Friday, 31 August 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhas



दातृव्यं  प्रियवक्तृत्वं  धीरत्वमुचितज्ञता   |
अभ्यासेन  न  लभ्यन्ते  चत्वारः सहजा गुणाः ||
                                   - चाणक्य नीति (११/१/)

भावार्थ -    दानशीलता,  मधुरभाषी, विपरीत परिस्थितियों को
सहन करने की शक्ति,  केवल उचित और उपयुक्त कार्य को ही
करने  की प्रवृत्ति , ये  चारों गुण किसी व्यक्ति  के स्वभाव में
जन्मजात (बचपन से ही) होते हैं और इन्हें बार बार अभ्यास कर
के प्राप्त नहीं किया जा सकता है |

Daatruvyam  priyavaktrutam  dheeratvamuchitagyataa.
Abhyaasena  na  labhyante  chatvaarah  sahajaa  gunaa.

Daatrutvam =liberal in giving donations.  Priyavaktrutva=
speaking kindly.  Dheeratvam+uchitagyataa.   Dheeratvam=
courage in enduring  misfortune, pain etc.   Uchitagyata=
propriety of conduct ,doing what is suitable or appropriate.
Abhyaasena = by practice.   Na = not.  Labhyante =acquired
Chatvaarah = these four.    Sahajaa = inborn  or produces.
Gunaah = qualities, virtues.

i.e.    Being liberal in giving donations,  soft-spoken, firm and
courageous in enduring misfortunes and hardships,  propriety
of conduct,  all these four virtues are inborn in men, and can
not be acquired by practice.

Thursday, 30 August 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


बुद्धिर्यस्य  बलं  तस्य  निर्बुद्धेश्च  कुतो  बलम्   |
वने  सिंहो  मदोन्मत्तः  शशकेन   निपातितः    ||
                                  - चाणक्य नीति (१०/१६ )

भावार्थ -   जो व्यक्ति  बुद्धिमान होता है वही बलशाली भी होता
है |  एक बुद्धिहीन व्यक्ति  (शारीरिक बल होते हुए भी ) भला कैसे
बलशाली हो सकता है  ?  देखो न, वन में  एक साधारण खरगोश भी
एक मदोन्मत्त और शक्तिशाली सिंह का नाश करने में समर्थ होता
है |
(  इस सुभाषित द्वारा यह  तथ्य प्रतिपादित किया गया है कि मात्र
शक्तिशाली होना ही पर्याप्त नहीं है और उस शक्ति का उपयोग करने
के लिये  बुद्धि भी उतनी ही आवश्यक होती है, जिसे 'पञ्चतन्त्र'  की एक
कहानी ' चतुर खरगोश और मूर्ख सिंह' के उदाहरण द्वारा व्यक्त किया है |
इस कहानी में खरगोश सिंह को चतुराई से यह मानने को विवश कर देता है
कि एक कुंवें के अन्दर उसकी जो परछाई है वह एक अन्य सिंह है और
उस से लडने के लिये वह कुंवें में कूद गया और मारा गया | )

Buddhiryasya  balam  tasya nirbuddheshcha  kuto balam.
Vane simho  madonmattah  sashakena  nipaatitah.

Buddhih + yasya.     Buddhih = intelligence.   Yasya = whose.
Balam = power.    Tasya = his.  Nirbuddheh +cha.   Cha =and.
Nirbuddheh = a stupid person    Kuto = from where ?    Vane =
in a forest.    Simho = a lion,    Madonmattah = intoxicated by
passion.  Shashakena = by a rabbit.   Nipaatitah=destroyed.

i.e.     Whosoever is intelligent is also powerful , and how can
a stupid person  (although physically strong)  be  a powerful
person ?  See, in a forest a  rabbit was able to destroy a Lion
intoxicated by passion.

(Through this Subhashita the author wants to convey the message
that merely possessing the power by a person is not sufficient and
the person must be intelligent enough to wield that power and to
illustrate this he has given the reference of the famous fable of the
lion and a rabbit from the 'Panchatantra' . The rabbit induced the
lion to believe that his reflection in the water inside the well was
another  lion, whereby the lion jumped inside the well to fight with
 his reflection in the water and died.)

Wednesday, 29 August 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


 विप्रो वृक्षस्तस्य  मूलं  च  सन्ध्या
                वेदः शाखा धर्म कर्माणि पत्रम् |
तस्मात्मूलं  यत्नतो  रक्षणीयं
                छिन्ने   मूले नैव शाखा न पत्रम् || - चाणक्य नीति (१०/१३)

भावार्थ -   एक वेदों का ज्ञाता और विद्वान ब्राह्मण एक ऐसे वृक्ष के
समान है जिस का मूल (जड) दिन के तीन विभागों प्रातः ,मध्याह्न
और सन्ध्याकाल के समय सन्ध्या (गायत्री मन्त्र का जाप) करना है ,
चारों वेद उसकी शाखायें हैं , तथा  वैदिक धर्म के  आचार विचार का
पालन करना उसके पत्तों के समान हैं | अतः प्रत्येक ब्राह्मण का यह
कर्तव्य है कि इस  सन्ध्या रूपी मूल  की यत्नपूर्वक रक्षा करे , क्यों कि
यदि मूल ही नष्ट हो जायेगा तो न तो शाखायें बचेंगी और न पत्ते ही बचेंगे |

(इस सुभाषित  द्वारा सनातन धर्म और उसके के नियमों का पालन करने
में ब्राह्मणों के महत्त्व को प्रतिपादित किया गया है |  यदि वे अपने कर्तव्य
का पालन नहीं करते हैं तो वेदों और सनातन धर्म के लुप्त होने की आशंका
भी व्यक्त की है | )

Vipro vrukshastasya  moolam cha Sandhyaa,
Vedah shaakhaa  dharma karmaani patram.
Tasyaanmoolam yatnato rakshneeyam.
Chinne moole naiva shaakhaa na patram.

Vipro = a wise and learned Braahmana.   Vrukshah +tasya. 
Vrukshah  = a tree.   Tasya = its.  Moolam=the root. Cha =
and.    Sandhyaa = the deity presiding over the three divisions
of the day, and religious ritual performed by Brahmanas and
the twice born men at the above three divisions of the day. 
Vedah = the fourVedas, the Sacred scriptures of Sanaatana
Dharma.  Shaakhaa = branches. Dharma karmaani = various
religious rituals.    Patram = leaves.   Tasmaat + mooolam
Tasmaat = therefore.    Yatnato = with special care and
effort.  Rakshaneeyam = to be guarded or protected from.
Chinne = on being cut off.    Naiva = hardly,  no.

i.e.  A wise and learned Braahmana is like a tree and its roots
are performing the ritual of 'Sandhya Vandan" (chanting the
'Gaayatri Mantra' thrice every day in the morning, noon and
evening), the four Vedaas are like the branches of this tree,and
performing various  other religious rituals are the foliage of
this tree.  Therefore, it is the sacred duty of every Braahmana
to take special care and effort to protect the roots, because if the
root is cut off neither the branches nor the leaves of the tree will
survive.

( In this Subhashita by the use of a simile the author emphasises
the importance of the role played by Brahmans in propagating and
preserving the Sanatan Dharma.  If they do not do so there is the
danger of Sanatan Dharma becoming extinct. )


Tuesday, 28 August 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.

आप्तद्वेषाद्भवेन्मृत्युः   परद्वेषाद्धनक्षयः |
राजद्वेषाद्भवेन्नाशो  ब्रह्मद्वेषात्कुलक्षयः  ||
                            - चाणक्य नीति (१०/११)

भावार्थ -   मन में  द्वेष (शत्रुता और घृणा )की  भावना रखने वालों की
असमय में मृत्यु हो जाती है तथा किसी व्यक्ति से द्वेष करने से धन
हानि भी हो जाती है |  राजा (शासक )से शत्रुता रखने वाले व्यक्ति का
नाश हो जाता है  तथा परब्रह्म परमेश्वर से द्वेष करने वाले व्यक्ति के
तो कुल का ही नाश हो जाता है |

Aapta-dveshaad-bhaven-mrutyuh  para-dveshaad--dhanakshayah.
Raaja-dveshaad-bhaven-naasho  Brahma-dveshaat-kulakshayah.

Aaptadveshaat +bhavet +mrutyuh.         Aptdveshaat = possessing 
hatred and enmity towards others.   Bhavet =  happen.    Mrutyuh=
death.     Para = others.     Dveshaat = enmity.        Dhanakshayah =
loss of wealth.   Raja =king, Government.   Naasho=ruin, extinction. 
Brahma=  God Almighty.   Kulakshayah= extinction of the family.

i.e.   A person full of hatred and enmity towards others dies untimely
and such hatred towards others also results in loss of wealth. Enmity
towards the King ( rulers of a country) results in total destruction and
hatred towards God Almighty results in the extinction of the family.

Monday, 27 August 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita .


वरं  वनं व्याघ्र गजेन्द्र सेवितं
             द्रुमालयं  पत्र  फलाम्बुसेवनम्  |
तृणेषु शय्या  शतजीर्णवल्कलं
              न  बन्धुमध्ये धनहीन जीवनम् ||
                         - चाणक्य नीति (१०/१२ )

भावार्थ -           अपने निकट सम्बन्धियों  के बीच में धनहीन हो कर
जीवन यापन करने की तुलना में  तो  व्याघ्रों और हाथियों से आक्रान्त
किसी घने वन में एक वृक्ष पर  अपना निवास बना कर , वहां उपलब्ध
वनस्पतियों, फलों  और जल का सेवन कर , घास फूस  की शय्या में
शयन ,तथा  वृक्षों की छाल के बने हुए अत्यन्त जीर्ण (फटे हुए ) वस्त्र
पहन कर जीवन यापन करना ही श्रेयस्कर है |
 (इस सुभाषित में एक धनहीन व्यक्ति की व्यथा का वर्णन किया गया है
जिसे अपने धनवान निकट सम्बन्धियों के बीच में रहने से सदैव अपमान
सहना पडता है और व्यङ्ग्यात्मक  रूप से यह  कहा गया है कि उसकी तुलना
में वनवासी हो कर कष्ट सहना ही श्रेयस्कर है |)

Varam vanam  vyaaghra gajendra sevitam.
Drumaaalayam  patra-phalaambu-sevanam.
Truneshu shayyaa shata-jeerna-valkalam.
Na bandhumadhye  dhanaheena jeevanam.

Varam = preferable.    Vanam = a forest.   Vyaaghra =
tiger.   Gajendra = King Elephant.  Sevitam = dwelt in.
Drumaalayam = dwelling in a tree.      Patra + phala+
ambu.    Patra =leaves.   Phala =fruits.   Ambu = water.
Sevanam = resorting to.    Truneshu=  grass.   Shayyaa=
bed.      Shata+jeerna + valkalam.       Shata = hundred.
Jeerna = worn out.   Valkalam = garments made  of the
bark of a tree.   Na = not.   Bandhu = relatives.  Madhye=
among, in the middle of.   Dhanaheena=poor.   Jeevanam=
existence, livelihood.

i.e.     In stead of living as a poor person among one's close
relatives, it is far more preferable to live in a forest dominated
by tigers and elephants, making a tree as a home and for food
depend on the vegetation,fruits and water available there ,sleep
in a bed made of grass, wear badly torn garments made from the
bark of trees.

( In this subhashita the predicament of  a poor person among his
rich relatives has been depicted in a sarcastic way by saying that
it is preferable to live in a forest full of wild animals and bear the
hardships but not the insult meted out to him by his rich relatives.)





Sunday, 26 August 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita .


दुर्जनं  सज्जनं  कर्तुमुपायो  नहि  भूतले  |
अपानं  शतधा  धौतं  न  श्रेष्ठमिन्द्रियं  भवेत्  ||
                                - चाणक्य नीति (१०/१० ०

भावार्थ -       इस पृथ्वी में निश्चय ही  ऐसा कोई उपाय (साधन) नहीं है 
जिस के द्वारा  किसी दुष्ट व्यक्ति को सज्जन बनाया जा सकता हो |
यह  तो वैसा ही है जैसे गुदा (शरीर से मल निकालने  वाली इन्द्रिय ) को
सैकडों  बार जल से धोने पर भी वह एक श्रेष्ठ इन्द्रिय नहीं बन जाती है |

(मानव शरीर मे दस इन्द्रियां  होती  हैं जिन में  नेत्र, नाक, कान, जिह्वा,
तथा त्वचा ज्ञानेन्द्रियां  कहलाती हैं  और हाथ, पैर, मूत्रद्वार , मलद्वार
तथा मुंह  कर्मेन्द्रियां कहलाती हैं |  एक दुर्जन को मलद्वार की उपमा दे
कर यह  प्रतिपादित किया गया है कि दुष्ट प्रकृति के व्यक्ति को सज्जन
किसी भी स्थिति  में नहीं बनाया जा सकता है क्यों कि वह अपने स्वभाव
को बदल नहीं सकता है | ) 

Durjanam  sajjanam  kartumupaayo  nahi  bhootale.
Apaanam shaatadhaa  dhautam  na shreshthamindriam bhavet.

Durjanam = a wicked person.   Sajjanam = a noble person.
Kartumupaayo = kartum + upaayo.    Kartum = to do or make.
Upaayo = means. way.    Nahi = by no means, surely not.
Bhootale = on this Earth.    Apaanam = anus.   Shatadhaa=
hundred fold.   Dhautam = washing.  Na = not.   Shreshtam +
indriam.    Sreshtham = excellent, best.    Indriam = organ of
human body.    Bhavet = become.

i.e.    There is now way in this Earth to change a wicked person
into a noble person, just like  the anus of the human body which
can not become as one of the excellent organs of human body
even if it is washed with water hundreds of times.

(There are 5 organs of sense (eyes, nose, tongue, ears and skin)
and 5 organs of action (hands, feet, mouth, urinary tract and anus).
The organs of sense are termed as superior than the organs of
action.  Using the anus as a simile for wicked persons the author
has emphasised that they can not be transformed into noble persons.)

Saturday, 25 August 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


यस्य  नास्ति  स्वयं  प्रज्ञा  शास्त्रं  तस्य  करोति  किं  |
लोचनाभ्यां  विहीनश्च  दर्पणः  किं  करिष्यति           ||
                                            - चाणक्य नीति (१०/९ )

भावार्थ -    जो  व्यक्ति स्वयं बुद्धिहीन हो उसको  विभिन्न
शास्त्रों की शिक्षा देने से क्या लाभ होगा ?   अपने दोनों नेत्रों
से  वञ्चित एक  अन्धे व्यक्ति के लिये एक दर्पण की भला
क्या उपयोगिता है ?

(उपर्युक्त सुभाषित में  एक बुद्धिहीन व्यक्ति और एक अन्धे
व्यक्ति के बारे में प्रश्न किये गये  हैं और उत्तर की अपेक्षा की
गयी है |इस का उत्तर है कि जिस प्रकार एक अन्धे व्यक्ति के
लिये एक दर्पण की कोई उपयोगिता नहीं है उसी प्रकार एक मूर्ख
व्यक्ति के लिये शास्त्रो की भी कोई उपयोगिता नहीं है |

Yasya naasti svyam  pragyaa shaastram  tasya karoti Kim.
Lochanaabhyaam  viheenashcha  darpanah kim karishyati.

Yasya = of that person.   Naasti =non- existence.   Svyam =
himself.      Pragyaa = intelligence.      Shaastram = various
disciplines of learning, books or treatises.          Tasya = his. 
Karoti = does.   Kim = what ?    Lochanaabhyaam =both the
eyes.   Viheenah+cha.   Viheenah =a person deprived of some
thing.    Cha=and.   Darpanah=a mirror.   Karishyati = can do.

i.e.    If a person is not intelligent, of what use is teaching him
various disciplines of learning ?   Of what use is a mirror to a
person who has no eyesight in both his eyes  ?

(In this Subhashita two statements have been given respectively
for an idiot and a blind person, and the author  asks what will be
the end result.  The answer  is that  just as a mirror is useless for
a blind person, so are the various disciplines of learning for  an
idiot.)


Friday, 24 August 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


येषां  न  विद्या न  तपो  न  दानं
             ज्ञानं  न शीलं  न गुणो  न  धर्मः  |
ते  मर्त्यलोके  भुवि  भारभूता
               मनुष्यरूपेण   मृगाश्चरन्ति      ||
                              -चाणक्य नीति (१०/७ )

भावार्थ -    जिन  व्यक्तियों  के पास न तो विद्या है  न  तप
है , न वे दानशील हैं , न ज्ञानी हैं, न गुणवान हैं और न धर्म के 
नियमों का पालन करते हैं ,ऐसे व्यक्ति इस नश्वर  संसार में
पृथ्वी के ऊपर एक बोझ की तरह मनुष्य के रूप में पशुओं की
तरह  विचरण करते हैं |

Yeshaam na vidyaa na tapo  na daanam.
Gyaanam na  sheelam  na  guno  na dharmah.
Tey martyuloke  bhuvi  bhaarabhootaa.
Manushyaroopena  mrugaashcharanti.

Yeshaam = those.   Na = not.   Vidyaa= learning
Tapo = religious austerity.   Daanam =  giving away
as charity,     Gyaanam = knowledge.   Sheelam =
character.    Guno = virtues    Dharmah = religion.
Tey = they.   Martyaloke = in this mortal world,
Bhuvi = the Earth.   Bhaarabhootaa =  as a burden.
Manushy-roopena = in the form of Human beings.
Mrugaah = animals, antelopes.   Charanti = graze ,
move around.

i.e.    Those persons who are not learned, do nor observe
religious austerity, do not help others by giving  donations,
are not knowledgeable,  do not have good moral character ,
and do not follow the tenets of their Religion,  are in fact
like beasts in the form of human beings roaming in this
perishable world as a burden on the Earth.

Thursday, 23 August 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अन्तःसारविहीनानामुपदेशो  न  जायते  |
मलयाचलसंसर्गान्न   वेणुश्चन्दनायते    ||
                           - चाणक्य नीति (१०/८ )

भावार्थ -  आन्तरिक  (जन्मजात) गुणों से  रहित व्यक्तियों
को उपदेश देने का कोई अच्छा परिणाम नहीं होता है | देखो न ,
मलय पर्वत में चन्दन के वृक्षों  के साथ उगे   हुए बांस के वृक्ष
चन्दन के वृक्षों के समान सुगन्धित नहीं हो जाते हैं |

(दक्षिण भारत में मलय पर्वत अपने सुगन्धित चन्दन के वृक्षों
के लिये प्रसिद्ध है |  बांस के वृक्ष भी वहां उगते हैं परन्तु उनमें
सुगन्ध नहीं होती है क्यों कि उनमें यह जन्मजात गुण नहीं होता
है और मलयाचल तथा चन्दन वृक्ष के संसर्ग का कोई लाभ उन्हें
नहीं होता है |  इसी प्रकार  आन्तरिक गुणों से रहित व्यक्तियों को
भी विद्वान् व्यक्तियों के संसर्ग या उनके उपदेशों से कोई लाभ
नहीं होता है |)

Antahsaara-viheenaanaam-upadesho  na  jaayate.
Malayaachalasmsargaanna  venushchandanaayate.

Antahsaara +viheenaanaam + upadesho.  Antahsaara=
inner strength, inherent qualities.   Viheenaanaam=
without.    Upadesho = guidance, advice.   Na = not.
Jaayate = produce any fruitful results.  Malayaachala +
sansargaat +na.    Malayaachala  =  Malaya mountain,
known for its Sandalwood trees.    Sansargaat =in the
company of.   Na = not.   Venuh + chandanaayate,
Venuh =bamboo, cane.   Chandanaayate = becomes
like Sandalwood tree.

i.e.   Giving advice or guidance to persons devoid of
inherent qualities does not produce any fruitful results.
See, the bamboo grown in Malaya mountain along with
Sandalwood trees do not become fragrant like the sandal-
wood trees. 

(Malaya mountain range in South India is famous for the
sandalwood trees grown there.  Bamboo also grows there,
but it has no fragrance because it does not have any inner
quality like the sandalwood tree . Likewise, persons without
any inner qualities can not benefit by the guidance  or the
company of learned persons.)


Wednesday, 22 August 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


लुभ्धानां  याचकः शत्रुर्मूर्खानां  बोधको  रिपुः   |
जारस्त्रीणां  पतिः शत्रुश्चौराणां  चन्द्रमा रिपुः ||
                                -  चाणक्य नीति (१०/६ )

भावार्थ -  धन के लोभी व्यक्तियों  को भिखारी शत्रु के समान
लगते हैं  तथा  मूर्ख  व्यक्तियों को उन्हें शिक्षा देने वाले  लोग
शत्रु के समान लगते हैं |  अपने पति से इतर किसी अन्य व्यक्ति
से गुप्त रूप से प्रेम सम्बन्ध रखने वाली स्त्रियों को अपना  पति
शत्रु लगता है तथा चोरों को शुक्लपक्ष का चन्द्रमा शत्रु के समान
लगता है |
(शुक्लपक्ष में रातें  कम अंधेरी होने के कारण चोरों को चोरी करने
में असुविधा होती है || अतः शुक्लपक्ष का चन्द्रमा उनके लिये शत्रु
के समान होता है | कहा भी है कि -'चोरहि चांदनि रात न भावे ' | )
   
Lubdhaanaam = greedy per sons.    Yaachakah =  beggar.
Shatrurmoorkhaanaanaam = Shatruh + moorrkhaanaam.
Shatruh = enemy.     Moorkhaanaam = foolish persons. 
Bodhako = a teacher.  Ripuh = enemy,    Jaaara = paramour,
lover of a married person    Streenaam = women.    Patih =
husband.  Shatruschauraanaam = shatruh + chauraanaam.
Chauraanaam= thieves.    Chandramaa = the Moon.

i.e.     Beggars are like enemies to greedy persons, and teachers
are like enemies to foolish persons.  To married women involved
in extra-marital illicit relations with other men, their husbands
are like enemies to them, and for thieves the Moon during its
waxing period is like enemy to them .

(During the waxing fortnight of the Moon the nights are brighter,
which is disadvantageous to the thieves and hence they treat the
Moon as their enemy. )

Tuesday, 21 August 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.



रङ्कं  करोति  राजानं   राजानं रङ्कमेव  च  |
धनिनं  निर्धनं  चैव  निर्धनं  धनिनं  विधिः  ||
                              - चाणाक्य नीति (१०/५)

भावार्थ  - सृष्टि के रचयिता सर्वशक्तिमान  ब्रह्मा जी जब
चाहें एक भिखारी को राजा  और राजा को भिखारी  बना देते 
हैं  |इसी प्रकार वे धनवानों को निर्धन और निर्धनों को धनवान
भी बना देते हैं |

(इस सुभाषित के  माध्यम से यह सनातन तथ्य प्रतिपादित
किया गया है कि मनुष्य की उन्नति और अवनति , सुख और
दुख,सब उसके भाग्य के अनुसार ही प्राप्त होते  हैं  |तुलसीदास
जी  ने भी कहा है कि ' हानि लाभ जीवन मरण यश अपयश विधि
हाथ' | )

Rankam  karoti  raajaanam  raajanam  rankameva cha.
Dhaninam  nirdhanam  chaiva  nirdhanam dhaninam vidhih.

Rankam = a beggar.   Karoti =  do, converts.    Raajaanam =
kings.     Ranakameva = Rankam + eva.        Eva=  really.
Cha = and.    Dhaninaam = rich persons.   Nirdhanam = poor
Chaiva = cha +eva     Vidhih =  destiny.  God Brahma.

i.e.        Destiny converts  beggars into kings,and  kings into
beggars.  Likewise , rich persons become poor and poor persons
become rich .

(Through this Subhashita the author conveys this message that
all progress, loss and gain, status in life, happiness and miseries
of human beings, all these are governed by the destiny and over
it  they have no control)

Monday, 20 August 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


कवयः किं  न  पश्यन्ति  किं  न  भक्षन्ति  वायसाः  |
मद्यपाः किं  न जल्पन्ति  किं  न  कुर्वन्ति  योषितः ||
                                              -चाणक्यनीति (१०/४)

भावार्थ -  ऐसी कौन सी बात है कि जिस का कविगण पूर्वानुमान
नहीं कर सकते हैं , ऐसा कौन सा पदार्थ है जिसे कव्वे भक्षण नहीं
कर सकते  हैं , मद्यप (शराबी)  क्या अनर्गल बातें नहीं कह सकते
हैं तथा विपरीत परिस्थिति में एक महिला  क्या नहीं कर  सकती है  ?

( प्रश्नवाचक रूप से इस सुभाषित में यह प्रतिपादित किया गया है
कि कवियों की कल्पना शक्ति और अन्तर्दृष्टि  बहुत प्रबल होती है r
और कहा भी गया है कि - 'जहां न  पहुंचे रवि वहां पहुंचे  कवि ' |
कव्वे को  'सर्वभक्षी' कहा जाता है और एक मद्यप मद के प्रभाव में
आ कर अपनी वाणी का संयम त्याग कर अनर्गल बातें करने लगता
है |  एक स्त्री अपनी संतान की रक्षा के लिये हर प्रकार का त्याग ,
यहां तक कि अपने  प्राणों की बाजी  लगाने के लिये भी तत्पर रहती
है |  तुलसीदास जी ने भी रामायण में कहा है -  'सत्य कहहिं कवि नारि
सुभाऊ | सब  विधि  अगहु  अगाध दुराऊ ||'  )

Kavayah  kim na pashyanti  kim na bhakshanti  vaayasaah.
Madyapaah  kim  na  jalpanti  kim  na  kurvanti  yoshitah;

Kavayah = poets.   Kim = what.    Na = not.    Pashyanti =
foresee,  notice.   Bhakshanti = devour, eat.     Vaayasaah  =
crows.    Madyapaah = drunkards, alcoholics.    Jalpanti =
prattle, loose talks.    Kurvanti = do.   Yoshitah = a woman.

i.e.    Is there any thing that poets can not notice or foresee,
any thing that the crows can not devour,  any loose talk that
drunkards can not say, and what  a woman can not do in an
emergency  ?

(In a figurative way the author wants to emphasize that poets
possess the special insight of foreseeing the future,  crows are
omnivorous birds, a drunkard has no control over his speech
when he is in an inebriated state, and a woman can go to any
extent to protect her children and family. )

Sunday, 19 August 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


धनहीनो  न  हीनश्च  धनिकः  स  सुनिश्चयः  |
विद्यारत्नेन  हीनो  यः  स  हीनः  सर्ववस्तुषु   ||
                                   - चाणक्य नीति (१०/१)

भावार्थ -   यह संभव  है कि एक धनहीन  (गरीब्) व्यक्ति  अन्य
विषयों में हीन न हो, परन्तु यह  निश्चित है  कि एक धनवान व्यक्ति
अन्य विषयों में अवश्य हीन होता है  | जो व्यक्ति विद्या रूपी रत्न
से हीन होते हैं वे सभी विषयों में हीन होते हैं |

(लाक्षणिक रूप से इस सुभाषित में विद्या की महिमा का वर्णन किया
गया है और उसे एक मूल्यवान रत्न की उपमा दी गयी है 

Dhanaheeno  na  heenashcha dhanikah  sa  sunishchayah.
Vidyaartnena  heeno  yah  sa  heenah sarvavastushu.

Dhanaheena= poor.   Na= not.  Heenashcha = Heenah +  cha
Heena = deficient .    Cha = and     Dhanik = a rich person.
Sa = he.    Sunishchayah = certainly.   Vidyaa = knowledge.
Ratnena = jewel's  (used as a simile for Knowledge).   Yah =
whosoever.   Sarva = all.   Vastushu = things.

i.e.    A poor person may not be deficient in other matters, but
a rich person certainly is.  However a  person.who is deficient
in knowledge (precious like a jewel), becomes  deficient  in  all
other matters.

(Through this Subhashita the importance of Knowledge as against
wealth has been highlighted by using the simile of jewels for it.)

Saturday, 18 August 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


दरिद्रता  धीरतया  विराजते
कुवस्त्रता  शुभ्रतया  विराजते |
कदन्नता चोष्नतया  विराजते
कुरूपता शीलतया विराजते || - चाणक्य नीति (९/१४ )

भावार्थ -   यदि कोई  व्यक्ति सहनशील और धैर्यवान हो
तो दरिद्र होने पर  भी समाज में सुशोभित  होता है | जीर्ण
तथा सही आकार के न होते हुए भी ऐसे वस्त्र भी सुन्दर
दिखाई देते  हैं यदि वे स्वच्छ तथा चटकीले  रंगों के हों |
बुरा और बासी भोजन भी अच्छा दिखाई देता है यदि वह
ऊष्ण (गरम) हो , तथा एक कुरूप  व्यक्ति भी गुणवान होने
के कारण  ही समाज में सुशोभित  होता है |

Daridrataa dheeratayaa viraajate
kuvastrataa shubhratayaa viraajate,
Kadannataa choshnatayaa viraajate
kuroopataa sheelataya  Virajate.

Daridrataa =  poverty.    Dheeratayaa = with fortitude
and  patience.    Viraajate = appears beautiful, shines.
Kuvastrataa= shoddy and ill-fitting clothes. 
Shubhratayaa= being clean and bright coloured. 
kadannataa =  stale and bad food.   Choshnatayaa  = cha
+ ooshnatayaa.  Cha= and.  Ooshnataya = being very hot
and spicy.  Kuroopataa = ugliness.   Sheelatayaa = by
virtuousness.

i.e.  If a person possesses  fortitude and patience , he shines
in the society even though he may be poor.  Shoddy and
ill-fitting clothes look beautiful if they are clean and bright
coloured.  Bad and stale food looks beautiful if it is hot and
spicy,  and an ugly person is also revered in society due to
his virtuousness.

Friday, 17 August 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


दह्यमाना  सुतीव्रेण  नीचाः परयशोSग्निना  |
अशक्तास्तत्पदं  गन्तुं  ततो  निन्दां  प्रकुर्वते ||
                                  - चाणक्य नीति (९/१४ )

भावार्थ -  नीच प्रवृत्ति के व्यक्ति  किसी अन्य व्यक्ति की 
किसी उच्च पद पर नियुक्ति के कारण प्राप्त यश रूपी अग्नि
में ईर्ष्यावश बडी तीव्रता से जलने लगते हैं , परन्तु यदि वे भी
वैसा ही उच्च पद प्राप्त करने में असमर्थ हो जाते हैं  तो फिर
वे उस व्यक्ति की निन्दा करने  लगते हैं  |

(उच्चपदस्थ व्यक्तियों को जिस प्रकार उन पदों के आकांक्षी
अन्य व्यक्तियों की ईर्ष्या और द्वेष् का सामना करना पडता
है उस का  वर्णन इस सुभाषित में किया गया है |)

Dahyamaanaa suteevrena  neechaah  parayashgninaa.
Ashaktaastatpadam  gantum  tato  nindaam  prakurvate.

Dahyamaanaah = in flames.      Suteevrena = fiercely.
Neechaah =mean and vile persons.   Parayashaagninaa=
para+ yasha + agninaa.    Para = other persons.  Yasha =
fame.    Agninaa = fire of.    Ashaktaah + tat + padam.
Ashaktaah = incapable of.    Tat = that.   Padam = post,
position.   Gantum = go, achieve.   Tato = therefore.
Nindaam = defamation, reproach.   Prakurvate = does.

i.e.   Mean and vile persons are envious of the fame of a
person occupying a high position and burn themselves in
fire of  envy.  If they are incapable of achieving a similar
high position themselves,  they then start criticizing  and
defaming that person.

(How persons in high positions have to face the envy and
criticism from persons aspiring to dislodge them has been
nicely explained in this Subhashita.)

Thursday, 16 August 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


सर्वौषधीनाममृता  प्रधाना
            सर्वेषु सौख्येष्वशनं  प्रधानम्  |
सर्वेन्द्रियाणां नयनं  प्रधानम्
             सर्वेषु गात्रेषु  शिरः  प्रधानम् ||  - चाणक्य नीति

भावार्थ -   सभी  औषधियों  में  प्रधान  आसवन पद्धति से
निर्मित विभिन्न आसव तथा अरिष्ट होते हैं तथा सुख और
स्वास्थ्य प्रदान करने  में भोजन करना  ही प्रधान होता है | 
सभी ज्ञानेन्द्रियों  और कर्मेन्द्रियों  में नेत्र ही प्रधान होते  हैं 
तथा शरीर के सभी अंगों में शिर ही प्रधान होता है |

(आयुर्वेद में आसव और अरिष्ट वर्ग की औषधियां  जैसे  कि
द्राक्षासव, पञ्चारिष्ट आदि,  आसवन पद्धति (मदिरा बनाने की
पद्धति ) से निर्मित  होती हैं और उन्हें  अन्य औषधियों की तुलना
में  श्रेष्ठ  माना जाता है |  )

Sarvoshadthheenaamamrutaa  pradhaanaa.
Sarveshu  saukhyeshvashanam pradhaanam.
Sarvendriyaanaam nayanam pradhaanam.
Sarveshu gaateshu shirah pradhanam.

Sarva + aushadheenaam + amrutaa.    Sarva = all.
Aushadheenaam = medicines.   Amrutaa =spirituous
liquor.   Pradhaana = prominent.    Sarveshu =among
all.     Saukhyeshu =comforts. health.     Ashanam = .
eating food .   Sarvendriyaanaam = among all organs
of sense and action .  Nayanam = eyes.  Gaatreshu =
limbs of the body   Shirah = head.

i.e.   Medicines prepared by distillation process are most
prominent among all medicines in Ayurveda, and among
the things for providing health and comfort,  food is most
prominent. Among all the organs of sense and action , the
eyes are prominent and among the limbs of the body the
head is most prominent.

(In the Indian system of medicine called Ayurveda, medicines
prepared by distillation method play a prominent role. They
are classified as Aasava and Arishta and contain some amount
of alcohol in them . )


Wednesday, 15 August 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अति  रूपेण  वा  सीता  अति गर्वेण  रावणः  |
अतिदानाद्बलिर्बद्धो  ह्यतिः सर्वत्र वर्जयेत्   ||
                               - चाणक्य नीति (३/१२ )

भावार्थ -  अत्यन्त रूपवती होने के कारण ही भगवान श्रीराम
की पत्नी सीता का लङ्काधीश रावण द्वारा अपहरण  हुआ
और अत्यन्त अभिमानी होने के कारण ही लङ्काधीश रावण
का सर्वनाश हुआ |  दानवराज बलि को भी अत्यन्त दानशील
होने के कारण विष्णु भगवान के वामन अवतार द्वारा बन्धक
बनाया गया था |  इसी लिये कहा गया है कि किसी भी गुण ,वस्तु
या अच्छे कार्य की भी चरम सीमा अच्छी नहीं होते है और प्रत्येक
स्थिति में इस प्रवृत्ति से बचना चाहिये  |
 (इस सुभाषित में देवी सीता, लङ्काधीश रावण तथा दानवराज
बलि के कथानकों को उपमा के रूप में प्रयुक्त कर यह सार्वभौम
तथ्य प्रतिपादित किया है  किसी भी वस्तु या बात की अति चाहे
वह अच्छी ही क्यों न हो हानिकार होती है और उस से बचना चाहिये|
सीता और रावण के प्रसंग से तो सभी परिचित हैं | राजा बलि का
कथानक श्रीमद्भागवत पुराण में व्यक्त है | उसे जानने के लिये कृपया
इस लिंक का प्रयोग करें -  https//hi.wikipedia.org/wiki/वामनावतार

Ati  roopena  vaa   Sita  ati  garvena  Raavanah.
Atidaanaadbalirbaddho  hyatih  sarvatra  varjayet.

Ati = very, too much.     Roopena =being beautiful.
Vaa= or,  is it ?     Sita = the consort of Lord Rama.
Garvena = by being very proud.   Ravanah=name of
the demon king and the ruler of Lanka.  Ati+daanaat
+ Balih + baddho.     Daanaat = by being charitable.
Bali = The demon king of the underworld.  Baddho=
bounded.   Hyati = hi + ato.    Hi =surely.   Savatra=
in every case, everywhere.      Varjayet = should be
given up.

i.e.    Devi Sita, the consort of Lord Shri Ram was
abducted by Ravana, the demon King, because of her
being very beautiful, and Ravana himself got killed
due to his excessive pride  The Demon King Bali was
kept under bondage only because of  his very charitable
nature.  That is why it is said that too much of any thing,
even if  it may be good, is harmful and should be given
up in every case.

(The legends of  Lord Ram and Demon King Bali are used
in this Subhashita as similes to prove a point. Every one is
aware about Lord Ram, but those who may not be aware  of
the legend of King Bali may please use this link - https//www.
astroved.com/astropedia/en/gods/vamana.)

Tuesday, 14 August 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अधमा धनमिच्छन्ति  धनमानौ  च  मध्यमा  |
उत्तमा मानमिच्छन्ति  मानो  हि  महतां धनम्  ||
                                        - चाणक्य नीति (८/१)

भावार्थ -  निम्नतम  श्रेणी के व्यक्ति केवल धन की ही कामना 
करते हैं  तथा मध्यम  श्रेणी के व्यक्ति  धन और सम्मान दोनों 
की कामना करते हैं | परन्तु उत्तम श्रेणी के व्यक्ति केवल सम्मान 
प्राप्ति की ही इच्छा करते हैं, क्यों कि समाज में सम्मान प्राप्त होना 
ही महान व्यक्तियों के लिये धन के समान है |

Adhamaa dhanamicchanti  dhanamaanau  cha madhyama.
Uttamaa  maanamicchanti  maano  hi  mahataam  dhanam.

Adhamaa = persons of lowest category.   Dhanam + icchanti.
dhanam = wealth.   Icchanti  = desire.   Dhana = wealth.
Maanau = respect.   Cha = and.   Madhyamaa = of the middle
category.    Uttamaa = of the highest category.  Maanam +
icchanti.     Maanam = respect.    Hi =surely.   Mahataaam=
great people.  

i.e.   Persons of lowest category desire only acquisition of wealth.
whereas those of middle  category desire both wealth and respect
in the society.  However, persons  of  the highest category desire
only due respect, because for great people respectability in the 
society is like wealth for them.

Monday, 13 August 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


निर्विषेणापि  सर्पेण  कर्तव्या   महती  फणा  |
विषमस्तु  न  चाप्यस्तु  घटाटोपो भयङ्करः  ||
                              -  चाणक्य नीति  (९/१० )
भावार्थ  -  एक  विषहीन  सर्प के दंश में  विष न होने पर भी
उसके पास अपने फण को फैला कर तथा  फूत्कार  के  द्वारा
भयभीत करने की बडी शक्ति होती है जिस का अपनी रक्षार्थ
उपयोग करना उसका परम्र कर्तव्य है  |

Nirvishenaapi  sarpena  kartavyaa  mahatee   Phanaa,
Vishamastu  na   chaapyastu  ghataatopo    bhayankarah.

Nirvishena + api.   Nirvishena = non-venomous.   Api=
even.  Sarpena =of a snake. kartavyaa =duty.  Mahatee=
great.   Phanaa =hood.  Visham+astu.   Visham =poison.
Astu = be it so.   Na = not.    cha+api+astu.   cha = and.
Ghataatopo = the process of creating a hissing sound and
expanding its hood by a snake  Bhayankarah=frightening.

i.e.   Although there is no venom in the bite of a non-venomous
snake, still it possesses the great power of expanding its hood
and  creating a hissing sound, which is very frightening, and it
is its duty to use it in self-defense.


Sunday, 12 August 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


गन्धः  सुवर्णे  फलमिक्षुदण्डे
            नाकरि  पुष्पं  खलु  चन्दनस्य  |     
विद्वान्धनाढ्यश्च  नृपश्चिरायुः
            धातुः  पुरा  कोSपि  न  बुद्धिदोSभूत  ||
                                             -चाणक्य नीति  (9/3)

भावार्थ -   स्वर्ण में सुगन्ध क्यों नहीं होती है ,  ईख (गन्ना) के दण्ड
में  फल क्यों नहीं लगते हैं .चन्दन के वृक्ष मे  पुष्प क्यों नही खिलते
हैं, विद्वान व्यक्ति धनवान क्यों नहीं  होते हैं, तथा राजा दीर्घायु क्यों
नहीं होते हैं ?  इन सब का कारण सनातन काल से बडे बडे विद्वान भी
सचमुच नहीं जानते हैं |
 (इस सुभाषित के माध्यम  से परमेश्वर (प्रकृति )की सत्ता का गुणगान
किया गया है, जिस के सामने मानव भी एक क्षुद्र प्राणी है |)

Gandhah  suvarne  phalamikshudande .
                 Naakari  pushpam  khalu  chandanasya.
Vidvaandhanaadhyashcha  Nrupashchiraayuh.
                  Dhaatuh  puraa  kopi  na  buddhidobhoot.

Gandhah = smell.   Suvarne = Gold.    Phalam  +
ikshudande.   Phalam = fruits.   Ikshudanda = the stem
or cane of  Sugar cane,   Na = not.   Kari =  produce.
Pushpam = flowers.   Khalu =verily,truly.   Chandanasya=
of the Sanydalwood tree.    Vidvaan = a learned person.
Dhanaadhya = rich person.   Cha = and.     Nrupah =  a
King.    Chirayuh = long lived.   Dhaatuh = the cause.
Puraa = long ago.   Kopi = any one.   Buddhido = learned
teacher.    Abhoot =whatever has not happened.

i.e.    Why there is no sweet smell in the Gold,  no fruits
grow in a stem of sugar cane,  flowers are not produced by
sandalwood trees, why are learned persons never rich, and
why kings do not enjoy a long lifespan ?    Since long ago
the answer to all these  questions is not known even to very
wise and learned persons.

(Through this Subhashita the author has indirectly praised the
power of God Almighty and the Nature before whom the Man
is also like an ordinary living being. )

Saturday, 11 August 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


यस्मिन्रुष्टे  भयं  नास्ति  तुष्टे  नैव  धनागमः  |
निग्रहोSनुग्रहो  नास्ति  स  रुष्टः  किं करिष्यति ||
                                      - चाणक्य नीति ( ९/९ )

भावार्थ -   जिस  व्यक्ति के तुम्हारे ऊपर क्रोधित होने पर तुम्हें
कोई भय न हो  और न उस व्यक्ति के तुम्हारे ऊपर प्रसन्न होने
से तुम्हें कोई आर्थिक लाभ होता हो, तो ऐसा व्यक्ति जो तुम्हें न
तो दण्डित कर सकता हो और न उपकृत कर सकता हो , तो वह
क्रोधित हो कर क्या तुम्हारी कोई  हानि कर सकता है ?  (अर्थात
कोई हानि नहीं कर सकता है )

Yasminrushte  bhayam  naasti  tushte  naiva  dhanaagmah.
Nigrahonugraho  naasti  sa  rushtah  kim  karishyati.

Yasmin + rushte,    Yasmin = whose.    Rushte = on being
angry.     Bhayam = fear.    Naastri =  non existence.
Tushte = on being pleased or satisfied.   Naiva = no, not.
Dhanaagamah = accesssion of wealth,  gain.   Nigraho +
Anugraho.    Nigraho = punishment.   Anugraho = showing
of favour.    Sa = that.   Rushtah = angry person.  Kim  =
what ?    Karishyati = can do.

i.e.     If  you are not afraid of a person on his being angry at
you, and do not have any monetary gain on his being pleased
at you, he can neither punish you nor do any favour to you.
Under such circumstances what harm  such  a person can do
to you by being angry at you ?

Friday, 10 August 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अहिं  नृपं  च  शार्दूलं  वृद्धं  च  बालकं  तथा
परश्वानं  च  मूर्खं  च  सप्त  सुप्तान्न बोधयेत  |
                                       चाणक्य नीति (९/७ )

भावार्थ -   एक सर्प , राजा ,  शेर , वृद्ध व्यक्ति, बालक ,किसी  अन्य
व्यक्ति का कुत्ता तथा मूर्ख व्यक्ति . इन सात प्राणियों को यदि वे
निद्रित अवस्था में  हों तो उनकी निद्रा भङ्ग  कर जगाना नहीं चाहिये |

(निद्रा  भङ्ग होने पर ये किस प्रकार का  व्यवहार करेंगे इसका अनुमान
नहीं किया जा सकता है | अतः यही श्रेयस्कार है कि इनकी निद्रा भङ्ग
न की जाय | )

Ahim nrupam  cha  shaardoolam  bruddham  cha  baalakam tathaa,
Parashvaanam cha   moorkahm  cha sapta suptaaana  bodhayet.

Ahimm = a snake,    Nrupam = a king.   shaardoolam = a tiger.
Vruddham = an aged man.   cha = and.   Baalakam = a child.  Tathaa=
so also.   Parashvaanam = a dog belonging to an unknown person.
Mookham = an idiot.   Sapta =seven.    Suptaanna - Suptaa + na.
Suptaam =  asleep.   Na =  not.   Bodhayet = awaken from sleep.

i.e.     A snake, a king,  a tiger. an aged person, a child,  a dog belonging
to some one else and an idiot, all these seven if found to be asleep,
should not be disturbed and awakened from sleep.

(How these seven will behave if their sleep is disturbed can not be
guessed. So it is preferable not to disturb them.)


Thursday, 9 August 2018

आज का सुभाषित / Today's ubhashita.


विद्यार्थी  सेवकः  पान्थः  क्षुधार्तो  भयकातरः  |
भाण्डारी  प्रतिहारी  च  सप्त  सुप्तान्प्रबोधयेत्  ||
                                      - चाणक्य नीति (९/६ )

भावार्थ -        विद्यार्थीं,  सेवक , यात्री,  भूख से व्याकुल व्यक्ति , 
भयभीत हुआ व्यक्ति, भण्डार गृह का रक्षक तथा द्वारपाल, यदि
सोये हुए पाये जायें तो इन सात प्रकार के व्यक्तियों को परिस्थिति 
के अनुसार जगाना , आदेश देना , प्रेरित करना , आश्वस्त करना
तथा दण्ड देना चाहिये |

(संस्कृत भाषा में  कई बार एक ही  शब्द के अनेक अर्थ होते है तथा
उनका अर्थ परिस्थिति के अनुसार बदल जाता है | इस सुभाषित में
एक विद्यार्थी के संदर्भ में 'प्रबोधयेत्' शब्द  का अर्थ प्रेर्रित करना,
द्वारपाल ,सेवक और भण्डारी के लिये आदेश देना या दण्ड देना. यात्री,
भूखे और भयभीत व्यक्ति के लिये आश्वस्त करना हो सकता है | )

Vidyaarthee  sevakah  paanthh  kshudhaarto  bhaayakaatarah.
Bhaandaaree  pratihaareee cha sapta suptaanprabodhayet.aana

Vidyaarthee = a student.   Sevakah = a servant.   Paanthah =
a traveller.    Kshudhaarto = a person afflicted by hunger.
Bhayakaatarah = a frightened person.      Bhaandaaree = the
in-charge of a storehouse.   Pratihaaree =a door keeper.  Cha =
and.   Sapta =seven.   Suptaan =asleep persons.   Prabodhayet=
awaken, instruct, convince admonish, warn.

i.e.    If a student, a servant,  a traveller,  a person afflicted by
hunger, a frightened person,  in-charge of a storehouse, a door
keeper (watchman) are found asleep ,depending on their status
they should be awakened , instructed, convinced and warned
accordingly.

(In Sanskrit language a single word has many meanings depending
upon the context where it is used .  This Subhashita is a fine example
of the use of the word 'Prabodhayet' with different meanings for the
seven types of men, namely awaken for the student,  instructed for
the traveller, frightened person and the hungry person,  and admonish
in the case of the servant, storekeeper and the door keeper.)
      

Wednesday, 8 August 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


मुक्तिमिच्छसि  चेत्तात  विषयान्विषवत्त्यजेत   |
क्षमार्जवदयाशौचं   सत्यं  पीयूषवत्पिव  ||
                                         - चाणक्य नीति (९/१ )

भावार्थ -    आदरणीय बन्धु , यदि तुम मुक्ति (जन्म और मृत्यु
और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति ) चाहते हो तो  तुम विषय भोगों
के  साधनों को  एक  विष के  समान  त्याग  दो तथा क्षमा, शुचिता
सरलता ,विद्या, प्राणिमात्र के प्रति दया और सत्यवादिता इन सभी
गुणों को अमृत के समान समझ कर पियो (इनका अनुपालन करो ) |

Muktimicchasi  chettaata  vishayaanvishavattyajet.
Kshamaarjava-dayaa-shaucham  satyam  peeyushvatpiva.

Muktim+icchasi,    Muktim = release from rebirth,
salvation. Icchasi = desires.    Chet + taata.   Chet = if.
Taata = a word for expessing affection to a person.
Vishayaan + vishvat + tyajet.   Vishayaan = objects which
give sensual pleasure.   Vishvat = like a poison.  Tyajet =
should give up.   Kshamaa = forgiveness.    Arjava =
sincerity. honesty.    Vidyaa =knowledge.    Shaucham =
cleanliness, honesty.    Satyam  = truthful.   Peeyushavat =
Peeyusha +vat.   Peeyusha =  nectar of Gods .   Vat = like,
a suffix  to  a word implying likeness or resemblance)
Piva = drink.

i.e.    O friend !  If you want  salvation during your lifetime,
then you should give up all the objects of sensual pleasures and
adopt  the lifestyle promoting  forgiveness, sincerity, honesty,
knowledge, cleanliness and truthfulness , as if you are drinking
the nectar of Gods.

Tuesday, 7 August 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


परस्परस्य  मर्माणि  ये भाषन्ति  नराधमाः   |
त एव  विलयं  यान्ति  वल्मीकोदर  सर्पवत्   ||
                                  - चाणक्य नीति (९/२ )

भावार्थ -   वे नीच और दुष्ट व्यक्ति जो  अपने गुप्त भेदों को
आपस में एक दूसरे से कह देते हैं  वे शीघ्र ही दीमकों की बांबी
के अन्दर घुसे हुए एक  सर्प के समान नष्ट हो जाते हैं 

Parasparasya  marmaani  ye  bhaashanti  naradhamaah.
Ta  eva  vilayayam  yaanti  valmeekodara  sarpavat.

parasparasya =mutually.    Marmaani = vulnerable secrets
Ye = those persons.   Bhaashanti = announce, disclose
Naraadhamaah = lowly and wretched persons.   Ta= they.
Eva =really, thus.   Vilayam  = destruction.  Yaanti = go.
valmeeka + udar.   Valmeeka= anthill ( a small hillock built
by white ants by throwing up earth.     Udar = inside the
cavity of the ant hill.    Sarpvat = like a snake.

i.e.    Those lowly and wretched persons who disclose their
vulnerable secrets to each other , soon perish like a snake
entering inside the cavity of an ant hill.

Monday, 6 August 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


ऋणकर्ता  पिता  शत्रुर्माता  च  व्यभिचारिणी  |
भार्या  रूपवती  शत्रुः  पुत्रः  शत्रुरपण्डितः        ||
                                - चाणक्य नीति  (८/२१

भावार्थ -   एक पिता जिसने बडी धनराशि ऋण के रूप में ली
हो तथा एक माता जो व्यभिचारिणी (दुश्चरित्र ) हो दोनों अपनी
सन्तान के लिये शत्रु के समान होते हैं |  किसी व्यक्ति की पत्नी
यदि अत्यन्त सुन्दर हो तथा सन्तान निरक्षर हो तो ये दोनों भी
उसके लिये शत्रु समान ही होते हैं  |

(यदि किसी परिवार में पिता कर्ज के बोझ से दबा हुआ हो या माता
दुश्चरित्र हो, तो दोनों स्थितियों में उनकी संतान का लालन पालन
भली प्रकार नहीं हो पाता है और वे अपनी सन्तान के लिये एक शत्रु
के समान ही होते हैं |  स्त्री का अति रूपवती होना भी उसके पति के
लिये तब एक बडी समस्या बन जाती है जब वह उसकी रक्षा करने में
असमर्थ होता है, तथा यदि पुत्र निरक्षर हो तो वह भी अपने पिता के
लिये एक शत्रु के ही समान होता है |  )

Rinakartaa  pita  shatrurmaataa  cha  vyabhichaarinee.
Bhaaryaa  roopavatee  shatruh  putrah  shatrurapanditah.

Rinakartaa = a person who has borrowed money, a debtor.
Pitaa = father.    Shatrurmaataa = shatruh + maataa. 
Shatruh = an enemy.     Maataa = mother.    Cha = and
Vyabhichaarinee = a wanton woman , unchaste wife,
Bhaaryaa =  wife.   Roopvatee = very beaautiful.   Putrah =
Son.   Shatrurapanditah = shatruh + apanditah.  Apanditah=
an illiterate person.

i,e,    A father who has incurred a huge debt and a mother
who is a wanton woman, both of them are like enemies of
their children.   Likewise , a very beautiful wife and illiterate
son are also like enemies to a person.

 (In a family if the father is heavily indebted and the mother
is a wanton woman, the  children remain neglected.  Under
such circumstances they are really enemies of their children.
        A very beautiful  wife and an illiterate son are also like
enemies to a person, as providing protection to them is a big
problem.)

Sunday, 5 August 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


निर्गुणस्य  हतं  रूपं  दुःशीलस्य  हतं  कुलम्     |
असिद्धस्य हता  विद्या  ह्यभोगेन  हतं  धनम्  ||
                                   - चाणक्य नीति (८/१६)

भावार्थ  -  एक गुणों से रहित  व्यक्ति  की  छवि समाज में नष्ट
हो जाती  है तथा एक चरित्रहीन और दुष्ट व्यक्ति के कारण उस
के कुल का नाश हो जाता है |   एक अकुशल व्यक्ति कभी भी विद्या
प्राप्त नहीं कर सकता है तथा निश्चय ही  धन भी (एक कृपण व्यक्ति
के द्वारा )उपभोग न किये जाने पर अन्ततः नष्ट हो जाता है |

Nirgunasya hatam  roopam  duhsheelasya  hatam  kulam.
Asiddhasya  hataa vidyaa  hyabhogena  hatam  dhanam.

Nirgunasya =  a person without  any qualities or virtues.
Hatam = destroyed,  perishes.    Roopam = beauty, image.
Duhsheelasya = a wicked person's    Kulam = family, clan.
Asiddhasya = an incompetent person's.     Hataa = useless   
Vidyaa =knowledge.    Hi+ abhogena.     Hi = surely.   
Abhogena=by not enjoying or utilising.   Dhanam= wealth.

i.e.   The status and image of a person without any qualities
and virtues is destroyed  in the society, and  a wicked person's
family ultimately perishes .  An incompent person can never
acquire knowledge , and  wealth (hoarded by a miser) is surely
destroyed if it is not properly utilised  or consumed.

Saturday, 4 August 2018

आज का सुभाषित / Today's subhashita.

गुणाः  भूषयते  रूपं  शीलं  भूषयते  कुलम्   |
प्रासादशिखरस्थोSपि काकः किं  गरुडयते  ||
                            -  चाणक्य नीति (८/१५ )

भावार्थ -   किसी व्यक्ति के गुण उसके रूप (सौन्दर्य) की शोभा को
और भी बढा  देते हैं तथा  उसकी  सच्चरित्रता उसके कुल की ख्याति
में वृद्धि कर देती है |  उदाहरणार्थ क्या एक साधारण कव्वा किसी महल
के ऊंचे शिखर पर बैठे हुए गरुड की शोभा की समानता कर सकता है ?

कव्वे और  गरुड (चील या बाज ) में मुख्य अन्तर उनके शरीर सौष्ठव
तथा ऊंचाई में तेजी से उडने की क्षमता होती है |  केवल किसी ऊंचे स्थान
या पद पर बैठने से ही कोई व्यक्ति महान नहीं हो जाता है | उसमें वांछित
योग्यता का होना भी आवश्यक होता है |  यही इस सुभाषित का तात्पर्य है
जैसा कि एक अन्य सुभाषित में कहा गया है -  'गुणैरुत्तुङ्गतां याति
नोच्चैरासनसंस्थितः  |  प्रासाद्रशिखरारूढ:  काकः किं गरुडायते "  )

Gunaah  bhooshayate  roopam  sheelam  bhooshayate  kulam.
Praaasada-shikharastopi  kaakah  kim  garudaayate.

Gunaah = talent, virtues    Bhooshayate = decorate, beautify.
Roopam = appearance, figure.   Sheelam = character.  Kulam=
family, clan.    Praasaad+ shikharastho + api.       Praasaad =
a palace or a lofty building.    Shikharstho = perched on the top.
Api = even.   Kaaakah = a crow.   Kim =  can it ?    Garudaayate=
match the majesty of an eagle.

i.e.    Talent beautifies the personality of  a person , and his good
character the status of his family.  For instance , can an ordinary
crow match the majesty and grandeur of a King eagle perched on
the tower of a palace ?

(The main difference between a crow and an eagle is the big  size 
of the eagle and its capacity to fly high.  Simply occupying a high
post one does not become great unless he possesses the requisite
qualities.  This is the message conveyed by this Subhashita as also
another similar Subhashita with a changed first sentence  conveying
the above remark. )








Friday, 3 August 2018

आज का सुभाषित /Today's Subhashita.


शान्तितुल्यं  तपो नास्ति  न सन्तोषात्परं  सुखं  |
अपत्यं  च  कलत्रं  च  सतां  सङ्गतिरेव  च          ||
                                        - चाणक्य नीति (८/१४)
 
भावार्थ  -  मानसिक शान्ति को बनाये रखने के समान और अन्य
कोई तपस्या नहीं है तथा सन्तोष से बढ कर और  कोई अन्य सुख 
नहीं है |  इसके अतिरिक्त अन्य सुख  योग्य संतान, पतिव्रता पत्नी
तथा सज्जन और विद्वान  व्यक्तियों का साहचर्य भी है |

(संतोष के संबन्ध में एक अन्य कवि की उक्ति है कि -
            गोधन गज धन बाजि धन और रतन धन खानि |
            जब आवे संतोष धन सब धन  धूरि समान  ||   (बाजि = घोडा )
यदि मन सन्तुष्ट  हो तो फिर निर्धन या धनवान होने में कोई अन्तर
नहीं होता है और वही व्यक्ति वास्तव में दरिद्र है जिसकी तृष्णा विशाल 
हो  |  -  ' स हि भवति दरिद्रो यस्य तृष्णा विशाला  | मनसि च परितुष्टो
कोSर्थवान्को  दरिद्रः ' |)

Shaanti--tulyam  taapo  naasti  na santoshaatparam  sukham.
Apatyam  cha  kalatram  cha  sataam  sangatireva  cha.

Shanti =peace of mind.   Tulyam = comparable, equal to.
Tapo = religious austerity, penance.    Naasti = not.   na =not.
Santoshaat + param.   Santoshaat = from contentedness.
Param =highest.    Sukham = happiness. pleasure.   Apatyam =
children, offsprings.   Cha = and.   Kalatraam = wife.  Sataam=
noble and virtuous persons.     Sangatih + eva,    sangatih =
association with,    Eva =also.

i.e.   There is no other religious austerity comparable to maintaining
the peace of mind, and no happiness comparable to contentedness.
Besides this the other sources of happiness are obedient and able
children , a virtuous and loving wife and association with noble and
virtuous persons.

(There is no end to the desires of people , and if a person is contented
it makes no difference to him whether he is rich or poor. This has been
summed up in another Subhashita that only that parson is really poor
whose greed is uncontrollable . Otherwise if a person is mentally  satis-
fied it makes no difference for him  whether he is rich or poor.)

Thursday, 2 August 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


शुद्धं  भूमिगतं  तोयं  शुद्धा  नारी  पतिवृता    |
शुचिः क्षेम करो  राजा  सन्तोषो  ब्राह्मणः शुचिः  ||
                                     - चाणक्य नीति ( ८/१७ )

भावार्थ -  भूमिगत (पृथ्वी के अन्दर गहराई मे एकत्रित ) जल
शुद्ध होता है और वैसे ही एक गुणवान तथा अपने पति के प्रति
समर्पित स्त्री भी शुद्ध (पवित्र) होती है |  अपनी  प्रजा की भलाई
तथा सुरक्षा करने में सदैव तत्पर राजा (या शासक) तथा सन्तोषी
स्वभाव के ब्राह्मण भी  गुणवान तथा पवित्र विचारोंवाले होते
हैं |

Shuddham bhoomigatam toyam shuddhaa naari pativrutaa.
Shuchih ksheemakaro Raja santosho braahmanah shuchih.

Shuddham = pure . Bhoomigatam = underground,   Toyam =
water.    Naaree =a woman.  Pativrutaa = a virtuous woman
loyal to her husband.    Shuchih = virtuous and pure
Kshemakaro=conferring peace, security and happiness  to the
citizens.  Raajaa = a King or a Ruler of a country.  Santosho =
contentedness   Brahmanah = a Brahmin or a Priest.

i.e.   Underground water is always pure and so also a virtuous
woman loyal to her husband .  A king or a Ruler who is very
much concerned about the welfare and security of the citizens,
and a Brahmin who is by nature contented are always virtuous
and with pure thoughts.



Wednesday, 1 August 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


असन्तुष्टः  द्विजा नष्टाः  संतुष्टाश्च  महीभृताः  |
सलज्जा गणिका  नष्टा  निर्लज्जाश्च  कुलाङ्गना ||
                                       - चाणक्य नीति  (८/१८ )

भावार्थ -  यदि कोई धार्मिक अनुष्ठान और पूजा कराने वाला ब्राह्मण
उसे दी गई  दक्षिणा से संतुष्ट नहीं होता है तथा  दैनिक वेतन पाने वाले
मजदूर जो भी मजदूरी उन्हें दी जाय उस से संतुष्ट हो जाते हों तो वे अपनी
आजीविका में असफल (नष्ट) हो जाते हैं | इसी प्रकार यदि कोई वेश्या सरल 
और संकोची स्वभाव की हो तथा कोई कुलीन महिला  निर्लज्ज हो तो दोनों
ही का जीवन असफल (नष्ट) हो जाता है |

(विभिन्न आजीविकाओं के लिये तदनुसार विभिन्न दृष्टिकोण अपनाने की
आवश्यकता होती है |एक प्रकार की आजीविका के लिये जो दृष्टिकोण  एक
गुण होता है वही किसी अन्य आजीविका के लिये अवगुण हो जाता है | इसी
को एक ब्राह्मण और मजदूर तथा एक वेश्या और कुलीन स्त्री के उदाहरण
द्वारा इस सुभाषित में  प्रतिपादित किया गया है |)

Asantushtah  dvijaa  nashtaah  santushtaashcha maheebhrutaah.
Salajjaa ganikaa  nashtaa  nirlajjaashcha  kulanganaa.

Asantushtah = unhappy, discontented .   Dvijaa = brahmins,
persons belonging to the first three categories, namely Brahmins,
kshatriya and vaishya as per Sanatana Dharma .   Nashtaah =
destroyed, unsuccessful.   Santushtaah + cha.   Santushtaah =
gratified, pleased.   Maheebhrutaah =  hired servants or labourers.
Salajjaa = feeling shame or modesty.   Ganikaa = a courtesan,
a  prostitute.  Nirlajjah +cha.   Nirlajjaah =shameless,   Cha = and,
Kulanganaa = a respectable and virtuous woman.
 no
i.e.   If  a priest (a brahmin performing pooja in a household) is
discontented over the donation given to him, and a laborer on
daily wages is happy on whatever he gets, both are likely to perish.
Likewise if a prostitute is very modest and a lady belonging to
an illustrious family is shameless in her behaviour , both of them
will  ultimately perish.

(Different mental attitudes are required for success in various
professions and the attitude adopted for one profession sometimes
becomes harmful for another profession.  The above subhashita
highlights this by giving the examples of a brahmin and a daily
wage earner, as also a prostitute and  a lady from an illustrious
family.)