Tuesday, 31 October 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अजातमृतमूर्खेभ्यो  मृताSजातौ  सुतौ  वरौ  |
यतस्तावल्पदुःखाय यावज्जीवं  जडो दहेत्  ||
                    - सुभाषित रत्नाकर (कल्पतरु )

भावार्थ -   भविष्य में होने वाला  या वर्तमान पुत्र (सन्तान)  यदि
मूर्ख (मानसिक और शारीरिक अक्षमता युक्त ) उत्पन्न हो तो यही
श्रेयस्कर है कि वह उत्पन्न ही न हो या उसकी मृत्यु  हो जाय ताकि
कुछ समय के लिये  ही दुःख हो , अन्यथा  ऐसी जड संतान जब तक
जीवित रहेगी वह दुःख और संताप ही देगी |

(प्रस्तुत सुभाषित  'कुपुत्रनिन्दा ' शीर्षक के  अन्तर्गत संकलित है |
इस में मन्दबुद्धि या शारीरिक विकलांगता वाले बच्चों की समस्या
का चित्रण किया गया है |  संस्कृत भाषा में पुत्र का अर्थ संतान भी
होता है |अतः उसे इसी प्रकार समझा जाय | )

Ajaatmrutamoorkhebhyo  mrutaajaatau sutau varau.
Yatastaavalpaduhkhaaya  yaavajjeevam jado dahet.

Ajaata = unborn.      Mruta = dead.       Moorkhebhyoh =
stupid persons, idiots.    Mrutaajaatau = mrutaa +ajaatau.
Sutau = sons.    Varau = at best.  Yatastaavalpaduhkaaya=a
Yatah + taavat + alpa + duhkhaaya.    Yatah = because.
Taavad = during that time.   Alpa =  little.   Duhkhaaya=
sorrow, miseries.    Jado = an idiot. a physically and mentally
handicapped child.    Dahet= will cause distress or grief.

i.e.    If an unborn or existing child is  mentally and physically
handicapped it is preferable that he/she should not be born or
be dead if born,  because in such a case the grief will be for a
short period .  Otherwise , such a  child will cause distress  and
grief  until such time he/she remains alive.

(The above Subhashita deals with the problem of  mentally and
physically handicapped children  and says that it would be better
if such children be not born or die early.)

Monday, 30 October 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


किं   नानानरकैः किं  वा यमयातनयापि  च  |
यन्मौढ्यमेव सर्वाणि दुःखान्यासादयिष्यति  ||
                             -सुभाषित रत्नाकर (स्फुट )

भावार्थ -     एक मूर्ख  व्यक्ति के लिये विभिन्न नरकों में  यमराज
द्वारा दी गयी यातनायें  कुछ भी नहीं हैं जिस प्रकार की  यातनाओं
से वह अपनी मूर्खता के कारण विभिन्न  प्रकार के दुःखों से सदैव
त्रस्त रहता है |

(यह सुभाषित "मूर्खवर्णनम्" शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है | इसमे
अतिशयोक्ति अलङ्कार के द्वारा एक मूर्ख व्यक्ति की समाज में
दयनीय स्थिति का वर्णन किया गया है | )

Kim naanaa-narakaih kim vaa yamayaatanayaapi cha.
Yanmaudhyameva  sarvaani  Duhkhaanyaasaadayishyati.

Kim = what.   Naanaa = many various.   Narakaih = Hells.
Vaa = or.   Yamayaatanaa = torment inflicted byYama, the
God of death.   Api =even.   Cha=and.  Yanmaudhyameva=
yat +maudhyam + eva.   Yat = that.  Maudhyam = stupidity. 
Eva =really, thus.  Sarvaani=all.  Duhkhaanyaasaadayishyati=
Duhkhaani + aasaadayishyati.    Dukhaani =  miseries.
Assadayishyati  = attacked by.

i.e.     The torments inflicted by Yama, the God of Death, to the
sinners in various Hells are nothing in comparison to all types
of miseries which a stupid person has to face in the society .

(By the use of a hyperbole  the author has highlighted the 
miserable life of a stupid person in the society.).





Sunday, 29 October 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


उदीरितोSर्थः  पशुनाSपि  गृह्यते  हयाश्च नागाश्च वहन्ति नोदिताः |
अनुक्तमप्यूहति पण्डितो जनः परेङ्गितज्ञानफला हि बुद्धयः ||
                                                             -(स्फुट) सुभाषित रत्नाकर
भावार्थ -   उत्तेजित और प्रेरित किये जाने पर घोडे हाथी आदि पशु भी
उनको दिये गये निर्देशों का मन्तव्य समझ जाते हैं और तदनुसार आज्ञा
पालन कर भार वहन करते हैं | परन्तु एक विद्वान तथा चतुर व्यक्ति उसे
अन्य व्यक्तियों द्वारा दिये गये निर्देशों के परिणामो पर विचार करने के
पश्चात अनुकूल परिणाम होने की स्थिति में ही उनका पालन  करता है |

(प्रस्तुत सुभाषित 'विद्वत्प्रशंसा'  शीर्षक के अन्तर्गत  संकलित है | इसका
तात्पर्य यह है पशु तो बिना किसी तर्क के उन्हें दी गयी आज्ञा का पालन करते
हैं | परन्तु एक विद्वान और चतुर व्यक्ति उसे दी गयी आज्ञा के परिणाम पर
अच्छी तरह विचार करने के बाद ही तभी कार्य करता है कि जब उसका परिणाम
अनुकूल हो | )
 
Udeeritorthah pashunaapi gruhyate hayaashcha naagaashcha
vahanti noditaah.
Anuktamapyoohati pandito janah parengitagyaaanaphalaa hi
buddhayh.

Udeeritorthah= udeerito+ arthah.    Udeerito = uttered, said.
Api = even. Arthah=meaning.   Pashunaapi = pashuna+ api. 
Pashunaa = animals.   Gruhyate= acknowledge, understand. 
Hayaashcha = horses.  Naagaashcha + elephants.    Vahanti =
bear,    Nodita = incited.        Anuktamapyoohati= anuktam+
apyoohati.   Anuktam=spoken after.  Apyoohati = deliberates. 
Pandito janah= a learnedperson.   Parengitagyaanabhalaa =
para+ingita+gyaan+phalaa.  Para =others.   Ingita =pointed. 
Gyaana =sayings.     Phalaa = consequences.      Hi = surely . 
Buddhayh = enlightened and cleaver persons.

i.e.          On being goaded and incited animals like Horses and
elephants obey the command given to them by their masters and
carry heavy loads.     But a learned  and wise  person  on being
asked to perform a task does it only after much deliberations,
provided it is feasible.

Saturday, 28 October 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अन्यथैव  हि सौहार्दं  भवेत्स्वच्छाSन्तरात्मनः |
प्रवर्ततेSन्यथा  वाणी शाठ्योपहतचेतसः  || 
                -सुभाषित रत्नाकर (प्रसंग रत्नावली )

भावार्थ -   सहृदय (स्वच्छ मानसिकता वाले) व्यक्ति निश्चय ही मित्रतापूर्ण
व्यवहार करने वाले होते हैं |  परन्तु  विकृत मानसिकता और हिंसक प्रवृत्ति
वाले व्यक्तियों की वाणी (बोलचाल्) और व्यवहार इसके ठीक विपरीत होता है |

Anyathaiva hi sauhaardam bhavetsvacchaantaraatmanah.
Pravartatenyathaa vaanee shaathyopahatachetasah.

Anyathaiva = anyathhaa  + iva.     Anyathaa = otherwise.
Aiva = thus, really.   Hi = surely.   Sauhaardam = affection, friendship.
Bhavetsvacchantaraatmaah = bhavet +svaccha+antaraatmanaaah.
Bhavet =should happen.   Svaccha = clean.    Antaraatmanah = heart,
mind.    Pravartate = deal with, proceed    Anyathaa = in a different
manner.     Vanee = diction, way of speaking.   Shaathyopahatachetasah=
shaathya+ upahata+ chetasah.    Shathya =deceit.    Upahat= destructive.
Chetasah = mind. 

i.e.      Persons with clean and kind mentality are definitely very friendly
and kind towards others, whereas the diction and  behaviour of deceitful
persons with destructive mentality is just the opposite.



Friday, 27 October 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.

मज्जत्वम्भसि यातु मेरुशिखरं शत्रूञ्जयत्वाहवे
वाणिज्यं  कृषिसेवनादिसकला विद्याः  कलाः शिक्षतु |
आकाशं सकलं  प्रयातुखगवत्कृत्वा प्रयत्नं परं
नोभाव्यं  भवतीह  कर्मवशतो  भाव्यस्य  नाशः कुतः  || - भर्तृहरि

भावार्थ -   इस संसार में  चाहे समुद्र के गर्भ  में गोता  लगाना हो , मेरु पर्वत के
शिखर पर चढाई करनी हो, युद्ध में शत्रुओं पर विजय प्राप्त करनी हो, व्यापार,
कृषि,सेवा कार्य (नौकरी) करने हों , सभी प्रकार की विद्यायें और कलायें सीखनी
या सिखानी हों, आकाश में पक्षियों की तरह विचरण करना हो, इन सभी कार्यों
को संपन्न करने के लिये अथक प्रयत्न करने पर भी यदि भाग्य अपने अनुकूल
 न हो तो सफलता प्राप्त नहीं होती है |  ऐसी स्थिति में भाग्य का नाश भला कैसे
हो ?  (अर्थात् विद्या और पौरुष भाग्य के सामने प्रभावहीन हो जाते हैं |)

Majjvatvambhasi  yaatu  merushikharam shatroonjayatvaavahe.
Vaanijyam krushi-sevanaadi-sakalaa vidyaah kalaah shikshatu.
Aakaasham sakalam prayaatu khagavat-vykrutvaa prayatnam param.
No-bhaavyam  bhavateeha karmavashato  bhaavyasya naashah kutah.

Majjvatvam = diving or bathing.  Ambhasu.=Ocean,   Yaatu = go to.
Meru = name of a Mountain in Hindu Mytholo y;   Shikhare =peak.
Shatroon =enemies.  Jayatu= conquer.  Aahave = a battle.  Vaanijya=
commercial activities.   Krushi = agriculture.  Sevanaadi = service etc.
Sakalaa = all these.   Vidyaa = knowledge..  Kalaa = Arts,   Shikshitu=
teach.   Akaasham = the sky.   Sakalam = all.   Prayaatu = enter, wander.
Khagvat = like a bird.   Krutyaa = by doing.  Prayatnam= endeavours.
Param =  maximum.    Nobhaavyam = No+ Bhaavyam   No = not.
Bhaavyam = fate, destiny.    Bhavateeha = bhavati + iha.  Bhavati=
happens.   Iha = in this world.   Karmavashato = due to taking action.
Bhaavyasy  = destiny's    Naashah=destruction   Kutah = why ? where ?

i.e.    In this world one may endeavour to dive deep into the Ocean, climb
the peak of the Meru Mountain, conquer his enemies, undertake commercial
and agricultural activities, provide various services, learn and teach various
disciplines of learning and arts,  wander in the sky like a bird.  But all the 
endeavours made by him to achieve these objectives are not successful if the
destiny is not in his favour.   Then, how can the destiny be destroyed ?
(The inference is that destiny is supreme and all the wealth and valour are
ineffective against it.)




Thursday, 26 October 2017

आज का सुभाषित / Today's .Subhashita.


सुजनानामपि  हृदयं पिषुनपरिष्वङ्गलिप्तमिह  भवति |
पवनः  परागवाही   रथ्यासु  वहन् रजस्वलो    भवति      ||
                                    - सुभाषित रत्नाकर (कल्पतरु )
भावार्थ -    दुष्ट और नीच व्यक्तियों  के  साहचर्य (सोहबत) में रहने
से सज्जन व्यक्तियों का भी हृदय परिवर्तन हो जाता है और वे भी दुष्ट
व्यक्तियों के कार्य में लिप्त (सम्मिलित ) हो जाते हैं |  जब् वायु (हवा)
पुष्पों के बीच से हो कर चलती है तो वह पुष्पों के पराग कणों की सुगन्ध
से भर जाती है परन्तु जब वही वायु  एक भीड भरी सडक के ऊपर से  हो
कर चलती है तो धूल से भर जाती है |

इस सुभाषित में वायु और पुष्पों की तुलना सज्जन व्यक्तियों से तथा धूल
की तुलना दुष्ट व्यक्तियों से की गयी है | इसी भावना को गोस्वामी तुलसी
दास जी  ने इस प्रकार व्यक्त किया है :-
                  ग्रह भेषज जल पवन पट  पाइ कुजोग  सुजोग  |
                  होहिं कुबस्तु सुबस्तु जग  लखहिं  सुलच्छन लोग ||

Sujanaanaamapi hrudayam pishunaparishvangaliptamiha bhavati.
Pavanah paraagavaahee  rathyaasu vahanrajasvalo bhavati.

Sujanaanaamapi = sujananaam + api.    Sujananaam = noble and
righteous  persons.   Api = evn,    Hrudayam = heart.   Pishuna=
wicked persons.      Parishvanga = coming into contact.   Liptam=
joined, associated with.   Iha = in this world.    Pavanah = the wind.
Paraagavaahee = carrier of pollen grains.    Rathyaasu = streets.
Vahan = carry.  Rajasvalo = covered with dust.  Bhavati = becomes.

i.e.    Even the mentality of noble and righteous persons changes in the
company of wicked persons and they also involve themselves in their
activities.  When the wind blows through a bed of flowers it gets filled
with the pollen and fragrance of the flowers, whereas if it blows through
a busy street it gets filled with dust.

(In this Subhashita the wind and flowers are alluded with noble persons
and the dust with  wicked persons.  This metaphor has also been used by
the saint poet Tulasi Das, who says that  Planets, medicines, water, wind,
and clothes become good or bad depending upon the company they keep.)

Wednesday, 25 October 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अर्थः सुखं कीर्तिरपीहि  मा  भूदनर्थएवाSवास्तु  तथाSपि धीराः |
निजप्रतिज्ञामधिरूढमाना  महोद्यमाः  कर्म समारभन्ते           ||
                                              - शार्ङ्गधर  (महासुभषितसंग्रह )

भावार्थ -   चाहे धन संपत्ति, सुख तथा समाज में प्रसिद्धि न हो और उसी प्रकार
अन्य हानिप्रद  घटनायें भी क्यों न हों,  फिर भी धीर (मेहनती और दृढ इच्छा
शक्ति संपन्न ) और महान उद्यमी व्यक्ति उनके द्वारा की गयी प्रतिज्ञा से
बंधे हुए अपना निर्धारित कार्य प्रारम्भ कर देते हैं |

(इस सुभाषित का तात्पर्य यह है कि धीर और दृढप्रतिज्ञ व्यक्ति अपने कार्य के
दौरान आने वाली विघ्न बाधाओं से नहीं घबराते हैं और अपने लक्ष्य की प्राप्ति
की ओर बढे चलते हैं | )

Arthah sukham keertirapeehi maa bhoodanarthaevaastu tathaapi
 dheeraah.
Nijapratigyaamadhiroodhamaanaa mahodyamaah  karma  samaarabhante,

Arthah =wealth.   Sukham =happiness.   Keertirsapeehi = keertih + apeeha
keertih = fame, reputation.    Maa= no, not.   Bhoodanarthaevaastu = bhoot +
anartha +eva+ astu.   Bhoot =happen.   Anartha = harmful, disastrous.  Eva=
really, thus.   Astu = be it so.   Tathaapi = even then.   Dheeraah = persons who
are brave and of firm determination.  Nija+ pratigyaam + adhiroodhamaanaa =
nija = self.    Pratigyaam= commitment, vow.   Adhiroodhamaanaa = ascended,
commited.    Mahodyamaah =  very industrious persons.   Karma =  work.
samaarabhante = commence, take in hand.

i.e.       Persons who are brave, industrious and with firm determination , are not
deterred by not having wealth, happiness and fame in society or by other harmful
incidents being faced by them, and byadhering to their commitment proceed with
the work taken in hand by them.

Tuesday, 24 October 2017

आज का सुभाषित / Today's Sibhashita.


गुणिनोSपि  हि सीदन्ति  गुणग्राही न  चेदिह  |
सगुणः  पूर्णकुम्भोSपि  कूप  एव निमज्जति  ||- सुभाषित रत्नाकर

भावार्थ -    इस संसार में गुणवान व्यक्तियों को ही कष्ट उठाने
पडते हैं न कि उनकी प्रतिभा का उपयोग करने वालों को | देखो तो  !
केवल उसी घडे को एक कुवें  में डुबाते हैं जो सगुण ( एक लंबी रस्सी
से युक्त ) होती  है |

(संस्कृत में 'गुण' शब्द के अनेक अर्थ होते हैं |  इस सुभाषित में 'गुण' के
दो अर्थों (१) विद्वान और गुणवान व्यक्ति  तथा (२) एक रस्सी ) को
प्रयुक्त किया गया है |  एक कुवें से पानी निकालने के लिये घडे की गर्दन
में एक लम्बी रस्सी बांध कर घडे को पानी में डुबाया जाता है | इस प्रक्रिया
को एक उपमा के रूप में प्रयुक्त कर यह प्रतिपादित किया गया है कि जब
कोई गुणवान व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के पास नौकरी करता है तो
केवल उसी को कष्ट उठाना पडता है न कि उसे नौकर रखने वाले को |)

Guninopi hi seedanti gunagraahee na chediha.
Sagunaah poornakumbhopi koopa eva nimajjati,

Gununopi = gunino + api.    Gunno = virtuous persons.
Api = even.    Hi = surely.    Seedanti =  are distressed.
Gunagraahee = persons acknowledging or appreciating
merit or good qualities.    Chediha  = chet + iha.   chet =
if.   Iha = here, in this world.    Sagunaah = (i) having a
rope or a string  (ii) having virtues.    Poornakumbhopi=
poornakumbho +api .  Poornakumbho=  a pitcher full of
water.     Koopa = a well    Eva = thus,    Nimajjati =
sink, drown.

i.e.    In this world only noble and virtuous persons have to
face difficulties and hardships and not those persons who
patronize them with a view to utilizing their virtues for their
benefit.   Just see !   how only that pitcher is immersed in
the water of a well which has a  long rope ('guna') attached
to its neck.

(In this Subhashita by skillfully using the two meanings of
the word 'Guna' , and using the simile of drawing water out
of a well, the author has emphasized that only the virtuous
persons have to suffer and not the persons who patronize them
to utilize their services.)

Monday, 23 October 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


ब्रह्मघ्नोSपि नरः पूज्यो  यस्याSति  विपुलं धनम्  |
शशिना  तुल्यवंशोSपि  निर्धनः  परिहीयते              ||
                               -सुभाषित रत्नाकर (सभातरंग )

भावार्थ -        एक ब्राह्मण का  हत्यारा व्यक्ति भी समाज में
पूजनीय हो जाता है यदि  वह बहुत धनवान हो | इस के विपरीत
चन्द्रमा के समान निर्मल और प्रतिष्ठित कुल में जन्मे परन्तु
धनहीन व्यक्ति को समाज में हेय दृष्टि से देखा जाता है |

Brahmaghnopi  narah poojyo yasyaasti vipulam dhanam.
Shashinaa tulya vanshopi    nirdhanah pariheeyate.

Brahmaghnopi = brhama +ghno+ api.   Brahma =a brahmin.
Ghno = killer.    Api = even.   Narah = a person.     Poojyah =
venerable.       Yasyaasti = who has.       Vipulam = abundant.
Dhanam= wealth, money.     Shashinaa =  Moon's.    Tulya =
comparable , equal to.    Vamshopi - vamsho + api.    Vamsho=
family dynasty.   Api = even.   Nirdhanah = poor.   Pariheeyate=
be avoided or omitted, failed.

i.e.     A very rich person is venerated in the society even if he may
be a killer of a Brahmin .  On the other hand a poor person born in
an illustrious family and pure like the Moon,  is  treated contemptu-
ously and avoided in the society.


Sunday, 22 October 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


श्लाघ्या  महतामुन्नातिरद्भुतमध्यवसितं  च धीराणाम्  |
कनकगिरिरनभिलङ्घयो  रविरनिशमनुष्ठिताSSरम्भः ||  - शार्ङ्गधर
                                                                      ( सुभाषित रत्नाकर )

भावार्थ -    महान और धीर व्यक्ति अपने  कार्य और व्यवसाय में अद्भुत रूप 
से अध्यवसायी  (मेहनती और दृढ इच्छाशक्ति संपन्न) होने के कारण सदैव
वैसे ही प्रशंसित होते हैं जैसे कि  स्वर्णिम आभा वाले  पर्वत को बिना लांघे ही
सूर्य आकाश में  निरन्तर (बिना रुके ही ) अपनी यात्रा जारी रखने के कारण
प्रशंसित  होता है |

(सूर्य जब  उदय  होताहै तो उसकी रश्मियां जब किसी  पर्वत के हिमाच्छादित शिखर
पर पडती हैं तो  वह् स्वर्णिम आभा युक्त हो जाता है | 'कनकगिरि 'का तात्पर्य ऐसे ही
किसी पर्वत से है |  इस सुभाषित में एक धीर व्यक्ति के पराक्रम और इच्छाशक्ति की
तुलना सूर्य की  निरन्तरता  और आभा से की गयी है |)

Shlaaghyaa mahtaamunnatiradbhutamadhyavasitam  cha  dheeraanaam.
Kanakgiriranabhilanghyo raviranishamanutshthaarambhah.

Shlaaghyaa =   praised.      Mahataam =noble and righteous persons.
Unnatih = prosperity.    Adbhutam = wonderful.     Adhyavasitam =
industrious, determined.    Cha = and.    Dheeraanaam =brave and strong
minded persons.    Kanakagirim = Golden mountain,     Anabhilanghyo =
without transgressing.   Ravih = the Sun.   Anisham = continuously.
Anushthitaa = accomplished.    Aarambahah = commencement, start.

i..e.     Noble and righteous persons  are always praised for their wonderful
industriousness and bravery just like the Sun, who, continuously traverses
the sky without ever transgressing the golden mountain.

(When the Sun's rays fall on the snow clad peak of a mountain at the time
of Sunrise, the mountain shines as if it is made of gold.This has been referred
to as a golden mountain in the above Shloka  and a 'Dheer' person has been
compared to the Sun.) 

Saturday, 21 October 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


गुणिनि गुणज्ञो रमते  नाSगुणशीलस्य  गुणिनि परितोषः  |
अलिरेति  वनात्पद्मं   न  दर्दुरस्त्वेकवासोSपि ||
                                        - सुभाषित रत्नाकर (शार्ङ्गधर )

भावार्थ -    गुणवान व्यक्ति अन्य व्यक्तियों के गुणों को देख कर
आनन्दित होते हैं , परन्तु गुण रहित व्यक्तियों को दूसरों के गुणों
को देख कर कोई प्रसन्नता नहीं होती है | देखो तो ! एक  मधु मक्खी
वन में  खिले हुए कमल पुष्पों से  उनका पराग प्राप्त करने के लिये
स्वयं उनके पास चली जाती है , परन्तु  मेंढक एक ही स्थान पर बने
रहते हैं |

(इस सुभाषित में गुणवान व्यक्तियों की तुलना मधुमक्खियों से
तथा गुणहीन व्यक्तियों की तुलना मेंढकों से की गयी है | गुणवान
व्यक्तियों को अन्य व्यक्तियों के गुणों को स्वीकार करने  मे कोई
संकोच नहीं होता है , यही इस सुभाषित में निहित भावना है  |)

Gunini gunagyo  ramate naagunasheelasya  gunini paritoshah.
Alireti vanaatpadmam  na dardurastvekavaasopi.

Gunini = virtues, quality.    Gunagyo= a virtuous person.
Ramate = pleased, rejoice at.    naaguna
on sheelasya=  naa +
agunasheelasya.    Naa = not.    Agunasheelasya = a worthless
person's    Paritoshah = delight in.    Alireti = alih +eti.    Ali=
a  bee.    Eti = arrives.   Vanaatpadmam =  vanaat + padmam.
Vanaat = of the forest.   Padmam =lotus flowers.   Na = not.
Dardurastvekavaasopi =  dardurah + tu +ekavaaso + api.
Dardurah = a frog.   Tu = but.   Ekavaaso = living  on the same
place.     Api = even.

i.e.      Virtuous persons always feel rejoiced on seeing the
virtues of others, whereas  worthless persons are never happy
on seeing the virtues on others.   Look !  how a bee moves
around a forest to collect the nectar from Lotus flowers in a
forest, whereas frogs remain confined at one place.

(In this Subhashita virtuous persons have been alluded to bees
and lotus flowers, whereas worthless persons having no virtues
have been alluded to frogs. The idea behind it is that virtuous
persons do not hesitate to emulate the virtues in others.) 

Friday, 20 October 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


सह परिजनेन विलसति धीरो गहनानि तरति पुनरेकः  | 
विषमेकेन  निपीतं  त्रिपुरजिता  सह  सुरैरमृतम्           || 
                             -  सुभषितरत्नाकर (प्रसंग रत्नावली)
          
भावार्थ -     जो व्यक्ति धीर (पराक्रमी और दृढ इच्छाशक्ति संपन्न) होते
हैं वे अपने अनुयायियों को अत्यन्त विपरीत परिस्थितियों से भी अनेक बार
बाहर निकालने के सामार्थ्य के कारण प्रसिद्ध होते हैं | देखो न !  त्रिपुर नामक
दैत्य को जीतने वाले भगवान शिव ने अकेले ही  हलाहल  नाम के  विष का
पान कर अन्य सभी देवताओं को अमृत पीने का अवसर दे कर उनकी रक्षा की |

(यह्  सुभाषित 'धीरप्रशंसा' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है | इसमें में पुराणों में
वर्णित देवों और दानवों द्वारा की गयी 'समुद्र मन्थन' की घटना को  एक उपमा
के रूप में प्रयुक्त किया गया  है | इसमें एक धीर पुरुष की तुलना भगवान शिव से
की गई है | समुद्र मन्थन के समय निकले  'हलाहल' विष से सारा संसार त्रस्त हो
गया था | तब भगवान शिव ने सभी की रक्षा करने  के लिये उसे पी लिया और अमरता
प्रदान करने वाले 'अमृत' को अन्य देवताओं को पीने का अवसर प्रदान किया था |)

Saha parijanena vilasati dheero gahanaani tarati punarekah.
Vishamekena nipeetam Tripurajitaa saha  Surairamrutam.

Saha = with, in the company of.       Parijanena = followers.
Vilasati = glitters, shines.   Dheero = brave, strong minded persons.
Gahanaani =impassable situations.    Tarati = get through.
Punarekah = punah + ekah.     Punah = again.   ekah = one.
Vishmeken = visham = ekena.    Visham = poison.    Ekena= one only.
Nipeetam =drunk up.    Tripurajitah = by the conquerer of the demon
Tripura , i.e.  God Shiva.   Surairamrutam = Surahih + amrutam.
Suraih =  various other Gods.    Amrutam = the nectar brought out
from the depths of Ocean during 'Samudra Manthan'.

i.e.     Those persons who are brave and of firm determination, are adored
for leading  their followers to get through from very tricky and dangerous
situations.  Look !  how the God Shiva, the slayer of the demon Tripura,
himself drank the very potent poison 'Halaahal'  in order to save various
other Gods who were his followers and enabled them to drink Amruta.

(The legend of 'Samudra Manthan' has been used as a simile in the above
Subhashita.  In this a brave and determined person has been compared to
God Shiva.  When during the course of churning of the Ocean 'halaahal'
poison came out along with 'Amruta' the nectar giving immortality, God
Shiva saved his followers by himself drinking  the  poison and gave the
opportunity of drinking 'Amruta to the Gods.  For details about 'Samudra
Manthan' please refer to Wikipedia.)

Thursday, 19 October 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


यत्राSभ्यागत दानमानचरणप्रक्षालनं भोजनं
सत्सेवापितृदेवताSर्चनविधिः  सत्यं  गवां पालनम्  |
धान्यानामपि संग्रहो न कलहश्चित्ताSनुरूपा प्रिया
हृष्टा प्राह हरिं  वसानि कमला तस्मिन् गृहे निश्चला ||
                                     - सुभाषित रत्नाकर (स्फुट )

भावार्थ -   जिस व्यक्ति के घर में  एक अभ्यागत (मेहमान) का स्वागत
उसके चरण धो कर, धन दे कर तथा भोजन करा कर किया जाता हो, तथा
विधिपूर्वक साधुओं , परिवार के वरिष्ठ जनों और देवताओं की नित्य  पूजा
अर्चना की जाती हो,  वह सत्यवादी हो , घर में गाय पाली जाती हो , विभिन्न
प्रकार के अन्न घर में सदैव संग्रहीत रहते हों,  कलह (झगडा ) न होता हो,
और उसकी पत्नी भी उसके अनुकूल हो, ऐसे घर में अपने पति विष्णु भगवान
की सहमति से  देवी महालक्ष्मी प्रसन्नता पूर्वक सदैव  निवास करती है |

(एक सद्गृहस्थ में जो गुण होने चाहिये उनका वर्णन इस सुभाषित में किया
गया है और यह प्रतिपादित किया गया है कि ऐसे व्यक्ति पर महालक्ष्मी की
कृपा सदैव बनी रहती है |

Yatra-abhyaagata Daana-maana-charana  prakshaalanam bhojanam.
Satsevaava-pitru-devataarchana-vidhih  satyam  gavaam paalanam.
Dhaanyaanaam-api smgraho na kalahash-chittanuroopaa priyaa.
hurhstaa praaha harim vasaani kamalaa tasmin gruhe nishchalaa.

Yatra = where.   Abhyaagata = a guest.    Daana = donation.   Maana=
respect.   Charana = feet.   Prakshaalanam = washing.   Bhojanam  =
meal.      Satsevaa = service to noble persons.    Pitru =  elders in the
family.   Devata = various gods.    Archanvidhih = worshiping .
Satyam = truthful.    Gavaam + cows.    Paalanam = upbringing.
Dhaanyaanaam = various types of foodgrains.   Api = even,   Smgraho=
maintaining the stock of.   Na = not.   Kalaha = quarrels   Chittanuroopo=
accorrding to one's liking.   Priyaa = wife.    Hrushtaa = cheerful, pleased.
Praaha = instructs.     Harim = the God Vishnnu.     Vasaami = live in. 
Kamalaa = Goddess Lakshmi.   Tasmin = that.  Gruhe = at the home of.   
Nishchalaa = immovable,

i.e.      In a household where guests are honored by washing their feet,
feeding them with  tasty meals and by giving gifts, noble persons, elders
of the household and Gods are worshipped as per norms, all the members
of the household are truthful,  cows are  reared (brought up ) ,  various
types of foodgrains are well stocked , there is  no quarreling among its
members,  there is mutual understanding between the husband and wife,
then Goddess Lakshmi with the concurrence of her consort God Vishnu
gladly remains for ever in such a household.

(All the pre-requisites for a peaceful and virtuous family life have been
detailed in this Subhashita. In such a household Mahalkshmi, the goddess
of wealth ,always bestows here benevolence, is the message conveyed by
the abve Subhashita. )

Wednesday, 18 October 2017

आज का सुभाषित / Today;s Subhashita.


लक्ष्मि क्षमस्व वचनीयमिदं दुरुक्त -
मन्धोभवति पुरुषास्त्वदुपासनेन   |
नोचेत्कथं कमलपत्रविशालनेत्रो
नारायणः स्वपिति पन्नगभोगतल्पे  ||- सुभाषित रत्नाकर
                              -  (सभा तरङ्ग )

भावार्थ -    हे विशाल नेत्रों वाली और कमल पुष्प पर आसीन
देवी  लक्ष्मी !   मेरे द्वारा आपके प्रति कहे गए  इन दुर्वचनों
के लिये मुझे कृपया  क्षमा करें | जो भी  पुरुष आपके उपासक
हैं वे मदान्ध हो जाते हैं  | अन्यथा बताओ तो आपके पतिदेव
भगवान विष्णु क्यों शेषनाग की कुण्डली को एक पलंग  की
तरह प्रयुक्त कर उस पर शयन करते हैं  ?

(संस्कृत वाङ्ग्मय में हास्य और व्यङ्ग्य विधा का भरपूर उपयोग
किया गया है और देवी देवताओं को भी इस हेतु प्रयुक्त करने में भी
संकोच नहीं किया है |  लक्ष्मी को चञ्चला भी कहा गया है | उपर्युक्त
सुभाषित परोक्ष रूप से उन व्यक्तियों के ऊपर व्यङ्ग्य है जो धन का
सदुपयोग न कर उसका अत्यन्त ही अभद्र प्रदर्शन करते हैं जैसा आज
कल सर्वत्र दिखाई देता है | )

Lakshmi kshamasva vachaneeyamidam durukta-
mandhobhavati   purushaastvadupaasanena.
Nochetkatham  kamalapatra vishaalanetre.
Naarayanah svapiti pannagabhogatalpe.

Lakshmi = name of the Goddess of riches.   Kshamasva =
forgive me.  Vachasvam = words spoken by me.   Idam=
these.   Duruktam = improper words.   Andhee - blind.
Bhavati=become.  Purushaastvadupaasanena = purushaah+
tvat + upaasanena.     Purushaah = persons.   Tvat =your.
Upaasanena = by worshiping.   Nochetkatham = no chet +
katham.    No chet = otherwise.   Katham = in what way.
Kamalapatra = leaf of thoue lotus flower.  Vishaalanetro =
large beautiful eyes.   Naaraayanah = God Vishnu, the
consort of Goddess Lakshami.   Svapiti=sleeps.   Pannaga =
a snake (here the reference is to the  'Sheshnaag' the king of
serpants, whose coil is used as  God a bed by God Vishnu.
Bhoga = body (coil of a serpant)   Talpe = bed,  couch.

i.e.   O Goddess Lakshmi having beautiful eyes and sitting on
a lotus flower !  please forgive me for using harsh words for
criticizing you.  Whosoever worships you becomes power drunk.
Otherwise , tell me how is it that your consort the God Vishnu
uses the coil of  'Sheshnaag' (the king of serpents) as  a  bed and
sleeps over it ?

(  In Sanskrit literature  laughter and satire is used extensively and
even Gods have not been spared.  Lakshmi is also called fickle
minded.   This Subhashita is a satire on super rich persons and their
eccentric ways of splurging their wealth in most vulgar way. )







Tuesday, 17 October 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


हे  जिह्वे  रससारज्ञे  सर्वदा  मधुरप्रिये  |
भगवन्नामपीयूषं  पिव  त्वमनिशं  सखे || - (स्फुट )
                                             - सुभाषित  रत्नाकर

भावार्थ -     ओ मेरी जिह्वा  ! मैने सुना है कि तुम विभिन्न प्रकार
के रसों और उनके स्वाद को पहचानने की विशेषज्ञ हो तथा तुम्हें
मीठे स्वाद वाली  वस्तुएं बहुत प्रिय हैं  |  इस लिये हे मेरी मित्र
जिह्वे   (जीभ ) तुम निरन्तर इस सृष्टि के रचयिता परमेश्वर के
नामस्मरण रूपी पीयूष (अमृत ) का पान करते रहो |

(इस सुभाषित द्वारा लोगों को अपने दैनन्दिन कार्यों को करते
समय  निरन्तर परमेश्वर का नाम स्मरण करने  का परामर्श
दिया गया है ताकि हम सत्य ओर धर्म के पथ से विचलित न हों )

He jihve  rasasaaragye  sarvadaa madhurapriye.
Bhagavannaampeeyusham piva tvamanisham sakhe.

He  = a word used while addressing somebody for seeking
his attention.    Jihve = the tongue.           Rasasaaragye =
a  specialist in  recognising and appreciating various types
of flavours.    Sarvadaa = always.  Madhurapriye = lover of
sweet flavours.   Bhagavannaam =the name of God Almighty. 
Peeyoosham = nectar.    Piva = drink.    Tvamanisham = tvam
+ anisham,    Tvam = you.Anisham = incessantly, continuously.   
Sakhe = a friend.

i.e.    O my tongue !  it is said that you are a specialist in
recognizing and appreciating various types of flavours and
sweet things are your favorite.  So, my friend you should
continuously drink the nectar of Almighty God's name .

(This Subhashita exhorts people to always remember the God
Almighty while performing their various deeds , so that they
may not deviate from the path of righteousness.)

Monday, 16 October 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita


न  विद्यया  नैव कुलेन गौरवं
जनाSनुरागो धनिकेषु सर्वदा |
कपालिना मौलि धृताSपि जाह्नवी
 प्रयाति रत्नाSSकरमेव सत्वरम्  ||  - (स्फुट)
                                - सुभाषित रत्नाकर

भावार्थ -     धनवान व्यक्ति सामान्यतः न तो विद्वान होते हैं
और न ही  किसी गौरवाशाली कुल के  होते हैं  | परन्तु फिर भी
जनता  (उनसे कुछ प्राप्ति की आशा मे )उनके प्रति  सदैव अनुराग
प्रदर्शित करती है  |   देखो न  !  कपालधारी परमेश्वर शिव ने 
यद्यपि स्वर्ग से अवतरित हुई गङ्गा नदी को  आदर दे कर अपने
मस्तक पर धारण किया वह् तुरन्त ही रत्नों के आगार समुद्र  से
मिलने के लिये प्रस्थान कर गयी |

(इस सुभाषित में विद्वान और गुणी व्यक्तियों की तुलना भगवान
शिव से और धनवान व्यक्तियों की तुलना समुद्र से कर यही प्रतिपादित
किया गया है कि लोग धनवान व्यक्तियों  की ओर ही अधिक आकर्षित
होते हैं  तथा विदवान परन्तु धनहीन व्यक्तियों की उपेक्षा करते हैं | )

Na vidyayaa naiva kulena gauravam.
Janaanuraago dhanikeshu sarvadaa.
Kapaalinaa maulidhrutaapi  Janhavee
Prayaati ratnaakarameva  stvaram.

Na = not.    Vidyayaa = by knowledge,    Naive = no.
Kulena = of the dynasty,     Gauravam = respectability.
Janaanuraago = the affection by common people.
Dhanikeshu = rich persons.    Sarvadaa = always.
Kapaalina = by the Lord  Shiva, who always holds
a human skull on his hand.   Maulidhrutaapi =  mauli +
dhruta+ api.    Mauli  =head.    Dhruta = held on.    Api =
even.    Jahnavee = the sacred river Ganges.    Prayaati=
proceeds.       Rat atnaakarameva =  ratnaakaram + eva.
Ratnaakaram =the Ocean,store house of jewels.   Eva =
really, thus.    Satvaram = hastily.

i.e.       Rich people are generally not learned  and also do not
belong to  an illustrious and  honourable  family, but still
people adore them (perhaps in the hope of getting some benefit
from them).  See, how strange is it that Lord Shiva , who allowed
the sacred river Ganges emanating from Heaven to land on his
forehead, she immediately proceeded to meet the Ocean, the store
house of gems and jewels.

(In this Subhashita learned (but not rich) persons have been
compared to Lord Shiva and rich persons to the Ocean. in order
to emphasize the fact that people are attracted more towards rich
people rather than learned and honourable , but simple people.)
  

Sunday, 15 October 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


यस्यार्थास्तस्य  मित्राणि  यस्यार्थास्तस्य  बान्धवाः |
यस्याSर्थः  स  पुमांल्लोके यस्याSर्थः स  च पण्डितः ||               
                                                          - शार्ङ्गधर

भावार्थ -   जिन  व्यक्तियों  के पास धन और संपत्ति हो तो सभी उन
का  मित्र बनना  चाहते हैं तथा |धनवान  व्यक्तियों  के  निकट संबन्धी
भी सदैव उन के निकट संपर्क में ही बने रहते हैं |  जिस व्यक्ति के पास
धन हो तो वह्  (योग्यता न होने पर भी ) एक महान तथा विद्वान व्यक्ति
के समान  समाज में  सम्मानित किया जाता है |

(इसी आशय का एक अन्य सुभाषित भर्तृहरि रचित " नीति शतक " मे भी
इस प्रकार है :-
        यस्याSस्ति  वित्तं स नरः कुलीनः स पण्डितः स श्रुतवान्गुणज्ञः  |
        स एव वक्ता स च दर्शनीयः  सर्वे गुणाः काञ्चनमाश्रयन्ति  ||
अर्थात धनवान व्यक्ति योग्य न होने पर भी एक  कुलीन , विद्वान ,
शास्त्रों का ज्ञाता , गुणवान, वक्ता तथा दर्शनीय व्यक्ति के समान आदर
पाता है |क्यों कि सारे गुण स्वर्ण (धन संपत्ति का प्रतीक) पर ही आश्रित  हैं |)

Yasyaarthaastasya mitraani yasyaarthaastasya Baandhavaah .
Yasyaarthah sa pumaamlloke  yasyaarthah sa cha panditah.

Yasyaarthaastasya. =  Yasya = who. +  Arthaah = wealth, +
Tasya= his.    Mitraani = friends.   Baandhavaah = relatives.
Sa = he.     Pumaamlloke =  Pumaam + loke.       Pumaam =
honourable person.    Loke = in the society.     Panditah=  a
learned person.

i.e.      Every body wants to befriend  wealthy persons  and the
relatives of such  persons always try to be near to him .  A rich
person (even if he may not be a capable person) is treated as  a
great and knowledgeable person in the society

(Another poet Bhartruhari has written the following Subhashita
having a similar theme, but adding further that all the virtues are
subservient to the Gold (representing wealth).

       Yasyaasti vittam sa narah kuleenah sa Panditah sa shrutivaan
gunagyah.
         Sa eva vaktaa sa cha darshaneeyah  sarve gunaah kaanchan
-maashryanti. )


Saturday, 14 October 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


वरं  हालाहलं  पीतं  सद्य:  प्राणहरं  विषम्  |
न दृष्टव्यं धनाढ्यस्य  भ्रूभङ्गकुटिलं  मुखम्  || सुभाषित रत्नाकर

भावार्थ -     किसी धनी  व्यक्ति से धन की याचना करने से  उसके चेहरे
पर छाई हुई कुटिल और तिरस्कार पूर्ण दृष्टि को देखने से अच्छा तो तुरन्त
प्राण हरने  वाले हलाहल विष को पीना है |

(प्रायः धनी परन्तु  कंजूस व्यक्तियों से यदि किसी अच्छे  उद्देश्य के लिये
भी धन देने को कहा जाय तो उनके चेहरे पर जो तिरस्कार की भावना प्रकट
होती है उसी की  इस सुभाषित में निन्दा की गई हे और यह कहा गया  है कि
ऐसे लोगों से याचना करने से तो मौत ही भली है |  )

Varam haalaahalam peetam sdyah praanaharam visham.
Na drushtavyam  dhanaadhyasya bhroobhangakutilam mukham.

Varam =best.  Haalaahalam = deadly poison.  Peetam  = drink.
Sadyah =  instantly.    Praanaharam = causing death.   Visham =
poison.   Na =not.  Drushtavyam =should see.  Dhanaadhyasya=
a very rich person's   Bhroobhanga = frown.   Kutilam =crooked.
Mukham = face, mouth.

i.e.      One should better die by drinking the deadly poison 'Halaahala'
which kills a person instantly,  rather than seeing the crooked frown on
the face of a rich person on being asked for financial help.

(Generally very rich but very miserly persons on being requested for
financial help even for a noble cause, do not part with their wealth and
reject the proposal with a crooked frown on their face.  This Subhashita
condemns their such attitude by saying that it is better to die rather than
ask such people for their assistance.)

Friday, 13 October 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


न  केवलं  मनुष्येषु  दैवं  देवेष्वपि  प्रभुः   |
सति  मित्रे धनाSध्यक्षे चर्मप्रावरणो  हरः || - प्रसंग रत्नावली

भावार्थ  -      दैव (भाग्य) न केवल मनुष्यों पर , परन्तु देवताओं  के
ऊपर भी अपना प्रभुत्व स्थापित करता है | देखो  न !  सभी देवताओं
के  भी अधिपति  भगवान शिव  की मित्रता  देवताओं के  कोषाध्यक्ष
कुवेर से  होने पर भी उन्हें चर्म ( चमडे ) से बने हुए वस्त्र धारण करने
पडते हैं |

( भगवान शिव की वेषभूषा को इस सुभाषित में  एक  हास्यपूर्ण  उपमा
के रूप में प्रयुक्त कर यह प्रतिपादित किया गया है कि मनुष्य के जीवन
में सफलता और असफलता अन्ततः उस के भाग्य पर ही  निर्भर रहती है|) 

Na kevalam manushyeshu daivam deveshvapi  prabhuh.
Sati mitre dhanaadhyakshe  dharmapraavarano Harah.

Na = not.   Kevalam = only.     Manushyeshu= among men
Daivam = destiny.   Deveshvapi =   Deveshu +  api.the
Deveshu =  to the Gods.    Api = even.   Sati =  is.
Mitre  = friend.   Dhanaadhyaksho = dakshhana +adhyaksho.
Dhana = wealth.    Adhyaksho = lord. ( here the reference is
of Kuber the God of wealth and riches,   Charma =  leather.
Pravarano = covering, garment.    Harah = Lord Shiva.

i.e.       Destiny not only controls the  lives of people but also that
of Gods.   See !  how the Lord Shiva, who rules over other Gods ,
and Kuber, the God of wealth is his friend,  has to cover his body
with garments made of leather.

( The unconventional attire of Lord Shiva has been used lightly
and jokingly as a metaphor  to emphasize that  success in life
ultimately depends on the destiny. )

Thursday, 12 October 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


आकाशमुत्पततु  गच्छतु  वा  दिगन्त-
मम्बोनिधिं  विशतु तिष्ठतु  वा  यथेच्छम्   |
जन्मान्तरा S र्जितशुभाSशुभकृन्नराणां
छायेव  न  त्यजति  कर्मफलाSनुबन्धः      ||  -सुभाषित रत्नाकर

भावार्थ -   मनुष्य चाहे आकाश  में  उडे , सुदूर प्रदेशों में विचरण
करे,  समुद्र मे प्रवेश करे , अथवा जहां उसकी इच्छा हो वहां निवास
करे , उस के द्वारा इस जन्म में या पूर्व जन्मों में किये गये शुभ और
अशुभ कर्मों के फल एक छाया की तरह उसका साथ नहीं छोडते हैं |

(भारतीय सनातन धर्म की मान्यता है कि  मनुष्य के द्वारा इस  जन्म
में या पूर्व जन्मों में किये गये शुभ या अशुभ कर्मों का फल उसे अवश्य
भोगना पडता है और वे छाया की तरह उसका साथ कभी नहीं छोडते हैं |
इस सुभाषित में इसी  भावना को  व्यक्त किया गया है | )

Aakaashamutpatatu  gacchatu  vaa  diganta-
mambhonidhim  vishatu  tishthatu vaa yathecham.
Janmaantara-arjita -shubha-ashubha-krunnaranaam.
Chaayeva  na  tyajati  karmaphalaanubandhah.

Aakaashamutpatatu =aakaasham + utpatatu.    Aakasham = sky.
Utpatatu = fly upwards.      Gacchatu = go.       Vaa = or.
Digantam = end of horizon, another far away region.
Ambhonidhim =  the Ocean.    Vishatu = enter into..  Tishthatu=
stay.   Yatheccham = at will or pleasure.    Janmaantara = another
birth or life.   Arjit = acquired.  Shubha = auspicious.    Ashubha=
inauspicious., evil, bad .    kruta = done.   Naraanaam = people.
Chaayeva = like a shadow.      Na = not.       Tyajati = quits.
karmaphalaanubandhah = karmaphalaa + anubandhah. 
Karmaphalaa = fruit or recompense of actions, both good and bad.
Anubandhah =  result, consequence.

i.e.      A person may  fly upwards in the sky,  roan in distant lands,
enter into the Ocean, or stay in places of his choice,  the consequences
of good and bad deeds done by him during his present life time or
his previous births, do not quit him and follow him like his shadow
where he goes.

(According to 'Sanaatan Dharma'  of Hindus it is believed that a person
has to face the consequences of good or bad deeds called 'Punya' and
'Paap' done by him during his lifetime or during his previous births, and
these follow him like his shadow every where.  This the idea behind the
above Subhashita.)

Wednesday, 11 October 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.

शुचित्वं  त्यागिता    शौर्यं   सामान्यं  सुखदुःखयोः  |
दाक्षिण्यं  चानुरक्तिश्च  सत्यता  च  सुहृद्गुणाः   ||
                                    - सुभाषित रत्नाकर (स्फुट)h.
भावार्थ -     ईमानदारी , त्याग की भावना, साहस ,  सुख तथा दुःख
की स्थितियों में एक समान व्यवहार , चतुरता, स्नेह की भावना तथा 
सत्यवादिता , ये सभी  गुण एक सच्चे मित्र में अवश्य होने चाहिये |

Shuchitvam tyaagitaa  shauryam  saamanyam sukhaduhkhayoh.
Daakshinyam  chaanuraktishcha  satyataa  cha suhrudgunaah.

Shuchitvam = honesty, uprightness.    Tyaagitaa = liberality.
Shauryam = bravery.    Samaanyam =  similar, common.
Sukha = happiness.   Duhkhayoh = sorrow, misery.   Daakshinyam=
skillful,  dexterity.   Chaanuraktishcha = cha +anuraktih + cha.
Cha = and.    Anuraktih = affection, fondness.   Satyataa = truth.
Suhrudgunaah  = Suhrud + gunaah     Suhrud = a fried.   Gunaah =
merits, qualities. 

i.e.   Honesty,  liberality, bravery, balanced  attitude in the situations of
happiness and sorrow, dexterity, affection and truthfulness, are the virtues
which a true friend must have in him.

Tuesday, 10 October 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita .


तन्मूलं गुरूतायास्तत्सौख्यं   दद्द्यशस्तदौर्जित्यम्  |
तत्सौभाग्यं पुंसां  यदेतद्प्रार्थनं   नाम  ||   
                                                -  (प्रसंग रत्नावली )
भावार्थ -    समाज में वे ही   कुल श्रेष्ठ माने  जाते  हैं   जो  महान और
प्रतिष्ठित होते  हैं  |  सच्चे सुख की स्थिति तभी होती है जब व्यक्ति
यशस्वी  और शक्तिशाली  हो तथा वही व्यक्ति वास्तव में भाग्यवान है
जिसे किसी से याचना न करनी पडे |

(यह  सुभाषित  भी 'संतोष प्रशंसा ' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित है | इस
में भी धन संपत्ति के स्थान पर कुलीनता , आत्मनिर्भरता तथा जनता
में आदर और सम्मान को ही सच्चे सुख का कारक बताया गया है  | )

Tanmoolam gurutaayaastatsaukhyam  taddyashtadaurjityam.
Tatsaubhaagyam pumsaam yadetadpraarthanam naama.

Tanmolam =  tat+moolam'     Tat = that.    Moolam = base, origin.
Gurutaayaah + tat+ saukhyam .   Gurutaayaah = greatness, majesty.
Saukhyam = happiness.    Tat +yashah + tat + aurjityam.   Yashah =
fame.    Aurjityam=strength, vigour.    Saubhaagyam = good fortune.
Pumsaam =  men, people.     Yadetadpraarthanam. =   Yat +etat  +
apraarthanam.    Yat = that.   Etat = this.    Apraarthanam = no need
for requesting others for their favour.     Naam = name.

i.e.      Only those family dynasties are  recognised in society, whose
members are  great and philanthropic .   Real happiness is achieved
when a person becomes famous and powerful.  A person is  lucky in
the real  sense if he is not compelled to beg from others .

(This  Subhashita also deals with the virtue of 'Contentedness' .  Good
family lineage, name and fame in society, and  self- sufficiency confer
real happiness, and not the wealth and power, is the idea behind this
Subhashita.)







Monday, 9 October 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अप्रार्थितानि  दुःखानि  यथैवाSSयान्ति  देहिनाम्  |
सुखान्यपि   तथाSSयान्ति  दैन्यमत्राSतिरिच्यते  ||
                                              - ( प्रसंग रत्नावली )

भावार्थ -     देहधारी  प्राणियों में जिस प्रकार विना उनकी इच्छा
के  उनके जीवनकाल  में  दुःखद् परिस्थितियां आती हैं  उसी प्रकार
सुखद परिस्थितियां भी आती  हैं परन्तु  दुःखद्  परिस्थितियां
ही अधिक छाई रहती  हैं  |

Apraarthitasani duhkhaani yathaivaayaanti  dehinaam.
Sukhaanyapi   tathaayaanti  dainyamatraatirichyate.

Apraarthitaani =  unwanted.    Duhkhaani = miseries,
sorrow.      Yathaivaayaanti =  Yathaiva +  aayaanti,
Yathaiva  = just as.    Aayaanti =  arrive.       Dehinaam =
living beings.     Sukhaanyapi =  sukhaani +   api
sukhaani = pleasure, happiness.   Api = even.   Tathaa +
Aayaanti.  Tathaa= in the same manner.    Dainyam + Atra  +
Atirichyate.    Dainyam = miserable state.    Atra = here   
Atirichyate = prevail , predominate.

i.e.   Just as miseries come in the life of all living beings
totally unwanted by them , in the same manner happiness
and pleasure also come,  but the miseries predominate.

Sunday, 8 October 2017

आज का सुभाषित /Today's Subhashita.


संतोषाSमृततृप्तानां  यत्सुखं  शान्ताचेतसाम्  |
कुतस्तद्धनलुब्धानामितश्चेतश्च   धावताम्     ||
                                        -  (प्रसंग रत्नावली )

भावार्थ -   शान्त स्वभाव के तथा संतोष रूपी अमृत को पी कर
तृप्त हुए व्यक्तियों को जो सुख प्राप्त होता है , वैसा सुख  भला
धन के लोभी और् उसकी प्राप्ति के लिये इधर उधर भटकने वाले
व्यक्तियों को कहां प्राप्त होता है ?

(यह सुभाषित भी 'संतोष प्रशंसा' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित
किया गया है  इस का तात्पर्य भी यही है कि सच्चा सुख अपनी
अपनी इच्छाओं और आवश्यकताओं  को  सीमित करने  से ही
प्राप्त होता है |)

Smtoshaamrutatruptaanaam yatsukham shaantchetasaam.
Kutastaddhanalubdhaanaamitashchetashcha dhaavataam.

Santosha+amaruta+truptaanaam.   Santosha=contentedness.
Amruta = nectar of God.   Truptaanaam = satiated persons.
Yat=  that.   Sukham = happiness.   Shaanta = serene, quiet.
Chetasaam = mind.   Shant chetasaam = persons of serene
and quiet mind.  Kutah + tat+dhanalubdhaanaam + itashcha
+itashcha.  Kutah=where.   Tat=that.   Dhanalubdhaanaam=
persons greedy of wealth.       Itashcha =hither and thither.
Dhaavataam = run

i.e.        How can the pleasure, which persons of serene mindset
derive by remaining contended as if they have drunk the nectar
of Gods, be achieved by  persons greedy of wealth, who run hither
and thither to acquire it by any means ?

(The idea behind this Subhashita is that there is no end to the
desires of men. The real happiness is achieved only when  we
are contended at whatever we possess.)

Saturday, 7 October 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अकृत्वा  परसन्तापमगत्वा  खलनम्रताम्   |
अनुत्सृज्य  सतां वर्त्म  यत्स्वल्पमपि तद्वहु ||
                                    -   ( प्रसंग रत्नावली )

भावार्थ -    अन्य व्यक्तियों को दुख न पहुंचाना , और दुष्ट
व्यक्तियों की नम्रता पर विश्वास न कर उनके कहे के अनुसार 
नहीं चलना  , तथा  सज्जन और विद्वान व्यक्तियों के द्वारा
निर्धारित पथ (आदर्शों ) का थोडा भी अनुसरण यदि हम करें
तो यही हमारी उन्नति के लिये बहुत ही हितकर है |

Akrutvaa parasantaapamagatvaa  khalanamrataam.
Anutsrujya  sataam  vartma  yatsvalpmapi tadvahu.

Akrutvaa =  having undone.         Parasantapamagatvaa=
Para+santaapam+agatvaa.   Para = others.   Santaapam=
grief.    Agatvaa =  not gone.    Khala = wicked person.
Namrataam = politeness.    Anutsrujya = without giving
up.    Sataam = noble and righteous persons.   Vartma=
path,  course.   Yatsvalpamapi = yat + svalpam + api.
Yat = that.    Svalpam = few,  little.     Api =  even.
Tadvahuh =  tat+ bahu.    Tat = that    Bahu = much.   

i.e.     If we do not cause grief to others by our actions, and
by not relying on the sweet talk of wicked people do not act
on their advice, and on the other hand follow the teachings
of noble and righteous persons (path devised by them) even
a little, it is very beneficial  for our progress in our life. 

Friday, 6 October 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अर्थी  करोति  दैन्यं  लब्धाSर्थो  गर्व  परितोषम्  |
नष्ट्धनश्च  सशोकः  सुखमास्ते  निस्प्रहः  पुरुषः || - (कल्प तरु )

भावार्थ -   किसी वस्तु की कामना करने  पर उसकी प्राप्ति न होने
की स्थिति में  गरीबी और दीनता का अनुभव होता है  | और यदि
कामना पूर्ण हो जाती है या धन की प्राप्ति हो जाती है तो लोगों को
गर्व और संतोष का अनुभव होता है |  धन संपत्ति  नष्ट हो जाने की
स्थिति में लोग दुखी हो जाते हैं | परन्तु जो व्यक्ति सुख और दुःख की
परस्थितियों को समभाव  से ग्रहण करते हैं  और संतोषी स्वभाव  के
होते है,  वे ही वास्तव में सुखी जीवन जीते हैं |

(यह सुभाषित 'संतोष प्रशंसा'  शीर्षक के अन्तर्गत संकलित हैं | इस का
यही संदेश है कि मनुष्य तभी सुखी होता है जब  वह अपनी इच्छाओं  पर
नियन्त्रण रखता है | )
'


Arthee karoti dainyam  labdhaartho  garva  paritosham.
Nashtdhanasya  sshokah  sukhamaaste  nisprahh  purushah.

Arthee = longing for some thing.       Karoti = do, causes. 
Dainyam= miserable state, poverty.     Labdhaartho=  labdha+
artho.  Labdha =  received.    Artho = wealth, money.   Garva =
pride.  Paritosham =gratification, satisfaction.   Nashtadhanashcha=
nasht+dhanah +cha.    Nasht = lost, destroyed.    Dhanah =wealth
Cha = and.    Sashokah =sorrowful, sad.    Sukhamaaste = sukham+
aaste.    Sukham = happiness.   Aaste = exists, remains.  Nihspraha=
indifferent, free from desires.    Purushah = a person.

i.e.      A persons longing for some thing  feels his life miserable if he
is unable to fulfil his desires.    On the other hand a person whose
desires are fulfilled  and he acquires wealth , he becomes very proud,
and when  people  lose  their  wealth they become very sad.  So, the
real happiness is enjoyed only by a person who is free from desires and
satisfied over his lot and treats the situations of happiness and sorrow
stoically.

(The idea behind this subhashita is that the real happiness is in controlling
our desires and view the situations of happiness and sorrow stoically.)


Thursday, 5 October 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


प्रायेण  धनिनामेव  धनलोभो  निरन्तरं  |
पश्य  कोटिद्वयोपेतं  लक्षाय  प्रणतं धनुः ||- शार्ङ्गधर

भावार्थ -    प्रायः धनवान   व्यक्तियों में और अधिक धन पाने का
लोभ निरन्तर बना रहता है |   देखो तो  !  दो करोड रुपयों की धनराशि
के स्वामी होने पर भी यदि एक लाख रुपये और प्राप्त करने  के  लिये
वे आदर पूर्वक एक धनुष की तरह  झुक जाते हैं |

(उपर्युक्त सुभाषित 'लोभनिन्दा' शीर्षक से संकलित किया गया है और
एक लोभी व्यक्ति की मनोवृत्ति को प्रभावी रूप से दर्शाता है | )

Praayena dhaninaameva dhanalobho nirantaram.
Pashya  kotidvayopetam  lakshaaya  pranatam dhanuh.

Praayena = generally, most probably.   Dhaninaam + eva.
Dhaninaam = rich persons.    Eva = really, thus.   Dhana =
wealth, money.      Lobho = greed, desire.    Nirantaram =
continuously, eternally.    Pasya = see.   Kotidvayopetam =
Koti + dvaya+upetam.     Koti = crore.    Dvayo = two.
Upetum = possessing.     Lakshaaya = One hundred thousand.
Pranatam =  bend forward reverentially.    Dhanuh = a bow.

i.e.      Generally rich people  are obsessed with greed to get
more and more wealth.  Look  ! how strange it is that a person
already owning Rupees two crores , bows reverentially like a
bow to get just  a sum of Rupees one lac.

(The above Subhashita classified under the head 'Greed' depicts
very nicely the general mentality of rich people.)





Wednesday, 4 October 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


भगवन्तौ  जगन्नेत्रे  सूर्याचन्द्रमसावापि |
पश्य  गच्छत एवाSस्तं  नियतिः केन लङ्घ्यते ||
                                                       -शार्ङ्गधर 

भावार्थ -   परमेश्वर ने इस संसार के  नेत्रों के समान  सूर्य 
और चन्द्रमा के सृष्टि की |  परन्तु देखो तो  उन्हें भी प्रत्येक 
दिन चल कर अन्त में अस्त होना पडता है  | भला नियति 
के विधान का  कोई  उल्लङ्घन  कर सकता है ?

(नियति या भाग्य के सामने किसी का भी वश नहीं चलता है |
इसी तथ्य को एक अतिशयोक्ति के माध्यम से (सूर्य और चन्द्र 
की तुलना इस संसार के नेत्रों से कर) यह  प्रतिपादित किया है कि
वे भी परमेश्वर द्वारा उनके लिये निर्धारित नियम (रोज उदय 
होना और अस्त होना) के विपरीत नहीं जा सकते हैं | )

Bhagavantau  jagannetre Sooryaachandramasaavapi.
Pashya  gacchata  evaastam  niyatih  kena  langhyate.

Bhagavantau =God Almighty.    Jagannetra= jagat +netra.
Jagat = this World.    Netra = eye.    Soorya + chandram +
asau+ api.    Soorya = the Sun.     Chandram = the Moon. 
Asau = such.    Api =  even.    Pashya = see.    Gacchata +
go.  evaastam = eva + astam.    Eva = thus.    Astam = set.
Niyatih = destiny.    kena =by what.    Langhyate=   avoid,
overstep.

i.e.     The God Almighty created the Sun and the Moon as
the eyes of this World.  But they too have to commence their 
journey and set down every day.   Can any body dare to avoid
or overstep his/her destiny ?

( People are helpless against their destiny. This fact has been
highlighted by a  metaphor (hyperbole) of  the Sun  and Moon  
depicted as eyes of this World,  They too  can not go against 
the will of  the God Almighty and are destined to rise and set
every day without any break.)

Tuesday, 3 October 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


किं  करोति  नरः प्राज्ञः शूरो  वाSप्यथ  पण्डितः |
दैवं  यस्य  च्छलान्वेषि करोति  विफला  आ करे क्रियाः ||-  शार्ङ्गधर

भावार्थ -   कोई व्यक्ति चाहे वह बुद्धिमान, शूर वीर अथवा विद्वान
ही क्यों न हो, यदि दैव (भाग्य) उसके साथ छल कर रहा हो (उसके
विपरीत हो) तो उसके द्वारा किये गये सभी कार्य  यदि निष्फल हो
जाते हैं  और  उसे कुछ नहीं सूझता है कि वह क्या करे |

Kim karoti narah praagyah  shooro  vaapyatha  panditah.
Daivam  yasya  cchalaanveshi  karoti viphalaa kriyaah.

Kim = what     Karoti = does.   Narah = a person.   Praagyah=
wise , intelligent .   Shooro = brave.   Vaapyatha = vaa+ api +
atha.   Vaa = or.    Api = even.   Atha = now.   Panditah = a
learned person.      Daivam = fate, destiny.     Yasya =whose.
Cchalaanveshi = cha + chala+ anveshi.    Cha = and.
Cchala = deceit, fraud    Anveshi = searcher.   Karoti = does.
Viphalaa = futile., useless, fruitless.   Kriyaah = operations.

i.e.      A person may be wise and intelligent, brave and very
learned , but if the destiny is against him all the operations done
by him bear no fruitful results and he is in a fix as to what he
should do now.

                                                                       

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Monday, 2 October 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


वने रणे  शत्रुजलाब्धिमध्ये  महार्णवे पर्वतमस्तके  वा  |
सुप्तं प्रमत्तं विषमस्थितं वा रक्षन्ति पुण्यानि पुरकृतानि ||
                                                    - भर्तृहरि (नीतिशतक)
o.
भावार्थ -   मनुष्य द्वारा  बहुत पहले (या पूर्वजन्म में) अर्जित किये हुए पुण्य
उसकी  वनों में , युद्धक्षेत्र में ,  शत्रुओं के बीच में , सरोवरों और समुद्र के बीच में ,
दुर्गम पर्वतों की चोटियों पर,  मदोद्धत होने की या किसी अन्य विषम  परिस्थिति
में  सदैव उसकी रक्षा करते हैं |

(सनातन धर्म की मान्यता है कि यदि कोई व्यक्ति धर्म के द्वारा निर्धारित
नियमो का निष्ठा पूर्वक पालन करते हुए जीवनयापन करता है तो वह ''पुण्य'
अर्जित करता है जिसके फलस्वरूप वह अपने अगले जन्म में संपन्न और विद्वान
कुल में जन्म लेता है और हर प्रकार के कष्टों से उसकी रक्षा होती है | इसी विचार
को उपर्युक्त सुभाषित में भी व्यक्त किया गया है |  )

Vane rane shatrujalaabdhimadhye  mahaarnave parvatmastake vaa.
Suptam pramattam vishamasthitam vaa rakshanti punyaani purakrutaani.

Vane = forest.    Rane = in a battle.   Shatru = enemy.    Jala = water.
Abdhi = lake,    Madhye = in the middle of.    Mahaarnave = Ocean.
Parvatmastake = peak of a mountain.   Vaa = or.    Suptam = sleeping.
Pramattam = drunk.    Vishamasthitam = dangerous situation.  Rakshanti=
provide protection.    Punyaani = virtuous deeds .   Puraakrutaani = done
formarly or long ago.

 The 'Punya'  earned by a person long ago (or in his previous birth) protect
him from dangers in forests, battle field, from his enemies, in lakes and
oceans, mountain peaks, while in a drunken state or asleep, as also various
other difficult situations'

(According to Sanatan Dharma, the Hindu Religion, if a person leads a
virtuous life , he earns certain plus points called 'Punya' , which help him to
lead a happy life in his next birth. On the other hand if he leads a sinful life ,
he earns negative points called 'Paap' (sins). This subhashita deals with this
aspect of the Religion.)

Sunday, 1 October 2017

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


भग्नाSSषस्य  करन्डपीडिततनोर्म्लानेन्द्रियस्य  क्षुधा
कृत्वाSSखुर्विवरं स्वयं निपतितो नक्तं मुखे भोगिनः      |
तृप्तस्तत्पिशितेन  सत्वरमसौ  तेनैव  यातः पथा
लोकाः पश्यत  दैवमेव  हि  नृणां  वृद्धौ  क्षये  कारणं     ||
                                             - भर्तृहरि ( नीतिशतक )

भावार्थ -   एक संपेरे द्वारा पकडा गया सर्प  बांस की एक टोकरी में
बन्द भूख से पीडित थका हुआ पडा था | तभी  रात में एक चूहा  उस टोकरी
में एक छेद कर स्वयं उस सर्प के मुंह में चला गया | चूहे के मांस को खा
कर और तृप्त हो कर सर्प भी तुरन्त  उसी रास्ते से टोकरी से बाहर आ
गया जिस से चूहा अन्दर गया था  | लोगो देखो तो ! किस प्रकार भाग्य
ही मनुष्यों में वृद्धि और  क्षय  का कारण होता है |

{तुलसीदास जी ने इसी बात को इस दोहे में बडे ही सुन्दर रूप से प्रस्तुत
किया है :-   " तुलसी जसि भवितव्यता  तैसी मिलइ  सहाइ  |  आपुनु 
आवइ ताहि पहिं  ताहि तहां लै जाइ  || }

Bhagnaashasya  karandapeeditatanormlaanendriyasya kshudhaa.
Krutvaakhurvivaram  svyam nipatito naktm mukhe bhoginah.
Truptastatpishitena satvaramasau  tenaiva yaatah pathaah.
Lokaah pashyat daivameva hi nrunaam vruddhau khsye kaaranam.

Bhagnashasya = bhagna+aashasya.    Bhagna=curved.   Aashasya=
a snake's .   Karanda +peedita +tanoh+ mlaana+indriyayasya.
Karanda= a basket of bamboo wicker  work.  Peedita = distressed.
Tanoh = body.    Mlaana = exhausted.      Indriyasya =  organs.
Kshudhaa = hunger.    Krutvaakhurvivaram =  Krutva+ aakhuh +
vivaram.   Krutvaa = done.   Akhu = a mouse.   Vivaram = hole.
Svyam = himself.    Nipatito = fallen down.  Naktum = night.
Mukhe = mouth.    Bhoginah = eating.   Truptah =  satiated.
Tat = that.  Pishitena=  by the flesh of the mouse,    Satvaram =
speedily.    Asau = such.    Tenaiva = the same.    Yaatah = went.
Pathah= route, way.  Lokaah=people.  Pashya=see. Daivameva =
Destiny alone.    Hi = surely, really.   Nrunaam = men.  Vruddhau=
Growth.     Kshaye = decay.     Karanam = reason.

i.e.   A snake catcher had put a snake in a basket made of bamboo
wicker work. There the snake was lying distressed and hungry. In
the night a mouse bored a hole in the basket  and landed on the mouth
of the hungry snake, who, after eating the flesh of the mouse did not
spare even a moment and came out of the same hole made by the
mouse.  O people !   see how destiny  alone is responsible for the
prosperity and downfall of people .

(A Hindu poet has summed up this aspect in a couplet the summary
of which is that destiny does not come to a person , but  forces him
to go to that place where he will meet his destiny, as in the case of
the mouse detailed in the above Subhashita..)