Sunday, 31 December 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


रे पद्मिनीदल तवाSत्र  मया  चरित्रं
दृष्टं  विचित्रमिव यद्विदितं  ध्रुवं तत्  |
यैरेव  शुद्ध सलिले: परिपालितस्त्वं
तेभ्यः प्रथग्भवसि पङ्कभवोसि यस्मात्  || -सुभाषित रत्नाकर (प्रसंग रत्नावली )

भावार्थ -   ओ  कमल पुष्पों के समूह !  मैने तुम्हारा बडा ही विचित्र , स्थायी और
सर्वविदित व्यवहार देखा है कि जो भी तुम्हें शुद्ध जल में उगाने का प्रयास करते हैं 
तुम उनसे प्रथक्  हो जाते हो  (वे असफल हो जाते हैं )क्यों कि तुम्हें कीचड में रहना
ही  रुचिकर लगता है |
(प्रस्तुत सुभाषित एक 'कमलान्योक्ति'  है |  लाक्षणिक रूप से इस का तात्पर्य  यह है
कि प्राणिमात्र अपने जन्मजात पृकृतिदत्त  स्वभाव तथा वातावरण का परित्याग नहीं
कर सकते हैं और अन्य परिस्थितियों में चाहे वे अच्छी भी क्यों न हों, उनका विकास
नहीं होता है |)

Re padmanidala tavaatra  mayaa  charitram,
Drushtam vichitramiva  yadviditam  dhruvam tat.
Yaireva shuddha salilaih paripaalitastvam.
Tebhyah prathagbhavasi pankabavosi yasmaat.

Re =   O !    Padmineedala = lotus plants.   Tavaatra =
tava + atra.    Tava = your.    Atra = here.      Mayaa =
my.   Charitram=behaviour, conduct.   Drushtam =See
Vichitramiva = vichitram+ iva.   Vichitram =  amazing.
Iva = like (for comparison) Yadviditam = yat +viditam.
Yat = that.   Vditam= known as.  Dhruvam =permanent.
Tat = that.   Yaireva = yaih + eva.   Yaih = they.   Eva=
really.   Shuddha = pure.   Salilaih = water.  Paripaalitah+
tvam.    Paripalitah = nurtured, grown in.   Tvam = you.
Tebhyah = they.   Prathagbhaavasi= praathak +bhavasi.
Prathak = separated.    Bhavati = becomes.  Pankabhavosi= water
pankabhavo +asi.   Pankabhavo = growing in mud and slush. 
Asi= is.   Yasmaat = because.

i.e.   O cluster of lotus flowers !  I have observed an amazing and well known
behaviour in you, that whosoever tries to grow you in fresh water you abandon
him (they fail to do so) because you like to grow only in mud and slush.

(The above Subhashita is an allegory relating to Lotus flowers.  The underlying
idea is that all living beings have inborn peculiarities and  they can not grow in
an environment  other than their natural environment. )



Saturday, 30 December 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


वाणिज्येन  गतः स  मे  गृहपतिर्वार्ताSपि  न श्रूयते
प्रातस्तज्जननी प्रसूततनया जामातृगेहं  गता  |
बालाSहं  नवयौवना  निशि  कथं स्थातव्यमस्मिन्गृहे
सायं  संप्रति वर्तते पथिक  हे स्थानान्तरं गम्यताम्    ||
                                 - सुभाषित रत्नाकर (शार्ङ्गधर )

भावार्थ -  ओ पथिक !  मेरे घर का स्वामी (पति) व्यापार करने के लिये
परदेश गया  हुआ है और उसके बारे में कोई समाचार प्राप्त नहीं है | आज
ही प्रातःकाल उसकी माता अपने दामाद  के घर अपनी  सद्यप्रसूता पुत्री
की देखभाल करने के लिये चली गयी है और मैं एक नवयौवना बालिका
इस घर में अकेली हूं |  भला ऐसी स्थिति  में तुम इस घर मे रात्रि में कैसे
रह सकोगे ? इस समय सायंकाल हो रहा है , अतः तुम्हारे लिये यही उचित
है कि तुम किसी अन्य सुगम  स्थान में चले जाओ |

(प्रस्तुत सुभाषित भी 'पान्थोक्तिप्रत्युक्तयः ' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है |
इस में भी गृह स्वामिनी ने पथिक को रात्रि में शरण न देने की असमर्थता
व्यक्त की है | )

Vaanijyena gatah  sa mey gruhapatirvaartaapi na shrooyate.
Praatastajjanee prasoota-tanayaa jaamaatru-geham gataa.
Baalaaham navayauvanaa  nishi  katham sthatavyamasmingruhe.
Saayam samprati vartate patthik hey sthaanantaram gamyataam.

Vaanijyena = for doing business.   Gatah = has gone.   Sa = he.
mey= my.   Gruhapatirvaartaapi  = gruhapatih + vaartaa+  api.
Gruhapatih =master of the house.   Vaartaa = information, news.
Api = even.   Na = not.    Shrooyate = is heard.  Praatastajjananee=
praatah + tat + jananee.    Praatah = morning.   Tat = his.   Jananee=
mother.   Prasoota = recently born   Tanayaa = daughter.  Jaamatru=
son- in-law.  Geham = residence.   Gataa = has gone.   Baalaaham=
Baalaa+aham.   Baalaaa= young girl.  Aham = I.  Navayauvanaa=
adolascent young girl.  Nishi =night.  katham=how ?  Sthatavyam=
stay.    Asmin = in this.     Gruhe = house.    Saayam =evening. 
Samprati = now.  Vartaoute = at present.   Pathik= traveller.  Hey= O !
Sthaanantaram=  another place.     Gamyataam = with accessibility.

i.e.    O traveller !  the head of my household (my husband) has gone
abroad to do business and there is no news about him.   His mother has
just today in the morning gone  to her son-in-law to look after her
daughter and the new born chid. I am myself a young woman alone in
the house.   So, under such circumstance how can I provide shelter to
you in the night ?   The evening is fast approaching. Therefore, it would
be appropriate if you go to some other place easily accessible to you.

(This Subhashita is also an allegory, which requires a reply.  The lady
of the house has politely declined to provide a shelter overnight to the
traveller and asked him to search for another shelter.)



Friday, 29 December 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


असत्यमप्रत्ययमूलकारणं  कुवासनासद्मसमृद्धिवारणम्  |
विपन्निदानं परवञ्चनोर्जितं  कृताSपराधं कृतिभिर्विवर्जितम्  ||
                                              -सुभाषित रात्नाकर (कल्पतरु)

भावार्थ -   किसी बात पर अविश्वास होने का मूल कारण असत्य भाषण
(झूठ बोलना)  होता है तथा  किसी वर्जित वस्तु की या  कार्य करने की
कामना करने से घर-परिवार में समृद्धि आनी बन्द हो जाती है | लोगों को
ठग कर धन अर्जित करने से विपत्ति आती  है तथा  अन्य अपराध करने
वाला व्यक्ति सभी सद्गुणों से भी वञ्चित हो जाता है |

Asatyam-apratyaya-moola-kaaranam kuvaasanaa-sadbha-
samruddhi-vaaranam.
Vipannidaanam paravanchanorjitam krutaparaadham  kriti-
bhirvivarjitam.

asatyam+apratyaya+ moola+kaaranam,   Asatyam = telling lies.
Apratyaya = dstrust.   Moola =root, main.   Karanam =reason.
Kuvaasanaa = bad desire.   Sadma =  abode, house..  Samruddhi+
prosperity, weaalth.   Vaaranam = warding off.    Vipannidaanam=
cause of a calamity.    Paravanchanorjitam = para = vanchano =
arjitam.  Para =others.  Vanchano = decieving.   Arjitam =earned.
Krutaaparaadham = Krutaa= done.   Aparaadham = crime.
Krutibhirvivarjitam = krutibhih + vivarjitam.    Krutibhih =virtues
Vivarjitam = deprived of.

i.e.      The main cause of distrust among people is telling lies ,  and
desire for having or doing some thing prohibited results in warding
off the prosperity of the household.  Acquiring wealth by cheating
others results in a big calamity, and a person who indulges in various
other crimes is deprived of all his virtues.





Thursday, 28 December 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


धनुः पौश्पं मौर्वी मधुकरमयी चञ्चलदृशां
दृषां कोणो बाणः सुहृदविजितात्मा  हिमकरः  |
तथाप्येकोSनङ्गस्त्रिभुवनमपि व्याकुलयति
क्रियासिद्धिः सत्वे भवति महतां नोपकरणे     ||
                          - सुभाषित रत्नाकर (स्फुट)

भावार्थ -   प्रेम के देवता कामदेव का धनुष पुष्पों से बना हुआ है  तथा
उसकी प्रत्यंचा भ्रमरों से बनी है , चञ्चल नेत्रों की तिरछी दृष्टि उसके
बाण हैं तथा सबके मन को प्रभावित करने वाला चन्द्रमा उसका मित्र है
फिर भी अकेला ही कामदेव तीनों लोकों को अपने  प्रभाव से व्याकुल कर
देता है |  सच है महान और शक्तिशाली व्यक्तियों के कार्य उनके पराक्रम
से सिद्ध होते हैं न  कि उनके विभिन्न उपकरणों के कारण |
(प्रस्तुत सुभाषित 'महाजनप्रशंसा ' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है | इस
 की पृष्ठभूमि में पुराणों में वर्णित कथानक है जिसमें कामदेव को भगवान
शिव द्वारा भस्म किये जाने का तथा बाद में उसकी पत्नी रति को वरदान
देने का वर्णन है, कि अब वह बिना शरीर के ही सभी प्राणियों पर व्याप्त होगा |   
तभी से उसका नाम 'अनङ्ग' भी हो गया |  लाक्षणिक रूप से इस का तात्पर्य
यह है कि महान और शक्तिशाली व्यक्ति अपने पराक्रम के बल बूते पर ही
अपने कार्य सिद्ध करते हैं और केवल  उपकरणों पर ही  निर्भर नहीं रहते हैं |)

Dhanuh paushpam maurvee madhukara-mayee chanchala-drushaam.
Drushaam kono  baanah suhruda-vijitaatmaa himakarah.
Tathaapyeko-nanga-stribhuvana-mapi vyaakulayati.
Kriyaa-siddhih satve  bhavati mahataam nopakarane.

Dhanuh = the bow.   Pushpam = flowers.   Maurvee = string of a bow.
Madhukaramayee = consisting of honey bees.  Chanchal = moving,
flickring.    Drushaam = eyes.   kono = corner,  (sideways glance  by
the eyes)      Baanah = arrows.   Suhruda =  friend.    Vijjitaatmaa =
winner of minds,  Himakarah =Moon. ( Tathaa + api + eko + anangah +
tribhuvanam + api.)  Tathaa = even then.    Eko= alone.   Ananga=
The God of Love in Hindu Mythology, who is bodiless but controls
the activities of all living beings.   Tribhuvanam= three worlds i.e.
earth, sky and the underworld.  Vyakulayati=agitates. Kriyaasidddhi=
accomplishment of an action.   Satve =  valour .   Bhavati = happens
Mahataam = great men.   Nopakarane = na + upakarane,   Na = not.
Upakarane =  tools for accomplishing a task, 

i,e,     The bow of 'Ananga' , the God of Love, is made of flowers and
its string is comprised of bees, the arrows are the sideways glance of a
beautiful lady, and the Moon, who controls the minds of all, is his close
friend.  Yet, the God of Love  alone  agitates and controls all the living
beings on all the three worlds.  Truly, all the great and powerful  persons
depend more on  their valour rather than on the tools for accomplishing
them.

(The above Subhashita is classified as 'In praise of great men' .The episode
of killing the God of Love by God Shiva, described in Hindu Mythology,
is the background of this verse.  God Shiva gave a boon to the wife of the
God of Love that henceforth he will control all living beings without having
any body. So, the idea behind this Subhashita is that great men depend more
on their valour rather than on the tools for accomplishing any task.)

Wednesday, 27 December 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


भोः  पान्थ  पुस्तकधर क्षणमात्र तिष्ठ
वैद्योSसि  किं  गणितशास्त्रविशारदोSसि  |
केनौषधेन  मम  पश्यति भर्तुरम्बा
किंवाSSगमिष्यति  पतिः  सुचिरप्रवासी   || -सुभाषित रत्नाकर (स्फुट)

भावार्थ -    अपने हाथ में पुस्तक धारण किये हुए ओ पथिक महोदय  !
एक क्षण के लिये रुको तो सही |  क्या  तुम एक वैद्य हो या गणितशास्त्र
(ज्योतिष) के विद्वान हो ?  किस औषधि के सेवन से  मेरी सासु  मां मुझे
 देख सकेगी तथा  विदेश में चिरकाल से प्रवासी मेरे पति वापस कब आयेंगे  ?

(प्रस्तुत सुभाषित 'पान्थोक्तिप्रत्युक्ति'  शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है |
इस में बडी कुशलता पूर्वक वैद्यक सम्बन्धी प्रश्न पूछ कर अपनी सासु के
अन्धत्व की तथा ज्योतिष सम्बन्धी प्रश्न पूछ कर कि उस का पति विदेश
से कब वापस आयेगा यह सूचित कर रही है कि उसका पति घर में नहीं है |
प्रत्युक्ति का तात्पर्य  किसी उक्ति का उत्तर देना है | )

Bhoh paantha pustak  adhara kshanamaatra tishtha.
Vaidyosi kim ganita-shaastra-vishaaradosi,
kenaushadena mama  pashyati bharturambaa.
kimvaagamishyati patih suchira-pravaasee.

Bhoh =  Hello (salutaation).    Paantha= traveller.   Pustakdhara=
holding a book.    Kshnamaatra= only for a moment.   Tishtha=
wait.   Vaidyosi = vaidyo + asi.    Vaidyo = a physician .  Asi =
are.    Ganitashastra = mathematics.    Visharadosi = visharado+
asi.    Visharado = learned , expert.   Kenaushadhena=   kena +
aushadhena.    Kena = by which.    Aushadhena = medicine.
Mama = my.   Pashyati = sees.   Bharturambaa = bhartuh + ambaa.
Bhartuh = husband's  Ambaa =mother. kimvaa + aagamishyati. 
Kimvaa = perhaps.   Aagamishyati =will come.    Patih = husband. 
Suchira = very long time.  Pravaasee = living abroad.

i.e.     O traveller  holding a book on your hand !  please stop for a
moment. Are you a physician or a scholar of mathematics (astrology) ?
Which medicine will enable my mother-in-law to see my husband,
and when will my husband living abroad since long will return ?

(This Subhashita is categorised  as an allegory,which also requires a
reply. Here a lady indirectly tells the traveller about the blindness of
her mother-in-law and absence of her husband, who is abroad since
long. )

Tuesday, 26 December 2017

आज का / Today's Subhashita.


हस्थी स्थूलतनुः सचाSङ्कुशवशः किं हस्ति मात्रोSङ्कुशो
वज्रेणाSभिहता:  पतन्ति  गिरयः किं शैलमात्रः  पविः          |
दीपे प्रज्ज्वलिते विनश्यति तमः किं दीपमात्रं तम -
स्तेजो  यस्य विराजते  स बलवान् स्थूलेषु  कः  प्रत्ययः       ||

                                                 - सुभाषित रत्नाकर (स्फुट)

भावार्थ -          हाथी भारी भरकम शरीर वाला होता है परन्तु एक
छोटा सा अङ्कुश उसे वश में कर लेता है |  तो क्या हाथी  के सामने
अङ्कुश का कोई महत्त्व नहीं ?   वज्र  (आकाशीय विद्युत) की चोट से 
के बडे बडे पर्वत शिखर टूट कर गिर जाते हैं , तो क्या पर्वत  के सामाने
वज्र  कुछ भी नहीं ?  एक दीपक के प्रज्ज्वलित होने से अन्धकार दूर
हो जाता है ,तो क्या अन्धकार के समाने दीपक मात्र एक दीपक  है ?
निष्कर्ष यही है कि जिस किसी का भी तेज (प्रभुत्व) अधिक होता है वही
बलवान कहलाता है |   मात्र  आकार में बडा होने से ही किसी की क्षमता पर
विश्वास नहीं किया जा सकता है |

(इसी भावना को रामायण में तुलसीदास जी  ने इस प्रकार व्यक्त  किया है :-
मन्त्र परम लघु जासु बल विधि हरि हर सुर सर्व | महामत्त गजराज कहुं
बस कर अङ्कुश खर्ब || )

Hastee sthoolatanuh sa-cha-aankusha-vaashah kim hasti
maatromkusho.
Vajrenaabhihataa patanti girayah kim shailamaatrah pavih.
Deepe prajjvalite vinashyati tamah kim deepamaatram tama-
stejo yasya viraaajate sa  balavaan sthooleshu kah pratyayh.

 Hastee = an elephant.    Sthoolatanuh = large body.  Sa =he.
cha = and.    Ankusha=an iron hook .  Vashah =under control.
Kim = what ?    Hasti = elephant.    Maatro = being nothing.,
merely.    Vajrenaa = by the 'Vajra' (the weapon of Indra,the
God of rain , in modern parlance the strike of the lightening)
Abhihataa=struck by.  Patanti=fall down.   Giraya=mountains.
Shailamaatrah = merely a small  hill.   Pavih = thunderbolt.
Deepe = an  oil lamp.  Prajjvalite = lighted.  Vinashyati = gets
destroyed.    Tamah = darkness.   Deepamaaram = merely a
lamp.   Tejo = authority, splendor.   Yasya = whose.  Viraajate=
rules, excels.   Sa = he.   Balavaan = powerful.   Sthooleshu =
big in size.   Kah = what     Pratyayah = trust, faith.

i.e.     A small iron hook can control a large elephant . Is the hook
merely a hook for an  elephant ? Big mountains crumble when the
lightening strikes them. So, is the lightening  merely a lightening
for a mountain ?   When a lamp is lit  the darkness disappears.
So, is the lamp merely a lamp before the darkness ? The conclusion
is that between small and big whosoever rules is termed as powerful
and some thing merely of big size can not be trusted.





 

Monday, 25 December 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.



तानीन्द्रियाण्यविकलानि  मनस्तदेव
सा बुद्धिरप्रतिहता  वचनं तदेव   |
अर्थोष्मणा विरहितः पुरुषः स एव
ह्यन्यः क्षणेन भवतीति विचित्रमेतत् ||
                            - सुभाषित रत्नाकर (रसिक जीवनं)

भावार्थ -      किसी  व्यक्ति की ज्ञानेन्द्रियां सजग और दोष रहित
हों तथा उस की  मानसिकता  भी वैसी ही  हो , उसकी बुद्धि निर्मल
हो तथा विचार भी वैसे ही हों | निश्चय ही ऐसा व्यक्ति धनवान होने के
गर्व (ऊष्मा )से भी रहित होगा  |  ऐसा असाधारण  व्यक्ति एक क्षण के
लिये भी  हो सकता है ,क्या यह बात विचित्र नहीं है ?

(यह सुभाषित भी 'धनधनियोर्निन्दा ' शीर्षक के अन्तर्गत  संकलित है |
एक प्रश्न पूछ कर इस में यही प्रतिपादित किया गया है कि अत्यधिक
धनवान होने की ऊष्मा (गर्व) से मनुष्य की ज्ञानेन्द्रियां ,बुद्धि,और विवेक
सभी नष्ट हो जाते हैं | )

Taaneendriyaanyavikalaani  Manastadeva.
Saa buddhirapratihataa  vachanam tadeva.
Arthoshmanaa virahitah purushah sa eva.
hyanyah kshanena bhavateeti vichitrametat.

Taaneendriyaanyavikalaani = taani+indriyaani +avikalaani.
Taani = they.    Indriyaani = organs of sense    Avikalaani =
unimpaired.    Manastadeva = manah+ tadeva.      Manah =
views, opinion, mind.   Tadeva = like that.    Saa = she (that)
Buddhirapratihataa= buddhih + apraatihataa.    Buddhih =
intlligence, intuition.    Apratihataa = unimpaired, intact.
Vachanam = speech.    Arthoshmanaa = artho + ooshmanaa.
Artho = wealth.   Ushmanaa= by the heat of.   Virahitah =
devoid of.    Purushah =a person.   Sa = he.    Eva = really.
Hynyah =hi + anyah.   Hi = surely.   Anyah = extraordinary.
Kshenena =moment.   Bhavateeti =bhavati +iti.    Bahavati=
happens.      Iti = this.           Vichitrametat =vicitram + etat,
Vichitram = surprising,  amazing.      Etat = this. 

i.e.      A person's  organs of sense remain unimpaired and the
mind also remains the same, his intellect  also remains intact
and so also his way of speaking courteously. Definitely such a
person would be devoid of pride (heat) for possessing immense
wealth. Is it not amazing that such an extraordinary person can
exist even for a moment ?

(This Subhashita is also classified as 'Censoring wealth and wealthy
persons' .The idea behind it is that wealth  makes a person  proud ,
which in turn results in destruction of his  health and intellect. )

Sunday, 24 December 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


न  वित्तं  दर्शयेत्प्राज्ञः कस्य  चित्स्वल्पमप्यहो  |
मुनेरपि  वनस्थस्य  मनश्चलति  दर्शनात्          ||
                - सुभाषित रत्नाकर (प्रसंग  रत्नावली )

भावार्थ -    विद्वान  व्यक्तियों को अपने धन  का प्रदर्शन(दिखावा)
चाहे वह स्वल्प ( बहुत थोडा ) ही क्यों न हो कभी नहीं करना चाहिये |
अहो !  वनों में निवास करने  वाले त्यागी ऋषि मुनियों का चित्त
भी उसे देखने मात्र से ही भ्रमित और विचलित  हो जाता है |

Na vittam darshayetpraagyah kasya chitsvalpamapyaho.
Munerapi vanasthasya manashchalati darshanaat.

Na= not.    Vittam = wealth.   Detarshayetpraagyah =
Darshayet + praagyah.    Darshayet = should show.
Praagyah =learned persons.   Kasya = whose.
Chitsvalpamapyaho = chit +svalpam+ api + aho.
Chit=heap.  Svalpam= meager, very little   Aho= oh !
Munerapi = Muneh + api.    Muneh = sages, monks.
Vanasthasya = living in forests.  Manashchalati = manah+
chalati.    Manah = mind, view.   Chalati = goes astray,
becomes confused.    Darshanaat =  simply by seeing.

i.e.    Noble and righteous persons should refrain from
displaying their wealth, even how much meagre it may be.
Aah !   even the sages and monks living an austere life in
forests become confused and go astray by seeing it.


Saturday, 23 December 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


पण्डितोSपि  सुशीलोSपि धनार्थी तृणतामियात्  |
यथा  बिसार्थी  हंसोऽपि  मधुपैरपि  वञ्च्यते       ||
                   - सुभाषित रत्नाकर (अच्युतरायजी )

भावार्थ -    एक  धनवान पर कृपण  व्यक्ति विद्वान तथा
सुशील  व्यक्तियों को तिनके के समान तुच्छ समझता है
और जिस प्रकार कमल पुष्प के कोंपलों और नाल को खाने
वाला हंस  भंवरों और मधुमक्खियों को कमल पुष्पों का मधु 
और पराग एकत्रित करने से वञ्चित कर देता है ,वैसे ही उन्हें
भी धन से वञ्चित कर देता है |

(यह  सुभाषित भी 'धनधनियोर्निन्दा'  शीर्षक के अन्तर्गत
संकलित है | इसमें कृपण परन्तु धनवान व्यक्ति की तुलना
एक हंस से तथा विद्वान और सज्जन व्यक्तियों की तुलना
मधुमक्खियों से कर यह  प्रतिपादित किया है कि धनवान
व्यक्ति  सज्जन और विद्वान व्यक्तियों का अनादर करते
हैं और उनके धन कमाने मे बाधा उत्पन्न करते हैं |)

Panditopi susheelopi dhanaarthee trunataamiyat.
Yathaa bisaarthee  hansopi madhupairapi vanchyte.

Panditopi = pandito + api.    Pandito = learned persons.
Api = even.   Susheelopi = susheelo + api.    Susheelo=
amiable, well behaved.     Dhanaarthee = avaricious and
miserly person.    Trunataamiyaat = trunataam + iyaat.
Trnataam =insignificant  like grass.    Iyat = only so much.
Yathaa = for instance, than (for comparison).    Bisaarthee=
seeker of the whole lotus plant or its fibre and shoots.
Hansopi = Hanso+ api.    Hanso = Swan.   Madhupairapi=
Madhupaih + api,    Madhupaih = honey bees.  Vanchyate =
deceives, deprives.

I.e.    An avaricious and miserly person considers learned and
noble persons very insignificant like grass and deprives them
of wealth just  like a Swans who feeds on the shoots and stems
of Lotus plants and deprives the honey bees to collect nectar
and pollen of the lotus flowers.

(This Subhashita is also classified as 'censuring wealth and
wealthy persons'  and uses the simile of honey bees for noble
persons and a swan for avaricious and miser persons.)

Friday, 22 December 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


वित्तमत्तो  हि  नापीशं  मनुते क्वेतरे तदा |
श्रीराममप्यनादृत्याSगर्जद्रत्नाकरः  किल      ||
           - सुभाषित रत्नाकर (अच्युतरायजी )

भावार्थ -   अपनी धन-संपत्ति के कारण मत्त (गर्वित्) लोग
ईश्वर को  भी साधारण व्याक्तियों  के समान कुछ  नहीं समझते
हैं | इसी कारण से रत्नों की खान  समुद्र ने गर्जना करते हुए भगवान
श्री राम का भी अनादर  कर दिया |
(प्रस्तुत सुभाषित में रामायण में वर्णित श्रीराम द्वारा लंका पर
आक्रमण करने के लिये समुद्र  में सेतु निर्माण के कथानक को एक
रूपक  के रूप मे प्रयुक्त किया है |  अनेक बार प्रार्थना करने पर भी
समुद्र द्वारा मार्ग न दिये जाने पर श्रीराम समुद्र को सुखाने के लिये
उद्यत हुए तभी समुद्र ने उन्हें सेतु बांधने के विधि बताई | यहां
समुद्र एक अति धनवान व्यक्ति का प्रतीक है |

Vittamatto hi  naapeesham  manute kvetare tadaa,
Shriraammapyanaadrutyaagarjadratnaakarah kila.

Vittamatto = vitta +matto.    Vitta = wealth.    Matto =
drunk, proud.    Hi = surely     Naapeesham =  na +
api + eesham     Na = not.    Api  even.  Esham =God.
Manute = think    Kvetare = kva + itare.   Kva = how
Itare = different from, another.    Tadaa= then.
Shri Ramam + Api +  Anaadrutyaa + agarjat +
Ratnaakarah.     Anaadrutya  = without respecting. 
Agarjat = grouled, roared.   Ratnaakarah = the ocean,
as a depositary of jewels and minerals.  Kila =allegedly. 

i.e.    Rich persons  very proud of their wealth  treat even
the God like ordinary persons.  That is why  the Ocean
without paying due respect to God Shri Ram growled and
roared before him.

(In this Subhashita an episode of Ramayan regarding cons-
-truction of a bridge over the Ocean for attacking Lanka by
Shri Ram has been used as an allegory.   When even after
many requests the Ocean did no pay any heed, Shri Ram
decided to dry up the Ocean and then only the Ocean told
him as to how the bridge should be constructed.  Here the
Ocean symbolises a rich person.)

Thursday, 21 December 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


दायादाः  स्पृहयन्ति  तस्कर गणाः  मुष्णन्ति भूमीभुजो
दूरेण च्छलमाकल्य  हुतभुग्भस्मीकरोति  क्षणात्            |
अम्भः प्लावयते  क्षितौ  विनिहितं यक्षा हरन्ति ध्रुवं
दुर्वृत्तास्तनया  नयन्ति  निधनं धिग्धिग्धनं  तद्बहु       ||
                                             - सुभाषित रत्नाकर (स्फुट)

भावार्थ -       धिक्कार है अत्यधिक  धन का स्वामी होना जिस के कारण दूरस्थ
सम्बन्धी  भी ईर्ष्या करते हैं ,चोर-डाकू उन्हें  लूट लेते हैं , तथा राजा भी छल पूर्वक
दूर से ही उस धन पर अधिकार कर लेता है , आग लगने से वह राख मे परिवर्तित
हो जाता है या जलप्लावन (बाढ )से नष्ट हो जाता है, भूमि पर अतिक्रमण हो जाता है,
यक्ष गण (वर्तमान संदर्भ में निम्न स्तर के राजकीय कर्मचारी )निश्चय  ही उसे लूट
लेते हैं तथा  उनके  पुत्र भी दुर्व्यसनों में लिप्त हो कर शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं |

(यह सुभाषित भी 'धनिधनयोर्निन्दा ' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है | इस में व्यक्त
परिस्थितियां समाज में सर्वत्र दिखाई देती हैं जो इस की सत्यता को प्रमाणित करते हैं |)

Daayaadaah spruhanti taskarganaah mushnanti bhoomeebhujo.
Doorena chalamaaakalya  hutabhugbhasmeekaroti  kshanaat.
Ambhah plaavayate kshitau  vinihitam yakshaa haranti dhruvam.
Durvruttaastanayaa  nayanti  nidhanam dhigdhigdhanam tadbahu.

Daayaadaah=distant descendants, daughters.   Sprahanti = longing
for, desirous of.    Taskargaanaah = thieves, robbers.    Mushnanti =
rob.   Bhoomeebhujo = kings, princes.   Doorena  =  from afar.
Chalamaakalya = cchalam + aakalya.   Chalam = deceit .Akalya=
by resorting to.  Hutabhugbhasmeekaroti=hutabhuk +bhasmeekaroti.
Hutabhuk =fire.    Bhasmeekaroti = turns into ashes.       Kshnaat =
instantly.    Ambhah = water.   Plaavayate = inundates, flooding.
Kshitau = ground.  Vinihitam = separated.    Yakshaah =demi-gods.
Haranti =steal, destroy.   Dhruvam = certainly.   Durvruttah +tanayaah.
Durvruttah = having bad habits.   Tanayaah = sons.   Nayanti = lead to.
Nidhanam = destruction.    Dhigdhigdhanam = dhik- dhik  + dhanam.
Dhik-Dhik = shame upon.    Dhanam = wealth .   Tadbahu = tht +bahu.
Tat = that.  Bahu = excessive, abundant.

i.e.   Shame upon the wealth of filthy rich persons, which causes a longing
among their distant relatives to acquire it, thieves and robbers loot it, and
even the King (Government) indirectly or through deceit acquires it, gets
burnt into ashes by fire, or destroyed in a flood, the land owned is encroached,
Demi-gods (in the present context lower level officials) definitely rob them,
and the sons of such person  die early by indulging in bad habits .

(This Subhashita is also classified as 'censoring wealth and wealthy persons'.
We see the situations described in this Subhashita every where around us ,
which proves its authenticity.)
     

Wednesday, 20 December 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


गङ्गां च धारयति  मूर्ध्नि सदा कपाली
सा तस्य चुम्बति मुखं न कदाचिदेव   |
रत्नाकरं प्रति  चुचुम्ब सहस्रवक्रै-
र्गङ्गादयो  युवतयः सधनानूकूलाः     || -सुभाषित रत्नाकर (स्फुट)

भावार्थ -   परमेश्वर शिव ने गङ्गा नदी को स्वर्ग से अवतरण अपने
मस्तक पर करने  की अनुमति दी और वे उस सदैव अपने मस्तक पर
धारण करते हैं , परन्तु वह कभी भी उनके मुख का चुम्बन नहीं करती
है (और तुरन्त महासागर से मिलने के लिये प्रस्थान कर जाती है ) |
लेकिन रत्नों के आगार महासागर का चुम्बन आडे-तिरछे हो कर हजारों
बार करती है | सच है गङ्गा के समान ही युवतियां भी धनवान व्यक्तियों
के प्रति ही अनुकूल रहती हैं |

(यह  सुभाषित 'धनिधनयोर्निन्दा ; शीर्षक के अन्तर्गत संकलित  है | 
 स्वर्ग से गङ्गावतरण के आख्यान की उपमा के माध्यम से यही  प्रति-
पादित किया गया है कि स्त्रियां धनवान व्यक्तियों का साहचर्य अधिक
पसंद करती हैं | यहां समुद्र को धनवान  व्यक्ति के प्रतीक स्वरूप तथा 
भगवान शिव को सर्वगुणसंपन्न होते हुए भी निर्धन व्यक्ति के रूप मे
चित्रित किया गया है | )

Gangaam cha  dhaarayati moordhni sadaa kapalee.
Saa tasya chumbati mukham na kadaachideva.
Ratnaakaram prati chuchumba sahasravakrai-
rgangaadayo yuvatayah sadhanaanukoolaah.

Gangaam =the sacred river  Ganges,   Cha =and.    Dhaarayati= 
wears, puts. Moordhni= forehead.   Sadaa =always.    Kapaali=
anoother name of Lord Shiva.    Saa = she (river Ganges)  Tasya=
his ( reference to Shiva)   Chumbati =kisses.   Mukham =mouth
Na = not.   Kadaachideva= kadaachit+ iva.   Kadaachit = some
times.     Iva= than (comparison)     Ratnaakaram = the Ocean.
Prati = to.   Chuchumba = kisses.  Sahasravakraigangaadayo=
Sahasra+vakraih +gangaadayo.   Sahsra = thousands.   Vakraih=
twists, curved way,    Gngaadayo = Gangaa + aadayo.   Aadayo =
and other rivers.    Yuvatayah = young women (reference to other
rivers meeting the Ocean.  Sadhanaanukoolaah = sadhana+
anukoolaah.    Sadhana = a rich person.   Anukoolaah = faithful,
friendly.

i.e.     Lord Shiva allowed the river Ganges to land on his forehead
and  remain there, but still she never kisses him and immediately
proceeds towards the Ocean to meet him and kisses the Ocean in
thousands of ways.  It is true that women,like the river Ganges are
more faithful and enamoured towards rich persons.

(This subhashita is classified as 'censoring wealth and wealthy persons'.
Using the episode of arrival of sacred river Ganges from Heaven as a
metaphor the author has stressed the point that women are more enamoured
towards rich persons .)

Tuesday, 19 December 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


कुतः श्रियै  त्वं यतसे निकामं श्रीरामदासो भव मानव त्वं |
श्रीरामदासस्य पराङ्मुखस्य  सदानुपायिन्युपतिष्ठते श्रीः ||
                                -  सुभाषित रत्नाकर (विठोवाअण्णा)

भावार्थ -  हे मानव  !  यदि तू  धन संपत्ति को प्राप्त करने  के लिये
प्रयत्नशील है तो तू भगवान श्री रामचन्द्र जी का दास (भक्त) बन जा |
'श्रीरामदास शब्द के विलोम के अर्थ के प्रभाव से 'सदाअमराअनपायिनी
श्री ' (सदैव बनी रहने वाली धन संपत्ति और यश ) तुझे प्राप्त होगा |

(श्रीरामदास शब्द का विलोम सदामराश्री  अर्थात् सदैव बनी रहने वाली समृद्धि
है | इसी का अलंकारिक उपयोग इस सुभाषित में एक उद्बोधन के रूप में
कर लोगों को ईश्वर भक्ति के लिये प्रेरित किया गया  है | )

Kutah shriyai tvam  yatase  nikaamam Shriraamadaaso bhava
maanava  tvam.
Shriraamadaasasya paranmukhasya sadaanupaayinyupatishthate
Shreeh.

Kutah = from where ?  Shriye=prosperity, wealth.  Tvam = You.
Yatase = endeavors.    Nikaamam = desirous.     Shriraamdaso=
A devotee and follower of Lord Raam.        Bhava = become.
Maanava =  man.    Tvam = you.    you hriraamdasasya =  of the
word  Shriraama.   Paranmukestowed be bhasya = disinclined/conversely.
Sadaanapaayinyupatishthate = sada+ anapaayin +upatishthate.
Sada =  always.  Anapaayin = imperishable.  Upatishthate = stays.
Shreeh = prosperity wealth.

i.e.    O man !  If you are desirous and endeavours to acquire wealth
and prosperity, you should become a slave (devotee) of Lord Rama.
By the effect of converse usage of the word 'shriraamdaasa' , you will
be bestowed with imperishable wealth and prosperity.

( When the alphabets of the word "Shriraamdaasa" are written conversely
they mean imperishable wealth and prosperity.  This has been used as
an embellishment in the above Subhashita to exhort people to worship
Lord Shri Raam.)








Monday, 18 December 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


सरसा  साSलंकारा  सुपदन्यासा सुवर्णमय मूर्तिः |
आर्या  तथैव  भार्या  न  लभते  पुन्यहीनेन             ||
                    -सुभाषित रत्नाकर (प्रसंग रत्नावली )

भावार्थ -  काव्य के विभिन्न रसों (श्रङ्गार, वात्सल्य, करुणा आदि) ,
अलंकारों  और सुन्दर पदावली से युक्त एक स्वर्णिम मूर्ति के समान
सुशोभित कविता रचने की क्षमता तथा उसी प्रकार सुन्दर, गुणवान 
तथा अलंकरणों  से सुसज्जित, मोहक पदन्यास (चाल) वाली स्त्री को
पत्नी के रूप में  पुण्यहीन  कवि नहीं प्राप्त कर सकते हैं |

(यह  सुभाषित 'कविता' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है | इस का तात्पर्य
यह  है कि कवितायें रचने की  प्रतिभा तथा सुन्दर गुणवान पत्नी केवल
भाग्यवान व्यक्तियों को ही प्राप्त होती है |)

Sarasaa saalankaaraa supadnayaasaa suvarnamaya moortih.
Aaryaa tathaiva bhaaryaa  na  labhate  punyaheenena.

Sarasaa = expressive of poetic sentiment, gracious.       Saalankaaraa=
Saa + alankaara.    Saa =with.    Alankaaraa =metaphjors / ornaments.
su +padanyaasaa.    Su =a prefix to denote  something as best.
Padanyasa = writing down verses/ or footsteps (beautiful gait).
Suvarnamaya =made or consisting gold.   Moortih = a statue, an idol 
Aaryaa = worthy and noble.  Tathaiva = similarly.    Bhaaryaa = wife. 
Na = not.   Labhate =get. Punyaheenena = persons without any virtues.

i.e.    The expertise of composing beautiful poetry capable of expressing
poetic sentiments with command over various embellishments like metaphors,
and meters etc. like a decorated golden idol,  and similarly having a virtuous
and beautiful woman well decorated with golden ornaments with nice gait as
his wife can not be had by persons without any virtues (Punyas).

(This Subhashita is classified as 'Poetry' . The idea behind it is that capacity
of composing beautiful poetry and having a virtuous and beautiful wife is
possible only among virtuous persons.)


Saturday, 16 December 2017

आज का सुभाषित /Today's Subhashita.


क्रोधः  प्राणहरः शत्रु:  क्रोधो  मित्रमुखी  रिपुः  |
 क्रोधो हि असिर्महातीक्ष्णः सर्वं क्रोधोपकर्षति ||             
                                      -वाल्मीकि  रामायण

भावार्थ -    क्रोध एक प्राणहरण करने  वाले शत्रु के समान है  तथा 
मित्रों के बीच शत्रुता होने का कारण भी होता है |  क्रोध एक तीक्ष्ण
तलवार के समान है जो सब् को अपमानित कर हानि पहुंचाता है |

Krodhah  praanaharah shatruh krodho mitramukhee ripuh.
Krodho hi asirmahaateekshanah  sarvam Krodhopakarshati.

Krodhah = anger.    Praanaharah =fatal , taking away life.
Shatruh = enemy.    Mitramukhee = mitra+ mukhee.   Mitra=
friend    Mukhee = causing.   Ripuh = enemy.    Hi =surely.
Asirmahaateekshnah = asih + mahaa+ teekshanah.    Asih =
a sword.   Mahaa = very.   Teekshanah = sharp.   Sarvam = all.
Krodhopakarshati = Krodho + apakarshati.    Apakarshati =
causes harm,  dishonours

i.e.   Anger is like an enemy who can take away one's life and is
also the main cause of enmity between friends.  Anger is surely
like a very sharp sword, which can cause harm and dishonour to
everybody .

Friday, 15 December 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita .


कुत आगत्य घटते विघट्य क्व नु याति च  |
न लक्ष्यते गतिः सम्यग्घनस्य च धनस्य च ||
                          - सुभाषित रत्नाकर (स्फुट)

भावार्थ -   बादलों और धन-संपति के विषय  में कि  वे कहां से आते
हैं और आने के पश्चात फिर कहां  चले जाते हैं , तथा उनके आने तथा
जाने  की गति  का सही अनुमान  कभी भी नहीं लगाया जा सकता है |

(प्रस्तुत सुभाषित 'धनधनियोर्निन्दा' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है |
धनसंचय तथा उसे बनाये रखने की समस्या को धन की  तुलना बादलों
के आने और जाने तथा वृष्टि होने की अनिश्चितता से कर प्रभावी रूप
से व्यक्त किया गया है | )

Kuta aagatya ghatate vighatya kva nu yaati cha.
Na laksahyate gatih samyag-ghanasya cha dhanasya cha.

Kuta = from where.    Aagatya = having come.     Ghate =
happens.     Vighatya = after happening.       Kva = where.
Nu = a prefix to emphasise.    Yaati = go.        Cha = and.
Na = not.        Lakshyate = appears.          Gatih = speed. 
Samyagghanasya = samyak + ghanasya. Samyak =exactly,
correctly.   Ghanasya =of a cloud.   Cha =and.  Dhanasya=
of the wealth.

i.e.          No body can correctly guess as to from where the
clouds and wealth will come and after having come where
they will go.  Further , the speed at which they will come and
go is also uncertain.

(The above Subhashita compares acquisition of wealth with the
behaviour of clouds and says that both are unpredictable. )


Thursday, 14 December 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


त्यजन्ति मित्राणि धनैर्विहीनं पुत्राश्च दाराश्च सुहृज्जनाश्च |
तमर्थवन्तं  पुनराश्रयन्ति  ह्यर्थो  हि  लोके पुरुषस्य बन्धुः  ||
                                                 - सुभाषित रत्नाकर (स्फुट)

भावार्थ -    एक धन विहीन व्यक्ति के मित्र , पुत्र , पत्नी तथा बन्धु
सभी उसे त्याग देते हैं | परन्तु यदि वह धनवान हो जाता है तो पुनः
उसके आश्रय में आ जाते हैं | सचमुच, धन ही किसी व्यक्ति का  इस
समाज में सच्चा बन्धु होता है |

Tyaantti mitraani dhanairviheenam putraashcha daaraashcha
suhrujjanaaarthoshcha.
Tamarthvantam punaraashrayanti hyartho hi loke purushasya
bandhuh.

Tyajanti = abandon, quit.   Mitraani = friends.   Dhanairviheena=
Dhanaih + viheenam.    Dhanaih wealth.   Viheenam = without.
Putraash = sons.    Daaraah = wifes   Cha = and.    Suhruda+
janaah + cha.   Suhruda = relatives.  Janaahpeople,   Cha =and.
Tamarthavantam = tam + arthvantam.    Tam = he.   Arthavantam=
Wealthy.     Punaraashrayanti = Punah + aashrayanti .     Punah =
agani.   Aashrayanti = take shelter.   Hyartho = hi + artho.    Hi =
surely.   Artho = wealth.  Lke = in the society.  Purushasya = of
a person;s   Bandhuh + friend.

i.e.     All friends, sons, wife and relatives of a poor persons quit him,
but if he becomes rich afterwards they all again seek his shelter.
Surely, wealth is the real friend of a person in this society.

Wednesday, 13 December 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.

कर्णाSमृतं  सूक्तिरसं विमुच्य दोषेषु यत्नः सुमहान्खलस्य |
अवेक्षते  केलिवनं प्रविष्ठः कमेलकः कन्टकजालमेव          ||
                                                            - सुभाषित रत्नाकर 

भावार्थ -         एक बडे ही दुष्ट व्यक्ति (साहित्यकार )के द्वारा कानों में अमृत के
समान मधुर लगने वाली सूक्तियों (काव्य) का आनन्द  लेने के बदले उनमें यत्न
पूर्वक केवल दोषों को खोजने की प्रवृत्ति वैसी ही है जैसे किसी सुन्दर उद्यान में जा
कर कोई ऊंट कंटीली झाडियों को ही खोज कर अपना  भरण पोषण करे |

(प्रस्तुत सुभाषित 'कविता' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है |  इस में उन दुष्ट साहित्य-
कारों  के ऊपर व्यङ्ग्य किया गया है जो अन्य साहित्यकारों की रचनाओं में केवल दोष
ही खोजते रहते हैं | )

Karnaamrutam sooktirasam vimuchya dosheshu yatnah sumahaankhalasya.
Avekshate kelivanam pravishthah  kramelakah kantakajaalameva.
 among
Karnaamruta =karnaa+ amruta.    Karnaa = ears.   Amruta =nectar.   Sookti =
beautiful verse.    Vimuchya =getting rid of, being detached from. Dosheshu=
defects.  Yatnah=with special care.   Sumahaan = a very.   Khalah = wicked
person.   Avekshate =searches, takes into cosideration.   Kelivanam=a garden.
Pravishthah = after entering.   Kramelakah =a camel.    Kantakajaalameva=
Kantaak+ jaalam+ eva .     Kantaka = thorns.   Jaala = a cluster of. Eva= thus.

i.e.     The tendency among very wicked persons (poets and authors) who take
special care in finding faults in the beautiful verses pleasing to the ears like the
nectar (Amruta) composed by other poets is just like a camel who after entering
in a beautiful garden searches for a cluster of thorny bushes to feed himself.

(This Subhashita is a satire on the tendency among poets for finding only faults
in the poetry of other poets. Such poets have been compared to a camel, who
subsists on thorny bushes.)





Tuesday, 12 December 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


मुक्ताफलैः किं मृगपक्षिणां च मिष्टान्नपानं किमु गर्धभानाम् |
अन्धस्य  दीपो बधिरस्य  गीतं  मूर्खस्य  किं  धर्मकथाप्रसङ्गः ||
                                                     - सुभाषित रत्नाकर (स्फुट)

भावार्थ -   मृग (जानवरों) और पक्षियों के लिये मूल्यवान मोती किस काम 
के, तथा गर्धभों  (गधों ) के लिये सुस्वादु भोजन का क्या कोई महत्व  है ?
इसी प्रकार एक अन्धे व्यक्ति के लिये जलता हुआ दिया, एक बहरे व्यक्ति 
के लिये मधुर गीत का गायन, तथा एक मूर्ख व्यक्ति के लिये धर्मशास्त्रों 
की चर्चा करना व्यर्थ है |

Muktaaphailaih  kim  Mrugapakshinaam cha mishtaannapaanam
kimu gardhabhaa.
Andhasya deepo badhirasya geetam moorkhasya kim dharma-
-kathaa-prasangah.

Muktaaphalaih = pearls.   Kim = what ?   Mruga= antelopes.
Pakshinaam = birds.   Cha = and.   Mishtaanna =luscious food.
Paanam =  consuming.    Kimu = of what ?   Gardhabhaanaam =
donkeys.    Andhasy = a blind man's.    Deepo = a lighted lamp.
Badhirasya = a deaf person's   Geetam = song.    Moorkhasya=
a foolish person's   Dharma-kathaa-prasangah =religious discourses.
 
i.e.   Of what use are pearls for the animals and birds, and luscious
food for donkeys ?  Similarly,  a lighted lamp  for a blind person,  
a beautiful song for a deaf person and a religious discourse for a 
foolish person are also of no use to them.

Monday, 11 December 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


त्यक्तापि निजप्राणान्परहितविघ्नं  खलः करोत्येव  |
कवले पतिता सद्यो वमयति मक्षिकाSन्नभोक्तारम्  ||
                                                     - सुभाषित रत्नाकर

भावार्थ -   नीच और दुष्ट व्यक्ति अन्य  व्यक्तियों के हितों (कार्यों)
में विघ्न (रुकावट या हानि) करने के लिये अपने प्राणों का भी त्याग
वैसे ही कर देते हैं जैसा कि एक मक्खी एक भोजन करते हुए व्यक्ति
के ग्रास में गिर कर उसके द्वारा भोजन का वमन  करने  के कारण
स्वयं  भी नष्ट हो जाती है
(यह सुभाषित 'दुर्जन निन्दा' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है | इसी
विचार को गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी एक अन्य उदाहरण के द्वारा
इस प्रकार व्यक्त किया है - 'पर अकाज लगि तनु परिहरहीं | जिमि हिम
उपल  कृषी दलि गरहीं  || - अर्थात दुष्ट व्यक्ति ओलों की तरह  फसल के
ऊपर बरस कर उसे नष्ट कर देते हैं और स्वयं भी गल कर नष्ट होजाते हैं )

Tyaktaapi nija-praanaan-para-hita-vighnam khalah karotyeva.
Kavale  patitaa sadyo vamayati makshikaanna  bhoktaaram.

Tyaktaapi = tyakta + api.    Tyakta = abandoned.    Api= even.
Nija = one's own.   Praanaan = breath of life.   Para = others.
Hita = interests.   Vighnam = hinderance, impedement.   Khalah =
a wicked person.  Karotyeva = karoti + eva.    Karoti =  dose.
Aiva = thus.    Kavale = a morsel of food.   Patitaa = fallen into.
Sadyo = instantly.    Vamayati = vomits .  Makshikanabhoktaaram.
Makshikaa +anna + bhoktaaram.   Makshikaa = a fly.  Anna =food.
Bhoktaaram = eater of food.

i.e.    Mean and wicked persons even do not hesitate to end  their life
for putting impediments in other persons'  activities just like the fly
falling  on the  morsels of food  being  consumed by a person,   who
immediately vomits the food along with the fly.






Sunday, 10 December 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


नोपेक्षा न च दाक्षिण्यं न प्रीतिर्न च सङ्गति |
तथापि  हरते तापं लोकानामुद्यतो  घनः     ||
                    - सुभाषित रत्नाकर (शार्ङ्गधर )

भावार्थ -       बादल न तो अपने प्रति उपेक्षा या दयालुता की 
और न प्रीति या सहयोग की अपेक्षा करते हैं, लेकिन फिर भी
जलवृष्टि के द्वारा ताप (गर्मी) को कम कर जनसामान्य की
सहायता के लिये सदैव तत्पर रहते  हैं |

(यह सुभाषित भी 'मेघान्योक्ति ' का एक उदाहरण है | लाक्षणिक
रूप से इसका भी तात्पर्य यही है कि महान और सज्जन व्यक्ति
बिना किसी मान सम्मान या प्रेम की अपेक्षा के निस्वार्थ भावना
से जनता की सेवा में संलग्न रहते हैं | )

Nopekshaa na cha daakshinyam na preetirna cha sangati.
Tathaapi harate taapam lokaanaam-udyato ghanah.

Nopekshaa = na + upekshaa.     Na = not.     Upekshaa =
negligence, disregard.    Cha = and.    Daakshinyam =
dexterity, kindness.   Preetirna = preetih + na.   Preetih =
friendship.    Sangatih = association with.   Tathaaapi =
even then.    Harate =  subdue, removes.     Taapam =
heat.    lokaanaam = general public.   Udyato=  ready,
eager.    Ghanaah = clouds.

i.e.     Clouds neither expect  any disregard or kindness,  nor
friendship or association of any kind from people, but even
then they are always eager and ready to provide relief to the
people from the scorching heat of summers by bestowing
rain on them.

(This Subhashita is also an allegory about the rain-clouds. The
idea behind it is that noble and righteous persons are engaged
selflessly in the relief work for the benefit of the mankind .) 

Saturday, 9 December 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


शैलयेषु शिलातलेषु च गिरेः शृङ्गेषु गर्तेषु च
श्रीखण्डेषु विभीतकेषु च तथा पूर्णेषु रिक्तेषु च  |
स्निग्धेन  ध्वनिनाSखिलेSपि  जगतीचक्रे समं वर्षतो
वन्दे वारिद  सार्वभौम  भवतो विश्वोपकारि व्रतम्  ||
                           सुभाषित  रत्नाकर (शार्ङ्गधर )

भावार्थ -     ओ जल वृष्टि करने  वाले बादलो  !  पथरीली भूमि पर,
शिलाओं के नीचे , पर्वतों की चोटियों और उनकी गहरी घाटियों में ,
चन्दन के और बेर के वनों में तथा जल से भरे हुए और रिक्त  स्थानों
में , शान्तिपूर्वक  या गरजते हुए सारी पृथ्वी पर बिना  किसी भेदभाव
के समान रूप से  जल की वृष्टि करते हो |  तुम सर्वत्र व्याप्त रहते हो
और तुमने  समस्त विश्व का उपकार करने का व्रत लिया है  अतः हम
तुम्हारी वन्दाना करते हैं |

(प्रस्तुत सुभाषित एक  अन्योक्ति है और 'मेघान्योक्ति ' शीर्षक से संकलित
है |  लाक्षणिक रूप से इसका तात्पर्य यह है कि महान व्यक्ति भी इस संसार
में बिना किसी भेदभाव के सभी प्राणियों का उपकार करते हैं और इसी लिये
वन्दनीय हैं |)

Shailayeshu  shilaataleshu cha gireh shrungeshu  garteshu cha.
Shrikhandeshu vibheetakeshu cha  tathaa poorneshu rikteshu cha.
Snigdhena dhvaninaakhilepi jagateechakre samamvarshate.
Vande vaarida saarvabhauma bhavato vishvopakaari vrutam.

Shailyeshu = rocky terrains.   Shilaataleshu = below the rocks.
Cha = and.    Shrungeshu = peaks of mountains.       Garteshu =
gorges, caves.    Shreekhandeshu = Sandalwood trees.  Vibheeta-
keshu =trees producing berries.    Tatha = also.          Poorneshu=
well filled things.  Rikteshu = empty things.   Snigdhena= gently.
Dhvaninaakhilepi = dhvaninaa + akhile+ api.   Dhvaninaa = by
making loud sound.  Akhile = entire. .Api = even.  Jagatee chakra =
around the World.    Samam = equally.   Varshate =  rains.    Vande=
salutations to thee.   Vaarida = a cloud.    Saarvabhauma =  known
throughout the World.    Bhavato = your good self.    Vishvopakaari=
for the benefit of the entire World,    Vrutam - chosen, preferred.

i.e.    O rain bearing clouds !   You shower your rain on rocky terrain, on
on the base of big rocks, mountain peaks and their deep gorges, over the
the sandalwood forests as also berry trees,  on places full of  or water and
also without water, either silently or with rumbling sound throughout the
the World without any discrimination. You have chosen to serve the entire
World ,for which we all salute your good self.

(This Subhashita is also an allegory. The idea behind it is that noble and
righteous persons serve the entire humanity without any discrimination.)


Friday, 8 December 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita;


क्रोशन्तः शिशवः सवारि  सदनं पङ्काSSवृतं  चाSङ्गणं
शय्या  दंशवती  च रूक्षमशनं  धूमेन पूर्णं गृहम्            |
भार्या निष्ठुर भाषिणी  प्रभुरपि क्रोधेन पूर्णः सदा
स्नानं  शीतलवारिणा हि  सततं  धिग्-धिग्गृस्थाश्रमम्  ||
                                           - सुभाषित रत्नाकर (स्फुट )
भावार्थ -  धिक्कार है !  ऐसे गृहस्थजीवन को, जिसमें बच्चे सदैव रोते रहते हों ,
छत से पानी टपकता हो, आंगन कीचड  से भरा हो, शयनकक्ष  मच्छरों से भरा
हुआ हो, भोजन  भी रूखा-सूखा ही  उपलब्ध  हो , सारा घर धुंवें  से भरा हुआ हो ,
गृहस्वामिनी (पत्नी)  कटुभाषिणी हो , मालिक भी सदैव क्रोध् से भरा हुआ हो ,
और  सदैव शीतल जल से ही (शीतकाल  में भी) स्नान करना  पडे |
 
Kroshantah shishavah savaari sadanam pankaavrutam chaaanganam.
Shayyaa danshvatee cha rookshamashanam dhoomena poornam gruham.
Bhaaryaa nishthura-bhaashinee prabhurapi krodhen poornah sadaa.
Snaanam sheetala-vaarinaa hi satatam dhigdhiggruhasthaashrmam.

Kroshantah = crying, hawling.   Shishavah = children.   savaari = with
water (leaking)   Sadanam=residence.  Pankaavruta = panka +aavrutam
Pank = mud, slush.   Aavrutam = filled with.   Chaanganam =  cha +
aanganam.   Cha = and.   Aanganam = courtyard.   Shayyaa =  bed.
Danshavatee = full of mosquitoes.  Rookshamashanam = sooksham +
ashanam.   Rooksham =coarse.   Ashanam = eating.  Dhoomena = with
smoke.   Poornam = filled with.   Gruham = house, residence.   Bhaaryaa=
wife.   Nishthura = harsh, rough.   Bhaashinee = speaking.  Prabhurapi=
Prabhu + api.    Prabhuh= The Master, employer.  Api = even.  Krodhen=
with anger.    Poorna = full of .   Sadaa = always.   Snaanam = bathing.
Sheetala = cold.   Vaarinaa = with water.  Hi = surely.   Satatam = conti-
nuously.   Dhik-dhik = shame upon.    Grusthsashramam =  family life.

i.e.     Shame upon such a family life where the children always howl and
cry, the roof of the house leaks, the courtyard is covered with mud and slush,
the house is filled with smoke and the bedroom is full of mosquitoes, only
coarse food is available, the wife is harsh and foul speaking , even the boss
always remains in an angry mood, and only cold water is available for
bathing (even during winters) .

                          

Thursday, 7 December 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


दोषाकरोSपि  कुटिलोSपि  कलङ्कितोSपि
मित्रावसानसमये  विहितोदयोSपि    |
चन्द्रस्तथाSपि  हरबल्लभतामुपेति
नैवाSSश्रितेषु महतां गुणदोषशङ्का  ||
                 - सुभाषित रत्नाकर (शार्ङ्गधर )
भावार्थ -    चन्द्रमा यद्यपि आकार में टेढा तथा  कलङ्कित ( काले धब्बों
से  युक्त ) है और अपने मित्र सूर्य के अस्त होने के समय ही उदित होता है,
फिर भी देवाधिदेव शङ्कर का कृपा पात्र है  |  सच ही है कि महान व्यक्तियों
के आश्रितों के गुण-दोषों पर कोई भी शंका नहीं करता है |

Doshaakaropi kutilopi  kalankitopi.
Mitraavasaana-samaye  vihitodayopi.
Chandrastathaapi Haraballabhataamupeti.
Naivaashriteshu mahataam gunadosha-shankaa,

Doshaakaro + api.   Doshaakaro = the Moon.   Api =even.
Kutilo + api.    Kutilo = crooked.curved.   Kalinkito + api.
Kalankito =stained, spotted.    Mitraavasaana =  mitra =
avasaana.  Mitra =a friend.(here the reference is of the Sun)
Avasaan= end, setting of the Sun.   Samaye = at the time of.
Vihit +udayo+ api.   Vihit=fixed, ordained.  Udayo = rising.
Chandrah + tathaapi.    Chandrah= the Moon.   Tathaapi =
even then.   Hara + ballabhataam + upeti.   Hara = Lord shiva.
Vallabhataa =favour, goodwill.    Upeti = acquires.   Naiva +
Aash riteshu.    Naiva=no.   Aashriteshu=persons dependent
on someone.     Mahataam = great persons.  Guna= virtues.
Dosha = defects, shortcomings.   Shankaa = doubt.

i.re.   Although the Moon is curved in shape and also stained,
rises up when his friend the Sun sets, even then he enjoys the
goodwill and favour of  Lord Shiva.      It is true that  nobody
doubts the virtues and shortcomings of  persons dependent on
great and venerable persons.

Wednesday, 6 December 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


नक्षत्राणि बहूनि सन्ति परितः पूर्णोदयान्यम्बरे
किं तैः शान्तिमुपैति  दीर्घतिमिरं किं वार्धिरुज्जृम्भते  |
किं स्यादार्तचकोरपारणविधिर्भ्रातः  सुधादीधिते
तन्नूनं भुवनैकतापशमनः  श्लाघ्यस्तवैवोदयः   ||
                                          - सुभाषित रत्नाकर (स्फुट)

भावार्थ -   ओ चन्द्रमा  !  इस आकाश में बहुत सारे नक्षत्र ओर तारागण
हैं परन्तु क्या वे उस में छाये हुए गहन अन्धकार को दूर कर सकते है , या
समुद्र को उद्वेलित कर उसमें  ज्वार उत्पन्न कर सकते हैं ,या तुम्हारे एक
बन्धु के समान तुम्हारी किरणों की सुधा के आकांक्षी चकोर  पक्षी के कष्ट
को दूर कर सकते हैं  ? यह सब कार्य सम्पन्न करना केवल तुम्हारे द्वारा ही
सम्भव है , जिस के कारण सभी तुम्हारी प्रसंशा करते हैं |

(यह एक जनश्रुति है कि चकोर पक्षी चन्द्रमा से एकांगी प्रीति करता है और
सारी रात चन्द्रमा की ओर टकटकी लगाये रहता है | इसका उपयोग इस
सुभाषित में किया गया है | )

Nakshatraani bahooni santi paritah poornodayaanyambare.
Kim taih shaantimupaiti deergha-timiram kim vaardhirujjrumbhate.
Kim syaadaarta-chakora-paaranavidhir-bhraatahh sudhaa-deedhite.
Tannoonam bhuvanaika-taapa-shamanah shlaaghyastavaivodayah.

Nakshatraani = constellation of Stars.  Bahooni =too many.  Santi =
there are.   Paritah = all around.             poornodayaat + ambare.
Poornodaayaani= after rising of full Moon.   Ambare = the Sky.
Kim = what ?   Taih = they.   Shaantim + upaiti.    Shaantim = rest,
relief.   Upaiti =achieves, approaches.    Deergha = deep.   Timiram =
darkness.   Vaardhirujjrumbhate =  Vaardhi = the Ocen.   Ujjrmbhate=
expands, creates tides.    Syaat + aarta+chakor +paarana+vidhih+
Bhratah.    Syaat = perhaps.    Aarta= distressed,   Chkora = name of
a bird very fond of the Moon.   Paarana = delivering .  Vidhih =manner.
Bharaatah = brother.   Sudhaa = nectar.    Deedhite = desires,  wishes.
Tannoonam = therefore.  Bhuvanaika =  of the Earth.  Taapa = heat.
Shamanah =easing, pacifying.   Shlaaghyah +tava +eva +udayah.
Shlaaghya = worth praising.   Tava = your.   eva =  like this.
Udayah = rise in the sky.

i.e.     O Moon !  there are  too many constellations of Stars all around the
Sky before your full rise, but can they remove the pitch darkness of the
Sky and induce tides in the Ocean, or provide brotherly relief to the
distressed 'Chakra' bird, who desires the nectar of your rays falling on the
earth ?   Only you are able to accomplish all these tasks and also  cool the
heated Earth , for which your very much appreciated.

(It it believed that the Chataak bird has one sided affection towards the
Moon and it stares at it throughout the night.  This  belief has been used
in this Subhashita.)



Tuesday, 5 December 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita


वक्रोSस्तु  बाल्ये तदनु प्रवृद्धः कलङ्कवानस्तु जडोSस्तु  चन्द्रः |
महेश मौलौ  च  पदं  दधातु  जायेत  वन्द्यो  विविधोपकारात्  ||
                                          -  सुभाषित रत्नाकर (शार्ङ्गधर )
भावार्थ -  चन्द्रमा बाल्यावस्था में  वक्र (टेढा ) होता है और तत्पश्चात् पूर्ण आकार
और कलङ्क (धब्बे) प्राप्त कर जड ( आकार  कार में छोटा ) होने लगता है | परन्तु
भगवान शिव द्वारा उसे अपने शिर पर धारण करने के फलस्वरूप अनेक दोष होने
पर भी उच्च पद प्राप्त  होने से अनेक प्रकार से वन्दनीय हो जाता है |

(गत दिवस के सुभाषित में भी भगवान शिव द्वारा अपने मस्तक पर चन्द्रमा को
धारण करने को एक उपमेय के रूप में प्रयुक्त कर पराश्रय के कष्टों को व्यक्त किया
गया था | आज उसी उपमेय को एक अन्य रूप में महान व्यक्तियों द्वारा अपनाये
जाने के कारण साधारण व्यक्तियों के  भी सम्मानित होने के कारण के रूप में प्रस्तुत
किया गया है | )

Vakrostu  baalye tadanu pravruddhah kalankavaanastu jadostu chandrah.
Mahesh -maulau cha padam dadhaatu jaayet vandyo vividhopakaaraat.

Vakro+ astu.   Vakro = curved.   Astu = is.   Baalye = boyhood.  Tadanu=
afterwards, thereafter.   Pravruddhah = fully developed.  Kalankavaan +
ast.   Kalankvaan = with a blot or stain.  Jadoh =tu.    Jado = dull., wanes
Tu =and,but.  Chandrah =the Moon.  Mahesha =another name of God Shiva.
Maulau = over the head.     Cha = and.      padam = a prominent position.
Dadhatu = put,placed.   Jaayet = becomes.    Vndyo = venrable, adorable.
Vividha + upakaaraat.   Vvidha= various.   Upakaaraat = benefits,  favours.

i.e.   The Moon during its boyhood (waxing stage)  is curved and on being
fully grown up develops black spots and becomes dull (waning stage)   But
on being given a prominent place over his head by Lord Shiva , in spite of
all  these shortcomings,  the Moon becomes venerable  and gets various
benefits and favours.

(Like the yesterday's Subhashita, the legend of Lord Shiva using the crescent
Moon as an adornment over his head, has been used as a simile, but for a
different purpose. Unlike the problems faced  by a person dependent on others,
here  the benefits of  being closely associated  with  great persons has been
emphasised in this Subhashita.)


Monday, 4 December 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


शिरसा  धार्यमाणोऽपि  सोमः  सौम्येन  शंभुना  |
तथाSपि  कृषतां धत्ते  कष्टः  खलु  पराSSश्रयः ||
                        = सुभाषित रत्नाकर (शार्ङ्गधर )

भावार्थ -   यद्यपि भगवान शंकर ने उदारता पूर्वक चन्द्रमा को अपने
शिर पर धारण किया हुआ है फिर भी वह दुबळा होता रहता है |  सचमुच
किसी के आधीन रहना बहुत ही  कष्टकारक  होता है |

(प्रस्तुत सुभाषित भी एक अन्योक्ति है | चन्द्रमा के घटने और बढने की
प्रक्रिया तथा भगवान शिव द्वारा मस्तक पर चन्द्रमा को धारण करने को
एक उपमा के रूप में प्रयुक्त कर लाक्षणिक रूप से यह प्रतिपादित किया
गया है कि किसी के आधीन रहना कष्टकाराक होता है |  तुलसीदास जी ने
भी कहा है कि  - 'पराधीन सपनहुं सुख नाहीं '  |)

Shirasaa dhaaryamaanopi somah saumyena shambhunaa.
Tathapi krusshataam dhatte kashtah khalu paraashrayah.

Shirasa = on the head.   Dhaaryamaano =being held.     Api = even. 
Somah = the Moon.   Saumyena = due to gentleness.   Shambhunaa =
by the Lord Shiva.  Tathaapi=even then.  sh  Krushataam = leanness.
Dhatte =becomes.    Kashtah = troublesome.   Khalu = verily.
Paraashrayah = dependence on others.

i.e.    Although Lord Shiva has due to his gentleness has held the Moon
on his forehead,  still it becomes lean from time to time.  Verily, it is
always troublesome being dependent on some one else.

(The above Subhashita is also an allegory.  Through the simile of the
waning moon held by Lord Shiva on his forehead (according to Hindu
mythology) the author has stressed the point that it is troublesome to be
dependent on some one else.)

Sunday, 3 December 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.

करान्  प्रसार्य रविणा दक्षिणाSSशाSवलंबिना  |
न  केवलमनेनाSSत्मा  दिवसोSपि  लघूकृतः  ||
                           - सुभाषित रत्नाकर (स्फुट )

भावार्थ -    अपने हाथ (किरणें ) फैला कर  सूर्य कुछ पाने की
आशा में दक्षिण दिशा की ओर जब प्रस्थान करता है तो वह न
केवल अपने को ही लघु (छोटा) कर देता है , दिवस को (दिन की
अवधि)को भी छोटा कर देता है |

(प्रस्तुत सुभाषित भी 'सूर्यान्योक्ति ' का एक उदाहरण है | इस में
ज्योतिष शास्त्र में व्यक्त सूर्य के सापेक्ष पृथ्वी की स्थिति , जिसे
दक्षिणायण और उत्तरायण कहते है ,को एक रूपक के रूप में प्रयुक्त
किया गया है |  दक्षिणायण में सूर्य पृथ्वी के दक्षिण गोलार्ध की ओर
प्रस्थान करता है, जिसके फलस्वरूप सूर्य का  प्रकाश  तथा दिन की
अवधि कम होती जाती है और रात्रि की अवधि बढ जाती है |  सूर्य का
हाथ (किरणे) फैलाना मांगने का प्रतीक है |  लाक्षणिक रूप से इस
सुभाषित का तात्पर्य यह है कि महान और तेजस्वी व्यक्तियों द्वारा
भी कुछ याचना करने  से न केवल उनकी गरिमा नष्ट  होती है , उनके
आश्रितों की भी गरिमा नष्ट होती है |)

Karaan prasaarya Ravinaa dakshinaashaavalimbinaa.
Na kevalamanenaatmaaa divasopi laghookrutah.

Karaan = hands (here the reference is of the rays of the Sun.
Prasaarya = spreading.   Ravina = by the Sun.   Dakshina +
aashaa+avalambinaa.    Dakshinaa=towards south and/or donation.
Aashaa = hope, expectation.    Avalambinaa = depending upon.. 
Na = not.   Kevalam +anenaa + aatmaa.   Kevalam = only .
Aatmaa=  himself.    Divaso + api.   Divaso =- day.   Api = even.
Laghookrutah = rendered shorter.

i.e.      By spreading his hands (the rays) with the hope of getting
some  donation (akin to begging) the Sun proceeds towards the south
direction (winter solstice), he not only belittles himself  but also
reduces the Day (duration of the day time) .

The above Subhashita is also an allegory using the movement of the
Sun in the firmament as a metaphor. During the winter solstice the
Sun moves  towards the south of the Equator, as a result of which
the days become shorter and the nights longer, thereby reducing the
intensity of the Sun.  The idea behind this is that not only mighty and
illustrious persons but also their dependents as well lose their status if
they seek some donation or help.)

Saturday, 2 December 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


खद्योतो  द्योतते  तावद्यावन्नोदयते  शशी  |
उदिते  तु  सहस्रांशौ  न  खद्योतो  न  चन्द्रमाः  ||
                   - सुभाषित रत्नाकर (शार्ङ्गधर )

भावार्थ -   एक खद्योत (जुगनू ) रात्रि  को  तभी तक ज्योतित करता
है  जब तक कि  आकाश में चन्द्रमा का उदय नहीं होता है |  और सूर्य
के उदय होने पर न तो जुगनू और न  ही चन्द्रमा  का कोई महत्त्व रह
जाता है |

(प्रस्तुत सुभाषित एक 'अन्योक्ति' है और 'सूर्यान्योक्ति' के नाम से
संकलित  है |   लाक्षणिक रूप से इसका तात्पर्य यह है  कि किसी महान
और तेजस्वी व्यक्ति की उपस्थिति में साधारण जन महत्त्वहीन  हो
जाते हैं | )

Khadyoto dyotate taavadyaavannodayate shashee.
Udite tu  sahasraanshau na  khadyoto na chandramaa.

Khadyoto = firefly.   Dyotate = shines.  Taavadyaavannodayate =
taavat + na + udayate.    Taavat = until.   Na = not.   Udayate =
rises in the sky.    Sashee = the Moon.     Udite = after the rising
of.   Tu = but, and.   Saharaamshau = the Sun.   Na = not.
Chandramaa = the Moon.

i.e.      A firefly illuminates the night until the Moon rises in the
Sky.  But when the Sun rises in the Sky,  neither the firefly nor
the Moon  are of any relevance.

(This Subhashita is an 'allegory' (called 'Anyokti' in Sanskrit).The
idea behind it is that  ordinary people lose their relevance in the
presence of a great and illustrious person.)

Friday, 1 December 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashitdrua.


गणिका गणकौ  समानधर्मौ  निज पञ्चाSङ्गनिदर्शकावुभौ  |
जनमानसमोहकारिणौ तौ विधिना वित्तहरौ विनिर्मितौ       ||
                                         - सुभाषित रत्नाकर (सभा तरंग )
भावार्थ -  एक वेश्या और एक ज्योतिषी दोनों की आजीविका में समानता
है | दोनों उसके लिये अपने अपने पञ्चाङ्गों  का उपयोग करते हैं | वे दोनों
जनता को अपनी चतुराई  और कला से विमोहित करते हैं और विधाता ने
उन्हें लोगों का धन हरण करने के लिये  ही निर्मित किया है |

(प्रस्तुत सुभाषित 'कुगणक निन्दा ' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है | इस
में 'पञ्चाङ्ग' शब्द द्विअर्थक रूप में प्रयुक्त किया गया है | ज्योतिषी जिस
पञ्जिका का उपयोग करते हैं उसमें समय की गणना के पांच प्रमुख अंगों
तिथि , वार, नक्षत्र ,करण तथा योग का वर्णन होता है |अतः उसे पञ्चाङ्ग्
कहते हैं | एक गणिका अपने नेत्रों , केशों, मुख आदि के  प्रदर्शन द्वारा अपने
ग्राहक को संमोहित कर उसका धन हरण करती है |  एक कुगणक  की तुलना
एक वेश्या से इस लिये की गई है कि ऐसे गणक  भी बुरी दशा का भय दिखा
कर लोगों  का धन हरण करते हैं |)

Ganikaa ganikau  samaanadharmaa nija panchaangnidarshakaavuhau.
Janamaanasamohakaarinau tau vidhinaa vittaharau vinirmitau.

Ganikaa = a prostitute.   Ganakau = an astrloger.   Samanadharmau =
having a similar profession.  Nija = one's own.    Panchaang = (i)  an
almanac. (ii) five parts of the body used to attract people   Darshakaa =
viewers. Ubhau =both.   Janamaanasa = minds of the general public. 
Sammohakaarinau = bewitching and fascinating.     Tau = they. 
Vidhinaa = by the Destiny.   Vittaharau = taking away money.   Vinirmitau=
created, made.

i.e.   There is similarity between the profession of a prostitute and an
astrologer.  Both of them use their 'five faculties' to entice and bewitch
their customers.  Destiny has created them just for taking away the wealth
of people.

(This Subhashita is classified as ' censureing the bad astrologer.'  An
astrologer uses an almanac which is called a 'Panchang' which shows the
five elements of time namely  day, tithi, nakshatra yoga and karana
(celestial positions) with the help of which he gives his so called predictions
and extracts money from his customers. Similarly a prostitute also depends
upon her physical charm to entice her customers .  A cunning  astrologer has
thus been compared to a prostitute.)

Thursday, 30 November 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


यद्ददासि विशिष्टेभ्यो  यच्चाSश्नासि  दिनेदिने  |
तत्ते  वित्तमहं  मन्ये शेषं  कस्याSपि  रक्षसि     ||
                                - सुभाषित रत्नाकर (स्फुट )

भावार्थ -     मुझे उतने ही धन की आवश्यकता होती है जिस से कि
मैं विशिष्ट व्यक्तियों को (दीन दुखियों को तथा समाज के हितार्थ )
 दान कर सकूं तथा अपनी प्रतिदिन की आवश्यकताओं की पूर्ति कर
कर सकूं | अतः मेरी यह मान्यता है कि मैं व्यर्थ में शेष बचे हुए धन
का रक्षक मात्र क्यों बना रहूं ?

(प्रस्तुत सुभाषित 'उदार प्रसंशा'  शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है |  इस
सुभाषित के माध्यम  से यह उपदेश दिया गया है कि अपनी आवश्यकता
से अधिक धन होने पर उसे सत्पात्रों को दान दे कर तथा समाज सेवा के
कार्यों में व्यय कर देना चाहिये |)

Yaddadaasi vishishtebhyo  yacchashnaasi dinedine.
Tattey vittamaham  manye shesham kasyaapi rakshasi.

Yaddadaasi =  yat + dadaasi.    Yat = that.   Dadaasi =
gives.    Vishishtebhyo = particular, specific persons.
Yacchaashnaasi =  yat + cha +ashnaasi.    Cha = and
Ashnaasi = enjoys.   Dinedine = every day.    Tatte=
tat + tey   Tat = that.   Tey = that    Vittamaham =
vittam +aham.    Vittam = wealth, money.   Aham =
I .   Manye = I think.    Shesham = the remaining.
Kasyaapi = kasya+ api.    Kasya = whose.   Api= also,
even.    Rakshasi = guards, saves.

i.e.    I need only that much of wealth which is sufficient
to meet my day to day requirements and my specific needs
(giving donations to the needy and philanthropic work).
I, therefore, think as to why I should simply be a guard of
my remain wealth ?

(The above Subhashita is in praise of generous persons. The
idea behind this Subhashita is that people should not hoard
their surplus wealth and donate it for  philanthropic work.)



Wednesday, 29 November 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


एकचक्रो  रथो  यन्ता  विकलो  विषमा  हयाः |
आक्रमत्येव तेजस्वी तथाप्यर्को  नभस्थलम्  ||
                      - सुभाषित रत्नाकर (कल्पतरु )

भावार्थ -   सूर्य के  रथ  में यद्दपि एक ही पहिया है , सारथी
अरुण भी विकलांग है , और रथ को खींचने वाले घोडों की 
संख्या भी विषम (सात) है , फिर भी सूर्य आकाश में सतत
भ्रमण कर अपने तेज से समस्त विश्व को जीवनदायी प्रकाश
प्रदान करता है |
(प्रस्तुत सुभाषित 'तेजस्विप्रशंसा '  शीर्षक  से संकलित है |
पुराणों में वर्णित उपर्युक्त मिथक को एक रूपक  के रूप में
प्रयुक्त कर यह प्रतिपादित किया गया है कि तेजस्वी व्यक्ति
अनेक विघ्न बाधाओं के होते हुए भी अपने कर्तव्य पर अडिग
रहते हैं |)

Eka-chakro ratho yantaa  vikalo  vishamaa  hayaah .
aakramatyeva tejasvee tathaapyarko  nabhasthalam.

Eka = one.   Chakro = a wheel.   Ratho = a chariot.
Yantaa = driver of the chariot.   Vikalo =  imperfect,
crippled.    Vishamaa = odd in numbers.    Hayaah =
horses.    Aakramatyeva = aakramati+aiva.
Akramati = approaches.   Aiva = really.   Tejasvee =
powerful, vibrant.   Tathaapyarko = tathaapi + arko.
Tathaapi=even then.   Arko=the Sun.   Nabhasthalam=
the sky, firmament.

i.e.          Although the Sun has only one wheel on his
chariot, the driver of the chariot is also  crippled and the
horses pulling the chariot are also odd in number (7), still
the  powerful and brilliant Sun constantly moves around
the sky to provide life sustaining energy to the World.

(This Subhashita is in praise of powerful and brilliant
persons, who shape the lives of  citizens by their deeds,
using the movement of the Sun in the firmament as a
Simile. Such persons are not deterred by the problems
and difficulties faced by them in doing their duty. )

इस सुभाषित पर श्री गोविन्द प्रसाद बहुगुणा की विद्वत्ता पूर्ण
टिप्पणी एक अन्य सुभाषित द्वारा इस प्रकार है :-
Govind Prasad Bahuguna रथस्यैकं चक्रं भुजगयमिताः सप्ततुरगाः 
निरालंबो मार्गश्चरणविकलो सारथिरपि। रविर्यात्यंतं प्रतिदिनमपारस्य नभसः क्रियासिद्धिः सत्त्वे भवति महतां नोपकरणे॥-प्रति दिन सूरज अनंत आकाश में सिर्फ एक पहिये के सहारे अपने रथ को लेकर इधर से उधर यात्रा करता है, उसके 
रथ पर सात घोड़े बिना किसी रस्सी के जुते हैं , उसके रथ का सारथी भी विकलांग है और मार्ग ऐसा है जिसका कोई आधार ही नहीं है -आकाश मार्ग पर यात्रा करता है I ठीक ही कहा है कि महापुरुषों की पुरुषार्थी गतिविधियां केवल साधनों पर आधारित नहीं होती, साधनों की बात तो साधारण लोग ही करते हैं |


Tuesday, 28 November 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


लाङ्गूलचालनमधश्चरणाSवपातं
भूमौ  निपत्य  वदनोदरदर्शनं  च   |
श्वा  पिण्डदस्य  कुरुते गजपुङ्गवस्तु
धीरं विलोकयति चाटुशतैश्च  भुङ्क्ते  || - सुभाषित रत्नाकर
                                                                 (भर्तृहरि)

भावार्थ -  जिस प्रकार एक कुत्ते को अपना पेट  भरने के लिये
अपने स्वामीं के सामने अपने पैरों को झुका कर ,  पूंछ को बार
बार हिला कर , भूमि  पर लोट पोट कर अपने शरीर और पेट को
दिखाना पडता है उसी प्रकार एक विशाल हाथी को भी  धैर्य और
आदर पूर्वक ऐसे ही  सैकडों करतब दिखाने पडते हैं |

(प्रस्तुत सुभाषित 'उदरपूरणदूषणम्' शीर्षक से संकलित है | एक कुत्ते
तथा एक हाथी के व्यवहार के माध्यम से यह व्यक्त किया गया है कि
अपने भोजन की व्यवस्था करने के लिये सभी प्राणियों को भी कभी
निम्नतम  श्रेणी के कार्यों को करने के लिये भी बाध्य होना पडता है | )

Laangoola-chaalanam-adhash-charanaavapaatam
Bhoomau nipatya vadanodar-darshanam cha.
Shvaa pindasya kurute gajapungavastu
Dheeram vilokayati chaatushatiaishcha bhunkte.

Laangoola = tail.     Chaalanam = wagging.     Adhah =
down, below.   Charanaavapatam =charana+avapaatam.
Charana = feet.   Avapaatam = falling down.   Bhoomau=
on the ground.   Nipatya = rolling .   Vadana =  body.
Udar =belly.  Darshanam=exposing, showing up.  Cha=
and.   Shvaa =a dog.   Pinddasya = the master's   Kurute =
does.  Gajapungavastu=gajapungavah+tu.   Gajapungavah =
a large elephant.   Tu = and, but.   Dheeram = gently,
patiently.      Vilokayati = sees.       Chatushataihscha =
Chaatushataih + cha.   Chatushataih =hundred entreaties.
Cha = and.    Bhunkte =  eats.

i.e.     To get some  food and satiate  his hunger , a dog has to
bow before his master ,  wag his tail , roll on the ground by
exposing his belly, and look reverentially and patiently towards
his master. In the same manner even a big elephant too has to do
hundreds of entreaties.

(This Subhashita is classified as 'Problems faced while supporting
oneself'.  Through the examples of a dog and an elephant , the
author has highlighted the fact that at times one has to perform
lowest types of work to support himself.)

Monday, 27 November 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


विश्वाSभिरामगुणगौरवगुम्फितानां
रोषोSपि  निर्मलधियां रमणीय  एव    |
लोकप्रियैः  परिमलैः परिपूरितस्य
काश्मीरजस्य कटुतापि नितान्तरम्या ||
            - सुभाषित रत्नाकर (शार्ङ्गधर)

भावार्थ -  सारे विश्व में अपने गुणों और गौरव के कारण
प्रसिद्ध महान और निर्मल हृदय व्यक्तियों का क्रोध भी  उसी
प्रकार   निर्मल और प्रिय होता है जैसा कि  काश्मीर प्रदेश में
उत्पन्न होने वाले  सुगन्धित केसर के स्वाद में कुछ कडुवापान 
होने पर भी वह अत्यन्त  लोकप्रिय है |

('महाजन प्रसंशा' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित इस सुभाषित में
सरलहृदय और महान व्यक्तियों के स्वभाव की तुलना काश्मीर में
उत्पन्न विश्वप्रसिद्ध मूल्यवान केसर से की गयी है और उनके क्रोध
की तुलना केसर की कडुवाहट से की गयी है | जिस प्रकार केसर की
कडुवाहट उसकी सुगन्ध  और अन्य गुणों के कारण ग्राह्य हो जाती
है वैसे ही महान व्यक्तियों का क्रोध भी दूसरों के हित की भावना से
से ही किया जाता है | )
 
Vishva-abhiraaama-guna-gaurava-gumphitaanaam.
Roshopi  nirmala-dhiyaam ramaneeya eva.
Lokapriyaih parimalaih paripooritasya.
kashmeerjasya katutaapi nitaant ramyaa,

Vishva = the World.      Abhiraama =pleasant, beautiful.
Guna = virtue, attribute.         Gaurava = saffron , pride.
Gumphitaanaam = strung together. tied.        Roshopi =
rosho + api.    rosho = anger.  Api = even.   Nirmal=pure,
unsullied.   Dhiyaam = mentality, mind.     Ramaneeya=
beautiful, pleasant.   Eva = really.   Lokapriyaih = liked
every where.   Parimalaih = fragrances.   Paripooritasya=
filled with.  Kashmeerajasya =grown in Kashmeera.
Katutaapi = even the bitter taste.   Nitaantya =extremely
Ramyaa = enjoyable, pleasant.

i.e.    The anger of great and virtuous persons famous in this
world is also pure and unsullied and is just like the bitterness
of the saffron grown in Kashmir famous for its fragrance and
other qualities and is extremely enjoyable and pleasant in spite
of this shortcoming.

(In this subhashita noble and virtuous persons have been
compared with Saffron, which is famous for its fragrance and
other qualities in spite of some bitterness in its taste,and is very
popular throughout the world.  As the anger of virtuous persons
is also aimed at betterment of the society it is tolerated just like
the bitterness of the saffron.)




Tuesday, 21 November 2017

आज् का सुभाषित / Today's Subhashita


केतकीकुसुमं  भृङ्गः  खण्ड्यमानोSपि सेवते  |
दोषाः किं  नाम  कुर्वन्ति  गुणाSपहृतचेतसः  || - सुभषित रत्नाकर

भावार्थ -   एक काला भंवरा  केतकी के पुष्पों की सुगन्ध से आकर्षित
हो कर अपनी सुधबुध भुला कर टुकडे -टुकडे होने तक उसी के वृक्ष पर 
मंडराता रहता है |   देखो तो !  केवल गुणों को ही देख कर  और अपने
विवेक को खो देने और अवगुणों की अवज्ञा करने का कैसा बुरा परिणाम
होता है |

( प्रस्तुत सुभाषित भी एक 'अन्योक्ति है |केतकी के वृक्ष में सुगन्धित पुष्पों
के अतिरिक्त कांटे भी बहुत होते हैं | केवल सुगन्ध से आकर्षित हो कर और
कांटों की अवज्ञा करने के कारण  भंवरा उनमें फंस कर खण्ड- खण्ड हो जाता है |
लाक्षणिक रूप से इस सुभाषित का तात्पर्य यह है कि केवल वाह्य आकर्षण से
प्रभावित हो कर और दोषों की अवज्ञा कर किसी से संबन्ध बनाने का परिणाम
बहुत बुरा होता है | अतः सोच समझ कर ही किसी से संबन्ध बनाना चाहिये |)

Ketakee-kusumam bhrungah khandyamaanopi  sevate.
Doshaah kim naama kurvanti gunaaapahrutachetasah.

Ketakee = name of a flower having very powerful fragrance. 
Kusumam = a flower.    Bhrungah = a large black bee.
Khandyamaanopi = khandyamaano + api.    Api = even.
Khandyamaano =  broken into pieces.   Sevate = serves, stays
near.   Doshaah = shortcomings, defects.   Kim =  what ?
Naam =what.     kurvanti = do.   Gunaapahrutatejasaah =
Gunaa + aphruta + chetasah.    Gunaa virtues.   Apahruta=
taken away.    Chetasah = mind.

i.e.     Attracted by the powerful fragrance of Ketakee flowers,
and losing its discretion a large black bee hovers over the flowers
util such time it gets reduced to pieces . See, what are the fatal
consequences of having a relationship by being attracted only by
the virtues and  ignoring the shortcomings .

(This Subhashita is also an 'allegory' . The Ketakee tree is also
full of a very large number of thorns, which, if ignored by the bee
results in its destruction.   So, the underlying idea behind  this
Subhashita is that one should  not enter into a relationship by simply
being attracted by a quality and ignoring  other shortcomings.)

Monday, 20 November 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


भूर्जः  परोपकृतये  निजकवचविकर्तनं  सहते |
परबन्धनाय  तु  शणः  प्रेक्षध्वमिहाSन्तरं  कीदृक्  ||
                            - सुभाषित रत्नाकर (शार्ङ्गधर )

भावार्थ -   भूर्ज (भोज) का वृक्ष परोपकार के लिये अपनी छाल के
उतारने का कष्ट भी सहन करता है | परन्तु सन (जूट) का पौधा
लोगों को बांध कर बन्दी बनाने के लिये अपनी छाल उतारवा देता
है | देखो तो !  इन दोनों में कितना अन्तर है  ?

(प्रस्तुत सुभाषित एंक  'अन्योक्ति' है  जो कि  'षणान्योक्ति ' के
अन्तर्गत वर्गीकृत है |  लाक्षणिक रूप से इसका तात्पर्य यह है कि
सज्जन और महान व्यक्ति परोपकार के लिये बडे से बडा त्याग
करने में संकोच नहीं करते हैं , परन्तु दुष्ट व्यक्ति दूसरों को हानि
पहुंचाने के लिये ही ऐसा करते हैं |    प्राचीन काल में भोजपत्र का
उपयोग पुस्तक आदि लिखने मे वर्तमान समय के कागज के स्थान
पर प्रयुक्त होता था | )

Bhoorjah paropkrutaye  nija-kavacha-vikartanam sahate.
Para- bandhanaaya tu shanah preksadhvamihaantaram keedruk.

Bhoorjah = A Birch tree.( in olden times, when paper had not
been invented, its bark was used for writing books on it.)
Paropakrutaye = as a benevolent deed, assisting others.  Nija =
one's own.    Kavacha = outer bark, armour.    Vikartanam =
cutting, peeling.   Sahate =tolerates.  Para =others.   Bandhanaaya=
for arresting or tying.   Tu = and ,but.   Shasnah =  hemp plant.
Prekshadvamihaantaram = prekshadhvam + ihaam +antaram.
Prekshadhvaam = behold.    Ihaaam = here    Antaram =difference
Keedruk = what a .

i.e.    A Birch tree allows its bark to be peeled off as a benevolent
deed , whereas a hemp (jute) plant does the same for tying up or
arresting people.   Oh !  what a difference in the approach of the
Birch tree and hemp plant ?

( The above Subhashita is also an 'Anyokti '  (allegory).  The idea
behind it is that noble persons do not hesitate to make any sacrifice
to help others, whereas mean and wicked persons are motivated to
do so to harm  others.)

Sunday, 19 November 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


आपद्गतः खलु  महाशयचक्रवर्ती
विस्तारयत्यकृत पूर्व मुदारभावम् |
कालागुरुर्दहनमध्यगतः  समन्ता-
ल्लोकोत्तरं  परिमलं प्रकटीकरोति ||अना
              -सुभाषित रत्नाकर (सभा तरंग )

भावार्थ -   उदारमना  और उच्चपदस्थ सज्जन व्यक्ति अपनी
उदारता की भावना का त्याग महान विपत्ति आने पर भी नहीं
करते है और अपने द्वारा किये जा रहे  अधूरे कार्यों  को वैसे ही
पूर्ण करते हैं  जैसा  कि अगुर अग्नि के बीच में जलने  पर भी
अपनी अत्यन्त मोहक सुगन्ध सर्वत्र फैला देता है |

Aapadgatah khalu mahaashaya-chakravartee.
Vistaarayatyakrutapoorvamudaarabhaavam.
Kaaalaagururdahanamadhyagatah-samantaa-
llokottaram parimalam prakateekaroti.

Aapadgatah = fallen into misfortune.      Khalu= truly.
Mahashaya = noble person.   Chakravartee =  holding
highest rank.   Vistaarayatyakrutapoorvamudaarabhaavam=
vistaarayati +akruta+poorvam+ udaarabhaavam.
Vistaarayati = spreads.   Akruta=not made, incomplete.
Poorvam=  earlier.   Udaarabhaavam = generosity.
kaaalaagururdahanamadhyagatah = kaala+aguruh +dahana+
madhyagatah.      Kaala= black.     Agurah = aromatic resin
embedded in  Aloe wood tree.  Dahana = burning.  Madhya-
gatah =during the course of.   Samantaat = all around.
Lokottaram = extraordinary.   Parimalam = fragrance.
Prakateekaroti =  reveals.

i.e.     Noble and righteous persons holding high position in
the society, do not abandon their generosity even while they
fall into misfortune  and complete the generous work in hand,
just like the black  'agur'  resin, which ,on being put on the fire
spreads its extraordinary sweet fragrance everywhere.

     

Saturday, 18 November 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


शिरसि  विधृतोSपि  नित्यं  यत्नादपि सेवितो बहुस्नेहैः   |
तरुणीकच  इव  नीचः कौटिल्यं  नैव  विजहाति               ||
                             -सुभाषित रत्नाकर (प्रसंग रत्नावली )

भावार्थ -   एक युवती यद्यपि नित्य  अपने सिर के केशों को बडे
 यत्न और प्रेम पूर्वक तैल लगा कर संवारती है  फिर भी उसके केश
आपस में उलझना नहीं छोडते हैं | वैसे ही नीच व्यक्ति भी उनके
साथ चाहे  कितना ही प्रेमपूर्वक व्यवहार क्यों न किया जाये  वे
अपनी  स्वभावगत कुटिलता को नहीं  छोडते हैं  |

(प्रस्तुत सुभाषित  'दुर्जन निन्दा ' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है |
एक सुन्दर उपमा के द्वारा उनके स्वभाव का वर्णन किया गया है |)

Shirasi vidhrutopi nityam yatnaadapi sevito bahusnahaih.
Taruneekacha iva neechah kautilyam naiva vijahati.

Shirasi = from the head.   Vidhrutopi = vidhruto+api,
Vidhruto = preserved.    Nityam = daily.   Yattnaadapi =
yatnaat + api.    Yatnaat = with efforts.   Api = even.
Sevito =  served, pampered.   Bahu = much.   Snehai =
(i)affection  (ii) oil.    Tarunee = a young  lady.   Kacha=
hairs of the head.    Iva = like the...   Neechah = a wicked
and mean person.     Kautilyam =  crookedness, curvature.
Naiva = no, not.    Vijahaati = give up.

i.e.   A young woman daily grooms her hair with much care
and devotion by applying hair oil to them , but still the hairs
continue to get entangled with each other.  Likewise, wicked
and mean persons also do not give up their crookedness, no
matter how nicely we may treat them.

(The above Subhashita has been classified under  the head
'condemnation of wicked persons' . Their crooked nature has
been  highlighted through a  befitting simile. )