के एक शबद में उपर्युक्त सुभाषित  भावना को  बडे ही
सुन्दर  शब्दों में व्यक्त  किया गया है :-
जो नर दुखमें दुख नहिं माने  |
सुख -सनेह अरु भय नहिं जाके कंचन माटी जाने -
नहिं निंदा नहीं अस्तुति जाके , लोभ मोह अभिमाना |
हरष शोक तें रहै नियारो  नाहिं  मान -अपमाना |
काम-क्रोध जेहि परसै नाहिन, तेहि घट ब्रह्म निवासा |
 गुरु किरपा जेहि नरपै कीन्ही  तिन  जुगति पिछानी |
नानक लीन भयो गोविन्द्सों  ज्यों पानी संग पानी  | )

Na prahrushyati sammane naapamaane ha kupyati.
Na kruddhah parusham  brooyaat sa vai saadhootamah smrutah.

Na = not.   Prahrushyati =   be thrilled.    Sammaane = honour.
Naapamaane = na + apamaane.    Apamaane = insult.   Cha = and.
Kupyati = becomes angry.    Kruddham =  angered.   Parusham =
harsh (words) .    Brooyaat =  says.    Sa = he.    Vai = an adverb
placed after a word for laying stress on it.      Saadhoottamah =
Best among the noble and virtuous persons.   Smrutah = termed as.

i.e.   A person who is not thrilled on being honoured  and does not
become angry on being insulted. and if  per  chance  becomes angry
does not use harsh and abusive language, is truly the best among
noble and virtuous persons.

Sunday, 3 July 2016

Today's Subhashita.

यावत्  भ्रियते  जठरं तावत् सत्वं हि देहिनाम्  |
अधिकं  योSभिमन्येत  स  स्तेनो दण्डमर्हति    ||- संस्कृत सुभाषितानि
                                                                           (मनुस्मृति )
भावार्थ -    जब तक सभी प्राणियों का उदर (पेट ) आहार गृहण करने की  
क्षमता रखता है तभी तक वे जीवित रहते हैं |  अतः जो  भी  अपने उदर
की क्षमता से अधिक पाने की इच्छा रखता है  वह दूसरों के हक को छीनने
वाले एक चोर के समान  सजा दिये जाने के योग्य है |

(इस सुभाषित में लोगों की अपनी आवश्यकता से अधिक संग्रह करने की
प्रवृत्ति की निन्दा की गयी है और जो लोग ऐसा करते हैं वे दूसरे प्राणियों
के  अधिकारों का हनन करते हैं और एक चोर के समान सजा पाने के  पात्र
हैं ऐसा  प्रतिपादित किया  है |)

Yaavat bhriyate jatharam taavat satvam hi dehinnaam.
Adhikam yobhimanyeta sa steno dandamarhati.

Yaavat = until.       Bhriyate =  supports.    Jatharam = stmach.
Taavat = so long.    Satvam =  alive, living.           Hi = surely
Dehinaam = living beings.    Adhikam = more,   Yobhimanyeta=
Yo+ abhimanyeta.      Yo = whosever.      Abhimanyeta = desires.
Sa = he.    Steno = a thief.    Dandamarhati = dandam +arhati.
Dandam = punishment.    Arhati =  deserves.

i.e.    All living beings remain alive until such time their stomach
sustains them.  So, if they crave for more than their requirements
they deserve to be punished as a thief.

(This Subhashita condemns the tendency among people to amass
wealth beyond their requirements and thereby depriving others
of their requirements and suggests that such persons deserve
to be punished as a thief.)


Saturday, 2 July 2016

Today's Subhashita.

स्वभावं  न  जहात्येव साधुरापदतोSपि  सन्  |
कर्पूरः  पावकस्पृस्तिः   सौरभं  लभतेतराम्      || - संस्कृत सुभाषितानि

भावार्थ -     सज्जन व्यक्ति अपना नैसर्गिक अच्छा स्वभाव किसी बडी
आपदा के  उपस्थित  होने  पर  भी उसी  प्रकार नहीं त्यागते  जैसा  कि
कपूर आग के संपर्क में आ कर जल जाने  पर और  भी अधिक सुगन्ध
देने लगता है  |

Svabhaavam na jahaatyeva  saadhuraapadatopi san.
Karpoorah paavakasprushth saurabham labhatetaraam.

Svabhaavam = inherent nature.   Na = not.   Jahaatyeva = jahaati+
eva.     Jahaatri = lose.   aadhuraapadratopi = saadhuh+ aapadato +
api,     Sadhu = noble persons.    Apadato =  a disaster.. calamity.
Api = even.     San = facing, being in.       Karpoorah = camphor.
Pavakassprastih  = paavakah + sprustih .   Pavakah = the fire.
Sprustih = contact.   Saurabham = fragrance, perfume.  Labhate =
get.     Taraam = word added to adverbs to intensify their meaning.

i.e.     Noble persons do not shed their inherent good nature even
while facing a calamity just like the Camphor, which on coming into
contact with fire and while burning  emits even more fragrance.

 - 

Friday, 1 July 2016

Today's Subhashita.

खद्योतो द्योतते तावद्यावन्नोदयते  शशी |
उदिते तु सहस्रांशौ  न खद्योतो न चन्द्रमा   || - संस्कृत सुभाषितानि

भावार्थ -   जुगनू तभी तक चमकते  हैं जब तक  आकाश में
चन्द्रमा का उदय नहीं  होता है |  परन्तु सूर्य के आकाश में
उदय होने पर न तो जुगनू की चमक दिखाई  देती है  और न
ही चन्द्रमा की |

(इस  सुभाषित का तात्पर्य यह  है कि कम  प्रतिभावान् व्यक्ति
व्यक्ति समाज मे तभी तक आदर पाते हैं जब तक कि उनसे
अधिक प्रतिभावान्  व्यक्ति उपलब्ध नहीं  होते हैं | इसी आशय
की एक कहावत् भी प्रसिद्ध है कि - "अन्धों में काना राजा " |

Khadyota = A firefly which emits a fluorescent light in
the darkness      Dyotate = shines.   Taavadyavannodayate =
taavat + na +udayate.      Taavat = so long as.       Yaavat =
until.   Na = not.   Udayate = rises ( in the sky).    Shashi =
the Moon.      Udite = by the rising of          Tu =  but.
Sahasraansau= the Sun.    Chandrama =  the Moon.

i.e.    A firefly 'glows in the darkness until such time the Moon
does not rise in the sky.  But when the Sun rises neither the
glowing firefly nor the Moon exhibit their brightness.

( The idea behind this Subhashita is that less competent persons
get recognition only until such time   more competent persons
are not there and they lose their sheen on the arrival of more
competent persons.)