Saturday, 31 March 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


विवेकः सह  संयत्या  विनयो  विद्यया  सह |
प्रभुत्वं  प्रश्रयोपेतं  चिह्नमेतन्महात्मनाम्   ||
           -  सुभाषित रत्नाकर (प्रसंग रत्नावली )

भावार्थ  -          विवेकशील होने के साथ ही अपने निर्णय की समीक्षा
करना ,विद्वान होने के साथ ही विनम्र स्वभाव का होना , शक्तिशाली
होते हुए भी विनम्र  स्वभाव का होना , ये सभी  चिह्न  एक महान और
शक्तिशाली पुरुष में पाये जाते  हैं |

Vivekah saha smyatyaaa  vinayo  vidyayaa  saha.
Prabhutvam  prashrayopetam  chinhametan-mahaatmanaam.

Vivekah = discretion, wisdom.    Saha = along with.   Smyatyaa=
penance,  self castigation.Vinayo = humility.    Vidyayaa=
scholarship, knowledge.         Prabhutvam = authority, power.
Prashrayopetam = prashrya + upetam.    Prashrya = modesty.
Upetam = possessing, having.   Chinnham +etat+mahaatmanaam.
Cihnam = symbol.    Etat = this.   Mahaatmanaam = powerful and
distinguished persons.

i.e.    Having discretion along with self castigation,  knowledgeable
along with humility, powerful  along with modesty ,all these are the
symbols of a powerful and virtuous person.

Friday, 30 March 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


गुणाः  कुर्वन्ति  दूतत्वं  दूरेऽपि  वसतां  सताम्  |
केतकीगन्धमाघ्राय  स्वयं  गच्छन्ति  षट्पदाः  ||
               - सुभाषित रत्नाकर (प्रसंग रत्नावली )

भावार्थ -   सज्जन तथा गुणवान व्यक्ति यद्यपि जनसामान्य से
दूरी बनाये रहते हैं , लेकिन उनके गुण ही उन का दूत बन कर समाज
 में उन की प्रसिद्धि कर देते हैं और लोग उनके पास उसी प्रकार खिचे
चले आते  हैं जैसे कि केतकी  के  पुष्पों की सुगन्ध से आकर्षित  हो कर 
मधु मक्खियां स्वयं वहां पहुंच जाती हैं |

Gunaah kurvanti  dootatvam  doorepi  vasataam  sataam.
Ketakee-gancdhamaaghraaya   svyam  gacchanti shatpadaah.

Gunaah = virtues.   Kurvanti = do.     Dootatvam = acting as
a messanger,  advertise.    Doorepi = doore+ api.    Doore =
far away.      Api = even.       Vasataam = live.        Sataam =
noble and virtuous persons.        Ketakee = name of a very
fragrant flower.    Gandha = fragrance,   Aaghraaya = smelling.
Svyam = themself.    Gacchanti = go.    Shatpadaah = bees.

i.e.   Noble and virtuous persons always remain aloof from the
common people, but their virtues act as their messengers  and 
people are attracted towards them just like bees being attracted
towards the Ketakee flowers by their fragrance.

Wednesday, 28 March 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


उद्यमः साहसं  धैर्यं  बुद्धिः शक्तिः पराक्रमः |
षडेते  यत्र  वर्तन्ते  तत्र  देव  सहायकृत् ||
                        -  सुभाषित रत्नाकर (स्फुट )

भावार्थ  -    उद्यमिता ,  साहस , धैर्य , बुद्धि,  शक्ति और पराक्रम
ये  छः गुण  जिस  व्यक्ति में  होते  हैं, ईश्वर  भी  उसका सहायक
होता है  | 

Udyamah saahasam dhairyam buddhih shaktih parakramah.
Shadete  yatra vartante  tatra deva sahaayakruta.

Udyamah =strenuous and continuous efforts    Sahasam =courage.
Dhairyam = patience.  Buddhih = intelligence.   shaktih = power,
strength.   Parakramah = courage, valour.    Shadete   = these six
qualities.   Yatra = where.   Vartante = there are, exist.  Tatra=there.
Deva = God.   Sahaayakruta= renders assistance,   is helpful.

i.e.    Capacity to make strenuous and continuous efforts to achieve
one's objective, courage,  patience, intelligence , power and courage,
if  these six qualities exist in a person, even the God Almighty renders
assistance to him.




Tuesday, 27 March 2018

आज का सुभाशित /Today's Subhashita;.


हस्तस्य भूषणं  दानं सत्यं  कण्ठस्य  भूषणम्  |
श्रोत्रस्य भूषणं  शास्त्रं  भूषणैः  किं  प्रयोजनम्  ||
                                                       (स्फुट )

भावार्थ -  हाथों की शोभा दान देने से होती है , और कण्ठ (गले ) की शोभा सदा
सत्य बोलने से होती  है  |  तो ऐसी स्थिति में आभूषणों की क्या आवश्यकता है ?

Hastasya  bhooshanam  daanam  satyam kanthasya bhoosanam.
Srotrasya bhooshanam shaastram  bhooshnaih kim prayojanam.

Hastasya = of the hand.    Bhooshanam =embellishment, ornament.
Danam= donation, charity.     Satyam = truth (telling the)   Kanthasya=
voice's  (speaking)    Srotrasya = of the ears.     Shasram = scriptures
(listening to).     Bhoshanaih = ornamnts.   Kim = what ?   Prayojanam =
need.

i.e.     Giving away wealth as charity is the real embellishment of hands,
and always  speaking the truth is the embellishment of one's voice, and
listening to the scriptures and treatises of literature is the embellishment of
the ears.    Then where is the need of ornaments to embellishing the hands,
neck and ears with ornaments ?

Sunday, 25 March 2018

आज का सुभाषित /Today's Subhashita .


भद्रंभद्रं  कृतं  मौनं  कोकिलैर्जलदागमे
वक्तारो दर्दुरा  यत्र  तत्र  मौनं  समाचरेत्  ||
                 - सुभाषित रत्नाकर (सभा तरंग )

भावार्थ -    अरी कोयलो  !  तुमने  यह बहुत अच्छा किया  कि वर्षा
 ऋतु के आगमन पर तुमने मौन धारण कर लिया है | जिस स्थान
पर  मेंढक  टर्र्रा रहे हों वहां मौन धारण करना  ही उचित है |

यह सुभाषित भी एक अन्योक्ति है |  वसन्त ऋतु में जब प्रकृति
अपने सुन्दरतम  रूप में होती है तो कोयल की कुहू कुहू ध्वनि बहुत
प्रिय लगती है |इस के विपरीत मैंढक एक समूह बनाकर जब्र टर्राने
लगते हैं वह ध्वनि बहुत अप्रिय होती है |  लाक्षणिक रूप से इस सुभाषित
द्वारा यह  प्रतिपादित  किया है कि विद्वान व्यक्तियों की इच्छाशक्ति
इतनी अधिक होती है कि कुसंगति का उन पर बुरा प्रभाव नहीं पडता है
तथा वे  उनके कार्य कलापों में सम्मिलित न हो कर चुप रहना ही श्रेयस्कर
समझते हैं  | इस  सुभाषित के अनुवाद जैसा ही कविवर रहीम का यह दोहा
 बहुत प्रसिद्ध है :-      जो रहीम उत्तम प्रकृति  का करि सकत कुसंग |
                               चन्दन विष व्यापत नहीं लपटे रहते भुजंग |

Bhadram bhadram krutam maunam Kokilairjaladaagame
Vaktaaro.   darduraa  yatrta  tatra maunam  samaachret.

Bhadram =good,  Krutam= done.   Msunam = silence.
Kokilaih =  cuckoo bird.   Jaladaagame =arrival  of  the
clouds i,e  onset of rainy season.  Vaktaaro = speakers.
Darduraa = frogs    Yatra = where.  Tatra -  there.
Maunam = silence.  Samaacharet = practise thoroughly.

i.e     O cuckoo bird  !   you have taken a very correct
decision by remaining  silent on the onset of the rainy
season. In a place where frogs are croaking, it is always
better to observe  silence. Figuratively it means that noble
persons should better dissociate from the activities of lowly
persons.

(This subhashita is also an allegory.. In the spring season
when the Nature  is at its best, the cuckoo bird tweets as
'kuhoo kuhoo', which is very pleasing to the ears, whereas
with the   onset of the rainy season  frogs come out as a
group and start croaking, which is very unpleasant to hear.
The idea behind the subhashita is that it is advisable to
better dissociate from the activities of wicked persons.)





s











Bhadram Bhadram krutam maunam kokileirjaladaagame.
Vaktaaroo  darduraa  yatraa tatra  maunam samaacharet.

Bhadram = skillful and learned persons.   krutam = done.
Maunam = silence.     Kokilairjaladaagame  = kokilaih +
Jaladaagame.   Kokilaih = cuckoo birds.   Jssladaaagame =
during the rainy season.   Vaktaaro = orators, speakers.
Darduraa  = frogs.   Yatra =where.   tatra = there.   Maunam=
silence,   Samaacharet = ob

Friday, 23 March 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.

विकृतिं नैव गच्छन्ति सङ्गदोषेण साधवः  |
आवेष्टितं  महासर्पैश्चन्दनं न विषायते      ||
               - सुभाषित रत्नाकर ( शार्ङ्गधर )

भावार्थ -   बुरे  व्यक्तियों के साथ रहने पर भी  साधुओं (सहृदय और
सज्जन व्यक्तियों) के स्वभाव में कोई विकृति (गिरावट) उसी प्रकार
नहीं होती  है  जैसे कि  चन्दन के वृक्ष में जहरीले सर्प लिपटे रहने पर
भी चन्दन का  वृक्ष विषैलानहीं हो जाता है |

इसी भावना को कविवर  रहीम ने भी इस दोहे मे व्यक्त किया है =
            जो रहीम उत्तम प्रकृति का करि सकत  कुसंग  |
             चन्दन विष व्यापत नही लपटे रहत भुजंग ||)

Vikritim naiva  gacchanti sangadoshena saadhavah.
Aavishthitam mahaasarpaishchandanam na vishaayate.

Vikritim = negative change.   Naiva =never.   Gacchanti=
undergo.     Saadhavah = noble and virtuous persons.
Aveshtitam = surrounded by.    Mahaasarpaishchandanam=
Mahasarpaih +chandanam.    Mahasarpaih = large snakes.
Chandanam = the sandalwood tree.   Na =  not,  vishaayate=
becomes poisonous .

i.e.    In spite of remaining in the company of bad people,
noble and righteous persons do not  undergo  any negative
change in their attitude towards  others , just like the sandal
wood tree always being surrounded by  large and poisonous
snakes, never becomes poisonous.




Thursday, 22 March 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita


विद्वत्तम च  नृपत्वं  च  नैव तुल्यं कदाचन  |
स्वदेशे  पूज्यते राजा  विद्वान्सर्व्रत्र पूज्यते   ||
                   -  सुभाषित रत्नाकर ( हितोपदेश)

भावार्थ -    विद्वत्ता  तथा  नृपत्व (राजसी ठाठबाठ)  की आपस में
तुलना कभी नहीं हो सकती है , क्यों कि एक राजा तो केवल अपने ही
देश में पूज्य  होता है जब कि एक विद्वान व्यक्ति सर्वत्र पूज्य  होता है |

(यह सुभाषित 'विद्वत्प्रशंसा  ' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है |  इसका
तात्पर्य यह है  कि  नृपत्व की तुलना में विद्वत्ता ही श्रेष्ठ होती है  |)

Vidvattam cha nrupatvam  cha  naiva tulyam kadaachana.
Svdeshe poojyate Raajaa  vidvaan-sarvatra poojyate.

Vidvattam =  Scholarship.   cha = and.   Nrupatvam = Royalti.
Naiva = no, never.   Tulyam = comparable.   Kadachana = at
any time.    Svadeshe = in one's own country.    Poojyate =
honoured, revered.   Raaja = a king, a ruler.   Vidvaan =a scholar,
a learned person.   Sarvatra = every where,

i.e.     Scholarship and  royalty are never comparable , because
a king is honoured  within his own country, whereas a scholar
is revered every where .

( This Subhashita is categorised   as "Vidvatprashmsaa"  in praise
of Scholarship. The underlying idea is that scholarship is superior
than the royalty. )

Tuesday, 20 March 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita


नाहं  जलधर भवतश्चातक  इव  जीवनं   याचे  |
अहमस्मि नीलकण्ठो तव  खलु तुष्यामि शब्दमात्रेण ||
                                - सुभाषित रत्नाकर (शार्ङ्गधर )

भावार्थ -   ओ  बादल  !  मैं एक चातक पक्षी जैसा नहीं हूं जो तुमसे
अपने जीवन की रक्षा के लिये भीख  मांगता  है |   मैं तो नीलकन्ठ
पक्षी (मोर) हूं  जो तुम्हारे गर्जने की ध्वनि मात्र को सुन कर ही संतुष्ट
हो जाता हूं |
(प्रस्तुत सुभाषित भी एक  'मयूरान्योक्ति '  है |  संस्कृत साहित्य में
यह  धारणा है कि चातक पक्षी केवल 'स्वाति' नक्षत्र काल में हुई वर्षा
का ही जल पीता है अन्यथा प्यासा ही  रह जाता है |  इस के विपरीत
एक मोर बादलों के गर्जने मात्र से ही प्रसन्न हो कर नृत्य करने लगता
है |  लाक्षणिक रूप से इस का तात्पर्य यह है कि जो व्यक्ति संतोषी होता
है  वह सदैव सुखी रहता है और इसके विपरीत  जिस व्यक्ति की इच्छाa = lik ae
पूर्ति कठिन होती है वह सदैव असन्तुष्ट और दुःखी ही रहता है | )

Naaham jaladhar  bhavatashchaatak iva jeevnam yaache.
Ahamasmi neelakantho  tava  khalu tushyaami  shabdmaatrena,

Naaham = na +aham,   Na = not.   Aham = I     Jaladhar = cloud
Bhavatashchaataka = Bhavatah + chaataka.    Bhavatah =  you.
Chaatak = name of a bird.   Jeevanam = life.   Yaache = begs for. 
Ahamasmi = aham +asmi.      Asmi = am. Neelakantho =a peacock
having a blue neck.  Tava = your.  Khalu =verily..  Tushyaami = will
be satisfied    Shabdmaatrena =merely by the sound.

i.e.   O cloud  !   I am not like a Chatak bird , who begs water from
you to save his life.   I am a Peacock, who is satisfied merely by
hearing your rumbling sound.

(This Subhashita is also an 'Anyokti' (allegory). In Sanskrit literature
it is said that the Chatak bird  quenches its thirst from the rain water
falling on the earth during a particular celestial period and  otherwise
remains thirsty.  On the other hand the Peacock becomes happy and
starts dancing by merely hearing the rumbling sound of the clouds.
The underlying idea behind it is that those persons whose wants are
limited and are satisfied at whatever they get remain always happy
whereas those persons are very choosy always remain disgruntled .)

Monday, 19 March 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अगुरुरिति  वदतु लोको गौरवमत्रेव  पुनरहं  मन्ये  |
दर्शितगुणैव  वृत्तिर्यस्य  जने  जनितदाहेSपि       ||
                           - सुभाषित रत्नाकर (शार्ङ्गधर )

भावार्थ -   लोगों का कहना है  और मेरा भी यही मानना है  कि अगुर
(एक सुगन्धित वनस्पति जो जलाने पर भी सुगन्ध फैलाती है ) की 
सभी इस लिये प्रसंशा करते हैं  कि उस में जो गुण दिखाई देते है वे
उस के  स्वभावगत गुण हैं तथा उसको आग में जलाने पर भी बने
रहते हैं |

(प्रस्तुत सुभाषित एक  'अगुर्वन्योक्ति'  है |  इस में अगुर नाम की एक
वनस्पति की विशेषता का वर्णन किया गया है कि वह स्वयं तो सुगन्धित
होती है , जलाये जाने पर भी चारों ओर सुगन्ध फैलाती है  लाक्षणिक रूप
से इस का तात्पर्य यह है कि महान और सज्जन व्यक्ति विपत्ति के समय
भी अपने परोपकारी स्वभाव का परित्याग नहीं करते हैं  | )

Agururiti  vadatu loko gauravamatreva  punaraham  manye.
Darshitaguneaiva vrutttiryasya  jane  janitdaahepi.

Agururiti = aguruh + iti.    Aguruh =the fragrant Aloe wood
and tree.    Vadatu = say, speak.    Loko = people.   Gaurava-
matreva = Gauravam + atra + aiva.    Gauravam = admiration.
atra = here.   Aiva = really.   Punaraham = punah + aham.
Punah = again.      Aham = I.     Manye = think.      Darshit =
displayed, revealed.    Gunaiva = guna +aiva.   Guna= quality.
Aiva = really.    Vruttiryasya = vruttih + yasya.    Vruttih =
behaiviou, conduct.    Yasya = whose.    Jane = people.
Janitdaahepi = jaanit+ daahe+ api.    Janit = produced, occurring.
Daahe =  burning.    Api = even.

i.e.    People say and I also subscribe to the same view that  the
'Agur' (Aloe wood tree) is admired by the people for its qualities
( fragrance) , which  remains even on burning it .

(This Subhashita is an "Anyokti' (allegory) using  the 'Agur' as a
metaphor.    'Agur' is a tree which emits sweet fragrance even on
burning and used to produce sweet fragrance during meditation or a
prayer.  The underlying idea behind it is that noble and virtuous
persons do not shed their nature of helping the mankind even while
themselves facing  hardships and imminent danger.)

Sunday, 18 March 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


सन्त्येव  गिलिताSSकाशा  महीयांसो  महीरुह:  |
तथापि जनताचित्ताSSनन्दनश्चन्दनद्रुमः       ||
                                 - सुभाषित रत्नाकर (स्फुट)

भावार्थ -   विशाल शीशम के वृक्ष सारे आकाश को आच्छादित किये
हुए बहुत सुशोभित होते हैं , परन्तु जनसामान्य के चित्त को चन्दन
के  वृक्ष ही अधिक आनन्दित करते हैं  |

(प्रस्तुत सुभाषित 'चन्दनान्योक्त्यः' शीर्षक से संकलित है | लाक्षणिक
रूप से इस का तात्पर्य यह है मात्र शरीर शौष्ठव से किसी का सम्मान
उतना नहीं होता जितना किसी व्यक्ति  का शरीर शौष्ठव  के साथ अन्य
गुणों के होने से होता है ,जैसे कि चन्दन का वृक्ष अपनी सुगन्ध के कारण
शीशमके वृक्ष की तुलना में अधिक आनन्दित  करता है |)

Santyeva gilitaakaashaa maheeyaamso  Maheeruhah.
Tathaapi janataachittaanandanashchandanadrumah.

santyeva = santi + ava.     Santi = really.     Aiva =really.
Gilitaakaash =  Gilita + Aakaash.    Gilita= swallowed. 
covered,     Aakaash =the sky.   Maheeyaamsho = Mighty,
lofty.   Maheeruhah =Teak wood treee.  Tathaapi= even then.
Janataa = common people,    Chittaa - mind.   Anandanah =
pleasing.     Chandana = sandalwood.      Drumah = tree.

i.e   Mighty and tall Teak wood trees really cover the landscape
but even then the Sandalwood tree pleases more  the common
people .

(This Subhashita is an 'Anyokti'  (allegory) by using the Teakwood
tree and Sandalwood tree as a Metaphor.   Although Teakwood tree
is more majestic than the Sandalwood tree, people like Sandalwood
tree more, because of its fragrance.  So, the underlying idea behind
this Subhashita is that only size  and outward appearance does  not
matter much and a person must also have some virtues for pleasing
others.)

Saturday, 17 March 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


रसालशिखराSSसीना: शतं सन्तु पतत्रिणः  |
तन्मञ्जरीरसाSSमोदबिन्दुरेव  कुहूमुखः ||
                  सुभाषित रत्नाकर (शारङ्गधर )

भावार्थ -  आम्र वृक्ष के शिखरों (ऊंची डालों ) पर विभिन्न
प्रजातियों के सैकडों पक्षी बैठे रहते हैं परन्तु केवल कोकिला
ही आम्रमञ्जरी के रस और सुगन्ध से प्रमुदित हो कर मधुर
स्वर में कुहू कुहू  ध्वनि करती है |

(प्रस्तुत सुभाषित 'कोकिलान्योक्ति ' शीर्षक से संकलित
है | इस में कोयल पक्षी के माध्यम से लाक्षणिक रूप से यही
प्रतिपादित किया गया है कि सहृदय और  गुणवान व्यक्ति
ही अन्य व्यक्तियों के गुणों की सरहाना करते है और अपनी
प्रसन्नता भी व्यक्त करते हैं | )

Rasaalashikharaaseena shatam santu patatrinah,
Tanmajnarirasaamodabindureva  kuhoomukhah.

Rasaala = Mango tree,  Shikharaa _ aaseena.
Shikharaa = on the top.    Aaseenaa = perched.
Shatam = hundred.   Santi = are.   Patatrinah =
birds of various kind.   Tan =  among them.
Manjari = cluster of buds.  Rasa = nectar, juice.
Aamoda =   gladdened by the fragrant smell. 
Binduh = drops   Eva = really.   Kuhoomukhah =
melodious tweet of the cuckoo bird.

i.e.   On the tops of Mango  trees, hundreds of birds
of various types are perched , but only the Cuckoo
bird tweets beautifully and melodiously after enjoying
the nectar and the fragrance of Mango tree laden with
its clusters of flowering buds.

(This Subhasita is also an anyokti (allegory) called
Kokilaanyokti , using the mango tree and the cuckoo
bird as a metaphor.  The underlying idea behind it is
that only noble and virtuous persons appreciate the
qualities in others and express it in a befitting manner.)

Friday, 16 March 2018

पुराणों में वर्णित 'समुद्र मन्थन' का नवीनतम संस्करण |

       आजकल समाचार्पत्रों तथा टीव्ही पर पंजाब् नेशनल बैक में हुई धोखाधडी
की ही चर्चा जोरों पर है | इस संदर्भ में तुलसीकृत रामायण का यह अंश दृष्टव्य है :-
    " जिमि सरिता सागर महुं  जाहीं | जद्द्यपि ताहि कामना नाहिं |
       तिमि सुख संपति बिनहिं बोलायें धरमशील पाहीं जाहिं सुभायें ||
       चूंकि अब कलियुग आ गया है इसका ठीक उलटा हो रहा है | ईमानदार और 
साधारण जनता द्वारा बचाया हुआ धन सरकारी बैकों  रूपी नदियों के द्वारा काले 
धन रूपी समुद्र में पहुंच कर  माल्या , नीरव, कोठारी जैसे  'अधर्मी ' लोगों के पास 
स्वतः  ही चला जा रहा है |    
       इसी से दुःखित हो कर भारतीय रिजर्व बैक के गवर्नर महोदय का एक बयान 
कल के समाचार पत्रों में छपा है, जिस में उनकी पीडा झळकती है कि वे कुछ नहीं 
कर पाये और उन्हें अधिक अधिकारों की आवश्यकता है | हर सरकारी बैक में कई
सरकार द्वारा नियुक्त निदेशक होते हैं | उनकी योग्यता का बखान करना तो सूरज 
को दीपक दिखाने के समान है | रिजर्व  बैक के अधिकारी भी निदेशक नियुक्त होते है |
इलाहाबाद बैक में नियुक्त एक ऐसे ही निदेशक श्री दुबे जी ने इन तथाकथित निदे-
शकों की पोल खोल दी है |  उनका कार्य तो दावतें  खाना और  दलाली करना ,जी हुजूरी 
करना भर ही रह गया है |
       अब रिजर्व बैक के गवर्नर कह रहे हैं कि सारे राष्ट्रीयकृत बैक मिल कर एक समुद्र 
समान हैं और जैसे पुराणों में वर्णित  देवताओं और दानवों ने मिल कर 'समुद्र मन्थन' 
किया था वैसे ही यहां भी इस बैकों के डूबे हुए लाखों करोड रुपयों का मन्थन वे 'मेरु पर्वत'
की तरह मथानी बन कर करेंगे  और उस प्रक्रिया में जो 'हलाहल; विष निकलेगा उसे  वे 
भगवान शिव की तरह वे पीने के लिये प्रस्तुत हैं |
         इस रूपक को हम  यदि आगे बढाये तो मथानी की रस्सी कौन बनेगा , देवता पक्ष  
और दानव पक्ष कौन  होंगे , विष के अतिरिक्त जो 'रत्न' , अश्व, हाथी , लक्ष्मी आदि 
निकलेंगे ,उनका  स्वामित्व किस के पास होगा , अमृत का वितरण कौन करेगा  आदि ? 
इन सारे  प्रश्नों का उत्तर मन्थन करने से पहले देना होगा |  रत्न आदि तो अब क्या निकलेंगे .
वे तो पहले ही 'साफ़्' कर लिये गये होंगे ) कूडा कर्कट ही अधिक निकलेगा | 
         अतः आगामीं महीनों में जनता को  इस नये 'समुद्रमन्थन' को देखने का 'सुअवसर '
प्राप्त होगा |  समाचार चैनलों  की अब पांचों अन्गुलियां घी में और सिर कढाई में रहेगा 
और मन्थन करने वालों की  पैंतरेबाजी  देखने लायक होगी  |
          यदि आप 'समुद्रमन्थन' के बारे में अधिक जानकारी चाहते हैं तो कृपया इन्टरनेट
पर इस  लिंक का उपयोग करें और अपनी ज्ञानवृद्धि  करें :- 
            https://hi.wikipedia.org/wiki/समुद्र_मन्थन 
           समस्त  बैकों के जमा खाता धारकों को  शुभ कामनाओं सहित  |                                                                                  

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


गर्जितबधिरीकृतककुभा  किमनेन कृतं हि  घनेन  |
इयती  चातकचञ्चुपुटी  सापि  भृता  नैव  जलेन   ||
                           - सुभाषित रत्नाकर (शार्ङ्गधर )

भावार्थ -   इन बादलों ने  सारे प्रदेश में भयंकर ध्वनि से गरज गरज कर
लोगों को तो बहरा कर दिया है  परन्तु फिर भी चातक पक्षी  की खुली हुई
चोंच के अन्दर थोडा सा जल डाल कर उसे क्यों नहीं भर दिया है ?

(उपर्युक्त सुभाषित भी एक 'चातकान्योक्ति' है |  इस में भी लाक्षणिक रूप
से एक चातक पक्षी के माध्यम  से यह तथ्य प्रतिपादित किया  गया है कि
शासक वर्ग को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि राज्य द्वारा दी जा रही
सहायता समाज के निम्नतम  और शोषित समाज तक पहुंचनी चाहिये और
मात्र प्रचार कर उसकी इतिश्री नहीं होनी चाहिये | यहां बादल शासकों का और
चातक  शोषित वर्ग का प्रतीक है | )

Garjit-badhireekruta-kakubhaa  kimanena krutam hi ghanena.
Iyatee chaatak-chanchu-putee   saapi  bhrutaa  naiva  jalena.a

Garjita = roaring.    Badhireekruta = made deaf.   Kakubhaa =
various regions of the Earth.    Kimanena = kim + anena.
Kim =   why?     Anena = this.   Krutam = done.   Hi = surely.
Ghanena = by the clouds.    Iyatee = so little.   Chaatak = name
of a bird.     Chanchu = beak.    Putee = cavity created by the
opening of a beak.   Saapi = sa+ api.    Sa - that,     Api - even.
Bhrutaa = filled       Naiva = not, no.     Jalena = with water.

i.e.     These clouds have made people in this region deaf  by
their roaring sound, but why have they not put even a few drops
of water in the cavity of the beak of the thirsty Chatak bird ?

(This Subhashita is also a 'Chatakaanyokti (allegory) . By the use
of a simile of clouds and the Chatak bird, representing the  Rulers
of a country and its poor people respectively , the author has
emphasised that it is the duty of the Rulers to distribute the wealth
equitably and without any pomp among the citizens and should also
ensure that poor people are not neglected and deprived. )

Thursday, 15 March 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


सत्यंसत्यं  मुनेर्वाक्यं  नाSदत्तमुपतिष्ठति   |
अम्बुभिः पूरिता  पृथ्वी चातकस्य  मरुस्थली ||
                     - सुभाषित रत्नाकर (शार्ङ्गधर )

भावार्थ - महान मुनियों का यह कथन पूर्ण सत्य है कि  यदि कोई
वस्तु प्रदान किये जाने पर  भी यदि कोई व्यक्ति उसे नहीं लेता है
तो वह उस वस्तु से वञ्चित ही रहता है | यद्यपि यहपृथ्वी जलाशयों
से भरी पडी है परन्तु एक चातक पक्षी के लिये  तो वह एक मरुस्थल
के समान ही है |

(प्रस्तुत सुभाषित एक "चातकान्योक्ति " है | यह धारणा है कि चातक
पक्षी केवल स्वाति नक्षत्र में हुई वर्षा का जल पीता है और अन्यथा वह
प्यासा ही रह जाता है |  लाक्षणिक रूप से इस सुभाषित का तात्पर्य यह
है  कि इस ससार में  सब कुछ होते हुए भी भाग्यहीन व्यक्ति  उस से
वञ्चित ही रहते हैं, जैसा कि एक अन्य सुभाषित में भी कहा गया है कि -
"भाग्यहीना: न पश्यन्ति बहुरत्ना वसुन्धरा" |)

Satyam-satyam munervaakyam  naadattam-upathishati .
Ambubhih  pooritaa pruthvee  chaatakasya marusthalee.

Satyam = It iss true.   Munervakyam = muneih + vaakyam.
Muneih = of a Sage's    Vaakyam = saying.  Na = adattam+
upatishthati.    Na = not.   Adatta=  accepted.   Upatishthati=
be present, stays.    Ambubhih - water bodies.    Pooritaa=
filled.   Pruthvee = the Earth.    Chatakasya= for the Chatak
bird.    Marusthalee = a desert.

i.e.    The sages have truly said that if a person does not accept
any thing given to him, he continues to remains deprived of it.
Although the Earth is full of water bodies every where , for a
Chatak bird it is just like a desert.

(This Subhashita is a 'Chatakaanyokti' (allegory).  In Sanskrit
literature it is said that the 'Chatak' bird quenches its thirst from
the rain water falling on the Earth during a particular celestial
period and remains thirsty at other times. The underlying idea
behind it is that there are numerous things in this world but the
unlucky persons are not able to see and enjoy them . ) 

Wednesday, 14 March 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अपसरणमेव  शरणं  मौनं  वा  तत्र  राजहंसस्य  |
कटुरटति निकटवर्ती  वाचालष्टिट्टिभो  यत्र        ||
                         - सुभाषित रत्नाकर (शार्ङ्गधर )

भावार्थ - किसी सरोवर में यदि किसी निकटस्थ  स्थान में  टिट्टिभियों
(जल मुर्गियों )का समूह यदि शोर मचा रहा हो तो राजहंसों को या तो
उस स्थान से पलायन  लेना चाहिये  और यदि वहीं शरण लेनी ही पडे तो
फिर मौन धारण कर कर लेना चाहिये |

(प्रस्तुत सुभाषित एक "हंसान्योक्ति'  है |  लाक्षणिक रूप से इस का
तात्पर्य यह है कि अशिक्षित व्यक्तियों के समूह में विद्वान व्यक्तियों
का सम्मान नहीं होता है | उन्हें ऐसी स्थिति में उस स्थान से चला जाना
चाहिये और यदि परिस्थितिवश  रहना ही पडे तो मौन धारण कर लेना
चाहिये | इसी भावना को कवि रहीम ने इस प्रकार व्यक्त किया है :-
"पावस देखि रहीम मन, कोयल साधे मौन | अब दादुर वक्ता भये , हम
को पूछत कौन || )
     
Apasaranameva sharanam maunam vaa tatra raajhansasya.
Katuratati nikatavartee vachaalashtittibho  yatra.

Apasaranam= retreating,     Eva = really.      Sharanam=
take shelter.    Maunam = silence.    Vaa = or.    Tatra= there.
Raajhansasya = of the King Swan's         Katu = displeasing. 
Ratati =yelling.   Nikatvartee =nearby   Vaachaalastittibho =
vaachaalah + ittibhoh.   Vaachaalah=chattering.  Tittibhoh =
spur-winged water hens.    Yatra = where.

i.e.    If in a lake a big group of chattering water hens is creating
a big uproar nearby,  the King Swans should better retreat from
there to some other place, or if they have no alternative and are
compelled to stay there,  they should better maintain silence.

(This Subhashita is a 'Hansaanyokti' (allegory). The underlying
idea is that learned and noble persons should not remain in the
company of illiterate persons and settle somewhere else, and if
they are constrained to stay there, they should maintain silence.
     A poet of Hindi language has also used this theme in a verse
that -  'in the rainy season a Nightingale  (koel) should better keep
mum, because when the frogs are making loud croaking sound
everywhere, who will care to listen to its sweet tweets  ? ' )

Tuesday, 13 March 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


रत्नाकरस्तव पिता  कमले  निवासो
भ्राता  सुधामयतनुः पतिरादिदेवः   |
केनाSपरेण  कमले  बत  शिक्षितानि
सारङ्गभृङ्ग कुटिलानि विचेष्टितानि ||
                             - सुभाषित रत्नाकर (सभा तरंग )

भावार्थ -  ओ देवी लक्ष्मी  !  महान समुद्र तुम्हारे पिता हैं  और तुम
कमल पुष्पों पर विराजती हो, अमृतमय शरीर वाला  चन्द्रमा तुम्हारा
भाई है  तथा देवताओं में श्रेष्ठतम भगवान विष्णु तुम्हारे पतिदेव हैं | 
परन्तु  दुःख  की बात है कि तुम फिर भी विद्वान व्यक्तियों के प्रति
हिरन तथा भ्रमरों के समान कुटिल तथा नीच दृष्टि  से देख कर उनके 
प्रति दुर्व्यवहार क्यों करती हो  ?

(प्रस्तुत सुभाषित भी 'लक्ष्मीस्वभावः ' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है  |
पुराणों के अनुसार चन्द्रमा तथा लक्ष्मी की उत्पत्ति देवताओं तथा दानवों
द्वारा समुद्रमन्थन के कारण हुई |  अतः चन्द्रमा को लक्ष्मी का भाई कहा
गया है |  इस सुभाषित में लक्ष्मी और सरस्वती के आपस में वैर को  लक्ष्मी
द्वारा विद्वान व्यक्तियों के प्रति कुटिल व्यवहार किये जाने के रूप में
चित्रित किया गया है | )

Ratnaakarastava pitaa kamale nivaaso.
Bhraata sudhaamayatanuh patiraadidevah.
Kenaaparena kamale bata  shikshitaani.
Saarangabhrungakutilaani vicheshtitaani.

Ratnaakarastava =Ratnaakarah +  tava.     Ratnaarakarah= the
storehouse of gems ans precious stones i.e. the Ocean.   Tava=
your.    Pitaa = father,     Kamale = lotus flowers.      Nivaaso =
residence.   Bhraataa =brother.      Sudhaamaya= consisting of
'Amruta' , the nectar which gives immortality.   Tanuh = body. 
(reference to the Moon).   Patiraadidevah =Patih + aadidevah.   
Patih = husband.    Aadidevah = the first God i.e.  God vishnu. 
Kenaaparena = kena + aparena.      Kena = by what ?   how ?   
Aparena = in a different way.   Bat = alas ! ( expressing surprise). 
Shikshitaani = learned persons, scholars.    Saarang = a kind of
antelope.   Bhrunga=  large black bees.   kutilaani = deceitfully ,
in a crooked way.    Vicheshtitaani = ill treated.

i.e.     O goddess Lakshmi !   The mighty Ocean is your father,
the Moon full of nectar , is your illustrious brother and  the God
Vishnu, senior most among all Gods, is your husband. 
          Alas !  why you view deceitfully the learned persons like
ordinary antelopes and black bees and ill-treat them ?

(The above Subhashita also deals with the so called enmity of
Lakshmi with Goddess Sarasvati. Here there is a reference of
the  episode of 'Samudra Manthan'  detailed in the scriptures,
according to which Lakshmi  and  the Moon were brought out
from the Ocean, and as such referred to as brother and sister and
Lakshmi was wedded  to God Vishnu.   Using this episode as a
simile, the author has lamented the treatment meted out to learned
persons by the Goddess Lakshmi.)

Monday, 12 March 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


उत्साहसंपन्नमदीर्घसूत्रं  क्रियाविधिज्ञं   व्यसनेष्वसक्तम्  |
शूरं  कृतज्ञं  दृढसौहृदं  च  लक्ष्मीः स्वयं  याति निवासहेतोः  ||
                                          - सुभाषित रत्नाकर (कल्पतरु )
भावार्थ -     जो व्यक्ति उत्साही , शीघ्र कार्य संपन्न करने  वाला,
विभिन्न  कार्यों तथा उनसे संबन्धित नियमों के  ज्ञाता , सभी 
प्रकार के व्यसनों से दूर रहने वाले , शूर, कृतज्ञ, तथा मित्रता
को निभाने वाले होते हैं उनके घरों में देवी लक्ष्मी स्वयं निवास
करने  के लिये चली आती है | (अर्थात वे धनवान होते है )

(प्रस्तुत सुभाषित भी "लक्ष्मीस्वभाव" शीर्षक के अन्तर्गत संकलित
है |  इस में एक धनवान व्यक्ति में क्या गुण  अवश्य होने चाहिये
उनका वर्णन किया गया है |)

Utsaahasampanna-madeerghasootram kriyaavidhigyam
vyasaneshvasaktam.       
Shooram krutagyam drudhasauhrudam cha Lakshmih
svyam yaati nivaasahetoh.

Utsaaha = zeal .    Sampanna = endowed with, full of.
Adeerghasootram = prompt (not slow)   Kriyavidhigyam =
Kriyavidhigyam = a person  well versed in various rules ,
regulation and rituals.    Vyasaneshu = various vices .
Ashaktam =not addicted to.  Shooram =brave.  Krutagyam=
Grateful.     Drudha =firm.   Sauhrudam =friendship.
Cha = and.     Svayam = on her own.    Yaati = goes.
Nivaas = residence    Hetoh = for the purpose of ,

i.e.    Those persons who are endowed with zeal, prompt in
their actions, well versed in various rules, regulations and
rituals, free from vices of all kind, brave,  grateful, and firm
in maintaining , their friendship with others , Goddess Lakshmi
herself takes initiative  to reside in  their homes.

(This Subhashita also deals with 'the mentality of Goddess
Lakshmi' . It describes various qualities which a person must
possess to get the favour of Lakshmi.) 

Sunday, 11 March 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


कुटिला लक्ष्मीर्यत्र  प्रभवति न सरस्वती वसति तत्र  |
प्रायः  श्वश्रूस्नुषयोर्न   दृश्यते  सौहृदं  लोके  ||
                                    - सुभाषित रत्नाकर (स्फुट )

भावार्थ -   जिस स्थान में कुटिल स्वभाव वाली देवी लक्ष्मी प्रभावशाली
स्थिति में होती है , वहां देवी सरस्वती निवास नहीं करती है , क्यों कि
समाज में यह देखा गया  है कि प्रायः एक  सास  और उसकी बहुओं के
बीच में सौहार्द (आदर और प्रेम की भावना) नहीं होती है |

(यह सुभाषित भी  'लक्ष्मीस्वभाव' शीर्षक के अन्तर्गत है | इसमें लक्ष्मी
और सरस्वती (ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी) का आपसी सम्बन्ध सास और
बहू के रूप में  दिखा कर  संस्कृत साहित्य की उस धारणा को पुष्ट किया
है कि लक्ष्मी और सरस्वती में सनातन वैर है , जिस के फलस्वरूप विद्वान
व्यक्ति धनवान नहीं होते है और धनवान व्यक्ति विद्वान नहीं होते हैं | )

Kutilaa  Lakshmiryatra   prabhavati  na Sarasavati vaasati tatra.
Praayah shvashroo-snushayo-rna  drushyate sauhrudam loke.

Kutilaa = crooked.   Lakshmih = Goddess Lakshmi.   Yatra =
where.    Prabhavati = dominates, most powerful.   Na = not.
Sarasvati = the Goddess of knowledge and learning.  Vasati =
resides.   Tatra = there.    Praayah = perhaps.   Shvashroo =
mother-in-law.    Snushayoh = daughters-in-law.   Na = not.
Drushyate = seen.    Sauhrudam = friendship, affection.  Loke=
in ordinary life.

i.e.       In a place where Goddess Lakshmi is in a dominating
position, the Goddess Sarasvati (representing knowledge and
learning) never  resides, because it is generally seen in ordinary
life that the relationship between a mother-in-law and her daughter
-in-law is never affectionate and friendly.

(This Subhashita also  deals with the relationship between Goddess
Lakshmi and Sarasvati,  Here their relationship is shown as between
a mother-in-law and a daughter-in-law , to emphasise the notion in
Sanskrit literature about enmity between Lakshmi and Sarasvati. )

Saturday, 10 March 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


पद्मे  मूढजने  ददासि  द्रविणं  विद्वत्सु किं मत्सरो
नाSहं  मत्सरिणी  न चाSपि  चपला नैवाSस्ति  मूर्खे रतिः |
मूर्ख्रेभ्यो द्रविणं ददामि नितरां  तत्कारणं श्रूयतां
विद्वान्सर्वजनेषु  पूजिततनुर्मूर्खस्य  नाSन्या गतिः    ||
                                     - सुभाषित रत्नाकर (सभा तरंग )

भावार्थ -  ओ  देवी लक्ष्मी !  तुम मूर्ख व्यक्तियों को तो धन संपत्ति प्रदान
करती हो परन्तु विद्वानो को क्या इस लिये प्रदान नहीं करती हो कि वे दुष्ट
होते हैं  ?
             अरे मानव !  न तो में दुष्ट हूं  और न ही चञ्चल स्वभाव की हूं  और
न मुझे मूर्ख व्यक्ति प्रिय हैं |  मूर्खों को मैं क्यों धनवान बनाती हूं इसका कारण
सुनो |  विद्वान व्यक्तियों को  तो सभी लोग पूजते हैं , परन्तु मूर्ख व्यक्तियों
का आदर धनवान होने के अतिरिक्त किसी अन्य कारण से नहीं हो सकता है |

 (प्रस्तुत सुभाषित  'लक्ष्मीस्वभाव ' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है | संस्कृत
साहित्य में यह धारणा है कि विद्वान व्यक्ति धनवान नहीं  होते है तथा धनवान
व्यक्ति विद्वान नहीं होते हैं |  धन संम्पत्ति की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी को 'चञ्चला'
भी कहा जाता है क्यों कि वह किसी भी व्यक्ति के पास सदैव बनी नहीं रहती है |
इसी भावना को इस सुभाषित में व्यक्त गया है |  )

Padme mooadhajane dadaasi dravinam vidvatsu kim matsaraa.
Naaham matsarinee na chaapi chapalaa naivaasti moorkhe ratih.
Moorkhebhyo dravidam dadaami nitaraam tatkaaranam shrooyataam.
Vidvaan-sarvajaneshu poojitatanurmoorkhasya naanyaa gatih.

Padme = another name of Goddess Lakshmi.   Moodhajane = stupid
persons.   Dadaasi = gives.   Dravinam = wealth.   Vidvatsu = learned
pesons,     Kim = why ?    Matsaraa = wicked persons.   Naaham =
Na + aham.   Na= not.   Aham = I (myself)    Matsarinee = a wicked
woman.   Chaapi= cha+api.   Cha = and.   Api - even.   Chapalaa =
fickle minded.    Naivaasti = naiva+asti.    Naiva = no.   Asti =is , am
Moorkhe= stupid person.    Ratih = love, affection.  Nitaraam = alwaays.
Tat= its .   Kaaranam = reason.  Shroyataam = listen.   Vidvaan = learned
person.  Sarvajaneshu = by all people.   Poojita = adored.  Tanuh = person
Naanyaa = na+ anyaa.   Anyaa = another.   Gatih = refuge. means.

i.e.     O Goddess Lakshmi !   You bestow riches to stupid persons, but not
to learned persons.  Is is due to the reason that  you consider learned persons
as wicked persons ?
           Listen my Son !   I am neither wicked and fickle minded  nor do I
love stupid persons.   The reason of my making stupid persons very rich is
that while noble and learned persons are  adored by all people, for stupid
persons there is no means other than being rich for being adored.

(This Suhashita is classified under the category 'the mentality of Goddess
Lakshmi' . In Sanskrit literature there is a notion that learned persons are
never rich and likewise rich persons are never learned.  It is further believed
that  riches do  not remain permanently with any body.  This is the underlying
idea behind this Subhashita.)


Friday, 9 March 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.

नृपस्य चित्तं कृपणस्य वित्तं  मनोरथः दुर्जन मानवानाम्  |
त्रिया चरित्रं पुरुष्यस्य भाग्यं दैवो न जानाति कुतो मनुष्यः  |

भावार्थ -   एक राजा (शासक ) की मानसिकता,  एक कंजूस व्यक्ति की संपत्ति ,
दुष्ट व्यक्तियों की इच्छायें , स्त्रियों के व्यवहार का पूर्वानुमान तथा किसी व्यक्ति
के भाग्य में क्या लिखा है , इन बातों को तो विधाता भी नहीं जानता है , तो भला
एक साधारण मनुष्य  कैसे जान सकता है  ?

(इस सुभाषित में वर्णित व्यक्तियों के स्वभाव की अनिश्चितता  को इस अतिशयोक्ति
 द्वारा व्यक्त किया गया है कि उसका पूर्वानुमान विधाता भी नहीं कर सकता है | )

Nrupasya chittam krupanasya vittam manorathah durjan manavaanaam.
Triyaa charitram purushasya  bhaagyam  daivo na jaanaati kuto manushyah.

Nrupasya = a king's    Chittam = mind.    Krupanasya = a miser's,   Vittam=
wealth.   Manorathah = wishes.   Durjana = wicked person.    Maanavaanaam=
people.    Triya =  a woman.   Charitram = conduct, behaviour.   Purushasya=
a man'.   Bhaagyam = fate.    Daivo = destiny.    Na = not.   Jaanaati = knows.
Kuto = whence ?    Manushyah = A man.

i.e.     Even the Destiny does not know about a king's (or a ruler;s) mentality,
the wealth of a miserly person, about the wishes of  wicked persons, the way
a woman will behave, and what will be the fate of a person.  Then how can an
ordinary person  know about it ?

(In this Subhashita the unpredictable nature of the persons detailed in it has been
outlined through a hyperbole that even the Destiny does not know about it.)




Thursday, 8 March 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


शूरं  त्यजामि  वैधव्यादुदारं  लज्जया  पुनः  |
सापत्न्यात्पण्डितमपि  तस्मात्कृपणमाश्रये  ||
                           - सुभाषित रत्नाकर (स्फुट)

भावार्थ -    धन संपत्ति की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी का कहना है कि
मैं विधवा होने के डर से शूरवीर व्यक्तियों का वरण नहीं करती हूं ,
और उदार हृदय व्यक्तियों के साथ रहने मे मुझे लज्जा आती है (कि
वे कहीं मुझे किसे अन्य व्यक्ति को न दे दें ) तथा एक विवाहित
विद्वान के साथ भी रहना नहीं चाहती हूं | इसी लिये मैं एक कृपण
(कंजूस) व्यक्ति के आश्रय में ही रहती हूं |

(प्रस्तुत सुभाषित  'लक्ष्मीस्वभाव ' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है|
लाक्षणिक रूप से इसका तात्पर्य यह है कि शूर,दानवीर तथा विद्वान
व्यक्ति धनवान नहीं होते है और कृपण व्यक्ति ही धनवान होते है
क्यों कि उनकी प्रवृत्ति ही  धनसंचय  करने  की होती है |)

Shooram tyajaami vaidhavyaadudaaram lajjayaa  punah.
Saapatnyaatpanditamapi  tasmaatkrupanamaashryaye.

Shooram = a warrior.   Tyajaami = I abandon.  Vaidhvyaat =
for the fear of becoming a widow.   Udaaram = liberal, noble.
Lajjayaa = due to shyness or embarrassment.   Punah = again.
Saapatnyaatpanditmapi = saapatnyaat + panditam + api.
Saapatnyaat = along with a wife.   Panditam = a scholar.
Api = even.   Tasmaatkrupanamaashryaye =  tasmaat +krupanam
+ aashryaye.    Tasmat = therefore.   Krupana = a miserly person.
Aashraye = shelter.

i.e.      Lakshmi, the Goddess of riches says that she does not like
to stay with a warrior due to the fear of becoming  a widow, and
with a liberal person to avoid the embarrassment of being passed
on to others .  She also does not like a scholar already having a
wife, and therefore, likes to live with a miserly person.

(This Subhashita has been classified  under the category "The nature
of Lakshmi,the Goddess of riches".The underlying idea behind this
Subhashita is that  brave, liberal and scholarly persons are seldom
rich and only misers store their wealth. )

Wednesday, 7 March 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अन्तःसारविहीनस्य  सहायः किं करिष्यति  |
मलयेSपि  स्थितो  वेणुर्वेणुरेव  न  चन्दनः   ||
          - सुभाषित रत्नाकर (प्रसंग रत्नावली )

भावार्थ -      जिस व्यक्ति में स्वयं अपनी आन्तरिक शक्ति या
सामर्थ्य न  हो उस की सहायता करने से कुछ भी लाभ नहीं  होता
है | उदाहरणार्थ  मलय प्रदेश में चन्दन वृक्ष के वनों में उगे हुए बांस
के वृक्ष बांस के ही  रहते हैं और चन्दन नहीं हो जाते हैं |

(प्रस्तुत सुभाषित 'मूर्ख वर्णनम्'  शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है |
इसका तात्पर्य  यह है कि विद्वान व्यक्तियों के निकट संपर्क में
रहने पर भी मूर्ख व्यक्ति मूर्ख ही रहता है क्यों  कि उसमें आन्तरिक
शक्ति (बुद्धि) का अभाव होता है |

Antahsaaraviheenasya  sahaayah  kim  karishyati.
Malayepi  sthito venurvenureva  na chandanah.

Antahsaara =  inherent qualities.     Viheenasya =
a person not having any thing.   Sahaayah  =  a helper.
Kim = what ?    Karishyati =  will do.    Malayepi =
Malaye + api.   Malaye  = reference to Malaya region
of south India known for its sandalwood forests.
Api = even.   Sthito = existing.   Venurvenureva =
Venuh + venuh +eva.    Venuh = bamboo.  Ive = like
the.   Na = not.    Chandanah = sandalwood.

i.e.     It is of no use to help a person who is devoid of inner
strength and capability, just like the bamboo trees growing
in the Malaya region in a forest of Sandalwood trees remain
as bamboo trees and do not become sandal wood trees.

(This Subhashita is classified as ' the traits of a foolish person' . 
Through the simile of Sandalwood trees grown in Malaya region,
the author has emphasised the fact that even in the company of
learned persons, foolish persons still remain foolish due to lack
of intelligence in them.)

Tuesday, 6 March 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


रात्रौ  जानुर्दिवा  भानुः कृशानुः सन्ध्ययोर्द्वयोः  |
पश्य  शीतं  मयानीतं  जानुभानुकृशानुभिः   ||
                            - सुभाषित रत्नाकर (कल्पतरु)

भावार्थ -   अत्यन्त शीत ऋतु के आगमन पर मैने अपने घुटनों ,सूर्य
तथा अग्नि की सहायता ले कर शीत से अपना बचाव रात्रि में अपने
घुटनों को अपने पेट से लगा कर , दिन में सूर्य के प्रकाश में रह कर तथा
प्रातःकाल  तथा सायंकाल दोनों समय  आग ताप कर किया |

(प्रस्तुत सुभाषित भी 'दारिद्र्यवर्णनम्'  शीर्षक के अन्तर्गत  है | इस में
एक दरिद्र व्यक्ति अपनी व्यथा का वर्णन कर रहा है कि शीतकाल में उसके
पास शीत से बचने के लिये वे साधन नहीं है जो संपन्न लोगों के पास होते हैं
और उसे इन तीन प्राकृतिक साधनों पर ही निर्भर रहना पडता है | )

Raatrau  jaanurdivaa  bhaanuh  krushaanuh sandhyayordvayoh.
Pashya sheetam  mayaa-neetam  Jaanu-bhaaanu-krushaanubhih.

Ratrau =during the night.      Jaanurdivaa = jaanuh  + divaa.
Jaanuh = knee.    Divaa = daytime.    Bhaanuh = the Sun.
Krushaanuh =  fire.    Sandhyayordvayoh = sandhyayoh+ dvayoh.
Sandhyayoh =  Twilights .   Dvayoh = both ( in the morning and
in the evening.    Pashya =  seeing.   Sheetam = cold.    Mayaa=
I ,myself.      Neetam = obtained, adapted.

    With the onset of winter season I protect myself from cold with the
help of my knees, the Sun and the fire, i.e.by crouching (with my knees
touching my breast) during the night , and during day time by basking
in the Sun shine , and by lighting a fire during the morning and evening.

(This Subhashita also deals with poverty.  Here a poor person is telling
his woes during winter season , as he does not have other means for
protecting himself from cold that are available to rich persons.)




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Monday, 5 March 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


परीक्ष्य  सत्कुलं  विद्यां शीलं  शौर्यं  सुरूपता  |
विधिर्ददाति  निपुणः कन्यामिव  दरिद्रता       ||
                    -  सुभाषित रत्नाकर (सभा तरंग )

भावार्थ -      विधि (भाग्य) की कैसी विडम्बना है कि वह  किसी  व्यक्ति
के कुलीन , विद्वान, सच्चरित्र, तथा  शूरवीर होने की भली प्रकार परीक्षा
करने के उपरान्त  एक चतुर कन्या  के समान दरिद्रता उसके पल्ले बांध
देता है |

(उपर्युक्त सुभाषित  भी 'दारिद्र्यवर्णनम्'  शीर्षक से संकलित  है |  सर्वगुण
संपन्न व्यक्तियों का दरिद्र होना उनका दुर्भाग्य की कहा जा सकता है | इसी
तथ्य को इस सुभाषित में व्यक्त किया गया है  | )

Pareekshya  satkulam vidyaam sheelam shauryam  suroopataa.
vidhirdadaati nipunah kanyaamiva  daridrarataa.

Pareekshya = after thoroughly inspecting.   Satkulam= a noble
and good family.    Vidyaam = knowledge.    Sheelam = good
moral conduct.    Shauryam = valour, bravery.   Suroopataa =
beauty.   Vidhirdadaati = vidhih + dadaate.    Vidhi =  destiny.
Dadaati = gives.    Nipunah = an astute person.    kanyaamiva=
kanyaam + iva.      Kanyaam =  a maiden.       Iva = like a.
Daridrataa = poverty.

i.e. It is really an irony of  destiny, that after thoroughly inspecting
the family lineage, knowledge, moral character and valour of a
person, it bestows upon him poverty like an astute maiden.

(This subhashita is also classified as ' Poverty', highlighting the bitter
truth that highly accomplished persons have to face poverty during
their lifetime, which is nothing but a quirk of fate or destiny.)



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Sunday, 4 March 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


दारिद्र्य भो त्वं परमं विवेकि गुणाSधिके  पुंसि  सदानुरक्तम्  |
विद्याविहीने  गुणवर्जिते  च  मुहूर्तमात्रं  न  रतिं  करोषि        ||     
                                            - सुभाषित रत्नाकर (सभातरंग )
भावार्थ -   ओ दरिद्रता  !  तुम  बहुत ही विवेकपूर्ण (समझदार) हो और इसी लिये
तुम्हें सदैव ऐसे व्यक्ति ही प्रिय होते हैं जो बहुत गुणवान होते हैं परन्तु  जो व्यक्ति
विद्याविहीन और गुणहीन होते है उन को तुम एक क्षण मात्र के लिये भी प्रेम नहीं
करती हो |

(अपवाद स्वरूप ही कोई विद्वान और गुणी व्यक्ति जिन्हें सरस्वतीपुत्र  भी कहा जाता
है धनवान  पाये जाते हैं और अधिकतर दरिद्र ही रहते हैं | इसके विपरीत  धनवान व्यक्ति
सामान्यतः अशिक्षित या कम शिक्षित  पाये जाते हैं | संस्कृत साहित्य में इसे लक्ष्मी और
सरस्वती के आपस में वैर के रूप में चित्रित क्या जाता है |  इस सुभाषित में इसी भावना को
व्याज स्तुति के रूप में दरिद्रता की प्रशंसा करते हुए व्यक्त किया गया है |)

Daaridrya bho tvam paramam vivekee gunaadhike pumsi sadaanuraktam.
Vidyaviheene gunavrjite  cha muhoortamaatram na ratim karoshi.

Daaridrya = poverty.   Bho = O (addressing somebody.   Tvam = you.
Paramam = very, extremely.   Vivekee = discreet, judicious.  Gunaadhike=
gunaa+adhike.   Gunaa = virtues.   Adhike = more, extraordinary.   Pumsi =
persons.   Sadaanuraktam = sadaa +anuraktam.   Sadaa = a;lways.  Amrakta=
fond of, beloved.    Vidyaa = knowledge,    Viheena = without.  Gunavarjite=
without any virtues or qualities.   Cha = and.    Muhoortamaatram = even for
a moment.   Na = not.   Ratim =love, affection.   Karoshi = does

i.e.    O Poverty !   You are very judicious in selecting only extraordinarily
virtuous persons to bless them with your love, and never, even for a moment,
like those persons who are illiterate  and without any virtues.

(There is a notion that very rich persons are seldom learned and virtuous, and
likewise very learned and virtuous persons are seldom rich.  In Sanskrit this is
depicted as ennmity between Sarasvati (the goddess of learning) and Lakshmi
(the goddess of riches).  The above Subhashita depicts this nicely as an irony
i.e. censuring in the guise of praising .)

Saturday, 3 March 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


तृष्णां  छिन्धि  भज क्षमां  जहि  मदं  पापे  रतिं  मा कृथाः  |
सत्यम्  ब्रूह्यनुपाहि  साधुपदवीं  सेवस्व  विद्वज्जनान्     |
मान्यान्मानय विद्विषोSप्यनुनय  ह्याछादय स्वान्गुणा-
न्कीर्तिं  पालय  दुःखिते  कुरु  दयामेतत्सतां  लक्षणम्         ||
                                         - सुभाषित रत्नाकर (शार्ङ्गधर )

भावार्थ -     लोभी न होना,  क्षमावान् , अहंकारी और मद्यप (शराबी) न होना .
 पापकर्मों में कभी भी  लिप्त न रहना , सदा सच  बोलना , साधु संतों के द्वारा
प्रदर्शित सन्मार्ग  का ही अनुसरण करना , विद्वान व्यक्तियों की  सेवा में मन
लगाना, सम्मानित व्यक्तियों का उचित सम्मान करना, अपने से द्वेष करने
वाले व्यक्तियों से भी समझौता करने की भावना, अपने गुणों और प्रसिद्धि को
छुपाये रखने की प्रवृत्ति.  दुःखी व्यक्तियों पर दया कर उनकी सहायता करना ,
ये  सभी शुभ लक्षण महान् और सज्जन व्यक्तियों में पाये जाते हैं |

Trushnaam chindhi bhaja kshamaam jahi  madam paape ratim maa kruthaah.
Satyam broohyanupaahi  saadhu-padaveem sevasva vidvajjanaan,
Maanyaanmaanaya vidvishopyanunaya hyaacchadaya svaangunaa-
nkeertim paalaya duhkhite kuru dayaametatsataam lakshanam.

Trushnaam =  greed.    Chindhi = destroy.   Bhaja = rever.   Kshamaa =
forgiveness.    Jahi = hit, strike at.   Madam = pride, passion,intoxication.
Paape = sins.   Ratim = love, pleasure.    maa = not.   Kuru = do.    Satyam =
the truth.    Broohyanupaahi = broohi +anupaaahi.    Broohi = say, tell.
Anupaahi = uninterrupted.   Saadhu =  noble persons.  Padaveem= road,path.
Sevasva =do service.     Vidvajjanaah = learned persons.     Maanyaan =
honouraable persons.   Manaya = honour them .  Vidvisho+ api + anunaya.
Visdvisho =hatred.   Api = even.   Anunayah = appeasing, conciliation.
Hi +aachaadaya.   Hi = surely.   Aachaadaya = hiding, covering.   Svaan-
gunaan = one's own virtues.  keertim=  fame.   Paalaya =looking after.
Duhkhite = grieved persons.   Kuru = do.   Dayaam = mercy, pity.  Etat =
these.   Sataam = virtuous persons.   Lakshanam = symptoms, indications.+

i.e.   Not greedy at all ,  forgiving in nature, without pride, passion and not
addicted to intoxication, never indulging in sinful deeds,  always truthful,
follower of  the righteous path shown by our sages , always remaining in the
company and service of learned persons ,.giving due respect to honourable
persons, always ready for conciliation with the opponents,  hiding his own
fame and virtues, being kind towards grieving persons and helping them ,
all these virtues are symptomatic of noble and virtuous persons.

Friday, 2 March 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


रोहणं सूक्तिरत्नानां वन्दे वृन्दं विपश्चिताम्  |
यन्मध्यपतितो नीचः काचोप्युच्चैर्महीयते *  ||
* (पाठान्तर 'मणीयते )       -सुभाषित रत्नाकर (नल चम्पू) 
                                 

भावार्थ -   विद्वान व्यक्तियों का एक समूह  उनके द्वारा रचित रत्नों  के समान
सुन्दर और  मूल्यवान  सूक्तियों (काव्य) के कारण समाज में वन्दित होता है तथा
उच्च स्थान प्राप्त करता है |   उनके बीच में यदि कोई निम्न स्तर का साधारण
व्यक्ति भी होता है तो वह भी उसी प्रकार सम्मानित हो जाता है जिस प्रकार रत्नों
के मध्य में कांच का बना हुआ नकली रत्न भी सम्मानित हो जाता है |

Rohanam sooktiratnaanaam vande vrundam vipashchitam.
Yanmadhyapatito neechah kaachopyucchairmaheeyate.

Rohanam = act of ascending, acquiring high status.  Sookti =
beautiful verse.    Ratnaanaam = jewels.   Vande = praised.
Vrundam = a group.     Vipashchitam = learned persons.
Yanmadhyapatito = yat +madhya+ patito.   Yat = that.
Madhya = in the middle.   Patito = fallen.   Neechah = lowly,
mean.   Kaachopyucchairmaheeyate = kaacho+api+ ucchaih+
maheeyate.  Kaacho=ordinary glass.   Api=even.   Ucchaih =
high.    Maheeyate = honoured, highly acclaimed.

i.e.    A group of learned persons (poets) is given a high status
in the society and is also praised and  honoured for their verses
which are like beautiful  precious gems.   If  there is a lowly
person among them, he too  also gets the honour , just like an
artificial gem  made of ordinary glass mixed among real gems
is treated liked a real gem.


Thursday, 1 March 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


आनन्दमृगदावाSग्नि: शीलशाखिमदद्विपः  |
ज्ञानदीपमहावायुरयं   खलसमागमः             ||
                      - सुभाषित रत्नाकर (कल्पतरु)

भावार्थ -   एक दुष्ट और नीच व्यक्ति की संगति या  उस से
मुठभेड होने से सज्जन व्यक्तियों की स्थिति ऐसी हो जाती है
जैसे कि वन में आनन्दपूर्वक विचरण कर रहे एक मृग की वन
में भयंकर आग लग जाने पर हो जाती है, उनकी पवित्रता और
शील उसी  प्रकार नष्ट हो जाता है जिस प्रकार एक वृक्ष की शाखायें
एक मदमस्त हाथी द्वारा तोड दिये जाने पर,  तथा  जिस प्रकार
तेज वायु  के झोंकों से दीपक बुझ जाता है उसी प्रकार उनका ज्ञान
और विवेक भी नष्ट हो जाता है |

(प्रस्तुत सुभाषित भी "दुर्जननिन्दा" शीर्षक अन्तर्गत संकलित है |)

Ananda-mruga-daavaagnih  sheela-shaakhi-madadvipah.
Gyaana-deepa-mahaavaayu-rayam  khala-samaagamah.

Ananda = happiness, pleasure.   Mruga = antelope, a deer.
Daavaagni = fire in a forest.    Sheela = piety, integrity.
Shaakhi = branches of a tree.    Madadvipa = a ruttish or
a furious elephant.    Gyaana = knowledge,    Deep = lamp.
Mahaavaayu = tempestuous wind.    Rayam = swift.
Khala= a wicked person.   Samaagamah = association or
an encounter.

i.e.   An association or an encounter of noble persons with
wicked persons results in a situation just like that of an antelope
happily grazing in a forest suddenly being surrounded by a big
fire in the forest,  or like the branches of a tree being broken by
a ruttish rogue elephant, and their knowledge and wisdom is lost
or is in danger just like a lighted lamp facing a tempestuous wind.

(This Subhashita is also classified  under the category 'censuring
the wicked persons' .)