Monday, 31 July 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.



अखिलेषु विहङ्गेषु हन्त स्वच्छन्दचारिषु  |
शुकपञ्जरबन्धस्ते मधुराणां गिरां फलम्  ||
                                    -सुभाषित रत्नाकर

भावार्थ -    हाय  !   आकाश में  स्वच्छन्द विचरण करने वाले
सभी पक्षियों में से एक तोते को केवल उसकी मधुर ध्वनि के
कारण ही एक पिंजरे में बन्दी बना दिया जाता है |

(उपर्युक्त  सुभाषित  'शुकान्योक्ति'  का एक सुन्दर उदाहरण
है |  तोता अपनी  मधुर आवाज और  मानव द्वारा उच्चारित
शब्दों का अनुकरण करने की प्रतिभा के कारण ही पिंजरे में बन्दी
बना  दिया जाता है और उसके ये गुण ही उसके लिये अभिशाप
स्वरूप हो जाते हैं | लाक्षणिक रूप से इस सुभाषित का यही मन्तव्य
है कि परिस्थिति वश कभी मनुष्य के गुण ही उसको इसी प्रकार हानि
पहुंचाने लगते हैं | )

Akhileshu vihangeshu hant svacchandachaarishu.
Shuka-panjara-bandhaste madhuraanaam giraam phalam.

Akhileshu = among entire.   Vihangeshu = birds.    Hant =
an exclamation expressing sorrow.   Svacchandachaarishu=
those who are independent  and move about at will.
Shuka - = a parrot.    Panjara = a cage.   Bandhaste = kept
in bondage.    Madhuranaam = very pleasing and sweet.
Giraam = voice, speech.   Phalam = as a result of. !

i.e.     Alas !     among all birds roaming freely in the Sky,
a parrot is kept in bondage inside a cage only because of its
sweet voice .

(The above Subhashita is also an 'Anyokti (allegory) .  The
parrot is also known for its mimicking the voice of men,
besides its sweet voice.  So, instead of being of any advantage
to him these qualities are the main cause of it being caged.
Metaphorically it means that under certain circumstance even
the virtues of a person become disadvantageous to him.)

Sunday, 30 July 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


वयं  काका  वयं  काका जल्पन्तीति  प्रगे द्विकाः  |
तिमिरारिस्तमोहन्यादिति  शङ्कितमानसाः         ||
                                                         -  शार्ङ्गधर

भावार्थ -     प्रात: काल  होने पर कव्वे  'काव   काव  ' ध्वनि  कर
कोलाहल करते हुए मानो यह कहते हैं कि हम कव्वे हैं  कव्वे हैं और
हमें  शङ्का  है कि सूर्य ने  उदय हो कर  अन्धकार  नष्ट कर दिया है |

(उपर्युक्त सुभाषित भी 'काकान्योक्ति का एक सुन्दर  उदाहरण है |
लाक्षणिक रूप से इसका तात्पर्य यह है कि कुछ व्यक्तियों  का
स्वभाव ऐसा होता है कि किसी स्पष्ट बात पर भी शङ्का कर वे
व्यर्थ  में विवाद उत्पन्न करते हैं , जैसा कि  सूर्य उदय होने पर कव्वे
कोलाहल   करते हैं |)

Vayam kaakaa vayam kaakaa jalpanteeti prage dvikaah.
Timiraaristamohanyaaditi  shankitamaanasaah |

Vayam = we.    Kaakaa = crows.   Jalpanteeti = jalpanti +
iti.     Jalpanti = chattering, talk loosely    Iti = it.    Prage =
in the morning.    Dvikaah = having two 'ka' alphabets  in
their name  i.e. crows,   Timiraaristamonanyaaditi = timira+
ari + tamo + hanyaat +iti.   Timira = darkness.   Ari =enemy.
timirari = the Sun (enemy of darkness).    Tamo = darkness.
Hanti = kills, destroys.   Shankita = suspicious, doubtful.
Manasaah = mind.
by
i.e.    After the Sunrise in the morning the crows  talk loosely,
 that we are crows , we are crows, as if they are suspicious and
doubtful about the fact that the darkness oi the night is destroyed
by the  rising Sun.

(The above Subhashita is also a 'Kaakaanyokti' The underlying
idea behind it is that there are some people  in the society who are
always suspicions and doubtful about even an established fact and
make much hue and cry about it, like the crows making loud noise
at the time of  the Sunrise.)


Saturday, 29 July 2017

आज का सुभाषित / Today's Sibhashita..


गात्रं  ते मलिनं तथा श्रवणयोरुद्वेगकृत्केकृतं
भक्ष्यं सर्वमपि स्वभाव चपलं  दुश्चेष्टितं  ते सदा |
एतैर्वायस  संगतोSस्य विनयैर्दोषैरमीभिः  परं
यत्सर्वत्र  कुटुम्बवत्सलमतिस्तेनैव  धन्यो भवान् || -  शार्ङ्गधर

भावार्थ -  ओ कव्वे !   तुम्हारा रंग काला है और तुम जो  'कांव  कांव '
का शोर करते हो वह् कानों को बहुत कष्टप्रद  होता है | भोजन के मामले
में तुम सर्वभक्षी हो और  स्वभाव से तुम बहुत चंचल और  चालाक हो |
इन सभी दोषों के होते हुए भी तुम अपने अन्य साथी कव्वों के साथ मित्रता
और शान्ति के साथ  एक सुखी परिवार की तरह रहते हो , और इस के लिये
तुम धन्यवाद के पात्र हो  |

उपर्युक्त सुभाषित 'काकान्योक्ति ' के  अन्तर्गत संकलित है | लाक्षणिक
रूप से इस का तात्पर्य यह है कि बाहरी रूप रंग सुन्दर न होने पर भी यदि
किसी व्यक्ति में दूसरों के प्रति मित्रता और सहयोग की  भावना तथा एक
परिवार के रूप में रहने की प्रवृत्ति हो तो ऐसा व्यक्ति समाज में सम्मानित
होता है | )

Gaatram tey malinam tathaa  shravanayo-rudvega-krut-kekrutam.
Bhakshyam sarvamapi svabhaava  chapalam dushcshthitam tey sada.
Etair-vaayasa sangatosya vinayair-doshai-rameebhih param.
Yatsarvatra  kutumba-vatsala-matis-tenaiva dhanyo  bhavaan.

Gaatram = body.   Tey = your.   Malinam = dirty (black)   Tathaa  =
so, such.   Shravanayoh = to the ears.   Udvegakruta = causing agita-
tion or anxiety.    Kekrutam = producing sound as 'kaav kaav' .
Bhakshyam = to be eaten.   Sarvamapi = sarvam + api . Sarvam =
all things   Svabhaava = nature, impulse.   Chapalam = fickle.
Dushcheshtitam =misbehaving.   Sada = always.   Etaih = these.
Vaayasa=crows.  Sangatosya=sangato +asya.   Sangato= friendship.
Asya = this.  Vinayeh =humility .  Doshaih = shortcomings, defects.
Ameebhih = grief.    Param =another.    Yatsarvatra = everywhere.
Kutumba = family.   Vatsaal = fond of.   Matih = intellect, mind.
Tenaiva =for this reason.   Dhanyo = blessed.    Bhavaan = you .

i.e.     O  crow !   Your body colour is dark black and  the sound
'kaav kaav' you produce is very shrill and causes pain in the ears.
You eat all types of food.  and  by nature you are always very fickle
minded and cunning.  But in spite of all these shortcomings,  you are
a blessed lot , because your behaviour with other crows is always very
friendly and you are fond of living as a family .

(This Subhashita is classified as a 'Kaakaanyokti. The underlying idea
behind it is that outer appearance and food habits do not matter much
if a person maintains friendly relations with others and is fond of family
life. )



Friday, 28 July 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


ग्रासोद्गलितसिक्थस्य करिणः किं  गतं  भवेत्  |
पिपीलिका  तु  तेनैव  सकुटुम्बोपजीवति            ||
                                               -प्रसंग रत्नावली

भावार्थ -     एक हाथी के मुंह् से गिरे  हुए भोजन के  एक
ग्रास से उसको तो कोई विशेष हानि नहीं होती है, परन्तु
चींटियों का एक संपूर्ण परिवार उस गिरे हुए ग्रास से अपना
जीवनयापन कर सकता है |

(उपर्युक्त सुभाषित भी एक अन्योक्ति है और 'संकीर्णान्योक्ति'
शीर्षक से संकलित है |   लाक्षणिक रूप से इसका तात्पर्य यह
है कि  धनवान व्यक्तियों के लिये जो धनराशि मुंह् से उगले
हुए एक ग्रास के समान तुच्छ होती है वही किसी गरीब व्यक्ति
के परिवार के भरणपोषण के लिये पर्याप्त होती है |)

Graasodgalitsikthasya karinah kim gatam bhavet.
Pipeelikaa  tu  tenaiva  sakutumbopajeevati.

graasodgalitasikthasya = graasa + udgalita= sikthasya.
graasa = bite, a bitten morsel.   Udgalit =oozed out.
Sikthasya = of a lump of mouthful food.    Karinah =
elephants.    Kim = what ?/    Gatam = gone  away.
Bhavet = happen.   Pipeelikaa = an ant.   Tu = but,and.
Tenaiva =  from the same.       Sakutumbopajeevati =
sakutumba + upajeevati.   Sakutummba = with its
entire family.   Upajeevati = be supported by, subsist.

 i.e.     A morsel of chewed food falling on the ground
from the mouth of an elephant is of no significance to
him,  but the entire community of ants can subsist  upon
it for some time.

(The above Subhashita is also an 'Anyokti' (allegory).
The idea behind it is that for the very rich persons  an
amount of money which is like a morsel of food oozed
out from the mouth, the same can sustain a poor family
for a long period. )

Thursday, 27 July 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


पत्रपुष्पफलच्छायामूलवल्कलदारुभिः  |
धन्यामहीरुहा  येभ्यो  निराशा यान्ति नाSर्थिनः ||
                                                 - प्रसंग रत्नावली

भावार्थ -   धन्य हैं वे वृक्ष जो अपने पत्तों, फूलों, फलों ,जडों ,छाल,
लकडी और छाया से प्राणिमात्र की सहायता करते हैं  और उनके पास
से कोई भी याचक निराश नहीं लौटता है |

(उपर्युक्त सुभाषित ' वृक्षान्योक्ति ' का एक उदाहारण है \ लाक्षणिक
रूप से इसका तात्पर्य यह है कि उदारहृदय और सज्जन व्यक्ति अपने
तन मन धन से सभी की सहायता करते हैं और उनके यहां  से कोई भी
याचक निराश नहीं लौटता है |  कहा भी गया है कि  - 'उदार चरितानां
तु वसुधैव कुटुम्बकम'  | )

Patra-pushpa-phala-cchaayaa-moola-valkala-daarubhih.
Dhanyaa-maheeruhaa  yebhyo  niraashaa yaanti naarthinah.

Patra = leaves.    Pushpa =flowers.    Phala = fruits.    Chaayaa=
shade.  Moola = roots.   Valkala = bark of a tree.   Daarubhih =
wood.     Dhanya = blessed.   Maheeruhaa = trees.   Yebhyo  +
from whom.   Niraashaa = hopelessness, despair.   Yaanti = get.
Naarthinah = na + arthinah.    Na = not.    Arthinah = beggars.

i.e.        Blessed are the trees, who help all the living beings by
providing their leaves, flowers, fruits,roots, bark and cool shade,
and nobody is  returned by them without fulfilling his desire.

(The above Subhashita is  also an 'Anyokti'  (allegory) using
trees as a medium.  The idea behind the subhashita is that like
the trees, noble and righteous persons also help  the needy with
all the means at their disposal and no seeker of help is ever
returned by them without fulfilling his desire.)








wood

Wednesday, 26 July 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita'


यद्यपि चन्दन विटपी विधिना फलकुसुमवर्जितो हि कृतः  |
निजवपुषैव  परेषां  तथाSपि  संतापमपनयति                    ||
                                                                       - शार्ङ्गधर

भावार्थ -    यद्यपि  विधाता ने चन्दन के वृक्ष को फलों और फूलों से
विहीन ही बना है परन्तु अपने सुन्दर गुणों  (सुगन्ध तथा शीतलता
प्रदान करना) के कारण वह लोगों के  दुःख और पीडा को दूर करता है |

(उपर्युक्त सुभाषित 'चन्दनान्योक्ति ' के रूप में संकलित है | लाक्षणिक
रूप से इस का तात्पर्य यह् है कि सज्जन और गुणवान व्यक्ति यद्यपि
धनवान नहीं होते हैं परन्तु अपने गुणों और स्वभाव के कारण वे लोगों
के कष्टों और दुःख को दूर करने के लिये सदैव तत्पर रहते हैं और समाज
में सदैव सम्मानित होते हैं  | )

Yadyapi chandan  vitapi vidhinaa phala-kusuma-varjito hi krutah.
Nija-vapushaiva pareshaam tathaapi smtaapa-mapanayati.

Yadyapi = although.   Chandan = sandalwood.   Vitapee = tree.
Vidhinaa =   by the destiny.    Phala = fruits.       Kusuma = flowers.
Varjito = without, deprived of.     Hi =  indeed.     Krutah = made.
Nija = one's own.   Vapushaiva = vapush +eva.    Vapusha =wonder-
ful beauty.    Eva = really, already.  Pareshaaam = others.   Tathaapi =
even then.                      Santaapamanayati = santaapam + apanayati.
Santaapam = suffering , pain.    Apanayati = removes, takes away.

i.e.     Although destiny has not provided flowers and fruits to a
Sandalwood tree, even then it is able to give relief  to the people from
pain and suffering due to its other beautiful qualities (of  its sweet
smell and coolness).

(The above Subhashita is classified as a 'Chandanaanyokti '.  The
idea behind it is that although noble and virtuous persons may not
be rich and powerful, due to their kind and pleasing nature they are
always helpful to others and are respected in the society.)



Tuesday, 25 July 2017

आज का सुभाषिiत / Today's Subhashita.


भूर्ज:  परोपकृतये निजकवचविकर्तनं सहते  |
परबन्धनाय तु शण:  प्रेक्षध्वमिहाSन्तरं कीदृक्  ||- शार्ङ्गधर

भावार्थ -    भोजवृक्ष  परोपकार करने के लिये अपनी छाल उतारना
भी सहन कर  लेता है |  परन्तु देखो तो यह सन का पौधा भी कैसा
है कि दूसरों को बंधवाने के लिये ही अपनी छाल  उतारवा लेता है |

(उपर्युक्त सुभाषित भी एक अन्योक्ति है और 'शणान्योक्ति ' के
अन्तर्गत संकलित है |  प्राचीन समय में जब कागज का आविष्कार
नहीं हुआ था तब  पुस्तकें लिखने के लिये भोज वृक्ष की छाल प्रयुक्त
की जाती थी | इसी प्रकार सन के पौधे की छाल रस्सियां बनाने मे
प्रयुक्त होती है जो लोगों को बांधने के काम आती हैं | लाक्षणिक रूप
से इस सुभाषित का तात्पर्य  यह है कि सज्जन व्यक्ति परोपकार के
लिये अपना सर्वस्व निछावर कर देते है  परन्तु  दुष्ट  व्यक्ति दूसरों
को दुख देने के लिये ही ऐसा करते हैं  |)

Bhoorjah  paropakrutaye  nija-kavacha-vikartanam sahate.
Para-bandhanaaay tu  shanah prekshadvamihaantaram keedruk.

Bhoorjah = a tree grown in Himalayas.  Its bark was used for
writing manuscripts in olden times when paper was not in use.
Paropakrutaye - for helping others.  Nija = its own.  Kavacha =
bark (outer protective skin of a tree)   Vikartanam = cutting.
Sahate = tolerates.    Para =others.    Bandhanaaya = for tying.
Tu = but.   Shanah = Hemp plant. Its skin us used for making
ropes.     Prekshdhvamihaantaram =  prekshadhvam +   iha +
antaram.    Prekshadhva = look, view.    Iha = in this case, here.
Antaram = difference.    Keedrusha =   of what kind .

i.e.    The 'Bhoorja' tree  even tolerates skinning of its trunk for
helping others.   But see, what kind of plant is the Hemp, which
allows itself to be skinned for the purpose of tying up people.

(The  above Subhashita is also an "Anyokti" .   In olden times
when paper was not invented books were written on the bark of
'Bhoorja' tree, whereas the skin of the Hemp plant is also used
to make ropes.   Using this as an  allegory the idea behind this
Subhashita is that noble persons do not hesitate to sacrifice even
their life to help the needy , whereas in contrast the wicked and
mean persons do so to harm others.)

Monday, 24 July 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


उत्तुङ्गमत्तमातङ्ग  मस्तकन्यस्तलोचनः  |
आसन्नेपि च  सारङ्गे  न  वाञ्छा  कुरुते हरिः    || - शार्ङ्गधर

भावार्थ  -    जब एक पराक्रमी सिंह किसी  मदमस्त और ऊंचे कद
के हाथी को ,जिसका मस्तक खुला हुआ और नेत्र उनींदे हों , देखता
है तो वह अपने निकट ही आखेट के लिये सुलभ हरिण की इच्छा
नहीं करता है  ( और हाथी पर ही आक्रमण करता है ) |

( यह सुभाषित  'स्फुट ' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है |  लाक्षणिक
रूप से इसका तात्पर्य यह है कि कोई शक्त्तिशाली व्यक्ति किसी
निरीह शक्तिहीन व्यक्ति को सताए या मारे तो उसमें कोई महानता
नहीं है | अपने समकक्ष व्यक्ति से  ही प्रीतिऔर विरोध शोभा देते हैं  |
तुलसीदास जी ने भी रामायण में कहा है  कि - " प्रीति विरोध समान
सन करिय  नीति असि आहि |  जौं मृगपति वध मेढकन्हि भल कि
कहइ  कोउ ताहि | )

Uttunga -matta -maatang  mastakanyast alochanah.
Asannepi cha saarange na vaanchaam kurute harih.

Uttaunga=  tall.    Matta = boozed up, mad.   Maatanga=
elephant.  = mastaka + nyast +lochanh .   Mastaka = head
Nyasta = exposed    Lochan =eyes.   Asannepi = aasanne +
api.    Asanne = vicinity,proximity.  Cha = and.   Saarange =
spotted antelope. Na= not.  Vaanchaam = desire.   Kurute =
does.  Harihi = a Lion.

i.e.     Whenever a Lion sees a tall and boozed up  elephant
with exposed head and sleepy eyes,  he does not desire to kill
an  antelope nearby ( who is an  easy prey, and attacks the
elephant).

(The above Subhashita is also an 'Anyokti' classified as
'miscellaneous.   The idea behind the allegory of a lion, deer
and an elephant, is that  enmity (as also friendship) is proper
only between persons of equal status and not between meek
and powerful persons.  Tulasi Daas, a Hindu poet has aptly
said that if a Lion kills frogs  to sustain himself, no body will
appreciate it. )

Sunday, 23 July 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashit



चातकः स्वानुमानेन जलं  प्रार्थयतेSम्बुदात्  |
न स्वोदारतया सर्वा प्लावयत्यम्बुना  महीम्  || -शार्ङ्गधर

भावार्थ -     एक  चातक पक्षी अपने अनुमान (आवश्यकता)
के अनुसार मेघों  से उसे जल प्रदान करने की प्रार्थना करता है |
परन्तु सभी मेघ उदार नहीं होते हैं और और आवश्यकता से भी
अत्यन्त अधिक जल प्रदान कर सारी पृथ्वी को जलप्लावित
(बाढ की स्थिति ) कर देते हैं |

(उपर्युक्त सुभाषित भी 'मेघान्योक्ति ' का एक सुन्दर उदाहरण
है |  लाक्षणिक रूप से एक चातक के माध्यम से अतिवृष्टि से  बाढ
उत्पन्न होने की स्थिति (तथा अनावृष्टि भी )के कारण लोगों को
होने वाली  विपत्ति का  वर्णन  किया  गया है )

Chaatakah svaanumaanena jalam praarthayatembudaat.
Na svodaaratayaa sarvaa Plaavayatyambunaa maheem.

Chatakah = a bird named Chatak.      Svaanumaanena =
sva + anumaanena .   Sva = one's own.   Anumaanena  =
guess.    Jalam = water.    Praarthyatembudaat = praartha-
-yate + +daat.    Praarthayate = requests.    Ambu =
water.     Daat = given.    Na = not.    Svodaarataya  =
sva = udaarataya.    Udaaratayaa = liberally.   Sarvaa  =
all.       Plaayatyambunaa =  plaavayati  +  ambunaa.
Plaavayati = inundates.       Ambunaa = by the water.
Maheem = the Earth.

i.e.    A Chatak bird requests the  clouds for rain according
to its requirements.  But all the clouds are not so kind and
liberal  and inundate the Earth with water (create  floods).

(The above Subhashita is also a  'Meghaanyokti' .  Through
the  allegory of a 'Chaatak' bird, the author has described
the hardships faced by people due to floods (as also drought
like situation due to no rain) on account of erratic behaviour
of clouds .)

Saturday, 22 July 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


जलधर जलभरनिकरैरपहर परितापमुद्धरं जगतः |
नोचेदपसर  दूरं हिमकरकर  दर्शनं  वितर             || -शार्ङ्गधर

भावार्थ -     ओ जल से भरे हुए मेघ !   ऊष्णता (गरमी ) से त्रस्त
इस पृथ्वी के कष्टों को जलवृष्टि के द्वारा दूर करो  अन्यथा यहां
से दूर शीतलता प्रदान करने वाले चन्द्रमा के दर्शनो के लिये चले
जाओ ||

(यह सुभाषित भी एक 'मेघान्योक्ति ' है | इस में बादलों से व्यङ्ग्य
पूर्वक कहा  गया है कि यदि तुम गरमी से संतप्त  लोगों के कष्ट को
दूर करने के लिये वृष्टि नहीं करते हो तो हमें क्या लाभ है | इससे अच्छा
तो तुम सुदूर चन्द्रदर्शन करने के लिये (हिमालय में ) चल जाओ |
लाक्षणिक रूप से इसका तात्पर्य यह  है कि यदि धन संपत्ति यदि
लोगों के कष्ट दूर करने के काम न आये तो वह् दूर से चन्द्रदर्शन करने
के समान है | )

Jaladhar  jalabharnikarairapahara paritaapamuddharam jagat.
Nochedapasar dooram himakarakara darshanam vitar.

Jaladhara = a cloud.     Jalabharanikarairapahara = jalabhara+
nikaraih + apahar.   Jalabhara = bringing water.   Nikaraih =
multitudes.  Apahara=take away , deprive.   Paritaapamuddhatam=
Paritaap + uddhatam.    Paritaap = heat, sorrow.   Uddhatam =
proudly, carelessly.    Jagat = this world.    Nochedapahar = no +
chet= apasara.   Nochet = otherwise.   Apasara =apology,distance.
Dooram= far away..    Himakarakaradarshanam = himakar + kara+
dardhsnsm.    Himakara = Moon, causing cold    Kara  =causing cold,
Darshanam = see.    Vitara = leading far away.

 i.e.     O rain bearing cloud full of water !  give relief to  the World
suffering from intense heat by providing your water.  Otherwise ,
better go to far away places to view the Moon (to cool yourself).

(The above Subhashita is also an 'Anyokti' using a satire. The author
says that of what use is a cloud if it does not rain.  The idea behind it
is that wealth if not used for mitigating the hardships of needy people
it is of no use and is like viewing the moon far away.)

Friday, 21 July 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


प्रावृषेन्यस्य मालिन्यं दोषः कोSभीष्टवर्षिण:  |
शारदाSभ्रस्य  शुभ्रत्वं वद  कुत्रोपयुज्यते    || - शार्ङ्गधर

भावार्थ -  कौन कहता है कि  वर्षा ऋतु में बादलों का कालापन उनका
एक दोष है ?   उनसे तो  जलवृष्टि की ही कामना की  जाती है |  भला
शरद ऋतु के शुभ्र (सफ़ेद्) बादलों की क्या  उपयोगिता है  ?

(प्रस्तुत शुभषित भी एक अन्योक्ति है और 'मेघान्योक्ति ' के अन्तर्गत
संकलित है |   लाक्षणिक रूप से इसका तात्पर्य यह है कि किसी व्यक्ति
की  केवल सुन्दरता  (गोरा रंग ) किसी काम का नहीं होता है यदि उसमें
कोई गुण न हो |   कुरूप परन्तु गुणवान व्यक्ति का सम्मान सभी करते हैं.
जैसा  कि वर्षा ऋतु के काले बादलों का न कि शरद ऋतु के बादलों का  |)

Pravrushenyasya  naalinyam  doshah kobheeshtavarshinah.ashcha
Sharadaabhyashcha shubhratvam vada kutropayujyate.

Praavrushenyasya = pravrushe + anyasy.     Pravrushe = the rainy
season.    Anasya = other's.   Maalinyam = darkness.   Doshah =
defect.    Kobheeshtavarshinah = ko + abheeshta+ varshinah.
Ko = who ?   Abheeshta =   desired, wished.   Varshinah = raining.
Shaaradaabhyashcha = shaarada = abhyashcha.    Shaarada= the
season of autumn.      Abhyrshcha = cloud's        Shrubhratvam =
whiteness.    Vada = say, tell.    Kutropayujyate = kutra =upayujyate
kutra = where.    Upayujyate = useful.

i.e.     Who says that the dark blackness of  the rain clouds is their
defect  ?  Every  one expects rain from them .  On the other hand
what is the usefulness of  pure white clouds of the autumn  season ?

(The above Subhashita is also an 'Anyokti' (allegory)  The underlying
idea behind it is that only fairness of face of  a person is of no use
if  there are no virtues in a person,  A virtuous dark skinned person is
more desirable than such a person )

Thursday, 20 July 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.

एकस्य तस्य मन्ये धन्यामम्बुन्नतिं  जलधरस्य  |
विश्वं सशैल काननमाननमवलोकते  यस्य          || - (स्फुट) 

भावार्थ -     मेरी यही  मान्यता है कि एक मेघ को लोग शुभ और
गुणवान केवल इस लिये मानते हैं कि उस के द्वारा प्रदत्त जल से
 ही हम  उन्नति करते हैं  तथा समस्त विश्व के वन  और पर्वत उस
की ओर आशा भरी दृष्टि से प्रचुर जलवृष्टि होने की कामना करते हैं |

(जल और वायु प्रकृति के दो ऐसे घटक हैं जिन के बिना संसार में प्राणी
जीवित नहीं रह सकते हैं |  पृथ्वी में जल के वितरण का प्रमुख साधन
जल से परिपूर्ण मेघ ही होते हैं और मनुष्य के सारे क्रियाकलाप  वृष्टि
पर ही निर्भर होते हैं,जिसे  इस 'मेघान्योक्ति ' में प्रतीकात्मक रूप से
व्यक्त किया गया है  | कहा भी गया है कि - "जल ही जीवन है " | )
Ekasya  tasya  manye dhanyaamambunnatim jaladharasya.ee
Vishvam sashaila kaananam-anananm-avalokate  yasya.

Ekasya = One.    Tasya = his, its.   Manye = I think.  Dhanyaam=
virtuous , auspicious.    Ambu   = water.  Unnatim =  prosperity.
increase.    Jaladharasya = of the cloud.    Vishvam =  the World.
Sashaila = mountainous.   Kaanana = forests.   Ananam = face.
Avalokate = observe, behold.   Yasya = whose.

i.e.      I think that people consider a rain bearing cloud auspicious,
because the living beings on the Earth  progress only because of the
precious water provided by it and  all the forests and mountains of
the World look forward towards it  with the hope of getting  copious
rainfall.

( Water and air are the two major components of Nature .for the
existence of living beings on the Earth.  In this 'Anyokti' (allegory)
the author has expressed the importance of Water for the humanity.) 

Wednesday, 19 July 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


त्वमेव  चातकाSSधार  इति  केषां  न गोचरः  |
किमम्भोद  वदाSस्माकं कार्पण्योक्तिं प्रतीक्षसे || -  शार्ङ्गधर

भावार्थ -    ओ मेघ  !   तुम ही अकेले एक चातक के आधार हो
यह्  क्या किसी को दिखाई नहीं दे रहा है ?  हमें बताओ कि अपने
जल को प्रदान करने में इतनी कृपणता (कंजूसी) दिखा कर हमसे
प्रतीक्षा क्यों करा रहे हो ?

(उपर्युक्त सुभाषित  'मेघान्योक्ति' के  अन्तर्गत संकलित है |
इस में लाक्षणिक रूप से चातक पक्षी के माध्यम से एक मेघ को
उलाहना दिया गया है कि सभी लोग जल वृष्टि की प्रतीक्षा कर
रहे हैं| तो फिर इतनी कंजूसी क्यों दिखा रहे हो | कहा भी है कि - "
का वर्षा जब कृषी सुखाने  | समय चुके पुनि का पछताने " )

Tvameka chatakaadhaar iti keshaam  na gochara.
Kimamabhoda  vadaasmaakam  kaarpanyoktim prateekshase.
ak bird
Tvameva = you only.   Chaatakaadhaar = chaatak + aaadhaar.
Chaatak = name of a bird.   Adhaara = support.   Iti =  this.
Keshaam = from whom    Na = not.    Gocharah = to be seen.,
perceptible. Kimamabhodha = kim + ambodha.    Kim =  what.  
Ambodha=a cloud.    Vadaasmaakam =vada + asmaakam.  
Vada = tell.  Asmaakam = to us.   Kaarpanyoktim = kaarpanya +
uktim.    Karpanya = parsimony, great care in spending.  Uktim =
expression.   Prateekshase= waits for.

i.e.    O rain bearing Cloud !   Don't  you see that you are the only
means of support (supply of water) for the Chaatak bird ? Tell us
as to why you are showing so much miserliness in providing water
and compelling us to wait for the rain ?
i
(This Subhashita is also an 'Anyokti' classified as 'Meghaanyokti' .
The underlying idea is that if the rain is not received  timely and is
delayed, it causes miseries to every one.  It is a folk lore that the
Chatak drinks rain water only during a specific celestial position
of stars in the sky. This has been used as an 'allegory' in this shloka,)

Tuesday, 18 July 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita .

वितर वारिद  वारि  दवातुरे  चिरपिपासित  चातक  पोतके |
प्रचलिते मरुति क्षणमन्यथा  क्व च भवान्क्व पयः क्व च  चातकः | |
                                                                         -शार्ङ्गधर

भावार्थ -   ओ मेघ !  तुम वनाग्नि से पीडित और चिर काल से प्यासे
चातक पक्षी के बच्चे को अपना जल तुरन्त प्रदान करो  क्यों कि इस
समय अनुकूल वायु बह रही है | अन्यथा  एक क्षण के बाद कहां आप ,
कहां दूध(जल) और कहां चातक पक्षी ?

( यह सुभाषित भी 'चातकान्योक्ति' का उदाहरण है |  कवि बादल को
उलाहना देते हुए कहता है कि जलवृष्टि कर चातक पक्षी की पिपासा
को शान्त कर उसके  जीवन की रक्षा करो | दि० १९ जून २०१७ के सुभाषित
में चातक के बारे में जो किंवदन्ती है कृपया उसका भी संदर्भ लें | लाक्षणिक
रूप से इस का तात्पर्य यह है कि जो भी सहायता की जाय वह यथासमय
होनी चाहिये |)

Vitar  Vaarid vaari davaature  chirapipaasita chaaat potake
Prachilate maruti kshnamanyathaa kva cha bhavaankva payah -
kva cha chaatakah.

Vitar = distribute, lend.   Varid = a cloud.   Vaari = water.
Davaatura = Dava + aatura.    Dava = fire.   Atur =suffering from.
Chirpipaasita = thirsty since  a long time.   Chaatak = a bird, which  
is supposeed to drink only rain water during a certain celestial
position of stars in the sky (for details please refer the Subhashita
dt.19th June,2017.    Potake =  a young chatak bird.   Prachalite =
 blows,  moves.   Maruti  = wind.  Kshanamanyathaa = kshanam +
anyathaa.  Kshanam = moment.   Anyathaa = otherwise.   Kva = what ,
where.  Cha = and   Bhavaan = you (showing respect)   Paya = milk.

i.e.    O benevolent Cloud !   please  provide water immediately to the
young Chatak bird thirsty since long and suffering from the fire in the
forest and thirsty since long . Presently the wind is also blowing favou-
rably.  Otherwise in a moment, where  your good self will be ,where will
be the water and what will happen to the Chaatak ?

(This Subhashita is also a 'Chatakaanyokti' discussed earlier. The idea
behind it is that whatever help one may give, it should be given timely,)

Monday, 17 July 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashia.

न  यत्र  गुणवत्पात्रमेकमप्यास्ति  सन्निधौ  |
कस्तत्र  भवत : पान्थ  कूपेSSम्बुग्रहणाSग्रहः || - (स्फुट)

भावार्थ -    ओ यात्री  !      तुम्हारे पास या निकट में एक लम्बी
डोर  युक्त एक भी पात्र (लोटा ) नहीं है | तो बताओ तुम इस कुवें
से जल किस प्रकार प्राप्त कर पाओगे ?

 (उपर्युक्त सुभाषित भी एक अन्योक्ति है |   प्राचीन काल में यात्री
अपने साथ एक लोटा और लम्बी डोरी रखते थे | प्यास लगने पर वे
मार्ग में कोई कुवां मिलने पर वे लोटा-डोर की सहायता से कुवें से जल
निकाल कर अपनी प्यास बुझा लेते थे |लाक्षणिक रूप से इस सुभाषित
का तात्पर्य यह है कि जब तक एक गुणवान और सुपात्र शिष्य नहीं होता है
वह् अपने गुरु से ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता है | यहां कुवां  गुरु का, जल
ज्ञान का,  यात्री शिष्य का,  तथा लोटा -डोर शिष्य के समर्पण -भाव  का
प्रतीक है |  गुण और पात्र द्विअर्थक रूप में प्रयुक्त किये गये हैं  | )

Na yatra gunavat-paatra-meka-mapyasti sannidhau.
Kastatra bhavatah  paantha  koopembugrahanaagrahh.

Na + not.    Yatra  = where.   Gunavat = having a long
rope.,   having virtuous.   Paatram = a utensil,  suitable
recipient.    Ekam = one       Api - even.      Asti = is
Sannidhau = in the vicinity, near.   Kastatra =  Kahh +
tatra.    Kahh= what    Tatra=there.   Bhavatah =  you.
Paantha = a traveller.   Koopembugrahanaagrahah ana =
Koope + ambu + grahana + aagrahh.   Koope = a well.
Ambu = water.   Grahana = receive.   Agraha =request.

i.e.    O traveller,  you do not possess a long rope and a
utensil . Then tell me how will you be able to fetch water
from the well and quench your thirst ?

(This Subhashita is also an 'Anyokti' ,  Here the words
'Guna' and 'Paatra' have two meanings, the second ones
being 'virtues' and  ' a worthy recipient'.  The well has
been alluded for the Teacher, water for knowledge and
the rope and utensil for the dedication of the student,
thereby implying that without dedication and being a
worthy recipient, one can not get knowledge from a Guru.)





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Sunday, 16 July 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.

अस्ति यद्यपि सर्वत्र नीरं नीरजमण्डितम्  |
रमते  नैव  हंसस्य  मानसं  मानसं  विना    || - शार्ङ्गधर

भावार्थ -    यद्यपि  बादलों द्वारा प्रदान किये गये  निर्मल जल
से पूरित जलाशय सर्वत्र इस पृथ्वी में हैं , परन्तु राजहसों का मन
मानसरोवर में जलविहार किये विना आनन्दित नहीं होता है  |

(यह सुभाषित भी  'हंसान्योक्ति ' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है |
लाक्षणिक रूप से  इस का तात्पर्य यह है कि गुणवान और विशिष्ठ
व्यक्ति अपने ही समान व्यक्तियों के संपर्क में ही आनन्दित होते
हैं | यहां मानसरोवर अन्य साधारण सरोवरों की तुलना में अपने
धार्मिक महत्व के कारण विशिष्ठता और श्रेष्ठता का प्रतीक है |)
                                 
Asti yadyapi  sarvatra neeram neeraj manditam.
Ramate na maralasyam  maanasam Maanasam vinaa.

Asti = is.    Yadyapi = although.   Sarvatra = every where.
Neeram = water.    Neeraj = clouds.   Manditam = bestowed
by.   Ramate =  made happy.   Naiva = hardly, not at all.
Hamsasya = of the Swan.   Maanasam = mind.   Manasam=
The pristine and famous lake named Manasrovar in the
Himalaya Range of mountains, now part of Tibet province of
China.   It is a famous place of pilgrimage for Hindus.
Vina = without.

i.e.     Although there are many lakes in this world storing
pure water bestowed by the clouds,  King Swans do not
become happy unless they get the opportunity of swimming
in the pristine waters of the famous lake 'Manasarovara' .

(This Subhashita is also a 'Hmsaanyokti'.The underlying idea
is that virtuous and noble persons become happy only in the
company of like minded persons. Here the lake Manasarovara
being a place of pilgrimage has got special importance than
other lakes and the Swan represents the noble persons.)

Saturday, 15 July 2017

आज का सुभाषित Today's Subhashita


त्यज  किंशुकपुष्पिताभिमानं  निजशिरसि  भ्रमरोपसेवने  |
विकसन्न्वमल्लिकाविगोयात्कुरुते  वन्हिधिया  त्वयि  प्रवेशम् |-(स्फुट )
              
भावार्थ -    ओ किंशुक (पलाश) के वृक्ष !  अब तो यह  अभिमान  त्याग दे
कि अपने सिर पर पुष्पों के खिलने से अब तू भ्रमरों की सेवा करने के योग्य 
हो गया है | ये भ्रमर तो मल्लिका वृक्ष में   नये पुष्पों के न खिलने के कारण 
उनके वियोग में प्राण त्यागने के लिये तेरे पुष्पों को वनाग्नि समझ कर तुझ
में प्रवेश कर रहे हैं |

(पलाश वृक्ष जब पुष्पित होता  है तो ऐसा प्रतीत होता है कि मानो वन में आग 
लगी हो |  इस सुभाषित में मल्लिका वृक्ष के सुगन्धित पुष्पों के अभाव में भ्रमरों 
का पलाश के वृक्ष के पास जाने को अतिशयोक्ति के माध्यम से  उनके द्वारा  
आत्महत्या करने के रूप में चित्रित किया गया है | लाक्षणिक रूप से इस का  यही 
तात्पर्य है कि अभाव की स्थिति में लोग कई बार अपनी आवश्यकता की  पूर्ति के 
लिये गलत साधनों का उपयोग करते है जो उनके लिये हानिकारक होता है |  )

Tyaj kinshuka-pushpita-abhimaanam  nija-shirasi bhramaropasevane.
Vikasan-navamallikaaviyogaat-kurute  vanhidhiyaa tvayi pravesham,

Tyaj =  give up.  Kimshuka= name of a tree having very bright red
flowers, also called  'flame of the forest' .        Pushpita = in bloom.
Abhimaanam = pride.   Nij = one's own.   Shirasi = on the head.
Bhramaropasevane = bhramaro + upasevane.    Bhramaro = large black 
bee.   Upasevane = for serving .  Vikasannavamallikaaviyogaatkurute =
vikasan+nava + mallikaa +viyogaat +kurute.       Vikasan = causing to 
develope.  Nava=new.  Mallika = jasmine flower. Viyogaat = separation
Kurute = does.   Vahnidhiyaa = thinking as fire.   Tvayi = your.
Pravesham =entry.

i.e.     O kimshuka  tree !    On seeing yourself in full bloom,  you should  
shed your pride that you are now fit to serve the large black bees.   These  
bees are thronging towards you for committing suicide due to separation
from their favourite new blooming flowers of  Mallika  (jasmine) trees, by
mistake treating your bloom as a  raging fire in the forest.

(This Subhashita is also an anyokti, The underlying idea of this Subhashita
by using a hyperbole of bees committing suicide,  is that at times due to
non-fulfilment of their desire, people resort to dubious means harmful for
them. )

Friday, 14 July 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita,

काकस्य गात्रं यदि काञ्चनस्य  माणिक्यरत्नं यदि चन्चुदेशे  |
एकैकपक्षे ग्रथितं मणीनां  तथाSपि  काको न तु राजहंसः      ||
                                                                        -   (स्फुट )
भावार्थ -  एक  कव्वे का शरीर स्वर्णिम  हो जाय , और उस की  चोंच में
माणिक्य और रत्न लगा दिये जायें , प्रत्येक पंख में मणियां गूंथ दी जायें ,
फिर भी वह एक कव्वा ही  रहेगा न कि एक  राजहंस  कहलायेगा |

 (उपर्युक्त  सुभाषित भी एक 'अन्योक्ति है  |  लाक्षणिक रूप से इसका तात्पर्य
यह है कि एक गुणहीन व्यक्ति को कितना भी अलंकृत  क्यों  न कर दिया जाय
वह् एक सज्जन और गुणवान व्यक्ति के समतुल्य नहीं हो सकता है |  इस बारे
में एक कहावत प्रसिद्ध है कि - ' कव्वा चले हंस की चाल तो अपनी भी खोई ' |)

Kaakasy gaatram  yadi kaanchanasya maanikyaratnam yadi chanchudeshe.
Ekaikapakshe  grathitam maneenaam  tathaapi kaako na tu raajahamsah.

Kaakasya= a crow's.    Gaatram = .body.     Yadi = if.    Kaaanchanasya =
of golden colour.    Maanikya  =ruby.    Ratnam = jewel.    Chanchudeshe =
around the beak.    ekaika =  each one .      Pakshe = wings.       Grathitam =
braided.     Maninaam = precious stones.  Tathaapi = even then.  Kaako =
a crow.  Na = not.   Tu = and, but.    Raajhamsah =  a swan.

i.e.    Even if a Crow's body colour may be changed into  golden hue,  gems
and  precious stones be studded on  its beak, on  both of  its wings precious
stones are braided, it will still remain a Crow and will not become a Swan.

(The above Subhashita is also an 'Anyokti'.  The idea behind it is that how
much we may decorate a lowly person with ornaments and shining dress, he
his  inherent nature remains the same and we can not equate him with noble
and virtuous persons.)

Thursday, 13 July 2017

आज सुभाषित / Today's Subhashita.


दिव्यं  चूतरसं  पीत्वा  गर्वं  नो याति  कोकिलः  |
पीत्वा  कर्दमपानीयं  भेको  रटरटायते               || -प्रसंग रत्नावली

भावार्थ -   दिव्य (अतीव सुस्वादु ) आम के रस को पी कर एक कोयल
गर्वान्वित नहीं होती है , परन्तु कीचड युक्त जल पी कर ही एक  मैंढक
लगातार  टर्राता ही रहता है  |
(उपर्युक्त सुभाषित भी एक 'अन्योक्ति' है  |  लाक्षणिक रूप से इसका
तात्पर्य यह है कि गुणवान और सज्जन व्यक्तियों का रहनसहन अच्छा
होने पर भी वे घमण्डी नहीं होते है और उनका व्यवहार संयत रहता है |
इसके विपरीत निम्न स्तर के व्यक्तियों का रहनसहन और व्यवहार
अच्छा नहीं होता है |)

Divyam  chootarasam  peetvaa  garvam  no yaati  kokilah.
Peetvaa kardamapaaneeyam  bheko  ratarataayate

Divyam = Divine, wonderful.   Chootarasam = the juice of a
mango.    Peetva = by drinking.   Garvam = pride.   No = not.
Yaaati = go, becomes.   Kokilah = cuckoo bird.  Kardama =
muddy and  filthy.   Paaneeyam = water.    Bheko = a frog.
Ratarataayate =  makes croaking sound.

i.e.      A Cuckoo bird who feeds on divine mango juice  never
behaves proudly, whereas a frog who lives in muddy water and
also drinks it , expresses its pride by croaking continuously.

(This Subhashita is also an 'Anyokti' .  The underlying idea is that
noble and virtuous persons never become proud of their lifestyle
and behave rationally,whereas the lifestyle of lowly persons is not
good and they are very proud and rude .)

Wednesday, 12 July 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.

विषभारसहस्रेण  गर्वं  नाSSयाति   वासुकिः |
वृश्चिको बिन्दुमात्रेण ऊर्ध्वं वहति कण्टकम्  || - शार्ङ्गधर

भावार्थ -  एक बिच्छू की तुलना में वासुकि नाग में विष की
मात्रा यद्यपि एक हजार गुणा अधिक है फिर भी वासुकि नाग
इस पर कोई गर्व नहीं करता है , जब कि मात्र एक बूंद विष होने
पर भी  बिच्छू अपनी पूंछ को उठा कर अपने  दंश का प्रदर्शन
करता है |
(यह सुभाषित भी एक अन्योक्ति है और इस का वर्गीकरण एक
'संकीर्णान्योक्ति ' के रूप में  किया  गया है | लाक्षणिक रूप से इस
का तात्पार्य यह है कि महान व्यक्ति संपन्न होते हुए भी गर्व नहीं
करते है , जब कि दुष्ट  व्यक्ति थोडी ही संपत्ति होने पर इतरा जाते
है, जैसा कि तुलसीदास जी ने भी कहा  है  कि - "छुद्र नदी भरि चली
तोराई |  जस थोरेहुं  धन खल इतराई  ||"

Visha-bhaara-sahasrena   garvam   naayaati  Vaasukih.
Vrushchiko bindu-maatrena urdhvam vahati kantakam.

Visha = poison.   Bhaara = burden.   Sahasrena = one
thousand times.   Garvam = pride.     Naaayaati = na +
aayaati.   Na = not.   Aayati = becomes.   Vaasukih =
name of  the king of serpents of Hindu mythology,also
known as Lord Shiva's snake.    Vrushchiko = scorpion.
Bindu = a drop.   Maatrena = just a.   Urdhvam = erect,
upright.    Vahati = exhibits.    Kantakam = sting at the
end of a scorpion's tail.

i.e.  Although the serpent Vasuki is a thousand times more
poisonous than a scorpion, it is not proud about it, whereas
an ordinary scorpion possessing just a drop of poison moves
around with its upright tail and the sting at its end.

(This Subhashita is also an 'Anyokti ' and has been categorised
as 'miscellaneous'.  The idea behind it is that noble  persons are
never proud of their wealth, whereas wicked and petty persons
become proud and indulge in vulgar display of their wealth.)








Tuesday, 11 July 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अयि  मलयजमहिमाSयं  कस्य  गिरामस्तु  विषयस्ते  |
उद्गिरतो  यद्गरलं  फणिनः पुष्णासि  परिमलोद्गारैः  ||
                      (सुभाषित रत्नाकर)  - मालविकाग्निमित्रं

भावार्थ -   अरे प्रिय चन्दन के वृक्ष ! तुम्हारी महिमा सभी लोगों में
प्रसंशा और चर्चा  का विषय  है क्यों कि तुम्हारी शाखाओं और जडों
में  रहने वाले सर्पों द्वारा तुम्हारे उपर विष  वमन करने पर भी तुम
सर्वत्र अपनी सुगन्ध बढा-चढा कर फैला रहे हो |

(यह सुभाषित भी 'चन्दनान्योक्ति ' शीर्षक से संकलित है | लाक्षणिक
रूप से इस का तात्पर्य है कि महान और सज्जन व्यक्ति दुष्ट व्यक्तियों
के बीच मे रह कर भी अपनी सज्जनता का त्याग नहीं करते है |  इसी
भावना को कविवर रहीम ने अपने  दोहे में बडे सुन्दर रूप में व्यक्त किया
है -     " जो रहीम उत्तम प्रकृति , का करि सकत कुसंग |
             चन्दन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजङ्ग   ||  )

Ayi malayajamahimaayam kasya giraamastu vishayaste.
Udgirato yadgaralam phaninah pushnaasi parimalodgaaraih.

Ayi = a particle of encouragement.   Malayajamahimayam =
malayaja + mahima + ayam.    Malayaja = born in the Malaya
mountain ( a referemce to the Sandalwood tree which grows in
Malaya mountain.    Mahima = greatness.   Ayam = this.
Kasya = whose.   Giraamastu = giraam + astu.   Giraam =
speech .    Astu = be it so.    Vishayaaste =Vishaya + aste.a
Vishaya = subject.    Aste - is.    Udgirato = discharges, womits.
Yadgaralam = yat + garalam.    Yat = that.    Garalam = poison.
Phaninah = snakes.    Pushnaasi = increases.   Parimalodgaraih =
parimala + udgaaraih.   Parimal = fragrance. Udgaaraih =release.

i.e.     O dear Sandalwood tree !  your greatness is the subject
matter of praise by people every where,  because in spite of
very poisonous snakes dwelling in your branches and roots and
spitting poison here and there, you continue to spread more and
more fragrance all around.

(The above Subhashita is also an 'Anyokti' classified as 'Chandnaa-
nyokti'.The underlying idea behind it is that great and wise persons
remain unaffected in the company of wicked persons just like a
Sandalwood tree remaining unaffected by the presence of snakes
in its branches.)













Monday, 10 July 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


दूर्वाSङ्कुरतृणाSSहारा धन्यास्तात  वने  मृगाः  |
विभवोन्मत्तचित्तानां  न पश्यन्ति मुखानि यत् || -शारङ्गधर

भावार्थ -   वन में निवास करने वाले तथा अपने आहार के लिये
दूब घास के तिनको पर निर्भर रहने  वाले ऐ हरिणो !  तुम  बहुत
भाग्यशली हो कि अपने विभव (ऐश्वर्य और शक्ति) के मद में चूर
व्यक्तियों की कुदृष्टि अभी तक तुम्हारे ऊपर  नहीं पडी है |

(यह  सुभाषित भी एक अन्योक्ति है और 'मृगान्योक्ति' के नाम
से संकलित है  | लाक्षणिक तथा  व्यङ्ग्यात्मक रूप से इस का
तात्पर्य यह है कि वनों में पशु पक्षी तभी तक ही सुरक्षित रह सकते
हैं जब तक कि समाज के वैभवशाली व्यक्तियों की कुदृष्टि उन पर
नहीं पडती है | आज सारे विश्व में पर्यावरण का जो नाश हो रहा है
उसमें ऐसे ही संपन्न व्यक्तियों  का हाथ है | )

Doorvaankura-trunaahaaraa  Dhanyaastaata vane Mrugaah.
Vibhavonmatta-chittaanaam  na pashyanti mukhaani yat.

Doorvaankuratrunaahaaraa + doorvaa+ankur + truna+ aahaaraa.
Doorva = bent grass.   Ankura = blade, sprout.   Trunaa =blades.
Aahaaraa = taking food.      Dhanyaastaat = dhanyaah +taata.
Dhanyaah=fortunate, blessed.  Taata = address to several persons.
Vane = forests.   Mrugaah = deers, antelopes.   Vibhavonmatta =
very proud of their power.   Chittaanaam = persons having the
mentality of .  Na =not.   Pashyanti =see,   Mukhaani =in front.
Yat = that.

i.e.    O antelopes !   living in forests and sustaining yourselves by
eating blades of grass, you are fortunate and blessed that you have
not yet been seen by the rich and power-drunk people.

(This Subhashita is also an Anyokti (allegory) as also a satire named
as a 'mrugaanyokti' . The underlying idea behind it is that our Wild-
-life and forests are safe only until such a time the evil eye of these
neo -rich and powerful people does not fall upon these. The fast deterio-
ration in the climatic conditions of the World is only due to the acti-
vities of such people.)


Sunday, 9 July 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita


विन्ध्यमन्दरसुमेरुभूभृतां यत्पतिस्तुहिनपर्वतोSभवत्  |
ईश्वरश्वशुररताप्रभावतस्तद्ध्रुवं  जगति जृम्भते  यशः  || -शार्ङ्गधर

भावार्थ -          इस संसार में विन्ध्याचल आदि अनेक पर्वत  तथा देवलोक में भी
सुमेरु पर्वत है | परन्तु उन सब में श्रेष्ठ और सारे संसार में प्रसिद्ध और हिमाच्छदित
पर्वतराज हिमालय है क्यों कि उसे देवाधिदेव  शंकर  का  श्वसुर होने का सम्मान
जो प्राप्त है |

(यह सुभाषित  'पर्वतान्योक्ति'  के अन्तर्गत संकलित है |  लाक्षणिक रूप से इस का
तात्पर्य यह  है  कि महान व्यक्तियों से  सम्बन्धित होने से सामान्य जन  भी आदर
और प्रसिद्धि प्राप्त कर लेते हैं | )

Vindh-mand ar-sumeru-bhoobhrutaam yatpatistuhina-parvatobhavat.
Eeshvara-svashura-rataa-prabhaavatas-tada-dhruvam jagati jrumbhate yashah.

Vindhya = name of a Mountain range of central India.  Mandara = heaven.
Sumeru = name of the mountain in heaven.  Bhoobhrutaam = king.
Yatpatistuhinah = yat + patih   =+ tuhinah.   Yat = that.    Patih = master.
Tuhinah = snow.   Parvatobhavat = parvato + abhavat Parvato =mountain.
Abhavat = happened. (indirect reference to the snow clad Himalaya Mountain)
Eeshvar = God ( reference to God Shiva )  Svashura = father-in-law.  Rataa =
bestowed with.   Prabhaavatah=  due to  the effect of . .  Tada =that.   Dhruvam
=certainly. Jagati = in this World.  Jrumbhate = opens one's mouth. Yashah = fame.

i.e.    There are many famous mountains in this  world such as the Vindhya, as also
Sumeru mountain in the Heaven.   But the most grand and famous one is  the snow
clad and mighty mountain Himalaya , only because it has been bestowed the honour
of being the father-in-law of Lord Shiva.     ( According to the Hindu mythology the
consort of Lord Shiva is the goddess Parvati, the daughter of Himalaya.)

(This Subhashita is also an 'Anyokti' (allegory in English) and has been classified as
a'Parvataanyokti' .  The idea behind it is that even ordinary persons also get name and
fame, if they are associated with great persons.)

Saturday, 8 July 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


कंसारिचरणोद्भूत सिन्धुकल्लोल लालितं  |
मन्ये हंस मनो नीरे कुल्यानां रमते न ते   || - शार्ङ्गधर

भावार्थ -  मेरी यही धारणा है कि राजा कंस के शत्रु भगवान श्रीकृष्ण
के चरकणमलों का प्रक्षालन करने वाली समुद्र की लहरों में विहार
करने  वाले  हंसों  को  एक अप्राकृतिक  नदी या नहर में रहना कभी
भी अच्छा नहीं लगता है |

(  यह सुभाषित 'हंसान्योक्ति' शीर्षक से संकलित है | लाक्षणिक  रूप
से इस का तात्पर्य  यह्  है कि सभी प्राणी अपने स्वभाव के अनुकूल
वातावरण में ही निवास करना पसंद करते हैं |)

Kansaari-charanodbhoota-sindhu-kallola-laalitam.
Manye hansa mano neere kulyaanaam ramate na te.

Kansari = the enemy of King Kansa i.e. Lord Krishna.
Charanodbhoota = charana + udbhoot.    Charana =feet.
Udbhoota = raised, born.   Sindhu = ocean.    Kallola =
waves.     Laaalitam = caressed .    Manye = I think.
Hansa = a swan.   Mano = thought.   Neere = water.
Kulyaanaam = canals or artificial  rivers.   Ramate =
like to stay.   Na = not.   Te = they.

i.e.     It is my belief that swans ,who relish floating in
the waves of the Ocean caressing the feet of Lord Krishna.
will never like to live in an artificial canal or a lake.

(This subhashita is also an 'Anyokti'  classified  as a
"hansaanyokti" i.e. an allegory on a Swan.  The idea behind
it is that all living beings like to live in an environment which
suits their nature and the way of their living.)


Friday, 7 July 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


कर्णे चामरचारु चञ्चुकलिका  कण्ठे मणीनां गणः
सिन्दूरप्रकरः शिरः परिसरे पार्श्वान्तिके किङ्किणी  |
लब्धश्चेन्नृपवाहनेन करिणा बद्धेन भूषाविधि -
स्तत्किं  भूधरधूलिधूसरतनुर्मान्यो  न वन्यो गजः || -  शार्ङ्गधर

भावार्थ -    राजकीय वाहन के  रूप में प्रयुक्त एक पालतू हाथी का शृङ्गार
उसके कानों के पास चन्चुपुष्प की कलियों के द्वारा और चंवर झुला कर,
गले में मणियों की माला, सारे मस्तक  मे प्रचुर मात्रा में सिन्दूर का लेप,
दोनों ओर छोटी छोटी घण्टियां लटकी हुई, तथा और भी अनेक आभूषणों
के द्वारा किया जाता है | परन्तु यह क्या कि जो हाथी वनों में धूल से सने
हुए विचरण करते हैं उनकी कोई मान्यता ही  नहीं है ?

(प्रस्तुत सुभाषित 'गजान्योक्ति' के रूप में संकलित है |  लाक्षणिक रूप से इस
का तात्पर्य यह  है कि परिस्थिति वश समान योग्यता होने पर भी एक व्यक्ति
तो यश और सम्मान प्राप्त कर लेता है पारन्तु दूसरा व्यक्ति उपेक्षित ही रहता है |
एक अन्य अर्थ लें तो एक जंगली हाथी अपने स्वाभाविक परिवेश में अभाव की
स्थिति में भी स्वतन्त्रता पूर्वक रहता है , वह् एक पालतू हाथी को कहां उपलब्ध
होती है और  वे  आभूषण उसके किसी  काम के नहीं होते हैं | यही भावना मनुष्यों
पर भी लागू होती है |)

Karne chaamara-chaaru-chanchukalikaa kanthe maneenaam ganah .
Sindoora-prakarah shirah parisare paarshvaantike kinkinee.
Labdhashcnnrupavaahane karanaam baddhena bhooshaavidhi-
statkim  bhoodhara-dhooli-dhoosartanur- maanyo na vanyo gajah.

Karne =ears.  Chaamar = the tail of  a dead yak animal with a handle,
used ceremoniously.  Charu = beautiful,   Chanchukalikaa = buds of
a plant called 'chanchu'.   Kanthe = on the neck.   Maneenaam = jewels.
Ganah = numbers of  (a garland studded with gems)   sindoora = vermilion
Prakara = plenty.   Shirah = head.   Parisare = surrounding.   Paarshvaantike=
on both the sides.  Kinkinee = small bells.  Labdhah = available.  cha = and
Nrupavaahanen = the mode of  conveyance for the King.    Karinaam =
elephants.   Baddhena = bound by.   Bhooshaavidhih  =  varrious other
ornamentations.   Tatkim=   what is that ? Bhoodhara = earth, mountain.
Dhooli = dust.  Dhoosara = covered with . Tanuh = body.        Maanyo =
respectable.   Na = not     Vanyo = wild (living in a forest,)  Gajah =elephant.

i.e.    An elephant used as a ceremonial transport  of a King is decorated on his
big ears by beautiful 'chamars' and the buds of 'chanchu' plant, on the neck by a
garland studded with jewels , vermilion all over the surface  on his head,  small
bells hanging on both sides of the body, and various ornaments tied to his body.
But is it not strange that there is no recognition of a wild elephant living in a forest
who remains covered by dust all over  its body ?

(The above  Subhashita is also an 'Anyokti' .  The underlying idea is that among
persons having common characteristics and qualities, one gets due recognition and
reverence, whereas the other one languishes in his life.  There can also be another
interpretation that life under bondage with all facilities and decorations is nothing
in comparison to a free lifestyle in one's natural surroundings.The ornamentation
is of no use to the elephant under bondage.)

Thursday, 6 July 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


रत्नेरापूरितस्याSपि  मदलेशोSपि   नाSम्बुधे:  |
मुक्ताः  कतिपया: प्राप्य मातङ्गाः मदविह्वलाः || - शार्ङ्गधर

भावार्थ -      समुद्र  यद्यापि रत्नों से भरा हुआ होता है , फिर भी
इसका उसे कोई अहंकार  नहीं होता है |  इसके विपरीत  यदि मातङ्गों
(पर्वतों में निवास करने वाले किरात आदिवासियों) को कुछ मनके भी
मिल जायें तो वे अहंकार से भर उठते हैं |

(यह सुभाषित भी एक अन्योक्ति है और 'समुद्रान्योक्ति' शीर्षक  से
संकलित है |  लाक्षणिक रूप से इस में महान और सज्जन व्यक्तियों
की तुलना एक समुद्र से की गयी है और यह प्रतिपादित किया गया है
कि महान व्यक्ति अपनी समृद्धि पर गर्व नहीं करते हैं जब कि साधारण
व्यक्ति थोडी सी  भी उपलब्धि पर अहंकार से भर उठते हैं | )

Ratneraapooritasyaapi madaleshopi naambudhe |
Muktaah katipayaah praapya matangaah  madavihvalaah.

Ratneraapooritasyaapi = ratneraa + pooritasyaa + api.
Ratneraa = various types of precious stones.   Pooritaasya=
being full of.   Api = even.   Madaleshopi = mada +  lesho +
api.    Mada = pride.    Lesho = a little bit.   Naambudhe =
naa +ambudhe.   Na = not.  Ambudhe= the ocean. Muktaah =
ordinary beads.   Katipayaah = a few.   Praapya = acquired.
Maatangaah = aborigines living in mountains called 'Kiraata'
Madavihvakaah = wanton, unrestrained.

i.e.         The Ocean, in spite of being full of various kinds of
precious stones is never proud of them. But people of Maatanga
tribe living in mountains become wanton on finding even a few
ordinary beads.

(This Subhashita is also an 'Anyokti' called 'Samudraanyokti'
using the Ocean as an allegory.  The idea behind it is that noble
and righteous persons, although endowed with various qualities ,
are never proud  of them, whereas ordinary people become wanton
and very proud even on achieving a little success .)

Wednesday, 5 July 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita..


अस्यां  सखे बधिरलोकनिवास भूमौ
किं कूजितेन किल कोकिल कोमलेन  |
एते हि दैवहतकास्तदभिन्नवर्ण
त्वां काकमेव कलयन्ति कलाSनभिज्ञा  ||- शार्ङ्गधर

भावार्थ -    अरी सखी कोकिला !  इस स्थान के निवासी तो बहरे लोग हैं |
तू इतनी मधुर ध्वनि से  क्यों  कुहू कुहू ध्वनि कर रही है ?  ये लोग तो
भाग्यहीन हैं और  इसी  कारण अलग ही  प्र्कृति के  ललित कलाओं (संगीत
साहित्य आदि )से  अनभिज्ञ हैं  और तुम्हारी मधुर कूक  और  कव्वे की कर्कश
कांव कांव उनके लिये  एक ही समान  है |

(यह सुभाषित 'कोकिलान्योति'  शीर्षक से संकलित है |  लाक्षणिक रूप से इस
का तात्पर्य यह है  कि साहित्य, संगीत और अन्य ललित कलाओं का प्रदर्शन
उनसे अनभिज्ञ व्यक्तियों के बीच में करना व्यर्थ होता है |  यही भावना कविवर
बिहारी के इस दोहे में भी बडी सुन्दरता से व्यक्त की गयी है :-
                 करि फुलेल को आचमन मीठो कहत सराहि  |
                  रे गन्धी मतिमन्द तू इत्र  दिखावत  काहि ||

Asyaam  sakhe  badhira-loka-nivaas  Bhoomau,
kim  koojitena  kila  kokila  komalena.
Ete hi  daivahatakaastdabhinna-varna .
tvaam  kaakameva  kalayanti  kalaanabhigyaa,

Asyaam =  this is.  Sakhe = O friend !   Badhira = deaf.
Loka = people.   Nivaasa = abode.   Bhoomau = land.
Kim = what, why.   Koojitena = tweets,   Kila = is it .
Kokilaa = cuckoo bird.   komalena = softly, gently.
Ete = these.   Hi = surely.  Daivahatakaastdabhinnavarna=
Daiva + hatakaah + tata + bhinna+ varna =  Daiva-destiny.
Hatakaah =hit by.    tata =that.  Bhinna = different.  Varna=
nature, colour.   Tvaaam = you.   Kaakameva = like a crow.
Kalayanti=utter a sound.  Kalaanabhigyaa = kala+anabhigyaa.
Kala = fine arts like music, poetry etc.   Anabhigya = ignorant

i.e.     O my friend Cuckoo bird !   This place is the abode of
deaf person, so why are you tweeting so sweetly ?  These are
ill-fated people of a different kind as also ignorant of  fine arts,
unable to differentiate between your sweet tweet and the harsh
voice of a crow.

 (This  Subhashita is also an "Anyokti" using a cuckoo bird as an
allegory. The idea behind it is that it is of no use to display fine
arts before ignorant and illiterate people, as they can not appreciate
their finer points.  There is a couplet of a Hindi poet by name Bihari,
which says that a trader selling perfumes went to a village and put
a sample of the perfume on the hands of a villager who simply licked
it and said that it tastes sweet.)


Tuesday, 4 July 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


यद्यपि दिशिदिशि सरितः परितः परिपूरिताSम्भसः सन्ति  |
तदपि पुरन्दरतरुणसिंगतिसुखदायिनी गङ्गा                      ||
                                             शार्ङ्गधर  (सुभाषित रत्नाकर)
भावार्थ -     यद्यपि पृथ्वी में प्रत्येक दिशा में जल से परिपूर्ण
अनेक नदियां बहती हैं , परन्तु देवराज इन्द्र की अप्सराओं को
सुख देने वाली एकमात्र नदी गङ्गा ही  है |

(यह  सुभाषित भी एक अन्योक्ति है और ' नद्यन्योक्ति' शीर्षक
से संकलित है |  लाक्षणिक रूप से इस का तात्पर्य यह  है कि अन्य
परिस्थितियां समान होने पर भी कुछ वस्तुएं और व्यक्ति  ईश्वर
औरों धर्म से जुडे होने के कारण उनके समान ही अन्य वस्तुओं और
प्राणियों की तुलना में अधिक  सम्मान और महत्त्व प्राप्त कर लेते हैं )

Yadyapi dishi-dishi saritah paritah paripooritaambhsah santi.
Tadapi purandar-tarunasimgati -sukhadaayinee Ganga.

Yadyapi = although.    Dishi-dishi = in all directions.   Saritah=
rivers.    Paritah =  surrounded by        Paripooritaambhasha =
paripooritaa+ambhasah.     Paripurita = full of .     Ambhasah =  
water.  Santi = are there ,exist. Tadapi = even then.  Purandara=
Indra,the king of Gods. Taruneesamgati =group of young ladies.
Sukhadaayinee =  giver of pleasure.    Ganga = the sacred river
Ganges, which is credited of being originated from heaven

i.e.         Although  many rivers  full of water flow in all directions
on this Earth, there is only one river Ganges which is credited for
giving pleasure to the young women (called 'Apsara' ) of  Indra,
the King of Gods.

(This Subhashita is also an "Anyokti" . The idea behind it is that
among various  things and  persons in spite of their having the
same qualities, some get more importance and a better treatment
being associated with religion and God.)

Monday, 3 July 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अलिरयं  नलिनीदलमध्यगः  कमलनीमकरन्दमदाSलसः  |
विधिवशात्परदेशमुपागतः  कुजटपुष्परसं बहु  मन्यते        ||
                                       - शार्ङ्गधर  (सुभाषित रत्नाकर )

भावार्थ -    एक मधुमक्खी जो एक सरोवर के कमल पुष्पों के समूह मे रह कर
उनका रसपान कर मदमस्त रहती  है, यदि उसे भाग्यवश किसी दुर्गंम  परदेश में
रहना पडे तो 'कुजट' के साधारण पुष्प  भी उसे बहुत अच्छे लगते हैं |

(यह सुभाषित भी 'भ्रमरान्योक्ति' शीर्षक से संकलित हुआ है | लाक्षणिक रूप से
इसका निहितार्थ यह्  है कि भाग्यवश  यदि किसी संपन्न व्यक्ति को भी गरीबी
का सामना करना पडता है तो  ऐसी  विपरीत परिस्तिथि में उसे जो कुछ भी प्राप्त
होता है उसी पर सन्तोष करना पडता है |)

Alirayam nalineedal-amadhyagah  kamalanee-makaraand-madaalasah.
Vidhivashaat-paradesha-mupaagatah kujat-pushparasam bahu manyate.

Alirayam = alih +ayam.   Alih = a honey bee.  Ayam =this     Nalineedala =
a group of lotus flowers.  Madhyagah = madhya +gah.  Madhya =middle.
Gah - by entering deep.   Kamalanee= agroup of lotus plants.   Makarand =
juice (honey) of flowers.     Madaalasah =  lazy from drunkenness.
Vidhivashaat = by the quirk of fate.    Paradesham = a foreign or a hostile
country.   Upaagata = entered into.   Kujata=  name of a wild plant .
Pushparasam = nectar of flowers.   Bahu = plentiful   Manyate = considers

i.e.    If a lazy honey bee accustomed to drinking the nectar of lotus flowers of
a large group of lotus plants in a lake , by the quirk of fate has to live in a hostile
foreign country , then it considers even the nectar of the wild flowers of a 'Kujat'
plant as a bounty.

(This Subhashita is also an 'Anyokti'  based on a honey bee.  The idea behind it is
that persons who are accustomed to an easy and expensive lifestyle ,  if through a
quirk of fate they have to face hardships, they have to remain  satisfied on whatever
they are able to get.)

                                          

Sunday, 2 July 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita


वपुर्विषमसंस्थानं  कर्णज्वरकरो   रवः |
करभस्याSशुगत्यैव  छादिता दोषसंहतिः  ||
                -   शार्ङ्गधर (सुभाषित रत्नाकर)

भावार्थ -   एक ऊंट का शरीर बेडौल और कुरूप होता है और
उसका  गर्जन कानों को कष्ट देने वाला होता है  |परन्तु  उसकी
विपरीत परिस्थितियों मे (एक मरुस्थल में) भी तेज चाल  इन
सारे दोषों को ढक (छुपा) देती है |

(उपर्युक्त सुभाषित भी एक अन्योक्ति (करभान्योक्ति) का एक
का सुन्दर उदाहरण है | लाक्षणिक रूप से इसका तात्पर्य यह है कि
कुरूपता  या कोई अन्य दुर्गुण होने पर भी यदि कोई बडा सद्गुण
किसी व्यक्ति या प्राणी में हो तो वह गुण उसके अन्य अनेक दोषों
को ढकने  में समर्थ होता है और  उसकी उपयोगिता में वृद्धि कर उसे
समाज में स्वीकार्य बनाता है |)

Vapurvishama-smsthaanam karnajvara -karo  bhavah.
Karabhasya-ashu-gatyeva chaaditaa dosha-smhatih .

Vapurvishamasmsthaanam = vapuh + vishama + smsthaanam.  
Vapuh =  body.   Vishama = bizarre, uneven.     Smsthaanam =
shape.  karnajvara+karo= karnajvara =affecting the ears  karo =
creating.   Ravah = roaring sound.    Karabhasyaashugatyeva =
Karabhasya +  aashu -gatyeva.    Karabhasya = of  a  camel.
Aashugatyeva =  going or moving quickly.   Chaaditaa = covers,
conceals.  Dosha= shortcomings,  defects.    Smhatih = multitudes.

i.e.          A camel's body is uneven in a bizarre manner  and the
roaring sound it creates is very unpleasing to the ears.  But its
capacity of traversing fast in difficult terrains (like a desert) covers
all its other defects.

( This Subhashita is also an example of an 'Anyokti' relating to a
Camel.  The idea behind this Subhashita is that if a person (or even
animals), who may have many defects, possesses any virtue(s)
which out-weigh the other defects,  such a person is willingly
accepted by the society.)

Saturday, 1 July 2017

आज का सुभाषित / Today' s Subhashita.



नाSभिषेको  न संस्कारः सिंहस्य क्रियते वने  |    
विक्रमार्जितसत्त्वस्यं  स्वयमेव  मृगेन्द्रता       ||
                             सुभषितरत्नाकर (शार्ङ्गधर )

भावार्थ -    किसी वन में एक सिंह को  वनराज बनने के
लिये कोई धार्मिक संस्कार  या राज्याभिषेक कराने की
की आवश्यकता नहीं पडती है | सिंह अपने बल और पराक्रम
के द्वारा  यह पदवी  स्वयं  ही अर्जित कर लेता है |

(यह सुभाषित भी 'सिंहान्योक्ति' के शीर्षक से संकलित है |
लाक्षणिक रूप से इस का तात्पर्य यह  है कि  पराक्रमी और
महान व्यक्ति समाज मे अपनी योग्यता के बल पर ही राज
करते हैं | )
 
Naabhishko na smskaarah Simhaya  kriyate vane.
Vikramaarjita-sattvasya svayameva mrugendrataa.

Naabhisheko = na + abhisheko.   Na =not.   Abhisheko =
coronation.    Smskaaro = religious ceeremony.   Simhasya=
of a Lion.      Kriyate = is done.          Vane = in a forest.
Vikramaarjita =  acquired by valour.  Sattvasya = of the
powerful  living beings.   Svayameva = himself, yourself.
Mugendrata = mruga+indrataa.   Mruga = beasts, animals.
Indrata = power and dignity like Indra, the king of Gods.

i.e.     In order to rule over the animals in a forest, a Lion does
not require any religious ceremony or a coronation.The lion
earns the exalted position as the  King of the forest only due
to his valour and strength.

(This Subhahita is also classified as an 'Anyokti' .  The idea
behind the Subhashita is that powerful and great persons earn
the distinction of leading and ruling over the citizens of a country
not just by religious ceremonies and  a coronation but by the
dint of their valour and strength.)