Saturday, 30 June 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


तादृशी  जायते  बुद्धिर्व्यवसायोSपि  तादृशः  |
सहायास्तादृशा  एव  यादृशी  भवितव्यता    ||
                                   - चाणक्य नीति (६/६)
भावार्थ -    जो कुछ भी किसी व्यक्ति के भाग्य में  होता
है उसी के  अनुसार उसकी बुद्धि (मानसिकता)  हो जाती
है तथा व्यवसाय भी तदनुसार हो जाता है  और वैसे  ही
सहायक (अच्छे या बुरे )भी उसे मिल जाते हैं |
(इस सुभाषित को तुलसीकृत रामायण में  भी  राजा प्रतापभानु 
के प्रसंग में इस प्रकार प्रयुक्त किया गया है :-
  ' तुलसी जसि भवितव्यता तैसी मिलइ  सहाइ  | 
    आपुनु  आवइ  ताहि पहिं ताहि तहां लै  जाइ  || (दोहा १५९ -ख )
राजा द्वारा अपने शत्रु को एक तपस्वी साधु  समझ कर उसके
ऊपर विश्वास करने  के कारण उसका सारा कुल नष्ट हो गया
और राज्य भी छिन गया  था | )
 
Taadrushee jaayate buddhirvyavasaayopi taadrushah.
Sahaayaastaadrushaa eva  yadrushee bhavitavyataa.

Taadrushee = accordingly.  Jaayate = becomes, happens.
Buddhih +vyavasaayo + api,     Buddhih =  intuition,
perception.    Vyavasaayo = business. vocation.   Api =
even.    Sahaayaah + taadrushaa.    Sahaayaah= helpers.
Eva = also.   Yaadrushee = as is.   Bhavitavyata = fate,
destiny.

i.e.      Whatever is  destined for a person,  his perception ,
business or vocation  takes shape accordingly and he also
gets  (good or bad) advice or help from others .

(There is an episode of King Pratap Bhanu in Ramaayana
by Tulasidas corroborating the above Subhashita. The entire
family of the king was killed and his kingdom was conquered
only because he acted according to the advice of his enemy
in the disguise of a sage whom he met in a forest. )

Friday, 29 June 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


भस्मना  शुद्ध्यते  कांस्यं  ताम्रमम्लेन  शुद्ध्यति   |
रजसा  शुद्ध्यते  नारी  नदी  वेगेन  शुद्ध्यति       ||      शु द्
                                       - चणक्य नीति (६/३)

भावार्थ -     कांसा  धातु  राख द्वारा रगडे जाने से शुद्ध हो जाती है
तथा तांबा किसी अम्ल (तेजाब) द्वारा रगडे  जाने से शुद्ध हो जाता
है |  स्त्रियां रजस्वला हो जाने पर शुद्ध हो जाती हैं तथा एक नदी वेग
पूर्वक जलप्रवाहित होने से (बाढ आने से ) शुद्ध हो जाती है |

Bhasmanaa shudhyate kaamsyam taamramamlena shudhyati.d
Rajasaa shudhyate naaree nadee vegena shudhyati.

Bhasmanaa = by the use of ash.    Shudhyate = is cleansed. 
Kaamsyam = bronze metal.   Taamram + amlena.  Taamram =
copper.  Amlena = by the use of acid.   Rajasaa = by the periodic
menstrual excretion .   Naaree = a woman.   Nadee = a river.
Vegena = by the velocity of its water (during a flood).

i.e.  Bronze metal  can be cleansed by rubbing it with ash, and
copper is cleansed by rubbing it with an acid.   Womenfolk get 
cleansedby their periodic menstrual excretion, and a river gets
cleansed (during a flood)  by the fast flow of water in it .

Thursday, 28 June 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


पक्षिणः काकश्चण्डालः  पशूनां  चैव  कुक्कुरः |
मुनीनां  पापश्चण्डालः सर्वचाण्डाल  निन्दकः  ||
                                     - चाणक्य नीति (६/२)

भावार्थ -   पक्षियों में कव्वा सबसे नीच प्राणी है और वैसे ही पशुओं
में कुत्ता नीच है |   मुनियों (तपस्वियों ) में पापकर्मों मे लिप्त रहने
वाले  व्यक्ति , तथा वे सभी  व्यक्ति जो अन्य व्यक्तियों  की विना
किसी कारण के निन्दा करते हैं वे भी नीच होते हैं |

( वर्तमान संदर्भ में कव्वे तथा कुत्ते नीच  प्राणियों  की श्रेणी में नहीं आते
हैं और इसके विपरीत कुत्ता मनुष्य का सबसे अच्छा मित्र कहलाता है और
कव्वे को पर्यावरण को स्वच्छ करने  वाला माना जाता है |   अतएव  इस
सुभाषित को तदनुसार ही लिया जाय |)

Pakshinah kaakaashchandaalah pashoonaam chaiva kukkurah.
Muneenaam paapashchandaalah  sarvachaandaal  nindakah.

Pakshinaam = among the birds.   Kaakah +chandalah.   Kaakah=
a crow.   Chandaalah = outcast.    Pashoonaam = among the animals.
Chaiva = similarly.    Kukkurah = a dog.   Munneenaam = among
the ascetic.   Paapah + chandaalah.   Paapah = evil, wicked person.
Sarva = every.    Chaandaala = outcast.       Nindakah = an abusive
person.

i.e.  Among the birds a crow is considered as an outcast and likewise
among the animals a dog is considered as an outcast. Among  the
ascetics, one who is involved in evil deeds is an outcast and every
persons who abuse other persons without any reason is an outcast.

(In the present context crows and dogs are not considered as outcast.
On the other hand crows are considered as Nature' scavengers and
protector of environment,and the dog as the most faithful friend of
the man.  This Subhashita may please be treated accordingly . )

Wednesday, 27 June 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


राजपत्नी  गुरोः  पत्नी  मित्रपत्नी  तथैव  च  |
पत्नीमाता स्वमाता च पञ्चैताः मातर: स्मृताः ||
                                    - चाणक्य नीति (५/२२ )

भावार्थ -   राजा की  पत्नी, अपने गुरु की पत्नी, अपने
मित्र की पत्नी, तथा उसी प्रकार अपनी पत्नी की माता
(सास) और  स्वयं अपनी माता , इन पांचों को सामाजिक 
मान्यता के अनुसार माता के समान ही सम्मान प्राप्त है |

Raajapatnee  guroh  patne  mitrapatnee tathaiva  cha.
Patneemaataa  svamaataa cha  panchaitaah maatarah
Smrutaah.

Raajapatnee = Queen (King's  wife)   Guroh = Teacher's.
Patnee = wife.     Mitrapatnee = a friend 's  wife.
Tathaiva = similarly.   Cha = and.    Pattnee maataa= wife's
mother, mother-in-law.   Svamaataa = one's own mother.
Panchaitaaah = these five.    Maatarah  =  mothers.
Smrutaah = enjoined by the traditional law or usage.

i.e.     The King's wife, the Teacher's wife, a friend's  wife,
one's own mother and wife's mother (mother-in-law), all
these five categories of women are termed as a mother by
the traditional usage and are honoured accordingly.


Tuesday, 26 June 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


चला  लक्ष्मीश्चला:  प्राणाश्चले  जीवितमन्दिरे  |
चलाचले  च  संसारे  धर्म  एको  हि  निश्चलः      ||
                                     - चाणक्य नीति (५/२० )

भावार्थ -   मानव द्वारा अर्जित धन-संपत्ति अस्थायी  और नष्ट
होने वाली होती है  तथा उसके शरीर रूपी मन्दिर में स्थित प्राण
शक्ति जो उसे जीवित रखती है , वह भी अस्थायी  है ओर कभी भी
नष्ट हो  सकती  है |  यह  सारा संसार ही अस्थायी  है और अकेला
धर्म ( सद् आचरण और तत्सम्बन्धी नियमों का पालन करना )
ही अपरिवर्तनीय है |

Chalaa lakshmeeshchalaah  praanaashchale  jeevitamandire.
Chalaachale  cha sansaare  dharma  eko  hi nishchalah.

Chalaa = unsteady, perishable.    Lakshmeeh +  chalaa.
Lakshmeeeh = wealth personified as Goddess Lakshmi.
Praanaah + chale.    Praanaah = life.    Chale = unsteady.
Jeevita = alive.   Mandire = temple ( an indirect  reference
to the human body )   Chalaachale = unsteady.  Cha =.and.
Sansaare = worldly existence.    Dharma= propriety of
conduct, righteousness.    Eko = singly.   Hi = surely.
Nishchalaa = invariable, unchangeable.

i.e.    Wealth acquired by a person is always unsteady and
perishable, and so also the life force enshrined in human body.
All worldly existence is also perishable, but surely only the
'Dharma' (religious austerity and righteousness) is invariable.

Monday, 25 June 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


नास्ति  कामसमो  व्याधिर्नास्ति  मोहसमो   रिपुः  |
नास्ति  कोपसमो   वह्निर्नास्ति  ज्ञानात्परं सुखम् ||
                                        - चाणक्य नीति ( ५/१२)

भावार्थ - अदम्य कामवासना के समान (हानिकार) और कोई व्याधि
नहीं होती है तथा मोह ( किसी वस्तु या व्यक्ति को प्राप्त करने की
अदम्य इच्छा ) के समान और कोई शत्रु नहीं होता है |  क्रोध के समान 
जला देने वाली और हानिकर और कोई अन्य अग्नि नहीं होती है तथा 
ज्ञानप्राप्ति के सुख से बढ कर अन्य कोई सुख नहीं होता है |

(मानव स्वभाव को प्रभावित करने वाली काम, क्रोध तथा मोह की
प्रवृत्तियों की तुलना इस सुभाषित में क्रमशः एक व्याधि,अग्नि और
शत्रु से की गयी है  तथा यह प्रतिपादित किया गया है कि ये प्रवृत्तियां
और भी अधिक घातक हैं |)

Naasti kaama-samo vyaadhirnaasti moha-samo ripuh .
Naasti kopa-samo  vahnirnaasti gyaanaat-param sukham.

Naasti =non-existence.    Kaama = sexual urge.    Samo=
equal to.  Vyaadhirnaasti =vyaadhih +naasti,   Vyaadhih=
disease, sickness.  Moha =infatuation, delusion.  Ripuh=
enemy.    Kope = anger, rage.   Vahnih +naasti,   Vahnih=
fire.    Gyaanaat +param.   Gyaanaat =higher  knowledge.
Param = absolute, better than.    Sukham = happiness.

i.e.    There is no other harmful disease equal to unbridled
sexual urge, and no enemy equal to infatuation and delusion.
There is no other fire equal to the uncontrolled anger in a
person and no happiness is better than the happiness acquired
through higher knowledge.

(The three tendencies of human mind namely sexual urge, anger
and infatuation have been described in this Subhashita as more
harmful than  a disease, a  fire and an enemy respectively.)

Sunday, 24 June 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.

नराणां  नापितो  धूर्तः  पक्षिणां   चैव  वायसः |
चतुष्पदं श्रगालस्तु स्त्रीणां धूर्ता च  मालिनी  ||
                                 - चाणक्य नीति (५/२१))

भावार्थ -  पुरुषों में नाई धूर्त (चालाक) होता है और उसी प्रकार पक्षियों
में कव्वा  धूर्त  होता है |  चौपायों  में  सियार (श्रगाल ) धूर्त होता है तथा
स्त्रियों में मालिन (पुष्प और मालायें बेचने वाली ) धूर्त होती है |

Naranaam  naapito  dhoortha pakshinaam chaiva vaayasah.
Chatushpadam shragaalastu  streenaam dhoortaa cha Maalinee.

Naranaam = among the men.   Naapito = a barber.   Dhoortah=
cunning, crafty.    Pakshinaam =among the birds.   Chaiva =
Cha + iva.   Cha = and.    Iva = similarly.    Vaayasah = a crow.
Chatushpadaam = among four legged animals .  Shragaalah + tu.
Shragaalah =a fox.   Tu =and .      Streenaam= among  women.
Dhoortaa = cunning.   Maalinee = wife of a gardener or a florist.

i.e.     Among men a barber is considered to be very cunning and
similarly among birds a crow is considered to be cunning. Among
the four legged animals a fox is considered to be  very cunning, and
among women the wife of a gardener or a florist is considered to be
cunning.




         -

Saturday, 23 June 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


दारिद्र्यनाशनं दानं  शीलं दुर्गति नाशनम्   |
अज्ञाननाशिनी प्रज्ञा  भावना भयनाशिनी   ||
                          - चाणक्य नीति  ( ५/१० )

भावार्थ -  दान से दरिद्रता का नाश हो जाता है तथा शील (सच्चरित्रता)
से  दुःखों का नाश हो जाता है | बुद्धिमत्ता से अज्ञान का नाश हो जाता
है तथा  सद्विचारों पर  दृढ रहने  से भय का नाश हो जाता है |

Daaridrya-naaashanam daanam sheelam durgati naashanam.
Agyaana-naashinee  pragyaa  bhaavanaa  bhaya-naashinee,

Daaridrya = poverty.   Naashanam =destruction, removal.
Daanam = donation, giving away as charity.     Sheelam  =
good character, virtues.   Durgati = distress.     Agyaana=
ignorance.     Pragyaa =  Intelligence.   Bhaavanaa = right
conception or notion.    Bhaya = fear.   Nashinee = remover,
destroyer.

i.e.    Giving money and wealth as charity tends to remove
poverty, and  having good character and virtues  removes
distress.  Intelligence destroys ignorance, and having a firm
and  right conception destroys the element of fear.



Friday, 22 June 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


वित्तेन  रक्ष्यते  धर्मो  विद्या  योगेन  रक्ष्यते  |
मृदुना रक्ष्यते  भूपः  सत्स्त्रियां  रक्ष्यते गृहम्   ||
                                     -  चाणक्य नीति (५/९ )

भावार्थ -    धर्म की रक्षा धन के सदुपयोग से ही होती है तथा विद्या
की रक्षा उसके सतत उपयोग से होती है |  एक राजा(शासक) की रक्षा
(सेवा) नम्रतापूर्वक करनी चाहिये तथा एक घर (परिवार)की रक्षा उस
की साध्वी स्त्रियों के द्वारा ही होती है |

Vittena rakshyate  dharmo  Vidyaa yogena  rakshyate.
Mrudunaa rakshyate  bhoopah  satstriyaa rakshyate  gruham.

Vittena = by the wealth.   Rakshyate = is protected.   Dharmo=
the  Religion.   Vidyaa =knowledge.   Yogena =by application.
Mrudunaa =  gently.    Bhoopah= a King, a ruler.   satstriyaa=
Sat + striyaam.    Sat =  noble.     Striyam = women.     Gruham =
home.

i.e.    The religion gets protected by charitable use of wealth ,
and knowledge gets protected by its continuous use.  A king
must be  protected (served) very politely and gently, and  a
home gets protection  by its virtuous women family members.
             





Thursday, 21 June 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अभ्यासाद्धार्यते  विद्या  कुलं शीलेन  धार्यते   |
गुणेन  ज्ञायते  त्वार्य:  कोपो  नेत्रेण  गम्यते   ||
                                  - चाणक्य नीति (५/८ )
भावार्थ  -  सतत  अभ्यास  करने से ही सीखी हुई  विद्या के ऊपर
अधिकार बना रहता है  तथा अच्छे चरित्र और गुणों से युक्त सदस्यों
से एक परिवार स्थायी और समृद्ध रहता है |  लेकिन अपने गुणों के
कारण ही  कोई व्यक्ति समाज में  प्रसिद्धि और आदर प्राप्त करता है
तथा  कोई  व्यक्ति क्रोधित है या नहीं यह उसके नेत्रों को देख कर ही
ज्ञात हो जाता है |

Abhyaasaaddhaaryate  vidyaa kulam sheelena dhaaryate.
Gunena gyaayate  tvaaryah  kopo  netrena  gamyate.

Abhyaasaat + dhaaryate.    Abhyaasaat = by regularly
practicing.   Dhaaryate = retained. held.   Vidyaa= knowledge.
Kulam = family .   Sheelena= good character, virtues.
Gunena = by the virtues.   Gyayate = is known.   Tvsaaryah=
tu+ Aaryah.   Tu = but.    Aaryah = a honourable person.
Kopo = anger.    Netrena = by the eyes.         Gamyate= meant,
is perceptible,
only
i.e.      A person can retain his knowledge of the subjects learnt
by him only by regular practise, and  the stability of a family can
be retained only by the good character and virtues of its members.
But only a virtuous person is termed as honourable by the society,
and whether a person is angry or not is perceptible by looking at
his eyes.


Wednesday, 20 June 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


तावद्भयेषु  भेतव्यं  यावद्भयमनागतम्  |
आगतं  तु  भयं वीक्ष्य प्रहर्तव्यमशङ्कया  ||
                              - चाणक्य नीति (५/३ )

भावार्थ -   भय की परिस्थितियों से तब तक ही भयभीत होना
चाहिये जब तक कि वह  उत्पन्न  नहीं हो जाती है |  और जब
कभी ऐसी स्थिति उत्पन्न हो  ही जाय तो फिर  बिना किसी
प्रकार की शङ्का और भय के उसका मुकाबला करना  चाहिये |

Taavadbhayeshu bhetavyam  yaavadbhayamanaagatam.
Aagatam tu bhayam  veeekshya prahartavyamashankayaa.

Taavat = so long.   Bhayeshu = to the fear.   Bhetavyam =
to be feared.    Yaavat +bhayam+ anaagatam.    Yaavat =
until.    Bhayam = fear, dread.     Anaagatm = not arrived.
Aagatam =  arrived.   Tu = but.    Veekshya = on seeing.
Prahartavyam + ashankayaa.    Prahartavyam = to be fought
or attacked.    Ashankayaa = without any doubt or fear.

i.e.  One should be afraid of the situations causing fear so long
they do not arrive. But once such a situation of fear is there, it
should be fought without any fear or doubt.


       

Tuesday, 19 June 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


यथा चतुर्भिः कनकं परीक्ष्यते निघर्षणच्छेदनतापताडनैः |
तथा चतुर्भिः पुरुषः परीक्ष्यते त्यागेन शीलेन गुणेन कर्मणा ||
                                                     - चाणक्य नीति  ( ५/२)

भावार्थ -  जिस प्रकार स्वर्ण की गुणवत्ता की परीक्षा करने
के लिये  चार विधियां (१) कसौटी पर रगडना (२) काटना (३)
आग पर तपाना तथा (४) हथौडी से पीटना हैं, उसी प्रकार एक
पुरुष की परीक्षा भी चार प्रकार से  (१) उसके अन्दर त्याग की
की भावना (२) उत्तम चरित्र (३) गुणों तथा (४) उसके द्वारा
किये गये  शुभ कर्मों  के द्वारा की जाती है |

Yathaa chaturbhih kanakam pareekshyate nigharshana-
-cchedana-taapa taadanaih.
Tathaa chaturbhih purushah pareekshyate  tyaagena
sheelena gunena karmanaa.

Yathaa = for instance.     Chaturbhih = in four ways.
 Kanakam =  Gold.   Pareekshyate = is subjected to
tests.    Nigharshana =rubbing.    Chedan = cutting.
Taapa = heating.    Taadanaih = hitting.   Tathaa = in
the same manner.    Purushah = a person.   Tyagena=
by sacrifice.   Sheelena = good character.  Gunena =
virtues.    Karmanaa = by (good) deeds.

i.e.    For instance the purity of Gold is tested by four
methods, namely (i) by rubbing it on a touch stone, (ii)
by cutting it into pieces, (iii) by heating it and  (iv) by
beating it, in the same manner the calibre of a person is
also tested by four methods, namely (i) by the instinct of
sacrifice in him (ii) by his character  (iii)  by his virtues,
and (iv) by his  good deeds.

Monday, 18 June 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


इन्द्रियाणि  च  संयम्य बकवत्पण्डितो  नरः  |
देशकालबलं  ज्ञात्वा  सर्वकार्याणि  साधयेत्   ||
                                 - चाणक्य नीति (४/१८ )

भावार्थ -    एक विद्वान व्यक्ति को अपनी सभी कर्मेन्द्रियों के
ऊपर नियन्त्रण रखते हुए, जल में मछली पकडते हुए एक बगुले
की जैसी एकाग्रता से, तथा देश की वर्तमान परिस्थिति का  सही
आकलन  करने के पश्चात ही अपने सभी कार्यों को करना चाहिये |

Indriyaani  cha smyamya  bakavat-pandito  narah .
Desha-kaala-balam  gyaatvaa  sarva-kaaryaani  saadhayet.

Indriyaani = all sensory organs.   cha = and.   Smyamya =
to be restrained or subdued.    Bakavat = like a crane bird.
Pandito - learned.    Narah = a person.  Desha-kaal = place
and time    Balam =  power.    Gyaatvaa = intelligently
assessing.    Sarvaa = all.    Kaaryaani = activities, works.
Saadhayet = accomplish, achieve.

i.e.  A learned person should  accomplish all his tasks by having
full control over his sensory organs, and  paying full  attention to
them like that of a crane bird while catching fish, and after duly
assessing the prevailing situation in his Country.
  

Sunday, 17 June 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अपुत्रस्य गृहं शून्यं  दिशः शून्यास्त्वबान्धवाः  |
मूर्खस्य  हृदयं  शून्यं  सर्वशून्या  दरिद्रता        ||
                                - चाणक्य नीति  ( ४/१४ )

भावार्थ -   एक संतानहीन व्यक्ति का घर शून्य के समान (चहल पहल
से रहित) होता है तथा जिस व्यक्ति के स्वजन और बान्धव नहीं होते
हैं उसके लिये  चारों ओर रिक्तता (अकेलापन) ही रहती है |   एक मूर्ख
का हृदय ही शून्य (संवेदना रहित) होता है तथा दरिद्रता के कारण सर्वत्र
रिक्तता ही रिक्तता व्याप्त रहती है |

Aputrasya gruham shoonyam dishah shoonyastvabaandhavaah.
Moorkhasya  hrudayam shoonyam  sarvashoonyaa daridrataa,

Aputrasya = a person not having any children.   Gruham =  home.
Shoonyam = empty place, void.   Dishah =directions.  Shoonyah +
tu+abaandhavaah.    Tu = and, but.    Abaandhavaah = having no
relatives, lone persons.       Moorkhasya = a foolish person's .
Hrudayam = heart.     Sarva= all pervading.   Daridrataa = poverty.

i.e.    The home of a person not having any children is like  a void
(empty place) and for a lone person there is void in all directions.
The heart of a foolish person is also like a void  (insensitive), and
poverty is the all pervading void.

Saturday, 16 June 2018

आज का सुभाषित / Today''s Subhashita.


त्यजेद्धर्मं  दयाहीनं  विद्याहीनं गुरुं त्यजेत्  |
त्यजेत्क्रोधमुखी भार्या  निःस्नेहान्बान्धावास्त्यजेत ||
                                            - चाणक्यनीति (४/१६

भावार्थ -  जिस  धर्म में दया और करुणा की भावना न हो उसे त्याग
देना ही उचित है तथा जो गुरु स्वयं  विद्वान न हो उसे भी त्याग देना
चाहिये |  सदैव क्रोधित रहनी वाली पत्नी का तथा ऐसे बन्धु बान्धवों
को भी त्याग  देना चाहिये जो तुमसे स्नेह नहीं करते हैं  |

Tyajeddharmam dayaaheenam vidyaaheenam guraum tyajet.
Tyajetkrodhamukhi  bhaaryaa  nihsnehaanbaandhavaastyajet.

Tyajet = leave, get rid of.     Dharmam = a Religion.     Dayaa=
mercy,    Heenam = without.     Vidyaa = knowledge.    Gurum=
a teacajether.   Krodhamukhi = angry faced.   Bhaaryaa =wife.
Nih + snehat+ baandhavaah + tyajet     Nih =without, bereft of
Snehaat =affection.    Baandhavaah + relatives.

i.e.        It is better to get rid of a Religion which does not have any
regard for mercy and compassion. and a teacher who himself does not
have any knowledge .  One should also get rid of a wife who always
remains angry and relatives with whom one does not have any cordial
and affectionate  relations.

Friday, 15 June 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


सा  भार्या  या शुचिर्दक्षा  सा   भार्या या पतिव्रता  |
सा  भार्या  या पतिप्रीता सा  भार्या  सत्यवादिनी  ||
                                      - चाणक्य नीति (४/१३ )

भावार्थ -     वही स्त्री एक आदर्श पत्नी है जो गुणवान  हो,  अपने पति
के प्रति निष्ठावान हो,  अपने पति को प्रिय हो , तथा सदैव सच बोलने
वाली हो |

Saa bhaaryaa  yaa shuchirdakshaa  saa bhaaryaa yyaa  pativrutaa.
Saa bhaaryaa  yaa  patipreetaa saa bhaaryaa satyavaadinee.

Saa = that.    Bhaaryaa = wife.   Yaa = who.    Shuchih+ dakshaa.
Shuchih = virtuous     Dakshaa = expert    Pativrutaa = loyal to
her husband,    Patipreetaa = dear to  her husband   Satyavaadinee =
truthful.

i.e.     A woman is an ideal wife if she is virtuous,  loyal to her
husband, is loved by her husband, and is always truthful.

Thursday, 14 June 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


कुग्रामवासः कुलहीन सेवा
कुभोजनं  क्रोधमुखी च  भार्या   |
पुत्रश्च मूर्खो  विधवा च कन्या
विनाग्निना  षट्प्रदहन्ति कायम्  ||
                - चाणक्य नीति (४/८)

भावार्थ -       किसी कुख्यात स्थान में निवास करना, एक
नीच कुल वाले व्यक्ति की नौकरी करना . अखाद्य भोजन
उपलब्ध  होना , परिवार  में सदैव क्रोधित रहने वाली पत्नी,
एक मूर्ख पुत्र,तथा विधवा कन्या का होना,ये छः परिस्थितियां
ऐसी होती हैं कि इन्हें झेलने वाला व्यक्ति अपने शरीर को बिना
अग्नि  के जलाये जाने जैसा अनुभव करता  है |

Kugraaamavasah kulaheena sevaa,
Kubhojanam krodhamukhee  cha bhaaryaa.
Putrashcha moorkho  vidhavaa cha kanyaa.
Vinaagninaa shatpradahanti  kaayam,

Kugrama = a village of ill repute.   Vaasah =living in
Kulaheena  =a person of low  origin.  Sevaa = service. 
Kubhojanam= bad  food.  Krodhamukhee = angry faced 
Cha =  and.  Bhaaryaaa = wife.    Putrah + cha.    Putrah =
the son.   Moorkhah = idiot.  Vidhavaa = widow. Kanyaa =
daughter.  Vina = without.   Agninaa= any fire.  Shat = six.
Pradahanti = burn.   Kaayam = human  body.

i.e.   Compelled to live in an infamous village , working as
a servant of a person of low origin,  getting stale and bad
food to eat,  having as family members  a wife who always
remains angry,  an idiot as a son and a widowed daughter, in 
all these six situations any person will feel as if his body is
being burnt without any fire.

Wednesday, 13 June 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


संसारतापदग्धानां  त्रयो  विश्रान्ति  हेतवः  |
अपत्यं  च  कलत्रं  च  सतां संगतिरेव  च    ||
                             - चाणक्य नीति (४/१० )

भावार्थ -  इस संसार में जीवनयापन करने में उत्पन्न  मानसिक और 
शारीरिक कष्टों से त्रस्त लोगों को विश्राम देने के  ये तीन साधन  हैं -
(१) बच्चों के साथ  समय व्यतीत करना (२) अपनी पत्नी का साहचर्य 
तथा (३) सज्जन और गुणवान व्यक्तियों की संगति |

Sansaara- taapa- dagdhaanaam  trayo  vishraanti  hetavah.
Apatya cha  kalatram cha  sataam  smgatireva cha.

Sansaara = the World.   Taap = heat.   Dagdhaanaam = burnt.
tormented.   Trayo = three.   Vishraanti =  rest, relief.   Hetavah=  
cause.    Apatya = children.   Cha = and.     Kalatram = wife.   
Sataam =Noble and righteous persons.   Sangati = company.  

i.e.   For persons  tormented by the stresses of  making a living in 
this world, there are three means to get relief from them,  namely 
(i) spend time with children (ii)  enjoy companionship with your 
wife, and  (ii) association with noble and righteous persons.






Tuesday, 12 June 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


कामधेनु  गुणा  विद्या  ह्यकाले  फलदायिनी  |
प्रवासे  मातृसदृशी  विद्या  गुप्तं  धनं स्मृतं     ||
                                       - चाणक्य नीति (४/५)

भावार्थ -   किसी व्यक्ति के द्वारा अर्जित  विद्या उसके लिये
पुराणों में वर्णित कामधेनु गाय के समान उसके बुरे समय में
भी उसको इच्छित फल देने वाली होती है तथा विदेश में निवास
करते समय उसकी माता के समान (रक्षक और सहायक) होती है |
इसी लिये तो विद्या को एक गुप्तधन कहा गया है |

Kaamadhenu gunaa  vidyaa hyakaale phaladaayinee.
Pravaase  Maatrusadrushee  vidyaa guptam  dhanam smrutam.

Kaamadhenu = mythical cow that emerged from the ocean
during the course of churning of the ocean by the Gods and
Demons. She is supposed to satisfy all desires.   Gunaa =
virtues.   Vidyaa = knowledge.   Hyakaale = hi + akaale.
Hi = surely.    Akaale = during bad times.   Phaladaayinee=
giving fruitful results.    Pravaase = while residing in foreign
countries.    Maatrusadrushee = like a mother.     Vidyaa =
knowledge.   Guptam = hidden, secret.    Dhanam = wealth.
Smrutam = termed as, declared as.

i.e.   Knowledge acquired by a person is like the mythical cow
Kamadhenu, which gives fruitful results even during bad times
and during stay in a foreign country is (supportive  and helpful)
like one's own mother.That is why it is termed as secret wealth.

Monday, 11 June 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


यावत्स्वस्थो  ह्ययं  देहो  यावन्मृत्युश्च  दूरतः  |
तावदात्महितं  कुर्यात्प्राणान्ते  किं  करिष्यति    ||
                                       - चाणक्य नीति (४/४ )

भावार्थ -   ओ मानव  !   जब् तक तुम्हारा शरीर स्वस्थ है और मृत्यु
का समय अभी दूर है , तब तक अपनी भलाई के लिये सत्कर्म कर ले |
मृत्यु हो जाने पर फिर क्या ऐसा कर पायेगा  ?

Yaavatsvastho  hyayam  deho  yaavanmrutyushcha dooratah.
Taavadaatmahitam  kuryaatpraanaante kim  karishyati.

Yaavat = so log.   Svastho= healthy.   Hi +iyam.    Hi =surely
Iyam = this.   Deho = human body.   Yaavat + mrutyuh + cha.
Mrutyh = death.   Cha = and   Dooratah = far away.   Taavat+
aatmahitam.    Taavat = until then.   Aatmahitam = for one's
own good.    Kuryaat = do.   Praanaante =after death.    Kim =
what ?    Karishyati = will do.

i.e.   O negligent  man !   so long your body is in good health
and death  is far away,  perform benevolent deeds for  your
own good.    Will you be able to do this after your death ?

     
.
    

Sunday, 10 June 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


दर्शनध्यानसंस्पर्षैर्मत्सी  कूर्मी  च  पक्षिणी  |
शिशुं  पालयते  नित्यं  तथा  सज्जन-संगतिः  ||
                                    - चाणक्य नीति (४/३ )

भावार्थ -   जिस प्रकार  मादा मछली , कछुवा और पक्षी अपने अन्डों को 
सदैव अपने सामने रख कर  और ध्यान  लगा कर उन पर बैठकर शिशुओं
को जन्म दे कर नित्य उनका पालन पोषण करते हैं, उसी प्रकार सज्जन
व्यक्ति भी उनकी  संगति में रहने वाले लोगों का भरण पोषण करते हैं |

Darshan-dhyaana-smsparshair-matsee  akoorrmee cha pakshinee.
Shishum paalayate nityam tathaa  sajjana-sangatih.

Darshan= by viewing.   Dhyaan = meditation,   Smsparshaih =
by touching, contacting.   Matsee - a female fish.     Kurmee =
a female tortoise   Cha =and.   Pakshinee = female bird.  Shishum=
infants.    Paalayate = protect and maintain them.   Nityam = daily.
Tathaa = in that manner.    Sajjan =noble persons.      Sangatih =
association with,  company of.

i.e.   Just as females of fish, tortoise and birds  incubate their eggs
by daily sitting over them attentively  until they are hatched and
thereafter help the infants to grow up, in the same manner noble
persons also take due care of people who are associated with them.

Saturday, 9 June 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita .


अनभ्यासे  विषं  शास्त्रमजीर्णे  भोजनं  विषम्  |
दरिद्रस्य  विषं  गोष्ठी  वृद्धस्य  तरुणी   विषम्   ||
                                   -   चाणक्य नीति (४/१५)

भावार्थ -    यदि कोई विद्वान व्यक्ति उसके द्वारा  अध्ययन किये हुए
शास्त्र का नियमित अभ्यास नहीं करता है तो वह शास्त्र उसके लिए विष
(जहर)के समान हो जाता है (उस के ऊपर विद्वान का अधिकार समाप्त
हो जाता है ), अजीर्ण (भोजन न पचना) के रोगी के लिये भोजन करना
विषपान करने  के समान हो जाता है | एक दरिद्र व्यक्ति के लिये उसके
पारिवारिक और सामाजिक समारोह  विष के समान  हो जाते हैं (क्योंकि
वह धनाभाव के कारण उनमें सम्मिलित नहीं हो सकता है ) तथा एक वृद्ध
व्यक्ति के लिये एक युवती स्त्री का साहचर्य विष के समान हानिकारक  है
(क्यों कि वह युवती की इच्छापूर्ति करने में असमर्थ होता है ) |

Anabhyaase  visham  shaastramajeerne bhojanam visham.
Daridrasya  visham  goshthee  vruddhasya  tarunee visham.

Anabhyaase = for want of regular practice of any skill. 
Visham = poison.    Shaastram + ajeernam.    Shaastram=
any discipline of learning.      Ajeernam= indigestion.
Bhojanam =  eating  food.    Daridrasya =  a poor person's
Goshthee = family connections.    Vrudhasya =  an aged



person's .     Tarunee = a young woman.   

i.e.    If a learned person does not regularly pursue his discipline
of learning,  it becomes like a poison for him ( he loses control
over it) and for a person suffering from indigestion a sumptuous
meal is like a poison for him.  For a poor person social and family
functions are like poison  (due to financial constraints), and for
an aged person, a young woman is like a poison (due to inability
to satisfy her needs).                                                         

Friday, 8 June 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita .


आयुः कर्म  च  वित्तं  च  विद्या  निधनमेव  च  |
पञ्चैतानि  हि  सृज्यन्ते  गर्भस्थस्यैव  देहिनः   ||
                                        - चाणक्य नीति (४/१ )

भावार्थ -   समस्त देहधारी प्राणियों की आयु, उनके द्वारा
किये जाने वाले कर्म (कार्य ), धन , विद्या तथा मृत्यु  का
समय उनकी  गर्भावस्था में  ही पूर्वनिर्धारित हो जाता है |

(उपर्युक्त सुभाषित में सनातन धर्म की इस मान्यता को ही
व्यक्त किया गया है कि  प्राणी अपने  कर्मानुसार विभिन्न
योनियों में जन्म लेता है और तदनुसार उसके भाग्य का
निर्धारण उसकी गर्भावस्था में ही हो जाता है |  तुलसीदास
जे ने भी कहा है कि - 'हानि लाभ जीवन मरण यश अपयश
विधि हाथ ' |)

Aayuh karma  cha  vittam cha vidyaa nidhanameva cha.
panchaitaani hi srujyante garbhasthasyaiva  dehinah.

Ayuh = duration of life.   Karma = activity.    Cha = and.
Vittam = wealth.   Vidyaa =knowledge.   Nidhanm =death.
Eva = thus, really.   Panch+ etaani.    Panch = five.
Etani = these.  Hi = surely.    Srujyante = are bestowed.
Garbhasthah =tasya+eva.    Garbhasthah = when situated
in the womb.   Tasya = his.    Dehinah = a living being.

i.e.     Duration of life,  creative activity, financial status,
knowledge (intelligence), and time of death, all these five
attributes of the life of a living being are bestowed on him
while it grows in the womb.

(The concept of a living being taking birth in different species
according to its 'Karmas" has been explained in the above
Subhashita in a nut-shell. )





Thursday, 7 June 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.

                 अराजकताया  अनर्थाः 

यथा  अनुदका  नद्यो  यथावाSSप्यतृणं  वनम्  |
अगोपाला  यथा  गावस्तथा  राष्ट्रमराजकम्       ||

भावार्थ -   जिस प्रकार बिना जल की नदियां, बिना घास ओर
हरियाली के कोई वन और बिना चरवाहों की देखभाल के गायों
का एक समूह शोभित नहीं होते हैं वैसी ही स्थिति एक अराजक
राष्ट्र की भी होती है |

Yathaa  anudakaa  nadyo  yathaavaapyatrunam  vanam,
Agopaalaa  yathaa  gaavastathaa  rashtramaraajakam.

Yathaa = for instance.    Anudakaa = without water.
Nadyo =rivers.  yathaa+ vaa+ api+ atrunam.   Vaa =or.
Api =even.   Atrunam= without  grass.   Vanam=forest.
Agopaalaa =  without a cowboy.     gaavah + tathaa.
Gaavah = cows.    Tathaa = in the same manner.
Raashtram + arajakam.    Rashtram = a Nation.
Araajakam = anarchic.

i.e.         Just as  rivers without any water flow,  forests
without grass and greenery and a herd of cows without
a cowboy are not at all adorned, the same is the case of
a Nation with anarchy everywhere.

Wednesday, 6 June 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.

                अराजकताया  अनर्थाः 
नाराजके  जनपदे  धनवन्तः  सुरक्षिताः  |
शेरते  विवृतद्वाराः  कृषिगोरक्षजीविनः  ||

भावार्थ -       एक अराजक देश में धनवान , कृषि
तथा गोपालन से जीवनयापन करने वाले व्यक्ति 
अपने को सुरक्षित  अनुभव नहीं करते हैं और सोते 
समय (चोरी हो जाने के डर से) अपने घरों के दरवाजे 
खुले नहीं छोडते हैं |

Naarajake janapad  dhanavantah surakshitaah.
Sherate vivrutadvaaraah  krushi-goraksha-jeevinah.

Na + arajaake.   Na = not.    Arajake = anarchic.
Janapade = Country.   Dhanavantah = rich persons.
Surakshitah = safe, well protected.    Sherate = sleep.
Vivruta = open.      Dvaahaah = doors.   Krushi =
agriculture.    Goraksha =  cowherd.       Jeevinah =
livelihood  by

i.e.     In an anarchic  Country  rich persons and  those
who  earn their livelihood  as  farmers  or  rearing cow
herds  never feel safe and well protected and never leave
their doors  open while asleep (due to the fear of theft).

Tuesday, 5 June 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.

              अराजकताया  अनर्थाः  
नाराजके  जनपदे  उद्यानानि  समागताः  |
सायाह्ने  क्रीडितुं  यान्ति  कुमार्यो  हेमभूषिताः  ||

भावार्थ  -  एक अराजक देश में स्वर्ण के आभूषणों से सुसज्जित  छोटे
बालक- बालिकायें सायंकाल के समय क्रीडा  और मनोरञ्जन  करने  के
लिये सार्वजनिक  उद्यानों में एकत्रित नहीं होते हैं |

(यद्यपि  बालकों के इस आचरण का कारण इस सुभाषित में स्पष्ट रूप से
व्यक्त नहीं किया गया है ,' हेमभूषिता ' शब्द से  वह कारण स्पष्ट हो जाता
है , अर्थात असामाजिक तत्वों के द्वारा उनके  स्वर्णाभूषणों का  छीन लिया
जाना , जैसा कि आजकल महानगरों में लोगों के (विशेषतः महिलाओं  के)
आभूषण तथा मूल्यवान वस्तुएं दिन दहाडे छीन लिये  जा रहे हैं जो वर्तमान
शासन व्यवस्था की असफलता का ही द्योतक है | )

Naaraajake  janapade  udyaanaani  samaagataa .
Saayaahne  kreeditum  yanti  kumaaryo  Hemabhooshitaa.

Na + araajake,     Na = not.    Araajake = anarchic.
Janapade = Country.    Udyaanaani = public gardens.
Samaagataa = assembled.   Saayaahne = in the evening.
Kreeditum = for playing.   Yaanti = go.    Kumaaryo =
children.   Hema =gold.   Bhooshitaah =adorned by.

i.e.       In an anarchic Country young children adorned with
gold ornaments do not assemble in the public parks for playing
and entertainment.

(Although the reason for the children not visiting the parks has
not been given, the words 'adorned with gold ornaments'  gives
the hint of lawlessness in such parks, as is now a days seen in
almost every public place as the menace of  gold chains  and
mobile phone snatchers, whose target is mainly women and
children. This is indicative of breakdown of law and order. )

Monday, 4 June 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.

             अराजकताया  अनर्थाः

नाराजके जनपदे विद्युन्माली  महास्वनः  |
अभिवर्षति  पर्जन्यो महीं दिव्येन  वारिणा  ||अ

भावार्थ -   जिस देश या राज्य में सर्वत्र अराजकता (न्याय
पूर्ण शासन व्यवस्था का अभाव ) व्याप्त होती है वहां पर
आकाशीय विद्युत से युक्त और गरजते  हुए  बादल पृथ्वी
पर जल की दिव्य  वृष्टि नहीं करते हैं (अर्थात अति बृष्टि,
अनावृष्टि या असमय पर वृष्टि के द्वारा  हानि ही अधिक
करते हैं )||

(प्रस्तुत सुभाषित  संस्कृत की  पाठ्यपुस्तक के एक पाठ से
लिया गया है जिस का शीर्षक है "अराजकताया अनर्थाः " |
यदि हम वर्तमान मौसम पर दृष्टिपात करें तो इस समय देश
में असमय अतिवृष्टि, आंधी , तूफान आदि से सर्वत्र  जनधन
की हानि हो रही है , जिसे ऋतु विपर्यय कहा जाता है | शास्त्रों
मे इस का  मुख्य कारण राजा (शासक) की अकर्मण्यता  तथा
राजधर्म का अनुपालन न करना कहा गया है |  इस पाठ के अन्य
श्लोक मैं आगामी कुछ दिनों तक प्रस्तुत करता रहूंगा  |)

Naaraajake  janapade Vidyunmaalee  Mahaasvanah.
Abhivarshati parjanyo  maheem  divyena vaainaa,

Na - not.    Arajake = anarchic.   Janapade = country.
Vidyumaali =  laced with lightning.   Mahaasvanah =
making loud rumbling sound.   Abhivarshati = rains
all alround.   Parjanyo = clouds.   Maheem = the Earth.
Divyena = divine, heavenly.   Vaarinaa = with water.

i.e.      In an anarchic Country ,the clouds  laced with
lightening and making loud rumbling sound, do not
bestow the Earth  the divine and life giving rain.

(The above Subhashita has been taken from a text book
of Sanskrit from a chapter titled  'Disastrous consequences
of anarchy" ,   If we look at the sudden climatic change,
as a result  of which we are having very heavy rain, dust
storms,and floods throughout the Country,which has caused
heavy loss of life, the truth behind this Subhashita is apparent.
Our Shaastras assign the cause of this quirk of weather to the
absence or lack of governance by the King. I will be posting
the remaining shlokas  daily during the next few days.)

Sunday, 3 June 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


किं  जातैर्बहुभिः  पुत्रैः  शोकसन्तापकारकैः     |
वरमेकः  कुलालम्बी  यत्र  विश्राम्यते  कुलम्  ||
                                 -  चाणक्य नीति (३/१७ )

भावार्थ -   किसी व्यक्ति के अनेक पुत्र होने से क्या लाभ जिनके
कारण उसके  परिवार को शोक और सन्ताप (कष्ट ) भोगना पडे ?
इस से तो यही श्रेयस्कर  है कि उसका चाहे एक ही पुत्र हो पर उसके
आश्रय में सारा परिवार सुखपूर्वक रह सके  |

Kim jaatairbahubhih  putraaih  shokasantaapakaarakaih.
Varamkah kulaalamtrbaee  yatra  vishraamyate  kulam.

Kim = what    Jaataih + bahubhih.    Jaataih = being born.
Bahubhih =  many.   Putraih = sons.  shoka = sorrow, grief.
Santaapa = torment.    Kaarakaih =  cause of, factor.i
Varam + ekah.     Varam = preferably.   Ekah = one.
Kula + aalambee.    Kula = family.   Alambee =  supporter.
Yatra = where.   Vishraamyate  =  rest (live) with comfort.

i.e.     To a person of what use  is having many sons if they
cause grief and torment to his family ?   It is preferable to
have only one son , under whose support the entire family
may be able to live with comfort.

Saturday, 2 June 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


मूर्खा यत्र  न  पूज्यन्ते  धान्यं यत्र  सुसञ्चितम्  |
दाम्पत्ये  कलहो  नास्ति  तत्र  श्रीः  स्वयमागता  ||
                                      - चाणक्य नीति ( ३/२१)

भावार्थ -   जिस प्रदेश में मूर्ख व्यक्तियों को पूजा नहीं जाता ( वे उच्च
पदों पर नियुक्त  नहीं किये जाते हैं ) , खाद्द्यान्नों  का भण्डारण और 
संरक्षण भली प्रकार किया जाता है , विवाहित स्त्री- पुरुषों में आपस में
कलह (झगडा) नहीं होता है ,वहां धन संपत्ति की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी
स्वतः निवास करने  के लिये आ जाती है ( वह प्रदेश समृद्ध होता है ) |

(इस सुभाषित में लाक्षाणिक रूप से किसी राज्य की समृद्धि के प्रमुख
कारक सुयोग्य शासन व्यवस्था , सामाजिक सौहार्द्र तथा खाद्द्यान्नों
का संरक्षण और भण्डारण बताये  गये  हैं,  जिस का वर्तमान  शासन
व्यवस्था में अभाव ही दिखाई देता है |)

Moorkhaa  yatra  na poojyate  dhaanyam yatra susanchitam.
Dampatye kalaho naasti  tatra  shreeh  svayamaagataa.

Moorkhaa = foolish persons.   Yatra= where.    Na = not.
Poojyante = worshipped, adored.    Dhanyam = foodgrains.
Susanchitam = properly stored.    Daampatye = matrimonial
relationship.   Kalaho = quarreling.   Naasti  = non- existent.
Tatra - there,   Shreeh = goddess of wealth and prosperity.
Svayam + aagataa.    Svyam = herself    Aagataa = comes.

i.e.    In a country where foolish persons are not adored (are not
given prominent position in the administration),   food grains are
stocked and preserved properly, and there is no quarrelling among
married couples,  Lakshmi, the Goddess of wealth and prosperity,
on her own arrives to reside there.

(In this Subhashita three main  requisites for the  prosperity of  a
country have been given , namely proper and strict governance.
proper maintenance of stocks of food-grains, and cordial relations
among members of   the society.  Alas !  presently we are lacking
in all these areas. )

Friday, 1 June 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita,


एकेनापि  सुपुत्रेण विद्यायुक्तेन  साधुना  |
आह्लाlदितं कुलं  सर्वं यथा चन्द्रेण शर्वरी ||
                            - चाणक्य नीति (३/१६ )

भावार्थ -    केवल एक ही विद्वान और गुणवान पुत्र होने पर
भी वह अपने कुल और परिवार को उसी प्रकार प्रसन्नता और
गरिमा प्रदान करता  है जैसा कि चन्द्रमा के उदय होने पर रात्रि
की शोभा  होती है |

Ekenaapi suputrena vidyaayuktena saadhunaa.
Aahlaaditam kulam sarvam yathaa chandrena sharvari.

Ekena + api.     Ekena = one only.   Api = even.
Suputrena = by an able son.   Vidyaa= knowledge.
Yuktena =endowed with.   Saadhunaa=noble, excellent.
Aahlaaditam = delights    Kulam =family.   Sarvam =
 entire.  Yathaa=for instance.  Chandrena= by the Moon.
Sharvari = night.

i.e.    Even a single son endowed with knowledge and
excellent qualities brings joy and recognition to his family
just like the Moon brings cool brightness to the  night.