Monday, 26 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


पञ्चाग्नयो  मनुष्येण  परिचर्याः  प्रयत्नतः  |
पितामाताग्निरात्मा  च  गुरुश्च  भरतर्षभः   ||
                                                  -विदुरनीति

भावार्थ -     हे राजाओं में श्रेष्ठ धृतराष्ट्र  !   पिता, माता, अग्नि ,
आत्मा तथा गुरु, ये पांचो मिल कर पञ्चाग्नि कहे जाते हैं  और
मनुष्य का यह परम कर्तव्य है कि वह विशेष यत्नपूर्वक इन की
सेवा करे  |

Panchaagnayo  manushyena  paricharyo   prayatnatah.
Pitaamaataagniraatmaa  cha  gurushcha  bharatarshabhah.

Pancha + agnayo.    Pancha = five.    Agnayo = fires.
Manushyena = by a man.     Paricharyo = render service.
Pratnayatah = with special care.   Pita +Maata+Agnih +
Aatmaa,   cha = and.   Pita = father.     Maata =  mother.
Agnih   = fire.      Aatmaa = self.    Guruh+ cha.   Guruh=
the Teacher.   Bharatarshabhah = the best prince of  Bhaarat
i.e. India  (here reference is to king Dhrutaraashtra.) 

i,e,   O King Dhrutaraashtra !   Father, Mother, Fire, one's  own
Self and a Guru (teacher)  these five are called 'Panchaagni', and
it is the foremost duty of a person to render service to them with
special care.

Sunday, 25 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashit


चत्वारि  ते  तात  गृहे  वसन्तु
श्रियाभिजुष्टस्य  गृहस्थधर्मे  |
वृद्धो ज्ञातिरवसन्नः  कुलीनः
सखा दरिद्रो  भगिनी चानपत्या  ||- विदुर नीति

भावार्थ -    हे तात !   धन धान्य से भरपूर एक समृद्ध गृहस्थ का
यह कर्तव्य है कि वह इन चार प्रकार के व्यक्तियों को अवश्य शरण
दे  - (१) एक वृद्ध बान्धव (रिश्तेदार)  (२) एक कुलीन दुःखी व्यक्ति
(३) एक दरिद्र मित्र  तथा (४) सन्तानहीन बहिन  |

Chatvaari te taat gruhe vasantu
Shriyaabhijushasya  gruhasthadharme.
Vruddho  gyaatiravasannah  kuleenah
Sakhaa daridro  bhagini chaanapatyaa.

Chatvaari = four.   Te = these.   Taata = a term of affection
for addressing a senior or junior person, father.   Gruhe=
in the household.    Vasantu = should reside.    Shriya +
abhijushtasya.    Shriya = prosperity.    Abhijushtasya =
possessed of.     Grusthadharme = householder's  duty.
Vruddho = aged person.   Gyaatih + avasannah.   Gyaatih=
a relative.     avasannah = distresssed.    Kuleena= noble
Sakhaa = a friend.    Daridro = poor.    Bhaginee = sister.
Cha+ anapatyaa.    Anapatyaa= childless.

i.e.    It is the duty of a prosperous housholder that he should
support these four types of persons , namely (i)  an aged close
relative  (ii)  a noble distressed person  (iii) a poor friend and
(iv)  his childless sister.

Saturday, 24 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अर्थागमो  नित्यमरोगिता  च                     
प्रिया  च  भार्या  प्रियवादिनी  च  |
वश्यस्य  पुत्रो Sर्थकरी  च  विद्या
षड्  जीवलोकस्य  सुखानि राजन्  || = विदुर नीति

भावार्थ -    हे राजन्  !    इस पृथ्वी में  छः प्रकार के सुख कहे 
गये  हैं :-   (१) नियमित रूप से धन की प्राप्ति  (२)   निरोग
शरीर  (३)   प्रेम करने  वाली पत्नी   (४) मृदुभाषी पत्नी   (५)
आज्ञाकारी पुत्र  तथा  (६ )  ऐसी विद्या में निपुणता जो धन
संपत्ति प्राप्त करने में सहायक हो |


Arthaagamo  nityamarogitaa  cha.
Priyaa  Cha  Bhaaryaa  Priyavaadinee  cha.
Vashyasya  putrorthakaree  cha  visyaa.
Shad  jeevalokasya  sukhaani  raajan.

Artha+ aagamo.    Artha =wealth.   Aagamo = arrival.
Nityam +arogitaa.    Nityam = always.   Arogitaa =
healthiness.   Priyaa =beloved.   Bhaaryaa = wife.
Priyavaadinee = speaking  kindly.    Cha = and.
Vashyasya = obedient.   Putro + arthakaree,    Put 
the Son.     Arthakaree = profitable.      Vidyaa =
Knowledge.  Shad = six.  Jeevalokasya = the Earrh's
Sukhaani = happiness .    Raajan - O king.

i.e.    O King !   There are six means of enjoying a happy
lifestyle  in this World , namely (i)  regular source of income,
(ii) always having good health  (iii) a loving wife   (iv) a soft
speaking wife  (v)  an obedient son, and  (vi)  and knowledge
or expertise in a profession which yields regular income.




                                   

Thursday, 22 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita..

त्रिविधं  नरकस्येदं  द्वारं  नाशनमात्मनः  |
कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्  त्रयं त्यजेत् ||
                                                     - विदुर नीति

भावार्थ -   कामवासना , क्रोध्, तथा लोभ ये  दुर्गुण नरक के तीन
द्वारों के समान  हैं और मनुष्य की आत्मा का नाश कर देते हैं |
अतः इन तीनों दुर्गुणों को  त्याग देना चाहिये |

(इन तीनों  दुष्प्रवृत्तियों के कारण मनुष्य का जीवन नारकीय
हो जाता है | अतः इस सुभाषित के माध्यम  से इन दुर्गुणों को
त्याग देने का परामर्श दिया गया  है | )

Trividham  narakasyedam  dvaaram  naashanamaatmanah.
Kaamah  krodhastathaa  lobhastasmaadetat  trayam tyajet.

Trividham = threefold.   Narakasya + idam    Narakasya =
of the Hell.          Idam =these.          Dvaaram = doors.
 Naashanam+ aatmanah.        Naashanam = destruction.
Aatmanah= self, soul.   Kaamah = Desire, sexual urge.
Krodhah = anger.   Lobhah + tasmaat + etat.    Lobhah=
Greed.   Tasmaat = therefore.   Etat = these.   Trayam =
these three.   Tyajet =shun,  avoid.

i.e.     Uncontrolled sexual urge, anger and  greed,  these
vices are like three doors of the Hell and destroy the soul
of a person indulging in these vices.  Therefore, people
should shun these three vices.

(If a person indulges in these three vices his life becomes
like living in the Hell.  Through this Subhashita the author
has warned not to do so.)

Wednesday, 21 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


सोSस्य  दोषो  न  मन्तव्यः  क्षमा हि  परमं  बलं  |
क्षमा  गुणो  अशक्तानां  शक्तानां  भूषणं  क्षमा  ||
                                                    -  विदुर नीति 

भावार्थ -  हमें किसी व्यक्ति में क्षमा करने  की भावना को उसका दोष
नहीं मानना चाहिये क्यों कि क्षमा करना परम् शक्ति का प्रतीक है |
जो व्यक्ति अशक्त (शक्तिहीन ) होते हैं तो यह उनका एक गुण है  तथा
शक्तिशाली व्यक्तियों के लिये उनकी शोभा बढाने के लिये एक आभूषण
के समान है |
(एक अशक्त व्यक्ति यदि क्षमाशील न  हो तो उसे सदैव अन्य व्यक्तियों
से व्यवहार करने में कठिनाई होती है और उसे विनम्र और क्षमाशील हो कर
ही अपना कार्य सिद्ध करना पडता है |  इसके विपरीत एक शक्तिशाली व्यक्ति
यदि किसी त्रुटि को क्षमा करता है तो यह उसकी महानता कहलाती  है )

Sosya dosho  na mantavyah  kshamaa hi  paramam balam.
Kshamaa guno  ashaktaanaam  shaktaanaam bhooshanam kshmaa,

Sosya = sah +asya.   Sah = its.   Asya = this.    Dosho= shortcoming.
defcct.   Na =not,    Mantavyo  = to be considered as.     Kshmaa=
forgiveness.     Hi = surely.    Paramam = supreme.   Balam = power.
Guno = virtue.    Ashaktaanaam = those who are not powerful.
Shaktaanaam = those who are powerful.   Bhooshaam = adornment,
embellishment.

i.e.    We should not treat the forgiving nature of a person as his defect
or a shortcoming , because forgiveness is the supreme power.  It is a
virtue among the persons who are not powerful and is an adornment
or embellishment in the personality of a powerful person.

(If the powerless persons  are not of forgiving nature, they have to face
many hardships while dealing with others. On the other hand if a powerful
person pardons a person it is treated as his magnanimity. )


Tuesday, 20 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


ईर्ष्यी   घृणि  न  संतुष्टः  क्रोधिनो  नित्यशङ्कितः  |
परभाग्योपजीवी  च  षडेते  नित्य  दुःखिता            ||
                                                        -  विदुर नीति

भावार्थ -   अन्य व्यक्तियों से घृणा करने वाला , ईर्ष्या करने  वाला,
सदा असन्तुष्ट   रहने वाला ,  क्रोधी,  सदैव शङ्का करने  वाला ,
दूसरों पर आश्रित रहने वाला, ऐसे छः प्रकार के व्यक्ति  नित्य (सदैव)
दुःखी  रहते हैं  |

Eershyee  ghruni  na  santushtah  krodhino  nityashankitah.
Parbhaagyopajeevee   cha   shadete   nitya   duhkhitaa.

Eershyee = an envious person.    Ghrunee = angry, abusive.
Na = not.    Santusshtah =  contented  .  Krodhino = angry.
Nitya= daily , always.    Shankitah = distrustful, uncertain
Parabhaagyopajeevee = parabhaagya + upajeevee.
Parabhaagya = another's wealth and prosperity,  upajeevee =
living on or dependent upon.   Cha = and.    Shadete = these
six types of persons.    Nitya = daily, always.  Duhkhitaa =
unhappy.

i.e.    An envious person, an abusive person,  a discontented
person, an  angry person,  a distrustful or uncertain person,
and  a person living or dependent upon another's wealth and
property, these six types of persons always remain unhappy
in their life.

Monday, 19 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.



अनाहूतः  प्रविशति  अपृष्टो  बहु  भाषते  |
अविश्वस्ते  विश्वसति मूढचेता  नराधमः ||
                                           -  विदुर नीति 

भावार्थ -         जो व्यक्ति बिना  बुलाये  आ धमके और
कुछ कहने की आज्ञा  न दिये जाने पर भी बहुत  अनर्गल
बातें करता हो , और अविश्वसनीय व्यक्तियों के ऊपर पर
विश्वास करता हो. ऐसा व्यक्ति  मूर्ख और दुष्ट प्रकृति का
व्यक्ति कहलाता है |

Anaahootah  pravishati  aprushto  bahu  bhashate.
Avishvaste  vishvasati  nmoodhacheta  naraadhamah.

Anaahootah = without being invited.    Pravishati =
enters.    Aprushto = not being asked.   Bahu  =
too much.    Bhaashate = speak.       Avishvaste =
A person not to be trusted.     Vishvasati =  trusts
Moodhachetaa = A silly and foolish person.   
Naradham =  A  wretched  and vile person.

i.e.    A  person ,who without being invited forces his
entry,  without being permitted indulges in loose talk ,
and has the tendency of trusting untrustworthy persons.
is surely a foolish and wretched person.

Sunday, 18 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अमित्रं कुरुते मित्रं मित्रं द्वेष्टि हिनस्ति  च |
कर्म चारभते  दुष्टं  तमाहुर्मूढचेतसम्        ||
                                              -  विदुर नीति

भावार्थ  -   जो व्यक्ति  मित्र बनाने के लिये अयोग्य व्यक्ति
को अपना मित्र बनाता है तथा मित्र बनाने के के योग्य व्यक्तियों
से  द्वेष करता है  और ऐसे कर्म करता है जिस से उन  की  हानि
हो या उन का नाश हो जाय,  ऐसे व्यक्ति को मूर्ख कहा  जाता है |

Amitram  kurute mitram  mitram dveshti hinasti cha.
karma chaarabhate  dushtam tamaahurmoodhachetasam.

Amitram = not a friend.    Kurute =makes    Mitram =
a friend.   Dveshti = hates.    Hinasti = kills , harms.
Cha = and. =    Karma = deeds.       Cha + aarabhate .
Cha = and,    Arabhate = begins.    Dshtam=  wicked,
inimical.  Tam + aahuh +moodhachetasam.       Tam =
to them.   Aahuh =call    Moodhchetasam= foolish, Silly.

i.e.   A person who makes friendship with persons who are
not suitable for friendship and hates  those persons  who
are  most suitable for friendship, and  indulges in such
inimical activities against them which may harm or kill
them,  is called a foolish and silly persons.



Friday, 16 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


क्षिप्रं  विजानाति  चिरं  शृणोति
         विज्ञाय  चार्थं भजते न कामात |
ना  संपृष्टो  व्युपयुङ्क्ते   परार्थे
         तत्  प्रज्ञानं  प्रथमं  पण्डितस्य  ||  -विदुर नीति

भावार्थ =  जो व्यक्ति उस से कही हुई  किसी बात को 
यद्यपि शीघ्र समझ लेता हो परन्तु उसे  देर तक सुनने
का धैर्य भी उसमे हो , तथा उस व्यक्ति का मन्तव्य जान
कर  बिना किसी कामना के उसका आदर करता हो , और
न  ही जान बूझ कर उसकी संपत्ति को  अपने अधिकार में
लेने  के उद्देश्य से उस से  बातचीत करता हो,  ये सभी प्रमुख
लक्षण एक विद्वान व्यक्ति के होते हैं

Kshipram  vijaanaati  chiram  shrunoti,
Vigyaaya  chaartham  bhajate  na  kaamaat.
Naa  smprushto  vyupayunkte  paraarthe.
Tat pragyaanam  prathamam  panditasya.

Kshipram = speedily.    Vijaanaati = understands.
Chiram = lasting a long time.   Shrunoti = listens.,
hears.    Vigyaaya = after understanding.   Cha +
artham.     Cha = and.   Artham = true sense.
Bhajate = revers, shows respect.      Na = not .
Kaamaat = intentionally.  Naa =not.  Smprushto=
enquire about.    vi+ upayunkte .   Vi = prefix.
Upayunkte = appropriates, takes possession.
Paraarthe =  wealth  of others.              Tat= that.
Praagyaanam =  distinctive mark.   Prathamam=
first., foremost.   Panditasya = of a learned person.

i.e.       A person who quickly understands the purport
of the  subject of another person's talk to him , but has
also the patience of listening to him for a long time,and
gives due respect to him without an ulterior motive, and
does not talk with him to appropriate his wealth, all these
are the foremost distinctive marks of a learned person.


Thursday, 15 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


यस्य  कृत्यं  न  जानन्ति  मन्त्रं  वा  मन्त्रितं  परे  |
कृतमेवास्य  जानन्ति  स  वै  पण्डित  उच्यते       ||
                                    - महाभारत (विदुर नीति )

भावार्थ -  जिस व्यक्ति द्वारा भविष्य में किये जाने वाले कार्यों  के
बारे में मन्त्रणा (विचार) करने, निश्चय करने तथा उसके पश्चात
क्रियान्वयन होने तक अन्य व्यक्ति कुछ भी नहीं  जानते हैं , वही
एक पण्डित कहलाता है  |

(प्रस्तुत सुभाषित में किसी भी योजना को क्रियान्वित करणे से  पूर्व
विचार विमर्श तथा निर्णय को तब  तक गोपनीय रखने का परामर्श 
दिया गया है जब तक वह कार्य प्रारम्भ न कर दिया जाय |  ऐसा नहीं
करने से योजना में अनेक विघ्न बाधायें उत्पन्न हो जाती हैं | )

Yasya krutyam  na  jaananti  mantram  vaa mantritam  pare.
Krutamevasya  jaananti  sa  vai  pandit  uchyate,

Yasya =  whose.   Krutyam =  deeds.    Na = not.    Jaananti =
Know.   Mantram =  consultation.    Vaa = or.    Mantritam =
already consulted.   Pare =  later, afterwards.   Krutam+eva +
asya.    Krutam=done.   Eva =really.    Asya = this.  JaananIi=
know..  Sa =  that person.   Vai = only.   Pandira = a learned
person.    Uchyate = is called.

i.e.     A person , whose actions about a project undertaken by
him are not know to others  during  the stages of  consultations, 
finalisation, and implementation , and  they know about it when
it is completed,  is truly called a learned person.

(This Subhashita advises maintenance of proper secrecy while
planning and implementing any  project .If this is not done, many
problems and obstacles arise during implementation of the project.)


Wednesday, 14 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


व्यालाश्रयापि  विकलापि  सकण्टकापि
वक्रापि  पङ्किलभवापि  दुरासदापि         |
गन्धेन  बन्धुरसि  केतकि  सर्वजन्ता-
रेको  गुणः खलु  निहन्ति  समस्त दोषान्  ||
                          - चाणक्य नीति (१७/२१ )

भावार्थ -     यह सर्वविदित  है कि केतकी के वृक्षक (झाड)
में सांप  निवास करते हैं , वह अपूर्ण भी होता है , उसमें
कांटे भी होते हैं,  वह कीचड  में उगता है, उसका आकार 
टेढा  होता है और उस तक पहुंचना  (उसके फूल चुनना )
कठिन और हानिकर भी होता है |  परन्तु फिर भी उसकी
सुगन्ध  से मित्रता है (उसके पुष्प अत्यन्त सुगन्धित होते
हैं) और उसका यही एक गुण उसके समस्त दोषों को नष्ट
कर देता  है |
(उपर्युक्त सुभाषित का तात्पर्य यह है कि यदि किसी वस्तु
या व्यक्ति में कोई महान गुण हो तो उसके अन्य दोषों को
लोग स्वीकार कर लेते हैं |  एक कहावत भी है कि - 'दुधारू
गाय की लात भी भली '  | )

Vyaalaashrayaapi   vikalaapi sakantakaapi.
Vakraapi pankilaabhavaapi  duraasadaapi.
Gandhena  bandhurapi  ketaki sarvajantaa-
reko gunah  khalu  nihanti  samasta  doshaan.

Vyaala+ashrya + api.    Vyaala = a snake.   Aashrya=
shelter.    Api = even.    Vikalaapi = vikala +api,
Vikala = imperfect.    Sakantaka+ api.   Sakantaka=
with thorns.   Vakra + api.    Vakra = bent, curved.
Pankila + bhava+ api.    Pankila= slushy.  Bhava=
grows, prospers.    Durasada+ api,     Duraasada =
difficult or dangerous to be approached. Gandhena=
with sweet smell.     Bandhuh + api.       Bandhuh =
friend.    Ketaki = name of a thorny shrub producing 
fragrant flowers.  Sarvajantaa = well-known.   Eko =
only one.  Gunah = virtue.  Khalu = verily. Nihanti =
kills, destroys.    Samast = all.    Doshaam = defects.

 i.e.    It is very well known that the shrub of  'Ketaki'
is a shelter of snakes,  is imperfect , is full of thorns,
its shape is curved, grows in slush and it is dangerous
and difficult to approach (for its flowers).  But still its
only one virtue of  friendship with fragrance ( having
fragrant  and beautiful flowers ) destroys all its defects.

(The idea behind this subhashita is that if a thing or a
person has even one very important virtue people do
not mind the defects in them.   There is also a saying
that  people tolerate  even the kicks by a cow while
milking it.)
.
                           

Tuesday, 13 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


राजा  वेश्या  यमश्चाग्निस्तकरो  बालयाचकौ  |
परदुःखं  न  जानन्ति  अष्टमो  ग्रामकण्टकः    ||
                                 - चाणक्य नीति (१७/१९ )

भावार्थ  -     राजा,  वेश्या , यमराज (मृत्यु का देवता) , अग्नि ,
लुटेरा , बालक , याचक (भिखारी) , तथा आठवां गांव में रहने
वाला एक अशिष्ठ व्यक्ति, ये सभी अन्य व्यक्तियों को उनके
व्यवहार के कारण  होने वाले दुःख को नहीं जानते (अनुभव नहीं
करते ) हैं |

Raajaa  veshyaa  yamashchaagnistaskaro  baala-yaachakau.
Paraduhkham  na  jaananti  ashtamo  graamakantakau.

Raajaa = King, a Ruler.   Yamah + cha + agnih +taskaro.
Yamah = the God of Death.    Cha = and.    Taskaro =
thief, robber.    Baala = a child.     Yaachakau = beggars.
Paraduhkham = another;s pain or sorrow.   Na =not.   Jaananti=
know.    Ashtamo = the eighth.   Gramakantakah = ill mannered
villager.

i.e.    A King, a prostitute, Yama the God of Death,  fire, thieves,
children and beggars (these seven ) and the eighth one an ill-
mannered villager,  all these do not know (feel) the suffering and
pain they cause to others by their behaviour.
they cause to other

Monday, 12 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita


आहारनिद्राभय  मैथुनानि
              समानि  चैतानि  नृणां  पशूनाम्  |
ज्ञानं  नराणामधिको  विशेषो
               ज्ञानेन  हीनाः  पशुभिः समाना    ||
                            -  चाणक्य नीति (१७/१७)

भावार्थ  - जीवित रहने के लिये आहार  की आवश्यकता ,
निद्रा , भय की भावना तथा  कामवासना, ये  प्रवृत्तियां
मनुष्यों और पशुओं में एक समान ही  होती हैं |   परन्तु
मनुष्यों  में ज्ञान (अनेक विषयों की जानकारी) होना एक
अतिरिक्त विशेषता है | अतः जो व्यक्ति ज्ञान हीन होते हैं
वे पशुओं के समान  ही  जीवन व्यतीत  करते हैं }

Aahaara nidraa  bhaya  maithunani.
Samaani  chaitaani   nrunaam  pashoonaam.
Gyaanam  naraanaamadhiko  visheshah.
Gyaanena  heenaa  pashubhih  samaanaa.

Aahaara  = taking food.   Nidra = sleep.   Bhaya=
fear.    Maithunani = sexual urge   Samaani=
similar.   Chaitaani = cha +etaani.   Cha = and.
Aitaani = these.  Nrunaam = humans. Pashoonaam =
animals.   Gyaanam = knowledge about any thing
essential for  living properly.      Naraanaam =men.
Adhiko = more  .Visheshah = special.   Gyaanena =
of knowledge.   Heena = devoid of.      Pashubhih =
animals.   Samaanaa = similar to.

i.e.   The need of food for remaining alive, sleep.
fear and sexual urge, these emotions are similar  in
human beings and animals.  But the special quality
of having knowledge about any thing is additional in
human beings. Therefore, those persons who are
devoid of any knowledge are just  like  animals.

Sunday, 11 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita..


परोपकरणं  येषां  जागर्ति  हृद्ये  सताम्     |
नश्यन्ति  विपदस्तेषां  संपदः  स्यु  पदे पदे ||
                           - चाणक्य नीति (१७/१५ )

भावार्थ -   जिन  सज्जन व्यक्तियों के हृदय  में परोपकार
की भावना जागृत होती है और वे अपना जीवन निर्बल लोगों
की सहायता के लिये समर्पित कर देते हैं , उनके ऊपर आई
हुई सभी विपदायें नष्ट हो  जाती  हैं  तथा उन्हें कदम कदम 
पर प्रसन्नता और संपत्ति की प्राप्ति  होती है |

Paropakaranam  yeshaam  jaagarti  hrudaye  sataam.
Nashyanti  vipadasteshaam  samadah  syu  pade  pade.

Paripakaranam = making one's self an instrument of others
for helping them.    Yeshaam = whose.   Jaagarti = awaken.
Hrudaye = heart.     Sataam = noble and righteous persons.
Nashyanti = disappear.    Vipadaah + teshaam.   Vipadaah =
calamities, misfortune,   Teaam=their.   Sampadah =wealth,.
prosperity   Syu = delight.    pade pade = at every step.

i.e.    Those noble and righteous persons who have committed
themselves to serve the meek and needy persons, the misfortune
and calamities befalling upon them disappear and they enjoy
prosperity and happiness at every step.





Saturday, 10 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


तक्षकस्य  विषं  दन्ते  मक्षिकायास्तु  मस्तके  |
वृश्चिकस्य  विषं  पुच्छे  सर्वाङ्गे  दुर्जने  विषम  ||
                                     - चाणक्य नीति (१७/८ )

भावार्थ -   एक  विषेले  सर्प  का विष उस के  दांतों  में होता है और
मधुमक्खियों  का विष  उन के सिर में  होता है |     बिच्छू  का विष
उसकी पूंछ की नोक पर होता है.  परन्तु एक नीच और दुष्ट व्यक्ति
का तो संपूर्ण शरीर ही विषमय  होता है |

Takshakasya  visham  dante  makshikaayaastu  mastake,
Vrushchikasya  visham  pucche  sarvaange  durjane visham.

Takshakasya=   a very poisonous snake personified after the
name of  a snake named 'Takshak' mentioned in Hindu mytho-
logy.   Visham = poison.    Dante = teeth.    Makshikaayaastu =
Makshikaayaah + tu.    Makshikaayaah = bees.   Tu = and.
Mastake =the head.  Vrushchikasya= of the  Scorpion.   Pucche=
tail.    Sarvange = over the whole body    Durjane = a mean and
wicked person. 

i.e.     A  snake's poison is in its teeth and  a  bee's  poison is on
its  head.   The poison of a Scorpion is in its tail,  but the  entire
body of a mean and wicked person is poisonous.
   

Friday, 9 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


दानेन  पाणिर्न  तु  कङ्कणेन
                        स्नानेन शुद्धिर्न  तु  चन्दनेन  |
मानेन  तुष्तिर्न  तु  भोजनेन
                        ज्ञानेन  मुक्तिर्न  तु  मुण्डनेन  ||
                               -   चाणक्य  नीति (१७/१२ )

भावार्थ -   हाथों की शोभा दान देने से होती है न कि कङ्कण
पहनने  से होती है |  शरीर स्नान करने  से शुद्ध होता है न कि
चन्दन का लेप करने से |   लोग  यथोचित आदर और सम्मान
किये जाने से संतुष्ट होते हैं न कि  केवल भोजन कराने से | तथा
मृत्यु  और पुनर्जन्म  के  चक्र से मुक्ति  तत्वज्ञान प्राप्त करने से
होती है  न कि  सिर के केशों का मुण्डन करने से |

Daanena  paanirna  tu  kankanena.
Snaanena shuddhirna  tu  chandanena.
Maanena tushtirna  tu  bhojanena,
Gyaanena muktirna tu  mundanena.

Daanena = by giving donations.   Paanih + na.
Paanih = hand.    Na = not.   Tu = and   Kankanena =
A bracelet.  Snaanena = by taking a bath,  Shuddhi =
cleanliness.   Chandanena = by smearing the body
with a paste of sandalwood.    Maanena = by giving
due respect.   Truptih = satisfaction, contentment.
Bhojanena = serving a sumptuous meal.  Gyaanena =
by higher spiritual knowledge.   Muktih = salvation. 
Mundanena = by tonsuring the head.

i.e.   Hands are embellished  by giving donations and not
by wearing bracelets.   The body is cleansed by taking a
bath and not by  smearing the paste of sandalwood over
the body.   A person feels contented by being given due
respect and not by simply being provided a meal. A person
can achieve salvation by acquiring higher spiritual knowledge
and not by merely tonsuring his head.

Thursday, 8 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अशक्तस्तु   भवेत्साधुर्ब्रह्मचारी  वा  निर्धनः   |
व्याधितो  देवभक्तश्च  वृद्धा  नारी  पतिव्रता     ||
                                   - चाणक्य नीति (१७/६ )
भावार्थ -   अशक्त व्यक्ति या तो साधु या ब्रह्मचारी बन जाते हैं
या निर्धन हो कर जीवन यापन करते  हैं | इसी प्रकार किसी घातक
 रोग से ग्रस्त  व्यक्ति  देवभक्त  बन जाते हैं और वृद्धावस्था में
चञ्चला  नारियां पतिव्रता बन जाती  हैं |
(इस सुभाषित में मानव के स्वभाव  पर कटाक्ष किया  गया है  कि
अधिकतर विपरीत परिस्थितियों में ही वे धार्मिक आचारण करते
हैं |   तुलसीदास जी ने भी कहा है कि - 'नारि मुई  गृह संपति नासी |
मूड मुडाइ  होहिं  सन्यासी ' |)

Ashaktastu  bhavetsaadhurbrahmachaaree  vaa  nirdhanah.
Vyaadhito  devabhaktashcha  vruddha  naaree  pativrataa.

Ashaktah +tu.       Ashaktah =  incapable.      Tu = and, but.
Bhavet + saadhuh + brahmachaaree.    Bhavet = should  be.
Saadhuh=a  sage  Brahmachaaree= a person who is a celibate. 
Vaa =or.   Nirdhanah = a poor person.     Vyaadhito = a person 
suffering from a serious disease.  Devabhaktah =worshiper of
God.     Cha = and.     Vruddhaa =aged.    Naaree =   a woman.   
Pativrataa=virtuous woman faithful and devoted to her husband.

i.e.    Incapable persons either become  a sage , a  celibate  or a
poor beggar .  A person suffering from a fatal disease becomes
an ardent devotee of God and an aged wanton woman becomes
a very devoted and virtuous wife.

(The above Subhashita criticizes the tendency among people to
become virtuous when they are incapable or in grave danger.
An Indian poet  Tulasi Das has also remarked that people become 
a sage only when their wife dies and all their wealth is lost,)

Wednesday, 7 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


पुस्तकस्था तु  या  विद्या  परहस्त  गतं  धनं  |
कार्यकाले समुत्पन्ने  न सा विद्या न तद्धनम्  ||
                                - चाणक्य नीति (१६/२० )

भावार्थ =  पुस्तकों में  वर्णित  विद्या  तथा  अन्य  व्यक्तियों
के पास रखा हुआ अपना ही धन  आवश्यकता पडने पर न तो
वह विद्या काम आती है और न ही  वह धन उपलब्ध होता है |
इसी  से मिलती जुलती भावना को एक अन्य सुभाषित में इस
प्रकार व्यक्त किया गया है :-
            "लेखनी पुस्तकाः  रामा  परहस्त गता गता |
             आगता दैवयोगेन  हृष्टा भ्रष्टा च  मर्दिता  ||
अर्थात   लेखनी (कलम ) , पुस्तकें  तथा स्त्री यदि किसी अन्य
व्यक्ति को दी जाय तो उसे गया हुआ ही समझें |  यदि भाग्यवश
यदि वापस भी आ जायें तो लेखनी  टूटी हुई , पुस्तक फटी हुई ,
और स्त्री मर्दित हो कर आती है | )

Pustakasthaa  tu  yaa  idyaa  parahasta  gatam  dhanam.
kaaryakaale samutpanne  na  saa vidyaa na taddhanam.

Pustakaah + tu.    Pustakaah = books.  Tu = and   Yaa =
that.   Vidyaa = knowledge, learning.   Para = others.
Hasta = hands.   Gatam = gone.    Dhanam = wealth.
Kaaryakaale = at the time of need arising.    Samutpanne=
happening, occuring.  Na = not.   Saa = that. Tat+dhanam
Tat = that.

i.e.   Knowledge enshrined only in books and wealth under
under control of others,  whenever need arises for them then
neither  the said knowledge nor the wealth is available.

(There is another Subhashita on this theme, which says that
if pens, books and a woman is let out to some one, the chances
are that they will never be returned.  If per chance they are
returned, the pens will be broken,  books will be torn and the
woman will be trodden down.)



Monday, 5 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


वरं  प्राणपरित्यागो   मानभङ्गेन   जीवनात्   |
प्राणत्यागे  क्षणं दुःखं   मानभङ्गे  दिने  दिने  ||
                                - चाणक्य नीति (१६/१५ )

भावार्थ -    मानभङ्ग्  (अपमानित ) होने पर भी जीवित रहने  से तो
प्राण त्याग देना ही श्रेयस्कर है,  क्यों कि प्राण त्यागने में तो क्षण भर 
के लिये दुःख  होता  है परन्तु अपमानित होने पर दिन प्रति दिन दुःख 
भोगना  पडता है |

Varaam  praaanaparityaago  maanabhangena jeevanaat.
Praanatyaage  kshanam  Duhkham  maanabhange dine dine.

Varam = iti is preferable.    Praana = breathe of life
Parityaaga = cession.   Maanabhangena= by being insulted
or dishonoured.    Jeevanaat = living.   Praaanatyaage =
by cession of life.   Kshanam= momentary.   Duhkham =
suffering.    Dine dine = every day.

i.e.    It is preferable to die rather than remaining alive on being
insulted .  While in dying there is momentary suffering,on being
insulted one has to  suffer every day.

Sunday, 4 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


परैरुक्तगुणो  यस्तु  निर्गुणोSपि  गुणी  भवेत्  |
इन्द्रोSपि  लघुतां  याति  स्वयं  प्रख्यापितैर्गुणै: ||
                                    - चाणक्य नीति (१६/८)

भावार्थ -  यदि  अन्य लोग किसी  व्यक्ति  को गुणवान
कहते  हैं तो  वह व्यक्ति गुणहीन होते  हुए भी गुणवान
समझा जाता है | परन्तु  यदि कोई व्यक्ति स्वयं ही अपने
गुणों  का वर्णन करता  है तो चाहे  वह स्वयं  देवताओं का 
राजा  इन्द्र ही  क्यों हों वह अपनी गरिमा खो देता है  |

Parairuktaguno  yastu  nirgunopi  gunee  bhavet.
Indropi  laghutaa  yaati   svyam  prakhyaapitairgunaih.


Parairuktaguno =  Paraih +ukta+ guno.   Paraih = others.
Ukta = speak, say.    Guno = virtues.   Yastu = to whom,   
Nirgunopi=nirguno +api,   Nirguno = without any virtues.   
Api = even,    Gunee = virtuous.   Bhavet = becomes. 
Indropi = Indro +api.  Indro = name of the king of Gods.
Laghuta =want of dignity.      Yaati =acquires, achieves.
Svyam = himself.  Prakhyaapitairgunaih = prakhyapitaih +
gunaih.   Prakhyaapitaih = by naming himself.     Gunaih  =
virtues.

i.e.     If people treat someone as virtuous, in spite of his being
without any virtuous, he is treated as a virtuous person.  But
if someone declares himself as a virtuous person,  he loses his
dignity, even if he may be Indra , the king of Gods.


Saturday, 3 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


प्रियवाक्यप्रदानेन  सर्वे  तुष्यन्ति  जन्तवः  |
तस्मात्तदेव  वक्तव्यं  वचने  का  दरिद्रता   ||
                             - चाणक्य नीति (१६/१३ )

भावार्थ -       यदि अन्य व्यक्तियों से  प्रिय लगने वाली
भाषा में बातचीत की जाये तो सभी को सन्तोष  प्राप्त होता
है | इस लिये सदैव मधुर भाषा का व्यवहार करना चाहिये
और ऐसा करने  में अपनी दरिद्रता क्यों प्रदर्शित की जाय ?

 Priyavaakyapradaanena  sarve  tushyanti  jantaavah.
Tasmaattava  vaktavyam  vachane  kaa  daridrata.

Priya = liked, pleasing..  Vaakya = saying.   Pradaanena=
delivering.    Sarve = all.    Tushyanti = are satisfied.
Jantavah = persons.    Tasmaat =  therefore.     Tadeva=
accordingly.   Vaktavyam = statement.     Vachane =
speaking.   Kaa =  what.    Daridrataa = state of being
deprived,  penury.

i.e.    If people are addressed in a polite and pleasing way,
they all are satisfied at it.  Therefore . we should always
speak pleasingly and politely, and why should  we show
our penury in the matter of our speaking to others ? 

Friday, 2 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अलिरयं  नलिनीदलमध्यगः
              कमलिनीमकरन्दमदालसः  |
विधिवशात्परदेशमुपागतः   
               कुजटपुष्परसं  बहुमन्यते     || - चाणक्यनीति
                                               
भावार्थ -  मधुमक्खियों  का एक झुन्ड जो कमलिनी पुष्पों  का
मकरन्द (मधु) पी कर उन्मत्त रहता था दुर्भाग्य से एक ऐसे बुरे
देश का प्रवासी हो गया जहां उन्हें कमलिनी पुष्पों का मधु  नहीं
उपलब्ध था | ऐसी विषम  परिस्थिति में उन्हें कुजट के पुष्पों का
रस ही अच्छा समझ कर संतोष करना पडा |
(इस सुभाषित  का तात्पर्य यह है कि जब कोई सम्पन्न व्यक्ति यदि
दुर्भाग्य से परदेश में किसी विषम परिस्थिति में पड जाता है तो उसे
अपने जीवनस्तर के अनुकूल सुविधायें नहीं भी मिलती हैं तो उसे जो
कुछ थोडा बहुत मिलता है उसी पर सन्तोष करना पडता है  जिसे  कि
मधुमक्खियों की उपमा द्वारा व्यक्त  किया गया है | )

Alirayam  nalineedala-madhyago.
Kamalinee-makarand-madaalasah.
Vidhivashaatparadeshamupaagatah.
Kujata-pushpa-raasam  bahu-manyate.

Alirayam = fast moving bees.    Nalineedal = among
lotus leaves.  Madhyago=in the middle of.   Kamalanee=
lotus flowers.    . Makaranda rasa = honey of flowers.
Madaalasah = lazy from drunkenness.    Vidhivashaat=
by th quirk of fate.   Paradeshamupaagatah =paradsham+
upaagatah.    Paradesham = in a foreign hostile ccountry.
Upaagata= entered into.   Kujata= name of a  plant having
inferior flower in comparison to a Lotus flower.  Pushpa =
flower.    Rasam = honey.    Bahu = plentiful, abundant.
Manyate =Think.

i.e.         A swarm of honey bees who were accustomed of
moving  among  the leaves and flowers  of lotus and lived
lazily drinking the  honey produced by Lotus flowers, by a
quirk of fate went to a hostile country where lotus flowers
were not available.  There they had to subsist on the inferior
flowers of  'Kujata' , thinking them as plentiful.

(The idea behind this Subhashita is that if a prosperous person
by a quirk of fate has to live in a hostile country, where he can
not maintain his lifestyle.he has to remain satisfied on whatever
he gets .  This has been done by the use of a simile about bees.) 

Thursday, 1 November 2018

आज का सुभाषित / Today's Aubhashita.


 गुणैः  सर्वज्ञतुल्योSपि  सीदत्येको  निराश्रयः  |
अनर्घ्यमपि   माणिक्यं  हेमाश्रयमपेक्षते         ||
                                  /चाणक्य नीति (१६ /१०)

भावार्थ  -      एक सर्वगुणसंपन्न  व्यक्ति  के समान गुणवान
होते हुए भी कई लोग बिना किसी आश्रय के दुःखी और एकाकी 
जीवन व्यतीत करने को बाध्य होते हैं | उदाहरणार्थ  एक अमूल्य
माणिक्य भी तब तक सुशोभित नहीं होता है जब तक कि वह स्वर्ण
के आश्रय में नहीं रहता है |(किसी स्वर्ण के आभूषण में जडित नहीं
हो जाता है |)

(महान गायक, चित्रकार,कवि और अन्य गुणवान व्यक्ति तभी
सुशोभित होते हैं जब् उन्हें राजाश्रय प्राप्त होता है ,अन्यथा वे गरीबी
और गुमनामी मे जीवन यापन करने  के लिये बाध्य होते हैं | इसी
तथ्य को एक माणिक्य की शोभा एक स्वर्णाभूषण मे जडित होने की
उपमा के द्वारा  व्यक्त किया गया है | )

Gunaih  svagyatulyopi  seedatyeko  niraashrayah.
Anarghyamapi  maanikyam  hemaashrayamapekshate.

Gunaih = virtues.   Sarvagya+tulyo + api.    Sarvagya=
all -knowing.  Tulya = similar.   Api =  even.   Seedati+
eko.      Seedati = is distressed.        Eko = singly.
Nirashrayah = without any shelter or support.  Anarghyam+
api.    Anarghyam =priceless.    Maanikyam =  a ruby.
Hema + aashrayam + apekshate.   Hema = gold.   Aashrayam=
shelter.    Apekshate = requires.

i.e.      Generally most virtuous and all-knowing  persons have
have to languish and lead a  lonely difficult life for want of
patronage and support from the rich and mighty persons, just
like a precious gem, which  gets recognition an appreciation by
being studded in a gold ornament.

(Generally musicians, artists, poets etc  come into prominence
when they get support and  recognition from the State and rich
people. Otherwise , they languish in oblivion. This fact has been
illustrated by the use of a simile of a gem stone being studded in
a gold ornament.)





Tuesday, 30 October 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


तद्भोजनं  यद्विजभुक्त  शेषं
          तत्सौहृदं  यत्क्रियते  परस्मिन्  |
सा  प्राज्ञता  या  न  करोति  पापं
          दम्भं  विना  यः  क्रियते  स  धर्मः  ||
                         -  चाणक्य नीति (१५/८ )

भावार्थ -       वही भोजन श्रेष्ठ है जो ब्राह्मणों को पहले
भोजन कराने के बाद शेष रहता है |  वही  सच्ची मित्रता
है जिसमे  एक दूसरे के प्रति समान हो |  वही  विद्वत्ता
श्रेष्ठ होती है जिस के कारण व्यक्ति बुरे और निषिद्ध कार्य
करने की ओर प्रवृत्त नहीं होता है |  विना दम्भ (दिखावा
तथा गर्व ) के जो सेवा कार्य किया जाय वही सच्चा धर्म है |

Tadbhojanam yadvijabhukta  shesham.
Tatsauhrudam yatkriyate  parasmin.
Saa praagyataa  yaa  na  karoti  paapam.
Dambham  vinaa yah  kriyate  sa dharmah.

Tat+bhojanam.    Tat = that.    Bhojanam = food.
Yat + dvija=bhukta.   Yat = that.   Dvija= a brahmin.
Bhukta = eaten by.     Shesham =  remaining.
Sauhrudam = friendship for and with.    Kriyate=
 creates.  Parasmin = mutual, from both sides.
Saa = that.   Praagyataa = being learned.   Yaa =
that.   Na = not.    Karoti =does.   Paapam= evil
deeds.   Dambham = hypocrisy.    Vinaa = without. 
Yah= whosoever.     Kriyate = is done.    Sa = that.
Dharmah = religious austerity .

i.e.     Only that cooked food is good which remains
after feeding the Brahmans .   A friendship is real
when it is mutual, and  that scholarship is real, which
deters  a  person from  indulging  in  sinful  deeds. 
A charitable  deed done without hypocrisy (pomp and
pride) is the real religious austerity.

Monday, 29 October 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अनन्त  शास्त्रं  बहुलाश्च  विद्या
                        स्वल्पश्च   कालो  बहुविघ्नता  च  |
यत्सारभूतं  तदुपासनीयां
                         हंसो  यथा  क्षीरमिवाम्बुमध्यात्    ||
                                       - चाणक्य नीति (१५/१० )

भावार्थ -   शास्त्रों  की संख्या  अनन्त है और विद्यायें  भी
विभिन्न  प्रकार की होती हैं |  इन सब को सीखने के लिये
हमारे पास समय की बहुत कमी है तथा विघ्न बाधायें भी बहुत
आती हैं |  ऐसी स्थिति में यही श्रेयस्कर है कि जो  भी विद्या
सर्वोत्तम हो उसी का चयन कर उसी को इस प्रकार सीखाना
चाहिये जिस प्रकार एक हंस जल  मिश्रित दूध से केवल दूध
को ही ग्रहण करता है |

(संस्कृत साहित्य में एक मान्यता है कि हंसों में दूध  ओर जल
के मिश्रण से दूध को अलग करने की क्षमता होती है जिसको
 'नीरक्षीर विवेक ' कहते हैं | इसी को एक उपमा के रूप में प्रयुक्त
कर यह प्रतिपादित किया गया है कि अपने सीमित समय का
सदुपयोग करने के लिये एक विद्यार्थी को अपने चयनित विषयों
पर ही ध्यान केन्द्रित करना चाहिये | )

Anant shaastram bahulaashcha vidyaa.
Svalpashcha kaalo  bahuvighnataa cha.
Yatsaarabhootam tadupaasaneeyam.
Hamso  yathaa  ksheeramivaambum  adhyaat.

Anant =infinite.   Shaastram = treatises on
various disciplines of learning.  Bahulaa +cha.
Bahulaa = numerous.  Cha = and.    Vidyaa =
disciplines of learning.     Swalpah+ cha,
Svalpah= very little,   Kaalo=  time.   Bahu=
many.   Vighnataa = obstacles.     Yat =  that.
Aadhaarabhootam = best.   Tat = that.
Upaasaneeyam = worth attending. Hamso =
a Swan,    Yathaa = for instance.    Ksheeram+
 iva +ambu+ madhyaat.  Ksheera = milk.    Iva =
like (for comparison)   Ambu =water. Madhyaat=
among.

i.e.    There are infinite treaties of learning as also
various disciplines of learning.   On the other hand
the time at our disposal is very limited and many
obstacles also come in the way.  Therefore, under
such circumstance we should  be very selective and
choose only the best subjects which are worth attending
and leave  the rest , ,just like a swan, who separates the
milk from a mixture of milk and water .

(In Sanskrit Literature there is a saying that Swans
have the capacity of separating milk from a mixture
of milk and water.  This has been used as a Simile
to emphasize the importance of being selective while
studying a subject just like a swan, as the time at our
disposal is very limited. )

Sunday, 28 October 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.

मणिर्लुन्ठति  पादाग्रे  काचः  शिरसि  धार्यते  |
क्रयविक्रय  वेलायां  काचः  काचो  मणिर्मणिः ||
                                  चाणक्य नीति (१५/१७)

भावार्थ -   यदि राह में चलते हुए किसी व्यक्ति को एक मूल्यवान
मणि दिखाई दे और वह उसे साधारण कांच का टुकडा समझ  कर
अपने पैर के अग्र भाग से ठोकर मार कर आगे बढ जाये  और बाद
 में एक साधारण कांच के टुकडे को मणि समझ कर अपने सिर पर
धारण कर ले, परन्तु भविष्य में उसको क्रय-विक्रय करते समय यह
स्पष्ट हो जायेगा कि  कौन कांच का टुकडा था और कौन मणि थी |

(प्रस्तुत सुभाषित का तात्पर्य यह  है कि गुणवान और पारखी व्यक्ति
ही किसी वस्तु का सही मूल्यांकन कर सकते हैं और अन्ततः मूल्यवान
वस्तु ही सम्मानित होती है | )

Manirlunthati  paadaagre  kaachah  shirasi  dhaaryate .
Krayavikraya  velaayaam  kaachah kaacho  manirmanih.

Manih + lunthati.    Manih = a precious jewel.    Lunthati =
is struck.    Paadagre = toe of the foot.   Kaachah = ordinary
glass.   Shirasi = on the head.    Dhaaryate=  wears, bears.
Krayavikraya=.buying and selling.  Velaayaam=at the time of.
manirmanih = manih + manih.

i.e.     If per chance a person while walking on a road finds a
shining  jewel and thinking it to be a piece of ordinary glass
he kicks it with the toe of his foot, and while going further he
finds a shining piece of ordinary glass and thinking it to be a
jewel uses it to adorn his head, but whenever in future he will 
sell it or purchase a jewel he will come to know which was the
ordinary glass and which was the real jewel.

(The idea behind this Subhashita is that only experts can evaluate
the true worth of a person or thing, and ultimately the truth prevails.)

 

Saturday, 27 October 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.



पठन्ति   चतुरो  वेदान्धर्मशास्त्राण्यनेकशः  |
आत्मानं  नैव   जानन्ति  दर्वी पाकरसं  यथा ||
                             - चाणक्य नीति (१५/१२ )

भावार्थ =   कर्मकाण्ड कराने वाले चतुर  पुरोहित  वेदों तथा
अनेक धर्मशास्त्रों का पाठ अपने यजमानों के लिये करते हैं,
पर उनमें वर्णित परब्रह्म परमेश्वर से उसी प्रकार निर्लिप्त
रहते हैं  जिस प्रकार एक  दर्वी ( रसयुक्त भोजन को पकाने
और परोसने वाला करछुल ) उस भोजन के रस से निर्लिप्त
रहता है  |

Pathanti  chaturo  vedandharmashaastraanyanwkashah.
Aatmaanam naiva jaananti  darvee paakarasam  yathaa,

Pathanti = read,    Chaturo = cleaver  priests.   Vedaam +
Dharmshaastraani  + anekashah.     Vedaam= the Sacred
Vedas.   Dharmashaastraani =  Religious treatises.
Anekashah = many.    Aatmaanam = the Supreme Spirit.   
Naiva =not.     Jaananti  = know.     Darvee = a ladle ,
big serving spoon,   Paakrasam = Cooked soup.   Yathaa =
for instance,  just like a.

i.e.      Cleaver priests performing religious rituals for their
clients recite  aloud various Vedas and religious treatises,
but  they do not remain in communion with the Supreme
Spirit,  just like a ladle used for cooking and serving cooked
soup remains  unaffected by the soup.

Friday, 26 October 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


त्यजन्ति  मित्राणि  धनैर्विहीनं
                 पुत्राश्च  दाराश्च  सुह्रज्जनाश्च  |
तमर्थवन्तं  पुनराश्रयन्ति
                  अर्थो  हि  लोके  मनुषस्य बन्धुः  ||
                                -  चाणक्य  नीति (१५/५)
भावार्थ -   किसी धनहीन व्यक्ति के मित्र, संतान , पत्नी तथा
घनिष्ठ  मित्र  भी उसका साथ छोड देते हैं  |  यदि वह  फिर से
धनवान हो जाता है तो वे ही लोग  फिर से उसके आश्रय  में आ
जाते हैं |  इसी लिये कहा गया है कि धन ही सामान्य जीवन में
मनुष्य का  परम् मित्र है |

Tyajanti mitraani dhanairviheenam.
               Putraashcha  daaraashcha suhrajjanaashcha
Tamarthavantam punaraashryanri
                Artho  hi  loke  manushasya  bandhuh.

Tyajanti = abandon, quit.    Mitraani = friends.    Dhanaih +
viheenam,     dhanaih = wealth.   Viheenam = without.
Putraah+cha.   Pyife     Suhrad + janaah + cha.  Suhrad =
devoted  friends.    Janaah = person   Tam +arthvantam 
Tam = they.   Artthvantam = wealthy.  punah + aashrayanti.   
Punah = again.    Aashrayanti = depend upon.      Artho =
wealth.   hi =surely.  Loke =in ordinary life.   Manushasya =
man's      Bandhuh=friend.
,

i.e.     The friends, children , wife, and even devoted friends
of a person abandon him if  he does not have any wealth. But
if  per chance he becomes wealthy,  all  of  them again come
back to him. That is why it is said in ordinary life that  wealth
is a man's good friend.


Thursday, 25 October 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita .


कुचैलिनं  दन्तमलोपधारिणं 
               बह्वाशिनं  निष्ठुरभाषिणं  च  |
सूर्योदये  चास्तमये  शयानं
               विमुच्यति  श्रीर्यदि चक्रपाणिः     ||
                              -  चाणक्य नीति (१५/४)

भावार्थ -  यदि कोई व्यक्ति मैले और फटे पुराने वस्त्र पहने
हुए हो, उसके दांतों  में मैल जमा हुआ हो , बहुत ही  वृद्ध  हो ,
कटु वचन कहने वाला हो, सूर्योदय तथा  सूर्यास्त  के  समय
सोया रहता हो, तो ऐसे लक्षणों वाले व्यक्ति  को धन संपत्ति
की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी  त्याग देती है चाहे वह उनके पति
भगवान विष्णु ही क्यों न हों |

( इस सुभाषित में अतिशयोक्ति के द्वारा यह प्रतिपादित किया
गया है कि उसमें वर्णित दुर्गुणों वाला व्यक्ति कभी धनवान नहीं
होता है )

Kuchailinam  dantamalopidhaarinam.
         Bahvaashinam  nishthurabhaashinam cha.
Sooryodaye  chaastamaye  shayaanam
          Vimunchati Shreeryadi  Chakrapaanih.

kuchailinam = wearing dirty clothes.  Danta +mala
upadhaarinam,    Danta = teeth.   Mala =dirty.
Upadhaarinam =  holding,    Bahu + aashinam.
Bahu = much, very    Ashinam = aged   Nishthura+
bhaashinam.    Nishtura = harsh.    Bhaashinam=
speaking.   Cha = and.    Sooryodaye = at the time
of Sunrise in the morning.    Cha+ astamaye.
Astamaye = at the time of the Sunset.  Shayaanam=
sleeping.   Vimunchita =  quits.     Shreeh + yadi.
Shreeh =   Lakshmi,the goddess of Wealth,  wealth
personified.   Yadi = even if.    Chakrapaani = God
Vishnu, the  consort of goddess Lakshmi.

i.e.    If a person wears dirty and tattered clothes, his
teeth are covered with plaque,   is aged and speaks
harshly,  remains asleep at the time of Sunrise  and
Sunset,  then Lakshmi,the Goddess of wealth  also
abandons such a person, even if he may be her own
Consort God Vishnu.

(In this Subhashita by  the use of a hyperbole , it has
been propagated that persons having these  shortcomings
are never rich .)






Wednesday, 24 October 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita..

अन्यायोपार्जितं  द्रव्यं  दश  वर्षाणि  तिष्ठति   |
प्राप्ते  चैकादशे  वर्षे  समूलं  तद्विनश्यति       ||
                           -         चाणक्य नीति (१५/६ )

भावार्थ -   किसी व्यक्ति द्वारा अनैतिक रूप से अर्जित धन
और वस्तुएं  उसके पास दस  वर्षों तक ही बनी रहती हैं  तथा   
एग्यारहवें  वर्ष  में उसका समूल नाश हो जाता है , अर्थात जो
पूर्व में अर्जित संपत्ति थी वह भी नष्ट हो जाती है |

(इस सुभाषित की सत्यता के प्रमाण इतिहास में बिखरे पडे हैं |
ऐसे लोगों का  वंश  ही समाप्त हो जाता है | )

Anyaayopaarjitam dravyam  dash varshaani tishthati.
Praapte  chaikaadashe  varshe  samoolam tadvinashyati.

Anyaaaya  + upaarjitam.    Anyaaya = unjustly.
Upaarjitam = acquired.    Dravyam = objects, things.
Dash = ten..   Varshani = years.   Tishthati = stays.
Praapte = gaining.   cha +ekaadashe,   Cha = and.
Ekaadashe = eleventh.    Varshe = year.   Samoolam-
entire, together with roots.   Tat +vinashyati   Tat = that
Vinashyati = is destroyed.

i.e.    The things and property acquired by a person through
unjust means stays with him for ten years only and on the
arrival of the  eleventh year gets completely destroyed
including the wealth earlier earned through just means.

( The history of mankind is full of  instances to prove the
correctness of this Subhashita,  Even the dynasty of such
persons also comes to an end .)

Tuesday, 23 October 2018

आज का सुभाषित. / Today's Subhashita..


एकमप्यक्षरं   यस्तु   गुरुः  शिष्यं   प्रबोधयेत्           |
पृथिव्यां  नास्ति  तद्द्रव्यं  यद्दत्वा  सोSनृणी  भवेत्  ||
                                            - चाणक्य नीति (१५/२ )

भावार्थ  -   यदि कोई गुरु अपने शिष्य को वर्णमाला का मात्र एक अक्षर
भी सिखाता है तो इस पृथ्वी में ऐसी कोई वस्तु नहीं है जिसे  दे कर  वह
अपने गुरु द्वारा शिक्षित किये जाने के ऋण से मुक्त हो सकता है |

(इस सुभाषित में अतिशयोक्ति अलङ्कार के माध्यम से  भारतीय सनातन
धर्म में  गुरु-शिष्य सम्बन्ध में गुरु के  महत्त्व को प्रतिपादित किया गया  है |)

Ekamapyaksharam   yastu  Guruh shishyam  prabodhayet.
Pruthivyaam  nasti  taddruvyam  yaddatva sonrunee bhavet.

Ekam+ api.+ aksharam    Ekam= one.   Api= even.  Aksharam रु-=
letter of alphabet.   Yastu= to whom.    Guruh = a teacher. 
Shishyam = a pupil, student.    Prabodhayet=  teaches. ivy
Pruthivyaam = On this Earth.   Naasti = is not.  Tat +druvyam.
Tat = that.    Druvyam = thing, object,    Yat = datvaa,     Yat=
that.    Datvaa = by giving.   So + anrunee.    So = that person;
Anrunee = free from a debt.   Bhavet = will become.

i.e.    If a Guru teaches even a single letter of  the  alphabet  to  a
student, there is no such thing on this Earth,which , on being given
to the Guru can render the student free from the debt of learning
from his teacher,

(Through the use of a hyperbole, the author has highlighted the
sacred and exalted relationship between a guru ans a shishya in
the Sanatan Dharma,)

Monday, 22 October 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita. .


यस्य  चित्तं  द्रवीभूतं  कृपया  सर्वजन्तुषु     |
तस्य  ज्ञानेन मोक्षेण किं  जटाभस्मलेपनैः   ||
                                - चाणक्य नीति (१५/१ )

भावार्थ -   यदि  किसी  व्यक्ति  का  हृदय  प्राणिमात्र के प्रति  दया
की भावना से  द्रवित होता है तो इसी ज्ञान (भावना) के कारण वह मोक्ष
प्राप्त  कर लेता है और फिर उसे  (एक तपस्वी की तरह) सिर में जटायें
बढा कर और शरीर में भस्म लगाने की क्या आवश्यकता है  ?

(इस सुभाषित द्वारा मोक्ष प्राप्ति के लिये तपस्या करने  से भी अच्छा
साधन प्राणिमात्र के प्रति दया की भावना को बताया गया है )

Yasya chittam  draveebhootam  krupayaa  sarvajantushu.
Tasya  gyaanena  Mokshena  kim  jataabhasmalepanam.

Yasya = whose.   Chittam = Heart.     Draveebhootam =
moved.    Krupayaa = compassionately.   Sarva + jantushu.
Sarva = all.    Jantushu = creatures on the Earth.    Tasya =
his.   Gyaanena = by the avareness.    Mokshena =  release
from rebirth, emancipation.   Kim  = what.   jataa+ bhasma
+ lepanam.    Jataa = twisted and unkept long hairs,
Bhasma = ash,   Lepanam = smearing.

i.e.    If a person's heart is moved by compassion towards all
living beings on this Earth, and with this knowledge (awareness)
he can achieve 'Moksha' , then where is the need for keeping
unkempt and twisted hair locks on the forehead and smearing
ash on the body ?   (reference  of mendicants doing penance  to
achieve salvation )

(Through this Subhashita the author considers the path of serving the
humanity with compassion  as a better way of achieving salvation,)
  

Sunday, 21 October 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita


धर्मं  धनं  च  धान्यं  च  गुरोर्वचनमौषधम्  |
सुग्रहीतं  च  कर्तव्यमन्यथा  तु  न  जीवति  ||
                            -  चाणक्य नीति (१४/१९)

भावार्थ  -  हमारा यह परम्  कर्तव्य है कि हमें धर्म का पालन , धन संपत्ति
तथा धान्य (अनाज) का संग्रह (किसी दैवी आपदा से बचने के लिये), अपने
गुरु के आदेशों का पालन, तथा रुग्ण (बीमार) होने पर औषधियों  का सेवन
भली भांति करना चाहिये | अन्यथा हम जीवित नहीं रह सकते हैं  |

Dharmam  dhanam  cha  dhaanyam  cha  gurorvachanamaushadham.
Sugraheetam  cha  kartavyamanyathaa  tu na  jeevati.

Dharmam = religious austerity.    Dhanam = wealth.   cha  = and.
Dhaanyam = foodgrains.    Guroh + vachanam + aushadham.   Guroh =
of the Guru (the teacher)    Vachan= saying, instructions.   Aushadham=
medicines.  Sugraheetam =should be perceived  properly.   Kartaavyam+
anyathaa.    Kartavyam = duty.    Anyathaa = otherwise.   Tu=  and.
Jeevati = remain alive.

i.e.     We should perceive it properly that it is our foremost duty to practise
religious austerity, acquire and store wealth and food grains (to meet any
contingency), obey the instructions of our Gurus and take proper medicines
on becoming sick.  If  otherwise ,we can not remain alive .

Saturday, 20 October 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


स  जीवति  गुणा  यस्य  यस्य धर्मः  स जीवति  |
गुणधर्मविहीनस्य  जीवितं  निष्प्रयोजनम्         ||
                                   - चाणक्य नीति (१४/१३)

भावार्थ -  उसी व्यक्ति का जीवन ही सार्थक है जो गुणवान
हो या  धर्म के नियमों का पालन करता हो |  गुणों  और धर्म
से विहीन  व्यक्ति के जीवित रहने का कोई उद्देश्य नहीं होता
है (और वह् समाज के लिये वह भार स्वरूप ही रहता है ) |

Sa jeevati .gunaa  yasya   yasya  dharmah sa  jeevati.
Gunadharma-viheenasya  jeevitam  nishprayojanam.

Sa = whosoever.   Jeevati = really lives.   Gunaa = virtues.
Yasya =  whose.    Dharmah = religious austerity.
Gunadharma = virtues and  religious austrity.   Vihanasya=
a person deprived of.   Jeevitam =remaining alive.
Nishprayojanam = having no motive or  aim.

i.e.  Only such a person lives a purposeful life who is virtuous
and practises religious austerity.  A person who is without any
virtues and religiosity has no motive for remaining alive (and
on the other hand is really a burden on the society) .



Friday, 19 October 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अग्निरापः  स्त्रियो  मूर्खाः  सर्पा राजकुलानि  च    |
नित्यं  यत्नेन  सेव्यानि  सद्यः  प्राणहराणि  षट्  ||
                                      - चाणक्य नीति (१४/१

भावार्थ -    अग्नि (आग) , जल, स्त्रियां , मूर्ख व्यक्ति, सर्प
तथा  राज परिवारों  की सेवा  या इन  से  संपर्क सदैव विशेष
सावधानी पूर्वक करना चाहिये , क्यों  कि ये छहों तुरन्त प्राण
हरण करने में सक्षम होते हैं |

(वर्तमान संदर्भ में इस सुभाषित में स्त्रियों को इस सूची में
सम्मिलित करना तत्कालीन पुरुष सत्तात्मक समाज की
मानसिकता का ही द्योतक  है जिस का प्रभाव अभी भी कई
समाजों में विद्यमान है | )

Agniraapah  striyo  moorkhaah  sarpo  raajakulaani  Cha.
Nityam  yatnena  sevyaani  sadyah  praanaharaani shat.

Agni+ aapah.    Agni = fire.    Aapah = water.    Striyo=
women.   Moorkhaah = foolish persons.   Sarpo = snakes.
Raajakulaani = royal families.    Cha = and.      Nityam =
always.    Yatnena =with special care.   Sevyaani =  to be
taken care of.       Sadyah = instantly.      Praanaharaani = 
capable of taking away or threatening life.     Shat= six.

i.e.    One should handle or deal with fire, water, women,
foolish persons, snakes and Royal families with special
care, because all these six are capable of instantly taking
away or threatening life.

(In the present context inclusion of women in this list is
symbolic of  male dominated society in the past, which is
still in existence in many communities.)




Thursday, 18 October 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अत्यासन्ना  विनाशाय  दूरस्था  न  फलप्रदा  |
सेवतां   मध्यभावेन  राजा  वह्निर्गुरुः  स्त्रियं  ||
                                = चाणक्य नीति (१४/११)

भावार्थ -   एक राजा  (शासक),  अग्नि  (आग), एक गुरु , तथा
स्त्रियों से अत्यन्त निकटता से विनाश हो जाने की सम्भावना
होती है तथा अधिक दूरी  बनाये रखना भी लाभप्रद नहीं  होता है |
अतः इन चारों से सम्पर्क मध्यम भाव से (न निकटता और न दूरी)
करना ही श्रेयस्कर  है |

Atyaasanna  vinaashaaya  doorasthaa  na  phalapradaa.
Sevataam  madhyabhaavena  raajaa  vahnirguruh  striyam.

Ati + aasaanna.    Ati = too much.   Asannaa= proximate.
Vinaashaaya =causing ruin.   Doorasthaa=remaining aloof.
Na =  not.    Phalaprada =  fruitful, producing favourable
result.    Sevataam = should serve.   Madhyabhaaavena =
keeping a moderate distance.   Raajaa = a King, a Ruler.
Vahnih + guruh.     Vahnih = fire.    Guruh = a Teacher.
Strium = women.

i.e.     Too much proximity with a King (Ruler of a Country),
a raging fire,  a Guru (Teacher), and women folk is always
ruinous, and  remaining aloof from them is also not fruitful.
Therefore,  it is advisable that we should serve these four by
maintaining  a moderate distance  (neither too close nor too far)
from them.

Wednesday, 17 October 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


दूरस्थोSपि  न  दूरस्थो  यो  यस्य  मनसि  स्थितः  |
यो  यस्य  हृदये  नास्ति  समीपस्थोSपि  दूरतः       ||
                                          - चाणक्य नीति (१४/९ )

भावार्थ -   यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के मन पर
छाया हुआ हो तो वह उस से दूर होते हुए भी मानसिक रूप से
उसके निकट ही रहता है |  परन्तु यदि वह उसके हृदय में कोई
स्थान  नहीं रखता है  तो वह उसके निकट होते हुए भी  उस से
दूरी बनाये रखता है |

Doorasthopi  na  doorastho  yo  yasya  manasi  sthitah.
Yo   yasya  hrudaye  naasti  sameepasthopi  dooratah.

Doorastho + api.   Doorastho= staying far away.   Api =
even.    Na = not.     Yo =whosoever.     Yasya =whose.
Manasi = in the mind.   Sthitah = existing.    Hrudaye =
in the heart.   Naasti = not.  Sameepasthopi =  Sameepastho
+ api,     Sameepastho = nearby.   Dooratah = far away.

i.e.    If a person is mentally attached to some one, in spite
of his being physically away from him, he does not feel to
be distanced from him.  However, if someone is not closer
to one's heart, mentally he is always far away from him in
spite of the physical proximity with him.

Tuesday, 16 October 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


दाने  तपसि  शौर्ये  वा  विज्ञाने  विनये  नये  |
विस्मयो  न  कर्तव्यो  बहुरत्ना  वसुन्धरा     ||
                                - चाणक्य नीति (१४/८)

भावार्थ -     दान देने में अग्रणी , तपस्वी, शूरवीर, वैज्ञानिक ,
विनम्र स्वभाव वाले तथा अपने सिद्धान्तों पर सदैव दृढ रहने
वाले  किसी महान व्यक्ति  को देख कर आश्चर्य नहीं करना
चाहिये ,क्यों कि इस पृथ्वी को सुशोभित करने वाले ऐसे एक
से बढ कर और भी महान व्यक्ति  हैं |

(इस सुभाषित का अन्तिम पद  - 'बहुरत्ना वसुन्धरा '  बहुत ही
प्रसिद्ध है | )

Daane tapasi  shaurye  vaa  vigyaane vinaye  naye .
Vismayo  na  kartavyo  bahu-ratna  vsundharaa.

Daane = giving away wealth as charity.   Tapasi =
ascetic, penance.   Shaurya =valour, bravery.  Vaa=
and.      Vigyaana = knowledge, science, discovery.
Vinaye = humility, education.    Naye = principle.
Vismayo = amazement, wonder.        Na = not.
Kartavyo= to be done.   Bahu = plentiful,  a lot.
Ratnaa= precious things.    Vasundharaa = the Earth.

i.e.      We should not be amazed at all by seeing a very
charitable, ascetic, brave and humble person with scientific
temperament  and firm on his principles, because more such
persons are found in plentiful on this Earth.

.("Bahuratnaa Vasundhara" - the concluding part of this
Subhashita is often quoted in literary conversation .)

Monday, 15 October 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita..


धर्माख्याने  श्मशाने  च  रोगिणां  या  मतिर्भवेत  |
सा  सर्वदैव  तिष्ठच्चेत्को  न  मुच्येत  बन्धनात्  ||
                                      -   चाणक्य नीति (१४/६)
भावार्थ -   धार्मिक प्रवचन सुनते समय, श्मशान में किसी मृत व्यक्ति
के दाह संस्कार के समय तथा किसी गम्भीर रोग से ग्रस्त होने के समय
लोगों की जो मानसिक स्थिति होती है , यदि वह सदैव बनी रहती तो ऐसा
कौन व्यक्ति होगा जो इस संसार के बन्धनों से मुक्त नहीं हो जायेगा  ?

(उपर्युक्त तीनों परिस्थितियों में लोगों में जीवन की क्षणभङ्गुरता का आभास
हो कर वैराग्य की भावना जागृत हो जाती है जो कि क्षणिक ही होती है |  इसी
तथ्य को इस सुभाषित में व्यङ्ग्यात्मक रूप से व्यक्त किया गया है | 

Dharmaakhyaane  shmashaane  cha  roginaam yaa matirbhavet.
Sa  sarvadaiva  tishthccetko  na muchayate  bandhanaat.

Dharmaakhyaane = religious discourses.   Shmashaane= a place
where dead bodies are burnt, a crematorium.    cha = amd.
Roginaam = sick persons.     Yaa = that.   Matih+ bhavet.
Matih = state of mind.    Bhavet = happens.    Saa = that.
Sarvadaiva = sarvadaa +eva.    Sarvadaa = always.   Eva = also
Tishthet +chet + ko.    Tishthet= if remains.   Chet = if.  Ko = who.
Na = not.    Muchyet =  become free.   Bandhanaat = from the
bondage of birth and death.

i.e.        If the state of mind of people while listening to a religious
discourse,  attending a funeral ceremony in a crematorium,  and
while suffering from a serious life threatening disease, always remains
intact, can there be any person who will not be free from the bondage
of birth and death ?

(In the three situations mentioned in this subhashita people become
averse to worldly objects and desires, but it is momentary. This fact
has been stated here sarcastically that had this feeling been permanent
people would have been free from the bondage of birth and death.)



Sunday, 14 October 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


आत्मापराधवृक्षस्य  फलान्येतानि  देहिनाम्  |
दारिद्र्यदुःखरोगाणि  बन्धनव्यसनानि  च     |
                                - चाणक्य नीति (१४/२)|

भावार्थ -   किसी मनुष्य द्वारा स्वयं किये गये अपराध रूपी वृक्ष
में  अन्ततः जो फल लगते हैं  वे  हैं दरिद्रता ,दुःख, विभिन्न प्रकार
के रोग, बुरे व्यसन, तथा कारागार में बन्दी बना दिया जाना |

(इस सुभाषित में मनुष्य द्वारा किये गये कर्मों की तुलना वृक्षारोपण
से की गयी है और उनका  परिणाम उन वृक्षों के फलों के रूप में व्यक्त
किया गया  है |  अच्छे कर्मों  का परिणाम सुख और शान्ति के रूप में
 होता है और बुरे कर्मों का परिणाम सदैव बुरा ही होता है | एक कहावत
भी है कि -  'बोया पेड बबूल का आम कहां ते खाय "  |

Aatmaaparaadha-vrukshasya  phalaanyetaani  Dehinaam.
Daaridrya-duhkha-rogaani  Bandhana-vyasanaani  cha.

Aatmaaparaadha+vrukshasya.    Aatmaaparaadha = one's
own offences.   Vrukshasya= tree's    Phaalaani+ etaani.
Phalaani = fruits, end results.   Etaaani = these.   Dehinaam=
Man, living beings.   Daaridrya poverty.   Duhkha = sorrow,
miseries.   Rogaani = diseases.    Bandhana = imprisonmnt.
Vyasanaani = various types of addictions.   Cha = and.

i,e      The tree of offences done by a person himself ultimately
produces fruits in the form of poverty, miseries, various diseases,
imprisonment and various addictions.

(In this Subhashita the deeds done by a person have been compared
to planting of trees and their results to the fruits produced by the trees.
Good deeds done ultimately result in happiness and welfare whereas
wrong doings result in miseries, diseases etc.     This is the message
conveyed by this Subhashita, )

Friday, 12 October 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि जलमन्नं  सुभाषितम्   |
मूढैः  पाषाणखण्डेषु   रत्नसंज्ञा  विधीयते         ||
                                     - चाणक्य. नीति (१४/१)

भावार्थ  -  इस  पृथ्वी में जल, अन्न तथा सुभाषित (विद्वानों
के द्वारा कहे गये विद्वत्ता, ज्ञान तथा विनोद युक्त सुवचन )
ही रत्न (मूल्यवान वस्तुऐं ) हैं , परन्तु मूर्ख और अज्ञानी लोग
पत्थरों के  छोटे छोटे चमकदार  टुकडों को ही रत्न कहते हैं  |

(प्रस्तुत श्लोक में संस्कृत साहित्य की एक प्रमुख विधा 'सुभाषित'
की प्रसंशा जल और अन्न के समकक्ष रख कर की गयी है जिनके
बिना मानव जीवित ही नहीं रह सकता है | )

Pruthivyaam  treeeni  ratnaani  jalamannam  subhashitam.
Moodhaih  paashanakhandeshu  ratnasmgya  vidheeyate.

Pruthivyaam = in this Earth.     Treeni = three.   Ratnaani  =
precious things.    Jalamannam = jalam + annam.    Jalam=
water.    Annam = food.    Subhashiam = eloquent and witty
sayings.               Moodhaih = ignorant and stupid persons.
Paashaan= stone.    Khandeshu = pieces, chips.    Ratna=
precious stone.    Smgya + name.    Vidheeyate = consider.

i.e.  There are  only three precious things on this Earth, namely
water, food and  'Subhashitas' (eloquent  and witty quotes by
learned scholars and poets),  but  ignorant and stupid  people
consider colourful pieces of stones as precious stones.

(This shloka is in praise of  'Subhashitas' , a well known and
popular style of Sanskrit poetry, composed by numerous known
and unknown poets containing eloquent and witty remarks on
diverse subjects. These have been equated to water and food,
without which no livimg being can subsist on this Earth.)

Thursday, 11 October 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


पुनर्वित्तं  पुनर्मित्रं  पुनर्भार्या  पुनर्मही  |
एतत्सर्वं  पुनर्लभ्यं  न शरीरं  पुनः पुनः ||
                        - चाणक्य नीति (१४/३)

भावार्थ -   धन संपत्ति,  मित्रगण,  पत्नी  तथा  जमीन जायदाद
की  हानि होने  पर भी ये  सभी फिर से प्राप्त किये जा सकते  हैं ,
परन्तु  (परमेश्वर द्वारा हमें प्रदत्त) यह  मानव शरीर एक बार
नष्ट हो जाने पर पुनः  उपलब्ध नहीं होता है |

Punarvittam  punarmitram  punarbhaaryaa  punarmahee.
Etatsarvam punarlabhyam  na  shareeram punah punah.

Punah + vittam.   Punah = again.   Vittam=  wealth.   Punah +
mitram.    Mitram = friends.   Punah+bhaaryaa.     Bhaaryaa
= wife.   Punah + mahee.    Mahee =earth, land   .Etat=  these. 
Sarvam = all.   Punah+ labhyam.  Labyam= capable of being
achieved.   Na= not.   Shareeram=human body.   Punah punah
= again and again.

i.e.     Wealth,  friends, wife and landed property if lost can be
acquired again and again , but not this human body (bestowed
upon us by the God Almighty).

Wednesday, 10 October 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


एकाक्षरप्रदातारं  यो  गुरुं नाभिवन्दते           |
श्वानयोनिशतं  गत्वा  चान्डालेश्वभिजायते ||
                              - चाणक्य नीति (१३/२०)

भावार्थ -   जो व्यक्ति उसे एकाक्षर 'ॐ' मन्त्र की दीक्षा देने
वाले (या मात्र एक अक्षर की भी शिक्षा देने वाले ) अपने गुरु
का उचित आदर नहीं करता है वह एक सौ बार कुत्ते की योनि
में जन्म ले कर अन्ततः चाण्डाल (निम्नतम श्रेणी का मनुष्य )
के रूप में जन्म लेता है |

(भारतीय सनातन धर्म  में एक गुरु या शिक्षक के पद को कितना
महत्त्व दिया गया है यह इस सुभाषित से परिलक्षित होता है  | )

Ekaakshara-pradaataaram  yo gurum  naabhivandate.
Shvaana-yoni-shatam  gatvaa  chaandaaleshvabhijaayate.

Ekaakshara = monosyllabic word ,  sacred monosyllabic
word Om (ॐ ).   Pradaataram = givers of.   Yo = who.
Gurum = to the Teacher or 'Guru'    Na +  abhivandate =
Na = not.    Abhivandate = expresses his reverence .
Shvaana = a dog.   Yoni = form of existence fixed by birth,
Shatam = one hundred times.  Gatvaa = gone, born as.
Chaandaleshu + abhijaayate .   Chaandaleshu= outcaste,
a  person of the lowest caste.    Abhijaayate = be born
again and again.

i.e.     A person who does not show due reverence to his
Guru who has initiated him in the sacred  'Om' (ॐ) Mantra
(or taught him even a single word) takes birth as a dog one
hundred times and ultimately is born as a 'Chaandala' .

(In the Sanatan Dharma the highest position is given to a
'Guru' (a teacher) in the society, which, can be judged by
this Subhashita.) 
                   

Tuesday, 9 October 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


कर्मागतं  फलं  पुंसां  बुद्धिः  कर्मानुसारिणी  |
तथापि सुधियश्चार्या  सुविचार्यैव  कुर्वते      ||
                              - चाणक्य नीति (१८/१८)

भावार्थ -   मनुष्य जैसे कर्म करता है उसी के अनुसार ही उसे शुभ
या अशुभ फल प्राप्त होते हैं तथा बुद्धि भी उन्हीं कर्मों के अनुसार ही
अच्छी या बुरी हो जाती है  |  फिर भी जो व्यक्ति समझदार होते हैं
वे भली प्रकार विचार करने के बाद ही कोई कार्य करते हैं ||

Karmaagata  phalam  pumsaam  buddhih  karmaanusaarinee.
Tathaapi sudhiyashchaaryaa  suvichaaryeva  kurvate.

Karmaagata = Karma+ aagat.     Karma =work.    Aagat =
coming from,      Phalam = as a result of, fruits.    Pumsaam=
people.     Buddhih = perception.        Karma+ anusaarinee.
Anusaarinee = accordingly.    Tathaapi = even then.    Sudhiyah=
sensible .    Chaaryaah= activity.     Suvichaarya+ eva.
Suvichaarya = after thoroughly deliberating .    Kurvate =do.

i,e,      People get  good or bad results according to the activities
undertaken by them and their perception also changes accordingly.
Even then sensible persons do their activities after thoroughly
deliberating over the consequences of their action.


Monday, 8 October 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


यथा  धेनु  सहस्रेषु  वत्सो गच्छति  मातरम्  |
तथा  यच्च  कृतं  कर्म  कर्तारमनुगच्छति     ||
                               - चाणक्य नीति (१३/१५)

भावार्थ -   जिस प्रकार हजारों गायों के एक समूह में  उनके
बछडे  अपनी अपनी अपनी माताओं को ढूढ कर उनके पास
चले जाते हैं ,उसी प्रकार किसी व्यक्ति द्वारा किये  गये कर्म
भी  उस के पीछे पीछे उस का अनुसरण करते हैं , अर्थात उन
किये गये अच्छे या बुरे कर्मों के परिणाम उसी को  ही भोगने
पडते हैं |

Yathaa  dhenu  sahasreshu  vatso  gacchati  maataram.
Tathaa yaccha  krutam  karmam  kartaaramanugacchati.

Yathaa = for instance.   Dhenu =  cow.   Sahasreshu =
in thousands.    Vatso = calf of a cow.    Gacchati =goes.
Maataram = mother.   Tathaa = in the same manner.
Yaccha = yat +cha.    Yat=  that.    Cha = and.    Krutam=
done.    Karma = action.   Kartaaram+ anugacchati.
Kartaram=  doer.     Anugacchati = accompany, follows.

i.e.       For instance in a herd of thousands of cows their
calves recognise their respective mothers and then follow
them, in the same manner the deeds done by a person also 
follow him thereby implying that ultimately he has to face
the consequences of good or bad deeds done by him.

Sunday, 7 October 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


अनवस्थित  कार्यस्य  न  जने  न  वने   सुखम्  |
जनो  दहति  संसर्गाद्वनं  संगविवर्जनात्          || 
                                  - चाणक्य नीति (१३/१६ )

भावार्थ -    एक ऐसा कार्य जिस का परिणाम अस्थाई  या
अनिश्चित हो ,  न तो जनता के बीच और न ही किसी वन
में (एकान्त में लोगों की दृष्टि से दूर) करने से सुख प्राप्त
होता है  |  जनता के बीच में उनके हस्तक्षेप के कारण  तथा
वन मे (अकेले में) अन्य लोगों का सहयोग  न लेने के कारण 
वह कार्य सफल न होने से  दुःख ही प्राप्त होता है |

Anavasthita  kaaryasya   na  jane  na vane  sukham.
Jano dahati  smsargaadvanam  sangavivarjanaat.

Anavasthita =  unstable, fickle.    Kaaryasya = of the
job or business.   Na = not.    Janey = public.    Vane=
in a forest.    Sukham = happiness.     Jano = among
the public.     Dahati = grieves, tormented.   Sansargaat
+ vanam.     Sansargaat = through the association or
connection.      Vanam = in a forest.      Sanga = close
contact .     vivarjanaat= by avoiding.

i.e.   Any unstable business, whether done publicly or
privately (in a forest) does not result in happiness. When
done publicly it results in failure due to the intervention
by the public, and when done privately it also results in
failure for want of the association of the public , thereby
causing grief.




Saturday, 6 October 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


खनित्वा  हि  खनित्रेण भूतले  वारि  विन्दति  |
तथा  गुरुगतां  विद्या  शुश्रूषुरधिगच्छति      ||
                              - चाणक्य नीति (१३/१७ )

भावार्थ -    जिस प्रकार कुदाली और बेलचे की सहायता से भूमि 
को  खोद  कर   भूगर्भ से  जल प्राप्त कर लिया जाता है , वैसे ही 
एक शिष्य के द्वारा उसके गुरु के पास उपलब्ध विद्या भी गुरु 
की सेवा सुश्रूषा तथा आज्ञापालन के द्वरा ही प्राप्त की जा सकती 
है |

(इस सुभाषित में किसी गुरु से  विद्या प्राप्ति में होने वाली कठिनाई  
की तुलना जल प्राप्त करने के लिये एक कुवां खोदने से की गयी है , 
जिस के लिये बाहरी साधनों और श्रम  के अतिरिक्त धैर्य और समर्पण 
की भी अत्यन्त आवश्यकता होती है |  )

Khanitvaa hi  khanitrena  bhootale  vaari  vindati.
Tathaa gurugataam  vidyaa  shushrooshuradhigacchati.

Khanitvaa = by digging.    Hi = surely.    Khanitrena=
By a spade or a pick axe .    Bhotale = surface of the
ground.    Vaari = water.       vindati = get, find.
Tathaa = so also.    Gurugataam = belonging to a Guru
(teacher) . Vidya = knowledge   Shushrooshuradhigacchati
= shushrooshu+ adhigacchati.  Shushrooshu=  eagerness to
obey, serving.   Adhigacchati =  learns.

i.e.    Just as by digging  the surface of earth with the help 
of  a spade and pick axe  we are able to find underground 
water  (process of digging a well) , in the same manner the 
Knowledge a Teacher possesses, can be learnt by a student
by diligently serving and obeying his Teacher.    

(In this Subhashita acquiring knowledge from a Guru has
been compared to digging a well to fetch the underground 
water., which , besides use of various implements requires
much patience and commitment .)

Friday, 5 October 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita.


सन्तोषस्त्रिषु  कर्तव्यः  स्वदारे  भोजने  धने  |
त्रिषु  चैव  न  कर्तव्योSध्ययने  जपदानयोः    ||
                             - चाणक्य नीति (१३//१९ )

भावार्थ -    एक गृहस्थ का  यह कर्तव्य है कि वह अपनी
पत्नी,  भोजन तथा  धन ये तीनों जो उसे उपलब्ध हों उस
पर ही संतुष्ट रहना चाहिये ,परन्तु उसे विद्या प्राप्त करने,
मन्त्र जाप करने (उपासना करने का एक प्रकार) तथा दान
देना , इन तीन परिस्थितियों में कभी भी संतुष्ट नहीं होना
चाहिये |

Santoshastrishu  kartavyah  sva-daare  bhojane  dhane.
Trishu chaiva na kartavyodhyayane  japa-daanayoh.

Santoshah+ trishu.   Santoshah = contentedness  with.
Trishu = three.         Kartavyah = duty, worth doing.
Sva-daare.    Sva = one' own,  self.     Daare = wife.
Bhojane =  food.    Dhane = wealth.    Cha +  eva.
Cha = and.     Eva =also.      Na = not.    Kartavyo+
Adhyayane.   Adhyayane = learning.   Japa = muttering
prayer.     Daanayoh  = giving donations.

i.e.   It is the duty of a person that he should be contented in
respect of three aspects of his life, namely his wife,  the
food he gets, and the wealth in his possession.  On the other
hand he should  never  be contented in respect  of  acquiring
knowledge,  doing 'Japa'  (muttering prayers) and  giving
donations to the needy and poor people.












Thursday, 4 October 2018

आज का सुभाषित / Today's Subhashita .


धर्मार्थकाममोक्षाणां  यस्यैकोSपि  न  विद्यते  |
अजागलस्तनस्यैव  तस्य  जन्म  निरर्थकम्    ||
                                - चाणक्य नीति (१३/१० )

भावार्थ -    धर्म का पालन, धन संचय , कामवासना, तथा  मोक्ष 
प्राप्ति की इच्छा,  इन चारों में से किसी एक की भी कामना किसी 
व्यक्ति में यदि नहीं होती है तो  उस का जन्म लेना एक बकरी के 
गले में लटके हुए स्तनों की आकृति के समान मांसपिन्डों के समान
निरर्थक (किसी काम का न होना ) है | 

Dharmaartha-kaama-mokshaanaam  yasyaikopi na vidyate.
Ajagalastanasyaiva  tasya  janma  nirarthakam.

Dharma+artha+kaaaama+mokshaanaam .   Dharma= religion,
Artha =  wealth.   Kaama = erotic love.    mokshaanaam=
Emancipation etc.    Yasya + eko+api     Yasya = with whom.
Eko = one.   Api = even.    Vidyate = exists     Ajagalastana=
nipples or a fleshy part on the neck of domesticated goat.
Iva = like a.   Tasya = his.   Janma = being born.  Nirarthakam=
useless, in vain.

i.e.    If  a person does not possess even a single desire among
the Religious austerity,  acquisition of  wealth,  erotic love and 
achieving emancipation (release from the cycle of re-birth) .
then his being born in this World is useless like the outgrowth
on the neck of goats resembling nipples.