Tuesday, 31 July 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


किं कुलेन विशालेन  विद्याहीनेन  देहिनाम्  |
दुष्कुलं  चापि  विदुषो  देवैरपि  स  पूज्यते      ||
                                 - चाणक्य नीति (८/१९ )

भावार्थ -  एक महान और प्रसिद्ध कुल का सदस्य होने से
क्या लाभ यदि  वह व्यक्ति  अशिक्षित और निरक्षर हो |
इसके विपरीत यदि कोई व्यक्ति बुद्धिमान और विद्वान
हो तो किसी निम्न स्तर के कुल का सदस्य होने पर भी वह
देवताओं के समान पूजा जाता है (समाज में उसका आदर
होता है ) |

Kim = what ?     Kulena = a family.   Vishaalena=
a great and powerful,   Vidyaaheenena=  unlearned
person.    Dehinaam = persons.   Dushkulam = of a
lowly family.   Cha_ api.    Cha = and.   Api = even.
Vidusho = a wise and learned person.  Devaih+api.
Devaih = gods.  Sa = he.   Poojyate = is worshipped.
is revered.

i.e.     Of what use is being born in a great and powerful
family if that person is untrained and unlearned . On the
other hand a wise and learned person even if he belongs
to a lowly family is worshipped like  Gods.

Monday, 30 July 2018

आज का सुभाषित / aiyToday's Subhashita.


मांसभक्ष्यै: सुरापानैर्मुखैश्चाक्षरवर्जितैः       |
पशुभिः पुरुषाकारैर्भाराक्रान्ता  हि  मेदिनी  || 
                             - चाणक्य नीति (८/२२ )

भावार्थ -   मांसभक्षण करने वाले , सुरापान करने  वाले (शराबी),
तथा निरक्षर (अनपढ) व्यक्ति मनुष्य का शरीर धारण किये हुए
पशुओं के समान हैं  और निश्चय ही इस पृथ्वी के  लिये भारस्वरूप
ही होते हैं  |

(मद्यपान, मांसाहार और निरक्षरता ये तीनों अवगुण ऐसे हैं कि
जिस किसी भी व्यक्ति में हों उस का व्यवहार मानवीय न हो कर
पशुवत् हो जाता है जिसकी इस सुभाषित में निन्दा की गयी है  |)

Maamsabhakshyaih suraapaanairmukhaishchaaksharvarjitaih.
Pashubhih purashaakaarairbhaaraakraantaa  hi  medinee.

Maamsa+ bhakshyaih.    Maamsa = meat, flesh.   Bhakshyaih=
devourer , eater .  ( Suraapaanaih +mukhaih +cha+akshara+
varjitaih.)   Suraapaanaih=  drinking liquor.   Mukhaih= from
the mouth.  cha = and.   Akshar = a letter of alphabets.  Varjitah=
deprived of.   Akshara-varjith = an illiterate person.   Pashubhih=
beasts.    Purashaakaaraih +bhaaraakraantaa.    Purushakaaraih=
of human form or shape.   Bhaaraakraantaa = overloaded.   Hi=
surely.   Medinee = the Earth .

i.e.   Meat eaters, drunkards and illiterate persons are like  beasts
in human form and are  surely a burden on the Earth.

(Through this Subhashita the author has condemned consumption
of meat and liquor, as also illiteracy  by branding persons with such
shortcomings as beasts and a burden on the earth.)



  

Sunday, 29 July 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


विद्वान्प्रशस्यते  लोके  विद्वान्  सर्वत्र  पूज्यते  |
विद्यया  लभते  सर्वं  विद्या सर्वत्र  पूज्यते         ||
                                       - चाणक्य नीति (८/२० )

भावार्थ -   एक  विद्वान व्यक्ति की समाज मे सर्वत्र प्रशंसा
तथा सम्मान होता है |    प्राप्त  की हुई विद्या और ज्ञान के
सदुपयोग से अन्य सभी आवश्यकतायें  भी पूरी की जा सकती
हैं  और इसी कारण से विद्या की सर्वत्र पूजा की जाती  है |

Vidvaan-prashasyate  loke  vidvaan  sarvatra  poojyate.
Vidyayaa  labhate  sarvam  vidyaa  sarvatra  poojyate.

Vidvaan = a learned person.      Prasashyate = praised.
Loke = in the social life.    Sarvatra = every where.
Poojyate = venerated, adored.    Vidyayaa = through.
knowledge and learning.   Labhate = attained,  obtained.
Sarvam = every , all. 

i.e.   In the social life a knowledgeable and learned person is
praised and venerated every where.  Through the acquired
skill and knowledge all types of things can be obtained and
for this very reason knowledge and learning are venerated
every where.
  

Saturday, 28 July 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


वाचां  शौचं  च  मनसः शौचमिन्द्रियनिग्रहः  |
सर्वभूतदयाशौचमेतच्छौचं  परार्थिनाम्         || 
                                - चाणक्य नीति (७/२० )
 भावार्थ -  वाणी की पवित्रता (दूसरों को कटुवचन न कहना),  मन
(विचारों) की पवित्रता ,  इन्द्रियनिग्रह, तथा सभी जीवित प्राणियों
के प्रति दया की भावना  का होना , ये सभी गुण मानव में दूसरों की
भलाई के लिये ही होते हैं |

(अन्य प्राणियों की तुलना में  मानव के पास  अधिक बुद्धि और विवेक
होता है जिस का सदुपयोग करने की प्रेरणा इस सुभाषित द्वारा दी गयी
है | इन्द्रियनिग्रह  से तात्पर्य मनुष्य को प्रदत्त पांच ज्ञानेन्द्रियों (आंख,
नाक, जीभ , कान तथा त्वचा) और पांच ही कर्मेन्द्रियों ( हाथ, पैर, जीभ,
मूत्रद्वार तथा मलद्वार ) के ऊपर उसका पूर्ण अधिकार से है | इन पर
अधिकार न होने के परिणाम बुरे होते हैं | )

Vaachaam shaucham cha manasah  shauchmindriyamograhah.
Sarvabhoot-dayaa-shauch-metatacchaucham  paraarthiaam.

Vaachaam = talking.    Shaucham = purity.     Cha = and. 
Manasah=  heart.    Indriyanigrraha = restraint of the organs of
sense.    Sarvabhoota = all living beings.   Dayaa = compassion,
mercy.   Etat = all these.   Paraarthinaam = for the sake of others.

i.e.   Purity of speech (not speaking harshly with others) ,  purity
of heart (thoughts),  restraint over the organs of sense,  kindness
towards all living beings,  all these virtues in a person are meant
for the benefit of others.

(In comparison to all living beings on the earth, the man is endowed
with more intelligence and power of discrimination through 5 organs
of sense namely eyes, nose, tongue, ears and skin (touch), and also
5 organs of doing action namely hands, feet, tongue, urinary tract and
anus. If a person has no control over these its result is miseries.  The
underlying idea behind this Subhashita is that out of so many virtues
endowed to him those mentioned in the Subhashita are meant for the
benefit of others.)









   

           

Friday, 27 July 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.
















हतं  ज्ञानं   क्रिया  हीनं  हताश्चाज्ञानतो  नरः   |
हतं  निर्नायकं   सैन्यं  स्त्रियो नष्टा ह्यभर्तृका  ||
                             
भावार्थ  -    ऐसा ज्ञान निरर्थक  है  जिस का उपयोग किसी कार्य को 
सम्पन्न करने में नहीं किया जा सकता हो तथा एक अज्ञानी व्यक्ति
(जीवित हो कर भी) एक मृत व्यक्ति के समान होता है |   विना किसी 
सेनानायक के एक सेना भी कुशल नेतृत्व के अभाव में युद्ध करते समय 
नष्ट हो जाती है  तथा अपने पतियों से  विहीन स्त्रियां भी  निश्चय  ही 
सुखमय वैवाहिक जीवन से  वञ्चित हो जाती हैं | 

Hatam  gyaanam  kriyaa heenam hataashchaagyaanato  narah.
Hatam  nirnaayakam  sainyam  striyo  nashtaa hyabhartrukaa.

Hatam =  useless.   Gyaanam = knowledge.   Kriyaa=action.
Heenam= without .  Hataah +cha +agyaanato.   Hataah = dead
Cha = and.   Agyaanato = by being ignorant.    Hatam =killed. 
Nih +naayakam.    Nih = a prefix denoting absence of something.
Nayakam = a leader.   Striyo = women.   Nashtaa = deprived.   Hi +
Abhartrukaa.     Hi = surely.   Abhratrukaa = without their husbands.

i.e.     Knowledge which can not be utilized for some productive
purposes is useless, and an ignorant person is like a dead person
(in spite of being alive ).  An army not having a competent leader
perishes during a battle and  women without their husbands are
surely deprived of a peaceful marital life

Thursday, 26 July 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


तैलाभ्यङ्गे  चिताधूमे  मैथुने  क्षौरकर्मणि  |
तावद्भवति  चाण्डालो  यावत्स्नानं  न  चाचरेत्  ||
                                   - चाणक्य  नीति ( ८/६ )

भावार्थ  -  शरीर पर तैल की मालिश करने  पर, चिता से उठते
हुए धुंवें  से दूषित होने पर ,  मैथुन करने  के बाद तथा सिर के
केशों का मुण्डन या दाढी बनाने के बाद जब तक  कोई व्यक्ति
भली प्रकार स्नान नहीं कर लेता है  वह एक चाण्डाल के समान
अस्पृश्य ही रहता है  |

Tailaabhyange  chitadhoome  maithune  kshaurakarmani.
Taavadbhavati  chaandalo  yaavatsnaanam na chaacharet.

Tailaabhangye = anointing the body by rubbing oil on it
Chitaadhoome = being exposed to the smoke rising from
a funeral pyre.    Maithune =sexual intercourse.copulation.
Kshaurakarmani = shaving the head or the beard.   Taavat+
bhavati.  Taavat =so long,  Bhavati =becomes.  Chaandalo=
an outcaste, pariah.    Yaavat = until.   Snaanam = taking a
bathing.  Na = not.   Cha+aacharet    Cha = and.   Acharet=
performs, undertakes.

i.e.    After anointing and massaging the body with oil, on
being exposed to the fumes and smoke of a funeral pyre,
after doing sexual intercourse,  and after shaving the head or
the beard,  so long a person is like a 'Chaandala' (pariah)
until he undertakes a thorough bath.

Wednesday, 25 July 2018

आज का सुभाषित. / Today's Subhashita.



वृद्धकाले  मृता  भार्या  बन्धुहस्त  गतं  धनम्  |
भोजनं  च  पराधीनं  तिस्रा :  पुंसां  विडम्बना  ||
                                   -  चाणक्य नीति (८/९ )
भावार्थ -  वृद्धावस्था  में यदि कोई  व्यक्ति अपनी  पत्नी की मृत्यु  हो
जाने से अकेला हो जाय , उसकी धन-संपत्ति भी उसके मित्रों के हाथों में
चली गयी हो (उन्हें दिया हुआ ऋण वे वापस न कर रहे हों) तथा अपनी
दैनिक भोजन  की व्यवस्था के लिये भी उसे पराधीन रहना पडे तो यह
तीनों परिस्थितियां उसके लिये एक  विडम्बना (अत्यन्त विषम, हताश
करने वाली और कष्टदायक स्थिति) के समान है |
( किसी कवि ने भी कहा है कि - 'पराधीन सपनहुं  सुख नाहीं )

Vruddhakaale  mrutaa  bhaaryaa bandhuhasta gatam dhanam.
bhojanam  cha  paraadheenam  tisraah  pumsaam  vidambanaa.

Vruddhakaale = during old age.   Mrutaa = dead.    Bhaaryaa =
wife.   Bandhuhast= in the possession of a friend.  Gatam =gone.
Dhanam = wealth, money.   Bhojanam = food.   cha =  and.
Paraadheenam = dependent upon others.   Tisraah = (these)three.
Pumsaam =  men.   Vidambanaa = frustrating, vexatious, causing
annoyance or trouble.

i.e.    If the wife of a aged person dies and leaves him alone, his
money and wealth is under the control of his friends (by way of
loans given by him to them which they are not repaying) ,  he is
dependent on others for his daily meals, then these three situations
are very frustrating and also causing trouble to him.

(There is a saying that a person totally dependent on others can not
be happy even in his dreams.)

Tuesday, 24 July 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अजीर्णे  भेषजं  वारि  जीर्णे  वारि  बलप्रदम्  |
भोजने चामृतं  वारि  भोजनान्ते विषापहम्  ||
                                - चाणक्य नीति ( ८/७ )

भावार्थ  -   शुद्ध जल का सेवन अजीर्ण (भोजन न पचना) होने
पर एक औषधि (द्वा) लेने के समान होता है तथा अशक्त और
वृद्ध व्यक्तियों को शक्ति प्रदान करता है |  जल का सेवन भोजन
के साथ करना अमृतपान के समान गुणकारी होता है और भोजन
करने के पश्चात  कारण वश भोजन  के विषाक्त होने की स्थिति
में सेवन करने पर विष के प्रभाव को भी नष्ट करता है |

Ajeerne  bheshajam  vaari  jeerne  vari  balapradam.
Bhojane  chaamrutam  vaari   bhojanaante vishaapaham.

Ajeerane= indigestion.  Bheshajam = medicine.  Vaari=
water.    Jeerne = decrepit,  infirm through old age.
Balapradam = giving strength.   Bhojane = while eating
food.   Cha + Amrutam.   Cha = and.   Amrutam = like
the elixir of Gods, which gives immortality to its user. 
Bhojanaante = after the meal.  Vishaapaham = antidote
for repelling food poisoning.

i.e.   Use  of pure water acts as a medicine in the case of
indigestion and also gives strength to persons infirm due to
old age. Its use while eating food is beneficial like drinking
'Amruta' , and if taken after the meals acts as an antidote of
any food poisoning. 

Monday, 23 July 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.



पादाभ्यां  न  स्पृशेदग्निं  गुरुं  ब्राह्मणमेव  च |
नैव गां  न  कुमारी  च  न  वृद्धं  न शिशुं  तथा  ||
                                     - चाणक्य नीति (७/६)

भावार्थ -   अपने  पैरों से कभी भी  अग्नि (आग ) , गुरु, तथा  ब्राह्मण
को स्पर्श (छूना ) नहीं करना चाहिये |  इसी प्रकार किसी  गाय, कुमारी
बालिका, वृद्ध व्यक्ति तथा शिशु को भी पैरों से नहीं  स्पर्श करना चाहिये |

(सनातन धर्म में इस सुभाषित में वर्णित सभी को परम् आदरणीय माना
गया है | अतः उन्हें पैरों  से छूना  निषिद्ध माना गया है |  इसी भावना को
इस सुभाषित में व्यक्त किया गया है | )

Paadaaabhyaam  na  sprushedagnim  gurum  brahmanmeva cha.
Naiva  gaam na kumaaree cha na vruddham na shishum tathaa.

Paaadaabhyaam = by the feet.  na = not.    spreshet +agnim.
Spreshet = touch.      Agnim = fire.        Gurum = the Teacher. 
Brahmana= a learned person belonging to the foremost class
among the three twice born classes i.e. Brahman, kshatriya and
Vaishya according to Sanaatana dharma.  Eva = only.  Cha= and.
Naiva = not.   Gaam = cows.   Kumaaree = a girl.   Vruddham =
aged person.   Shishum = a baby.   Tathaa =  so also.

i.e.     You should not touch a fire, a Teacher and a Brahmin by
your feet.  So also you should not touch similarly  a cow, a girl,
an aged person and a baby.

( In the Sanatana Dharma all those mentioned in this Subhashita are
considered as sacred  and touching them by the feet is prohibited to
show respect towards them.)

Sunday, 22 July 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


दीपो  भक्षयते  ध्वान्तं  कज्जलं  च  प्रसूयते  |
यदन्नं  भक्ष्यते  नित्यं  जायते तादृषी  प्रजा  ||
                                  - चाणक्य नीति ( ८/४ )

भावार्थ -   जिस प्रकार का भोजन लोग प्रतिदिन  करते हैं उसके
अनुसार ही उनका व्यवहार  प्रभावित होता है  |   देखो न  ! एक
दीपक अन्धकार  का भक्षण करता है तो उस प्रक्रिया में कालिख
(काजळ) उत्पन्न  करता है  |

(इस संसार में प्राणियों  के दो वर्ग शाकाहारी और मांसाहारी के रूप
में हैं |  मांसाहारी अन्य प्राणियों  का वध कर उनके मांस पर निर्भर
होते हैं तथा क्रूर  स्वभाव के होते हैं | शाकाहारी  भोजन भी सात्विक,
राजसी और तामसी तीन प्रकार  का होता है | राजसी और निकृष्टम
तामसी भोजन करने  वाले भी क्रूर स्वभाव के होते है | इस का विशद
वर्णन श्रीमद्भगवद्गीता के १७वें अध्याय के श्लोक संख्या  ७ से १०
तक में दिया गया है | कहने का तात्पर्य यह  है कि 'जैसा भोजन वैसा
ही विचार और व्यवहार'  | )


Deepo bhakshayate  dhvaantam  kajjalam cha prasooyate.
Yadannam  bhakshyate  nityam  jaayate   taadrushee prajaa .

Deepo = an earthen oil lamp.   Bhakshayate = devours. eats.
Dhvaantam = darkness.   Kajjalam = lampblack.  Cha = and.
Prasooyate = produces.    Yat +annam .   Yat = that.   Annam=
food.    Bhakshayate = eats.     Nityam = daily.       Jaayate =
becomes.    Taadrushee = like that .   Prajaa = mankind.

i.e.    The type of food people daily take, affects their attitude
and behaviour towards others.  Look !  an oil lamp devours the
darkness and in that process produces lampblack.

(The living beings in this world can be divided into two main
categories i.e. herbivorous and carnivorous. Carnivorous living
beings are by nature cruel because they  have to kill other animals
to feed themselves.  The food herbivorous living beings take, is
also divided into three categories namely (i) Saatvik (ii) Rajasik
and (iii) Taamasik (detailed in chapter 17 of Bhagvadgeeta shlokas
7 to 10)  The effect of taking Taamasik food (worst kind of food)
is also adverse among its takers.  The underlying idea behind this
Subhashita is that the food which take affects our behaviour and
attitude towards others depending upon what type of food we take.)

                                                                                                                                                  idea be                                                                                                                          a                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                   

Saturday, 21 July 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


उपार्जितानां  वित्तानां  त्याग  एव  हि  रक्षणम्  |
तडागोदर संस्थानां  परीवाह  इवाम्भसाम्         ||
                                    -  चाणक्य नीति (७/१४ )

भावार्थ -   जिस प्रकार कि एक बडे तालाब में  एकत्रित अतिरिक्त
जल का सदुपयोग एक नहर के माध्यम  से अन्यत्र ले जा कर सिंचाई
आदि अन्य कार्यों  के लिये कर लिया जाता है , उसी प्रकार किसी
व्यक्ति द्वारा अर्जित की हुई संपत्ति की रक्षा का सर्वोत्तम  साधन
उसका त्याग (समाज सेवा के कार्यों में दान आदि) करना ही है |

Upaarjitaanaam vittaanaam  tyaaga  eva  hi  rakshanam.
Tadaagodara  smsthaanaam  pareevaaha  ivaambhasaam.

Upaarjitaanaam = acquired.   Vittaanaam = wealth of
various kinds.    Tyaaaga =renounciation.   Eva = only.
Hi = surely.    Rakshanam = protection.    Tadaag + udara.
Tadaag = a tank or a large pond.  Udara = belly, depth.
Smsthaanaam  = existence.   Pareevaaha = a drain to carry
out the overflow of a tank or a large pond.   Iva = like a
Ambhasaam =  water.

i.e.       Just as the surplus water of a large pond is put to best
use for irrigation etc.,by constructing a drain for the overflow
of water, in the same manner wealth acquired through various
means by a person  can best  be protected  and put to good use
only by renouncing it for charitable purposes.

Friday, 20 July 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita


पुष्पे  गन्धं तिले  तैलं  काष्टेSग्निं  पयसिघृतं  |
इक्षौ  गुडं  तथा  देहे  पश्यात्मानं  विवेकतः       ||
                                      - चाणक्य नीति (७/२१)

भावार्थ -    जिस प्रकार पुष्पों में सुगन्ध,  तिलों में  तैल,  लकडी
में अग्नि, दूध में घी तथा ईख (गन्ना) में गुड (मिठास) विद्यमान
हैं पर दिखाई नहीं देते हैं, देखो उसी प्रकार तुम्हारे शरीर में भी विवेक
(भले और बुरे का  निर्णय करने  की क्षमता ) विद्यमान है |

Pushpe  gandham tile tailam  kaashtegnim payasighrutam.
Ikshau gudam  tathaa dehe pashyaatmaanam  vivekatah.

Pushpe = in a flower.    Gandham = smell.    Tile = sesame.
seeds.    Tailam = oil.    Kaashte + agnim.    Kaashte = in the
wood.    Agnim = fire.    Payasi - in the milk.    Ghrutam =
cream, ghee.   Ikshau = sugarcane.     Gudam = sugar candy.
Tathaa = accordinly..   Dehe = human body.    Pashya = see
Aatmaanam = thyself.   Vivekatah = wisdom, prudence.

i.e.     Fragrance in flowers,  oil in sesame seeds,  fire in wood,
cream or ghee in milk, and sugar in sugarcane are hidden , you
should see that in the same manner  prudence or wisdom (power
to discriminate between good and bad) is also hidden in human
body.


Thursday, 19 July 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


न देवो विद्यते काष्टे  न पाषाणे न मृण्मये  |
भावे  हि विद्यते देवस्तस्माद्भावो हि कारणम्  ||
                               - चाणक्य नीति  (८/११)

भावार्थ -   देवता न  तो काष्ट (लकडी ) की न पत्थर की
और न मिट्टी की मूर्ति में रहते हैं |  यह तो भक्तों की भावना
है जिस से वे इन मूर्तियों में   देवता की उपस्थिति मान कर
उनको पूजते हैं |  अतः यह भावना ही पूजा करने का प्रमुख
कारण है |

(सनातन धर्म में  देव मूर्तियों को मन्दिर में स्थापित करने
से पूर्व उनमें देवताओं की प्राणप्रतिष्ठा की जाती है और उस
के बाद ही उन्हें पूजने का प्रावधान है |  घरों में भी पूजा के
समय भी देवताओं का आह्वान मिट्टी की मूर्तियों में किया
जाता है और पूजन के बाद उन्हें बिदाई भी 'गच्छ गच्छ सुर
श्रेष्ठ स्वस्थाने परमेश्वरः ' कह कर दी जाती है | इसी भावना
को इस सुभाषित में सुन्दर रूप में व्यक्त किया गया है |

Na devo vidyate kaashte na paashane na mrunmaye.
Bhaave hi vidyate devastasmaadbhaavo hi kaaranam.

Na = not.   Devo = Gods.    Vidyate = there exists.
kaashte = in the wood.    Pashaane =  in a stone.
Mrunmaye = clay.   Bhaave = mental attitude.    Hi +
surely,   Vidyate = exists.   Devah + tasmaat + bhaavo.
Devah = god.   Tasmaat = therefore,   Karanam =reason.

i.e.   Gods do not exist in the idols made of wood, stone or
clay. It is the mental attitude of the worshipper which gives
them the feeling that they are worshipping the Gods.
Therefore, this mental attitude is the main reason for their
worshiping the idols.

(In the Sanaatan Dharma  an idol is ceremonially installed
by invoking the concerned God and only thereafter the idols
are worshipped. This ritual is called 'Praana Pratishthaa.   Even
when in homes idols of clay are worshipped, there also the
Gods are invoked and after the pooja they are requested to go
back to their abode .   Thus it is the mental attitude that is most
important for worshipping the Gods which has been highlighted
in the above Subhashita.)




Wednesday, 18 July 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


बाहुवीर्य बलं राज्ञां  ब्रह्मणो ब्रह्मविद्बली  |
रूपयौवनमाधुर्यं  स्त्रीणां  बलमनुत्तमम्    ||
                             - चाणक्य नीति ( ७/११)

भावार्थ -  राजाओ का बल उनका बाहुबली (महान शक्तिशाली और
पराक्रमी ) होना होता है  तथा  ब्राह्मणों  का बल उनका वेद और शास्त्रों
का  ज्ञान होता है |  स्त्रियों का सर्वोत्तम बल उनका रूप, यौवन तथा
आकर्षक व्यक्तित्व होता है |

 Baahuveerya  balam  raagyaam  brahmano  brahmavidbalee.
Roopayauvanamaadhuryam  streenaam  balamanuttamam.

Baaahuveerya = strength of arms,  very powerful.    Balam=
power, strength.  Raagyam = Kings.     Brahmano = Brahmins.
Brahmavid = vedic philosophy.    Balee = powerful.   Roopa=
beauty.   Yauvan = youth.   Madhurya = charm, grace.
Streenaam = womens'   Balam + anutttamam.   Anuttamam=
best.

i.e.    The strength of Kings is in their valour  and the strength of
Brahmins is in their knowledge of Vedas and scriptures.  The best
strength of women is in their beauty, youth and grace.
  

Tuesday, 17 July 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.



अनुलोमेन  बलिनं  प्रतिलोमेन  दुर्जनम्   |
आत्मतुल्यबलं  शत्रुं  विनयेन  बलेन  वा   ||
                          = चाणक्य नीति (७/१० )

भावार्थ -   बलवान व्यक्तियों से सकारात्मक (नम्र )व्यवहार
करना चाहिये तथा दुष्ट व्यक्तियों से इसके विपरीत  (दृढ )
व्यवहार करना चाहिये |  यदि कोई शत्रु अपने ही समान बलवान
हो तो उससे वर्तमान परिस्थिति का आकलन कर तदनुसार नम्र
व्यवहार या बल प्रयोग के द्वारा वश में करना चाहिये |

Anulomena balinam  pratilomena durjanam.
Aatmatulyabalam shatrum vinayena  balena vaa.

Anulomena = in a positive  manner.    Balinam =
powerful people.   Pratilomena = in the reversed
order i.e. firmly     Durjanam = wicked persons. 
Aatma+tulya+ balam.    Aatma = self.    Tulya =
equally.    Balam = power, strength.    Shatrum =
enemy.     Vinayena= with courtesy.     Balena =
with power.    Vaa = or.

i.e.     Powerful persons should be treated courteously
in a positive manner, and wicked persons very firmly
in just  the opposite manner .  If the enemy possesses
power equal to yours then he should be treated with
courtesy or very firmly depending upon the prevailing
circumstances.


Monday, 16 July 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


हस्ती  अङ्कुशमात्रेण  वाजी हस्तेन ताड्यते  |     
शृङ्गी  लगुडहस्तेन  खड्गहस्तेन   दुर्जनः    ||
                                  - चाणक्य नीति (७/८ )

भावर्थ  -   हाथी को मात्र एक छोटे से अङ्कुश (लोहे का नुकीला
औजार)से  वश में किया जा सकता है तथा एक घोडा हाथ से एक
थपकी देने से ही वश में  किया जा सकता है |  बडे बडे सींगों वाले
पशुओं (गाय, बैल आदि ) को हाथ में पकडी  हुए एक लम्बी लाठी
से वश में किया  जा सकता है ,  परन्तु दुष्ट व्यक्तियों को वश में
करने के लिये तो हाथ में तलवार ही पकडनी  पडती  है |

(प्रस्तुत सुभाषित  का तात्पर्य यह  है कि  विभिन्न प्राणियों को वश
में करने के उपाय उनके स्वभाव और व्यवहार के अनुसार ही तय
किये जाते हैं |)

Hastee ankusha-maatrena  Vaajee  hastena taadyate.
Shrungee  laguda-hastena    khagdga-hastena durjanah.

Hastee - an elephant.   Ankusha=  a metallic hook.
sharp at one end,which the keeper of an elephant uses to
control the movements of the elephant.  Maatra = simply
merely.       Vaaji = a horse.      Hastena =  by a hand.
Taadyate = patting, striking.   Shrungee = animals having
big pointed horns e,g.  cows and bufallows.  Laguda =  a
long wooden staff.    Khadga = a sword,   Durjana=a wicked
and villainous person.

i.e.    An elephant can be controlled  simply by the use of a
pointed iron hook, whereas a horse can be controlled simply
by patting it.   Animals with long and sharp horns can be
controlled by a long staff held by a hand. However, wicked
persons can be controlled only by a sword held by a hand.

(The underlying idea behind this Subhashita is that different
living beings are controlled by different means, depending  on
their nature and behaviour.)

Sunday, 15 July 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


तुष्यन्ति भोजने विप्रा  मयूरा घनगर्जिते  |
साधवः परसम्पत्तौ   खलाः  परविपत्तिषु   ||
                            - चाणक्य नीति  ( ७/९ )

भावार्थ -   पूजा और कर्मकाण्ड कराने वाले ब्राह्मण  सुस्वादु
भोजन कराये जाने से प्रसन्न और तृप्त होते हैं,  मयूर (मोर)
जलवृष्टि करने वाले बादलों के गर्जन से प्रसन्न होते हैं (और
नाचने लगते हैं )|उदार और गुणवान व्यक्ति अन्य व्यक्तियों
की  सम्पन्नता को देख कर प्रसन्न होते हैं , परन्तु नीच और
दुष्ट व्यक्ति तो अन्य व्यक्तियों को विप्पत्तिग्रस्त  देख कर
ही  प्रसन्न होते हैं |

Tushyanti  bhojane  vipraa  mayuraa   ghanagarjite.
Saadhavah  para-sampattau  khallah  para-vipattishu.

Tushyanti = are satisfied. pleased   Bhojane =  by a
sumptuous meal.   Vipraah = braahmans,  domestic
priests.   Mayooraa =  peacocks.   Ghanagarjite =
roaring and thunderous sound of a  rain bearing cloud.
Saadhavah = noble and virtuous persons.  Para =  of
other persons.   Sampattau = wealth.     Khalaah =
mean and wicked persons.   Vipattishu = calamity.

i.e.          Domestic priests performing various religious
rituals are pleased and satisfied on being served a very
sumptuous meal.   Peacocks are pleased (and express
their pleasure by dancing) on hearing the rumbling and
thunderous sound of rain bearing clouds.     Noble  and
righteous persons are pleased on seeing the prosperity of
others,whereas wicked persons are pleased at the calamity
being faced by other people.

Saturday, 14 July 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


सन्तोषस्त्रिषु  कर्तव्यः  स्वदारे   भोजने  धने  |
त्रिषु  चैव  न  कर्तव्योSध्ययने  जपदानयोः    ||
                                  - चाणक्य नीति  (७/४ )

 भावार्थ  - मानव का यह  कर्तव्य है कि इन तीन स्थितियों
में वह सदैव संतुष्ट रहे  - (१) अपनी पत्नी के साहचर्य से ,
(२) जो भी भोजन उसे प्राप्त होता हो, तथा (३) जो भी संपत्ति
उसके पास उपलब्ध हो | परन्तु इन तीन स्थितियों में उसे
कभी भी संतुष्ट नहीं होना चाहिये - (१) विद्याध्ययन (२ )
मन्त्र जाप से  ईश्वर की आराधाना  तथा  (३)  समाज
के कल्याण हेतु दान करना |

Santoshastrishu  kartavyah  svadaare bhojane  dhane.
Trishu  chaiva  na  kartavyodhyayane  japadaanayoh.

Santoshah + trishu.    Santoshah = contentedness.
Trishu = three.   Kartavyah = duty.   Svadaaraa = one's
own wedded wife,    Bhojane = while having meals.
cha+ eva.    Cha = and.   Eva =really.   Na - not.
Kartavyo = duty.       Adhyayana = studying.       Japa=
repeating in a murmurring tone the name of a deity or
passages from scriptures.    Daanayoh = giving money
as a charity to the poor and needy people.

i.e.     It is the duty of every body to remain contended
in  his life  about  three things, namely (i)  relationship
with his wife (ii) about the food he gets and (iii)  the
wealth he has acquired. On the other hand he should not
be contended in respect of  these three things.  namely (i)
intensive study to acquire more knowledge (ii) performing
'Japa'  to please the God Almighty and (iii) giving as charity
his wealth for the betterment of the society.

Friday, 13 July 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.



संतोषामृततृप्तानां  यत्सुखं  शान्तिरेव  च  |
न  च  तद्धनलुब्धानामितश्चेतश्च  धावताम्  ||
                                  - चाणक्य नीति (७/३ )

भावार्थ -  जो सुख और शान्ति संतोष रूपी अमृत का पान कर
तृप्त हुए व्यक्तियों को प्राप्त होती है वह धन के लोभी व्यक्तियों
को कभी नहीं प्राप्त होती है  और उनका मन और भी अधिक धन
अर्जित करने  के लिये इधर उधर भटकता रहता है |

( अत्यधिक धनार्जन करने  की प्रवृत्ति अन्ततः तृष्णा में परिवर्तित
हो जाती है | अतः इस सुभाषित में यही शिक्षा दी गयी है कि मात्र धन
अर्जित करने  से सुख और शान्ति प्राप्त नहीं होती है और वह तभी
प्राप्त होती है जब कोई व्यक्ति अपनी उपलब्धि पर संतुष्ट हो |  इसी
भावना को एक कवि  ने इस प्रकार व्यक्त किया है  -
            गो धन गज धन बाजि धन और रतन धन खान  |
             जब आवे संतोष धन सब धन धूरि  समान  ||
       (गज = हाथी     बाजि = घोडे   रतन = मूल्यवान हीरे मोती)

Santoshaamruta-taptaanaam  yatsukham shaantireva cha,
Na cha taddhanalubdhaanaamitashchetashcha  dhaavataam.

Santosha +amruta+ truptaanaam.    Santosha =contentedness.
Amruta = the nectar of gods.  Truptaanaam = satiated persons.
Yat+sukham.    Yat = that.   Sukham =happiness.   Shaanti+eva.
Shaanti = peace of mind.   Eva = also.    Cha = and.   Na = not.
Tat +dhana + lubdhaanaam + itah + chetah + cha.   Tat = that.
 Dhana = wealth.   Lubdhaanaam= greedy persons.  Itah = here
(and there)   Chetah = mind.    Dhaavataam = runs.

i.e.        The happiness and peace of mind a person satiated by
contentedness akin to drinking 'Amruta' , the nectar of Gods, can
never be achieved by the greedy persons who are after acquiring
more and more wealth , because their mind always runs here and
there in the pursuit of wealth.

Thursday, 12 July 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


धनधान्यप्रयोगेषु   विद्यासङ्ग्रहणे  तथा  |
आहारे व्यवहारे च त्यक्लज्जः सुखी भवेत्  ||
                                  - चाणक्य नीति (७/२ )
भावार्थ -   धन तथा धान्य (विभिन्न खाद्य वस्तुओं ) का किसी
नये रूप में उपयोग करते समय, विद्या प्राप्त करते समय ,भोजन
करते समय . तथा अन्य व्यक्तियों से व्यवहार करते समय लज्जा
का त्याग कर सुखी होना चाहिये  |

(उपर्युक्त परिस्थितियों  में लज्जित होने के भय से लोग सही
निर्णय लेने में झिझकते हैं | उदाहरणार्थ यदि परोसा हुआ भोजन
 रुचिकर नहीं हो तो उसे स्वीकार नहीं करना चाहिये , यदि शिक्षक
द्वारा बताया गया विषय  समझ में नहीं आया हो तो लज्जा त्याग
कर पुनः बताने का अनुरोध करना चाहिये |)

Dhana-dhaana-prayogeshu   vidyaagaa-sangrahane tathaa.
Aahaare vyavahaare  cha  ttyaktalajjah  sukhee bhavet,

Dhana = wealth.   Dhaanya = food grains.  Prayogeshu =
trial, experiment .Vidyaasngrahane = acquiring knowledge.
Tathaa = accordingly    Aahaare = while taking food.
Vyavahaare = while dealing with others   cha = and.
Tyaktlajjah =by abandoning shame.   Sukhee = happy.
Bhavet = become.

i.e.   While using  wealth and  food grains  for developing a
new product. acquiring knowledge from a Teacher,  eating
the served food, and dealing with other persons,one should
abandon the feeling of shame and be happy.

(Under the above noted circumstances people hesitate to take
any decision e.g. if the food served to a person is not of his
liking he should not accept it, if the teacher has taught some
thing and the student has not understood it he should tell the
teacher accordingly and  request him to explain it again .)

Wednesday, 11 July 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अर्थनाशं मनस्तापं गृहे दुश्चरितानि  च  |
वञ्चनं चापमानं  च मतिमान्न प्रकाशयेत्  ||
                                - चाणक्य नीति  (७/१)

भावार्थ -  धन संपत्ति का नाश होना, मानसिक चिन्ता, परिवार
के सदस्यों की दुष्टता , किसी व्यक्ति के द्वारा ठगे  जाने  तथा
अपमानित  किये जाने  के बारे में बुद्धिमान व्यक्तियों को किसी
को कुछ  भी नहीं बताना चाहिये |

Arthanaasham manastaapam gruhe  dushcharitaani cha.
Vanchanam chaapamaanam cha  matimaaanna Prakashyet.

Arthanaasham = Loss of wealth.    Manastaaapm =anxiety.
Gruhe = in the household.   Dushcharitaani = wickedness of
the members of the family .   Vanchanam = being cheated
.cha + apamaanam, Apamaanam = contempt,  insult.
Matimaan + na.    Matimaana = wise men.   Na =  not.
Prakaashayet = announce,  disclose.

i.e.    Wise men should never disclose to outsiders the loss of
their wealth, their anxiety, wickedness of any member of their
family, and about being cheated or insulted by some one.

Tuesday, 10 July 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


प्रत्युत्थानं  च  युद्धं  च  संविभागं  च  बन्धुषु  |
स्व्यमाक्र्म्य  भुक्तं च  शिक्षेच्चत्वारि कुक्कुटात् ||
                                      - चाणक्य नीति (६/१८ )

भावार्थ -      खडे हो कर आगन्तुकों का स्वागत करना ,
युद्ध करने के  समय अपने साथियों का पूरा सहयोग ले
कर उनका नेतृत्व करना,  उपलब्ध साधनों को  अपने 
बन्धुओं के साथ साझा  करना, परन्तु स्वयं  भोजन करते 
समय आक्रामक हो जाना , ये चार विशेषतायें एक कुक्कुट 
(मुर्गे) से सीखनी चाहिये |

Pratyutthaanam  cha yuddham cha  smvibhaagam
cha bandhushu.
Svyamaakramya  bhuktam cha  shikshechatvaari
kukktaat.

Pratyutthaanam= respectful salutations on a person's 
arrival and /or rising up against somebody,   cha = and .   
Yuddham = a war, a  battle.    Smvibhaaga =properly 
sharing  with.    Bandhushu = with friends.   svyam + 
aakramya.   Svyam =himself.   Aakramya = attacking
 Bhuktam = eating .   Shikshet = should learn,  Chatvaari=
 four.    Kukkutaat = from a rooster .

i.e.       Welcoming and saluting the guests by rising up  , 
leading his subordinates during a battle , duly  sharing the
resources with his colleagues,  but  being in an attacking
mood while eating,  these are the four qualities which 
we should learn from the behaviour of a rooster.

Monday, 9 July 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


सुश्रान्तोSपि  वहेद्भारं  शीतोष्णं  न  च  पश्यति  |
सन्तुष्टश्चरते  नित्यं  त्रीणि शिक्षेच्च  गर्धभात्  ||
                                      - चाणक्य नीति (६/२१)

भावार्थ -     गधा बहुत थका हुआ होने पर भी अपने ऊपर रखे हुए
भार को ढोता रहता है ,शीत (ठन्ड) तथा ऊष्ण (गर्मी) की परवाह
नहीं करता है , तथा जिस परिस्थिति में  भी वह  रहता  है उस से
सदैव सन्तुष्ट रहता है |  ये तीन बातें (१) अपने कर्तव्य का पालन
करना  (२)  विपरीत परिस्थितियों की परवाह न करना तथा   (३)
सन्तोषी स्वभाव , ये तीन गुण हमें  एक गधे के आचरण से सीखना
चाहिये |

Sushraantopi  vahedbhaaram  sheetoshnam  na  cha pashyati.
Santushthashcharate  nityam  treeni  shiksheccha gardhabhaat.

Sushraanto + api.    Sushraanto = being very tired.   Api= even.
Vahet+ bhaaram.     Vahet = carries. bears.     Bhaaram =load.
Sheetoshnam = cold and hot.   Na = not.   Cha= and.    Pashyati=
remains indifferent towards.   Santushtah + charate.    Santushtah =
quite contented.   Charate =  remain occupied.   Nityam = always.
Treeni = three.   Shikshaa+  cha.    Sikshaa = learning.
Gardhabhaat = from a donkey.

i.e.     A donkey continues to bear heavy loads even being very tired,
remains indifferent towards  cold and hot working conditions, and
always remains satisfied  over his lot.  We should learn these three
virtues, namely (i) adherence to one's duty (ii) indifference towards
adverse working conditions while on duty and (iii) always remaining
contented , from the  behaviour of a donkey.





Sunday, 8 July 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


बह्वाशी  स्वल्प  संतुष्टः  सनिद्रो  लघुचेतनः  |
स्वामिभक्तिश्च  शूरश्च  षडेते श्वानतो  गुणाः ||
                                    - चाणक्य नीति (६/२० )

भावार्थ -   भुक्खड ,पर बहुत थोडे पर ही संतुष्ट होने वाला , बहुत
कम  नींद लेने वाला ,  सचेत, स्वामिभक्त,  तथा शूर (बहादुर),
ये छः गुण एक श्वान (कुत्ते) में पाये  जाते हैं |

bahvaashee svalpa-sntushtah  sanidro  laghuchetanah.
svaamibhaktishcha shoorashcha shadete shvaanato gunaah.

Bahvaashee = voracious.    Svalp = very little.   Santushtah =
gratified.    Sanidro = asleep.   Laghu = short.    Chetanah=
feeling of consciousness.    Svaamibhakti =faithful towards
his master.    Soorah + cha.    Soorah= brave.    Cha = and. 
Shadete = these six .  Shvaanato = of the dog.   Gunaaha =
virtues, qualities.

i.e.   A voracious eater, but satisfied by even getting a little
food , having a short sleep, always alert,  faithful to his owner,
and very brave,  are the six virtues of a dog.

Saturday, 7 July 2018

आज का सुभाषित / oday's Subhashita.


भ्रमन्सम्पूज्यते  राजा  भ्रमन्सम्पूज्यते  द्विजः  |
भ्रमन्सम्पूज्यते  योगी  स्त्री भ्रमन्ति  विनश्यति  | 
                                         - चाणक्य नीति (६/४ )

भावार्थ  -  जब कोई राजा भ्रमण (नये नये  स्थानों की यात्रा )
के लिये निकलता है तो वह सर्वत्र पूजा जाता है (उसका स्वागत
होता है ) | इसी प्रकार ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य वर्ण के लोगों
का तथा साधु  संतों  का भी उनके भ्रमण करने पर स्वागत होता
है | परन्तु यदि कोई स्त्री अकेले ही भ्रमण करने के लिये निकलती
है तो उसका नाश हो जाता है  |
(प्रस्तुत सुभाषित में तत्कालीन समाज की शासन व्यवस्था का
परोक्ष रूप से चित्रण किया गया है | उस समय भी स्त्रियों द्वारा 
अकेले भ्रमण करना असुरक्षित और वर्ज्य था ऐसा इस सुभाषित
से प्रतीत होता है | यह भी प्रतीत होता  है कि शूद्र वर्ण के व्यक्तियों
को भ्रमण के दौरान सम्मान प्राप्त नहीं होता था क्यों कि उनके
बारे में इस श्लोक में उनके बारे में कुछ भी नहीं कहा गया है | )

Bhramansampoojyate raajaa bhramansampoojyate dvijah.
Bhramansampoojyate  yogi   stree  bhramanti  vinashyati,

Bhramana + sampoojyate.    Bhraman = roaming about.
Sampoojyate =sam +poojyate.   Sam = a prefix to a word
meaning  thoroughly.    Poojyate = honoured.   Raaja =king.
Dvijah = a person of first three categories of four'Varnas'
of persons belonging to Sanaattana dharma, namely Brahmin,
Kshitriya and  Vaishya (leaving aside the Shoodra (lowest
category).    Yogi = an ascetic.   Stree = a woman.   Bhramati=
roams about.   Vinashyati = perishes, destroyed.

i.e.   When a king embarks upon a journey to distant and new
places he is honoured  every where, and similarly people of the
first three classes namely Brahmins, Kshatriyas and Vaishyaas,
as also ascetics (Yogis) also undertaking such journeys they too
are also honoured.  But if  a lone women does so, she will surely
perish.

( This Subhashita indirectly describes the then state of the Law and
order in the society i.e. it was not safe for a woman to roam around
alone. There is no mention of the fourth class namely Shoodra,
thereby implying that they were not respected.)

Friday, 6 July 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


श्रुत्वा  धर्म  विजानाति  श्रुत्वा  त्यजति  दुर्मतिम्  |
श्रुत्वा  ज्ञानमवाप्नोति   श्रुत्वा  मोक्षमवाप्नुयात्   ||
                                          -  चाणक्य नीति (६/१)

भावार्थ -    संत महात्माओं के प्रवचन सुन कर ही धर्म के सिद्धान्तों
से लोग परिचित होते हैं और उन्हें सुनकर ही अपनी असत्य धारणाओं
तथा अज्ञान को त्याग कर ज्ञान प्राप्त करते हैं |  इन्हीं प्रवचनों को सुन
कर तथा तदनुसार आचरण के द्वारा  मोक्ष ( पुनर्जन्म तथा इस संसार
के बन्धनों से मुक्ति ) प्राप्त करने के लिये प्रयत्नशील होना चाहिये |

Shrutvaa  dharma  vijaanaati  shrutvaa  tyajati  durmatim.
Shrutvaa  gyaanamavaapnoti  shrutvaa  mokshamavaapnuyaat.

Shrutvaa = after hearing.   Dharma = the tenets of Religious
austerity.   Vijanati =learns or understands.  Tyajati =gives up.
Durmatim =false notions, ignorance.   Gyaanam +avaaaapnoti.
Gyaanam = knowledge.   Avaapnoti = attains.   Moksham +
avaapnuyaat.    Moksham = salvation, release from re-birth.
Avaapnuyaat =  should strive to attain.

i.e.    By listening to the discourses of great sages people know
the basic tenets of Religious austerity and are also able to give up
their wrong notions and ignorance and acquire the true knowledge.
By acting accordingly they should strive to attain salvation (release
from the cycle of re- birth ).

Thursday, 5 July 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


इन्द्रियाणि  च  संयम्य  रागद्वेष  विवर्जितः  |
समदुःखसुखः  शान्तः  तत्वज्ञः  साधुरुच्यते   ||
                                 - चाणक्य नीति (६/१७ )

भावार्थ -       शास्त्रों तथा सामाजिक मान्यता के अनुसार उसी
व्यक्ति को  साधु कहते हैं जिस की कर्मेन्द्रियां तथा ज्ञानेन्द्रियों
उस के वश में हों , वह राग द्वेष से रहित हो, सुखतथा दुःख की
परिस्थितियों को  एक समान समझता  हो, शान्त स्वभाव वाला
हो तथा शाश्वत सत्य (धर्म के सिद्धान्तों )का ज्ञाता  हो |

(शास्त्रों मे मनुष्य  की  कुल १० इन्द्रियां कही गयी हैं | इन में ५
ज्ञानेन्द्रियां क्रमशः  आंख ,नाक, कान,जीभ तथा त्वचा  हैं  और
५ कर्मेन्द्रियां क्रमशः हाथ, पैर, मुंह, लिङ्ग/योनि तथा गुदा हैं | इन
के ऊपर पूर्ण अधिकार को ही शास्त्रों में श्रेयस्कार कहा गया है | )

Indriyaani  cha  smyamya  raaga-dvesha  vivarjitah.
Sama-duhkha-sukhah  shaantah  tatvagyah saadhuruchatye.

Indriyaani = organs of senses and action in human beings.
Cha = and.    Smyamya = under control.   Raaga + Dvesha.
Raaga = love.   Dvesha = enmity.    Vivarjitah = free from.
Sama+ duhkha+sukhah.    Sama = same. equal.   Duhkha =
Sorrow, grief.   Sukhah = happsageiness, pleasure.    Shaantah =
calm, quiet.   Tatvagya = a person well versed  in  eternal
truth.  Saadhuh +uchayate.  Saadhu =noble person.  Uchyate =
regarded as.

i.e.    According to scriptures and public perception, a person
who has full control over his sensory organs,  devoid of enmity
or attachment with others,  treats the situations of pleasure and
sorrow equally, is  calm and quiet by natture, and is well versed
with the eternal Truth and philosophy, is regarded as true Noble
person.

(Scriptures have described 10 sensory organs. Five of them, namely
eyes, nose, ears, tongue and skin are termed as 'Gyaanendriyas'
(related to senses) and the remaining five, namely hands, legs, mouth,
genitals, and anus are termed as 'Karmendriyas' (related to action).
Full control over these is always preached  as Religious austerity.)

Wednesday, 4 July 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


कुराजराज्येन  कुतः  प्रजासुखं  
कुमित्रमित्रेण  कुतोSभिनिर्वृतिः |
कुदारदारैश्च  कुतो गृहे  रतिः
कुशिष्यमध्यापयतः  कुतो यशः  ||
                = चाणक्य नीति (६/१४ )

भावार्थ -   एक बुरी तरह शासित राज्य (देश) की प्रजा कैसे सुखी  
रह सकती है तथा एक दुष्ट व्यक्ति से मित्रता होने पर कैसे  सुख 
प्राप्त हो सकता  है ? बुरे स्वभाव वाली पत्नी के होते हुए परिवार के
सदस्यों में आपस में प्रेमभाव कैसे हो सकता है तथा अयोग्य शिष्यों
को शिक्षा देने वाले गुरु को यश तथा सम्मान कैसे प्राप्त हो सकता है ?
   (अर्थात ऐसा होना असंभव है )

Kuraaj-raajyena  kutah prajaa-sukham.
Kumitra-mitrena  kutobhinirvrutih.
Kudaaradaaraishcha kuto gruhe ratih.
Kushishyamadhyaapayatah kuto yashah.

Kuraaj = badly governed.   Raajyena - in a Country.
Kutah =from where.  Prajaa= the citizens.   Sukham = 
happiness.      Kumitra-mitrena =  from a bad friend.
kuto +abhinirvrutih.   Kuto = whence.  Abhinirvrutih=
all round  happiness.   Kudaaradaaraishcha = having a
bad and ill mannered wife.   Gruhe = in the household.
Ratih = affection, love.   Kushishyam + adhyaapayatah.
Kushishyam = bad and incompetent pupils,   
Adhyaapatah  =  by teaching.   Yashah = fame, honour.

i,e,   How can the citizens of a badly governed Country lead
a happy and peaceful life  and a person having bad friends
can also be happy ?  From where a person having a bad
wife get happiness in his household , and how can a Teacher
get fame and honour if he teaches bad and incompetent pupils.

(The underlying idea is that all the above things are impossible
to be achieved,)

Tuesday, 3 July 2018

आज का सुभाषित / Today's subhashita.


न  पश्यति  च  जन्मान्धः कामान्धो  नैव  पश्यति  |
मदोन्मत्ता  न  पश्यन्ति  अर्थी  दोषं  न  पश्यति    ||
                                           - चाणक्य नीति (६/८ )

भावार्थ -   जिस प्रकार अपने  जन्मसमय से ही दृष्टिहीन व्यक्ति
को कुछ भी नहीं  दिखाई देता है,  उसी प्रकार कामवासना से  ग्रस्त
व्यक्ति को भी अपना हित अहित  नहीं दिखाई देता है | अपने धन
और शक्ति के गर्व से चूर या मदिरापान से मत्त हुए व्यक्तियों को भी
अपना हित अहित नहीं दिखाई देता है, तथा जिस व्यक्ति को किसी
वस्तु की उत्कट इच्छा होती है उसे उस वस्तु के दोष नहीं दिखाई देते हैं |

Na = not.    Pashyati = sees.      Cha = and.          Janmaandhah=
a person born blind.    Kaamandho = blind with lust.  Naiva = no.
Madonmattaa = intoxicated with pride or passion, inebriated. 
Arthee = one who wants or desires anything ardently.   Dosham =
defects, shortcomings.

i.e.     Just as a person born blind is unable to see any thing, so also
a person overpowered by lust is unable to see its consequences, and
a person intoxicated by pride or inebriated with liquor, is also unable
to see the after effect of  his action.  Similarly a person who ardently
desires any thing is unable to see the defects in that thing.

Monday, 2 July 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


वरं  न  राज्यं  न कुराज राज्यं
वरं न मित्रं  न कुमित्र मित्रं  |
वरं न  शिष्यो  न कुशिष्य शिष्यो
 वरं न दारं   न  कुदारदारः  ||       चाणक्य नीति (६/१३)

भावार्थ - एक बुरी तरह शासित राज्य (देश) में निवास करने
से तो यही श्रेयस्कर है कि ऐसे  राज्य में रहा ही न जाय | एक
दुष्ट मित्र होने से तो यही श्रेयस्कर है कि कोई मित्र ही न हो |
एक गुरु के लिये अयोग्य शिष्यों को शिक्षित करने से तो यही
श्रेयस्कर है कि उसके कोई शिष्य ही न हों |  एक बुरी स्त्री  का
पति  होने से तो किसी व्यक्ति के लिये यही श्रेयस्कर है कि
उसकी कोई पत्नी ही न हो |

Varam na raajyam na kuraaja  raajyam.
Varam  na mitram na kumitra mitram.
Varam na shishyo  na kushishya shishyo.
Varam  na daaram  na kudaaradaarah.

Varam =  preferable.    Na = not.    Raajyam =  a Country.
Kuraaj = badly governed.  Mitram = a friend.    Kumitra=
a bad friend.    Shishyo = pupils.   kushishy = a bad pupil. 
Daaram = a wife.   Kudaar = a bad wife.

i.e.         Instead of living in a badly governed Country, it is
preferable not to live in such a a country.  Instead of having
a bad and unreliable friend, it is preferable not to have any
friend. Likewise, instead of having bad and incompetent pupils,
a Teacher should better not have any pupils, and instead of
having an ill-mannered and bad wife, a person should better
not have a wife.
.

Sunday, 1 July 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


कालः  पचति  भूतानि  कालः  संहरते  प्रजाः |
कालः  सुप्तेषु  जागर्ति  कालो  हि  दुरतिक्रमः ||
                                   - चाणक्य नीति (६/७ )

भावार्थ -  इस संसार में सभी जीवित प्राणियों को काल अपना
ग्रास बना लेता है (उनकी मृत्यु हो जाती है ) और काल ही किसी
देश की प्रजा को  भी नष्ट कर देता है  और काल के ही प्रभाव  से 
(परिस्थिति वश ) एक निष्क्रिय  व्यक्ति भी सक्रिय हो  जाता है | 
निश्चय ही काल को कोई भी अपने वश में नहीं कर सकता है |

Kaalah  pachati  bhootaani  kaalah  smharate  prajaah.
Kaalah supteshu  jaagarti  kaalo  hi  duratikramah,
of
Kaalah = Time, era.   Pachati = digests, matures and
brings to an end.   Bhootaani = all living beings .
Smharate =  destroys    Prajaah = mankind.   Supteshu=
someone fallen asleep, inactive.   Jaagarti =  be awake.
Hi = surely.   Duratikramah = insurmountable (that can
not be overcome or got over.

i.e.    It is the passage of time which ultimately brings to
an end all  the living beings on the Earth and also untimely
kills the citizens of a country.  An inactive person awakens
and becomes very active if  the time is favourable to him.
Definitely the time is insurmountable.